चुदी मैं दोस्त की खातिर – ग़ैर मर्द / औरत ग्रुप सेक्स

Chudi Main Dost ki Khatir – Hindi Sex Kahani

चुदी मैं दोस्त की खातिर – ग़ैर मर्द / औरत ग्रुप सेक्स hindi sex kahani

मैं अनिता हूँ। ३३ साल की बहुत ही खूबसूरत महिला। मेरे पति राज शेखर business-man हैं। मैं आपको उस घटना के बारे में बताना चाहती हूँ जो आज से कोई दस साल पहले घटी थी। इस घटना ने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी। मेरे जिसमानी सम्बंध मेरी सहेली के हसबंड से हैं और इसके लिए वो ही दोषी है। मेरे दो बच्चों में एक का पिता मेरे हसबंड नहीं बल्कि मेरी सहेली का हसबंड है। उस समय मैं पढ़ाई कर रही थी। मेरी एक प्यारी सी फ्रैंड थी, नाम था रिटा। वैसे आजकल वो मेरी ननद है।

राज रिटा का ही भाई है। रिटा के भाई से शादी करने के लिए मुझे एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। – हम दोनों कॉलेज में साथ साथ पढ़ते थे। हमारी जोड़ी बहुत मशहूर थी। दोनों ही बहुत खूबसूरत और छरहरे बदन की थी। बदन के कटाव बड़े ही सैक्सी थे। मेरे चूचियाँ रिटा से भी बड़ी बड़ी थी। लेकिन एक दम टाईट थी। हम अक्सर एक दूसरे के घर जाती थीं।

मेरा रिटा के घर जाने का मक्सद एक और भी था… उसका भाई राज। वो मुझे बहुत अच्छा लगता था। उस समय वो B.tech कर रहा था। बहुत ही हेंडसम और खूबसूरत शख्सियत का मालिक था। मैं उससे मन ही मन प्यार करने लगी थी। राज भी शायद मुझे पसंद करता था। लेकिन मुँह से कभी कहा नहीं। मैंने अपना दिल रिटा के सामने खोल दिया था।

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हम आपस में लड़कों की बातें भी करती थी। मुसीबत तब आयी जब रिटा केशव के प्यार में पड़ गयी। केशव कॉलेज युनियन का लीडर था। उसमें हर तरह की बुरी आदतें थी। वो एक अमीर बाप की बिगड़ी हुई औलाद था। उसके पिताजी एक जाने माने उद्योगपति थे। अनाप शनाप कमाई थी। और बेटा उस कमाई को अपनी अय्याशियों में खर्च कर रहा था।

दो साल से फेल हो रहा था। मैं उससे बुरी तरह नफ़रत करती थी। केशव मुझ पर भी गंदी नज़र रखता था। मगर मैं उससे दूर ही रहती थी। रिटा पता नहीं कैसे उसके प्यार में पड़ गयी। मुझे पता चला तो मैंने काफी मना किया लेकिन उसने मेरी बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। वो तो केशव की लछेदार बातों के भुलावे में ही खोयी हुई थी।

एक दिन उसने मुझे बताया कि उसके साथ केशव के शारीरिक सम्बंध भी हो चुके हैं। मैंने उसे बहुत बुरा भला कहा मगर वो थी मानो चिकना घड़ा। उस पर कोई भी बात असर नहीं कर रही थी। एक दिन मैं अकेली student रूम में बैठी कुछ तैयारी कर रही थी। अचानक केशव वहाँ आ गया। उसने मुझ से बात करने की कोशिश की मगर मैंने अपना सिर घुमा लिया।

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उसने मुझे बाँहों से पकड़ कर उठा दिया। “क्या बात है क्यों परेशान कर रहे हो।” “तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।” “मैं तेरे जैसे आदमी के मुँह पर थूकना भी पसंद नहीं करती।” मैंने कहा तो वो गुस्से से तिलमिला गया। उसने मुझे खींच कर अपनी बाँहों में ले लिया और तपाक से एक चुंबन मेरे होंठों पर दे दिया। मैं एक दम हकबका गयी। मुझे विश्वास नहीं था की वो किसी कॉमन जगह पर ऐसा भी कर सकता है।

इससे पहले की मैं कुछ संभलती, उसने मेरे दोनों बूब्स पकड़ कर मसल दिए। मैं फोरन होश में आयी। मैंने एक जबरदस्त चाँटा उसके गाल पर रसीद कर दिया। पाँचों अँगुलियाँ छप गयी थीं गाल पर। वो तिलमिला गया। “कुत्ते मुझे कोई बाजारू लड़की मत समझना जो तेरी बाँहों में आ जाऊँगी” उसे भी मुझसे ऐसी हरकत की शायद उम्मीद नहीं थी।

वो अभी अपने गाल सहलाता हुआ कुछ कहता कि तभी किसी के कदमों की आवाज सुनकर वो वहाँ से भाग गया। मेरा उस पूरे दिन मूड खराब रहा। ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी भी मेरे बूब्स को मसल रहा हो। बहुत गुस्सा आ रहा था। दोनों बूब्स छूने से ही दर्द कर रहे थे। घर पहुँच कर अपने कमरे में जब कपड़े उतार कर अपनी गोरी छातियों को देखा तो रोना आ गया।

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छातियों पर मसले जाने के नीले-नीले निशान दिख रहे थे। शाम को रिटा अयी। “आज सुना है तू केशू से लड़ पड़ी?” उसने मुझसे पूछा। “लड़ पड़ी? मैंने उसे एक जम कर चाँटा मारा। और अगर वो अब भी नहीं सुधरा तो मैं उसका सैंडलों से स्वागत करूँगी… साला लोफर” “आरे क्यों गुस्सा करती है? थोड़ा सा अगर छेड़ ही दिया तो इस तरह क्यों बिगड़ रही है।

वो तेरा होने वाला नंदोई है। रिश्ता ही कुछ ऐसा है कि थोड़ी बहुत छेड़छाड़ तो चलती ही रहती है,” उसने कहा। “थोड़ी छेड़ छाड़… my foot। देखेगी क्या किया उस तेरे आवारा आशिक ने?”मैंने कहकर अपनी कमीज़ ऊपर करके उसे अपनी छातियाँ दिखयीं। “चच्च कितनी बुरी तरह मसला है केशू ने” वो हँस रही थी। मुझे गुस्सा आ गया मगर उसकी मिन्नतों से मैं आखिर हँस दी। लेकिन मैंने उसे चेता दिया “अपने उस आवारा आशिक को कह देना मेरे चक्कर में नहीं रहे। मेरे आगे उसकी नहीं चलनी” बात आयी गयी हो गयी।

कुछ दिन बाद मैंने महसूस किया कि रिटा कुछ उदास रहने लगी है। मैंने कारण जानने की कोशिश की मगर उसने मुझे नहीं बताया। मुझ से उसकी उदासी देखी नहीं जाती थी। एक दिन उसने मुझ से कहा”नीतू तेरे प्रेमी के लिए लड़की ढूँढी जा रही है।” मैं तो मानो आकाश से जमीन पर गिर पड़ी”क्या?” “हाँ। भैया के लिए रिश्ते आने शुरू हो गए। जल्दी कुछ कर नहीं तो उसे कोई और ले जायेगी और तू हाथ मलती रह जायेगी।” “लेकिन मैं क्या करूँ? “तू भैया से बात कर” मैंने राज से बात की।

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लेकिन वो अपने मम्मी पापा को समझाने में अस्मर्थ था। मुझे तो हर तरफ अँधेरा ही दिख रहा था। तभी रिटा एक रोशनी की किरण की तरह आयी। “बड़ी जल्दी घबड़ा गयी? अरे हिम्मत से काम ले।” “मगर मैं क्या करूँ? राज भी कुछ नहीं कर पा रहा है।” “मैं तेरी शादी राज से करवा सकती हूँ।” रिटा ने कहा तो मैं उसका चेहरा ताकने लगी।”लेकिन… क्यों?” “क्यों? मैं तेरी सहेली हूँ…

