साजन का अधूरा प्यार – Sister Hindi Sex Kahani

Sajaan Ka Aadhura Pyar – Sister Hindi Sex Kahani

साजन का अधूरा प्यार – Sister Hindi Sex Kahani

यह बात उस समय की है जब मैं 18 साल का था, हमारे पड़ोस में एक नये किरायेदार आये, उनके परिवार में एक अम्मा जिसकी उम्र 60 से 65 साल की होगी और उनके तीन बेटे और एक लड़की थी। उनके एक लड़के की शादी हो गई थी और वो दूसरी जगह रहता था, वो कभी कभार ही आता था। हमारे घर के पास होने की वजह से मैं भी उनके घर चला जाता था, अम्मा कुछ काम बताती तो मैं कर दिया करता था।

एक दिन अम्मा की पोती उनके घर रहने के लिए आई कुछ दिन के लिए, मैं अम्मा के घर जाता रहता था तो मेरी उससे मुलाकात हो गई, वो दिखने में साधारण सी थी, रंग भी सांवला ही था, कद भी कोई 5 फ़ीट था, उसका नाम सुधा था, मुझे वो लड़की कुछ ख़ास नहीं लगी।

मेरे ऐसे ही दिन कट रहे थे पर हम दोनों अब दोस्त बन चुके थे तो सुधा और मैं दोनों ही लूडो खेला करते थे शाम के समय। मैं अक्सर सुधा से हार ही जाता था क्योंकि मुझे लूडो ज्यादा खेलना नहीं आता था।

एक दिन शाम को हम लूडो खेल रहे थे तो पता नहीं सुधा में मुझे ऐसा क्या लगा कि मैं उसकी तरफ खिंचता चला गया, पर मेरे इस बदलाव का उसको जरा भी पता नहीं चला। हम खेलते रहे और मैं वो बाजी भी हार गया और साथ ही अपना दिल भी, पता नहीं मुझे उसमे ऐसा क्या लगा कि मैं उस पर फ़िदा हो गया।

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मैंने उस दिन सुधा को गौर से देखा, क्या मस्त लग रही थी, उसके वक्ष का नाप 26 होगा, बिल्कुल कच्ची कली ! सुधा से कुछ भी कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई कि सुधा मैं तुमसे प्यार करता हूँ।, ऐसे ही कुछ दिन निकल गए पर मैं उसको कुछ भी न कह सका।

मैं रोजाना उसके घर जाता पर सुधा से कहने की हिम्मत नहीं होती। मैं रोज़ना यही सोच कर जाता कि आज तो मैं कह ही दूँगा, पर उसके सामने पहुँचते ही बुत बन जाता था।

अम्मा रोजाना सुबह 10 से 12 बजे और शाम को 4 से 6 बजे तक बाहर काम करने जाती थी। सुधा के दोनों चाचा और बुआ भी जॉब करते थे, मेरे पास दिन में 4 घंटे होते थे, दो घंटे सुबह, दो घंटे शाम को, जब मैं सुधा से अकेले में मिल सकता था और अपनी बात कह सकता था, पर मुझे पूरे 6 दिन हो गए थे मैं सुधा से कुछ नहीं कह पाया।

मुझे याद है, वो शनिवार का दिन था, मैंने अपने हाथ पर ‘आई लव यू’ लिखा और मन में ठान लिया था कि आज तो मैं सुधा को बोल ही दूँगा चाहे कुछ भी हो जाये।

जैसे ही सुबह के 10 बजे तो मैं अपने घर के बाहर आकर बैठ गया और जैसे ही अम्मा घर से बाहर निकली, मैं उसके घर पहुँच गया। सब जा चुके थे, उस समय वो घर पर अकेली थी। वो बर्तन साफ़ कर रही थी तो मैंने सुधा को बोला- सुधा, मैं तुमको कुछ दिखाने आया हूँ !

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और मैंने अपना हाथ उसके सामने कर दिया जिस पर मैंने लिखा हुआ था।

सुधा ने उसको देखने की जरा सी भी कोशिश भी नहीं की, शायद उसको पता होगा कि मेरे दिल में क्या चल रहा है। तो उसने नहीं देखा। जब सुधा ने नहीं देखा और वो बर्तन साफ़ ही करती रही तो मैंने उसका हाथ पकड़ा और उससे बोल- एक बार देख तो लो !

पहले तो सुधा ने मेरी तरफ देखा, फिर मेरे हाथ की तरफ देखा और पढ़ कर बोली- अब देख लिया न, अब मेरा हाथ छोड़ो !

मैंने कहा- पहले इसका जवाब तो दो !

पहले तो उसने मना कर दिया- मुझे नहीं देना जवाब !

जब मैंने उसको काफी जोर देकर बोला तो उसने कहा- ठीक है ! मैं शाम हो जवाब दे दूँगी, तुम अभी जाओ मुझे काम करने दो।

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मुझे लगा कि इसकी तरफ से भी हाँ है तभी तो शाम को जवाब देने के लिए बोल रही है।

मैं बहुत खुश हुआ और उसको 4:30 बजे आने के लिए बोल कर मैं अपने घर वापस आ गया।

उस दिन मैं बहुत खुश था कि अब सुधा भी हाँ बोल ही देगी। मैं बड़ी ही बेसब्री से शाम होने का इंतजार कर रहा था, एक–एक मिनट भी मुझे घंटों के समान लग रहा था।

जैसे ही 4:30 बजे, मैं उसके घर पहुँच गया। वो बेड पर लेटी हुई थी, मैं भी उसके पास जाकर बैठ गया और उससे पूछा- क्या जवाब है? तो पहले तो उसने कहा- बता दूँ?

