गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

Gand Ki Fatfati Part 7 – chudai ki lambi kahani

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

अब पिक्चर तो ख़तम हो गयी थी….यह ऋषभ भैया तो ऐसी हालात में आया था की चोदना तो दूर खड़े ही नही हो पा रहा था….दारू पी के आया था शायद.

चलो….अब घर कैसे जाऊं……कोमल भाभी की छत हमारे घर की छत से एक मंज़िल निचे थी…..कूद कर यहाँ आ तो सकते थे मगर चढ़ के जाना जरा टेडी खीर था….

मैं अभी भी रोशनदान से अंदर झांक रहा था. पिक्चर ख़त्म थी….

मैं पलटा और

“क….क……कौन है…….भ….भ….भोसड़ी के…….”, वो साया हकलाया

ओ तेरी…मेरी तो गांड फट के गले में आ गयी. वो मादर चोद जो अभी कोमल भाभी की ले रहा था, छुपने के लिए छत पर आ गया था.

और ये भोसड़ी का भी हकला था…….

भेनचोद.

मैंने घबरा कर कहा, ” त….त …..त…..तू…..क……क…..क….कौन है…….”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

वो अजनबी बोला, ” भ….भ…..भ……भोसड़ी के……म……म……मज़ाक उडाता है……म.म.म.मेरी नक़ल….करता है…..”

अब मैं क्या बोलू…….

फटफटी चल पड़ी थी.

“म..म…म…..मैं..म…म.. मज़ाक नहीं….क…क….कर रहा….”

“त…त….तो क्या…..क……क….कर रहा है…..भ…भ….भोसड़ी के …..च….च….चोर…”, अजनबी हकलाया.

साला चूत चोर ….मुझे चोर बोल रहा था…गुस्सा आ गया.

मैंने कहा, ” च….च…..चोर तो….तुम हो…..पड़ोस का घ….घ….घर मेरा हैं…….आ….आ…..अभी म…म….म…मचाऊ शोर…”

अब तो वो घबराया…” न….न….न…..नहीं……भाई……प…..प….प्लीज़……”

अब अपुन को शांति मिली…..

तभी उसकी नज़र मेरे पाजामे से बाहर लटके बाबूराव पे पड़ी……और उसने रोशनदान पे लगे अखबार को फटा देखा….

साला शातिर था….तुरंत समझ गया.

“भ….भ…..भ…..भोसड़ी के…..ल….ल…..लोगों के….घ…घ….घर में टांक झांक करता है…..”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने तुरंत बाबूराव को अंदर डाला. मेरी गांड फिर फटफटी….

:न…न….नहीं……म…..म….मैं…..नहीं…”

अब वो कमीनेपन से मुस्कुराया….” स….स….साले…..कोमल .को देख कर मुठ मार रहा था…..च….च….चिरकुट”

चिरकुट बोला अपुन को….

मैंने धमकाया, ” ..म…म….म….मैं…..चिल्लाऊँ क्या….च…च…चोर….”

वो घिघियाया ” न….न…..नहीं भाई…..म…..म…..मुझे ऋषभ मार ही डालेगा…..मैं उसका चाचा हूँ….”

“तो….ब….ब…..बैठो चुपचाप……जब सब सो जायेंगे तो च….च….. चले जाना……”

साला बहु चोद

अब मैं घर कैसे जाऊं….

तभी घर के आगे से बाउजी की आवाज़ आयी….”लल्ला……ओ……लल्ल्ला…..कहाँ है….”

बाबूजी को भी एक बीमारी है

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एक बात गला फाड़ना शुरू करते है तो बंद ही नहीं होते

“अरे…….ओ………लल्ला………”

“लल्ला…….रे………”

इसकी माँ की चूत उधर कुआँ इधर खाई.

मैंने पलट के चाचा को देखा तो उसकी तो ऐसी गांड फटी हुई थी की कोई हप्प बोल देता तो वो मर जाता.

मैंने दिमाग लगाया…..मेरे घर की छत करीब ७-८ फुट ऊपर थी….मैंने चाचा को बोला..

“आप मुझे धक्का दो….मैं मेरे घर की छत पर पहुँच जाऊंगा”

चाचा सयाना था…उसे कुटिलता से मुस्कुराते हुए कहा, ” और मैं भइये ?”

मैंने तुरंत कहा, ” ऊपर रस्सी पड़ी होगी, मैं आपको खिंच लूंगा…”

चाचा फटाफट तैयार हो गया. मैंने दिवार पर हाथ टिकाया चाचा ने मेरी पीठ पर हाथ से सहारा दिया..

मैंने दिवार के ऊपर अपनी उंगलिया फंसे और ज़ोर लगाया …..पीछे से चाचे ने ज़ोर लगाया और मैं ऊपर उठा.

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चाचा ने मेरे पैरों को सहारा दिया और मैं अपने घर की छत पर पहुँच गया. मैंने निचे झाँका….चाचा बेचारा बड़ी उम्मीदों से मेरी तरफ देख रहा था….

मैंने सोचा माँ चुदाने दो चाचा को….

फिर मैंने कहा नहीं यार…..बेचारे की माँ ही चुद जाएगी …इधर उधर देखा तो रस्सी वस्सी तो नहीं थी…
एक चादर दिखी…अपन लोग ने पिक्चर में देखा ही था की कैसे हेरोइन चादर की रस्सी बना के ५-6 मंज़िल निचे उत्तर जाती है…मैंने चादर को थोड़ा सा उमेठा और निचे लटका दी…

चाचा ने तुरंत उसे पकड़ा और लटक गया.

भेनचोद

चादर थी

पुरानी थी

फट गयी ….

और चाचा धड़ाम से कोमल भाभी की छत पर जा गिरा…..कुछ तो गिरने से और कुछ गांड फटने से उसकी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी और वो तो झड़े लंड जैसा ढीला हो गया.

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मैं धीरे से फुसफुसाया …”चाचा उठो……कोई आ गया तो….”

चाचा की किसमत गधे से लंड से लिखी थी……सो उसकी चुदना तो तय थी……कोमल भाभी की छत का दरवाजा धड़ाक से खुला और नशे में लहराता ऋषभ भैया छत पे आ गया और उसके पीछे कोमल भाभी ..
कोमल भाभी के चेहरे पे तो हवाइया उड़ रही थी.

ओ तेरी…

मैं तुरंत मुंडेर के निचे छुप गया ….ऋषभ भैया ने इधर उधर देखा और फिर निचे देखा…

चारो खाने चित्त पड़े चाचा को देख के वो बोला …” अरे…. छगन चाचा….आप…….हिक्क…….आप……यहाँ क्या कर रहे हो…..हिक्क़क़….”

ये लो………इस चूतिये को तो इतनी चढ़ी है की ये क्या लंड उखाड़ेगा…..

चाचा तुरंत उठ बैठा….मैंने सोचा आज तो चाचा और कोमल भाभी की मरी…..

चाचा कपडे झड़ते हुए उठा और बोला, ” अरे ऋषभ, तू आ गया क्या……?”

ऋषभ भैया, नशे में आँखें सिकोड़ कर इधर उधर देख रहा था…..उसको मस्त वाला माल तेज़ था.

चाचा बोला ….” अरे यार ये कोमल बहु ने फ़ोन लगा के बुलाया था मुझे…..”

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कोमल भाभी की ऑंखें डर से फट गयी. साले चाचे ने सब बक दिया.

चाचा बोला, ” ये कोमल बहु ने फ़ोन पर बोला की शायद छत वाले कमरे में बन्दर घुस आया है तो मैं देखने आया था…..क्यों बहु तुमने बिटवा को नही बताया की हम छत पर बन्दर ढूंढ रहे थे….?”

कोमल भाभी भी पक्की खुर्राट औरत निकली, ” अरे कब बोलती चाचा जी……यह तो सीधे ही अंदर चले गए….घर में आने के बाद मुझसे ढंग से बात तक नहीं की……और फिर देखिये न….पी कर आये है…..”

साला…….औरत की कितनी परते होती है ये ब्रह्मा जी को भी नहीं पता होगा….कितने सफाई से झूट बोल दिया…..अभी ५ मिनट पहले अपनी मुनिया में चाचा का मूसल पेलवा रही थी और अभी माथे पर अंचल लेकर घूँघट निकले खड़ी थी.

मेरे देखते ही देखते तीनो निचे उत्तर गए……ऋषभ भैया लड़खड़ाते हुए और पीछे पीछे भाभी और चाचा.

चाचा ने मुड़ कर पीछे देखा और मुस्कुराते हुए मुझे हाथ हिला दिया.

दिन कुछ ऐसे चल रहे थे कि मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि कब सुबह होती है और कब रात

इधर देखो तो मेरे बाबूजी ने मेरी गांड में डंडा डाल रखा था वह बार-बार मुझसे बोलते थे कि दुकान पर बैठो ये तुम्हारी पढ़ाई लिखाई में कुछ नहीं बचा है, अरे हमने पढ़-लिखकर कौन सा तीर मार लिया जो नवाब साहब पढ़ाई लिखाई कर के तीर मारेंगे, एक छोटा सा हिसाब तो तुमसे मिलता नहीं, घर का कोई काम होता नहीं

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मैं इतना परेशान हो गया था कि क्या बताऊं

भोसड़ी का दिन भर चाची मेरे सामने गांड मटकाते घूमती रहती और मुझे कुछ करने का मौका नहीं मिलता बार बार बाथरूम में जाकर मुट्ठ मार के बिना को शांत करना पड़ रहा था

कोमल भाभी की कहानी भी कुछ समझ नहीं आ रही थी क्योंकि वह भोसड़ी का ऋषभ भैया आज कल दिन भर घर पर ही रहता था लगता था साले मादरचोद को उसके बॉस ने नौकरी से निकाल दिया है

चाची को दो तीन बार पकड़ने की कोशिश की तो चाची ने हाथ झटक दिया बोली मुझे पंडित जी ने अभी मना किया है कुछ भी गलत करने से

ये भोसड़ी के पंडित क्या मालूम क्या मां चुदाते हैं

अरे बच्चा पैदा करना है तो चुदाई करनी पड़ेगी भोसड़ी के बच्चा अपने आप से पैदा हो जाएगा

मैंने भी थक हारकर वापस इंटरनेट की शरण ली

पिया से बात करने के अलावा मुलाकात का सीन ही नहीं बन पाता था क्योंकि वह उसका जल्लाद भाई भोसड़ी का दिनभर उसके साथ में घूमने लगा था

पिया के घर पर गया तो मादरचोद ने मना कर दिया कि अभी उसे पढ़ना नहीं है उसकी ट्यूशन लगा दी है

और पिया की माँ पम्मी आंटी अमेरिका अपनी माँ के पास गयी हुयी थी

मुझे ऐसा लगा कि मेरे सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं

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अगर मैंने चूत का स्वाद नहीं चखा होता तो मैं मुट्ठ मार के खुश था

मगर अब चूत नहीं मिल रही थी तो मैं बावला हो गया

कैसे भी करके मुझे चूत चाहिए थी, कहने को तो मैं चारों तरफ से घिरा हुआ था मेरी चाची और शायद पिया भी

मगर कहीं मेरा गेम सेट नहीं हो पा रहा था और उसके ऊपर से रोज सुबह शाम बाऊजी को ताने मारने के अलावा और कोई काम नहीं था आजकल मेरा मन किसी भी चीज़ में नहीं लगता था किसी भी चीज़ में नहीं

संडे के दिन सुबह 9:30 बजे तक मैं बिस्तर पर ही पड़ा रहा अचानक मेरे कमरे का दरवाजा खुला और बाउजी चिल्लाते हुए घुसे कुंभकरण की औलाद 9:30 बज चुकी है अभी तक पढ़ा हुआ है

बताओ भेनचोद कुंभकरण की औलाद मैं तो कुंभकरण कौन ?

रात को 3:00 बजे तक इंटरनेट पे मसाला देखा और दो बार मुठ मारी
वह तो अच्छा हुआ कि रात को मुठ मारने के बाद में मैंने पजामा पहन लिया था नहीं तो मेरे बाप के सामने नंगा पूरा होता

पिताजी जाने क्या-क्या चिल्लाते रहे मुझे तो कुछ समझ में आया नहीं फिर उन्होंने कहा नहा धो कर

आओ तुमसे काम है तुरंत तैयार हुआ और बाहर जाकर बैठक वाले कमरे में पिताजी के पास गया मैंने कहा “जी बाबू जी”

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वो बोले, “भाई सामान पैक कर लो तुम्हें बिजनौर जाना है”

” बिजनौर ? वहां क्या है ?”

“जितना कहा है उतना करो ज्यादा सवाल जवाब मत करो”

फिर वो बोले ” अरे वो लल्ली काकी है वहां…..छोटे काका वाली……पिछले साल वो एक्सीडेंट में नहीं मर गए थे…..छोटे काका……वहीँ……काका तो चले गए…..काकी की आंखे चली गयी……जो छोकरी वहां उनका ध्यान रखती थी वो किसी हरामी के साथ भाग गयी…..अब वहां उनका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है…..तो उन्हें यहाँ ले आ…..”

“जी…..अच्छा……पर….?”

“पर वर क्या ?…..सुबह जाना है और शाम को आना है……बस पकड़ लेना….४-५ घंटे का सफर है”

मैंने कहा लो अब संडे की भी माँ चुदी

भेनचोद किस्मत ही गांडू थी.

बहनचोद इसको कहते हैं किस्मत गधे के लंड से लिखी होना

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

पहले से ही दिमाग की मां बहन हो रही थी उसके ऊपर से हिटलर का ऑर्डर गांव जाओ

अब बस में चार-पांच घंटे का सफर गांड फोड़ने का

फिर क्या मालूम कौन अंधी बुढ़िया लल्ली काकी है, उसको लेकर आओ फिर चार-पांच घंटे बस में गांड टुटवाओ

पर मरता क्या नहीं करता

बाबूजी का आदेश था जाना तो था मन मसोसकर एक छोटा बैग लिया उसमें नैपकिन, मैगजीन रखी और चलने लगा

बाहर निकल रहा था बल्लू चाचा मिल गया “और भाई लल्ला कहां निकल लिया सुबह-सुबह”

मैंने कहाँ, “चाचा बिजनौर जा रहा हूं लल्ली काकी को लेने”

बल्लू चाचा बोला,” हैं क्यों क्या हो गया”

“पता नहीं आप बाबू जी से पूछो”

अब लंड बल्लुआ की इतनी औकात नहीं की पिताजी से पूछ सके…..