हम दोनों ज़िंदगी भर साथ रहने की कसम खाती थीं। भूल गयी?” “मुझे याद है सब लेकिन तुझे भी याद है या नहीं मैं देख रही थी।” उसने कहा,”मैं मम्मी पापा को मना लूँगी तुम्हारी शादी के लिए मगर इसके बदले तुझे मेरा एक काम करना होगा” “हाँ बोल ना क्या चाहती है मुझसे” मुझे लगा जैसे जान में जान आयी हो। “देख तुझे तो मलूम ही है कि मैं और केशव सारी हदें पार कर चुके हैं। मैं उसके बिना नहीं जी सकती,” उसने मेरी और गहरी नज़र से देखा, “तू मेरी शादी करवा दे मैं तेरी शादी करवा दूँगी।”

“मैं तेरे मम्मी पापा से बात चला कर देखूँगी” मैंने घबड़ाते हुए कहा। “अरे मेरे मम्मी पापा को समझाने की जरूरत नहीं है। ये काम तो मैं खुद ही कर लूँगी,” उसने कहा। “फिर क्या परेशानी है तेरी?” “केशव” उसने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा,”केशव ने मुझसे शादी करने की एक शर्त रखी है।” “क्या?” मैंने पूछा। “तुम” उसने कहा तो मैं उछल पड़ी।”क्या? क्या कहा?” मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। “हाँ उसने कहा है कि वो मुझ से तभी शादी कर सकता है जब मैं तुझे उसके पास ले जाऊँ” “और तूने… तूने मान लिया?” मैं चिल्लाई।

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“धीरे बोल मम्मी को पता चल जायेगा। वो तुझे एक बार प्यार करना चाहता है। मैंने उसे बहुत समझाया मगर उसे मनाना मेरे बस में नहीं है।” “तुझे मालूम है तू क्या कह रही है?” मैंने गुर्रा कर उस से पूछा। “हाँ… मेरी प्यारी सहेली से मैं अपने प्यार की भीख माँग रही हूँ। तू केशव के पास चली जा… मैं तुझे अपनी भाभी बना लूँगी।” मेरे मुँह से कोई बात नहीं निकली।

कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है। “अगर तूने मुझे बर्बाद किया तो मैं भी तुझे कोई मदद नहीं करूँगी।” मैं चुपचाप वहाँ से उठकर घर चली आयी। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या करूँ। एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खायी। राज के बिन मैं नहीं रह सकती और उसके साथ रहने के लिए मुझे अपनी सबसे बड़ी दौलत गँवानी पड़ रही थी। रात को काफी देर तक नींद नहीं आयी।

सुबह मैंने एक फैसला कर लिया। मैं रिटा से मिली और कहा,”ठीक है तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा। केशव को कहना मैं तैयार हूँ।” वो सुनते ही खुशी से उछल पड़ी। “लेकिन सिर्फ एक बात और… किसी को पता नहीं चलना चाहिए… एक बात और…।” “हाँ बोल जान तेरे लिए तो जान भी हाजिर है।” “उसके बाद तू मेरी शादी अपने भाई से करवा देगी और तेरी शादी होती है या नहीं मैं इसके लिए जिम्मेदार नहीं होऊँगी” मैंने उससे कहा। वो तो उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी।

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रिटा ने अगले दिन मुझे बताया कि केशव मुझसे होटल सलीम में मिलेगा। वहाँ उसका सुइट बुक है। शनिवार शाम ८ बजे वहाँ पहुँचना था। रिटा ने मेरे घर पर चल कर मेरी मम्मी को शनिवार की रात को उसके घर रुकने के लिए मना लिया। मैं चुप रही। शनिवार के बारे में सोच सोच कर मेरा बुरा हाल हो रहा था। समझ में नहीं आ रहा था की मैं ठीक कर रही हूँ या नहीं।

शनिवार सुबह से ही मैं कमरे से बाहर नहीं निकली। शाम को रिटा आयी। उसने मम्मी को मनाया अपने साथ ले जाने के लिए। उसने मम्मी से कहा कि दोनों सहेलियाँ रात भर पढ़ाई करेंगी और मैं उसके घर रात भर रुक जाऊँगी। उसने बता दिया कि वो मुझे रविवार को छोड़ जायेगी। मुझे पता था कि मुझे शनिवार रात उसके साथ नहीं बल्कि उस आवारा केशव के साथ गुजारनी थी।

हम दोनों तैयार होकर निकलीं। मैंने हल्का सा मेक-अप किया। एक सिम्पल सा कुर्ता पहन कर निकलना चाहती थी मगर रिटा मुझसे उलझ पड़ी। उसने मेरा सब से अच्छा सलवार कुर्ता निकाल कर मुझे पहनने को दिया और मुझे खूब सजाया और ऊँची हील के सैंडल अपने हाथों से मुझे पहनाए। फिर हम निकले। वहाँ से निकलते-निकलते शाम के सढ़े सात बज गये थे।

“रिटा मुझे बहुत घबड़ाहट हो रही है। वो मुझे बहुत जलील करेगा। पता नहीं मेरी क्या दुर्गती बनाए।”मैंने रिटा का हाथ दबाते हुए कहा। “अरे नहीं मेरा केशू ऐसा नहीं है” “ऐसा नहीं है… साला लोफर… मैं जानती हूँ कितनी लड़कियों से उसके संबंध हैं। तू वहाँ मेरे साथ रहेगी। रात को तू भी वहीं रुकेगी। नहीं तो मैं नहीं जाऊँगी।” “अरे नहीं मैं तेरे साथ ही रहूँगी। घबड़ा मत… मैं उसे समझा दूँगी।

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वो तेरे साथ बहुत अच्छे से पेश आयेगा।” हम ऑटो लेकर होटल सलीम पहुँचे। वहाँ हमें सुइट नम्बर २०५ के सामने पहुँचा दिय गया। रिटा ने डोर-बेल पर अँगुली रखी। बेल की आवाज हुई और कुछ देर बाद दरवाजा थोड़ा सा खुला। उसमें से केशव का चेहरा दिखा। “good girl!” उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और अपने होंठों पर जीभ फ़िरायी। मुझे लगा मानो मैं उसके सामने नंगी ही खड़ी हूँ। “आओ अंदर आ जाओ” उसने दरवाजे को थोड़ा सा खोला। मैं अंदर आ गयी। मेरे अंदर आते ही दरवाजे को बँद करने लगा।

रिटा ने आवाज लगायी”केशू मुझे भी तो आने दो।” “तेरा क्या काम है यहाँ। चल भाग जा यहाँ से… कल सुबह आकर अपनी सहेली को ले जाना” कह कर भड़ाक से उसने दरवाजा बँद कर दिया। मैंने चारों और देखा। अंदर अँधेरा हो रहा था। एक decorative स्पॉट लाईट कमरे के बीचों बीच गोल रोशनी का दायरा बना रही थी। कमरा पूरा नज़र नहीं आ रहा था। उसने मेरी बाँह पकड़ी और खींचता हुआ उस रोशनी के दायरे में ले गया। “बड़ी शेरनी बनती है।

आज तेरे दाँत ऐसे तोड़ूँगा कि तेरी कीमत दो टके की भी नहीं रह जायेगी।” मैं अपने आप को समेटे हुए खड़ी हुई थी। उसने मुझे खींच कर अपने सीने से लगा लिया और मेरे होंठों पर अपने मोटे होंठ रख दिए। उसकी जीभ मेरे होंठों को एक दूसरे से अलग कर मेरे मुँह में प्रवेश कर गयी। शराब की तेज बू आ रही थी उसके मुँह से। शायद मेरे आने से पहले पी रहा होगा।

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वो मेरे मुँह का कोई कोना अपनी जीभ फिराए बिना नहीं छोड़ना चाहता था। एक हाथ से मेरे बदन को अपने सीने पर भींचे हुए था और दूसरे हाथ को मेरी पीठ पर फेर रहा था। अचानक मेरे चूत्तड़ों को पकड़ कर उसने जोर से दबा दिया और अपने से सटा लिया। मैं उसके लंड को अपनी चूत के ऊपर सटा हुआ महसूस कर रही थी। मैं उस के चेहरे को दूर करने की कोशिश कर रही थी मगर इसमे सफल नहीं हो पा रही थी। उसने मुझे पल भर के लिए छोड़ा और मेरे कुर्ते को पकड़ कर ऊपर कर दिया।