मैंने कहा- हाँ बता दो !

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मैं तो खुश हो रहा था कि जिस तरह से यह बात कर रही है, पक्का हाँ ही बोलेगी, मैं उसके बोलने का इंतजार कर रहा था पर जब वो बोली तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ, उसने साफ़ साफ़ बोला- ‘नहीं’ मेरे दिल में ऐसी कोई बात आपके के लिए नहीं है।

उस वक्त मेरे दिल पर क्या बीती, वो मुझे ही पता है, मैंने सुधा को कहा- मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, अगर आज तूने हाँ नहीं की तो मैं कुछ कर बैठूँगा।

इस पर सुधा बोली- सब लड़के ऐसा ही कहते हैं।

मैंने कहा- जो मैं कह रहा हूँ, वो मैं करके दिखाऊँगा।

इतना कह कर मैं उसके घर से निकल आया और एक पार्क में जा पहुँचा। सुधा को मैं जोश जोश में कह तो आया पर अब करूँगा क्या मैं, मैं सुधा को वास्तव में ही चाहने लगा था और अपने प्यार को सिद्ध करने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ, पर क्या करूँ यही मेरी समझ में नहीं आ रहा था।

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तभी अचानक मेरी नजर एक पत्थर पर पड़ी और मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसको उठा कर अपने बायें पैर पर दे मारा, इसी के साथ मेरे मुँह से चीख आईईईईईईइऊऊ निकल गई। मेरे पैर में से खून निकल रहा था और दर्द के मारे जान ही निकली जा रही थी। फिर मैंने अपने आपको किसी तरह संभाला और डाक्टर के पास गया और अपने पैर में पट्टी करा के लंगड़ाते हुए घर पहुँचा।

मेरी मम्मी बाहर ही बैठी थी, मुझे देख कर बोली- यह क्या हो गया तुझे? अभी तो सही सलामत घर से गया था।

मैंने मम्मी को बोला- कुछ नहीं, किसी काम से बाहर गया था, बस से उतरते वक्त लग गई !

मम्मी ने मुझे सहारा देकर घर में लाकर बेड पर लिटा दिया, इतनी ही देर में हमारी पूरी गली को यह पता चल चुका था कि साजन का एक्सीडेंट हो गया है, सभी लोग मुझे देखने आये, सुधा के घर से सभी लोग मुझे देखने आये पर सुधा ही नहीं आई मुझे देखने !

मुझे बहुत दु:ख हुआ, जिसके लिए मैंने ये सब किया वो ही मुझे देखने नहीं आई।

मैं पूरी रात में दर्द से तड़पता रहा और सुधा को याद करता रहा, सारी रात मैं सो भी नहीं सका।

अगले दिन मेरा पैर बहुत ही ज्यादा सूज गया था, अब तो मुझे पैर भी हिलाने से मुझे दर्द होता था, अगर मुझे सुसु भी आती तो मुझे किसी न किसी का इंतजार करना पड़ता कि वो मुझे लेकर बाथरूम तक छोड़ दे।

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इसी तरह दस दिन निकल गए, इन दस दिनों में सुधा मुझे एक भी दिन मुझे देखने नहीं आई, पर उसकी याद मुझे पल पल आती रही, अब मेरा पैर कुछ हद तक सही हो गया था, अब मैं चलने भी लगा था बिना सहारे के।

जिधर सुधा रहती थी, ठीक उसी के सामने सुनीता दीदी रहती थी, मैं उनके घर के बाहर सीढ़ियों पर बैठ जाता था, मैं न तो किसी से बात करता था बस चुपचाप बैठा रहता।

दीदी ने मुझसे पूछा भी- क्या बात है? तू क्यों इतना उदास रहने लगा है? अगर कोई बात है तो मुझे बता !

पर मैं अपने दिल की बात जिसको बताना चाहता हूँ, वो सुनती ही नहीं और जिसको मैं बताना नहीं चाहता वो मुझसे पूछते रहते हैं।

मैंने कहा- कोई बात नहीं है दीदी, आप बेकार ही परेशान हो रही हो !

पर दीदी को मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ।

मैं इतना कह कर अपने घर चला गया। कुछ देर बाद मेरा भाई सुनीता दीदी से बात कर रहा था और मैं उनको खिड़की से देख रहा था।

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मुझे यह तो आभास हो गया कि वो मेरे ही बारे में बात कर रहे हैं पर यह पता नहीं चल पाया कि क्या बात कर रहे हैं।

कुछ देर बाद मेरा भाई आया जो मुझसे बड़ा है पर ज्यादा नहीं, बस दो साल ही बड़ा है, और हम दोनों आपस में हर टोपिक पर बात कर लेते हैं। मैंने भाई से पूछा- क्या बात कर रहे थे?

तो भाई ने बताया- वो तेरे बारे में ही मुझसे पूछ रही थी कि क्या हुआ है साजन को जो इतना उदास रहने लगा है। जब मुझे कुछ पता ही नहीं था तो क्या बताता उसको ! वो कह रही थी अगर कोई लड़की का चक्कर है तो शायद मैं उसकी कुछ मदद कर दूँ।

इतना कह कर वो अपने काम से बाहर चला गया और मैं कुछ देर बाद ही फिर दीदी के पास जा पहुँचा, वो मुझसे बात करने लगी।

मैंने बातों बातों में पूछा- आप भाई से क्या कह रही थी?