मैं घर से निकला उसके पहले मुझे पता था कि आज का दिन गांडू है

संडे का दिन था बस में कुत्तों की तरह भीड़ टूट रही थी

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भोसड़ी का खड़ा होना तो दूर की बात है बहन चोद घुसने में ही पसीना आ जाए जैसे तैसे बस में घुसा कंडक्टर ने तुरंत बस के बीच में कर दिया हालत यह थी कि सांस लेने के लिए भी हवा नहीं आ रही थी और क्या पता कोई मादरचोद पादे ही जा रहा था

जिन भाइयों ने बस का सफर किया है वही जानते हैं की क्या हालत होती है 2 घंटे तक ऐसा खड़ा रहा कि यह भी पता नहीं चला कि बाहर क्या है दिन या रात

फिर धीरे-धीरे बिछड़ने लगी बस गिरफ्तार पकड़ चुकी थी आगे वाली सीट पर एक बुड्ढा और उसके पास में एक लड़की बैठी थी

खुले लम्बे बाल , जीन्स, टीशर्ट

मेरे ठीक बगल की सीट खाली हुई मगर मैं सोच रहा था की ये बुद्धा उतर जाये तो उस लड़की के पास मैं…..

थक कर मैं एक खाली सीट पर बैठ गया तभी वो बूढ़ा उठा….तुरंत मैं भी उठा की कोई भोसड़ी का मेरे पहले उस पटाखे के पास न बैठ जाये

तभी सामने वाली सीट पर बैठा काला मोटा अंकल फुर्ती से उठ कर उस लड़की की पास बैठ गया

मैंने अंदर ही अंदर 1000 गालियां दी और मेरी सीट पर बैठने लगा….

भेनचोद कोई लौड़ा मेरी सीट पर बैठा था….

मैं टर्राया, ” भ भ भ भ….भाई….साहब…..ये सीट म.म.म.म ….मेरी है……”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

वो भोला मुंह बनाकर बोला, ” अच्छा आपकी है…क्या…..नाम कहाँ छापा है आपका……” और हंसने लगा….

साला मादरचोद.

हारकर मैं खड़ा ही रहा….मेरे आगे एक नाटा और थोड़ा थुलथुला लड़का खड़ा था…..वो भोसड़ी का हर झटके में मुझसे टकरा रहा था….

एक मिनट…..

मुझे ऐसा लगा की वो अपनी गांड मेरे बाबूराव पर घिस रहा है……..इसकी माँ की आँख…

तभी एक बड़ा गड्डा आया और बस ज़ोर से हिली….उसने अच्छी तरह से उस का पिछवाड़ा मेरे बाबूराव पर रगड़ दिया…

ओ भेनचोद……ये तो साला गांडू है.

उसने धीरे से गर्दन घुमाई और मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, ” आप…..कहाँ जा रहे है…..बिजनौर…?”

बॉस अपनी तो फटफटी चल पड़ी……कैसा गांडू दिन है…..और कुछ बचा था…तो गंडिये से पाला पढ गया.

मैं तुरंत बस के सबसे पीछे की चौड़ी सीट पर जा बैठा और उस गांडू की तरफ देखा भी नहीं…..

मैंने कहा था ना कि आज का दिन ही गांडू है

बिजनौर में उतरा तब तक दिन की 3:00 बज चुकी थी बाबू जी ने बताया था कि वहां से बस पकड़ कर अमीरपुर जाना था मैं अमीरपुर पहुंचा तब तक दिन ढलने लगा था मैंने सोचा कि कितनी भी जल्दी करो रात को 12:01 बजे के पहले घर नहीं पहुंच पाउंगा जब बसने अमीरपुर उतारा

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तो पूरा गांव सुनसान था मैं पूछते पूछते लल्ली काकी के घर तक पहुंचा पूरा घर अंधेरे में डूबा हुआ था मैंने किवाड़ की सांकल जोर से बजाई

अंदर से आवाज आई ” कौन ”

“काकी मैं शील…..”

काकी ने दरवाजा खोलने के पहले फिर पूछा, “कौन करमजला शील”

मैंने कहा, ‘अरे काकी मैं लल्ला, इटावा से आया हूं”

काकी बोली, “अरे राम तो शील शील क्या कर रहा है सीधे नाम क्यों नहीं बताया”

फिर काकी ने दरवाजा खोला

मैंने सोचा था की काकी ६०-७० साल की बुढ़िया होगी पर यहाँ तो मेरे गोटे टाइट हो गए

काकी कम से कम 6 फुट की, 40 – 45 साल की भरी-पूरी औरत…ना गोरी ना काली….थोड़ा देसी ब्राउन रंग

मैं एक दम हक्का बक्का रह गया.

काकी सफेद साड़ी में

जिस साड़ी को उन्होंने पतला कर के दोनों मम्मो के बीच में से लिया हुआ था काकी के बड़े-बड़े खरबूजे ब्लाउज में से फाटे जा रहे थे

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मानो बाहर आना चाह रहे थे

सफेद साड़ी में काकी का भरा हुआ बदन जैसे समां ही नहीं पा रहा था

मैंने काकी को ऊपर ने निचे , निचे से ऊपर कई बार देख लिया और भाई साहब मेरा तो मुंह सुख गया कानो में सीटी बजने लगी.

भेनचोद लल्ली काकी तो गददर माल निकली

मैंने कब कहा कि आज का दिन गांडू है -376

लल्ली काकी ने मुझसे कहा, “आ जा बेटा”

उन्होंने फिर कहा, “अरे बेटा लल्ला अंदर आ जा बेटा”

तब जाकर कहीं मुझे होश आया और मेरी नजरे उनके बदन से हटकर उनके चेहरे पर टिकी

लल्ली काकी के चेहरे पर सबसे पहले जो चीज दिखती थी वह थी उनकी बड़ी बड़ी आंखें और घनी पलके श्रीदेवी के जैसी

उनका मुंह गोल था और थोड़ी मोटी नाक हल्की सी दबी हुई

अगर लल्ली काकी का बदन खूबसूरत था तो उनका चेहरा किसी अप्सरा के जैसा था मैं हुमक हुमक कर आंखों से उनका हुस्न पी रहा था और फिर भी मेरा मन नहीं भर रहा था

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी थोड़ा जोर से बोली, ” अरे लल्ला बेटा अंदर आ जा”

तो मैंने एकदम से कहा, ” हैं ….अरे…. हां. हां.. हां”

और मैं घर के अंदर दाखिल हुआ

घर जैसा की गांव में होता है, दरवाजे में घुसते से ही एक बड़ा चौक और उसके चारों तरफ छोटे छोटे कमरे

चौक काफी बड़ा था और खुला आसमान था वहीं पर एक खाट थी मैं जा कर उस पर बैठ गया खाट मेरे बैठने से चरमराई

काकी समझ गई कि मैं बैठ गया हूं

उन्होंने कहा, “बेटा तू थक गया होगा रास्ते तो बहुत खराब है चाय बना दूँ”

मैंने कहा, ” ज ज ज जी…..म..म..म… मुझे पानी ….”

भेंनचोद मेरा हकलापन फिर शुरू हो गया

काकी सधे हुए कदमों से चलते हुए कोने में गई और वहां रखे मटके से झुक कर पानी निकालने लगी

मेरी आंखें तुरंत सीसीटीवी कैमरे जैसे काकी के बदन से चिपक गयी

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मेरी हालत उस इंसान के जैसी थी कि जो महीनों भोजन के लिए तरसा हो और तभी उसके सामने छप्पन भोग मालपुए रबड़ी आ जाए

काकी ने मुझे पानी पकड़ाया और अपनी साड़ी संभालने लगी अंधी होते हुए भी उसे पता था कि उसके कपड़े कहां पर है काकी ने अपनी साड़ी के पल्लू को चौड़ा किया और अपने ब्लाउज को और कमर को ढक लिया

लो बुझ गई बत्ती

काकी वहीं रखे बांस के स्टूल पर धीरे से टटोल कर बैठ गई

“तेरे बाबूजी का फोन आया था कि तू आने वाला है मुझे लेने के लिए, इतने सारे काम पड़े हैं, बता भला मैं ऐसे कैसे उठ कर चली जाऊं ? पर फिर जब तेरे पिताजी ने कहा कि मेरी आंखें फिर से आ सकती है तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और मैंने हां कर दी एक बात तो बता बेटा आंखों के ऑपरेशन में कितने पैसे लगेंगे ? लल्ला बेटा क्या हुआ ?”

लल्ला क्या लंड बोलता मेरी आंखें तो काकी के चेहरे से बदन, बदन से चेहरे पर जा रही थी

” |ज..ज….ज….जी…..हाँ…..मतलब…..”

“वही तो बेटा इस लिए सारा सामन कमरों में बंद करवा दिया ….तेरे पिताजी बोले…की एक महीना लगेगा वापस आने में…..”

फिर काकी बोली, “बेटा रात होने वाली है शायद, चिड़िया चहचहा रही है मतलब अंधेरा होने ही वाला है, एक काम कर तू हाथ मुंह धो ले और मैं खाना लगा देती हूं”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने कहा, “काकी हमें आज ही लौटना है ना…..आपका सामान…..?”

काकी मुस्कुराई और बोली, ” अरे बेटा अब रात पड़े तुझे कौनसी बस मिलेगी कल दिन वाली बस से चलेंगे”

मैंने कहा लो बहन चोद यहां तो चूतियापा हो गया

मन मसोसकर मैंने इधर उधर देखा साइड में एक नल था वहां जाकर अपने जीन्स को ऊपर चढ़ाया और हाथ मुंह धोने लगा

काकी धीरे धीरे चलती हुई आई और मुझे गमछा पकड़ा दिया मैंने गमछे से अपने हाथ पैर मुंह पूछा और फिर खाट पर बैठ गया खाट फिर चरमराई

काकी इधर उधर की बातें करती रही और मैं पक्के बेशरम की तरह उनके बदन का मुआयना करता रहा

थोड़ी देर बाद खाना लगा दिया और मैंने वही चौक में बैठकर खाना खाया एक बात थी कि भले काकी को अँधा हुए 2 साल ही हुए थे मगर उन्होंने अपने अंधेपन से जीना सीख लिया था वह लगभग बिना टटोले पूरे घर में घूम लेती थी और घर क्या था सिर्फ एक चौक उसके कोने में खुली रसोई और उसके पीछे काकी का कमरा बाकी सारे कमरों के दरवाजे बंद थे

काकी बोली, “वो करम जली चमेली उस दर्जी के छोकरी के साथ भाग गई अपने मां बाप का तो मुंह काला किया ही मुझे भी अधर में छोड़ गई अब बेटा तू बता मैं अकेली अंधी बुढ़िया कैसे अपना काम चलाऊ, अरे बाजार जाना सामान लाना खेत देखना यह वाला मुझसे अकेले थोड़ी होगा. राम करे मेरी आंखें फिर से आ जाए तो मैं भले अकेले सब काम कर भी लूं. अब मेरी किस्मत में तो अकेलापन ही लिखा है पहले तेरे काका छोड़ गए और अब यह चमेली भाग गई”

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मैं खाता रहा और हूँ हाँ करता रहा था

काकी मेरे सामने ही एक छोटे से स्टूल पर बैठी थी, छोटा सा लकड़ी का स्टूल था और काकी उस पर बैठी ऐसी लग रही थी मानो स्टूल हो ही नहीं .

काकी का विशाल गदराया बदन उस स्टूल को पूरी तरह से ढके हुए था

मेरी नजरें काकी के साड़ी में कहीं झिर्री या दरार ढूंढ रही थी जिससे मुझे काकी के गदराये बदन का एक नजारा तो दिख सके मगर काकी को अंधेपन में भी अपनी साड़ी संभालने का एहसास था मुझे कुछ नहीं दिख रहा था दिख रहा था तो बस काकी का विशाल गदराया हुआ बदन

एक सफेद साड़ी के अंदर लिपटा हुआ

बाबू राव ने अपना सर धीरे-धीरे उठाना शुरू कर दिया था क्योंकि भाई औरत औरत होती है और चूत चूत होती है

मैंने काकी को देखते देखते ही बाबूराव को जीन्स में एडजस्ट किया

काकी ने मेरी थाली उठाई और उसे फुर्ती से मांज दिया. उन्होंने वहीँ स्टूल खिंच लिया था…..काकी बर्तन वहीँ चौक के कोने में मांज रही थी और उनका 6 फूटा गदराया बदन उनके बर्तन धोने से धीरे धीरे हील रहा था. बाबूराव तो ऐसा बड़े जा रहा था की थोड़ी देर में बाबूराव ने धीरे से लोअर के इलास्टिक से बाहर मुंह निकाल लिया.

मैंने बाबूराव की धीरे से अंदर किया और मोबाइल निकाला तो उसमें सिग्नल नहीं आ रहा था

“अरे…क…क..काकी…..यहां मोबाइल का सिग्नल नहीं आता है क्या”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी बोली, ” अरे राम यहां सिर्फ bsnl का मोबाइल ही चलता है बाकी कुछ नहीं चलता”

लो लण्ड अब मैं जिओ की सिम से रात भर पिक्चर भी नहीं देख पाऊंगा

पूरे घर में धीरे-धीरे अंधेरा सा छा गया, मैंने कहा कहा, “आपने लाइट नहीं जलाई”

काकी ने फीकी सी हंसी हंसी और कहा, “अरे बेटा मुझे क्या फर्क पड़ता है अंधेरा हो या उजाला…. देख वहां सामने ही बिजली का बटन है जला ले बत्ती”

मुझे बेचारि अंधी कर दया आई पर दया की जगह बहुत जल्दी फिर ठरक ने ली. मैं आराम से खाट पर पड़े पड़े काकी का मुआयना करता रहा.

तभी काकी बोली, ” लल्ला सारे कमरों में अनाज भरा है सिर्फ मेरी कोठरी ही खाली है तू कहे तो तेरा बिस्तर बाहर खाट पर लगा दूं हल्की हल्की ठंड है तुझे अच्छी नींद आ जाएगी कोठरी में तो गर्मी लगेगी”

और मैं चुतिया……… मैंने कहा “ह…ह….हाँ….जी….. बाहर लगा दो”

फिर मुझे ध्यान आया कि अगर कोठरी में चाची के साथ होता तो कुछ…………..