मैं सहमी सी हाथ ऊपर कर खड़ी हो गयी। उसने कुर्ते को बदन से अलग कर दिया। फिर मेरी ब्रा में ढके दोनों बूब्स को पकड़ कर जोर से मसल दिया। इतनी जोर से मसला कि मेरे मुँह से “आआआआहहहह” निकल गयी। उसने मेरी दोनों चूचियों के बीच से ब्रा को पकड़ कर जोर से झटक दिया। ब्रा दो हिस्सों में अलग हो गयी। मेरे बूब्स उसकी आँखों के सामने नग्न हो गए। उसने मेरे बदन से ब्रा को उतार कर फेंक दिया और दोबारा मेरे निप्पलों को पकड़ कर जोर जोर से मसलने लगा।

“ऊओफफफफ प्लीज़ज़ज़…. प्लीज़ धीरे करो” मैंने दर्द से तड़पते हुए कहा। “क्यों भूल गयी अपने झापड़ को। आज भी मैं भूला नहीं हूँ वो बे-इज्जती। आज तेरे परों को ऐसे कुतर दूँगा कि तू कभी अपना सिर उठा कर बात नहीं कर पायेगी। सारी ज़िंदगी मेरी राँड बन कर रहेगी” कह कर वो मेरी एक छाती को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। उसने मेरी सलवार के नाड़े को एक झटके में तोड़ दिया।

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सलवार सरसराती हुई मेरे कदमों पर ढेर हो गयी। “मैं ऐसा ही हूँ। जो भी मेरे सामने खुलने में देर लगाती है उसे मैं तोड़ देता हूँ।” उसने मेरी एक बाँह पकड़ कर उमेठ दी। मैं दर्द के मारे पीछे घूम गयी। उसने जमीन से मेरी चुन्नी उठा कर मेरे दोनों हाथ पीछे की और करके सख्ती से बाँध दिए। अब मैं उसे रोकने की स्तिथि में भी नहीं रही। उसने लाईट का स्विच ऑन कर दिया। पूरा कमरा रोशनी से जगमगा उठा। सामने सोफे पर एक और आदमी बैठा हुआ था। “इसे तो तुम पहचानती होगी। मेरा दोस्त सुरेश।

आज तेरा गुरूर हम दोनों अपने कदमों से कुचलेंगे।” मैं अपना बचाव करने की स्तिथि में नहीं थी। सुरेश उठा कर पास आ गया। उसने मेरे बदन की तरफ हाथ बढ़ाए। मैंने झुक कर अपना बचाव करने की कोशिश की। सुरेश ने मेरे बालों को पकड़ कर मेरे चेहरे को अपनी तरफ खींचा। मेरे चेहरे को अपने पास लेकर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। केशव मेरे शरीर के नीचे के हिस्सों पर हाथ फिरा रहा था। मेरे चूत्तड़ों पर कभी चिकोटी काटता तो कभी चूत के ऊपर हाथ फेरता। मेरी पैंटी को शरीर से अलग कर दिया।

फिर उसने एक झटके से अपनी दो मोटी-मोटी अँगुलियाँ मेरी चूत में डाल दीं। ज़िंदगी में पहली बार चूत पर किसी बाहरी वस्तु के प्रवेश ने मुझे चिहुँक उठने को मजबूर कर दिया। “अभी से क्यों घबड़ा रही है जानेमन अभी तो सारी रात दो मूसल तेरी चूत को कूटेंगे तब क्या होगा,” केशव मेरी मजबूरी पर हँसने लगा,”पता है सुरेश इस दो टके की छोकरी ने मुझे केशव को… खुले आम झापड़ मारा था। उस दिन मैंने तय किया था कि इसकी हालत कुत्तिया की तरह बना कर रहूँगा।

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तू तो अब देखती जा कैसे मैं तुझे अपने इशारे पर नचाता हूँ।” उसने हँसते हुए अपनी अँगुलियों को चूत में डाल कर ऊपर की और उठाया। मैं हाई हील सैंडल के बावजूद भी अपने पँजों पर उठने को मजबूर हो गयी। पहली बार मेरे बदन से कोई खेल रहा था इस लिए ना चाहते हुए भी शरीर गरम होने लगा। मेरा दिमाग का कहना अब मेरा शरीर नहीं मान रहा था। “अब तुझे दिखाते हैं कि लंड किसे कहते हैं।” कहकर दोनों अपने अपने शरीर पर से कपड़े खोलने लगे। दोनों बिल्कुल नंगे हो गए।

दोनों के लंड देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया। मेरी चूत का छेद तो बहुत ही छोटा था। एक अँगुली डालने में दर्द होता था मगर दोनों के लंडों का घेर तो मेरी मुठ्ठी से भी ज्यादा था। घबड़ाहट से मेरे माथे पर पसीना आ गया। “प्लीज़ मुझे छोड़ दो” मैंने सुबकते हुए कहा। हम ने तो तुझे नहीं पकड़ा। तू खुद चलकर इस दरवाजे से अंदर आयी है… हम से चुदने के लिए। आयी है कि नहीं… ? बोल।

” मैंने सिर हिलाया। “फिर क्यों कह रही है कि मुझे छोड़ दो। तू जा मैं भी रिटा से अपने संबंध तोड़ देता हूँ। तुझे पता है… रिटा प्रेगनेंट है? मेरा बच्चा है उसके पेट में। तेरी मर्जी तू चली जा।” उसकी बात सुनकर ऐसा लगा मानो किसी ने मेरे अंदर की हवा निकाल दी हो। मैंने एक दम विरोध छोड़ दिया। केशव ने मुझे घुटनों पर बैठने को मजबूर कर दिया। दोनों अपने-अपने लंड मेरे होंठों पर फिराने लगे।

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“ले इन्हें चाट,” केशव ने कहा,”खोल अपना मुँह।” मैंने अपने मुँह को थोड़ा सा खोला। केशव ने अपने लंड को मेरे मुँह में डाल दिया। मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड को अंदर तक पेल दिया। बहुत ही तीखी गंदी सी गंध आयी। मुझे घिन्न सी आने लगी। सुरेश मूवी कैमरा लकर मेरी तस्वीरें लेने लगा। मेरी आँखें उबल कर बाहर को आ रही थी। मुझे साफ दिख रहा था कि आज मेरी बहुत बुरी गत बनने वाली है। पता नहीं सुबह तक क्या हालत हो जायेगी।

केशव मेरे मुँह में धकाधक अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था। कुछ देर इस तरह मेरे मुँह को चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाल। उसकी जगह सुरेश ने अपना लंड मुँह में डाल दिया। फिर वोही होने लगा जो पहले हो रहा था। मेरे जबड़े दर्द करने लगे। जीभ भी खुरदरी हो गयी थी। “चल अपना मुँह और खोल… हम दोनों अपना लंड एक साथ डालेंगे” केशव ने कहा। “नहीं….” मैंने अपना मुँह हटाना चाहा मगर दोनों ने मेरे सिर को अपने हाथों में जकड़ रखा था। मगर मेरे मुँह में एक साथ दो मूसल जा सकते हैं क्या।

दोनों अपने अपने लंड ठेल रहे थे अंदर करने के लिए। मैं दर्द से चीख रही थी। ऐसा लग रहा था कि शायद मुँह फट जायेगा। केशव ने अपना लंड तो वापस मुँह में डाल दिया मगर सुरेश बाहर गालों पर ही फेरता रह गया। मेरे होंठों के कोने शायद फट गये थे। उसका लंड मुँह के अंदर आधा ही जा कर रह जता था। वो उसे पूरा अंदर डालने में सफल नहीं हो पा रहा था। मुझे खींच कर वहाँ बिस्तर पर पटक दिया

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और मेरे सिर को खींच कर बेड के कोने तक इस तरह लाया कि मेरा सिर बिस्तर से नीचे झूल रहा था। अब उसने वापस मेरा सिर अपने हाथों में उठाकर अपना लंड अंदर डालन शुरू किया और लंड को गले के अंदर तक डाल दिया। लंड पूरा समा गया था। उसकी झाँटें मेरे नथुनों में घुस रही थी। मैं साँस लेने के “अरे ये मर जायेगी केशू। ऐसे मत ठोक उसे”सुरेश जो मेरी तस्वीरें ले रहा था, उसने कहा। ये सुन कर केशव ने अपना लंड थोड़ा बाहर खींचा। वो तो अब पूरा वहशी लग रहा था।