दीदी बोली- कुछ नहीं कहा मैंने !

“आप झूठ बोल रही हो ! आपने यह नहीं कहा था कि अगर मेरा किसी लड़की से कोई चक्कर है तो आप मदद कर दोगी?”

दीदी बोली- पर तुझे यह सब कैसे पता? तू तो उस टाइम यहाँ पर नहीं था।

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मैंने दीदी को बोला- जब आप और भाई बात कर रहे थे तो मैं खिड़की में से आपको देख रहा था, आपको शायद पता नहीं कि मैं होंठों की भाषा पढ़ सकता हूँ, जब आप बात कर रहे थे तो में आपके होंठ पढ़ रहा था, इसलिए मुझे पता है कि आप क्या बात कर रही थी। बोलो न दीदी मेरी मदद करोगी?

तो दीदी बोली- ये बात है ! कौन है वो लड़की?

“दीदी, वो सुधा है !” और फिर मैंने दीदी को अब तक की सारी बात बता दी।

दीदी ने बोला- बात करके देखती हूँ, शायद मेरी बात मान जाये।

मैंने कहा- दीदी, आज ही बात कर लेना !

तो दीदी बोली- बहुत उतावला हो रहा है सुधा के लिए?

तब मैं क्या बोलता, मैं नजर नीचे करके चुप हो गया, मेरी तरफ हंसकर देखते हुई बोली- ठीक है, मैं आज ही उससे बात कर लूँगी, तू उदास मत हो, अब तू आराम कर, मैं तुझे बता दूँगी।

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दीदी की बात सुनकर मुझे कुछ राहत मिली और मैं अपने घर में वापस आकर लेट गया, जाने कब मुझे नींद आ गई, पता नहीं चला शायद दवाई का असर था जो मैं अब तक ले रहा था।

जब मेरी आँख खुली तो शाम के 6 बज चुके थे, मैं जल्दी से उठा और दीदी के पास जाने के लिए तैयार होने लगा, मैं तैयार होकर दीदी के घर जा पहुँचा, पर वहाँ तो दीदी के घर का दरवाजा ही बंद था पर बाहर से नहीं, मैंने हल्का सा अन्दर को धक्का दिया तो वो थोड़ा सा खुल गया।

मैंने खुले हुए दरवाजे में से अन्दर देखा तो अन्दर मुझे कोई भी नजर नहीं आया, शायद दीदी अन्दर वाले कमरे में थी, पर एक बात मुझे अजीब सी लगी कि बाहर वाले दरवाजे के साथ ही एक पानी का जग रखा था उलटा करके और उसके ऊपर एक गिलास रखा था, अगर मैं दरवाजे को हल्का सा भी और खोलता, तो जग और गिलास दोनों गिर जाते, वो स्टील के थे तो आवाज भी होनी ही थी। इसलिए मैंने दरवाजे में अपना एक हाथ अन्दर डाल कर जग और गिलास को धीरे से बिना आवाज किये एक तरफ कर दिया और दरवाजा खोल कर अन्दर जा पहुँचा।

बाहर वाला कमरा खाली था, उसमें कोई नहीं था पर अन्दर वाले कमरे में कुछ धीमी आवाज आ रही थी।

मैं चुपचाप बिना आवाज किये दूसरे कमरे तक पहुँच गया पर उस कमरे का दरवाजा भी अन्दर से बंद था, दरवाजे के साथ ही एक खिड़की थी पर वो भी अन्दर से बंद थी। मैंने उस खिड़की को खोलने की कोशिश की तो वो आसानी से खुल गई, खिड़की बस इतनी ही खुल पाई थी कि मैं अन्दर देख सकूँ।

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खिड़की खुलते ही जो मैंने देखा तो मैं देखता ही रह गया, मेरी आँखें फटी की फटी रह गई, अन्दर सुनीता दीदी पलंग पर आँखें बंद करके नंगी लेटी हुई थी।

क्या मस्त नजारा था ! मैंने दीदी को आज से पहले कभी नंगा नहीं देखा था, सुनीता दीदी की चूची 30 से 32 की होंगी भरी हुई चूचियों को देख कर मुझे भी कुछ कुछ होने लगा था और उन्हीं के पड़ोस का एक लड़का जिसका नाम रवि था, वो भी पूरा नंगा था और वो सुनीता दीदी की जांघों में घुसा हुआ था, सुनीता दीदी बार बार अपने होंठों पर जीभ फिरा रही थी।

कुछ देर बाद रवि ने सुनीता दीदी की जांघों से अपना चेहरा बाहर निकाला, मैं यह सब खड़ा होकर खिड़की से देख रहा था, मैंने खिड़की उतनी ही खोली थी कि मुझे सब आसानी से दिखाई दे जाये।

रवि की पीठ मेरे सामने थी इसलिए मुझे सुनीता दीदी की चूत नजर नहीं आ रही थी। फिर रवि सुनीता दीदी के चेहरे के ऊपर घुटनों के बल बैठ गया, जैसे ही रवि ने अपनी पोजीशन बदली तो मुझे सुनीता दीदी की चूत और रवि का लंड साफ़ साफ़ दिखाई दिया, सुनीता दीदी की चूत रवि के थूक से गीली हो कर और भी मस्त लग रही थी, चूत से कुछ पानी भी रिस रहा था, बहुत ही मनमोहक लग रही थी, सुनीता की चूत ऊपर से फूली हुई थी, रवि का लंड करीब सात इंच का होगा, शायद खड़ा हुआ लंड ऐसा ही लगता है।