पर अब क्या अपनी चुटियाई का दुख मनाते हुए मैंने कहा, “मैं खाट पर ही सो जाता हूं”

काकी धीरे से उठी कोठरी में गई एक तकिया और एक मोटी सी चादर मुझे दी और मुझसे कहीं बेटा जल्दी सो जा यहां सब जल्दी उठ जाते हैं सुबह-सुबह बहुत काम होते हैं

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मैंने फिर मोबाइल निकाला और उसमें कुछ मसाला ढूंढने लगा मगर मेरा मोबाइल अक्सर पिताजी चेक कर लिया करते थे इसलिए मैं उस में कुछ भी नंगा पुंगा
सामान नहीं रखता था और रात को जियो के सहारे CLIPS देखकर अपने आपको ठंडा कर लिया करता था मगर भोसड़ी का यहां तो नेटवर्क ही नहीं था

अब क्या लंड होगा

काकी धीरे से कोठरी में चली गई उन्होंने किवाड़ लगा लिया और मैं भी थक हार कर खाट पर लेट गया और सोचने लगा कि बहनचोद क्या किस्मत है मुझे इतनी जल्दी नींद नहीं आती थी तो मैं करवटें बदलते रहा थोड़ी देर बाद जब मैं खाट पर पेट के बल लेटा था तो मेरे दिमाग में काकी का बदन पिक्चर की तरह चलने लगा और मैं और मेरा बाबूराव दोनों धीरे-धीरे मस्ताने लगे. मैं खाट पर पेट के बल लेता था पर खाट पर लेटे लेटे बाबूराव उफन्ने लगा था मैंने उसको एडजस्ट किया मगर खाट के झुके होने से मेरा बाबूराव कंफर्टेबल नहीं हो पा रहा था वह खाट निवार की थी उसमें बीच बीच में काफी गैप था

ऐसा लग रहा था मानो चूत का गाला हो तभी मेरे दिमाग में कीड़ा कुलबुलाने लगा

मैंने बाबूराव को लोअर नीचे सरका कर आजाद किया और खाट की निवार के बीच की जगह में फंसा दिया कसम उड़ान छल्ले की एक अलग ही फीलिंग आई
अब मेरे पास मुठ मारने के लिए कुछ मसाला तो था नहीं मैं आंखें बंद करके धीरे-धीरे अपनी कमर हिलाने लगा और धीरे धीरे निवार में फंसा बाबूराव अंदर बाहर होने लगा मुठ मारने से तो यह ज्यादा अच्छा था

आंखें बंद करके मैं कल्पना करने लगा कि मैं नीलू चाची के बदन पर लेटा हूं और उनके बदन को मसलते हुए उनकी चिकनी चमेली के अंदर अपने बाबूराव को पेल रहा हूं ऐसा मजा आ रहा था कि मैं बता नहीं सकता

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

थोड़ी ही देर में मेरे गोटों में उबाल आने लगा और अचानक मेरी आँखों में चाची की जगह लल्ली काकी का चेहरा आया बाबूराव ने फचक फचक रस की धार पर धार छोड़ना शुरू कर दी

खाट के निवास में फंसा मेरा लंड पिचकारी पिचकारी चला रहा था आनंद के अतिरेक से मेरी आंखें बंद हो गई और कब मुझे नींद गई मुझे पता ही नहीं चला

निवार में लण्ड फंसाये मैं यूँही सो गया

अचानक मेरी नींद खुली मुझे लगा की कुछ मेरे बाबूराव से टकराया है मेरी आंखें एकदम खुली

लल्ली काकी झाड़ू लिए खाट के नीचे घुसी हुई थी और उनके झाड़ू लगाने से उनका हाथ और सर मेरे निवार में फंसे बाबूराव से टकरा रहा था

मेरी गांड फट कर गले में आ गयी.

अचानक काकी पीछे हुई और उनका हाथ फिर मेरे बाबूराव से टकराया का की बोली, “अरे राम यह क्या है लगता है कोई चूहा खाट में फंस गया, अरे लल्ला …ओ ..लल्ला …देख तो बेटा …”

मैं उठता इसके पहले काकी ने मेरे बाबू राव को चूहा समझकर पकड़ लिया

बहनचोद………….फटफटी चल पड़ी .

मेरी गांड फट गई

साला यह क्या चुतियापा हो गया

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने फटाक से अपने बाबू राव को खाट से बाहर खिंचा, बाबूराव काकी की मुठ्ठी से सर्र से फिसलता हुआ निकल गया, मैंने लोअर को ऊपर चढ़ाया और खाट पर उठ बैठा

लल्ली काकी चिल्लाई, ” अरे भागा भागा, देख बेटा कहां गया”

मैंने अपने घबराहट पर काबू पाया और कहा, “अरे ह…ह…..हाँ….. हाँ …वो भाग गया”

लल्ली काकी खाट के निचे से बाहर निकली, इस आपधापी में उनका आंचल सरक गया था और उसी सफेद ब्लाउज में वो दोनों खरबूजे मानो मुझे चिढ़ाने लगे मैंने नजर भर के उन खरबूजा का रसपान किया और बोला.

“च…च…चूहा था काकी…..भाग गया”

लल्ली काकी के चेहरे पर थोड़े अचरज के भाव थे वह बोली

“हे राम ऐसा कैसा चूहा था, था तो अच्छा बड़ा,,,,,,, छोटा चूहा तो नहीं लगता था पर इतना नरम था.
जैसे छोटे चूहे की खाल बिल्कुल चिकनी होती है वैसा……. कहां भागा बेटा”

मैंने कहा, “ज…ज…वो… सामने वाली नाली में भाग गया”

काकी ने ठंडी सांस ली, “भगवान बहुत चूहे हो गए हैं घर में, इतना अनाज़ रखा है क्या करें…… दवाई डालो तो भी मरते नहीं है….फिर मैं ये सब किसके भरोसे छोड़ कर जाऊँ ……”

मैं क्या बोलता मेरी तो फटफटी…..

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी ने कहा, “चल बेटा हाथ मुंह धो ले फिर तब तक हरिया आता होगा उसके साथ खेत देख आना”

मैंने कहा, “अरे……हमें तो चलना था….. आप तैयारी कर लो हमें चलना था ना….इटावा…..”

लल्ली काकी बोली, “अरे हां बेटा….. चल ठीक है…….. मैं तैयार होती हूं”

यह कहकर काकी धीरे धीरे चलती हुई अपनी कोठरी में गई. भेनचोद इस औरत का पिछवाड़ा क्या क़यामत है.

६ फुट का बदन……हल्का गोरा गेंहुआ रंग……मोटे मोटे भरे हुए हाथ. खरबूजे जैसे चुचे….चूची बोलना गलत हो जाता.

5 – ५ के तरबूज जैसी बिलकुल गोल गोल गांड. सफ़ेद साड़ी में लिपटी लल्ली काकी की गांड गांड नहीं, बुलावा थी.

काकी का पेट थोड़ा सा निकला हुआ था मगर मोती तो वो कतई नहीं थी… वो तो गाँव की असली भरी पूरी औरत थी.

40 -45 की उम्र में एक औरत अपने चरम पे होती है…..सुंदरता…..मादकता…….गदराया बदन….

भेनचोद मेरी तो उनके देख कर ही छूट होनी थी.

काकी कोठरी से अपने हाथों में कपड़े लिए बाहर निकली

“बेटा मैं नहा लूं तब तक तू यहीं बैठे रहना”

यह बोलकर लल्ली का कि कोने में बने बाथरूम में चली गई

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मेरी सांसे तेज चलने लगी भेनचोद बाथरूम में दरवाजा ही नहीं था

सिर्फ एक पर्दा डाला हुआ था काकी अंदर गयी और पर्दा गिरा लिया.

अंदर पानी गिरने की आवाज आने लगी मैं धीरे धीरे चलता हुआ बाथरुम के बाहर तक पहुंच गया बाल्टी में गिरते पानी की आवाज के बीच मुझे कपड़ों की सर सर की आवाज़ भी आ रही थी इसकी मां की चूत यह ६ फीटी गदराए बदन की औरत नंगी हो रही थी और उसके और मेरे बीच में सिर्फ एक पर्दे का फासला

कीड़ा कुलबुलाने लगा

घर काफी पुराना था और पुराने घरों में बाथरूम और लैट्रिन नहीं बने होते थे तो शायद यह बाथरूम बाद में बनाया गया था और इसमें दरवाजे की जरूरत इसलिए नहीं पड़ी होगी कि दरवाजा होने से अंधी लल्ली काकी को समस्या होती मगर यह समस्या मेरे लिए वरदान बनने वाली थी

काकी के विशाल गदराये नंगे बदन का दीदार करने के विचार मात्र से मेरा रोम-रोम सनसनाने लगा

अंदर से काकी के गुनगुनाने की आवाजें आने लगी मैंने धीरे से परदे को पकड़ा और उठाने लगा तभी जोर की हवा का झोंका आया और मैं इसके पहले कि मैं काकी के बदन का दीदार कर पाता पर्दा मेरे हाथ से छूट गया और काकी को एहसास हो गया कि शायद वहां कोई है

काकी जोर से चिल्लाई, ” हाय.. राम…. कौन है ?”

मेरी गांड फटी और मैं उल्टे पैर भागा. मेरे भागने में मेरा पैर वहां रखे बर्तनों से जा टकराया और सारे बर्तन बिखर गए काकी फिर चिल्लाई, “लल्ला….. बेटा कौन है यहां…?”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने अपनी फटी गांड और धड़कते दिल को काबू में किया और कहा, ” क..क..काकी….व्…व्…वो…..वहीँ चूहा……उस चूहे के पीछे बिल्ली भागी थी…..”

काकी बाथरूम के अंदर से ही चिल्लाई, “है राम वो चूहा फिर आ गया….राम कैसा दुष्ट चूहा है”

मैंने लोअर में तंबू बनाए बाबूराव को देखते हुए कहा, “हाँ….काकी…..”

काकी बाथरूम से नहाकर निकली तो फिर से वही सफेद ब्लाउज और साड़ी पहना हुआ था मगर उनके गीले बाल ब्लाउज पर पड़ने से सफेद रंग का ब्लाउज पारदर्शी होने लगा था और उनकी गोरी मासल पीठ ब्लाउज के अंदर से दिख रही थी देखने वाली बात यह थी कि उस सफेद ब्लाउज में मुझे ब्रा का नामोनिशान भी नहीं दिख रहा था मैंने समझ गया ह गांव की औरतें क्या ब्रा-पैंटी पहनती होंगी

तभी मेरे दिमाग में विचार आया कि अगर काकी का ब्लाउज पूरा गीला हो जाए तो नजारा दिख सकता है

इसके पहले कि मैं कुछ दिमाग लगाता. किवाड़ बजने लगा

काकी ने कहा ” देख तो बेटा कौन आया है ?”

मैं भारी कदमों से चलता हुआ दरवाजे के पास पहुंचा और फिर अंदर से चिल्लाया ” कौन ….”

बाहर से आवाज आई, ” हम हैं हरिया……….. मालकिन है क्या…?”

मैंने मुड़कर काकी से पूछा , ” कोई हरिया है ”

” अरे …तो खोल दे बेटा…. हरिया ही तो अपने खेत खलिहान संभालता है….उसे बिठाओ मैं आती हूं”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

यह कहकर काकी कोठरी में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया मैंने दरवाजा खोला 35 40 की उम्र का गठीले बदन का काला कलूटा आदमी खड़ा था

हरिया मुझे देखकर ऐसा खुश हुआ जैसे मैं कोई राहुल गाँधी हूँ …वह मेरे पैरों में गिर पड़ा और बोला

“अरे लल्ला बाबूजी आप कितने बड़े हो गए…..कितने लम्बे हो गए……”

बहनचोद मैं लोगों के पैर छूता था खुद के पैर छूआने का मौका पहली बार हुआ मुझे कुछ समझ नहीं पड़ा

वो लौडू तो मारे ख़ुशी के फटा जा रहा था.

” मालकिन …कहा है….?”

मैंने कहा आ रही है बैठो….

वो तुरंत खाट पर बैठ गया

फिर उचका….”लल्ला बाबूजी…आप मालकिन को ले जा रहे हो इनकी आंखें सही करा दोगे न……लखन बाबूजी के जाने के बाद से मालकिन ने ही हमें संभाला है…..हम तो बेघर लोग थे बाबूजी……..आज पूरी खेती हमारे हवाले कर दी…..मालकिन बहुत ध्यान रखती है सबका…….हमारी जोरू को भी साड़ी कपडा अनाज देती रहती है……वो तो हमरा बिटवा छोटा है इसलिए धन्नो मालकिन के साथ दिन भर नहीं रह पाती…….नहीं तो वो छिनाल…चमेली की क्या जरुरत थी……माफ़ करना लल्ला बाबू…….हम गलत बोल दिए…..पर…”

यह भोसड़ी का क्या फेविकोल का जोड़ है……मादरचोद साँस भी नहीं ले रहा

वो फिर चालू हो गया

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

“मालिक पर अभी आप शहर कैसे जाओगे ? ”

मैंने कहा, ” (भोसड़ी के..) दिन की बस से… भाई …………..”

हरिया खींसे निपोरते हुए बोला, “पर मालिक चम्बल नदी पर बना पुल तो कल रात को गिर गया और नदी में पानी ज्यादा है इसलिए यहां से बस वहां नहीं जा सकती…. तीन-चार दिन में नाव वगैरह चले तो चले…. तब तक तो आपको यहीं रुकना पड़ेगा”

बहनचोद अब ये क्या हुआ…..मेरे पास तो कपडे तक नहीं थे.

हरिया बोला, ” अब तो चलो मालिक आपको खेत ले चलूँ ”

यहाँ भोसड़ी का….मैं इस बियाबान गाँव में फँस गया और इस मादरचोद के दस्त ही बंद नहीं हो रहे है….खेत चलो खेत चलो….अरे तेरी गांड में भर ले खेत…..भोसड़ी का.

मैंने कहा, “अरे… टूट गया…ऐसे कैसे टूट गया…..दूसरा रास्ता होगा…..बस होगी…..?”

हरिया धीरज से मुस्कुराते हुए बोला, ” नहीं है मालिक…..एक ही रास्ता है….”

“रुको मुझे काकी से बात करने दो……नहीं….बाबूजी से बात करता हूँ…….अरे मेरा फोन…..”

लो गधे के लंड से लिखी दास्तान.

मोबाईल में सिग्नल नहीं.

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने लल्ली काकी को आवाज़ लगाई.

काकी कोठरी से बहार आयी. उन्होंने अपने कपड़े ठीक ठाक कर लिए थे और बालों को टॉवल में लपेट लिया था उनका ब्लाउज भी सूख चुका था इसलिए कुछ नहीं दिख रहा था. वो अपने भरे-पूरे बदन को संभालते हुए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए आई और रुक कर बोली

“क्यों रे हरिया क्या हुआ”

“मालकिन वह चम्बल का पुल गिर गया…..रात में……अब तो तीन-चार दिन जाने का कोई इंतजाम नहीं है….छोटे बाबू को वही समझा रहे है…….रुकना ही पड़ेगा….”