आँखों में खून उतर आया था। सुरेश की बातों से थोड़ा सा नॉर्मल हुआ। फिर कुछ देर तक मेरे मुँह को मेरी चूत की तरह चोदने के बाद मुझे बिस्तर पर चित लिटा दिया। अब वोह भी बिस्तर पर चढ़ गया और मेरी टाँगें फैला दीं और जितना हो सकता थ उतना फैला कर हाथों से पकड़े रखा। “अबे अब पास आ कर क्लोज़-अप ले। एक-एक हर्कत को रिकॉर्ड कर। अभी इसकी चूत से खून भी टपकेगा। सब कैमरे में आना चाहिए,” उसने सुरेश को कहा। सुरेश मेरी चूत के होंठों के बीच सटे रजेश के लंड पे फोकस करने लगा।

वो अब धीरे -धीरे मेरी चूत पर दबाव डाला। मगर उसका लंड इतना मोटा था कि अंदर ही नहीं घुस पा रहा था। उसके लंड से निकले pre-cum से और कुछ मेरे रस से वो जगह चिकनी हो रही थी। दबाव बढ़ता गया मगर बार-बार उसका लंड फ़िसल जाता था। “तेल लाऊँ” सुरेश ने पूछा।”अबे तेल लगाने से तो आराम से अंदर चला जायेगा। फिर क्या मजा आयेगा। मैं तो इसे चींखते हुए देखना चाहता हूँ।” वो बिस्तर की चादर से मेरी चूत को साफ करने लगा।

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एक अँगुली में चादर का कोना पकड़ कर चूत के अंदर भी साफ़ कर दिया। अब मेरी चूत सूखी हो गयी। इस बार अपनी अँगुलियों से मेरी चूत के मुँह को फैला कर अपने लंड के टोपे को वहाँ लगाया और अपने शरीर का पूरा वजन मेरे ऊपर डाल दिया। उसका लंड मेरी चूत के दीवारों को छीलता हुआ अंदर जाने लगा। मैं जोर-जोर से चींखने लगी

“ओह्हहहह उहहहहऊऊऊऊऊ….. माँआआआआआ… मर गयीईईईईईई मुझे कोईईईईईई बचाओओ ऊऊऊऊऊऊऊहहहहह नहींईंईंईंईं” अगले झटके में मेरी virginity तोड़ते हुए अपने लंड को पूरा अंदर डाल दिया। अगर चूत गीली होती या उसमे कोई तेल लगाया होता तो इतना दर्द नहीं होता लेकिन वो तो मेरी जान लेना चाहता था। मुझे दर्द से चींखते और तड़पते देख कर उसे बहुत मज आ रहा था।

दूसरे झटके में इतना दर्द हुआ कि मैं कुछ ही देर के लिए बेहोश हो गयी। जब होश आया तो मैंने उसके लंड को उसी स्थिति में पाया। उसका लंड इतना मोटा था कि चूत की चमड़ी उसके लंड पर चिपक सी गयी थी। कुछ देर तक इसी तरह रहने के बाद जैसे ही वो अपने लंड को बाहर खींचने लगा तो ऐसा लगा कि मेरा गर्भाशय भी लंड के साथ बाहर आ जायेगा। मैं वापस छटपटाने लगी। उसने अपने लंड को पूरा बाहर निकाला और मेरे सामने ले कर आया।

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उसके लंड पर मेरे खून के कतरे लगे हुए थे। मेरी चूत से खून रिस कर बिस्तर पर टपक रहा था। “देखा मुझसे पँगा लेने का अँजाम। तेरी चूत को आज फड़ ही दिया। ले इसे चाट कर साफ कर।” मैंने नफ़रत से आँखें बँद कर ली। मगर वो मानने वाला तो था नहीं। मैंने आँखें बँद किए हुए अपना मुँह खोल दिया। उसने अपना लंड वापस मेरे मुँह में डाल दिया जिसे जीभ से चाट कर साफ करना पड़ा। फिर उसने वापस उसे मेरी चूत में घुसेड़ दिया और तेज तेज धक्के मारने लगा।

उसके हर धक्के से मेरी जान निकल रही थी। लेकिन कुछ ही देर में दर्द खतम हो गया और मुझे भी मजा आने लगा। मैं भी नीचे से अपनी कमर उछालने लगी। आधे घंटे तक इस तरह से चोदता रहा। इस बीच मेरा एक बार रस झड़ गया था। उसके बाद उसने मुझे उठा कर अपने ऊपर बिठा लिया। मैं उसके लंड को अपनी चूत पर सैट कर के उस पर बैठ गयी।

उसका लंड पूरा अंदर चला गया। उसके सीने पर घने बाल थे जिसे अपने हाथों से सहलाते हुए मैं अपनी कमर ऊपर नीचे कर रही थी। मेरी दोनों चूंचियाँ ऊपर नीचे उछल रही थी। सुरेश से नहीं रहा गया। और बिस्तर पर खड़ा होकर मेरे मुँह में अपना लंड डाल दिया। मैं उसके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी। इस तरह दोनों से चुदते हुए मैं वापस झड़ गयी। केशव मेरे छातियों से खेल रहा था।

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सुरेश इतना उत्तेजित थ कि उसका लंड थोड़ी ही देर में झड़ गया और ढेर सारे वीर्य से उसने मेरा मुँह भर दिया। मुझे घिन्न सी आ गयी। मैंने सारा वीर्य बिस्तर पर ही उलट दिया। वो लेटा-लेटा अब गहरी साँसें ले रहा था। मगर केशव की स्पीड में कोई कमी नहीं आयी थी। इस आसन में भी वो मुझे पँद्रह मिनट तक चोदता रहा। “प्लीज़ अब बस भी करो। मैं थक गयी हूँ। अब मुझसे ऊपर नीचे नहीं हुआ जा रहा।” मैंने उससे विनती की। मगर वो कुछ भी नहीं बोला। लेकिन अगले पाँच मिनट में उसका बदन सख्त हो गया।

उसके हाथ मेरी चूँचियों पर गड़ गये। मैं समझ गयी की अब वोह ज्यादा देर का मेहमान नहीं है। उसने मेरे निप्पलों को पकड़ कर अपनी और खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। उसने मेरे होंठ पर अपने होंठ रख दिए और ऐसा लगा मानो एक गरम धार मेरे अंदर गिर रही हो। अब हम तीनों एक दूसरे से लिपटे लेटे हुए थे। मेरा पूरा बदन पसीने से भीगा हुआ था।

ए/सी चल रहा था मगर उसके बाद भी मैं पसीने से नहा गयी थी। पहली बार में ही इतनी जोरदार चुदाई ने मेरे सारे अँग ढीले कर दिए थे। एक एक अँग मेरा दुख रहा था। मैंने किसी तरह उठा कर बिस्तर के पास रखा पानी का ग्लास आधा पिया और आधा अपने चेहरे पर डाल लिया। थोड़ी देर बाद सुरेश उठा

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और मुझे हाथों पैरों के बल बिस्तर पर झुकाया और खुद बिस्तर के नीचे खड़े होकर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया। वो जोर जोर से मुझे पीछे की और से ठोकने लगा। मेरे चेहरे को पकड़ कर केशव ने अपने ढीले पड़े लंड पर दबा दिया। मैं उसका मतलब समझ कर उसके ढीले लंड को अपनी जीभ निकाल कर चाटने लगी। मैं पूरे लंड को अपनी जीभ से चाट रही थी।

सुरेश जोर जोर से मुझे पीछे से ठोक रहा था। कुछ ही देर में केशव का लंड धीरे धीरे वापस खड़ा होने लगा। अब वो मेरे बालों से मुझे पकड़ कर अपने लंड पर मेरा मुँह ऊपर नीचे चलाने लगा। काफी देर तक मुझे पीछे से चोदने के बाद सुरेश ने अपना वीर्य उसमें छोड़ दिया। केशव ने मुझे उठा कर जमीन पर पैर चौड़े कर के खड़ा किया और बिस्तर के किनारे बैठ कर मुझे अपनी गोद में दोनों तरफ पैर करके बिठा लिया। उसका लंड वापस मेरी चूत में घुस गया।

मैं उसके घुटनों पर हाथ रख कर अपने शरीर को उसके लंड पर ऊपर नीचे चलाने लगी। कुछ देर तक इसी तरह चोदने के बाद वो वापस मेरे अंदर खलास हो गया। इस बार मैंने भी उसका साथ दिया। हम दोनों एक साथ झड़ गये। सुरेश ने खाना मँगा लिया था। हम उसी तरह नंगी हालत में डीनर करके वापस बिस्तर पर आ गये। मुझ से तो कुछ खाया ही नहीं गया।