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मैंने सेक्सी मूवी देखी थी पर आज तो मैं यह सब सच में देख रहा था, मुझे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। रवि ने अपना सात इंच लंड सुनीता दीदी के होठों पर जैसे ही रखा तो उन्होंने अपने होंठ खोल कर लंड का सुपारा मुँह में ले लिया।

फिर सुनीता दीदी रवि का लंड चूस रही थी पच्च पुच्च पच्च की आवाज कमरे में गूंज रही थी।

ये सब देख कर मेरा तो बुरा हाल हुआ जा रहा था, मेरा लंड भी पैन्ट के अन्दर खड़ा हो गया था तो मैंने अपना लंड पैन्ट से बाहर निकाला, अपने ही हाथ से मसलने लगा और अपनी आँख खिड़की से लगा कर देखने लगा।

अन्दर रवि ने सुनीता दीदी को कुछ इशारे से कहा तो दीदी तुरंत उठी और घोड़ी बन गई। रवि ने एक हाथ से अपना लंड पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से दीदी की चूत की पत्तियों को अलग कर रहा था। फिर रवि ने अपना लंड दीदी की चूत पर रखकर दोनों हाथों से दीदी की कमर को पकड़कर एक जोरदार धक्का मारा।

“ऊऊऊईईईईइमा !” दीदी के मुँह से हल्की सी चीख निकल गई, रवि के ऊपर उन चीखों का कुछ भी असर नहीं हुआ था शायद, तभी तो उसने दूसरा धक्का भी मार दिया।

“आआअऊऊऊओयीईईए !” फिर से दीदी की चीख निकल गई।

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मुझे ये सब देख कर मज़ा आ रहा था और मन तो कर रहा था कि रवि को हटा कर दीदी की चूत में अपना लंड डाल दूँ पर नहीं कर सकता था, मैं अपने लंड को अपने हाथ से हिलाने लगा। अन्दर रवि दीदी की चूत पर अपने लंड का प्रहार निरंतर रूप से किये जा रहा था और दीदी भी अपनी गांड आगे पीछे कर हिला कर के चुदाई के मजे ले रही थी।

दीदी के मुँह से सेक्सी आवाजें निकल रही थी। अचानक दीदी ने रवि को बोला- जरा जोर–जोर से करो, लगता है मेरा होने वाला है !

तो रवि में अपनी स्पीड बढ़ा दी, अब तो रवि का लंड जिस गति से बाहर आ रहा था उसी गति से अन्दर भी जा रहा रहा था। मैं तो कमरे के बाहर खड़ा था पर मुझे चुदाई का मधुर संगीत बाहर महसूस कर रहा था। मेरे भी हाथ की गति भी तेज हो गई थी, मेरे लंड का सुपारा और भी मोटा हो गया था।

तभी अन्दर से दीदी की आवाज मेरे कानो में पड़ी- वि.. .अम्म्म.. म्म्म्ह.. आआ आआआ.. आआअऊऊ..ऊऊऊओयीईई.. मेरा हो रहा है !

और फिर दीदी ने अपने चूतड़ हिलाने बंद कर दिए पर रवि अभी भी निरंतर अपने लंड से दीदी की चूत चोदे जा रहा था और इधर मेरे लंड से भी माल निकलने वाला था तो मैं भी अपने लंड को जोर–जोर से हिलाने लगा।

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तभी अन्दर से दीदी की आवाज मेरे कानों में पड़ी- वि.. .अम्म्म.. म्म्म्ह.. आआ आआआ.. आआअऊऊ..ऊऊऊओयीईई.. मेरा हो रहा है !

और फिर दीदी ने अपने चूतड़ हिलाने बंद कर दिए पर रवि अभी भी निरंतर अपने लंड से दीदी की चूत चोदे जा रहा था और इधर मेरे लंड से भी माल निकलने वाला था तो मैं भी अपने लंड को जोर–जोर से हिलाने लगा।

अन्दर दीदी की चूत ने अपना पानी छोड़ा और इधर मेरे लंड से मेरा पानी निकल कर दीवार पर जा गिरा, मेरा लंड अब शांत हो गया था तो मैं अपने लंड को साफ़ कर रहा था।

तभी अन्दर से रवि की आवाज आई, वो दीदी से कह रहा था- तेरा तो हो गया, पर मेरा अभी नहीं हुआ !

तो दीदी ने कहा- मैं बहुत थक गई हूँ, तुम मेरे पास आओ, मैं तुम्हारा लंड चूस कर तुम्हारा पानी निकाल देती हूँ।

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इतना कह कर दीदी पलंग पर सीधी लेट गई और रवि को अपने पास बुलाने लगी। तभी दीदी की नजर खिड़की पर पड़ गई और उन्होंने मुझे देख लिया। जब मुझे इस बात का आभास हुआ तो मैंने फटाफट अपनी पैन्ट को सही किया और जैसे मैं घर में अन्दर आया था, वैसे ही घर से बाहर निकल गया।

पर एक बात मुझे समझ नहीं आ रही थी कि दीदी ने न तो रवि से ही कुछ कहा कि मैंने उन्हें देख लिया है और न ही मुझे रोकने की कोशिश की।

मैं अपने घर में आया और समय देखा तो रात के आठ बज चुके थे, मैंने खाना खाया और कुछ देर बाहर घूमने चला गया। करीब एक घंटे बाद मैं घर पर वापस आया, फिर मैं आराम से बेड पर आकर लेट गया, मेरी आँखों के सामने अभी भी वही सब घूम रहा था, सोचते सोचते कब मुझे नींद आ गई मुझे पता भी नहीं चला।

मेरी आँख सुबह के 8:30 बजे खुली, मैं नहा धोकर नाश्ता कर मैं पढ़ने के लिए बैठ गया। करीब एक घंटे बाद मुझे सुनीता दीदी की आवाज आई, वो मेरी मम्मी से कह रही थी- आंटी जी, साजन कहाँ है? मुझे कुछ काम है, उसको मेरे घर भेज दो।

मम्मी ने मुझे आवाज देकर बुलाया और कहा- सुनीता बुला रही है तुझे !