न जाने क्यों काकी को यह खबर सुन कर बड़ी खुशी हुई उनका चेहरा मानो खिल गया

वह बोली, “चलो अच्छा….कोई बात नहीं लल्ला बेटा तीन-चार दिन बाद चलेंगे”

लंड तीन-चार दिन बाद चलेंगे बहनचोद गांव में 4 दिन में तो मैं पागल हो जाऊंगा

मेरे दिमाग का टोटल फालूदा हो चुका था

पुल गिर गया भेनचोद क्या मिटटी गारे का बना हुआ था …गिर गया

जब साली किस्मत ही हो गांडू तो क्या करेगा पांडू

हरिया भी बैठा-बैठा क्या पता क्या बोले जा रहा था. मैंने गुस्से में तिलमिलाते हुए इधर उधर देखा

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

हरिया फिर टर्राया, “बाबूजी खेत चलेंगे”

साले भेन के लंड….तेरी माँ का भोसड़ा …खेत ….खेत

मैं गुर्राया, “मेरी तबीयत ठीक नहीं मेरा सर दुख रहा है तुम जाओ”

हरिया मुंह लटका कर निकल लिया.

लल्ली काकी को शायद मेरे गुस्से का एहसास हो गया था अंधे लोग यूं भी बहुत सेंसिटिव होते हैं अपने आसपास के माहौल के लिए

उन्होंने कहा, “कोई बात नहीं बेटा दो-तीन दिन की बात है इसी बहाने तुम मेरे यहां रह जाओगे क्या बताऊं चमेली के भाग जाने के बाद तो मैं किसी से बात करने को भी तरस गई अंधा होना दुनिया का सबसे बड़ा दुख है उसके ऊपर से तेरे लखन काका नहीं रहे अकेलापन दुनिया की सबसे बेकार चीज़ है रे बेटा

मैंने तुरंत बात को संभालने के लिए कहा, ” अरे काकी आप बोलोगी तो मैं दो-तीन दिन 5 दिन 10 दिन रुक जाऊंगा इटावा में मेरा कौन सा काम है”

यह सुनते ही काफी का चेहरा एकदम खिल गया मानो सूरज के सामने से बादल हट गए हो

यार यह औरत कितनी खूबसूरत है काकी का चेहरा उनके विशाल शरीर के अनुपात में थोड़ा छोटा था पर उनके होंठ काफी मोटे मोटे थे……बड़ी बड़ी ऑंखें और मोटे मोटे होंठ. इस उम्र में भी उनके होठों पर गुलाबी रंगत थी शहर की लड़कियां गेलचोदी सवा मन लिपस्टिक लगाती है तो भी खूबसूरत नहीं लगती.

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने अपने आप को नार्मल करने के लिए इधर उधर की बात शुरू कर दी थोड़ी देर में गर्मी बढ़ने लगी तो काकी साड़ी से अपने आप को हवा करने लगी उनका साड़ी को ऊपर करना होता और उनके पेट की झलक मुझे दिखती उनका पेट बैठे होने होने से बाहर आया हुआ था उसमें को देखकर मुझे किसन हलवाई की दुकान पर रखे खोये मावे की याद आने लगी खोया भी तो ऐसा ही नरम-नरम चिकना चिकना दिखता है

एक ही सेकंड में मेरा सारा गुस्सा और परेशानी हवा हो गए और मैं काकी के रूप का रसपान करने लगा

भले काकी अंधी हो गयी थी ही हो गई थी मगर वो जब बात करती थी तो उनके चेहरे पर खूब सारे भाव आते थे वो आंखे मटका मटका कर और सेल्फी वाला पॉउट बना बना कर बोलती. कभी चेहरे पर शरारत कभी ख़ुशी कभी मस्ती . कोई भी उनका चेहरा देखकर कोई भी उनके मन में चल रही बात बड़ी आसानी से पढ़ सकता था मैंने भी सोचा यहां पिक्चर देखने को मिल रही है इटावा में जाकर कौन सा खंभा उखाड़ लेता न चाची पेलने देती ना पिया के पास कोई सीन और रही पम्मी आंटी. तो जब पिया घर ही नहीं जा पाऊंगा तो आंटी से लौड़ा मिलूंगा

साली किस्मत ही हो गांडु क्या करेगा पांडू

काकी कुछ बोल रही थी….

मैंने कहा, “क्या हुआ. क्या काकी ? आप लखन काका का कुछ बता रही थी ”

काकी बोली, ” अरे हाँ वही तो …..जब तेरे काका फ़ौज में थे तो वह भी जब गांव आया करते थे तो उन्हें किसी न किसी बहाने से मैं ऐसे ही रोक लिया करती थी”

अब बताओ…….काकी कहां मेरा कंपैरिजन काका से करने लगी

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

बात बदलने के लिए मैंने कहा, “काका के बारे में कुछ बताओ तो”

काकी मुस्कुराई. बाबा काकी के चेहरे का रंग ही बदल गया.

“लल्ला…रे…… उनके बारे में क्या बताऊं बेटा इंसान नहीं देवता थे. देवता 6:30 फीट ऊँचे, लंबे चौड़े वह बचपन से ही पहलवानी करते थे और उनकी पकड़……. एक बार हाथ पकड़ ले तो कोई छूटा नहीं सकता था…..अब हमारी शादी कम उम्र में ही हो गई थी जब मैं बिहा कर आई तो मेरे बालिग होने में 4 साल थे तेरे काका ने मुझे बहुत प्यार से रखा मुझे कभी परेशान नहीं किया जब मैं सयानी हुई………”

“सयानी मतलब”, मैंने टपक से पूछा .

अचानक काकी का चेहरा लाल हो गया

“यानी….. मतलब…..मेरा मतलब…..”, काकी सकपका गई

मतलब तो मैं समझ गया कि अपनी माहवारी शुरू होने की बात बता रही है पर अपुन तो बहुत सयाने

“मैं समझा नहीं”

“अरे वो…..तू ये सुन…..जब मैं 18 साल की थी उसके बाद तेरे काका की फौज में नौकरी लग गयी और वह साल में कुल जमा 1 महीने के लिए आते थे और उसकी एक महीने में वह पूरे घर को आसमान पर उठा लेते थे….. खेत जाते…… तब हरिया छोटा था…… हरिया को मार-मार कर उससे काम कराते………. सुबह से लेकर रात तक बस काम काम काम………. रात को जब घर आते तो इतने थके होते पर फिर भी मेरे पास बैठते ………..मुझसे बातें करते……….. हम कभी-कभी तो पूरी रात नहीं सोते थे (लम्बी सांस)

मैंने फिर चुतिया बनके पूछा, “पूरी रात बातें करते थे ? ”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

अब की बार काकी के चेहरे पर लाली दौड़ गयी

काकी अपने होठों को दबाते मुस्कुराते बोली ,”अरे बेटा खूब बातें करते थे…..वह बातें …….पूरी रात बातें किया करते थे ……मुझे सोने नहीं देते थे…..बस…..”

मुझे सब समझ आ रहा था…..पूरी रात टांगे खोल कर …पलंग तोड़ बाते…..

तभी ऊपर से आवाज आने लगी भाड़ भाड़ भाड़ तो मैं घबरा के ऊपर देखा

“अरे..ये…क्या….है…..क्या …हुआ…..”, मैं उछला

“कुछ नहीं रे बेटा बन्दर है यहां बड़ी तकलीफ है बेटा……. घर का सामान उठाकर ले जाते हैं….कपड़े भी खींच ले जाते हैं इसीलिए कपड़े खुले में नहीं सुखाती…..हरे राम…. देखना मेरी साड़ी…..सब कपडे…. ऊपर ही सूखा आयी थी आज….

(मेरे सामने चड्डी और ब्लाउज़ सुखाने में शर्म आ रही थी क्या…..)

“देख बेटा….मेरे कपड़े लेकर ना भाग जाए…..”

“मैं देख कर आता हूँ…”

चौक से ही संकरी से सीडिया थी …..मैं ऊपर गया बंदर तो चले गए थे लेकिन मैं तुरंत दौड़ता हुआ छत पर गया और वहां पर सूखती साड़ी को उठाया और उसे समेट कर छत के कोने में रख दिया वहीं पर काकी का ब्लाउज भी पढ़ा था उसे भी उठाकर उस में रख दिया पेटीकोट को भी वहीँ फंसा दिया मैंने ऐसा क्यों किया मुझे पता नहीं

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैं नीचे आया मैंने कहा, ” अरे….काकी….वो…बंदर सारे कपड़े लेकर भाग गया”

काकी ने सर पीट लिया, “सत्यानाश जाए मरे बंदरों का……….. मेरे पास कल पहनने के लिए साड़ी ही नहीं रहेगी….हाय राम सारे कपडे ले गए क्या…….. मैं कल क्या पहनूंगी……….मैं गंदे कपड़े पहन कर पूजा कैसे करूंगी मेरी सारी साड़ियां तो मैंने अनाज बांधने के लिए रस्सी बनाने के लिए दे दी. …सोचा था शहर से नई खरीद लूंगी हाय राम अब क्या होगा ? ”

मैंने कहा. ” त…त. तो काकी कुछ दूसरे कपड़े तो होंगे..?”

काकी बोली, “अरे बेटा कुछ भी नहीं है दो साड़ी ही बची थी बाकी सब पुरानी थी फटने लगी थी इसलिए मैंने अनाज बंधवा दिया उनमे….अब यह तो आज पहली कल क्या पहनूंगी…..?”

यह कहकर काकी उठी और बोली, “बेटा इधर आ….”

काकी धीरे धीरे टटोलट हुयी मुझे कोठरी में ले गई. और हाथ से टटोल कर अलमारी के सामने खड़ी हुई
अपनी कमर से चाबी का गुच्छा निकाला और उस में चाबी लगाई और मुझसे कहा, ” बेटा इसमें तेरी रूपा दीदी के कुछ कपड़े रखे हैं उसमें कोई सलवार कमीज हो तो मुझे दे दे”

मैंने अलमारी में देखा तो उसमें कुछ सलवार सूट पड़े थे…….मैंने उन्हें उठाने लगा..

तभी मेरी नज़र वहां रखी लेगिंग्स और टीशर्ट पर पड़ी.

कीड़ा…….कुलबुलाने लगा.

मैंने सलवार सूट धीरे से उठाया और अपने बगल में दबा लिया और कहा, “काकी सलवार सूट तो नहीं है यह कुछ लड़कियों के पाजामे है और एक टी-शर्ट है”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी बोली, “हाय राम मैं यह पजामा…टी-शर्ट पहनूंगी क्या…..देख बेटे…देख….सलवार सूट भी होगा मुझे ध्यान है रूपा छोड़ गई थी”

मैंने कहा, “नहीं है….काकी …. यहां तो बस ३-4 कपड़े रखे हैं और कोई सलवार सूट नहीं है”

काकी बोली, ” अरे…वो रूपा तो बोली थी कि सलवार सूट यहीं रह गया …..राम जाने यह लड़की भी इतनी लापरवाह है….. कुछ ध्यान नहीं रहता………. यह सब कपड़े भी उसने ही छोड़ दिए थे तो मैंने संभाल लिए बता तो बेटा क्या कपड़ा रखा है अंदर”

मैंने दो लेग्गिंग उठाई और उनको उठाते से ही मेरे दिमाग में हथौड़े बजने लगे क्योंकि वह लेग्गिंग काकी ने नाप की बिल्कुल नहीं थी भले रूपा दीदी काकी जितनी लंबी थी मगर उनका बदन काकी जैसा इस कदर गद्दर गदराया हुआ नहीं था अगर काकी यह लगीन पहन लेगी तो…… पहने या ना पहने एक ही बात है

ये लेग्गिंग उनके बदन से ऐसी चिपकेगी की छुपायेगी कम दिखाएगी ज्यादा

लंड मेरा
विनोद मेहरा

मेरी लॉटरी खुल गई थी

दो थी एक सफेद और एक भूरी ….सफ़ेद बिलकुल पतली और भूरी थोड़ी मोटी.

मैंने ईमानदारी से भूरी लेग्गिंग को भी अपनी बगल में दबा लिया…और सफेद काकी को पकड़ा दी

काकी बोली, “हाय राम यह नासपीटे मरे बंदर…… आग लगे इनको…… अब मैं इतना छोटा सा पजामा कैसे पहन लूँ… अरे राम ……बेटा इसके ऊपर पहनने का क्या है ….उठा तो…. ”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

फिर मैंने देखा तो कुछ टी-शर्ट पड़ी थी उसमें से मैंने सफेद रंग की टीशर्ट उठाई और काकी को पकड़ा दी

काकी ने उसे हाथों में टटोला….और बोली , “राम राम यह तो टीशर्ट है बेटा यह तो बहुत छोटी लगती है लंबी नहीं है क्या ”

मैंने कहा कि एक ही टीशर्ट था काकी

“अरे नहीं रे बेटा…..ढंग से देख…..यहां तो बहुत सारे कपड़े रखे हैं….. देख बेटा देख”

मैंने बाउंसर डाली, ” अरे काकी बाकी सब तो छोटी छोटी सी है ब्लाउज जैसी …और ये सब चिंदे है……”

तो काकी ने ठंडी सांस ली और कपड़े लेकर अपने बिस्तर के सिरहाने धीरे से टटोल कर टेबल पर रख दिए

“चल…बेटा….जैसी हरि इच्छा…..”

अचानक ही मेरा मूड बदल गया था …….अब मैं लौड़ा इटावा नहीं जाना चाहता था

अब तो लंड पे ठहरी बारात…..निकलेगी गाजे बाजे के साथ

मैं बैठा बैठा काकी से इधर उधर की बाते करता रहा….

वो मेरे सामने उकडू बैठ कर आटा गूँथ रही थी…..साडी थोड़ी सी ऊपर की हुयी थी जिस से उनकी गोरी गोरी चिकनी पिण्डलिया दिख रही थी.
बैठ कर ज़ोर लगाने से जांघो से चिपकी पिण्डलिया फ़ैल गयी थी….मक्खन जैसी मुलायम ……

एक बात थी….काकी की पिण्डलिया बिलकुल चिकनी थी….बिना बाल की……अब काकी गांव में वैक्सिंग कराती हो ये तो संभव नहीं था. मतलब काकी की खाल इन्ही बिना बालों की थी……भेनचोद….बाबूराव सर उठाने लगा.

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी ज़ोर से आटे को मसलती और उनके चुच्चे दब कर ब्लाउस में से बाहर आने लगते….उनके मम्मों की बिच की गहराई.

कसम उड़न छल्ले की…..मैं तो गांव में ही बस जाऊंगा.