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सारा बदन लिजलिजा हो रहा था। दोनों ने मुझे अबतक अपना बदन साफ भी नहीं करने दिया था और ना ही मुझे सैंडल उतारने की इजाज़त दी थी। खाना खाने के बाद मैं उनका सहारा लेकर उठी तो मैंने पाया कि पूरे बिस्तर पर खून के कुछ कुछ धब्बे लगे थे। मैं सुरेश के कँधे का सहारा लेकर बाथरूम में गयी। लेकिन वहाँ भी उन्होंने दरवाजा बँद नहीं करने दिया।

उन दोनों की मौजूदगी में मैं शरम से पानी पानी हो गयी। वापस बिस्तर पर आकर कुछ देर तक दोनों मेरे एक एक अँग से खेलते रहे और मेरी उसी नंगी हालत में अलग अलग पोज़ में कईं फोटो खींचे। फिर मेरी चुदाई का दूसरा दौर चालू हुआ। यह दौर काफी देर तक चलता रहा। इस बार सुरेश ने मुझे अपने ऊपर बिठाया और अपना लंड अंदर डाल दिया।

इस हालत में उसने मुझे खींच कर अपने सीने से सटा लिया। मेरे दोनों पैर घुटनों से मुड़े हुए थे और इसलिए मेरे चूत्तड़ ऊपर की और उठ गए। केशव ने मेरी चुदती हुई चूत में एक अँगुली डाल कर हमारे रस को बाहर निकाला औरे एक अँगुली से मेरी गाँड में अंदर तक इस रस को लगाने लगा। मैं उसका मतलब समझ कर उठना चाहती थी मगर दोनों ने मुझे हिलने भी नहीं दिया।

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केशव ने अपनी अँगुली निकाल कर गाँड पर अपना लंड सटा दिया। मैं छटपटा रही थी। उसने जोर से अपना लंड अंदर ढकेला। ऐसा लगा मानो कोई मेरी गाँड को डंडे से फाड़ रहा हो। मैं “आआआआआआईईईईईईईईई ऊऊऊऊऊऊउउउउम्म्म आआआआहहहहह मुझे छोड़ दो….” जैसा कह कर रोने लगी। मगर उसके लंड के आगे का मोटा हिस्सा अब अंदर जा चुका था।

मैंने दर्द से अपने होंठ काट लिए मगर वो आगे बढ़ता ही जा रहा था। पूरा अंदर डालने के बाद ही वो रुका। फिर दोनों मेरे चिल्लाने की परवाह किए बिना ही धक्के मारने लगे। ऊपर से केशव धक्का मारता तो सुरेश का लंड मेरी चूत में घुस जाता। जब केशव अपना लंड बाहर खींचता तो मैं उसके लंड के साथ थोड़ा ऊपर उठती और सुरेश का लंड बाहर की और आ जाता। इसी तरह मुझे काफी देर तक दोनों ने चोदा फिर एक साथ दोनों ने मेरे दोनों छेदों में अपने अपने वीर्य डाल दिए।

मैं भी उनके साथ ही झड़ गयी। रात भर कई दौर अलग-अलग पोज़ में हुए, मैं तो गिनती ही भूल गयी। लगभग चार बजे के करीब हम एक ही बिस्तर पर आपस में लिपट कर सो गए। सुबह सढ़े नौ बजे दरवाजे की घंटी बजने पर नींद खुली। मैंने पाया कि पूरा बदन दर्द कर रहा था। मैंने अपने शरीर का जायजा लिया। मैं बिस्तर पर आखिरी चुदाई के वक्त जैसे लेटी थी अभी तक उसी तरह ही लेटी हुई थी। सुरेश शायद सुबह उठकर जा चुका था। केशव ने उठ कर दरवाजा खोला तो तेजी से रिटा अंदर आयी।

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बिस्तर पे मुझ पर नज़र पड़ते ही चीख उठी, “निशी की क्या हालत बनायी है तुमने? तुम पूरे राक्षस हो। बेचारी के फूल से बदन को कैसी बुरी तरह कुचल डाला है।” वो बिस्तर पर बैठ कर मेरे चेहरे पर और बालों पर हाथ फेरने लगी। टेस्टी माल है” केशव ने होंठों पर जीभ फिराते हुए बेहुदगी से कहा। रिटा मुझे सहारा देकर बाथरूम में ले गयी। बाथरूम में मैं उससे लिपट कर रो पड़ी। उसने मेरे सैंडल उतार कर मुझे नहलाया। मैं नहा कर काफी ताज़ा महसूस कर रही थी। कपड़े बाहर बिस्तर पर ही पड़े थे।

ब्रा और पैंटी के तो चीथड़े हो चुके थे। सलवार का भी उन्होंने नाड़ा तोड़ दिया था। मैंने बाथरूम में अपने सैंडल पहने और उसी हालत में मैं रिटा के साथ कमरे में आयी। अब इतना सब होने के बाद पूरी नग्न हालत में केशव के सामने आने में कोई शर्म महसूस नहीं हो रही थी। वो बिस्तर के सिरहाने पर बैठ कर मेरे बदन को बड़ी ही कामुक नज़रों से देख रहा था। जैसे ही मैंने अपने कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया, उसने मेरे कपड़ों को खींच लिया।

हम दोनों की नज़र उसकी तरफ उठा गयी। “नहीं… अभी नहीं,” उसने मुस्कुराते हुए कहा,”अभी जाने से पहले एक बार और” “नहींईंईंईं” मेरे मुँह से उसकी बात सुनते ही निकल गया। “अब क्या जान लोगे इसकी? रात भर तो तुमने इसे मसला है। अब तो छोड़ दो इसे।” रिटा ने भी उसे समझाने की कोशिश की। मगर उसके मुँह में तो मेरे खून का स्वाद चढ़ चुका था। “नहीं इतनी जल्दी भी क्या है। तू भी तो देख अपनी सहेली को चुदते हुए।” केशव एक भद्दी तरह से हँसा। पता नहीं रिटा कैसे उसके चक्कर में पड़ गयी थी।

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अपने ढीले पड़े लंड की और इशारा करके रिटा से कहा, “चल इसे मुँह में लेकर खड़ा कर।” रिटा ने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा लेकिन वो बेहुदी तरह से हँसता रहा। उसने रिटा को खींच कर पास पड़ी एक कुर्सी पर बिठा दिया और अपना लंड चूसने को बोला। रिटा उसके ढीले लंड को कुछ देर तक ऐसे ही हाथ से सहलाती रही और फिर उसे मुँह में ले लिया। केशव ने रिटा की कमीज़ और ब्रा उतार दी। ज़िंदगी में पहली बार हम दोनों सहेलियाँ एक दूसरे के सामने नंगी हुई थी। रिटा का बदन भी काफी खूबसूरत था।

बड़े बड़े बूब्स और पतली कमर। किसी भी लड़के को दीवाना बनाने के लिए काफी था। केशव मेरे सामने ही उसके बूब्स को सहलाने लगा। केशव ने एक हाथ से रिटा का सिर पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पलों को मसल रहा था। चेहरे से लग रहा था कि रिटा गर्म होने लगी है। मैं बिस्तर पर बैठ कर उन दोनों की रास-लीला देख रही थी। और अपने को उसमें शामिल किए जाने का इंतज़ार कर रही थी। मैंने अपने बदन पर नज़र दौड़ायी। मेरे दोनों बूब्स पर अनेकों दाँतों के निशान थे। मेरी चूत सूजी हुई थी।

जाँघों पर भी दाँतों के निशान थे। निप्पल भी सूजे हुए थे। रिटा ने कोई पेन-किलर खिलाया था बाथरूम में जिसके कारण दर्द कुछ कम हुआ था। मैं उन दोनों का खेल देख देख कर कुछ गर्म होने लगी थी। केशव लगातार रिटा के मुँह को चोद रहा था। केशव का लंड खड़ा होने लगा। उसे देख कर लगता ही नहीं था कि उसने रात भर मेरी चूत में वीर्य डाला है। मुझे तो पैरों को सिकोड़ कर बैठने में भी तकलीफ हो रही थी और वो था कि साँड की तरह मेरी दशा और भी बुरी करने के लिए तैयार था।