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तो मैंने कहा- जी, मैं चला जाऊँगा, अभी मैं काम कर रहा हूँ, बाद में चला जाऊँगा।

मम्मी ने मुझे डांटते हुए कहा- जा पहले पूछ कर आ, पता नहीं क्या काम है, वो कल शाम से अकेली है।

मैंने पूछा- कहाँ गए सब दीदी को अकेला छोड़ कर?

तो मम्मी बोली- उनके किसी रिश्तेदार की मौत हो गई है, सभी वहीं गए हैं, अब तू जल्दी से जा !

इतना कह कर मम्मी ने मुझे जबरदस्ती सुनीता दीदी के घर भेज दिया।

मैं बेमन से दीदी के घर जा रहा था क्योंकि मुझे पता है कि वो कल वाली बात के लिए मुझे कहेगी, मेरी तो गांड फट रही थी पर कर भी क्या सकता था, मैं सुनीता दीदी के घर पहुँच गया।

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दीदी के घर का दरवाजा आज भी बंद था तो मैंने सोचा कि कल वाली गलती नहीं दोहराऊँगा इसलिए मैंने दरवाजे को खटखटाया- ठक–ठक !

दीदी की अन्दर से आवाज आई- दरवाजा खुला है, अन्दर आ जाओ !

मैं घर के अन्दर पहुंचा तो देखा कि दीदी टीवी देख रही थी और घर में दीदी के अलावा और कोई नहीं था। मैंने डरते हुए दीदी को बोला- दीदी, आपने मुझे बुलाया था?

जैसे ही दीदी ने मुझे देखा तो डर के मारे मैंने अपनी निग़ाह नीचे कर ली। दीदी बोली- बैठ जा !

मैंने कहा- ठीक है दीदी, आप बताओ क्या काम है?

वो उठी और मेरा हाथ पकड़ कर बेड पर बैठाती हुए बोली- पहले बैठ जा !

और मुझे बेड पर बिठा कर मेरे साथ मुझसे सट कर बैठ गई और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर बोली- एक बात बता, कल जो तूने यहाँ देखा था, वो किसी को बताया तो नहीं? सच सच बताना !

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मैंने कहा- नहीं दीदी, मैंने किसी को नहीं बताया, मैं सच बोल रहा हूँ !

मैं डरते हुए बोला।

दीदी ने अपना एक हाथ मेरी जांघ पर रखते हुए कहा- तूने सही किया जो किसी को नहीं बताया और किसी को बताना भी नहीं ! पता है अगर किसी को इस बारे में पता चल गया तो मेरी बहुत बदनामी होगी क्या तू ये चाहेगा कि मेरी बदनामी हो?

और इतना कहते कहते दीदी ने अपना हाथ मेरे लंड पर रख दिया।

पहले तो मेरी गांड फट रही थी पर अब जो हो रहा था उससे मेरे तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है, अब मेरे मन से दीदी का डर निकल चुका था, मुझे चुप देखकर दीदी ने अपने हाथ से मेरी पैन्ट की चेन खोल दी, पैन्ट के अन्दर अपना हाथ घुसा दिया और मेरे अंडरवियर से मेरा लंड बाहर निकलने लगी। मैं तब भी चुप रहा मुझे तो अब मज़ा ही आ रहा था। जैसे ही दीदी ने मेरे लंड को छुआ तो मेरे लंड में हलचल होने लगी और वो अपना सर उठाने लगा। मैं चुपचाप दीदी को बिना कुछ बोले देखे जा रहा था, दीदी ने मेरा लंड अंडरवियर से और पैन्ट से बाहर निकाल दिया। अब तक मेरा लंड पूरा खड़ा हो चुका था, जैसे ही दीदी ने लंड को देखा तो उसके मुँह से निकला- वाह, क्या बात है, तू तो पूरा जवान हो गया है, क्या मस्त लंड है तेरा !

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इतना कह कर दीदी अपने हाथ मेरे लंड को मसलने लगी, मेरा लंड मसलते हुए दीदी ने मेरी आँखों में झांकते हुए फिर कहा- तू अभी रुक, मैं अभी आई !

और दीदी कमरे से बाहर निकल गई, मुझे दीदी की आँखों में एक अजीब सी चमक लग रही थी।

दो मिनट बाद ही वापस आ गई, आते ही दीदी ने कहा- बाहर का दरवाजा खुला हुआ था, उसको बंद करके आई हूँ !

और इतना कह कर बेड पर न बैठ कर नीचे जमीं पर बैठ गई, मेरे पैरों के बीच में !

दीदी मेरी पैन्ट खोलने लगी, पहले मेरी पैन्ट उतारी फिर अंडरवियर उतार दिया। मैं चुप रहा और देखता रहा कि और क्या करेगी।

उसके बाद दीदी ने मेरे लंड को अपने कोमल हाथ में लिया और मेरे लंड हिलाते हुए बोली- तूने मुझे बताया नहीं क्या तू यह चाहेगा कि मैं बदनाम हो जाऊँ?

मुझे बहुत मज़ा आ रहा था उस वक़्त, मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं किसी को नहीं बताऊँगा !

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दीदी बोली- शाबाश, इसके लिए तो तुझे कुछ इनाम मिलना चाहिए !

और इतना कह कर दीदी ने मेरे लंड के ऊपर की खाल नीचे कर के मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया और उसको चूसने लगी। उस वक़्त मुझे नशा सा होने लगा, ऐसा नशा जो पहले कभी नहीं हुआ था, मैं आकाश में सैर कर रहा था, मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं ब्यान नहीं कर सकता।

मैं अपनी आँखें बंद किये हुए था और दीदी मेरा लंड चूस रही थी। तभी उन्होंने मेरा लंड अपने मुँह से बाहर निकाला तो मुझे लगा पता नहीं अब क्या हुआ।

दीदी बोली- एक बात तो बता कि कल तू आया क्यों था? क्या काम था तुझ को?

मुझे अजीब सा लगा, दीदी मेरा लंड चूसना बंद कर यह सवाल पूछने लगी, मैंने दीदी को बोला- मैं आपको बाद में बता दूँगा, अभी आप जो कर रही हो, उसे करते रहो, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।

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इस पर दीदी ने मेरे लंड को जोर से पकड़ के मसल दिया और बोली- ठीक है, मैं तेरे लंड को चूस रही हूँ और तू मुझे बताता जा ! अब ठीक है?

इतना कह कर दीदी फिर से मेरा लंड चूसने लगी और इशारे से बोली- बता?

मैं बोला- दीदी आपने सुधा से पूछा कि वो क्यों मना कर रही है?

इतना सुनते ही दीदी ने हल्के से में लंड पर अपने दांत से काटते हुए अपने मुँह से म्रेरा लंड निकलते हुए बोलने लगी, मेरे मुँह से हल्की सी चीख निकल गई- आईईइ ! क्या करती हो दीदी? दर्द होता है !

तो दीदी बोली- हाँ, मैंने बात की थी पर वो कहती है कि दीदी, सब लड़के ऐसे ही होते हैं और अपना मतलब निकाल कर फिर वो बात तक नहीं करते। और फिर मैं उनके घर के लायक भी नहीं हूँ। उनका अपना घर है और हम किराये पर रहते हैं। फिर पता नहीं कि उनके घर वाले मुझे अपनाये भी या नहीं !

इतना कह कर दीदी चुप हो गई और मेरी तरफ़ ऐसे देख रही थी जैसे मुझसे मेरा जवाब मांग रही हों। और फिर वो मेरे लंड से खेलने लगी।

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“दीदी, मैं ऐसा नहीं हूँ ! मैं अपने घर वालों को राजी कर लूँगा, पर आप उसको बोल दो कि मैं उसको सच्चा प्यार करता हूँ, उसके बिना नहीं जी पाऊँगा मैं !

मेरी यह बात सुनकर कर दीदी ने मेरे लंड को इतनी जोर से मरोड़ दिया कि मेरे मुँह से चीख निकल गई- ऊऊऊऊऊईईईईइ दीदी ! दर्द होता है।

दीदी ने मेरे चीख पर कुछ ध्यान नहीं दिया और बोली- फिर कभी मरने की बात मत करना, तुझे सुधा चाहिए, वो तुझे मिल जायेगी पर एक शर्त पर !

“क्या दीदी !” मैंने कहा।

दीदी बोली- हमारे बीच क्या हुआ है, और क्या होगा तू किसी को नहीं बताएगा, यहाँ तक कि सुधा को भी नहीं, और कभी मुझसे दूर नहीं होगा तो मैं तेरी मदद कर सकती हूँ।

“ठीक है दीदी, मैं ऐसा ही करूँगा जैसा आप कहोगी !”

मेरी बात सुन कर दीदी खुश हो गई और फिर से मेरे लंड को चूसने लगी। दीदी मेरा लंड ऐसे चूस रही थी जैसे कोई बच्चा लोलीपोप चूसता है।

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मैं तो आनन्द में उड़े जा रहा था, मेरा हाथ दीदी के बालों को सहला रहा था, मैं दीदी से बोला- दीदी एक बात पूछूँ?

दीदी ने अपने मुँह से मेरा लंड निकला और बोली- हाँ पुछ ! पर अब तुम मुझे दीदी मत कहा करो, तुम मेरा नाम लिया करो।मैंने कहा- पर आप तो मुझे से कई साल बड़ी हो तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा आप का नाम लेते हुए।

दीदी बोली- सबके सामने तो तुम मुझे दीदी ही कहा करो पर जब हम अकेले हो तो मेरा नाम लिया करो या फिर जान-जानू कहा करो ! मैंने कहा- ठीक है दीदी।

दीदी ने मेरी तरफ आँख निकलते हुए मेरे लंड को जोर से मसल दिया, फिर से मेरे मुँह से चीख निकल गई- अऐईईई सॉरी जान ! अब मैं तुमको जान ही कहा करूँगा !

मेरे मुँह से जान सुनकर मुस्कुराने लगी और बोली- हाँ, अब बोलो, क्या पूछ रहे थे तुम?

इधर मैंने कहना शुरू किया, उधर सुनीता मेरे लंड को अपने हाथ से ऊपर नीचे करने लगी। मेरा लंड तो सुनीता के थूक से इतना गीला हो चुका था कि जब सुनीता मेरे लंड की मुठ मार रही थी, तो उसका एक अनोखा ही मज़ा आ रहा था।

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मैं बोला- जान तुम रवि से कब से चुदवा रही हो? सुनीता बोली- बस अभी कुछ ही दिन से बस, 4-5 बार ही चोदा है मुझे रवि ने, पर अब तू मिल गया है तो मैं उससे चुदवाना छोड़ दूँगी क्योंकि मुझे डर है कहीं वो अपने दोस्तों में मुझे बदनाम न कर दे, तुमसे चुदवाने में मुझे कोई खतरा भी नहीं है, क्योंकि कोई हमारे ऊपर कोई शक भी नहीं करेगा।

मैंने सुनीता को बोला- ठीक है जान, तुम मुझे जब भी बुलओगी मैं आ जाऊँगा।

सुनीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई और फिर सुनीता ने मेरे लंड को मुठ मारते हुए अपने गुलाबी होंठ मेरे लंड पर रख कर चूसने लगी, करीब 7 से 8 मिनट ऐसा करने से मेरे लंड से कुछ निकलने को हुआ तो मैंने सुनीता को कहा- जान, मेरा पानी निकलने वाला है, तुम अपना मुँह हटा लो !

पर उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया और मग्न हो कर मेरा लंड चूसने लगी और फिर वही हुआ, जो उसके बाद होना चाहिए था, मेरे लंड से 8–10 बूंद वीर्य की निकल गई, सुनीता मेरा सारा माल पी गई और मेरा लंड चाट चाट कर बिल्कुल साफ़ कर दिया, मेरे माल की एक भी बूंद उसने बेकार नहीं की।

सुनीता ने अभी मेरा लंड चाट कर साफ किया ही था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो सुनीता ने कहा- जल्दी से अपनी पैन्ट पहनो ! मैं दरवाजा खोल कर आती हूँ, और मैं तेरा काम आज ही कर दूँगी, जल्दी कर !

मैंने भी वक़्त की नजाकत को समझते हुए जल्दी से अपनी पैन्ट पहनी और आराम से बेड पर बैठ गया। इतने में सुनीता ने दरवाजा खोल दिया, बाहर मेरी मम्मी थी और वो घर के अन्दर आकर सुनीता से बोली- कहाँ है वो, उसके दोस्त आये हैं।

साजन का अधूरा प्यार – Sister Hindi Sex Kahani

सुनीता ने कहा- आंटी, अभी भेज रही हूँ, मेरा काम ख़त्म हो गया है।

सुनीता ने मुझे आवाज दी और कहा- भाई, आंटी जी आई हैं तुम घर जाओ, जब जरुरत होगी, मैं बुला लूँगी।

मैं बाहर आकर बोला- ठीक है दीदी, जब कोई काम हो तो बुला लेना।

इतना कह कर मैं मम्मी के साथ अपने घर चला गया। घर आकर टाइम देखा तो 11 बज चुके थे।

घर पर मेरे दोस्त मेरा इन्तजार कर रहे थे तो मैं उसके साथ बाहर घूमने चला गया, दोपहर के दो बजे में वापस घर आया तो देखा सुनीता अपने घर के बाहर खड़ी होकर सुधा से कुछ बात कर रही है, वो दोनों बात करने में इतनी मग्न थी कि उन्होंने मेरी तरफ देखा भी नहीं और वो बात करती रही।

मैं अपने घर के अन्दर चला गया और फिर मैंने खाना खाया और जो फिर जो काम अधूरा रह गया था, उसको पूरा करने लगा।

करीब तीन बजे मेरा काम खत्म हो गया तो मैं अपने घर से बाहर निकला तो देखा कि सुनीता बाहर खड़ी होकर मेरा ही इन्तजार कर रही थी, उसने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया।

मैं उसके पास पहुँच गया, सुनीता बोली- तेरे लिए खुशखबरी है !मैंने कहा- क्या?

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तो वो बोली- सुधा मान गई गई, मैंने उसको काफी देर तक समझाया तब जाकर उसकी समझ में मेरी बात आई। एक काम करना, जब सुधा की दादी चली जाए चार बजे, तो उससे मिल लेना !

यह बात सुनकर मैं बहुत खुश हुआ, मेरा तो मन कर रहा था कि अभी सुनीता के होंठ चूम लूँ पर वो इस समय बाहर खड़ी थी, अगर कही घर में अकेली मिल जाती तो मैं चूम ही लेता उसके होंठों को।

अब आलम यह था कि मुझसे समय कट नहीं रहा था, बार बार मेरी निग़ाह घड़ी की सुइयों को देख रही थी, किसी तरह चार बजे बजे तो मैं अपने घर से बाहर निकल कर आया तो देखा कि सुधा की दादी जा चुकी थी, सुनीता बाहर खड़ी होकर मेरा ही इंतजार कर रही थी।

मैं सुनीता के पास गया तो वो बोल पड़ी- अब जल्दी से जा, तेरी लाइन क्लीयर है।

मैंने कहा- ठीक है, मैं अन्दर जा रहा हूँ, अगर कुछ गड़बड़ हो तो संभाल लेना !

उसने मेरा हाथ पकड़कर हल्के से दबाया तो मैं समझ गया कि कह रही है बेफिक्र हो कर जाओ, मैं सब संभाल लूँगी।

मैंने भी सुनीता का हाथ हल्के से दबाया, हम दोनों ही मुस्कुरा दिए और फिर मैं सुधा के घर की तरफ चल दिया।

जैसे ही मैं सुधा के घर के अन्दर घुसा तो देखा, वो बर्तन साफ़ कर रही थी। मैं उसके सामने बेड पर बैठ गया, सुधा मुझे ही देखे जा रही थी, मैंने कहा- कुछ सोचा मेरे बारे में?

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तो वो बोली- पहले एक बात बताओ कि पैर में चोट कैसे लगी?

मैंने सुधा से झूठ बोला- बस से उतर रहा था तो लग गई !

पर उसको मेरी बात पर यकीन ही नहीं हुआ, कहने लगी- मुझे पता है यह सब मेरी वजह से हुआ है, आप मुझसे झूठ बोल रहे हो।

मैंने हसंकर कहा- नहीं वो बात नहीं है, पर तुम बताओ क्या फैसला है तुम्हारा?

सुधा ने कहा- मैं नहीं बता रही।

मैं खड़ा हुआ और जैसे ही मैंने सुधा का हाथ पकड़ा, उसने बर्तन साफ़ करने बंद कर दिए और खड़ी हो गई, जब तक मैं उस से सट चुका था और उसकी आँखों में देखते हुए मेरे मुँह से दो लाइन निकल गई:

आँखों में इकरार है,

होंठों पर इंकार है !

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इतना सुने के बाद उसने इन लाइनों को पूरा कर दिया, वो बोली-

“बोलो सनम, ये कैसा प्यार है !

इतनी बात सुनकर तो मैं उससे और भी चिपक गया और वो मुझसे पीछे हटते हुए दीवार से जा लगी, मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ कर ऊपर दीवार से लगा दिए। अब वो पूरी मेरे गिरफ्त में थी, मैंने उसको बोला- बता ना, क्या जवाब है, क्यों तड़पा रही है?

तो उसने कुछ नहीं कहा, बस ‘हाँ’ में अपना सर हिला दिया।

मैंने कहा- सच में?

तो वो मुस्कुराने लगी।

दोस्तो, एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी, ‘हंसी तो फ़ंसी !’

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फिर क्या था, मैंने उसके गुलाबी रस भरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसको चूमने लगा।

दोस्तो, मैं आपको बता दूँ कि वो मेरी जिंदगी का पहला चुम्बन था, न जाने हम दोनों एक दूसरे को कितनी देर तक चूमते रहे, हम एक दूसरे को पागलों की तरह जब तक चूमते रहे, जब तक हम दोनों थक नहीं गए।

सुधा के होंठ और मेरे होंठ थूक से गीले हो गए थे। मैंने अपनी जेब से रुमाल निकाला और अपना मुँह साफ़ करने के बाद सुधा के होंठ साफ़ किये, फिर एक छोटी सी चुम्मी ली तो सुधा बोल पड़ी- अब आप जाओ मेरे साजन ! कहीं किसी ने देख लिया तो मुसीबत आ जाएगी। और मैं नहीं चाहती कि कोई मुझे आप से दूर कर दे !

मैं भी नहीं चाहता था कि वो किसी भी मुसीबत में आये तो मैं सुधा को ‘आई लव यू जान’ कह बाहर आ गया।

बाहर सुनीता खड़ी थी तो मैं सीधे उसी के पास चला गया।

उसने मुझसे पूछा- क्या हुआ अन्दर?

तो मैंने अपने होंठों पर अपनी जीभ फिरा कर उसको दिखा दी, मेरी इस हरकत को देख कर वो मुस्कुराने लगी, शायद वो सब समझ चुकी थी, उसको बताने की कोई जरुरत नहीं थी।

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उसके बाद हम मिलते रहे और एक दिन मैंने अपने पापा को सब कुछ सच सच बता दिया कि मैं सुधा को पसंद करता हूँ, तो मेरे पिताजी ने कहा- ठीक है, पर तू कम से कम अपने पैरों पर तो खड़ा हो जा ! फिर देखते हैं।

मेरे घर में सबको पता चल गया था, मेरी मम्मी ने सुधा से बात की और वो मेरी मम्मी को भी पसंद आ गई।

जब सुधा के घर में सब को पता चल गया तो हमारा मिलना बहुत ही कम हो गया पर इससे हमारा इश्क कम नहीं हुआ बल्कि हमारा प्यार और भी मजबूत होता रहा।

जब भी मुझे या उसको अवसर मिलता तो हम एक दूसरे की बाहों में खो जाते थे। हमारे साथ ऐसा कई बार हुआ कि हम दोनों एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में पड़े रहते थे, पर मैंने कभी भी उसको चुम्बन के अलावा और कुछ नहीं किया, यह मेरी शराफत थी या प्यार, यह तो आप ही बेहतर बता सकते हैं।

अब तक हमारे प्यार की उम्र भी 9 साल हो चुकी थी, सच में दोस्तो, हमारा अफेयर 9 साल चला।

पर कहते है न, किस्मत से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता, पर किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था, उसके घर वालों ने उसकी शादी जबरदस्ती किसी और से कर दी और मुझे पता भी नहीं चल पाया। पता नहीं मैं उसके घर वालों को पसन्द नहीं था, मेरे घर वालों ने मेरी शादी की बात भी की उसके घर जाकर, पर उन लोगों ने मना कर दिया।

साजन का अधूरा प्यार – Sister Hindi Sex Kahani

मुझे करीब 15 दिन बाद पता चला कि सुधा की शादी हो गई है, तो मैं सन्न रहा गया।