दिन भर इधर उधर की बातें करते करते शाम हो गयी….मैं मस्ती से काकी के रूप का रसपान करता रहा. उन्हें काम में हाथ बंटाता रहा. कई बार मेरे उनके शरीर में रगड़ हुयी मगर जहाँ काकी इन सब से अनजान थी वहां अपनी तो हालत ख़राब थी. दिल कर रहा था की बाथरूम में जाके मुठ मार लूँ और हल्का हो लूँ मगर काकी काम पे काम बताती जा रही थी और मुझे भी इस बहाने उनके करीब होने का मौका मिल रहा था.

शाम ढले किवाड़ बजा….मैं और काकी दोनों एक साथ चिल्लाये…..”कौन है….?”

काकी की मुस्कराहट फूट पड़ी. वो मुस्कुराते हुए बोली,” देख तो बेटा कौन है……पहले पूछ लेना….”

मैंने आवाज़ लगाई ” कौन….”

बाहर से खनखनाती हुयी आवाज़ आयी, ”अरे हम है….छोटे बाबू….”

अब ये कौन कॅरक्टर आया ?

मैंने काकी से पूछा….”काकी……ये…?”

काकी बोली ” अरे हाँ बेटा खोल्दे……धन्नो….आयी है….”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने किवाड़ खोला और धन्नो आंधी तूफान के जैसे घर में घुसी….उसने अपनी कमर पर एक छोटे से बच्चे को टिकाया हुआ था….पीली साड़ी में लिपटी धन्नो मेरे सामने रुकी…और बोली, ” अरे वाह…..बताओ…..कितने लम्बे हो गए …..हाँय…….जब पहले देखी थी तो कितने छोटे थे…..६-७ साल हुए होंगे….क्यों काकी……अरे…हाँ तो…..बाबू तुम्हारी अम्मा कैसी है……बहुत पुन्न आत्मा है…..और अनीता भाभी कैसी है…….उनकी गोद भरी क्या……हम को तो बहुत याद आती है उनकी…..भाभी तो बहुत मज़ाक करती थी हमसे भी….अब हम भी चलते इटावा काकी के साथ …..मगर…..एक तो ये राजू छोटा है फिर खेत भी देखना पड़ता है न…..”

भोसड़ी के …..पति पत्नी दोनों बगैर ब्रेक की बैलगाड़ी है …..

काकी मुस्कुराते हुए बोली, ” आ इधर आ……ला राजू को मुझे दे….”

धन्नो ने अपने बच्चे को काकी को दिया,. काकी उसको दुलारने लगी.

धन्नो चौक के बीच कड़ी कमर पर हाथ रखे हुए पुरे घर का मुआयना करने लगी.

और मैं धन्नो का…..

30 -35 साल की सांवली सी औरत….नाटी मगर सुतां हुआ बदन…..धन्नो का बदन तो छरहरा था. मगर थन बड़े बड़े थे.
बल्कि साडी को यूँही कंधे पर डाले होने से दोनों बोबों के बिच की गली….नहीं गलियारा….मस्त दिख रहा था.

अपुन ठहरे अकाल की पैदाइश…..अपनी नज़रे वहीँ जाके के जाम हो गयी. धन्नो ने गहरी सांस ली…और बोली, ” ओ हो…काकी….अपने तो पूरी तैयारी कर ली जाने की…..सब खाली खाली दिख रहा है…..हैं….पुरा सामान कमरों में ठूंस दिया क्या….?’

“अरे तो पागल….यूँही बाहर पटक क्र चली जाती क्या…..कौन जाने महीना लगे या दो महीना….”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

“काकी…मैं बोल देती हूँ…..जल्दी से आ जाना…..हमारा मन नहीं लगेगा…..”

” तो तू साथ चल….”

“अब बताओ…छोटे बाबू….काकी ने तो कह दिया साथ चल….यहाँ कितना काम है….हमें नहीं पता जल्दी से ऑंखें ठीक करा लो और आ जाओ.”

काकी बोली, ” अच्छा सुन….ये मरे बंदरों ने नाक में दम क्र रखा है…..आज फिर आये थे……मेरी साड़ी और सब कपडे ले गए….बताओ…”

धन्नो अपनी कजरारी ऑंखें गोल गोल कर के बोली, ” हैं…..फिर आये थे…..सब कपडे ले गए मतलब……सब….?”

काकी ने धीरे से कहा, ” अरे छोरी……एक कपडा न छोड़ा मेरा…..साड़ी हैं नहीं….सब फाड़ कर अनाज बांध दिया…..बाकि दूसरे उस दिन वो तेरी बहन आयी थी उसको दे दिए थे…..मैंने कहा था ना तुझसे …….नई साड़ी लुंगी…….अब मेरे तो कपडे भी ना बचे…..कल क्या पहनूंगी….”

धन्नो अचरज से बोली, ” हैं….काकी…..सारे…कपडे…..मतलब……सब……..अरे…अंदर के कपडे भी ले गए मरे ……?”

काकी का मुंह शर्म से लाल हो गया. वो चुप रही. मगर धन्नो तो धन्नो थी.

“अरे काकी…..अंदर के कपडे तो होंगे…..”

काकी ने अपनी गर्दन निचे करके धीरे से कहाँ, ” ना…..रे…..वो भी ना है….सोचा था इटावा से……”

धन्नो बोली, ” तो क्या काकी मैं अभी अपने कपडे ला देती हूँ……..”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी थोड़ा चिढ़ कर बोली, ” अरे गधी …..तेरे कपडे मुझे किस तरह आएंगे….पागल…..”

“हाँ काकी…ये तो है…..फंस ना जायँगे आपको…….” और खी खी हंसने लगी.

“चल फालतू बातें छोड़……एक काम कर… एक साड़ी और कपडे दे जा….”

“साड़ी और क्या……कपडे दूँ काकी…”

“अरे करमजली…..बाकि के कपडे….” काकी दबी ज़ुबान में बोली..

” ओ……चोली और साया…..पर काकी….”

“तुझसे जितना कहा उतना कर….”

धन्नो अभी आयी कह कर निकल ली.

धन्नो थोड़ी दे में आयी और एक कपड़ो का बण्डल पटक गयी. काकी ने मुझसे कहा उनके बिस्तर पर रख दूँ.

मैंने बिस्तर पर रखे लेग्गिंग और टी शर्ट को देखा और मेरी झांटे सुलग गयी. कहाँ तो सीन बनने वाला था और कहाँ ये भेन की लोड़ी आ गयी.

रात को मुझे नींद ही नहीं आयी….इतने मच्छर काटे की मैंने उनके पुरे खानदान को याद कर कर के गालियां दी.

सुबह सुबह नींद लगी.

पूरी रात मैंने बाबूराव को हाथ में लिए निकाली. सुबह 5 30 पर नींद अपने आप खुल गयी मगर मैं खाट पर ही पड़ा रहा काकी की कोठरी से आवाज़ आयी और काकी किवाड़ खोल कर बाहर निकली उनके हाथ में तौलिया था.

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

और दूसरे हाथ में थी सफेद लेग्गिंग और सफ़ेद टीशर्ट.

वो मारा पापड़ वाले को…..

काकी धीरे धीरे सधे हुए कदमो से चौक में आयी और बाथरूम की तरफ चली. मैंने भी उठने की कोशिश की तो भेन की लौड़ी खाट चरमरा उठी.काकी ने चौंक कर कपडे अपने सीने से लगा लिए और बोली,

” उठ गया क्या लल्ला…?”

मेरे को काटो तो खून नहीं….

मैं चुपचाप पड़ा रहा. काकी फिर से बोली, “लल्ला…….”

जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया तो काकी समझी की मैंने नींद में हिला हूँ. वो खाट के पास आयी.

अब क्या था की अपुन सोये थे नंगे……

खुल्ले आसमान में इस मौसम में नंगा सोने का सुख ही कुछ और है भाई….

सुबह सुबह बाबूराव भी मुर्गे की जैसे मुंडी ऊपर कर के खड़ा रहता है यार….मैंने अपने मुट्ठी में बाबूराव को लिया और खाट पर पड़े पड़े काकी को देखता रहा…

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मैंने खाट को सरका कर चौक के बीच में कर लिया था…काकी मेरे पैरों की तरफ से आ रही थी. काकी बेचारी समझी की खाट चौक के कोने में है तो तेज़ी से आगे बड़ी और बेचारी अंधी को खाट के कोने की ठोकर लगी वो ऐसे के ऐसे खाट पर आ गिरी.

उनका मुंह मेरे जांघों पर आ गया और सहारे के लिए हाथ मेरे…….बाबूराव पर…

औ तेरी……

काकी कुछ समझती और मैं कुछ संभालता उसके पहले काकी ने गफलत में टटोलते हुए मेरे फनफनाये कोबरा को पकड़ लिया. अपना सवा आठ इंच का सरिया काकी के हाथों में समा ही नहीं पा रहा था.

काकी के चेहरे पर पहले तो आश्चर्य के भाव आये और तुरंत ही उनके गोरे गाल और कान लाल सुर्ख हो गए.
काकी ने एक पल के लिए जैसे मेरे मुगदर को नापा और जायज़ा लिया और दूसरे ही पल फुर्ती से खड़ी हो गयी.

भेनचोद मेरी तो हंसी नहीं रुक रही थी…कहाँ तो मैं सपने देख रहा था और कहाँ काकी ने आके खुद ही अपुन के हथियार को नाप लिया…..

पर मैंने मौके की नज़ाकत को समझा और सोने का ढोंग करता रहा…काकी ने कुछ गहरी सांस ली और मैं उनके पपीतों को उठता गिरता देखता रहा….काकी बोली….”लल्ला……?”

लल्ला एकदम चुप…..सुई पटक सन्नाटा.

काकी ने तौलिया और कपडे जो की गिर गए थे उनको टटोल कर उठाया और मैं उनके झुकने से उभर आये पिछवाड़े को देखता रहा….

कसम अरविन्द केजरीवाल की …….काकी का पिछवाड़ा तो…..

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी ने तौलिया और कपडे उठाये और बाथरूम में चली गयी.

मुझे न जाने ऐसा क्यों लगा की काकी के चेहरे पर बहुत हलकी से मुस्कान थी और मेरे बाबूराव को पकड़ के उतनी आश्चर्यचकित नहीं थी…जितनी होना चाहिए थी…

फटफटी…..चल पड़ी.

अपुन ने सोचा काकी को नहाने जाने दो फिर काकी की राम तेरी गंगा मैली देखेंगे.

पर साला काकी मुस्कुराई तो थी….

ज्यादा स्पीड में चलो तो एक्सीडेंट होता है….थोड़ा हल्लू हल्लू….

मगर कल जिस तरह काकी को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया था मेरी गांड फटी….मैंने सोचा कुछ न्य एंगल बनाते है. उस बाथरूम की दीवारें 6 -7 फूट ऊँची थी मगर छत से मिली हुयी नहीं थी…..काफी गेप था. मैंने गार्डन घुमाई और देखा की अगर सामने से छत पर खड़ा हो जॉन तो कुछ सीन बन सकता है.

लौड़ा क्या चाहे…..कुछ नज़ारे.
मैं भाग कर छत पर गया. अपना idea बिलकुल सही था बाबा.

फुल बालकनी नज़ारा था…..

मगर काकी का सर ही दिख रहा थी. वो इतनी देर में नहा भी ली थी.और झुक क शायद अपने बदन को पोंछ रही थी.
मैंने मुंडेर से झाँकने की कोशिश भी की लेकिन लंड बाबाजी.

निर्मल बाबा की सलाह के जैसे ये idea भी फुस्सी फटाका निकला.

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काकी का सर देखकर क्या करूँगा……बाथरूम की दीवार पर लगा एक लकड़ी का पटिया पुरे view की मां कर रहा था.

काकी ने अपना हाथ उठाया…..नरम नरम …गोरा…गोरा…..मोटा……ताज़ा हाथ…..भेनचोद….हाथ नहीं देखना……सीन दिखा दो काकी.

काकी ने ब्लाउस जो की धन्नो का था उसमे हाथ डाला और वो आधे में फंस गया….

वो मारा पापड़वाले को.

धन्नो के कपडे तो छोटे है.. काकी ने कोशिश की मगर उनका हाथ कोहनी के ऊपर से ही ब्लाउस में फंस गया. फिर उन्होंने हार कर ब्लाउस खोला….और शायद झुक कर पेटीकोट में पैर डाले…..उनके सर हिलने से लग रहा था की वो भी छोटा था….

कहाँ 6 फ़ीट की कद्दावर औरत और कहाँ पौने 5 फ़ीट की धन्नो.

लंड धन्नो के कपडे लल्ली काकी को नहीं आने वाले. मैंने तो पहले ही लेग्गिंग और टी-शर्ट निकाल कर बाथरूम मे टाँग रखी थी काकी के लिए.

साला मौका छुट गया.

मैं कुछ झलक के इंतज़ार में वहीँ खड़ा हो गया….मगर काकी की शायद मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया. उन्होंने कहा ” लल्ला…..”

भाई कसम से डर वाले शाहरुख़ खान वाली फीलिंग आयी…

.”क़….क़…..क़……किरण ….”

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“क़….क़…..क़……काकी…..”

मैं तुरंत पीछे हटा…..आज थोड़ा सावधान था नहीं तो फिर बर्तनों में जा गिरता…..

भेनचोद मारे ठरक के मेरा मुंह सूखा जा रहा था..

बाथरूम से काकी की आवाज़ आ रही थी….वो ज़ोर लगा लगा कर कपडे पहन रही…थी.

मैं जल्दी से नीचे आया और चुपचाप आँखे बंद करके चारपाई परलेट गया

मैं खाट पर ही पड़ा रहा….काकी 20 मिनट बाद बाहर निकली. मैं चटपट उठ बैठा.

सफ़ेद झीनी लेग्गिंग……सफ़ेद पतली छोटी टीशर्ट….

माँ…..धुरी…..

काकी ने अपने कन्धों पर तौलिया डाला हुआ था…..आगे से पूरा ढंका हुआ.

लेग्गिंग काकी के नाप से कम से कम २ साइज छोटी थी…..उनकी टांगों से ऐसी चिपक गयी थी मानो चमड़ी हो..

काकी की मोटी मोटी गदराई जाँघे ऐसी लग रही थी की चिकन का लेग पीस हो….रसीली ..

गीले बदन पर ही लेग्गिंग पहनने से लेग्गिंग हलकी से गीली हो गयी थी.

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एक तो पतला सफ़ेद कपडा, उस पर भीगा हुआ….

तू ही समझ ले प्यारे…

अपने कान फूंक फूंक गरम हो गए बे.

काकी ने तौलिये को सामने से शाल की तरह लिया हुआ था…..वो मेरे सामने ने पंजो के बल चलती हुयी गयी और मेरी नज़र जा चिपकी लेग्गिंग में फंसे उनके विशाल पिछवाड़े पर….