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पता नहीं कहाँ से इतनी गर्मी थी उसके अंदर। उसका लंड कुछ ही देर में एक दम तन कर खड़ा हो गया। अब उसने रिटा को खड़ा करके उसके बाकी के कपड़े भी उतार दिए। अब रिटा मेरी तरह ही सिर्फ अपने हाई हील सैंडल पहने हुए पूरी तरह नंगी थी। रिटा को वापस कुर्सी पर बिठा कर केशव ने उसकी चूत में अपनी अँगुली डाल दी। अँगुली जब बाहर निकली तो वो रिटा के रस से भीगी हुई थी। केशव ने उस अँगुली को मेरे होंठों से छूआ। “ले चख कर देख… कैसी मस्त चीज है तेरी सहेली।

” मैं मुँह नहीं खोल रही थी मगर उसने जबरदस्ती मेरे मुँह में अपनी अँगुली घुसा दी। अजीब सा लगा रिटा के रस को चखना। “पूरी तरह मस्त हो गयी है तेरी सहेली” उसने मुझ से कहा और अपना लंड रिटा के मुँह से निकाल लिया। उसका काला लंड रिटा के थूक से चमक रहा था। फिर मुझे उठा कर उसने रिटा पर कुछ इस तरह झुका दिया कि मेरे दोनों हाथ रिटा के कँधों पर थे और मैं उसके कँधों का सहारा लिए झुकी हुई थी। मेरे बूब्स रिटा के चेहरे के सामने झूल रहे थे। केशव ने मेरी टाँगों को फैलाया और मेरी चूत में वापस अपना लंड डाल दिया।

लंड जैसे-जैसे भीतर जा रहा था, ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी चूत की दीवारों पर रेगमाल (सैंड-पेपर) घिस रहा हो। मैं दर्द से “आआआआहहहह्ह” कर उठी। पता नहीं कितनी देर और करेगा। अब तो मुझ से रहा नहीं जा रहा था। वो मुझे पीछे से धक्के लगाने लगा तो मेरे बूब्स रिटा के चेहरे से टकराने लगे। रिटा भी उत्तेजना में कसमसा रही थी। वो पहली बार मुझे इस हालत में देख रही थी। हम दोनों बहुत पक्की सहेलियाँ जरूर थीं मगर लेस्बियन नहीं थी।

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केशव ने मेरा एक निप्पल अपनी अँगुलियों में पकड़ कर खींचा तो मैंने दर्द से बचने के लिए अपने बदन को आगे की और झुका दिया। उसने मेरे निप्पल को रिटा के होंठों से छुवाया। “ले चूस चूस अपनी सहेली के मम्मों को।” रिटा ने अपने होंठ खोल कर मेरे निप्पल को अपने होंठों के बीच दबा लिया। केशव मेरे बूब्स को जोर जोर से कुछ इस तरह मसलने लगा कि मानो वो उन से दूध निकाल रहा हो।

मेरी चूत में भी पानी रिसने लगा। मैं”आआआआहहहहह ऊऊऊऊहहहहह ऊऊऊऊईईईईईई माँआआआआआ उउउफ्फ्फ्फ” जैसी आवाजें निकाल रही थी। कमरे में चुसाई और चुदाई की “फच फच” की आवाज गूँज रही थी। वो बीच-बीच में रिटा के बूब्स को मसल देता था। केशव ने मेरे बाल अपनी मुठ्ठी में भर लिए और अपनी तरफ खींचने लगा जिसके कारण मेरा चेहरा छत की तरफ उठा गया। कोई पँद्रह मिनट तक मुझे इसी तरह चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और हमें खींच कर बिस्तर पर ले गया।

बिस्तर पर घुटनों के बल हम दोनों को पास-पास चौपाया बना दिया। फिर वो कुछ देर रिटा को चोदता तो कुछ देर मुझे। काफी देर तक इसी तरह चुदाई चलती रही। मैं और रिटा दोनों ही झड़ चुके थे। उसके बाद भी वो हमें चोदता रहा। काफ़ी देर बाद जब उसके झड़ने का समय हुआ तो उसने हम दोनों को बिस्तर पर बिठा कर अपने- अपने मुँह खोल कर उसके वीर्य को मुँह में लेने को बाध्य कर दिया और ढेर सारा वीर्य मेरे और रिटा के मुँह में भर दिया।

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हम दोनों के मुँह खुले हुए थे और उनमें वीर्य भर हुआ था और मुँह से छलक कर हमारे बूब्स पर और बदन पर गिर रहा था। वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक रिटा मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक मैं नॉरमल चल सकने लायक ना हो गयी। फिर हम किसी तरह घर लौट आये। मैं अपने घर तो शाम को पहुँची क्योंकि होटल से सीधे रिटा के घर गयी थी। भगवान का शुक्र है किसी को पता नहीं चला।

रिटा ने अपने वादे के मुताबिक मेरे रिश्ते की बात अपने मम्मी पापा से चलायी और वो मान भी गये। साथ ही साथ उसका रिश्ता भी केशव के साथ पक्का हो गया। छः महीने में ही हम दोनों की शादी पक्की हो गयी – एक साथ। इन छः महीनों के दौरान केशव ने मुझे कई बार अलग-अलग जगह पर बुला कर चोदा। उसके पास मेरी मूवी थी जिसे एक दिन उसने हम दोनों को दिखाया। मैं तो शर्म से पानी पानी हो गयी पर रिटा ने खूब चटखारे लिए। मैं अब केशव के चँगुल में पूरी तरह फँस चुकी थी।

उसने मुझे अकेले में धमकी भी दे रखी थी की उसकी बात अगर मैंने नहीं मानी तो वोह ये फिल्म राज को दिखा देगा। खैर मैंने समझौता कर लिया। शादी से कुछ ही दिन पहले केशव के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। इसलिए उनकी शादी स्थगित हो गयी। मेरी और राज की शादी निश्चित दिन को ही होनी थी। हमारे घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। रिटा केशव को भी हमारे घर ले आयी। दोनों की सगाई हो चुकी थी इसलिए किसी को किसी बात की चिंता नहीं थी।

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हल्दी की रस्म शुरू होनी थी और मेरे घर वाले उस में व्यस्त थे। मेरे कमरे में आकर रिटा मुझे लेकर बाथरूम में घुसी। “अपने ये कपड़े खोल कर ये सूती साड़ी लपेट ले”उसने कहा तो मैं अपने कपड़े खोलने लगी। तभी दरवाजे पर नॉक हुई। कौन है पूछने पर फुसफुसाती हुई केशव की आवाज आयी। रिटा ने हल्के से दरवाजा खोला और वो झट से बाथरूम में घुस गया। “मरवाओगे आप… इस तरह भरी महफ़िल में कोई देख लेगा तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी… जम कर जूते पड़ेंगे” रिटा ने कहा।

मगर वो कहाँ इतनी जल्दी मान जाने वाला था। वैसे भी ये बाथरूम हमारे बेडरूम से अटेच्ड था। इसलिए किसी को यहाँ आने से पहले बेडरूम का दरवाजा खटखटाना पड़ता। केशव पहले से ही सारा इंतज़ाम करके आया था। उसने दरवाजा अंदर से बँद कर दिया था। आज तो अनिता बहुत ही सुंदर लग रही है,” केशव ने कहा, “आज तो इसे मैं तैयार करूँगा… तू हट।” रिटा मेरे पास से हट गयी और केशव उसकी जगह आ गया। उसने मेरे कुर्ते को ऊँचा करना चालू किया और मैंने भी हाथ ऊँचे कर दिए।

अब तक मैं इतनी बार केशव की हम-बिस्तर हो चुकी थी की अब उसके सामने कोई शर्म बाकी नहीं बची थी। सिर्फ़ किसी के आ जाने का डर सता रहा था। उसने मेरे कुर्ते को बदन से अलग कर दिया। फिर मुझे पीछे घुमा कर मेरी ब्रा के हुक ढीले कर दिए। फिर दोनों स्ट्रैप पकड़ कर कँधे से नीचे उतार दिए और मेरी ब्रा खुलकर उसके हाथों में आ गयी। उसने उसे मेरे बदन से अलग करके अपने होँठों से चूमा और फिर रिटा को पकड़ा दी। फिर उसने मेरी सलवार के नाड़े को पकड़ कर उसे ढीला कर दिया।

सलवार टाँगों से सरसराती हुई नीचे ढेर हो गयी। फिर उसने मेरी पैंटी के इलास्टिक को दो अँगुलियों से खींच कर चौड़ा किया और अपने हाथ को धीरे-धीरे नीचे ले गया। छोटी सी पैंटी बदन से केंचुली की तरह उतर गयी। मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी हो गयी थी। उसने खींच कर मुझे शॉवर के नीचे कर दिया। फिर मेरे बदन को मसल मसल कर नहलाने लगा। रिटा ने रोकना चाहा कि अभी नहीं।

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लेकिन उसने कहा”तुम दोबारा नहला देना।” मुझे नहलाने के बाद उसने मेरे सारे बदन को पोंछ-पोंछ कर सुखाया। “लो अनिता को ये साड़ी पहनानी है। देर हो रही है उसे हल्दी लगवानी है।” रिटा ने एक साड़ी केशव की तरफ बढ़यी। “पहले मैं इसे अपने रस से नहला दूँ… फिर इसे कपड़े पहनाना।” कह कर केशव ने मुझे बाथरूम में ही झुकने को मजबूर कर दिया। पहले केशव की इन बदतमीजियों से मुझे सख्त नफ़रत थी मगर आजकल जब भी वो मुझे विवश करता था तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता था।

मैं चुपचाप उसके कहे अनुसार काम करने लगती थी… मानो उसने मुझे किसी मोहपाश में बाँध रखा हो। उसने पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और मेरे बूब्स को मसलता हुआ धक्के मारने लगा। “जल्दी करो… लोगबाग खोजते हुए यहाँ आते होंगे” रिटा ने केशव से कहा। वो मुझे धक्के खाते हुए देख रही थी। “मेरी सहेली को क्या कोई रंडी समझ रखा है तूने… जब मूड आये टाँगें फैला कर ठोकने लगता है।” केशव काफी देर तक मुझे इस तरह चोदता रहा और फिर मेरी एक टाँग को ऊपर कर दिया।

उस वक्त मैं दीवर का सहारा लिए हुए खड़ी थी और मेरा एक पैर जमीन पर था और दूसरे को केशव ने उठा कर अपने हाथों में थाम रखा था। वोह मेरी फैली हुई चूत में अपना लंड डाल कर फिर चोदने लगा। मगर इस स्थिति में वो ज्यादा देर नहीं चोद सका और मेरी टाँग को छोड़ दिया। फिर उसने मुझे रिटा का सहारा लेने को मजबूर कर दिया और फिर शुरू हो गया। मैंने उसकी इस हरकत से तड़पते हुए अपने चूत-रस की वर्षा कर दी।

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वो भी अब छूटने ही वाला था। उसने अचानक अपना लंड बाहर निकाल लिया और मुझ घुटनों के बल झुका कर मेरे बदन को अपने वीर्य से भिगो दिया। मेरे चेहरे पर, बूब्स पर, पेट, टाँगों और यहाँ तक कि बालों में भी वीर्य के कतरे लगे हुए थे। कुछ वीर्य उसने मेरी ब्रा के कप्स में डाल दिया। केशव ने फिर एक बार अपना लंड मसल कर मेरे बदन पर अपने वीर्य का लेप चढ़ा दिया। पूरा बदन चिपचिपा हो रहा था। फिर उसने मुझे उठा कर अपने वीर्य से भीगी हुए ब्रा मुझे पहना दी।

उसने फिर मुझे बाकी सारे कपड़े पहना दिए और मैं बाथरूम से बाहर आ गयी। फिर रिटा ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और हम बाहर निकल गये। केशव दरवाजे के पीछे छिप गया था और हमारे जाने के कुछ देर बाद जब वहाँ कोई नहीं था तो चुपचाप निकल कर भाग गया। उसकी हरकतों से मेरा दिल तो काफी देर तक जोर-जोर से धड़कता रहा। रिटा के माथे पर भी पसीना चू रहा था।

हल्दी की रस्म अच्छी तरह पूरी हो गयी और फिर कोई घटना नहीं हुई। मैं शाम को छः बजे ब्यूटी-पॉर्लर से मेक-अप करवा कर लौटी थी। ब्यूटीशियन ने बहुत मेहनत से साँवारा था। मैं वैसे भी बहुत खूबसूरत थी इसलिए थोड़ी मेहनत से ही एक दम अप्सराओं की तरह लगने लगी। सुनहरी रंग की लहँगा-चोली और सुनहरी रंग के ही हाई हील सैंडलों में एकदम राजकुमारी सी लग रही थी। रिटा हर वक्त साथ ही थी। काफी देर से केशव कहीं नहीं दिखा था। शादी के लिए एक मैरिज हाल बुक किया गया था।

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उसके फर्स्ट फ्लोर पर मेरे ठहरने का स्थान था। मैं अपनी सहेलियों से घिरी हुई बैठी थी। रात को लगभग नौ बजे बैंड वालों का शोर सुनकर पता चला कि बारात आ रही है। मेरी सहेलियाँ दौड़ कर खिड़की से झाँकने लगी। वहाँ अँधेरा होने से किसी की नजर ऊपर खिड़की पर नहीं पड़ती थी। अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एक-एक कर के खिसक गयीं। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दुल्हा और बारात देखने के लिए भाग गयी। मैं कुछ देर के लिए बिल्कुल अकेली पड़ गयी।

एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और केशव अंदर आया। मैं इस वक्त उसे देख कर एक दम घबरा गयी। उसने आकर बाहर के दरवाजे को बँद कर दिया। “केशव अब कोई गलत हर्कत मत करना… किसी को पता चल गया तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जायेगी… सब थूकेंगे मुझ पर और मैं किसी को मुँह दिखाने के भी काबिल नहीं रह जाऊँगी।” मैंने अपने हाथ जोड़ दिए और वो चुप रहा। “देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना… जहाँ चाहे बुला लेना मगर आज नहीं। आज मुझे छोड़ दो।”

“अरे मैं कोई रेपिस्ट थोड़ी हूँ जो तेरा रेप करने चला हूँ। आज इतनी सुंदर लग रही हो कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दे।” वो आकर मुझसे लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। डर था सारा मेक-अप खराब नहीं हो जाये। मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे बूब्स पर हल्के से हाथ फिराये। शायद उसे भी मेक- अप बिगड़ जाने का डर था। “आज तुझे इस वक्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ” कहकर उसने मेरे लहँगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहँगे को कमर तक उठा दिया।

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फिर उसने मेरी पिंक रंग की पारदर्शी पैंटी को खींच कर निकाल दिया और उसे अपनी पैंट की जेब में भर लिया। फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में ठेल दिया। मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे चोद रहा था। सामने बारात आ रही थी और उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी।

और मैं – दुल्हन – किसी और से चुद रही थी। अँधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र वहाँ नहीं पड़ रही थी वर्ना गज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम किसी और काम में। कुछ देर में उसने ढेर सार वीर्य मेरी चूत में झाड़ दिया। मेरा भी उसके साथ ही चूत-रस निकल गया। बारात अंदर आ चुकी थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया।

केशव झपट कर बगल वाले कमरे की और लपका। मैंने उसके हाथ को थाम लिया। “मेरी पैंटी तो देते जाओ।” मैंने कहा। “नहीं ये मेरे पास रहेगी।”कह कर वो भाग गया। दोबरा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। दो-तीन सहेलियाँ अंदर आयीं। “क्या हुआ?” उन्होंने पूछा “कुछ नहीं… आँख लग गयी थी… थकान के कारण।” मैंने बात को टाल दिया मगर रिटा समझ गयी कि दाल में काला है।

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मैंने उसे अपने को घूरते पाया और मैंने अपनी आँखें झुका लीं। “चलो चलो। बारात आ गयी है। आँटी अंकल जय माला के लिए बुला रहे हैं” सब ने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। केशव का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था। पैंटी नहीं होने के कारण दोनों जाँघें चिपचिपी हो रही थी। मैंने उसी हालत में शादी की।

पूरी शादी में जब भी केशव नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी पिंक पैंटी झाँकती हुई मिली। एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्तिथि थी। खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक।

दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिए वहाँ पहुँचे। रास्ते में राज की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो राज का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिए तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। राज ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा।

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मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। दिनेश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिए अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था।

केशव ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के exposure से दोनों को excite करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे।

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कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सरे बदन में करंट जैसा बहने लगता। अगले दिन भी राज की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसके बार बार कहने पर मैं दिनेश और दीपक भैया के साथ घूमने निकली। मैंने भरपूर मेक-अप किया। दोनों के पास कार थी मगर उसे नहीं लेकर दोनों ने एक wagon-ढ बुक की थी। इसका कारण तो मुझे बाद में पता चला कि दोनों असल में मेरे नज़दीक रहना चाहते थे। 