गीले बालों से गिरता पानी पीछे से उनकी लेग्गिंग को पूरा पारदर्शी बना चूका था….काकी की चड्डी तो मैंने कल ही छुपा दी थी..

काकी की २१ गज़ की विशाल गांड सफ़ेद भीगी लेग्गिंग में लिपटी मानो मेरे को चिड़ा रही थी.

लेग्गिंग पुरानी सी थी. उसका रेशा रेशा काकी की विशाल गांड के वजन से चौड़ा हो गया था….गांड की दरार क्या मेरेको तो उनके दांये कूल्हे पर एक मोटा सा तिल भी दिख रहा था…..

कसम उड़ान छल्ले की …

बाबू अपन कही नहीं जा रहे…

अब मामला गंभीर हो चुका था. सुबह सुबह अपने बाबूराव को काकी को पकड़ा के अपना एंजिन वैसे ही सिटी मार रहा था. मेरी नज़रे काकी को ऐसे घूर रही थी की मुझे पक्का यकीन था की काकी भी अपने बदन पे मेरी निगाहों को महसूस कर रही है.

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काकी मेरे सामने से धीरे धीरे चलती हुई चोक के कोने मे गयी और अपने तौलिए को हटा कर अपने बालों को फटकारने लगी.

काकी की पीठ मेरी तरफ थी और उनके झुक जाने से उनकी विशाल गददर गांड फेल कर मुझे मुँह चिडाने लगी. ऐसा लग रहा था की लेगिंग अब फटी.

लेगिंग काकी की जाँघ के पिछले हिस्से पर कस गयी और उनकी जाँघ के पिछले हिस्से का गदराया हुआ नरम नरम नाज़ुक माँस लेगिंग के रेशों मे से झाँकने लगा.

किसी भी औरत मे लोग जाने क्या क्या देखते है. मम्मी गांड होन्ट. आँखें, कमर.

अबे भैय्ये…..किसी औरत की भारी भारी जाँघे देखो….जाँघ का पिछला हिस्सा देखो.

काकी के इस राम तेरी गंगा मैली रूप को मे अपनी आँखों से हुमक हुमक के पी रा था.

काकी तो अपने बालों को फटकारने मे व्यस्त थी और मैं रूप दर्शन मे.

ना जाने कब मेरा हाथ अपने बाबूराव पर पहुँचा और मैं अपने भन्नाये बाबूराव को हाथ फेर कर समझने लगा.

काकी की तो लेनी है बाबू…

और हाँ घोड़ी बना के ही…

शायद मैं सोचते सोचते ज़ोर से बोल गया. काकी एक दम पलटी और बोली…

“हैं….लल्ला….जाग गया क्या….?”

अपुन चुप.

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काकी का सफेद टी शर्ट आगे से भी भीग चुका था. शर्ट उनके निप्पल और उसके आसपास का भूरे हिस्से पर लेमिनेशन जैसा चिपका हुआ था.

ठंडे पानी से शायद काकी के चूचुक टनटना गये थे. काकी के जामुन जैसे निप्पल शान से सिर उठा के खड़े थे.

इसकी मा की

अबे बच्चे की जान लोगे.

मैं तो काकी के इस गदराये हुस्न को ही देखे जा रा था. नीचे से देखना शुरू किया.

काकी की विशाल जंघे, गोरी गोरी कमर पर कसी लेग्गींग , हल्का सा बाहर निकला पेट, कमर के दोनो और के उठाव और घुमाव, उनकी विशाल नाभि पर पड़ी पत्दर्शी सफेद टी -शर्ट.

और उसी टी -शर्ट से झँकते दो पपीते. काकी सच्ची मे पॉर्न स्टार लग रही थी मामू .

बस साला ये पॉर्न पिक्चर न्ही थी.

काकी फिर बोली, “ अरे लल्ला……चाय पिएगा क्या….?”

अब बोलना पड़ा.

“ह…ह….हन….काकी…..”

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भेनचोद ठरक के मारे मेरा गला सुख गया था. कौए जैसी आवाज़ निकली.

काकी बोली, “ हैं…..बेटा….क्या हुआ….”

मैने गला सॉफ किया और बोला “ ब…ब….ब्ना दो….काकी….”

काकी वहीं पर बनी रसोई की तरफ बढ़ी और मैं उनके पिछवाड़े की लचक देखता रहा.

वहाँ पर एक छोटा स्टूल था…काकी टटोल कर उस पर बैठ गइ. साला इतने से स्टूल पर काकी की विशाल गांड कैसे टिक गइ ?

काकी ने धीरे से गॅस को टटोला और अंदाज़े से बर्तन उठाया. एक बात थी, अंधी काकी को अंदाज़ा और अपने आसपास्स का पूरा ज्ञान था.
वो धीरे से हाथ बढाती मगर चीनी चाहिए तो चीनी ही उठती, चाय पत्ती चाहिए तो चाय पत्ती .

चाय गॅस पर उबलने लगी. काकी बोली, “ लल्ला….वहाँ बर्तन पड़े होंगे….एक ग्लास ले आ…”

मैने ग्लास उठाया और मेरे होश तीतर बटेर हो गये.

ग्लास मेरे हाथ से छूट गया और मेरी साँस ही रुक गयी.

काकी स्टूल पर पैर चौड़े किए बैठी थी. उनकी मुनिया के ठीक उपर लेगिंग ने साँस छोड़ दी थी.

वहाँ की सिलाई उधड़ गयी थी और जन्नत का दरवाज़ा ठीक मेरे सामने……

काकी एक दम से चौंकी

“हाय राम क्या हुआ….”

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इधर मेरी आँखें नही हट रही, बाबूराव फंनफना रहा. गिरा हुआ ग्लास फर्श पर गोल गोल घूम रहा और मेरी नज़रें…

काकी की लेगिंग बेचारी काकी के नरम गरम गुदाज गदराये भरे बदन के आगे हार गयी थी.

क्या है बेटे अपनी किस्मत तो कामदेव भगवान ने लिखी थी न .

मर्जानी लेगिंग फटी भी तो कहाँ से….

हा..हा..हा

अपने अंदर का प्रेम चोपड़ा, पापा रंजीत और शक्ति कपूर तीनो एक साथ आउ बोल पड़े.

काकी की मुनिया पर घमासान झांटे थी.

झांट वाली या सफाचट हो, पर प्यारे चूत तो चूत होती है

काकी घबरा गइ थी इस लिए एकदम उठने को हुई तो उन्होने अपने पैर सिकोडे और अपना शो बंद.

परदा गिरा तो अपुन को होश आया.

“अरे…क्या हुआ…लल्ला…..ग्लास कैसे गिर गया….अरे राम तू फिसल तो न्ही गया….?’

“अरे न…न….नही….काकी…..वो….थोड़ा ..फिसल…गया..”

“हाय राम…..लगी तो न्ही….” ये कहकर काकी उठने लगी. मैं बोला “अरे न्ही….न्ही…काकी….मैं ठीक हूँ पर पैर मूड गया”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी बोली “ आ इधर आ…मोच आ गइ क्या..?”

अब कुछ न्ही सूझा तो मैने बोल दिया “ह…ह….हाँ ….हाँ …मोच आ गइ”

“आ मेरे पास बैठ, . दिखा पैर…कहाँ पर आई….”

लौड़ा क्या मांगे….चूत.

मैं झट से उनके सामने बैठ गया. अब वो बैठी थी स्टूल पर और मैं ज़मीन पर. पास आते ही उनके गीले टी शर्ट मे से मम्मे और सॉफ सॉफ दिखने लगे. काकी के झुकने से मम्मे मस्ती से झूल रहे थे और उनके साथ ही मेरा बाबूराव भी झूम रहा था.

जैसे की मम्मे बीन और अपने बाबूराव सपोला

काकी ने अपने पैरों को फैलाया और झुकी. मैं तुरंत आगे आया की चलो दरवाजा खुला.

काकी का सर झुकना और मेरा आगे होना एक साथ हुआ और मेरा सर उनके कंधे से जा टकराया. काकी बोली, “ हाय राम….दिखता नही क्या…..मैं तो आँधी हूँ…तू तो आँख वाला है”

आबे अपनी आँखे कहा है क्या बोलू…

“पीछे सरक……ला तेरा पैर बता….”

मैने अपने पैर उठा कर काकी की नाज़ुक नरम हथेली पर रख दिया….इसकी माँ की आँख….. काकी की तो हथेली भी गद्देदार थी. जब काकी मेरे बाबूराव को अपनी मुठ्ठी मे लेकर मसलेगी…

“अरे….कहाँ खो गया रे…..”

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“हैं….ह…हन….हन…..क…क्या ….काकी…”

“अरे मैं पूछ रही हूँ कहाँ मोच आई, तलवे मे…..कहाँ….घुटने पर ?”

मैने बगैर सोचे समझे हाँ बोल दिया….काकी का गुदज हाथ मेरे पैरों पर फिसलता हुआ मेरे घुटनो पर आ गया. उन्होने मेरे घुटने की कटोरी टटोली और बोली,

“ मामूली सी मोच लगती है….ज़्यादा दर्द है क्या….?”

“न…न….नही….हल्का सा….”

“ला तेल लगा दूं………”

उन्होने स्टूल पर बैठे बैठे ही पीछे मूड कर तेल की बरनी टटोली.

वो सफेद टी शर्ट इन सब मे और उपर चड गया था और काकी का मांसल पेट और कमर पूरी नंगी मेरे सामने थी.

जिस औरत की मुँह दुनिया ने कभी पूरा नही देखा था मैं उसको ऐसे आधी नंगी हालत मे देख रहा था ये सोच सोच कर मेरे गोटों मे उबाल आने लगा. काकी की दोनो जाँघे तो अब जुड़ चुकी थी मगर मेरी नज़र उनकी घुमावदार कमर के कटाव पर थी.

काकी ने सरसो का तेल उठाया और थोड़ा सा हाथ मे ले कर आगे झुकी….आगे झुकने की लिए उनको फिर से अपनी टाँगें खोलनी पड़ी……

वो मारा पापड़ वाले को..

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लेगिंग थोड़ी सी और उधड़ गयी थी. ऐसा लग रा था की काकी की मुनिया ही लेगिंग को फाड़ कर बाहर आ गइ हो….लेगिंग का बचा हुआ हिस्सा काकी की मुनिया को चारो और से दबा रहा था और इस कारण उनकी मोटी गददर मुनिया और फूल कर पाव रोटी जैसी निखर आ रही थी.

अभी अगर मैं अपने बाबूराव को छू भी लेता तो वो अपने प्राण छोड़ देता…दे पिचकारी पे पिचकारी मारता की काकी को नहला देता.

काकी मेरे घुटने को रगड़ते हुए कुछ बोल र्ही थी….

“तेरे पैर तो बड़े तगड़े है छोरे….दौड़ लगाता है क्या……?”

अब क्या बोलू की मेरे कंजूस बाप ने बाइक तक नहीं दिलाई. चप्पल घिस घिस के ये तगड़ी हो गइ.

काकी ज़ोर लगा लगा कर मेरे घुटने को मसल रही थी …..वो तो भला हो की मैने चड्डी पह्न ली थी वरना कही काकी का हाथ थोड़ा उपर आ जाता तो….इतनी ही देर मे काकी के उकड़ू होकर ज़ोर लगाने से और तेल की चिकनाई से काकी का हाथ फिसला और काकी के हाथ सीधे मेरे बाबूराव तक ही आ गये….

“हाय राम……अरे मेरा हाथ ही फिसल गया…..”

काकी पीछे होकर उठी और स्टूल पर जा बैठी. उन्होने फिर से टाँगे चौड़ी की और अपने गले से पसीना पोंछने लगी….

शायद अंधी काकी की मुनिया की नज़रे बाबूराव पर पड़ गयी थी….काकी ने धीरे से अपनी मुनिया को खुजाना चाहा और नीचे हाथ ले गइ. जैसी उनका हाथ अपनी नंगी झांटों पर पड़ा उनका मुँह हैरत से गोल हो गया और वो अपनी फटी लेगिंग से झाँकी मुनिया को टटोलने लगी.

काकी ने तुरंत अपने टाँगे बंद कर ली.

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी ने कुछ लंबी साँसें ली और नॉर्मल होने की कोशिश करने लगी…

“य…….यह….कपड़े भी बहुत ही छोटे है ……पुराने भी है…..उधड़ उधड़ जा रहे है…..?”

अपुन ने मौके की नज़ाकत समझी और बोला, “ क…क….कहाँ से उधड़ा …..मुझे तो नहीं दिखा..”

काकी बोली “ अरे राम …मैं बोली उधड़ ना जाए….”

अपुन ने हिम्मत बटोरी और बोले “ अरे नही…..हो… काकी…..कुछ नहीं होगा….थोड़ा बहुत कुछ हो गया तो अपन लोग तो घर मे ही है ना…..आप के कपड़े सूखे तब तक भले पह्न के रख लो….”

“हाय राम…मुझे तो शरम आ र्ही है….बहुत तंग है ये….”

“न…न….नही……काकी……इसमे…क….क….क्या शरम…….”

“हाय राम तो क्या तेरी तरह नंगी घूमू घर मे बेसरम……..हैं…..लल्ला…….एक बात बता……तू……नंगा क्यू सोता है रे…..”

अपनी……फटफटी चल पड़ी

“क…क….क्या……काकी ?”

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“और नहीं तो क्या, सुबह मैं तेरी खाट के पास आई थी, तू नंगा ही पड़ा था….बेटा अब तू बड़ा हो गया है…..”, काकी समझाने के अंदाज़ से बोली.

“व् ….व् ….वो क्या है की काकी….मुझे…..तंग कपड़ो मे नींद नही आती और फिर इतनी गर्मी थी….इसलिए….म…म…मैं…..”

“हाय राम तो मैने तो तुझसे कहा ही था की अंदर मेरे कमरे मे सोया कर, कूलर है, पंखा है….मुझे तो रात को ठंड लगने लगती है…..”

अब मैं कैसे मना करता. मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है.

“सच बता लल्ला….यह कपड़े बहुत झीने है क्या…..?”

मैने सोचा की अगर हाँ बोला तो ये कहीं कुछ और ना पहन ले.

“न…न…नही…काकी….ऐसे तो झीना नही है….मगर आप बाहर मत जाना….इन कपड़ो मे….”

“लो बताओ…..मैं अंधी क्या करूँगी बाहर जा के…..हाँ मगर…..मंदिर मे पूजा थी…..वो भोलेनात जी के मंदिर मे आज अभिषेक था…..प्रसाद भी चड़ना था…..
चल मेरी साडी सुख जाएगी तो….”

“अरे म.म.म…..मैं चला जाता हूँ काकी….”

“हैं…..अरे…..हाँ यह हीक रहेगा. बेटा तू ही चला जा. आज धन्नो भी नहीं आएगी और मैं थोड़ा समान ठीक कर लूँगी….देख तो बेटा मेरा पेटीकोत सूखा की नही….यह मरा पाजामा तो बहुत ही तंग है….बैठा नही जा रहा…”

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बैठा तो क्या नही जा रहा. काकी की लेगिंग मे खिड़की खुली थी. इसीलिए काकी को लेगिंग बदलनी थी. अपुन गये और ईमानदारी से एक लोटा पानी काकी के सारे कपड़ो पे डाल दिया और चिल्लाया “ काकी…..कपड़े तो अभी भी भीगे हुए है..”

काकी ने ठंडी साँस ली और बोली, “ठीक है बेटा…..कपड़े थोड़े धूप मे कर दे….अब क्या करू…इन्ही कपड़ों मे मरना पड़ेगा….”

मैं जाके तुरंत काकी के सामने बैठ गया. काकी आटा लगा रही थी. धीरे धीरे उनके पैर फिर खुल गये और नज़ारा ए जन्नत अपने सामने.

तंग कपड़ो मे कसा हुआ काकी का बदन धीरे धीरे पसीने मे नहा गया. उनके गले से पसीने की एक धार उनके विशाल मम्मो के बीच की खाई मे उतर गयी और उनके मांसल पेट पर से होती हुई उनके लेगिंग के एलास्टिक को भिगोने लगी.

धीरे धीरे काकी का पूरा बदन पसीने मे नहा गया.

अब प्यारे तू मेरी हालत सोच.

मेरे से 3 हाथ की दूरी पर एक मांसल ग़ददर गुदाज़ बदन की मलिका पसीने मे नहाई अधनंगी बैठी थी और उसके खाना बनाने से उसके मम्मी कभी झूलते कभी तन जाते…कभी टाँगे चौड़ी होती…विशाल जांघों के बीच मे काले बालों में गुलाब सी काकी की मुनिया दिखती…..

बाबू…काकी को पता था उनकी लेगिंग उधड़ चुकी है, उनके कपड़े अर्धपारदर्शी है फिर भी वो बड़ी मस्ती से वहाँ बैठ खाना बना ने मे लगी थी. अब अपुन लल्लू हो मगर चूतिये तो नही है ना…

कुछ कदम बढ़ाना पड़ेगा प्यारे…

“क…..क…..काकी….” अपुन टर्राए.

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काकी आटा लगाते हुए बोली, “ हाँ लल्ला…..”

“आ…आ….आप का अकेले मन कैसे लगता है….”

काकी ने ठंडी साँस ली और बोली, “ बेटा अब किस्मत मे जो लिखा सो लिखा है……तेरे काका यूँह भी साल मे दो बार आते थे मगर ये घर भरा पूरा था इस लिए उनकी इतनी कमी नही खलती थी…..रूपा की देखभाल और घर खेत खलिहान मे ही दिन काट जाता था…..रात को ज़रूर उनकी बड़ी याद आती थी…..उनकी चिट्ठियें सीने से लगा की सोती थी बेटा…..”

“काका भी जल्दी चले गये…..काकी”

“हन बेटा….अभी उनकी उमर ही क्या थी…..45 पूरे ही हुए थे…”

“आप तो उनसे कितनी छोटी है काकी…..”

“हैं….बेटा…..मैं तो……अब मेरी उमर…देख जब रूपा हुई थी तो मैं थी 17 की……और रूपा हो गयी है 20 की तो देख ले मेरी उमर…..”

“काकी आ….आ….आप 17 साल की उमर मे ही मा बन गयी थी ?”

“हाँ तो बेटा……मेरी शादी तो कम उमर मे हो गयी थी….वो तो मांजी ने 2 साल मुझे इनसे अलग सुलाया नही तो ……”

“म….म….म…..मतलब काकी…..?”

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काकी के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान खेल गयी, “अरे लल्ला….इतना भी नही समझे हो क्या…..राम शहर के छोकरे..यूँ तो बड़ा ज्ञान बघरे है…..है पूरे निख्खटू ….”

भेनचोद काकी ने अपुन को निख्खटू बोल दिया अभी बताता हूँ की कैसी मैं नीलू चाची की दरार को सुरंग बना रहा हूँ…

काकी कुछ बोल रही थी…..

“ह..ह….हाँ काकी…..?”

“ अरे तू कहाँ खो गया……”

“नही….वो….म…म…मैं….”

“रूपा के होने के बाद बहुत कोशिश की एक बार और गोद भर जाए मगर रामजाने कुछ नहीं हुआ….बेटा तेरे काका को तो बच्चे बहुत पसंद थे…कहते थे….लल्ली…..देखना कबड्डी की टीम खड़ी करूँगा…..और मैं कहती जाओ जी….7 बच्चे मुझसे ना होंगे….इतना बोलती और वो मुझे……”

“क….क….क्या काकी….”

ठंडी साँस…”कुछ नही रे लल्ला…..जल्दी चले गये तेरे काका….इतनी उमर मे विधवा कर गये……पहनना ओढना सब धरा रह गया…..मुझे बहुत शौक था….मेहंदी महावर लगाने का….क्रीम पाउडर लगाने का………वो जब आते तो ओंठ लाली लाते थे और कहते लगा कर दिखा….मैं कहती क्या करना जी लगा कर अभी आप इसे मिटा …..”

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

काकी रुक गयी और काकी की साँसें थोड़ी सी भारी हो गयी…..अपुन समझ गये काकी को काका की याद आ रही है. और याद आ रही है काका का मूसल.

“क…काकी….आपको काका कश्मीर ले गये थे…ना….”

“हाँ रे बेटा….”

“क्या क्या देखा वहाँ पर…..”

“देखा….? अरे तेरे काका ने कमरे से निकालने दिया हो तब ना…..अरे राम….होटेल का पलंग ही तोड़ डाला था….” और खि खि कर हँसने लगी.

अगर काकी अपनी आइटम थी तो काका भी अपना था तो सख़्त लौंडा

पलंग तोड़ डाला.

“क्या बताऊ बेटा….मुझे तो छोड़ते ही नही थे…”

“उनकी पकड़ ऐसी थी की एक बार पकड़ लेते तो छूटना मुश्किल……कभी मेरे गाल पर चिकोटी काट लेते तो निशान तीन तीन दिन तक नही जाते थे…..उनके कारण मैं रोज़ सुबह देर से उठती और मांजी की डांट खाती….मगर उनको कोन समझाए…….”

काका को याद करते करते काकी धीरे धीरे गरम हो रही थी…..उनकी टांगे बार बार खुल बंद हो रही थी और कसम उड़ान छल्ले की मेरे को ऐसा लग रहा था की काकी की मुनिया पर कुछ गीला गीला सा दिखा……

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

इधर काकी की गाड़ी ने तो स्पीड पकड़ ली थी. “

“पूरे बदन पर चिकोटियां काट काट कर निशान कर देते थे….हाय इतनी शरम आती थी………मेरी सब सहेलियाँ खूब मज़ाक बनाती थी मेरा……और मैं कहती मर्द है……रात भर प्यार करेगा तो यह सब तो होगा निगोड़ियों………सब चुप कर जाती……किसी का मरद ऐसा नही था जो पलंग तोड़ प्यार करे……..मैं मुँह पर हाथ रख लेती तो भी मेरी आवाज़ें बाहर तक आती थी……मांजी ने तो मुझे कई बार डांटा भी…था……मगर….अब वोही सहेलियाँ अपने मरद की बातें करती है और मैं सुनती हूँ……कैसे किसी के मरद ने उसे शहर से इंग्लीश कपड़े ला के दिए और उसके पहनने के बाद…..उन्होने………….बेटा उनकी तो इतनी याद आती है, कभी कभी तो रात भर नही सोती..”

काकी की आवाज़ एकदम भर्रा गयी और उनकी आँखों से आँसू छलक आए. मैं तुरंत उठा और उनके आँसू पोंछ दिए और उन्हे चुप करने लगा.

काकी ने मेरे हाथ पकड़े और हटते हुए बोली, “ रहने दे बेटा…..रोने दे”

मैने काकी के हाथ पकड़ लिए और बोला, “न…न…न..नही काकी मैं आपको रोने नही दूँगा….”

काकी ने ज़ोर लगाया मगर अपुन भी इतने तो सींकिया पहलवान नही थे अपुन ने भी ज़ोर लगाया.

काकी छोटे से मुड़े पर बैठी थी और मैं उनके सामने घुटनों के बल खड़ा उनसे ज़ोर आज़माइश कर रहा था. अब था ऐसा की काकी के किससे सुन सुन कर और उनकी मुनिया को पनियया देख कर अपने बाबूराव ने भी खड़े होके सलाम दे रखा था….अपुन थे सिर्फ़ ढीले ढले चड्दे मे. बाबूराव पूरा टेंट बना के गुर्रा रहा था.

काकी ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मैने आगे झुक कर ज़ोर लगाया. काकी के पसीने से भीगे बदन से ऐसी खुश्बू आ रही थी की भेन चोद मेरा तो रोम रोम खड़ा हो गया. यह किसी सेंट की खुश्बू नही थी यह महक थी एक मादा की……जो गरमी में आयी हुयी है….वो खुशबु जो उसके पूरे बदन से उड़ उड़ कर आसपास के हर मर्द को बावला कर देती है.

गांड की फटफटी पार्ट 7 – chudai ki lambi kahani

मेरे नथुने गली की कुत्ते जैसे फड़कने लगे…बाबूराव तो एकदम तन्ना के पूरा सरिया हो गया,

इधर काकी ज़ोर लगाए जा रही थी की अचानक उनका बॅलेन्स बिगड़ा और वो मुड़े से फिसल कर पीछे की और गिर पड़ी . अब अपुन फुल ज़ोर लगा रहे थे और उनके दोनो हाथ पकड़ रखे थे, उनके पीछे गिरते है मेरा भी बॅलेन्स बिगड़ा और मैं उनके उपर ही आ गिरा.

अब सीन ऐसा की इधर काकी फर्श पर टाँगे चौड़ी किए गिरी हुई और उनके उपर अपुन.

अपना मुँह टी शर्ट मे फँसे उनके विशाल मॅमन पर……अपुन सिर्फ़ चड्डी पहने.

काकी चिल्लाई…..

“हाय राम……..उठ…….राम राम……छोकरे तूने….मुझे ही….”

एकदम से काकी चुप हो गयी……चड्डी मे तंबू बनाए अपना बाबूराव उनके पेट के निचले हिस्से पर गड़ रहा था. काकी खेली खाई औरत थी उनके ये समझने मे देर नही लगी की यह कड़क चीज़ क्या है.

काकी के बोबे तो नरम थे मगर उनके निप्पल फूल कर कुप्पा हो गये थे. अपना पूरा ध्यान उनके नरम मम्मो और कड़क निप्पल पे था और उनका ध्यान उनके पेट पर चुभ रहे मेरे सरिये पर….

काकी की साँसे तेज़ तेज़ चल रही थी और मेरी तो रेल के एंजिन जैसी चल रही थी. काकी अपना हाथ छुड़ा कर सीधे अपने पेट पर ले गयी और उनका हाथ सीधे मेरे सवा सात इंची लौड़े से जा टकराया.

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“हाय राम………” वो चिल्लाई….

उनकी उंगलियाँ धीरे से मेरे बाबूराव पर कस गयी और वो फिर से बोली मगर अबकी बार उनकी आवाज़ फुसफुसाते हुए निकली थी….

“हाय……..राम…….”
“हाय राम….” काकी का यह फुसफुसाहट वाला हाय राम बहुत सेक्सी था ईमान कसम मेरे रोए रोए मे करेंट दौड़ गया.

काकी की उँगलियाँ अभी भी पाजामा मे तंबू बनाए मेरे बाबूराव को पकड़े थी. उन्होने अचानक बाबूराव को भींच लिया और मेरे मुँह से सिसकारी निकल पड़ी.

काकी ने एकदम से झटका खाया और बोली, “ उठ……जा……..उठ……”

और फिर ज़ोर से चिल्लई, “ अरे हट परे….निगोड़े …उठ……”

मेरी तो फटफटी चल पड़ी भाई

मैं तुरंत बबुआ जैसे उठ खड़ा हुआ. काकी कुछ पल ज़मीन पर ही पड़ी रही और उनकी साँसे धोंकनी जैसी चल रही थी, चेहरा लाल भभूक हो गया था. उनकी टाँगे अभी भी खुली हुई थी और फटे लेगिंग मे से झांकता झांटों का जंगल मुझे मुँह छिड़ा रहा था. मेरी नज़रें अभी भी काकी के बदन पर ही चिपकी थी. कसी हुई लेगिंग और मम्मो पर चिपकी शर्ट मे काकी कामदेव की लुगाई लग रही थी.

अपुन की हालत गैस पर उबलते दूध के जैसी थी की बस अब उफना. बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोक रखा था इच्छा तो हो रही थी की भेन चोद मा चुदाए दुनिया काकी के कपड़े तार तार कर दूं मगर …..

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बस…..फटफटी

काकी ज़मीन पर लेटे लेटे बोली, “ ला….हाथ दे….”

मैने अपने हाथ आगे किया और काकी को उठाने लगा. काकी ज़ोर लगाकर उठी और झोंक झोंक मे मुझसे फिर टकरा गयी. बाबूराव फिर उनके जांघों पर रग़डी खा गया.

कसम उड़ान छल्ले की बाबू….चिंगारियाँ उड़ी चिंगारियाँ.

काकी ने लंबी लंबी साँसें ली और बोली, “ छोरे……तू…..क्या…….अरे राम….क्या बोलू………सुन…..यह सब…………ये…….. ठीक ना है…..तू आपे मे रह….”

और धीरे धीरे टटोलते हुए अपने कमरे मे चली गयी. अपुन को काटों तो खून नही. सारी ठरक उतार गयी भेन चोद .

मैने जैसे तैसे अपने आप को संभाला. मुझे भी लगा की यह तो चोद हो गयी यार….बिचारी अंधी …विधवा……मेरे बाप की काकी……मेरी दादी हुई रिश्ते मे……ये ग़लत है.

बुरा लगा यार.

फिर अपने अंदर का क्राइम मास्टर गोगो बोला की अगर ये सब ग़लत लगा तो काकी ने जो दो दो बार ग़लती से तेरा लौड़ा पकड़ा…..और वो खाट के नीचे जो माल ढोला उस पर काकी का हाथ लगा था क्या उनको नही पता की वो क्या था…..और जो सुबह सुबह फिर से लौड़े पर हाथ लगा दिया……अभी फिर लौड़ा पकड़ लिया….मसल दिया.

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बाबू….सीन तो है मगर इतना सीधा नही.

अब क्या करू समझ नही आ रहा था तभी किवाड़ बजा. मैं तुरंत चिल्लाया “ कौन….?”

“छोटे बाबू….हम है हरिया…”

“हाँ ….बोलो….क्या काम है…?”

“अरे बाबू वो मालकिन तो ले जाने आए है……महादेव मंदिर मे अभिषेक रखे है ना अपने तरफ से…मालकिन ने दक्षिणा डी है तो परसाद…..और दर्शन….”

मैं गया काकी के कमरे के बाहर….और आवाज़ लगाई, “ काकी…….वो हरिया आया है मंदिर जाने का पूछ रहा है….”

अंदर से काकी की घुटि घुटि आवाज़ आई,” तू चला जा…….”

काकी रो रही थी शायद. मा की चूत यार ये क्या हो गया.

मैने खिड़की से झाँका काकी औंधे मुँह बिस्तर पर पढ़ी थी और उनका पूरा बदन हिल रहा था.

रो ही रही थी. अरे यार एक मिनट…..उनका हाथ उनके शरीर के निचे था और…….अबे वो हिल क्यों रही थी इतनी ज़ोर ज़ोर से….

मैं कंफ्यूज टाइप बाहर आया और किवाड़ खोला. हरिया उल्लू जैसा मुँह बनाए खड़ा था.

“मालकिन को देर है क्या…..?”

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“ मालकिन की तबीयत ठीक नही है….वो नही आएगी…”

हरिया का मुँह लटक गया फिर एकदम खुश होकर बोला “ तो मलिक आप चलेंगे ……..चलिए खेत भी ले चलू…”

इसकी मा के भोस्डे मे घुस गया खेत…ये गांडू पागल है क्या…जब देखो खेत खेत.

मैने गुस्से से कहा, “ म….म….मंदिर चलो…..”

“जी भैया जी….”

मंदिर काफ़ी बड़ा और पुराना था. बढ़िया पूजा पाठ चल रहा था. हरिया ने पंडित जी से पूछा और बताया की अभी थोड़ा समय है पूजा ख़त्म होने मे. वो जाक्र 2-3 गाओं वालों के साथ बैठ गया जो सिला-लौड़ी पर कुछ हरा हरा पीस रहे थे.

मैने थोड़ी देर बैठा रहा. मारे गर्मी के गला सूखा जा रहा था. कुछ ही देर मे तो पसीने से भीग गया. मैने हरिया को आवाज़ लगाई और ठंडे पानी का पूछा.

“अरे छोटे भैया आप रुकिये तो सही…..ठंडाई बन जा रही है….गर्मी वर्मी सब गायब हो जाएगा…”

मैने पूछा, “ क्या….कैसी ठंडाई……?”

“ अरे छोटे भैया…..देखे नही सामने घोंट रहे है ना…..एकदम ठंडा ठंडा फ़ील करेंगे….”

वो चटपट एक ग्लास ले आया. ग्लास मे एक दो बर्फ के टुकड़े तैर रहे थे मैने थोड़ा सा सुड़का.

मस्त हरियाली छा गयी. ठंडी ठंडी ठंडाई मेरे गले को तर बतर करते करते नीचे उतरी. मानो जनम जनम की प्यास एक घूँट मे बुझ गयी. मैं सुड़क सुड़क कर पूरा ग्लास पी गया और हरिया से और माँगी.

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हरिया खि खि करके बोला, “ नही….भैया…..अब आप रहने दीजिए…..ये गांव का ठंडाई बहुत भारी होता है….”

मैं मन मसोस के बैठ गया. ठंडाई इतनी शानदार थी के पूरे बदन मे चंचलाई आ गयी. मैं हाथ पीछे टेक कर आराम से पैर फैला कर बैठ गया. थोड़ी देर मे ठंडी ठंडी हवा के झोंके आने लगे. आंखे भारी भारी से होने लगी.

मैं कब तक ऐसे बैठा रहा मुझे याद न्ही. मैने आसमान देखा तो ऐसा मस्त झक नीला ..जैसा मैने आज तक नही देखा…..मेरा गला फिर से सूखने लगा.मैने पानी पीया और इधर उधर देख कर मुस्कुराने लगा. अचानक से मेरा मूड अच्छा हो गया था. मंदिर से आते मंत्र पूजा की आवाज़ ऐसी मधुर लग रही थी. मैने सोचा यार आज तक ना कभी आसमान इतना नीला दिखा और ना ही पूजा पाठ इतना अच्छा लगा.

मैने हरिया को आवाज़ दी भेन चोद …मेरी आवाज़ मेरे ही कानों में गूंजने लगी. मैने चोंक कर इधर उधर देखा. हरिया सामने बैठा बैठा मुस्कुरा रहा था.

“हम न बोले थे बाबू…..सहर की ठंडाई से बहुत अलग है गांव का ठंडाई ..”

इस भेन के लौड़े ने मेरेको भांग पीला दी मादरचोद

थोड़ी ही देर मे तो अपुन झूमने लगे. हरिया ने सहारा दिया और मुझे घर ले जाने लगा.

जाने मैने हरिया को क्या कहा. वो हंसता जा रहा था और मुझे संभाले घर तक ले आया.

उसने किवाड़ खड़खदाया. कुछ देर बाद काकी की मीठी आवाज़ मेरे कानों मे पड़ी और अपना बाबूराव भन्न से खड़ा हो गया.

काकी ने कुछ देर बाद दरवाजा खोला. वो एक चादर को शॉल जैसे लपेटे थी. अपुन तो उसमे भी उनके मम्मों को देखे जा रहे थे. कसम उड़ान छल्ले की मेरे को तो उसमे से भी उनके निप्पल का शेप दिख रहा था.

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काकी बोली, “ क्या हुआ रे हरिया……छोटे बाबू कहाँ है ?”

“यहीं है मालकिन. वो मंदिर मे……ठंडाई पी लिया इन्होने……इतना सा दिए थे परसाद…..फिर भी चड गयी इनको….”

“आबे पूरा ग्लास दिया था ना तूने..” अपुन तुरंत उछले.

“हाय राम सत्यानाश हो…..अरे भंग पीला दी इसको…..अरे नासपीटे हरिया …..तेरी बुद्धि क्या घास चरने गयी थी……पूरा ग्लास…..हैं….अरे….बछिया के ताऊ अक्कल वक्कल कुछ है……कैसी बहका बहका बोल रहा है छोरा…….अरे राम……रे…मूरख……शहर के लोगों को ना पचे ये सब…..ला इसको अंदर ला…..
सुला इसको मेरी कमरे मे…..है भगवान……”

काकी फोकट ही लोड ले रही थी अपने को तो भोत मज़ा आ रहा था. बिना बात के हँसी आ रही थी वो अलग.

हरिया ने काकी के कमरे मे पलंग पर मुझे लिटा दिया. मैं तुरंत उठ बैठा और हरिया से कहा.

”यार…..थोड़ी ठंडई और पीना है….गला सुख रहा है…….क्या भाई…..थोड़ी….और..”

काकी हमारे पीछे पीछे कमरे तका आ गयी थी. वो चिल्लई

“अरे नासपीटे …..भाग यहाँ से…..बित्ते भर के छोकरे को भंग पीला लाया……रे…इसकी तबीयत खराब हो गयी तो कहाँ भागुंगी मैं रात मे……जा भाग यहाँ से…..”

हरिया माफी माँगता माँगता चला गया.

काकी फिर से अंदर आई.

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“ अरे राम…..छोरे….तू ठीक तो है……अरे घबराहट तो ना हो रही….?”

“अरे नही काकी…..कुछ नही……..मुझे तो बस प्या….यास लग रही रही है…..गला सुख रहा है”

बाबू नज़रें अपनी अभी भी थी काकी पे. काकी ने वो चादर तो रख दिया था साइड मे और अभी भी थी वहीच लेगिंग और टी शर्ट मे.

अगर पहले काकी माल लग रही थी तो अब तो भेन को चोदे छोड़े अप्सरा हो गयी थी.

काकी के पूरे बदन पे अपनी नज़र ही नही टिक पा रही थी…उपर से देखना शुरू करते नीचे तक…फिर वापस उपर से नीचे तक.

“गला सुख रहा है…रुक जा….मैं नींबू पानी बनती हूँ…..तेरी भंग भी उतार जाएगी…..”

“हो….ठीक है काकी….थोड़ा मीठा ज़्यादा बनाना…….”

“हैं……क्या करू…” काकी झल्लाई

“अरे……..खट्टा मीठा खाने की इच्छा हो रही है..” अपुन तो लौड़ा परवाह ना करे अब.

काकी एक पल ठिठकी फिर धीरे धीरे से टटोल कर बाहर चली गयी…..अपन ने अपने दोनो हाथ सर के पीछे रखे और लेट गये.

बड़ी मस्त चीज़ है भंग तो…..ऐसा हल्का हल्का लग रहा है.

मगर भोसड़ी की गर्मी बहुत लग रही है.

मैं उठा और कूलर पंखा सब फुल पर चला दिया. और फिर से हाथ सर के पीछे लगा कर लेट गया.

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बाबूराव अभी भी पाजामा मे तंबू बनाए खड़ा था. इस को अलग प्यास लगी है चूतिये को

जाने कितनी देर मे काकी आई और बोली, “ ले लल्ला……ये ले….पी ले….”

मैने बिस्तर पर लेते लेते ही कहाँ, “यहाँ ले आओ काकी…..”

काकी ग्लास लेकर आई और बिस्तर के पास खड़ी हो गयी और धीरे से हाथ आगे किया.

अपुन काकी के गद्दर बदन को बेशर्मी से देख रहे थे. गर्मी से काकी के कपड़े फिर पसीने से भीग गये थे और उनका पसीना और उसकी वो ही मदमाती खुसबु

अपुन से रहा नही गया और अपुन पाजामा के उपर से ही अपने सपोले को सहलाने लगे.

अब तुम सोचो……एक छोटा कमरा …..उसमे अपने जैसा ठरकी लौंडा ….वो भी फुलटू नशे मे……सामने उसके गद्दर कद्दावर 6 फुट की सेक्सी औरत…..वो भी तंग टी शर्ट और लेगिंग मे…..लेगिंग जो चूत के उपर से फटी हुई.

तो इसकी माँ को चोदे

अब क्या होगा.

भाई अपनी तो हालत राजा-नवाब वाली हो रही थी. मस्त बिस्तर पर हाथ पीछे टिकाए टाँगे फैलाए लौड़े को सहला रहे है और सामने काकी नींबू पानी का ग्लास लिए खड़ी है.

“ले..रे….लल्ला….”

मैने काकी के ग्लास लिया उनके हाथ पर हाथ फेरते हुए. भाई भांग ने अपने हॉंसले बुलंद कर दिए थे.

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काकी ने हाथ झटके से पीछे किया. फिर बोली.

“देख तो मीठी हो गयी……..3 चम्मच चीनी डाली है…..राम राम….ये भंगेड़ियों का तो बस…..हरिया की कल खबर लेती हूँ….तू छोरे तुझे समझ नही आया क्या…..जो गटका गया….”

“अरे वो मुझे प्यास…………लगी………थी………काकी……..यह बिस्तर घूम क्यो रहा है……?”

“हाय राम….अरे चक्कर आ रहे है क्या…..तू सो जा……..”

अपुन ने ग्लास ख़तम किया और पैर लंबे कर लिए…आँखें बंद की और इसकी मा को चोदे ….थोड़ा नाटक कर लिया पर भांग तो भांग हैं भैय्ये …..

आँखें बंद करते ही अबे तारे सितारे इंद्रधनुष सब दिख गये….गांड की फट फटी चल पड़ी ……कहीं सही मे तो नशा ज़्यादा न्ही हो गया……थोड़ा पानी ह पिया तो ठीक लगा….भोसड़ी का अब आँखें बंद नही करूँगा..

काकी तो बाहर चली गयी थी…..थोड़ी देर मे आई और बोली

“लल्ला….ठीक तो लग रहा है ना…. “

“हैं….हाँ….हाँ……अब…..ठीक……” ( थोड़ी चूतिया एक्टिंग ज़रूरी है)

“तू यहीं सो जा बिस्तर पर मैं नीचे दरी डाल कर सो जाती हूँ…….यहाँ तुझे गर्मी भी नही लगेगी….”

अपुन को जोश आया “अरे…..आप क्यू दरी पर सो जाओगी…..बिस्तर पर ही सो जाओ…..ऐसी कड़क फर्श पर कोई नींद आएगी क्या….?”

“ सो जाऊँगी रे बेटा……”

मैने कहाँ ये तो प्रोग्राम की मा भेन हो गयी.

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मैं लड़खड़ाती आवाज़ मे कहाँ, “तो फिर मैं भी नीचे सो जाऊँगा ..हाँ ..मैं भी…..”

काकी बोली, “ अरे राम…..नही नही बेटा….रुक….मैं बिस्तर पर ही सो जाऊँगी …….कहाँ है तू…..सरक थोड़ा ….सरक गया क्या….?”

मैं तो थोड़ा सा पीछे हुआ और बोला “हाँ आ जाओ काकी……”

काकी घूम कर बिस्तर को टटोलते हुए बैठ गयी.

कसम उड़ान छल्ले की…..बैठ के उनकी गांड तो गोदाम हो गयी……सफेद लेगिंग मे कसे उनके चूतड़ ऐसे लग रहे थे मानो 2 तरबूज़ टिके हो….

बे मेरे तो रोए रोए मे से पसीना निकालने लगा.

काकी अपनी गांड को उपर नीचे करते करते पीछे हुई आहा क्या सीन था…

तभी काकी बोली, “ रे….बत्ती बुझी है या जल रही है….?”

“बुझी हुई है ना काकी….कितना अंधेरा है यहाँ…..” अपुन तुरंत झुत बोल दिए.

काकी थोड़ा और पीछे हुई और उनके चूतड़ मेरे पैरों से आ लगे…

“रे….छोरे…थोड़ा और उधर हो….”

“कहाँ……यहाँ तो दीवार है…..”

“अरे राम….भंग ना उतरी तेरी…….छोरे……सरक….”

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“कहा सरकू…….”

काकी ने माथा पीटा और बोली, “ हो….जो मर्ज़ी हो कर….”

वो तो मैं करूँगा….

काकी लेट गयी और मैं उनके बगल मे. उनके बदन से वोही खुश्बू फिर मेरे नथुनों मे जाने लगी….लौड़ा तो अपने पहले ही तन्नाया था अब तनटना गया.

अब क्या ?

भेनचोद…..फटफटी……चल……पड़ी.

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