कोई भी ड्राईव नहीं करना चाहता था। पीछे की सीट पर मेरी दोनों तरफ में दोनों भाइ सट कर बैठे थे। अब दोनों की शायद ड्राईवर से पहले से ही कुछ बात हो चुकी होगी क्योंकि वो काफी तेज़ चला रहा था। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर हर मोड़ पर मैं कभी दिनेश के ऊपर गिरती तो कभी दीपक के ऊपर। दोनों मुझे संभालने के बहाने मेरे बदन को इधर उधर से छू रहे थे। मैं भी उनके साथ खिलखिला रही थी। इससे उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी।

उन्होंने अपनी कुहनियों से मेरी एक एक चूंची को भी दबाना शुरू किया। हम इसी तरह मस्ती करते हुए कईं जगह घूमे और घूमते घूमते दोपहर हो गयी। अचानक बात करते-करते दिनेश ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख कर दबाया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथ को वहाँ से हटा दिया। मगर कुछ देर बाद जब वापस उसने अपना हाथ मेरी जाँघों पर रखा तो मैंने कुछ नहीं बोला। उसे देख कर दीपक ने भी अपना हाथ मेरी दूसरी जाँघ पर रख दिया और दोनों मेरी जाँघों पर हाथ फिराने लगे। “क्या कर रहे हो? ड्राइवर देख रहा होगा।

मैं तुम्हारे भाई की बीवी हूँ।” मैंने उन्हें रोकते हुए कहा। “अपना ही आदमी है… कुछ नहीं सोचेगा और रही बात राज की तो वोह तो रोज ही तुम्हारे पास रहेगा… हम को तो कभी कभार मौके का फायदा उठा लेने दो।” कहकर दीपक ने एक कम्बल निकाल कर हम तीनों के ऊपर ओढ़ा दिया और अब तो दोनों को खुली छूट मिल गयी। हम तीनों ने अपने अपने बदन को कम्बल में छिपा लिय। दोनों मेरे बूब्स को अपने हाथों से मसलने लगे। मैं कसमसा रही थी। साड़ी छातियों पर से हट चुकी थी।

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मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने के लिए दोनों के हाथ आपस में लड़ने लगे और मेरे ब्लाऊज़ के सारे बटन खोल दिए। इसी काम के दौरान दो बटन तो टूट ही गए। मुझे आगे की और झुका कर उन्होंने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरी चूंचियाँ फ़्री हो गयी। दोनों उन पर टूट पड़े और जोर-जोर से मसलने लगे। मैं कभी उनको देखती और कभी सामने ड्राइवर को देखती घबड़ा रही थी मगर ड्राइवर चलाने में मगन था। दीपक के हाथ मेरी साड़ी को ऊँचा करने में लगे थे। फिर दिनेश ने अपना हाथ मेरे पेटीकोट के अंदर डाल कर मेरी पैंटी पर फिराया।

“नहीं प्लीज़… यहाँ नहीं।” मैं फुसफुसा कर बोली। “कुछ नहीं होगा”दिनेश ने कहा। “आआआआआप दोनों क्या कर रहे हो… मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ,” मैंने कहा, “मैं बर्बाद हो जऊँगी… प्लीज़ छोड़ दो मुझे।” “ठीक है।” दीपक ने कहा और फिर ड्राइवर से बोला “गाड़ी सन-व्यू होटल की तरफ ले चलो” ड्राइवर ने कुछ देर में होटल के पोर्च में लेजा कर कार रोकी। मैं तब तक अपने कपड़े वापस पहन चुकी थी। उनकी बाँहों में समाये मैं लाऊँज में पहुँची।

दीपक ने अलग हो कर काऊँटर पर जा कर कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर बोला कि चलो रूम नम्बर १८० में। दोनों मुझे लेकर फर्स्ट फ्लोर पर बने १८० नम्बर कमरे में आ गए। दोनों अंदर घुसते ही मुझ पर टूट पड़े। कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह नंगी थी। दोनों इतने उतावले थे कि मुझे अपने सैंडल भी नहीं उतारने दिए और मुझे फटाफट उठाकर बिस्तर पर लिता दिया और मेरी टाँगें फैला दीं। दोनों अभी तक पूरे कपड़ों में थे। दिनेश ने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाए और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा।

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दीपक मेरे गालों पर अपने होंठ फिराने लगा। एक जाड़ी होंठ टाँगों की तरफ से मेरी चूत की तरफ बड़ रहे थे तो दूसरी जोड़ी होंठ मेरे माथे से फिसलते हुए गालों पर, कानों के पीछे से दोनों बाँहों को चूमते हुए मेरे होंठों पर आकर रुके। पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी। मुझे लग रहा था कि दोनों देर क्यों कर रहे हैं… मुझे पकड़ कर अब तो बस मसल दें। दीपक ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और अपनी जीभ को सारे मुँह में फिराने लगा। दूसरे की जीभ मेरे नीचे वाले मुँह में घूम रही थी।

मैंने उत्तेजना में दिनेश का सिर अपने हाथों से अपनी चूत पर दबा दिया और उसकी जीभ को अपनी चूत के और अंदर लेने के लिए मैं अपनी कमर उचकाने लगी। मेरी टाँगें उठकर उसकी पीठ पर आपस में जुड़ कर उसके सिर को दबा रही थी। उधर दीपक के होंठ मेरे होंठों को छोड़ कर धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए पहले मेरे गले पर और फिर धीरे धीरे मेरी चूंचियों के ऊपर फिरने लगे। मेरी पूरी चूंची को होंठों से नापने के बाद मेरे निप्पलों पर धीरे धीरे फिरने लगे। मैं उत्तेजना में पागल होने लगी।

मुँह से “आआआआआहहहहह नहींईईईई ऊऊऊऊहहहहह” जैसी आवाजें निकलने लगी। बिना किसी का लंड अपने अंदर लिए और दोनों ने कपड़े उतारे बिना मुझे जोर से स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। मैं गर्मी से हाँफ रही थी। मेरी बड़ी बड़ी चूंचियाँ हर साँस के साथ उठा गिर रही थीं। दोनों मुझे इसी हाल में छोड़ कर अपने अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगे हो गए। मैं वहाँ लेटी लेटी उनके नंगे बदन को निहार रही थी। दोनों के लंड काफी लम्बे और मोटे थे, केशव की तरह।

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दीपक बिस्तर पर चढ़ कर लेट गया और मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैंने अपनी टाँगें खोल कर उसके लंड को अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में ही दीपक का लंड अपनी चूत के अंदर ले लिया। थोड़ी सी तकलीफ हुई मगर चूत बुरी तरह गीली होने के कारण एक बार में ही लंड अंदर तक चला गया। अब मैं उसके लंड पर धीरे धीरे उठने बैठने लगी। अब दिनेश बिस्तर पर चढ़ा और उस पर खड़ा होकर अपने लंड को मेरे होंठों से छुवाया। फिर मेरे मुँह को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा।

मैंने होंठ खोल कर उसके लंड को ऊपर से नीचे तक जीभ फिरायी। उसकी गोटियों को मुँह में लेकर कुछ देर तक चूसीं और फिर उसके लंड के ऊपर के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगी। पहले अपने होंठों को थोड़ा सा खोल कर सिर्फ उसके लंड के ऊपर के सुपाड़े को तरह तरह से चूसा और फिर अपने मुँह को पूरी तरह खोल कर जितना हो सकता था उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।

साथ साथ उसके लंड पर अपनी जीभ भी फिरा रही थी। दीपक मेरी चूंचियों को अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। मैं उसके लंड पर तेजी से उठा बैठ रही थी। पूरे लंड को एक दम बाहर तक निकालती और फिर तेजी से उसे पूरा अंदर तक ले लेती। उसने मेरे निप्पलों को मसल-मसल कर बड़े बड़े कर दिए थे। वो मुझे अपनी कमर उठा उठा कर चोद रहा था। कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से लिसड़ा हुआ चमक रहा था।

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मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया।

फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ साथ मेरी चूत में डाल दीं। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गील किय। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका। उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं “आआआआहहहह” कर उठी।

अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिए रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। “हहहहम्म्म्म्म्*फफफफफ उउउउहहहहह फफफफ” जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं।

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तीनों पसीने से तरबतर हो गए। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रहा मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे।