मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

Masoom Yauvan – Antarvasna Sex Kahani

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

मैं अजमेर की रहने वाली 30 साल की शादीशुदा औरत हूँ। हम ३ बहनें हैं, मैं सबसे छोटी हूँ, मेरी शादी बचपन में मेरी बहनों के साथ ही हो गई थी जब मैं शादी का मतलब ही नहीं जानती थी। मेरी बड़ी बहन ही बालिग थी, बाकी हम दो बहनों के लिए तो शादी एक खेल ही था।

उस वक्त हम दोनों बहनों की सिर्फ शादी हुई थी जबकि बड़ी बहन का गौना भी साथ ही हुआ था, वो तो ससुराल आने जाने लग गई, हम दोनों एक बार जाकर फिर पढ़ने जाने लगी। हमें तब तक किसी बात का कोई पता नहीं था, जीजाजी जीजी के साथ आते तो हम बहुत खुश होती, हंसी-मजाक करती, मेरी माँ कभी कभी चिढ़ती और कहती- अब तुम बड़ी हो रही हो, कोई बच्ची नहीं हो जो अपने जीजा जी से इतनी मजाक करो !

पर मैं ध्यान नहीं देती थी।

कुछ समय बाद मेरे ससुराल से समाचार आने लग गए कि इसको ससुराल भेजो, इसका गौना करो।

और मैं मासूम नादान सी ससुराल चली गई। उस वक्त मुझे साड़ी पहनना भी नहीं आता था, हम राजस्थान में ओढ़नी और कुर्ती, कांचली, घाघरा पहनते हैं, में भी ये कपड़े पहन कर चली गई जो मेरे दुबले पतले शरीर पर काफी ढीले-ढाले थे।

मुझे सेक्स की कोई जानकारी नहीं थी, हमारा परिवार ऐसा है कि इसमें ऐसी बात ही नहीं करते हैं, न मेरी बड़ी बहन ने कुछ बताया, ना ही मेरी माँ ने !

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बाद में मुझे पता चला कि मेरी सास ने जल्दी इसलिए की कि मैं पढ़ रही थी, उसका बेटा कम पढ़ा था, वो सोच रही थी कि इसे जल्दी ससुराल बुला लें, नहीं तो यह इसे छोड़ कर किसी दूसरे पढ़े लिखे के साथ चली जाएगी। जबकि हमारे परिवार के संस्कार ऐसे नहीं थे, मुझे तो कुछ पता भी नहीं था। शादी के कई साल बाद मैंने पति को तब देखा जब वो गौना लेने आया। मुझे देख कर वो मुस्करा रहा था, मैंने भी चोर नजरों से उसे देखा, मोटा सा, काला सा, ठिगना, कुछ पेट बढ़ा हुआ !

मेरे पति थोड़े ठिगने हैं करीब 5’4″ के, मैं भी इतनी ही लम्बी हूँ। मेरे पति चेन्नई में काम करते हैं, 6-7 पढ़े हुए हैं जबकि में ऍम.ए. किए हूँ। वैसे मैं बहुत दुबली-पतली हूँ, मेरा चेहरा और बदन करीना कपूर से मिलता-जुलता है, मेरा बोलने-चलने का अंदाज़ भी करीना जैसा है इसलिए मुझे कोई करीना कहता है तो मुझे ख़ुशी होती है। मैं अपनी सुन्दरता देख इठला उठी। जब मैं घर में उसके सामने से निकलती कुछ घूंघट किये हुए तो वो खींसे निपोर देता ! मुझे ख़ुशी होती कि मैं सुन्दर हूँ। इसका मुझे अभिमान हो गया और मैं उसके साथ गाड़ी में अपनी ससुराल चल दी। गाड़ी में उसके साथ उसके और परिवार वाले भी थे, हम शाम को गाँव में पहुँच गए।

गाँव पहुँचने के बाद मैंने देखा कि मेरी ससुराल वालों का घर कच्चा ही था, एक तरफ कच्चा कमरा, एक तरफ कच्ची रसोई और बरामदा टिन का, बाकी मैदान में !

मेरे पति 5 भाइयों में सबसे छोटे थे जो अपने एक भाई-भाभी और माँ के साथ रहते थे, ससुर जी का पहले ही देहांत हो गया था !

वहाँ जाते ही मेरी सास और बड़ी ननद ने मेरा स्वागत किया, मुझे खाना खिलाया। घर मेहमानों से भरा था, भारी भरकम कपड़े और गहने पहने हुई थी, मैंने पहली बार घूंघट निकाला था, मैं परेशान थी।

मेरी ननद मुझे कमरे में ले गई जिसमें कच्ची जमीन पर ही बिस्तर बिछाये हुए थे, उसने मुझे कहा- कमला, ये भारी साड़ी जेवर आदि उतार कर हल्के कपड़े पहन ले, अब हम सोयेंगे !

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मैंने अपने कपड़े उतार कर माँ का दिया हुआ घाघरा-कुर्ती ओढ़नी पहन ली, मेरे स्तन बहुत छोटे थे इसलिए चोली मैं पहनती नहीं थी। गर्मी थी तो चड्डी भी नहीं पहनी और अपनी ननद के साथ सो गई आने वाले खतरे से अनजान !

मैं सोई हुई थी, अचानक आधी रात को असहनीय दर्द से मेरी नींद खुल गई और मैं चिल्ला पड़ी। चिमनी की मंद रोशनी में मैंने देखा कि मेरी ननद गायब है और मेरे पति मेरी छोटी सी चूत में जिसमें मैंने कभी एक उंगली भी नहीं घुसाई थी, अपना मोटा और लम्बा लण्ड डाल रहे थे और सुपारा तो उन्होंने मेरी चूत में फंसा दिया था। घाघरा मेरी कमर पर था, बाकी कपड़े पहने हुए थे और वो गाँव का गंवार जिसने न तो मुझे जगाया न मुझे सेक्स के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार किया, नींद में मेरा घाघरा उठाया, थूक लगाया और लण्ड डालने के लिए जबरदस्त धक्का लगा दिया।

मेरी आँखों से आँसू आ रहे थे और मैं जिबह होते बकरे की तरह चिल्ला उठी !

मेरी चीख उस कमरे से बाहर घर में गूंज गई।

बाहर से मेरी सास की गरजती आवाज आई, वो मेरे पति को डांट रही थी कि छोटी है, इसे परेशान मत कर, मान जा !

मेरे पति मेरी चीख के साथ ही कूद कर एक तरफ हो गए तब मुझे उनका मोटे केले जितना लण्ड दिखा। मैंने कभी बड़े आदमी लण्ड नहीं देखा था, छोटे बच्चों की नुनिया ही देखी थी इसलिए मुझे वो डरावना लगा।

उन्होंने अन्दर से माँ को कहा- अब कुछ नहीं करूँगा ! तू सो जा !

फिर उन्होंने मेरे आंसू पोंछे !

मेरी टाँगें सुन्न हो रही थी, मैं घबरा रही थी। थोड़ी देर वो चुपचाप लेटे, फिर मेरे पास सरक गए, उन्होंने कहा- मैंने गाँव की बहुत लड़कियों के साथ सेक्स किया है, वो तो नहीं चिल्लाती थी?

उन्हें क्या पता कि एक चालू लड़की में और अनजान मासूम अक्षतयौवना लड़की में क्या अंतर होता है !

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थोड़ी देर में उन्होंने फिर मेरा घाघरा उठाना शुरू किया, मैंने अपने दुबले पतले हाथों से रोकना चाहा मगर उन्होंने अपने मोटे हाथ से मेरी दोनों कलाइयाँ पकड़ कर सर के ऊपर कर दी, अपनी भारी टांगों से मेरी टांगें चौड़ी कर दी, फिर से ढेर सारा थूक अपने लिंग के सुपारे पर लगाया, कुछ मेरी चूत पर !

मैं कसमसा रही थी, उन्हें धक्का देने की कोशिश कर रही थी पर मेरी दुबली पतली काया उनके भैंसे जैसे शरीर के नीचे दबी थी। मैंने चिल्ला कर अपनी सास को आवाज देनी चाही तो उसी वक्त उन्होंने मेरे हाथ छोड़ कर मेरा मुँह अपनी हथेली से दबा दिया।

मैं गूं गूं ही कर सकी। मेरे हाथ काफी देर ऊपर रखने से दुःख रहे थे। मैंने हाथों से उन्हें धकेलने की नाकाम कोशिश की। उनके बोझ से मैं दब रही थी। मेरा वजन उस वक्त 38-40 किलो था और वे 65-70 किलो के !

अब उन्होंने आराम से टटोल कर मेरी चूत का छेद खोजा जिसे उन्होंने कुछ चौड़ा कर दिया था, अपने गीले लिंग का सुपारा मेरी छोटी सी चूत के छेद पर टिकाया और हाथ के सहारे से अन्दर ठेलने लगे। 2-3 बार वो नीचे फिसल गया, फिर थोड़ा सा मेरी चूत में अटक गया।

मुझे बहुत दर्द हो रहा था जैसे को लोहे की छड़ डाली जा रही हो, जिस छेद को मैंने आज तक अपनी अंगुली नहीं चुभाई थी, उसमें वो भारी भरकम लण्ड डाल रहा था।

मेरे आँसुओं से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो पूरी बेदर्दी दिखा रहा था और मुस्कुरा था कि उसे सील बंद माल मिला जिसकी सील वो तोड़ रहा था !

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मेरी दोनों टांगों को वो अपने पैरों के अंगूठों से दबाये हुए था, मेरे ऊपर वो था, उसके लिंग का सुपारा मेरी चूत में फंसा हुआ था। अब उसने एक हाथ को तो मेरे मुंह पर रहने दिया दूसरे हाथ से मेरे कंधे पकड़े और जोर का धक्का लगाया, लण्ड दो इंच और अन्दर सरक गया, मेरी सांस रुकने लगी, मेरी आँखें फ़ैल गई।

फिर उसने लण्ड थोड़ा बाहर खींचा, मैं भी लण्ड के साथ उठ गई। उसने जोर से कंधे को दबाया और जोर से ठाप मारी, मैं दर्द के समुन्दर में डूबती चली गई। आधे से ज्यादा लण्ड मेरी संकरी चूत में फंसा हुआ था, मेरी चूत से खून आ रहा था पर उन्हें दया नहीं आई,

वो और मैं पसीने-पसीने थे, मुँह से हाथ उन्होंने उठाया नहीं था और फिर उन्होंने आखिरी धक्का मारा और उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था, उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी पर ठोकर मार रहा था।

मैं बेहोश हो गई पर दर्द की वजह से वापिस होश आ गया। मैं रो रही थी, सिसक रही थी, मेरा चेहरा आँसुओं से तर था पर दनादन धक्के लग रहे थे, मेरे चेहरे से हाथ हटा लिया गया था, मेरे कंधे तो कभी कमर पकड़ कर वे बुरी तरह से मुझे चोद रहे थे।

15-20 मिनट तक उन्होंने धक्के लगाये, मेरी चूत चरमरा उठी, हड्डियाँ कड़कड़ा उठी, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आया था और वे मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य डालते हुए ढेर हो गए और भैंसे की तरह हांफने लगे।

मैं रो रही थी, सिसकियाँ भर रही थी, मेरी चूत से खून और वीर्य मेरी जांघों से नीचे बह रहा था।

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थोड़ी देर में सुबह हो गई, मेरे पति बाहर चले गए, मेरी ननद आई, उसने मेरी टांगें पौंछी, मेरे कपड़े सही किये, मुझे खड़ा किया। मैं लड़खड़ा रही थी, वो हाथों का सहारा देकर मुझे पेशाब कराने ले गई।

मुझे तेज जलन हुई, मैंने रोते-रोते कहा- मुझे मेरे गाँव जाना है !

मेरी सास ने बहुत मनाया पर मैं रोती रही, चाय नाश्ता भी नहीं किया। आखिर उन्होंने एस.टी.डी. से मेरे घर फ़ोन किया। एक-डेढ़ घंटे बाद मुझे मेरे भाई और छोटे वाले जीजाजी लेने आ गए और मैं अपनी सूजी हुई चूत लेकर अपने मायके रवाना हो गई वापिस कभी न आने की सोच लेकर !

पर क्या ऐसा संभव है ! तो यह अनुभव रहा मेरी सुहागरात का !

आपको कैसा लगा? यह सौ फीसदी सच है।

मेरी आपबीती जारी रहेगी।

मैंने दसवीं की परीक्षा दी और गर्मियों की छुट्टियों में फिर ससुराल जाना पड़ा। इस बार मेरे पति स्वाभाव कुछ बदला हुआ था, वो इतने बेदर्दी से पेश नहीं आये, शायद उन्हें यह पता चल गया कि यह मेरी ही पत्नी रहेगी।

मैं इस बार 4-5 दिन ससुराल में रुकी थी पर वे जब भी चोदते, मेरी हालत ख़राब हो जाती। पहली चुदाई में ही चूत में सूजन आ गई, बहुत ही ज्यादा दर्द होता, मुझे बिल्कुल आनन्द नहीं आता।

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वो रात में 7-8 बार मुझे चोदते पर उनकी चुदाई का समय 5-7 मिनट रहता। रात भर सोने नहीं देते, वो मुझे कहते- मैंने बहुत सारी लड़कियों से सेक्स किया है, उन्हें मज़ा आता है, तुम्हें क्यों नहीं आता?

मैं मन ही मन में डर गई कि कहीं मुझे कोई बीमारी तो नहीं है? कहीं मैं पूर्ण रूप से औरत हूँ भी या नहीं?

अब मैं किससे पूछती? मेरी सारी सहेलियाँ तो कुंवारी थी।

फिर मैं वापिस पीहर आ गई, पढ़ने लगी। मेरा काम यही था, गर्मी की छुट्टियों में ससुराल जाकर चुदना और फिर वापिस आकर पढ़ना। मेरे पति भी चेन्नई फेक्टरी में काम पर चले जाते, छुट्टियों में आ जाते।

अब मैं कॉलेज में प्राइवेट पढ़ने लग गई, तब मुझे पता चला कि मुझे आनन्द क्यूँ नहीं आता है। मेरे पति मुझे सेक्स के लिए तैयार करते नहीं थे, सीधे ही चोदने लग जाते थे और मुझे कुछ आनन्द आने लगता तब तक वो ढेर हो जाते। रात में सेक्स 5-7 बार करते, पर वही बात रहती।

फिर मैंने उनको समझाया- कुछ मेरा भी ख्याल करो, मेरे स्तन दबाओ, कुछ हाथ फिराओ !

अब तक मैंने कभी उनके लण्ड को कभी हाथ भी नहीं लगाया था, अब मैंने भी उनके लण्ड को हाथ में पकड़ा तो वो फुफकार उठा। उन्होंने मेरे स्तन दबाये पेट और जांघों पर चुम्बन दिए, चूत के तो नजदीक भी नहीं गए।

मैंने भी मेरी जिंदगी में कभी लण्ड के मुँह नहीं लगाया था, मुझे सोच के ही उबकाई आती थी, अबकी बार उन्होंने चोदने का आसन बदला, अब तक तो वो सीधे-सीधे ही चोदते थे, इस बार उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और लण्ड घुसा दिया और हचक-हचक कर चोदने लगे।

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मेरी टांगें मेरे सर के ऊपर थी, मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी पर चमत्कार हो गया, मुझे आनन्द आ रहा था, उनका सुपारा सीधे मेरी बच्चेदानी पर ठोकर लगा रहा था, मुझे लग रही थी पर आनन्द बहुत आया।

इस बार जब उन्होंने अपने माल को मेरी चूत में भरा तो मैं संतुष्ट थी। फिर मैंने अपनी टांगें ऊपर करके ही चुदाया, मुझे मेरे आनन्द का पता चल चुका था। फिर मेरे गर्भ ठहर गया, सितम्बर, 2000 में मेरे बेटा हो गया।

बेटा होने के बाद कुछ विशेष नहीं हुआ ! मैं प्राइवेट पढ़ती रही, मेरे पति साल में एक बार आते तब मैं ससुराल चली जाती और मेरे पति महीने डेढ़ महीने तक रहते, मैं उनके साथ रहती और जब वे वापिस चेन्नई जाते तो मैं अपने पीहर आ जाती। इसका कारण था कई लोंगो की मेरे ऊपर पड़ती गन्दी नज़र !

मेरे ससुराल में खेती थी, जब फसल आती तो वे मुझे मेरा हिस्सा देने के लिए बुलाते थे। लेकिन ज्यादातर मैं शाम को मेरे पीहर आ जाती थी।

एक बार मुझे रात को रुकना पड़ा, मैं मेरे घर पर अकेली थी, मेरे जेठों के घर आस पास ही थे, मेरी जिठानी ने कहा- तू अकेली कैसे सोएगी? डर जाएगी तू ! मेरे बेटे को अपने घर ले जा !

मेरे जेठ का बेटा करीब 18-19 साल का था, मैं 27 की थी, मैंने सोचा बच्चा है, इसको साथ ले जाती हूँ !

खाना खाकर हम लेट गए, बिस्तर नीचे ही पास-पास लगाए हुए थे, थोड़ी देर बातें करने के बाद मुझे नींद आ गई !

आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गई, मेरे जेठ का बेटा मेरे पास सरक आया था और एक हाथ से मेरा एक वक्ष भींच रहा था और दूसरे वक्ष को अपने मुँह में ले रहा था, हालाँकि ब्लाउज मैंने पहना हुआ था।

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मेरे गुस्से का पार नहीं रहा, मैं एक झटके में खड़ी हो गई, लाइट जलाई और उसे झंजोड़ कर उठा दिया !

मेरे गुस्से की वजह से मुंह से झाग निकल रहे थे, वो आँखें मलता हुआ पूछने लगा- क्या हुआ काकी?

मुझे और गुस्सा आया मैंने कहा- अभी तू क्या कर रहा था?

पठ्ठा बिल्कुल मुकर गया और कहा- मैं तो कुछ नहीं कर रहा था।

मैंने उसको कहा- अपने घर जा !

वो बोला- इतनी रात को?

मैंने कहा- हाँ !

उसका घर सामने ही था, वो तमक कर चला गया और मैं दरवाजा बंद करके सो गई।

सुबह मैंने अपनी जेठानी उसकी माँ को कहा तो वो हंस कर बात को टालने लगी, कहा- इसकी आदत है ! मेरे साथ सोता है तो भी नींद में मेरे स्तन पीता है।

मैंने कहा- अपने पिलाओ ! आइन्दा मेरे घर सुलाने की जरुरत नहीं है !

मुझे उसके कुटिल इरादों की कुछ जानकारी मिल गई थी। उसकी माँ चालू थी, गाँव वालों ने उसे मुझे पटाने के लिए लालच दिया था इसलिए वो अपने बेटे के जरिए मेरी टोह ले रही थी। उसे पता था उसके देवर को गए दस महीने हो गए थे, शायद यह पिंघल जाये पर मैं बहुत मजबूत थी अपनी इज्जत के मामले में !

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इससे पहले कईयों ने मुझ पर डोरे डाले थे, मेरे घर के पास मंदिर था, उसमें आने का बहाना लेकर मुझे ताकते रहते थे। उनमें एक गाँव के धन्ना सेठ का लड़का भी था जिसने कहीं से मेरे मोबाइल नंबर प्राप्त कर लिए और मुझे बार बार फोन करता। पहले मिस कॉल करता, फिर फोन लगा कर बोलता नहीं ! मैं इधर से गालियाँ निकलती रहती।

फिर एक दिन हिम्मत कर उसने अपना परिचय दे दिया और कहा- मैं तुमको बहुत चाहता हूँ इसलिए बार बार मंदिर आता हूँ।

मैंने कहा- तुम्हारे बीवी, बच्चे हैं, शर्म नहीं आती !

फिर भी नहीं माना तो मैंने उसको कहा- शाम को मंदिर में आरती के समय लाऊडस्पीकर पर यह बात कह दो तो सोचूँगी।

तो उस समय तो हाँ कर दी फिर शाम को उसकी फट गई। फिर उसने कहा- मुझे आपकी आवाज बहुत पसंद है, आप सिर्फ फोन पर बात कर लिया करें। मैं कुछ गलत नहीं बोलूँगा। मैंने कहा- ठीक है ! जिस दिन गलत बोला, बातचीत कट ! और मेरा मूड होगा या समय होगा तो बात करुँगी।

यह सुनते ही वो मुझे धन्यवाद देने लगा और रोने लगा और कहने लगा- चलो मेरे लिए इतना ही बहुत है ! कम से कम आपकी आवाज तो सुनने को मिलेगी !

मैं बोर होने लगी और फोन काट दिया। उसके बाद वो दो चार दिनों के बाद फोन करता, मेरा मूड होता तो बात करती वर्ना नहीं ! वो भी कोई गलत बात नहीं करता, मेरी तारीफ करता। इससे मुझे कोई परेशानी नहीं थी।

मेरा पति चेन्नई से नौकरी छोड़ कर आ गया था। मेरा बी.ए. हो चुका था, मैंने गाँव में स्कूल ज्वाइन कर लिया, टीचर बन गई वहाँ भी और टीचर

मुझ पर लाईन मारते, पर मैंने किसी को घास नहीं डाली।

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फिर मेरे पति को वापिस चेन्नई बुला लिया तो चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़ दिया और पीहर आ गई !

पर मेरी असली कहानी तो बाकी है।

फिर मेरे पति वापिस चेन्नई चले गए तो मैंने भी स्कूल छोड़ दी और पीहर आ गई !

जब भी मेरे बड़े जीजाजी अजमेर आते तो मुझसे हंसी मजाक करते थे, मैं मासूम थी, सोचती थी कि मैं छोटी हूँ इसलिए मेरा लाड करते हैं। वे कभी यहाँ-वहाँ हाथ भी रख देते थे तो मैं ध्यान नहीं देती थी। कभी वो मुझे अपनी बाँहों में उठा कर कर मुझे कहते थे- अब तुम्हारा वजन बढ़ गया है !

मेरे जीजाजी करीब 46-47 साल के हैं 5’10” उनकी लम्बाई है, अच्छी बॉडी है, बाल उनके कुछ उड़ गए हैं फिर भी अच्छे लगते हैं। पर मैंने कभी उनको उस नजर से नहीं देखा था मैंने उनको सिर्फ दोस्त और बड़ा बुजुर्ग ही समझा था।

इस बीच में कई बार मैं अपनी दीदी के गाँव गई। वहाँ जीजा जी मुझसे मजाक करते रहते, दीदी बड़ा ध्यान रखती, मुझे कुछ गलत लगता था नहीं।

फिर एक बार जीजा जी मेरे पीहर में आये, दीदी नहीं आई थी।

वे रात को कमरे में लेटे थे, टीवी देख रहे थे। मेरे पापा मम्मी दूसरे कमरे में सोने चले गए। मेरी मम्मी ने आवाज दी- आ जा ! सो जा !

मेरा मनपसंद कार्यक्रम आ रहा था तो मैंने कहा- आप सो जाओ, मैं बाद में आती हूँ।

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जीजा जी चारपाई पर सो रहे थे, उसी चारपाई पर बैठ कर मैं टीवी देख रही थी। थोड़ी देर में जीजाजी बोले- बैठे-बैठे थक जाओगी, ले कर देख लो।

मैंने कहा- नहीं !

उन्होंने दोबारा कहा तो मैंने कहा- मुझे देखने दोगे या नहीं? नहीं तो मैं चली जाऊँगी। थोड़ी देर तो वो लेटे रहे, फ़िर वे मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपने साथ लिटाने की कोशिश करने लगे।

मैंने उनके हाथ झटके और खड़ी हो गई। वो डर गए। मैंने टीवी बंद किया और माँ के पास जाकर सो गई।

सुबह चाय देने गई तो वो नज़रें चुरा रहे थे। मैंने भी मजाक समझा और इस बात को भूल गई। फिर जिंदगी पहले जैसी हो गई। फिर मैं वापिस गाँव गई, मेरे पति आये हुए थे।

अब स्कूल में तो जगह खाली नहीं थी पर मैं एम ए कर रही थी और गाँव में मेरे जितना पढ़ा-लिखा कोई और नहीं था, सरपंच जी ने मुझे आँगन बाड़ी में लगा दिया, साथ ही अस्पताल में आशा सहयोगिनी का काम भी दे दिया।

फिर एक बार तहसील मुख्यालय पर हमारे प्रशिक्षण में एक अधिकारी आये, उन्होंने मुझे शाम को मंदिर में देखा था, और मुझ पर फ़िदा हो गए।

मैंने उनको नहीं देखा !

फिर उनका एक दिन फोन आया, मैंने पूछा- कौन हो तुम?

उन्होंने कहा- मैं उपखंड अधिकारी हूँ, आपके प्रशिक्षण में आया था !

मैंने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?

उन्होंने कहा- रजिस्टर में नाम और नंबर दोनों मिल गए !

मैंने पूछा- काम बोलो !

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उन्होंने कहा- ऐसे ही याद आ गई !

मैंने सोचा कैसा बेवकूक है !

खैर फिर कभी कभी उनका फोन आता रहता ! फिर मेरा बी.एड. में नंबर आ गया और मैंने वो नौकरी भी छोड़ दी। फिर उनका तबादला भी हो गया, कभी कभी फोन आता लेकिन कभी गलत बात उन्होंने नहीं की।

एक बार बी.एड. करते मैं कॉलेज की तरफ से घूमने अभ्यारण गई तब उनका फोन आया। मैंने कहा- भरतपुर घूमने आए हैं।

तो वो बड़े खुश हुए, उन्होंने कहा- मैं अभी भरतपुर में ही एस डी एम लगा हुआ हूँ, मैं अभी तुमसे मिलने आ सकता हूँ क्या?

मैंने मना कर दिया, मेरे साथ काफी लड़कियाँ और टीचर थी, मैं किसी को बातें बनाने का अवसर नहीं देना चाहती थी और वो मन मसोस कर रह गए !

फिर काफ़ी समय बाद उनका फोन आया और उन्होंने कहा- आप जयपुर आ जाओ, मैं यहाँ उपनिदेशक लगा हुआ हूँ, यहाँ एन जी ओ की तरफ से सविंदा पर लगा देता हूँ, दस हज़ार रुपए महीना है।

मैंने मना कर दिया। वे बार बार कहते कि एक बार आकर देख लो, तुम्हें कुछ नहीं करना है, कभी कभी ऑफिस में आना है।

मैंने कहा- सोचूँगी !

फिर बार बार कहने पर मैंने अपनी डिग्रियों की नकल डाक से भेज दी।

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फिर उनका फोन आया- आज कलेक्टर के पास इंटरव्यू है !

मैं नहीं गई।

उन्होंने कहा- मैंने तुम्हारी जगह एक टीचर को भेज दिया है, तुम्हारा नाम फ़ाइनल हो गया है, किसी को लेकर आ जाओ।

मैं मेरे पति को लेकर जयपुर गई उनके ऑफिस में ! वो बहुत खुश हुए, हमारे रहने का इंतजाम एक होटल में किया, शाम का खाना हमारे साथ खाया।

मेरे पति ने कहा- तुम यह नौकरी कर लो !

दो दिन बाद हम वापिस आ गए। साहब ने कहा था कि अपने बिस्तर वगैरह ले आना, तब तक मैं तुम्हारे लिए किराये का कमरे का इंतजाम कर लूँगा।

10-12 दिनों के बाद मेरे पति चेन्नई चले गए और मैं अपने पापा के साथ जयपुर आ गई। साहब से मिलकर में पापा ने भी नौकरी करने की सहमति दे दी।

मैं मेरे किराये के कमरे में रही, एक रिटायर आदमी के घर के अन्दर था कमरा जिसमें वो, उसके दो बेटे-बहुएँ, पोते-पोतियों के साथ रहता था। मकान में 5 कमरे थे जिसमें एक मुझे दे दिया गया। बुजुर्ग व्यक्ति बिल्कुल मेरे पापा की तरह मेरा ध्यान रखते थे।

मैं वहाँ नौकरी करने लगी। कभी-कभी ऑफिस जाना और कमरे पर आराम करना, गाँव जाना तो दस दस दिन वापिस ना आना !

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साहब ने कह दिया कि तनख्वाह बनने में समय लगेगा, पैसे चाहो तो उस एन जी ओ से ले लेना, मेरे दिए हुए हैं।

मैंने 2-3 बार उससे 3-3 हजार रूपये लिए। साहब सिर्फ फोन से ही बात करते, मीटिंग में कभी सामने आते तो मेरी तरफ देखते ही नहीं। फिर मेरा डर दूर हो गया कि साहब कुछ गड़बड़ करेंगे। वो बहुत डरपोक आदमी थे, वो शायद सोचते कि मैं पहल करुँगी और मेरे बारे में तो आप जानते ही हैं !

फिर मैंने कई बार जीजा जी से बात की, उन्हें उलाहना दिया कि मैं यहाँ नौकरी कर रही हूँ और आप आकर एक बार भी मिले ही नहीं।

तो जीजा आजकल, आजकल आने का कहते रहे, टालते रहे।

मैंने कहा- घूमने ही आ जाओ दीदी को लेकर !

दीदी को कहा तो दीदी ने कहा- बच्चे स्कूल जाते हैं, मैं तो नहीं आ सकती, इनको भेज रही हूँ !

एक दिन जीजा ने कहा- मैं आ रहा हूँ !

मैंने उस होटल वाले को कमरा खाली रखने का कह दिया जहाँ मैं और मेरे पति साहब के कहने पर रुके थे क्यूंकि मेरा कमरा छोटा था। वो होटल वाला साहब का खास था, उसने हमसे किराया भी नहीं लिया था।

और अब भी उसने यही कहा- आपके जीजा जी से भी कोई किराया नहीं लूँगा ! उनके लिए ए.सी. रूम खाली रख दूँगा।

उसके होटल 2-3 ए.सी. रूम थे।

मैंने कहा- ठीक है !

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जीजा जी आए मेरे कमरे पर, दोपहर हो रही थी, खाना मैंने बना रखा था, खाना खाकर हए एक ही बिस्तर पर एक दूसरे की तरफ़ पैर करके लेट गए।

शाम हुई तो हम घूमने के लिए निकले।

मैंने कहा- साहब के पहचान वाले के होटल चलते हैं, घूमने के लिए बाइक ले लेते हैं।

उसको साहब का कहा हुआ था, उसके लिए तो मैं ही साहब थी, मेरे रिश्तेदार आएँ तो भी उसको सेवा करनी ही थी होटल में ठहराने से लेकर खाना खिलाने की भी !

हम होटल गए तो वो कही बाहर गया हुआ था ! मैंने सोचा अब क्या करें?

मैंने उसको फोन कर कहा- मुझे आपकी बाइक चाहिए !

उसने बताया कि वो शहर से दूर है, एक घंटे में आ जायेगा, हमें वहीं रुक कर नौकर से कह कर चाय नाश्ता करने को कहा।

मुझे इतना रुकना नहीं था, मैं जीजाजी को लेकर चलने लगी ही थी, तभी उस होटल वाले का जीजा अपनी बाइक लेकर आया। वो भी मुझे जानता था, उसने पूछा- क्या हुआ मैडम जी?

वहाँ सब मुझे ऐसे ही बुलाते हैं, मैंने उसे बाइक का कहा तो उसने कहा- आप मेरी ले जाओ !

मैंने जीजाजी से पूछा- यह वाली आपको चलानी आती है या नहीं? कहीं मुझे गिरा मत देना !

तो जीजाजी ने कहा- और किसी को तो नहीं गिराया पर तुम्हें जरूर गिराऊँगा !

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मैं डरते डरते पीछे बैठी, जीजाजी ने गाड़ी चलाई कि आगे बकरियाँ आ गई। जीजाजी ने ब्रेक लगा दिए, बकरियों के जाने के बाद फिर गाड़ी चलाई तो मैं संतुष्ट हो गई कि जीजाजी अच्छे ड्राइवर हैं !

अब वो शहर में इधर-उधर गाड़ी घुमा रहे थे, कई बार उन्होंने ब्रेक लगाये और मैं उनसे टकराई, मेरी चूचियाँ उनकी कमर से टकराई, उन्होंने हंस कर कहा- ब्रेक लगाने में मुझे चलाने से ज्यादा आनन्द आ रहा है !

मुझे हंसी आ गई।

थोड़ी देर घूमने के बाद हम वापिस होटल गए, उसे बाइक दी और पैदल ही घूमने निकल गए।

मैंने जीजाजी को कहा- अब खाना खाने होटल चलें?

उन्होंने कहा- नहीं, कमरे पर चलते हैं। आज तो तुम बना कर खाना खिलाओ !

मैंने कहा- ठीक है !

हम वापिस कमरे पर आ गए, मेरा पैदल चलने से पेट थोड़ा दुःख रहा था ! मैंने खाना बनाया, थोड़ी गर्मी थी, हम खाना खा रहे थे कि मेरी माँ का फोन आ गया।

उसे पता था जीजाजी वहाँ आये हुए हैं।

उन्होंने जीजाजी को पूछा- आप क्या कर रहे हो?

तो उन्होंने कहा- कमरे पर खाना खा रहा हूँ, अब होटल जाऊँगा।

फिर माँ ने कहा- ठीक है !

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पर जीजा जी ने मुझसे कहा- मैं होटल नहीं जाऊँगा !

मैंने कहा- कोई बात नहीं ! यहीं सो जाना !

मैं कई बार उनके साथ सोई थी, हालाँकि पहले हर बार हमारे साथ जीजी या और कोई था पर आज हम अकेले थे पर मुझे कोई डर नहीं था।

हम खाना खाने के बाद छत पर चले गए। कमरे में मच्छर हो गए थे इसलिए पंखा चला दिया और लाईट बंद कर दी।

हम छत पर आ गए तो मैंने उन्हें कहा- यहाँ छत पर सो जाते हैं।

उन्होंने कहा- नहीं, यहाँ ज्यादा मच्छर काटेंगे।

मैंने कहा- ठीक है, कमरे में ही सोयेंगे।

फिर मेरे पेट में दर्द उठा तो जीजा जी ने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- पता नहीं क्यों आज पेट दुःख रहा है।

जीजाजी ने पूछा- कही पीरियड तो नहीं आने वाले हैं?

मैं शरमा गई, मैंने कहा- नहीं !

उन्होंने कहा- दर्द की गोली ले ली।

वो मुझे एक दर्द की गोली देने लगे, मैंने ना कर दिया, वो झल्ला कर बोले- नींद की गोली नहीं है, दर्द की है।

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

फिर मैंने गोली ले ली !

फिर हम लेट गए, दोपहर की तरह आड़े और दूर दूर ! कमरे का दरवाज़ा खुला था।

हम बातें करने लगे। जीजा जी ने लुंगी लगा रखी थी, मैंने मैक्सी पहन रखी थी। मैं लेटी लेटी बातें कर रही थी और जीजा जी हाँ हूँ में जबाब दे रहे थे।

मेरी बात करते हाथ हिलाने की आदत है, मेरे हाथ कई बार उनके हाथ के लगे, उन्होंने अपने हाथ पीछे कर लिए और कहा- अब सो जाओ, नींद आ रही है।

रात के ग्यारह बज गए थे, जीजाजी को नींद आ गई थी, मैं भी सोने की कोशिश करने लगी और मुझे भी नींद आ गई !

रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।

मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !

मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई…

कहानी जारी रहेगी।

रात के ग्यारह बज गए थे, जीजाजी को नींद आ गई थी, मैं भी सोने की कोशिश करने लगी और मुझे भी नींद आ गई !

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रात के दो ढाई बजे होंगे कि अचानक मेरी नींद खुली, मुझे लगा कि मेरे जीजा जी मेरी चूत पर अंगुली फेर रहे हैं। मेरी मैक्सी और पेटीकोट ऊपर जांघों पर था, मैंने कच्छी पहनी हुई थी।

मेरा तो दिमाग भन्ना गया, मैं सोच नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूँ !

मेरे मन में भय, गुस्सा, शर्म आदि सारे विचार आ रहे थे। मैंने अपनी चूत पर से उनका हाथ झटक दिया और थोड़ी दूर हो गई…पर आगे दीवार आ गई, वो भी मेरे पीछे सरक गए और मुझे बांहों में पकड़ लिया।

वो धीमे धीमे कह रहे थे- मुझे नींद नहीं आ रही है प्लीज !

और मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी। मैं धीमी धीमी आवाज में रो रही थी, उन्हें छोड़ने का कह रही थी, पर वो नहीं मान रहे थे।

मैंने पलटी मार कर उधर मुँह कर लिया, उनकी बांहे मेरे शरीर पर ढीली थी पर उन्होंने छोड़ा नहीं था मुझे। उन्होंने अपनी एक टांग मेरे टांगों पर रख दी, मेरे कांख के नीचे से हाथ निकाल कर मेरे स्तन दबाने लगे, कभी नीचे वाला और कभी ऊपर वाला।

जीजाजी मेरी गर्दन पर भी चुम्बन कर रहे थे और फुसफुसा रहे थे- मुझे कुछ नहीं करना है, सिर्फ तुम्हें आनन्द देना है !

मैं मना कर रही थी- मुझे छोड़ दो !

पर वो कुछ भी नहीं सुन रहे थे, जोर से मैं बोल नहीं सकती थी कि कहीं मकान मालिक सुन ना लें, मेरी बदनामी हो जाती कि पहले तो जयपुर बुलाया, कमरे में सुलाया तो अब क्या हुआ?

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मैं कसमसा रही थी ! आज मुझे पता चला कि जीजाजी में कितनी ताकत है, मुझे छुड़ाने ही नहीं दिया। ऐसे दस मिनट बीत गए, मैं थक सी गई थी, मेरा विरोध कमजोर पड़ने लगा, उन्होंने जैसे अजगर मुर्गे को दबोचता, वैसे मुझे अपनी कुंडली में कस रहे थे धीरे धीरे !

उन्हें कोई जल्दी नहीं थी ! वो बराबर मुझे समझा रहे थे- चुपचाप रहो, मजा लो ! तुम्हारे पति को गए साल भर हो गया है, क्यों तड़फ रही हो? मैं सिर्फ तुम्हें आनन्द दूँगा, मुझे कोई जरुरी नहीं है ! और आज अब मैं तुम्हें छोड़ने वाला नहीं हूँ !

मैं कुछ नहीं सुन रही थी, में तो कसमसा रही थी और छोड़ने के लिए कह रही थी। वो थोड़ा मौका दे देते तो मैं कमरे के बाहर भाग जाती पर उन्होंने मुझे जकड़ रखा था।

फिर उन्होंने मेरे स्तन दबाने बंद किए और अपना हाथ नीचे लाये, मेरी कच्छी नीचे करने लगे।

मैं तड़फ कर उनके सामने हो गई, मेरी आधी कच्छी नीचे हो गई पर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और ऊपर कर दिया।

वो मेरे पेट को सहलाने लगे फिर दूसरे हाथ से मेरे हाथ को पकड़ लिया और पहले वाले हाथ से फिर कच्छी नीचे करने लगे, साथ साथ मुझे सहयोग करने का भी कह रहे थे।

मैंने नहीं माना और मैंने उनके सामने लेटे लेटे अपनी टांगें दूर दूर करने के लिए एक टांग पीछे की पर एक टांग मुझे उनकी टांगों के उपर रखनी पड़ी !

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वे अपना हाथ मेरी गाण्ड की तरफ लाये जहाँ कच्छी आधी खुली थी और खिंच रही थी। उनकी अंगुलियों को गाण्ड के पीछे से चड्डी में घुसने की जगह मिल गई। उन्होंने पीछे से चड्डी में हाथ डाला और मेरी चूत सहलाने लगे जिसे अब वो सीधे छू रहे थे, वे मेरी चूत के उभरे हुए चने को रगड़ रहे थे। मैं फिर कसमसा रही थी पर उन्होंने मुझ पर पूरी तरह काबू पा लिया था, एकदम जकड़ा हुआ था, अब तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी। उन्होंने 5 मिनट तक मेरी चूत के दाने को पीछे से रगड़ा, मेरी छोटी सी चूत में पीछे से अंगुली डालने की असफल कोशिश भी कर रहे थे !

मैं कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थी, मेरी सारी मिन्नतें बेकार जा रही थी, इतनी मेहनत से हम दोनों को पसीने आ रहे थे, पर पता नहीं आज जीजाजी का क्या मूड था, मैं उन्हें यहाँ आने का कह कर और होटल में नहीं जाने का कह कर पछता रही थी। अगर मेरे बस में काल के चक्र को पीछे करने की शक्ति होती तो मैं पीछे कर उन्हें यहाँ नहीं सुलाती !

खैर अब क्या होना था, मैंने जो इज्जत तीस साल में संभाल कर रखी थी, आज जा रही थी और मैं कुछ भी नहीं कर पा रही थी मैंने अपने सारे देवताओ को याद कर लिया कि जीजाजी का दिमाग बदल जाये और वो अब ही मुझे छोड़ दें, पर लगता है देवता भी उनके साथ थे।

फिर अचानक वो थोड़े ऊँचे हुए एक हाथ से मुझे दबा कर रखा और दूसरे हाथ से मेरी चड्डी पिंडलियों तक उतार दी और एक झटके में मेरी एक टांग से बाहर निकाल दी। अब चड्डी मेरे एक पांव में थी और मेरी चूत पर कोई पर्दा नहीं था।

उन्होंने मेरी दोनों टांगों को सीधा कर अपने भारी पांव से दबा लिया, फिर वे एक झटके से उठे और नीचे हुए, उनका लम्बा हाथ मुझे उठने नहीं रहा था, मेरी टांगें चौड़ी की, एक इस तरफ और दूसरी उस तरफ।

मैं छटपटा रही थी कि अचानक उन्होंने अपना मुंह मेरी चूत पर लगा दिया। बस मुंह लगाने की देर थी कि में जम सी गई, मेरा हिलना डुलना बंद !

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आज तक किसी ने मेरी चूत नहीं चाटी थी, पिछले एक साल से मैं चुदी नहीं थी, पिछले आधे घंटे से मैं मसली जा रही थी ! मेरी चूत पर जीजा का मुँह लगते ही मैं धराशाई हो गई, सब सही-गलत भूल गई, मेरे शरीर में आनद का सोता उमड़ पड़ा, मुझे बहुत आनन्द आने लगा।

जीजाजी जोर-जोर से मेरी चूत चूस रहे थे, चाट रहे थे, हल्के-हल्के कट रहे थे, मेरे चने को दांतों और जीभ से चिभाल रहे थे, मेरी चूत की फ़ांकों को पूरा का पूरा अपने मुँह में भर रहे थे, अपनी जीभ लम्बी और नोकीली बना कर जहाँ तक जाये, वहाँ तक मेरी चूत में डाल रहे थे।

मेरे चुचूक कड़े हो गए थे, मेरे मुँह से सेक्सी आहें निकल रही थी, मैं उनके सर पर हाथ फेर रही थी, उनके आधे उड़े हुए बालों को बिखेर रही थी !

उन्हें मेरी आहों और उनके बालो में हाथ फेरने से पता चल गया कि अब मुझे भी मजा आ रहा है, उन्होंने मेरे कमर के पास अपने दोनों हाथ लम्बे करके मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और मसलने लगे।

मुझे और ज्यादा मजा आने लगा, मैंने उनके मुंह को इतनी जोर से आपनी जांघों में भींचा कि उनकी साँस रुकने लगी और उन्होंने मेरे स्तन जोर से भींचे और मेरी चूत में काटा कि मैंने जांघें ढीली कर दी। वो इतनी बुरी तरह से मेरी चूत को चूस रहे थे कि उनकी लार बह कर नीचे बिस्तर तक पहुँच रही थी।

मैंने जितनी टांगें ऊपर उठा सकती थी, उठा ली और जोर जोर से सिसकारने लगी, मैं उन्हें जोर से चाटने का कह रही थी।

इस सब को करीब 15 मिनट हुए होंगे कि मेरा पानी उबल पड़ा, उन्होंने मुँह नहीं उठाया और चाट कर मेरा पूरा पानी निकाल दिया, मैं ठंडी पड़ गई, मुझे जिन्दगी का पहला आनन्द, परम आनन्द मिल गया।

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वो अब भी चाट रहे थे, मुझे उन पर दया आ गई, मैंने उन्हें अपने ऊपर खींचना चाहा पर वो बोले- मुझे सिर्फ तुम्हें आनन्द दिलाना था, मेरी कोई जरुरत नहीं थी।

पर मैंने कहा- नहीं, आप आओ मेरे ऊपर ! आपने मुझे इतना आनन्द दिया, अब मैं भी आपको आनन्द देना चाहती हूँ !

अब मैं मुस्कुरा रही थी, हंस रही थी !

जो जीजा थोड़ी देर पहले मेरी नफरत का केंद्र था, अब मुझे सारी दुनिया से प्यारा लग रहा था !

तब जीजाजी ने कहा- पहले बाथरूम जाकर आओ !

मैंने कहा मुझे जाने की जरुरत नहीं है आप मुझे कर लो !

उन्होंने कहा- मैं जाकर आता हूँ, फिर तुम जा आना !

मैंने कहा- ठीक है !

वो गए, फिर मैं गई।

जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी तब जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई ! सब वक़्त की बात है।

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अब तक मेरे कमरे का दरवाजा खुला ही था। पहले जीजाजी बाथरूम जाकर आये, फिर मैं बाथरूम गई, मैंने देखा मेरे मकान मालिक के और उनके बेटों के कमरों में कूलर चल रहे थे और उनके कमरे में नाईट बल्ब की रोशनी में देखा कि सब घोड़े बेच कर सो रहे थे।

मैं निश्चिंत होकर अपने कमरे में वापिस आई। कमरे में आने के बाद अब मैंने दरवाजा ढुका दिया। जीजाजी एक तरफ लेटे थे, मैं जाकर सीधा उनके सीने पर लेट गई। फिर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में पकड़ लिया और मुझे चूने लगे, साथ ही साथ उनका हाथ मेरे पीठ पर भी फिर रहा था।

उन्होंने धीरे से मुझे नीचे लिटा दिया, मैंने उनको अपने ऊपर जोर से पकड़ लिया। वो नीचे होना चाहते थे और मुझे शर्म आ रही थी इसलिए मैं उन्हें अपने मुँह के पास पकड़े हुए थी। वो मेरे गालों पर चुम्बन देते, थोड़ा थोड़ा मेरे होंटों को भी चूस रहे थे। मुझे होंट चुसवाना कभी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मेरी साँस नहीं आती थी, लेकिन जीजाजी थोड़ा सा चूसकर बार बार छोड़ देते थे इससे मुझे साँस लेने का अवसर भी मिल जाता था।

इस बीच वो नीचे सरक गए और मेरी मैक्सी पेटीकोट समेत ऊपर करने लगे, मैं भी अपनी गाण्ड उठा कर उनकी सहायता कर रही थी।

वो फिर मेरी धोई हुई चूत को सूंघ रहे थे और मैं फिर से उत्तेजित हो रही थी उनके चूत चाटने के ख्याल से।

पहले उन्होंने धीरे से अपनी जीभ मेरी पूरी चूत पर फेरना शुरू किया मैंने शर्म से अपनी मैक्सी को अपने मुँह पर ओढ़ लिया। अब मैक्सी और पेटीकोट कमर से लेकर मेरे मुँह पर ढका हुआ था और मेरी जमा-पूंजी खुली पड़ी थी, जिसे आज लुटना था और मेरा लुटाने का इरादा था।

अब वो अपनी जीभ मेरे चने पर फिरा रहे थे, कभी हल्का सा दांतों से काट रहे थे, कभी जीभ को जितना अन्दर ले जा सकते, ले जा रहे थे। मैंने अपनी तीस साल की जिन्दगी में जो आनन्द नहीं पाया, वो आज पा रही थी।

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करीब दस मिनट तक वो चाटते रहे, मैं उनके स्वयम्-नियन्त्रण पर हैरान थी कि उन्हें यह पूर्व-क्रीड़ा करते करीब एक घंटा हो गया पर वो चुदाई की कोशिश नहीं कर रहे थे। मैंने आनन्द में अपनी टांगें पूरी ऊँची कर अपनी चूत को उभार दिया था, वो हाथों से कपड़ो के ऊपर से ही मेरे स्तन दबा रहे थे।

जीजाजी की लुंगी तो पहले ही हट चुकी थी, अब कपड़ों की सरसराहट सुन कर मैं समझ गई कि वो अपना अंडरवियर उतार रहे हैं। आने वाले वक़्त की कल्पना से ही मेरे कलेजा धड़क रहा था, मेरी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ आ रहा था, आज पहली बार मेरे पति के अलावा कोई दूसरा मेरी सवारी करने की तैयारी में था।

मैं दम साधे आने वाले पलों का इन्तजार कर रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी तरह से ऊपर थी जो मेरे सर से भी पीछे जा रही थी, दुबला पतला होने का यही तो फायदा है।

अब वे घुटनों के बल बैठ गए थे और अपने मुँह से ढेर सारा थूक अपने लण्ड पर लगा रहे थे, थोड़ा मेरी पहले से गीली चूत पर भी लगाया और अपने लण्ड को मेरी छोटी सी चूत के छेद पर अड़ा दिया।

मुझे अपनी चूत पर उनके सुपारे का कड़ापन महसूस हो रहा था।

मैं सिहर गई।

उन्होंने हल्के से अपने लण्ड को मेरी चूत में ठेला, मेरी चूत ने उनके सुपारे पर कस कर उनका स्वागत किया। अब उन्हें पता चल गया कि यह किला इतनी आसानी से फ़तेह होने वाला नहीं है। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था, आनन्द की अधिकता से मैं अपनी चूत को और ऊँचा कर रही थी पर अब तक सिर्फ उनका सुपारा ही अन्दर गया था। साँस भर कर फिर उन्होंने धक्का दिया, थोड़ा और अन्दर घुसा, आनन्द के मारे मेरी हल्की सी किलकारी मुँह से निकली तो उन्हें जोश आया और थोड़ा पीछे खींच कर फिर दांत भींच कर जोर से धक्का मारा। अब उनका आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था, वो अपने माथे का पसीना पौंछ रहे थे और मेरे कान में बोले- तेरी चूत इतनी कसी कैसे है? लगता ही नहीं कि तुम दस साल के बेटे की माँ हो।

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मैंने जबाब उनका कान काट कर दिया। मेरे कान काटने से उन्हें फिर जोश आया और धचाक से अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। अब उनकी गोलियाँ मेरी गाण्ड से टकरा रही थी।

अब उन्होंने अपने हाथ मेरी गाण्ड के नीचे डाल कर मेरे चूतड़ कस कर पकड़ लिए और धक्के लगाने लगे। मेरी चूत की फांके बुरी तरह से उनके लण्ड से कसी हुई थी इसलिए वो जब ऊपर होते तो मेरी चूत भी उठ जाती इसलिए वो ज्यादा ऊँचा होकर धक्के नहीं लगा पा रहे थे। फिर थोड़ी देर में मेरी चूत गीली होने लगी और इतनी देर में उनका लण्ड भी चूत में सेट हो गया था। मेरी चूत में करीब दस महीने के बाद लण्ड घुस रहा था, दोस्तो, मैं सच कहती हूँ कि मैंने कभी अपनी चूत में अंगुली भी नहीं की थी इन दस महीनों में। अब उनका लण्ड आसानी से मेरी चूत में आ-जा रहा था पर जब मैं मजे में अपनी चूत भींच देती तो उनकी रफ़्तार धीरे हो जाती, फिर धक्के देने में जोर आता पर वो हचक हचक कर चोद रहे थे, उनके मुँह से लगातार मेरी तारीफ निकल रही थी- इतनी शानदार चूत मैंने आज तक नहीं देखी, आज जितना मजा कभी नहीं आया, आज मेरे जिन्दगी का मकसद पूरा हो गया, तुम मेरी सेक्स की देवी हो, तुम जो चाहे मुझसे ले लो !
आदि आदि।

और मैं उन बातों से मस्त होकर चुदवा रही थी। करीब दस मिनट ऐसे चोदने के बाद उन्होंने मेरी टांगें सीधी कर दी और मुझे रगड़ने लगे। 3-4 मिनट के बाद उन्होंने फिर से टांगें ऊँची कर दी। इस बार मैंने अपनी टांगें उनकी कमर में कस दी पर 4-5 धक्कों से ही वो थकने लगे तो मैंने फिर से ऊँची कर ली।

अब उनका लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था और मुझे दर्द के साथ आनन्द भी आ रहा था। मैं झड़ने लगी, मेरे मुँह से गूँ गूँ की आवाजें आ रही थी और करीब एक मिनट तक मेरा शरीर ऐंठता रहा।

उन्हें पता चल गया था इसलिए वो जोर जोर से चोद रहे थे। फिर मैं अचानक ढीली पड़ गई और उन्होंने लण्ड बाहर निकाल लिया,

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मैंने कहा- आपका आ गया क्या?

उन्होंने कहा- नहीं, अभी कहाँ आएगा !

मुझे बड़ा अचरज हुआ।

उन्होंने कहा- पहले तुम्हें दोबारा गर्म करता हूँ।

उन्होंने थोड़े चुम्बन दिए, स्तन दबाये। उन्होंने मेरी चोली खोलने की कोशिश क़ी तो मैंने मना कर दिया और कहा- ऊपर से दबा लो, यहाँ पराये घर में हैं।

फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा और ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने लगे। एक हाथ से मेरे चूत के चने को हल्के हल्के छेड़ रहे थे, उसे गोल गोल घुमा रहे थे।

मुझे आज पता चला कि कोई आदमी इतनी काम कला में निपुण भी हो सकता है !

आज तक मेरे पति ने ऐसा मुझे तैयार नहीं किया था।

मुझे मेरे जीजाजी बहुत प्यारे लग रहे थे कि उन्हें मेरे आनन्द की कितनी चिंता है और उनमें रुकने का कितना स्टेमिना है।

उनके थोड़ी देर के प्रयास से मैं फिर से गर्म हो गई थी, मैं तब तक तीन बार झड़ चुकी थी जो मेरी जिन्दगी में पहला मौका था एक रात में। मेरे पति के साथ तो कभी कभी ही चरम सुख मिलता था।

अब मैं जीजाजी को अपने ऊपर खींचने की कोशिश करने लगी, वे समझ गए, उन्होंने मेरी सूखी चूत को थूक से गीला किया और अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया एक ही झटके में !

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मैं थोड़ा उछली फिर शांत हो गई। मेरी टांगें मेरे सिर के ऊपर थी। मेरे जीजाजी मेरी टांगों नीचे से हाथ डाल कर मुझे दोहरी कर अपने हाथ मेरे वक्ष तक ले आये और वे धक्के के साथ स्तन भी दबा रहे थे, मेरे आनन्द की कोई सीमा नहीं थी।

करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं फिर झड़ने के करीब थी। अब लगातार चुदाई से मेरी चूत में जलन भी होने लगी थी, चूत कुछ सूज भी गई थी।

मैंने जीजाजी को कहा- आपको कोई बीमारी है क्या? आधे घंटे से चोद रहे हो और आपके एक बार भी पानी नहीं निकला?

यह सुनकर हँसे और कहा- मेरा अपने दिमाग पर काबू है, चाहूँ तो 5-7 मिनट में पानी निकाल सकता हूँ और चाहूँ तो 30-40 मिनट तक भी चोद सकता हूँ।

मुझे बड़ा अचम्भा हुआ !

फिर मैंने कहा- मैं थक गई हूँ, ऐसा लगता है कि मुझे 3-4 जनों ने मिलकर चोदा है, अब आप अपना पानी निकाल लो !

उन्होंने कहा- ठीक है, तुम दो मिनट तक पड़ी रहो।

फिर उन्होंने तूफानी रफ़्तार से धक्के मारने शुरू किये। मैं दांत भींच कर सहन कर रही थी राम राम करते।

फिर उनका पानी छूटा तो उन्होंने मुझे इतनी जोर से भींचा कि मेरी हड्डियाँ बोल उठी।

आज मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके प्रति प्रंशसा का भाव जगा।

कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है तो सही।

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फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया है।

पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।

मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।

मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।

उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब सो जाओ।

कहानी चलती रहेगी।

तब मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके प्रति प्रंशसा का भाव जगा।

कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है तो सही।

फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया है।

पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।

मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।

मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।

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उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब सो जाओ।

मैंने उन्हें कहा- ऐसे मेरी नींद खुल जाती है तो फिर मुश्किल से ही आती है्।

तो उन्होंने मेरी तरफ मुँह करके मुझे चूम लिया और कहा- चलो अब नहीं सोते हैं, बातें करते हैं।

अब उन्होंने पूछा- तुम्हें कैसा लगा?

तो मैंने कहा- मुझे नहीं पता कि अच्छा हुआ या बुरा !

फिर उन्होंने मुझे कहा- मुझे डर लग रहा था कि कहीं तुम कोई उल्टा कदम न उठा लो लेकिन अब जब तुम्हें खुश देखा तो मेरी परेशानी ख़त्म हो गई !

फिर उन्होंने पूछा- तुम मान कैसे गई?

तो मैंने कहा- अगर मुझे पता होता कि आप ऐसा करोगे तो मैं आपको यहाँ बुलाती ही नहीं और यह अनजान शहर नहीं होता, मेरा या आपका घर होता तो मैं आपको भगा देती। पर खैर मेरी किस्मत में ही यही लिखा था। आप तो सो गए थे, फिर यह आपको क्या सूझा?

तो उन्होंने कहा- तुमने जो मैक्सी पहनी थी, उसकी बांहों के पास कट है, जब भी तुम मोबाईल पर बात करती वो कंधे नंगे हो जाते और मैं किसी के कंधे देखकर उत्तेजित हो जाता हूँ। पहले तो मैं सो गया पर रात को दो बजे मुझे पेशाब लगा, तब तुम नींद में मेरे नजदीक सो रही थी। फिर मेरी अन्तर्वासना जाग उठी और मेरे दिमाग में यही था कि इसका पति काफी समय से बाहर है, मुझे इसको संतुष्ट करना है। इसलिए मैंने तुम्हें पकड़ लिया।

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फिर उन्होंने मुझे पूछा तो मैंने बताया कि पिछले छः माह से मेरे पति ने फोन नहीं किया इसका मुझे गुस्सा था और जब मैं नौकरी पर जाती हूँ तो सबकी नज़र मुझ पर होती है तो मैंने सोचा कि सेक्स करना ही है तो जीजाजी के साथ ही करूँ, कम से कम मेरे परिवार के तो हैं, मेरी बदनामी तो नहीं करेंगे। और जब आपने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तो मैं पागल हो गई और मैंने सारा विरोध छोड़ दिया। फिर जब आप अपना नहीं कर रहे थे तो मुझे आप पर दया आई कि बेचारे ने चाट कर इतना आनन्द दिया और इतनी दूर से आए हैं तो इन्हें भी इनाम मिलना चाहिए, इसलिए मैंने आपको अपने ऊपर खींचा।

बातें करते जा रहे थे और मेरे जीजाजी मुझे सहलाते भी जा रहे थे। हमें बाते करते करीब 20 मिनट हो गए थे कि अचानक वे उठे, अपनी चड्डी एक टांग से बाहर निकाली, अपने सुपारे के ऊपर थूक लगाया और मेरी चूत में डाल दिया।

मैं चिहुंक उठी क्योंकि सूजन से मेरी चूत का छोटा सा दरवाजा भी बंद हो गया था पर सुपारा घुसा तब ही दर्द हुआ, अन्दर जाने के बाद अच्छा लगा।

मैंने कहा- अभी तो आपने किया है ! फिर से?

उन्होंने कहा- मुझे सिर्फ़ तुम्हें आनन्द देना है, मेरे लिए जरुरी नहीं है !

और इस बार वो मेरे ऊपर आड़े लेट गए उनका लण्ड घुसा हुआ था और उनका सर और पांव मेरे ऊपर नहीं थे, वे मुझे टेढ़े होकर चोद रहे थे, उनके लण्ड का बीच का हिस्सा बार बार मेरे चूत के चने से घर्षण कर रहा था। मुझे फिर आनन्द आने लगा और मैंने उनको मेरी टांगें उठा कर चोदने को कहा।

फिर उन्होंने मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी टांगें अपने कंधों पर रख ली और जोर-जोर से चोदने लगे।

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मेरी सांसें तेज हो रही थी, मैं आनन्द से धीमे-धीमे चिल्ला रही थी, उन्हें पता था इसलिए वो बिना रहम किये जबरदस्त तरीके से धक्के मार रहे थे कि मेरी चूत से आनन्द का सोता उमड़ पड़ा और मैं ठंण्डी पड़ गई।

उन्होंने एक झटके से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

मैंने पूछा- क्या हुआ? आपके भी आ गया?

तो उन्होंने कहा- नहीं, मुझे निकालना नहीं है, मैं तो तुझे आनन्द दे रहा था, मेरी जरुरत नहीं है।

मुझे पहली बार पता चला कि इस आदमी में कितना आत्मनियन्त्रण है !

हम फिर से लेट कर बातें करने लगे। करीब साढ़े चार बज गए थे। साथ ही साथ जीजाजी के हाथ मेरे पूरे बदन पर फिरा रहे थे, मैं पूरी बेशरम हो गई थी मेरी मैक्सी पूरी ऊपर थी, चड्डी का पता नहीं था और एक टांग उनके ऊपर रख कर अपनी नंगी चूत उनकी जांघ पर रगड़ रही थी।

सुबह के करीब पाँच बजे फिर जीजाजी ने मेरी चूत टटोलनी शुरू की और एक बार फिर मैं चुद रही थी। उन्होंने मुझे घोड़ी बनने को कहा पर मैंने मना कर दिया, मुझे डर था कि अब मकान मालिक आदि जागने वाले हैं।

उन्होंने कहा कि जैसे कुत्ता कुत्ती के पीछे पड़ता है, वैसे मैं तेरे पीछे पड़ा हूँ और जबरदस्ती चोद रहा हूँ !

मुझे भी ऐसे ख्याल आये और मैं बुरी तरह से उत्तेजित हो गई मैंने उनको बुरी तरह से जकड़ लिया और वो पूरे बीस मिनट तक मेरी चूत का बाजा बजाते रहे।

मैं इस बीच दो बार झड़ चुकी थी।

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फिर उन्होंने अचानक अपना लण्ड बाहर निकाला और मेरे कमरे में जिस तरफ मटकी रखती हूँ, वहाँ पानी जाने की नाली है, वहाँ गए।

मैंने कहा- ऐसे क्यों निकाला? कंडोम तो होगा ना !

उनके जबाब से मेरा कलेजा धक से रह गया कि कंडोम तो दोनों बार लगाया ही नहीं, अँधेरे में मिला ही नहीं ! कहाँ गया पता नहीं !

मुझे फिकर हुई तो उन्होंने कहा- मैंने पहले भी बाहर ही निकाला है, चिंता मत करो !

तब तक पौने छः हो गए और मैं नित्य-क्रिया के लिए उठ गई।

सुबह का प्रकाश फैला तो मैं जीजाजी से और जीजाजी मुझसे नज़रें चुराने लगे।

फिर मैंने जीजाजी को चाय पिलाई, मैं जीजाजी से आँखें चुरा रही थी, वे भी मुझसे आँखें चुरा रहे थे।

मैंने चाय बनाई और उनकी तरफ सरका दी। उन्होंने भी चुपचाप चाय उठाई और पी ली। फिर वो अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में चले गए और वहीं से शर्ट और जींस पहन कर ही आये। मैंने भी उन्हें कंघा, तेल आदि दिए और अपने कपड़े उठा कर बाथरूम में चली गई, अपने पाप धोने पर वहाँ मल-मल कर नहाने के बाद भी सोच रही थी कि सिर्फ तन ही धुल रहा है मन नहीं।

मैं सब घटनाओं को सोच रही थी कि यह क्या हो गया? मैंने अपने जिंदगी में पहली बार दूसरे मर्द के साथ सेक्स किया, वो भी अपने जीजाजी के साथ !

मैं सोच रही थी कि मैंने अपनी दीदी की अमानत पर डाका डाला है।

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पहले मैंने सोचा था कि जीजाजी को अपने साथ में काम करने वालों से मिलवाऊँगी पर अब मन में अपराध की भावना आ गई और सोचा अब तो कमरे से बाहर ही कैसे जाऊँगी। मैंने सोच लिया अब किसी को कहूँगी ही नहीं कि जीजाजी आये थे।

मैं विचार कर रही थी कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मैंने तो उनको बहुत रोका पर एक तरह से तो उन्होंने मेरा बलात्कार ही किया था।

मैंने सब इश्वर की इच्छा मान ली कि उसकी मर्जी थी कि तीस साल की उम्र में मेरा धर्म भ्रष्ट होना था, मुझे जीजा अच्छे भी लगे थे कि काश ये मेरे जीजाजी नहीं होते तो दीदी के बारे में तो सोचना नहीं पड़ता।

फिर मैंने सोच लिया कि जो हो गया सो हो गया, अब नहीं होना चाहिए, रात गई और बात गई।

ऐसा सोचते मैं नहा कर अपने कमरे में आ गई।

जब मैं नहा कर कमरे में गई तो मैंने देखा कि मेरे कमरे दूसरा गेट जो बाहर गली में खुलता है उसमें से एक कुत्ता कमरे में घुस गया है और कमरे में रखे बर्तनों को सूंघ रहा है।

मैं जोर से कुत्ते पर चिल्लाई तो कुत्ता तो भाग गया और जीजाजी हड़बड़ा कर उठ गए।

उन्होंने कुत्ते को भागते देखा तो लजा कर कुछ डर के साथ बोले- सॉरी ! मुझे नींद आ गई !

इस सारे घटनक्रम पर मेरी हंसी छुट गई। मुझे यह अच्छा लगा कि शेरदिल जीजाजी जो किसी से नहीं डरते हैं, मुझसे डर रहे हैं, आज तक मुझे उनसे डर लगता था।

मुझे हँसता देख कर वो भी मुस्कुरा दिए और कमरे का वातावरण कुछ हल्का हो गया।

फिर मैं नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगी और वो बाज़ार चले गए। मैंने खाना बनाया तब तक वो भी बाज़ार से मिठाई, नमकीन और फल लेकर आ गए।

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अब हम दोनों कुछ राहत महसूस कर रहे थे।

फिर मैंने उन्हें कहा- नाश्ता कर लो !

तो उन्होंने कहा- हम साथ ही खायेंगे !

फिर हम दोनों ने नाश्ता किया, ज्यादा बातचीत नहीं की और नाश्ते के बाद फिर दूर दूर लेट गए। मेरे कमरे का घर के अन्दर वाला गेट खुला था और मकान मालिक की बहू एक दो बार देख कर भी जा चुकी थी।जीजाजी सो गए जींस शर्ट पहने हुए ही। और ऐसे सोये कि शाम को चार बजे जगे।

तो मैंने चाय बना कर पिलाई फिर मैं अपने ऑफिस का काम करने लगी। एक दो बातें उन्होंने मेरे काम के बारे में पूछी फिर उन्होंने अपना बटुआ निकाला और दो हज़ार हज़ार के नोट मुझे देने लगे।

मैंने मना किया तो कहा- अच्छी सी साड़ी ले लेना !

बहुत कहने पर मैंने ले लिए। उनके पास दस दस के नोट थे तो मैंने कहा मुझे सौ रूपये खुले दे दो !

उन्होंने दे दिए, मैंने सौ का नोट देना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया।

मैंने कहा- इतने दिलेर हो तो पाँच-दस हज़ार और दे दो !

वो सचमुच देने लगे तो मैंने उन्हें रोक दिया।

वो कहने लगे- जो तुमने मुझे दिया है वो अनमोल है, तुम्हारे लिए रूपये तो क्या जान भी हाजिर है।

मैं इतना सुनकर भावविभोर हो गई और कहा- नहीं मुझे जान नहीं आप जिन्दे ही चाहिएँ।

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तभी दीदी का फोन आया, उन्होंने बात की, उसने पूछा- कब आ रहे हो?

तो जीजाजी बोले- शाम को छः बजे गाड़ी है, वो गाँव रात बारह बजे पहुँचेगी।

तो दीदी ने कहा- स्टेशन गाँव से इतनी दूर है, रात को कौन लेने आएगा? आप फिर सुबह ही आना !

जीजाजी ने कहा- ठीक है !

फिर दीदी ने मुझसे बात की, मैंने उन्हें कहा- तुम चिंता मत करो, आज उसी होटल में रह जायेंगे, कल आ जायेंगे।

तो दीदी ने कहा- अपने जीजाजी को सब जगह घुमा देना !

मैंने कहा- तुम चिंता मत करो !

फिर फोन रख दिया। अब मैंने सोचा कि आज फिर जीजाजी रुकेंगे !

इस बात की ना तो ख़ुशी हो रही थी ना दुःख।

तभी होटल वाले का फोन आ गया- मैडम जी, आपके जीजाजी यहीं हैं क्या? या चले गए?

मैंने कहा- यहीं हैं।

तो उन्होंने कहा- खाना यहीं खाना है !

मैंने कहा- ठीक है, पर ये प्याज-लहसुन नहीं खाते !

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उसने कहा- आप चिंता न करें, हम जैन खाना बना देंगे।

शाम सात बजे हम होटल के लिए रवाना हुए। आज मैंने सलवार-कुर्ती पहनी थी जब मैं कपड़े बदलने के लिए बाथरूम जा रही थी तब जीजाजी ने कहा था- अब तो मेरे सामने ही बदल लो !मैंने शरमा कर मना कर दिया और मैं बाथरूम से ही कपड़े बदल कर आई थी।

सलवार कुर्ती में मैं कम से कम दस साल छोटी लग रही थी, मैं वैसे ही पतली हूँ इसलिए कॉलेज की छात्रा सी लग रही थी, जीजाजी तो देखते ही रह गए और उनकी निगाहें मुझ से हट ही नहीं रही थी, वो मेरी तारीफ पर तारीफ किये जा रहे थे।

मैं काफी कुछ करीना की तरह लगती ही हूँ, ऐसा कई लोगो ने मुझे कहा था, जीजाजी की तारीफें सुन कर मुझे ख़ुशी हो रही थी और मैं शरमा भी रही थी। 99 प्रतिशत औरतें तारीफ पर खुश होती हैं, भले ही झूठी ही हो, वैसे मेरी तो वो सच्ची तारीफ ही कर रहे थे।

वो अवाक से थे सलवार कुर्ती में मेरी जवानी देख कर !

और हम बाज़ार में चल रहे थे मुझे लग रहा था कि अकेले होते तो वो मुझे मसल देते। सारे समय उनकी निगाहें मुझ से हट नहीं रही थी।

होटल पहुँचे तो वहाँ साहब भी आये हुए थे, वो होटल के लॉन में कई लोगों से घिरे हुए बैठे थे।

मैं सीधे होटल के अन्दर आ गई और जीजाजी के साथ कुर्सी पर बैठ गई।

होटल वाले ने आकर कहा- मैडम जी, साहब भी आये हुए हैं।

मैंने कहा- मैंने देख लिया है और उन्होंने भी हमें देखा है।

थोड़ी देर में साहब भी अन्दर आ गए और मेरे जीजाजी से हाथ मिला कर अपना परिचय दिया। जीजाजी ने भी अपना परिचय दिया और वे बातें करने लगे, मैं सिर्फ सुन रही थी। आज मुझे पता चला कि जीजाजी बोलने में कितने होशियार हैं। उन्होंने साहब को भी प्रभावित कर दिया, मैं भी उनकी तरफ प्रशंसात्मक दृष्टि से देखती रही।

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तब होटल वाले ने कहा- आप सब खाना खा लीजिए।

तो साहब बोले- मैंने खाना अपने बंगले में बनवा लिया है, आप भी चलो, वहीं खाना खाते हैं।

मैंने मना कर दिया, मुझे पता है कि वे मांस-मच्छी खाते हैं, मीणा हैं और जीजाजी तो प्याज भी नहीं खाते।

फिर साहब चले गए और हम खाना खाने बैठे।

होटल मालिक भी हमारे साथ ही बैठा, उसने जीजाजी को बीयर को पूछा। मैंने जीजाजी की तरफ देखा, जीजाजी ने मना कर दिया।

होटल वाला हंसा- कहीं आप साली जी से तो नहीं डर रहे हैं?

उन्होंने कहा- नहीं !

होटल वाला भी बड़ा आदमी था, उम्र में भी मुश्किल से 25 साल का था और मेरी बहुत इज्जत करता था।

खाना खाने के बाद उसने पान का पूछा, उसको भी हमने मना कर दिया।

फिर उसने कहा- जीजाजी, आप मैडम के जीजाजी हैं तो हमारे भी जीजाजी हैं आप आज यहीं सो जाओ मेरे होटल में ! मैडम का कमरा तो छोटा है !

तब मैं बीच में बोली- नहीं, वहाँ मकान मालिक का कमरा ख़ाली है, ये वही सोते हैं।

तो उसने कहा- ठीक है।

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उसने खाना खाने आने के लिए जीजाजी को धन्यवाद दिया और कहा- कभी इधर आना हो तो यहीं आना, आपका स्वागत है।

मुझे भी बड़ी ख़ुशी हुई उसका व्यवहार देख कर ! भले ही वो साहब के कारण था।

फिर हम वापिस अपने कमरे में आ गए।

कहानी चलती रहेगी।

होटल से खाना खाकर हम वापिस अपने कमरे में आ गए।

मैं अपनी मैक्सी लेकर बाथरूम में चली गई बदलने के लिए, तब तक जीजाजी ने भी कपड़े उतार कर लुंगी लगा ली।

मैं भी कमरे में आई और बत्ती बुझा कर लेट गई।

मैंने कमरे में आते ही दरवाजा बंद कर दिया जबकि पिछली रात मैंने पूरा दरवाज़ा खोल रखा था अपनी असुरक्षा की भावना के कारण।

और जीजाजी ने जबरदस्ती मेरी चूत चाटी तब दरवाजा खुला हुआ ही था पर मेरा कमरा एक तरफ अलग को था कोई चल कर आये तभी आ सकता है।

जीजाजी ने जब मुझे पकड़ा तो कमरे की रोशनी तो वैसे भी बन्द थी और रात के दो-ढाई बजे थे, किसी के देखने का कोई सवाल ही नहीं था, पर जब उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया तब उन्होंने गेट को थोड़ा ढुका दिया था। पर आज कोई ऐसी बात नहीं थी इसलिए मैंने कमरे में आते ही दरवाजा बंद कर कुण्डी लगा ली थी, जीजाजी उस बिस्तर पर एक तरफ लेटे हुए थे और एक तरफ मैं भी लेट गई।

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मैंने जिंदगी में कभी सेक्स के लिए कभी पहल नहीं की थी, अगर वो चुपचाप रात भर सोये रहते तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता और मैं भी आराम से सो जाती।

मेरी सक्रिय यौन जीवन को काफ़ी साल हो चुके थे पर मैंने अपने पति से भी कभी पहल नहीं की, सेक्स मुझे कभी अच्छा ही नहीं लगा था।

हाँ जब वो छेड़ना शुरू करते तो उनकी संतुष्टि कराते कराते कभी मुझे भी मज़ा आ जाता पर मेरे लिए यह कोई जरुरी काम नहीं था।

मैं सीधी सो रही थी कि जीजाजी ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे भी अपनी तरफ मोड़ लिया और बांहों में भर लिया।

मैं थोड़ी कसमसाई, फिर मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। मुझे पता चल गया था कि अब इनको नहीं रोक सकती, जहाँ मैं और वो तन्हाई में हैं तो मेरा विरोध कोई मायने नहीं रखता, रात के अँधेरे में जब दो जवान जिस्म पास हों तो सारे इरादे ढह जाते हैं।

अब मुझे दीदी नहीं दिख रही थी, जीजाजी नहीं दिख रहे थे दिख रहा तो मेरा प्यारा आशिक दिख रहा था जिसने मुझे जिंदगी का वो आनन्द दिया था जिससे मैं अब तक अनजान थी।

जीजाजी मेरे गले गाल और कंधे पर चुम्बनों की बौछार कर रहे थे, उन्होंने कई बार मेरे लब भी चूसने चाहे पर मैंने उनका मुँह पीछे कर दिया, मुझे ओंठ चूसना-चुसवाना अच्छा नहीं लगता था, एक तो मेरी साँस रुक जाती थी दूसरा मुझे दूसरे के मुँह की बदबू आती थी।

जीजाजी मेरे सारे बदन पर हाथ फेर रहे थे। मैंने मैक्सी खोली नहीं थी, ना ही ब्रेजियर खोला, वो ऊपर से ही मेरे छोटे छोटे नारंगी जैसे स्तन दबा रहे थे, मेरे शरीर पर बहुत कम बाल आते हैं, मेरे साथ वाली लड़कियाँ पूछती हैं कि मैंने हटवाए हैं क्या? जबकि कुदरती मेरे बाल कम आते हैं टाँगों पर तो रोयें भी नहीं हैं थोड़े से जहाँ आते हैं वो ऊपर की तरफ ! चूत तो वैसे भी मेरी चिकनी रहती है।

मेरे जीजाजी मेरे चिकने बदन की तारीफ करते जा रहे थे और हाथ फेरते जा रहे थे। उनका हाथ मेरे चिकने बदन पर फिसल रहा था, मेरी मेक्सी कमर पर आ गई थी, उनकी लुंगी भी फिसल कर हट गई थी, वे सिर्फ चड्डी पहने हुए थे।

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मैं बाथरूम में ही अपनी कच्छी उतार आई थी, मुझे पता था, जीजाजी जिस तरह सारे रास्ते फाड़ खाने वाले अंदाज से घूर रहे थे, उस हिसाब से मेरी कच्छी मेरे बदन पर रहनी ही नहीं थी। मैं उसे हाथ में ही लेकर आई थी और कपड़ों में रख दिया था सुबह पहनने के लिए।

सिर्फ मेक्सी ही बची थी मेरे शरीर पर, मेरा पेटीकोट भी कब का उतार कर सिरहाने की तरफ फेंक दिया था उन्होंने।

अब वो मुझे बुरी तरह से चूम रहे थे, उनकी अंगुलियाँ मेरी सूजी हुई चूत की फांकों पर घूम रही थी। उनकी एक अंगुली ने मेरा चूत का दाना ढूंढ लिया था, उस पर वो अंगुली गोल गोल घूम रही थीम मेरे मुँह से आ…..ह आ …ह की सिसकारियाँ निकल रही थी।

मुझे पिछली रात का मेरी चूत चटाई का दृश्य याद आ गया था, मुझे जैसे जीजाजी के आधे उड़े हुए बालों वाला सर मेरी चूत के पास महसूस हो रहा था और ख्यालों में उनके सर को अपनी जाँघों में भींचने के लिए अपने पैर आपस में रगड़ रही थी।

मेरा मन कर रहा था कि मेरे जीजाजी मेरी चूत को चाटें, हल्का-हल्का काटें और अपनी जीभ को गोल करके जितना अन्दर घुसा सकते हों घुसा लें।

मुझे ताज़ा ताज़ा चूत चटाई को जो आनन्द पहली बार मिला था मैं वो फ़िर से पाना चाहती थी पर शर्म के मारे यह बात कह नहीं पा रही थी और शायद जीजाजी का आज चूत चाटने की कोई योजना नहीं थी इसलिए वो मुँह मेरे मुँह और वक्ष से नीचे ही नहीं ले जा रहे थे।

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फिर वो ऊँचे हुए तो मैंने सोचा कि शायद चूत चाटने की बारी आई पर उन्होंने तो अपनी चड्डी अपनी एक टांग से निकाली, वो कभी अपनी चड्डी पूरी नहीं उतारते थे, एक टांग में पिंडली के पास चड्डी को रखते थे कि कभी जल्दी से चड्डी पहननी पड़े तो पहन लें, उन्होंने मेरी टांगें ऊँची की और अपने लण्ड के सुपारे पर थोड़ा थूक लगाया और मेरी चूत के मुहाने पर रख कर झटका लगाने की तैयारी करने लगे पर मुझे यह मंजूर नहीं था तो मैंने उनको हटाने के लिए हल्का सा धक्का दिया और उनका लण्ड फिसल गया।

वे चौंके, बोले- क्या कर रही हो?

मैंने कहा- अभी रुक जाओ, बाद में करेंगे !

उन्होने कहा- प्लीज !

मैंने कहा- नहीं !

वो जबरदस्ती मेरी चूत में लौड़ा घुसाने की कोशिश कर रहे थे, साथ ही गिड़गिड़ा भी रहे थे- करने दो प्लीज !मैंने कहा- अभी नहीं ! आधी रात के बाद करना, अभी मकान में कई लोग जाग रहे होंगे, उन्हें पता चल जायेगा !

वो प्लीज प्लीज करते करते मेरी चूत में अपना लण्ड डालने की कोशिश भी कर रहे थे और वो थोड़े कामयाब भी हो गए, उनका सुपारा आधा-एक इंच तक मेरी चूत में घुस भी गया था और वो आनन्द में थोड़े ढीले पड़े और मैंने उनको जोर का धक्का देकर नीचे गिरा दिया पक की आवाज के साथ उनका लण्ड मेरे चूत से निकल गया और फटाक से मैंने अपनी मैक्सी नीचे अपनी पिंडलियों तक कर ली।

जीजाजी अचानक धक्के से मेरी बगल में गिर गए। वो थोड़ी देर तो जैसे सकते में आ गए हों, कुछ बोल नहीं पाए ! शायद मुझ पर ग़ुस्सा भी हो रहे होंगे पर मुझे पता है कि मर्द का गुस्सा कितना स्थाई रहता है जब उसका लण्ड खड़ा हो।

फिर वो बोले- क्या हुआ? लण्ड निकाला क्यूँ ? मेरी हालत ख़राब है, मेरी जान निकल जाएगी अगर तुमने चुदवाया नहीं तो !

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मैंने कहा- मैंने कब मना किया है, पर थोड़ा रुको तो सही ! कम से कम बारह तो बजने दो, ताकि सब सो जायें ! फिर अपने पास तो सारी रात पड़ी है।

मेरी बात सुनकर वो खुश हो गए और बोले- ठीक है ! अब तुम कहोगी, तब ही डालूँगा !

और फिर से मुझे बांहों में भर लिया और चूमने लगे।

एक मिनट में ही मेरी मैक्सी अपने पुरानी जगह यानि कमर के पास आ गई थी, उनके हाथ मेरी जांघों, पिंडलियों और मेरी छोटी सी चूत के ऊपर फिर रहे थे।

शायद उन्हें पता चल गया था कि मैं क्या चाहती हूँ। वो उठे और अपना मुँह मेरी चूत में घुसा दिया।

आनन्द के मारे मेरी आ..आ..आह. की सिसकारी निकल गई और मैंने खुदबखुद अपनी टांगें चौड़ी कर ली। अब वो बड़े मज़े से मेरी चूत चाट रहे थे, बल्कि खा रहे थे।

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वो शायद अपना गुस्सा मेरी चूत पर निकाल रहे थे पर मुझे बहुत आनन्द आ रहा था।

वो कभी मेरी पूरी चूत को अपने मुँह में लेने की कोशिश कर रहे थे, साँस के साथ मेरी फांकों, चूत के दाने और साथ की चमड़ी को भी खींच के मुँह में भर रहे थे और जितनी देर रख सकते थे, रख रहे थे।

मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था, मेरी आँखें बंद थी और मुँह से सिसकारियों पर सिसकारियाँ छुट रही थी। कभी कभी जब उनके दांत सीधे चूत में चुभ जाते तो मैं उछल जाती और वो हाथों से मेरे हाथ दबाकर मुझे इशारा कर देते कि अब ध्यान रखूँगा !

वो अपने होंठों के पीछे दांत रख कर मेरे चूत के दाने को चिभला देते तो मेरा आनन्द बढ़ जाता।

वे अपनी जीभ को गोल कर मेरी मेरी चूत में घुसा रहे थे और मैं कह रही थी- और अन्दर डालो !

वो कहते- इससे ज्यादा जीभ नहीं जा सकती !

साथ ही अपनी चार उंगलियाँ मोड़कर बीच वाली उंगली को चूत में घुसाने की कोशिश कर रहे थे, इस कोशिश में उनका अंगुली का हिस्सा मेरे दाने को रगड़ रहा था। मेरा बदन कांप रहा था, पूरे शरीर में झुरझुरी सी हो रही थी, मैं जाड़े के बुखार की तरह कांप रही थी, मेरा पानी छुट रहा था, मेरा पानी दो-तीन मिनट तक छूटता है लगातार, और मैं सांसें भरती हूँ, उलजलूल बकती हूँ और पानी छोड़ती हूँ !

जीजाजी मेरा पानी चाट रहे थे, उनकी लार मेरी चूत पर गिर रही थी और वो लार बहकर मेरी गाण्ड से होते हुए नीचे बिस्तर को गीला कर रही थी।

जब मैं पूरी तरह से स्खलित हो गई तो मैंने उनको रोक दिया और खींच कर अपने से लिपटा लिया।मुझे बहुत आनन्द आया था इसलिए मैं उन्हें चूम रही थी, वो भी थोड़ा शांत हो गए थे।

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थोड़ी देर के बाद फिर वो मुझे सहलाने लगे अब मैं शांत होकर उनका सहयोग कर रही थी, मेरा आनन्द मुझे चूत चटवा कर मिल गया था, अब मैं उन्हें मज़ा देना चाहती थी।

जीजाजी ने मुझे फिर से सहलाना शुरू कर दिया। शायद उनके हाथों में जादू है, थोड़ी देर में ही फिर से मेरी सीत्कारें निकालनी शुरू हो गई। जीजाजी को इस बात का पता चल गया था और वे फिर नीचे खिसक कर फिर से मेरी चूत चाटने लगे।

मेरे मुँह से तो आ….आ…की आवाजें आ रही थी।

फिर वे थोड़ा ऊँचे हुए और अपनी अंगुली से मेरा छेद टटोला और अपना सुपारा छेद पर भिड़ा दिया।

मैंने भी उनके लण्ड को अपनी चूत में लेने के लिए अपनी चूत को ढीला छोड़ा और थोड़ी अपनी गाण्ड को ऊँची की, मेरी दोनों टांगें तो पहले से ही ऊँची थी।

जीजाजी ने अपने दोनों हाथ मेरे चूतड़ों के नीचे ले जाकर मेरी चूत को और ऊँचा किया और एक ठाप मारी।

थूक से और मेरे पानी से गीली चूत में उनका लण्ड गप से आधा घुस गया। मुझे थोड़ा दर्द हुआ क्योंकि मेरी चूत के पपोटे पिछली चुदाई की वजह से थोड़े सूजे हुए थे। पर जब लण्ड अन्दर घुस गया तो फिर मेरा दर्द भी ख़त्म हो गया और मेरे बदन में आनन्द की हिलोरें उठने लगी।

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जीजाजी ने हल्का सा लण्ड पीछे खींचा और फिर जोर से धक्का मारा, मैं सिहर उठी, उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी से टकरा गया। उनका लण्ड झड तक मेरी चूत में घुस चुका था, उन्होंने पूरा घुसा कर राहत की साँस ली और मैंने अपनी चूत का संकुचन कर उनके लण्ड का अपनी चूत में स्वागत किया जिसे उन्होंने अपने लण्ड पर महसूस किया। जबाब में उन्होंने एक ठुमका लगाया।

मैंने साँस छोड़ कर उनको स्वीकृति का इशारा दिया और उन्होंने घस्से लगाने शुरू कर दिए। मैंने अपनी आँखों पर वहीं पड़ी अपनी चुन्नी ढक ली और आनन्द लेने लगी, मुँह ढक लेने से शर्म कम लगती है।

और चुन्नी के अन्दर से उनको कभी कभी चूम भी लेती थी। उन्होंने कस कर दस मिनट तक धक्के लगाये, फिर मेरी टांगें सीधी कर दी, अपने दोनों पैर मेरे पैरों पर रख दिए और अपने पैर के अंगूठों से मेरे पैर के पंजे पकड़ लिए और दबादब धक्के मारने लगे। दोनों पैर सीधे रखने की वजह से मेरी चूत बिल्कुल चिपक गई थी और उनका लण्ड बुरी तरह से फंस रहा था।

थोड़ी देर में ही उन्हें पता चल गया कि इस तरह तो वो जल्दी स्खलित हो जायेंगे तो उन्होंने फिर से अपने पैर मेरे पैरों से हटा कर बीच में किये और मेरे कूल्हे पर हल्की सी थपकी दी। मैं उनका मतलब समझ गई और फिर से अपनी टांगें ऊँची कर दी।

इतनी देर की चुदाई के बाद मेरा पानी निकल गया था और फिर उन्होंने अपना लण्ड फिर से बाहर निकाला और अपनी थूक से भरी जीभ मेरी चूत पर फिराई।

मैंने कहा- धत्त ! बड़े गंदे हो ! अब वहाँ मुँह मत लगाओ !

तो उन्होंने कहा- पहले लगाया तब?

मैंने कहा- अब आपका लण्ड घुस गया है, अब नहीं लगाना !

उन्होंने कहा- मैंने पहले तेरी चूत चाटी, अब अपने लण्ड का भी स्वाद ले रहा हूँ !

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पर मैंने कहा- नहीं अब आप मुझे चूमना मत !

उन्होंने कहा- मुझे तो चोदना है, चूमने की जरुरत नहीं है।

मैंने कहा- ठीक है !

एक बार फिर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में फंसा दिया। सुपारा घुसा तब थोड़ा दर्द हुआ फिर सामान्य हो गया।

अचानक मुझे याद आया, मैंने पूछा- कंडोम लगाया या नहीं?

उन्होंने कहा- नहीं !

मैंने उचक कर कहा- तो फिर अपना लण्ड बाहर निकालो और कंडोम पहनो !

उन्होंने हंस कर कहा- अभी पहन लिया है, चैक कर लो !

मैंने कहा- मुझे आपकी बात का विश्वास है !

उन्होंने कहा- नहीं, चैक करो !

और चोदते हुए उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मेरी अंगुलियों से अपने लण्ड को छुआ दिया। कंडोम पहना हुआ थाम मेरी अंगुली आधे लण्ड को छू कर रही थी और अंगुली से घर्षण करते हुए उनका लण्ड मेरी चूत में दबादब जा रहा था।

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उन्होंने कहा- अपने हाथ से चूत पर पहरा रखो कि यह अन्दर क्या घुस रहा है !

मैंने कहा- मेरे हाथ से तो अब यह घुसने से नहीं रुकेगा !

हालाँकि उनके कहने से मैंने हाथ थोड़ी देर अपनी चूत के पास रखा। फिर मुझे उनकी बातों से आनन्द आने लग गया और मैंने उनको कमर से पकड़ लिया।

करीब बीस मिनट से वो मुझे लगातार चोद रहे थे पूरी गति से ! उनके माथे से पसीना चू रहा था जिसे वो अपनी लुंगी से पौंछ रहे थे पर कमर लगातार चला रहे थे।मेरी चूत में जलन होने लगी थी और मैं उन्हें अपना पानी जल्दी निकाल कर मुझे छोड़ने का कह रही थी। वे भी मुझे बस दो मिनट- दो मिनट का दिलासा दे रहे थे पर उनका पानी छुटने का नाम भी नहीं ले रहा था।

मैंने उन्हें धक्के देने शुरू किये तो वो बोले- अपना पानी निकले बिना तो लण्ड बाहर निकालूँगा नहीं ! और तू ऐसे करेगी तो मुझे मज़ा नहीं आएगा और सारी रात मेरा पानी नहीं निकलेगा।

तो मैं डर गई, मैंने कहा- मैं क्या करूँ कि आपका पानी जल्दी निकल जाये?

तो वो बोले- तू नीचे से धक्के लगा और झूठमूठ की सांसें-आहें भर तो मेरा पानी निकल जायेगा।मरता क्या ना करता ! उनके कहे अनुसार करने लगी। उन्हें जोश आया और वे तूफानी रफ़्तार से मुझे चोदने लगे। अब वे भी कुछ थक गए थे और अपना पानी निकालना चाहते थे। मेरी झूठ-मूठ की आहें सच्ची हो गई और मुझे फिर से आनन्द आ गया, मैं जोर से झड़ने लगी और मैंने उन्हें जोर से झकड़ लिया।

उनका सुपारा उत्तेजना से कुत्ते की तरह फ़ूल गया था, वे बिजली की गति से धक्के लगा रहे थे, उनके मुँह से आह आह की आवाज़ें आ रही थी और मुझे चोदने के साथ वो मेरी माँ को चोदने की बात भी कर रहे थे, साथ ही कह रहे थे- साली आज तेरी चूत फाड़ कर रहूँगा ! बहुत तड़फाया है तूने साली ! बहुत मटक मटक कर चलती थी मेरे सामने ! आज तेरी चूत लाल कर दूँगा तुझे और कोई आशिक बनाने की जरुरत ही नहीं है, मैं ही बहुत हूँ !

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ऐसी कई अनर्गल बातें करते हुए उन्होंने एक झटका खाया और मुँह से भैंसे की तरह आवाज निकली।

मुझे पता चल गया कि जिस पल का मैं इंतजार कर रही थी, आखिर वो आ गया। मैंने अपनी इतनी देर रोकी साँस छोड़ी। फिर भी उन्होंने धीरे धीरे आठ दस धक्के और लगाये और मेरी बगल में पसर गए और गहरी गहरी सांसें लेने लगे।

वो पसीने से तरबतर हो गए थे, करीब तीस मिनट लगातार चुदाई की थी उन्होंने ! उन पर अब उम्र भी असर दिखा रही थी !

तो उनको अपनी उखड़ी सांसें सही करने में 4-5 मिनट लगे फिर 2-3 लम्बी लम्बी सांसें लेकर वो बाथरूम की तरफ चले गए।

मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा था, मेरा कई बार पानी निकल गया था।

कहानी चलती रहेगी।

जीजाजी को अपनी उखड़ी सांसें सही करने में 4-5 मिनट लगे फिर 2-3 लम्बी लम्बी सांसें लेकर वो बाथरूम की तरफ चले गए।

मुझ से तो उठा ही नहीं जा रहा था, मेरा कई बार पानी निकल गया था।

जीजाजी बाथरूम से वापिस आये और लेट गए। मैंने सरक कर उनके सीने पर अपना सर टिका दिया क्यूंकि वो मुझे बहुत प्यारे लग रहे थे, उनका सीना अभी तक बहुत तेज साँसें भर रहा था।

उन्होंने मुझे अपने ऊपर से हटा कर कहा- थोड़ी देर रुको, मैं थोड़ा दम ले लूँ !

मुझे थोड़ी हंसी आई और मैंने उन्हें कहा- बस थक गए?

वो बोले- हाँ, थक गया !

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तो मैंने कहा- इसका मतलब आप बूढ़े हो गए हो !

मेरी वाचालता बढ़ती जा रही थी और वो मुस्कुरा रहे थे।

मैंने कहा- आज आपको हरा दिया मैंने ! देखो आप पसीने पसीने हो रहे हो और मुझे कुछ नहीं हुआ है।

तब वे बोले- अभी तो छोड़ दो ! छोड़ दो ! की भीख मांग रही थी और अब बातें आ रही हैं? अपनी मुनिया से पूछ !

तो मैंने कहा- यह कह रही है कि और डालो !

मुझे पता था कि अभी थोड़ी देर तो वो डालने से रहे !

फिर उन्होंने कहा- मैं आधे घंटे से तेरे ऊपर कूद रहा हूँ, ऐसा कर, तू दस मिनट ऐसे धक्के मार कर दिखा दे तो मैं मान जाऊँगा तुझे !

मैंने कहा- यह काम आपको ही मुबारक ! हम तो नीचे वाले ही अच्छे !

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फिर जीजाजी थोड़ी देर चुपचाप लेटे रहे, मैंने भी फिर उनको परेशान नहीं किया, मैं भी चुपचाप एक तरफ लेटी रही। 5-10 मिनट बाद जीजाजी मेरी तरफ घूमे और मेरी जांघों पर अपनी एक टांग रख दी !

मैं भी उनकी तरफ घूम गई ! फिर हम धीमी आवाज़ में बातें करने लगे, वे बार बार मुझे चूम लेते थे, उनका चुम्मा कभी मेरे गाल, कभी माथे पर, कभी कंधों पर, कभी मेरी चूचियों पर, कभी मेरा हाथ अपने मुँह के पास ले जाकर हथेली को चूम लेते, यानि उनका चूमना चलता रहा, साथ ही उनका हाथ भी मेरे पूरे चिकने शरीर पर फिसलता रहा कंधे से जांघों, पिंडलियों तक ! कभी कभी मेरी मुनिया की फांकों को भी सहला देते पर मुझे उन्होंने पहले ही इतना निचोड़ दिया कि मेरी उनको ऊपर चढ़ाने का बिल्कुल मूड नहीं था !

फिर जीजाजी की सांसें भारी होने लगी, मैंने सोचा फिर चुदने का खतरा आया और मेरा उस वक़्त तो क्या अगले दस दिन चुदने का मूड नहीं था। पिछले दो दिनों से मेरा इतनी बार पानी निकला कि शायद अन्दर से सूख गया था इसलिए चुदने के नाम से ही मेरी कंपकंपी छुट रही थी। वो तो मैं पहले यों ही उनको छेड़ रही थी। उनके पहले दौर से ही मेरी मुनिया के अन्दर दर्द हो रहा था जैसे छिल गई हो !

उनका लिंग चड्डी और लुंगी के ऊपर से ही मेरी कमर और पेट पर चुभ रहा था, मैंने उनको मिन्नत भरे स्वर में कहा- आप अब मुझे सोने दें ! मैंने आपकी सारी बात रखी अब आप भी मेरी बात रख लो आप सुबह जल्दी कर लेना !

मेरी आशा के विपरीत उन्होंने मेरी बात रख ली और कहा- ठीक है, तुम जो कहोगी वही होगा मेरी जान !

और उन्होंने 2-4 लम्बी लम्बी सांसें ली अपनी उत्तेजना कंट्रोल करने के लिए और मुझे छोटे बच्चे की तरह थपक थापक कर सुलाने लगे। फिर उनके प्रति मेरा प्यार बढ़ गया, मैं भी छोटे बच्चे की तरह उनसे चिपक कर सोने की कोशिश करने लगी। हम दोनों दो मिनट तो इतना चिपके कि बस पूछो मत जैसे एक दूसरे में समां जायेंगे !

मुझे और जीजाजी को नींद आने लगी थी, हम सारी रात चिपक के सोते रहे ! सारी रात जीजाजी अधनींदी अवस्था में मुझे चूमते रहे, मेरी चूचियाँ और जाँघों, चूत पर हाथ फेरते रहे, दबाते रहे। उनका घुटना तो मेरी टांगों के बीच में ही रहा और कभी कभी उनका घुटना मेरी चूत पर रगड़ खाता रहा जैसे जीजाजी अपना घुटना भी मेरी चूत में डाल देंगे !

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

वो नींद में ही कभी मुझे अपने सीने पर खींच रहे थे, मेरी हल्की काया उनके खींचने पर आधी तो उन पर हो ही जाती पर फिर नीचे सरक जाती, मुझे नींद में ऐसा लग रहा था ! हमारी पिछली रात की भी नींद बाकी थी, दिन में सिर्फ झपकी ही आई थी इसलिए वो और मैं ना चाहते हुए भी नींद ले रहे थे।

करीब चार बजे सुबह हम दोनों पूरी तरह से जाग गए थे और जीजाजी अब मुझे पूरी तरह से सहला रहे थे, मैं भी थोड़ी थोड़ी पिंघल रही थी।

पर जब उन्होंने पूछा- अब ऊपर आ जाऊँ?

मेरे मुँह से फिर से ना निकल गई और वे मायूस हो गए।

मैंने उन्हें कहा- आपकी गाड़ी पौने सात बजे है और आपको अभी बाथरूम जाना है, नहाना है ! मुझे भी आपके लिए चाय-नाश्ता भी तैयार करना है।

इतना सुनते ही वे मुझसे दूर हट गए, मुझे उनकी मायूसी अच्छी नहीं लगी, मैंने सोचा वे फिर से कहेंगे तो मैं मान जाऊँगी या वे जबरदस्ती ही कर लें !

पर वे तो एक तरफ हो गए, दस मिनट के बाद मैं ही बोली- चलो अब आपका इतना ही मन है तो कर लो !

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पर वे बोले- अब तुम्हारे बार-बार मना करने के कारण मेरा मूड ऑफ़ हो गया है, अब मेरा लिंग बैठ गया है, अब यह नहीं उठेगा, इसको वक्त लगता है। उतना वक्त है नहीं मेरे जाने में ! वर्ना मेरा नहाना, खाना सब लेट हो जायेगा।

मुझे उस दिन पता चला कि पुरुषों का भी मूड होता है।

जीजाजी उठ कर बाथरूम में चले गए, मैंने फटाफट उनके लिए परांठे बना दिए, फिर वो नहा कर आये तब तक चाय तैयार कर दी। वो चाय-नाश्ता करके चलने लगे तो कहा- तुम अगले हफ्ते मेरे घर आना, जागरण और हवन है ! मैं यह निमंत्रण देने ही आया था।

मैंने कहा- ठीक है !

वे निकल गए !

करीब बीस मिनट बाद उनका फोन आया कि वे गाड़ी में बैठ गए हैं और गाड़ी चल दी है।

मैंने चहक कर पूछा- अबकी बार तो आपकी सारी इच्छाएँ पूरी हो गई ना? संतुष्ट हो ना !

वे बोले- मैं बहुत संतुष्ट हूँ ! मेरी ज़िन्दगी की ख्वाहिश पूरी हो गई, तुझे बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं तेरा गुलाम हो गया जान ! जो तू मांगे वो हाज़िर है !

मैं हंस कर रह गई और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए !

उन्होंने कहा- अब मेरे मोबाईल के सिग्नल जा रहे हैं, बाद में बात करूँगा !

मैंने कहा- ठीक है ! अब मैं भी नहाने जाऊँगी। ओ के !

फिर उन्होंने फोन काट दिया।

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अगले 5-6 दिनों तक वे मुझसे दिन में कई बार बात करते रहे, मैं एक ही बात कहती रही- उन रातों को भूल जाओ, अपन दोनों ने जो कुछ किया, गलत किया !

वे बार बार एक ही बात कहते- यह हमने नहीं किया, इश्वर ने ही कराया, हम तो उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं, अपने हाथ में होता तो इतने साल क्यों लगते?

उनकी बात सही लगती पर फिर मैं कहती- अब नहीं करेंगे ! जो हो गया, सो हो गया !

कहानी चलती रहेगी।

मैंने पूछा- अबकी बार तो आपकी सारी इच्छाएँ पूरी हो गई ना? संतुष्ट हो ना !

वे बोले- मैं बहुत संतुष्ट हूँ ! मेरी ज़िन्दगी की ख्वाहिश पूरी हो गई, तुझे बहुत बहुत धन्यवाद ! मैं तेरा गुलाम हो गया जान ! जो तू मांगे वो हाज़िर है !
मैं हंस कर रह गई और कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए !
उन्होंने कहा- अब मेरे मोबाईल के सिग्नल जा रहे हैं, बाद में बात करूँगा !
मैंने कहा- ठीक है ! अब मैं भी नहाने जाऊँगी। ओ के !

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फिर उन्होंने फोन काट दिया।

अगले 5-6 दिनों तक वे मुझसे दिन में कई बार बात करते रहे, मैं एक ही बात कहती रही- उन रातों को भूल जाओ, अपन दोनों ने जो कुछ किया, गलत किया !

वे बार बार एक ही बात कहते- यह हमने नहीं किया, इश्वर ने ही कराया, हम तो उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं, अपने हाथ में होता तो इतने साल क्यों लगते?
उनकी बात सही लगती पर फिर मैं कहती- अब नहीं करेंगे ! जो हो गया, सो हो गया !

मैं घर जाते ही दीदी से मिली, वो मुझे देख कर बहुत खुश हुई। घर पर बहुत मेहमान आये हुए थे, पूरा घर भरा था !

मैं भी खाना खाकर छत पर चली गई, जागरण का कार्यक्रम वहीं था। जीजाजी सामने भजन गाने वालों के पास बैठे हुए थे, मैं भी उनके परिवार की औरतों में बैठी हुई थी।

छत पर बड़ा हाल और कमरा बना हुआ था, सामने काफी खुली छत थी जहाँ भजन का कार्यक्रम हो रहा था।
जीजाजी की नज़रें सिर्फ मुझ पर ही जमी थी !

रात को एक बजे कार्यक्रम ख़त्म हुआ और सब लोग सोने चले गए ! काफी औरतें हाल में और पुरुष बाहर छट पर सो गए।

मुझे, दीदी को और बच्चों को जीजाजी ने नीचे कमरे में सुला दिया और खुद बाहर बरामदे में सो गए। मुझे डर था कि जीजाजी कुछ गड़बड़ न कर दें इसलिए मैं कमरे में नीचे सो रही थी। वहाँ पास में मैंने अपने बेटे और जीजाजी के बेटे-बेटी को सुला दिया। दीदी कमरे में तख्त पर सो गई। मैंने नीचे इतने बच्चों को सुला दिया कि किसी और के आने की गुंजाइश ही ना रहे !

वैसे सब थके हुए थे और कोई हलचल नहीं हुई। सुबह हवन और दोपहर को बिरादरी का खाना था जिससे 5 बजे तक निपट गए !

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अब सब मेहमान अपने घरों को चल दिए थे, सिर्फ मैं रही थी ! मेरे मम्मी-पापा, भाई भी वापिस अपने गाँव चले गए, मुझे चलने को कहा तो जीजाजी ने कहा- यह कल आ जाएगी अभी इसको साड़ी दिलानी है।

शाम को उन्होंने कहा- चल, यहाँ मेरे रिश्तेदार रहते हैं, वहाँ घुमा कर लाता हूँ !
दीदी ने कहा- हाँ, इसे घुमा कर ले आओ !

मैं जीजाजी की बाइक पर बैठ गई, वो मुझे अपने रिश्तेदारों के घर घुमाने लगे। जब भी हम किसी एक घर से दूसरे घर जाते वो बार-बार मुझसे कहते- आज रात को मेरे पास आ जाना !
मैं बार बार मना कर देती- नहीं ! यह गलत है, जो हो गया उसे भूल जाओ !
जीजाजी बार-बार मेरी मिन्नतें करते- ऐसा मत करो ! मैं तुम्हारे बगैर मर जाऊँगा ! और बार बार ब्रेक लगते ताकि मैं उनकी पीठ से टकराऊँ !

शाम गहरी हो गई थी, आखिर में वो अपने भांजे के घर ले जा रहे थे जो थोड़ा शहर से बाहर था। फिर उन्होंने कहा- मुझे कुछ नहीं करना ! बस आइसक्रीम खिला देना !
मुझे पता था वो चूत चटवाने का कह रह थे।
मुझे फिर से वो बात याद कर नशा आना शुरू हो गया था !

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पर मैंने कहा- अभी सर्दी है, जुकाम हो जायेगा !
तो वो बोले- वो गरम आइसक्रीम है ! अब तू नहीं मानी तो देख ले तुझे यहीं से उठा ले जाऊँगा !

मैंने सोचा कि अब इतना तरसाना ठीक नहीं है, मैं उनकी पीठ से चिपकती हुई बोली- चलो ठीक है ! पर सिर्फ आइसक्रीम ही खिलाऊँगी !
वे खुश हो गए !

भांजे के घर गए, वहाँ एक कमरे में उनके भांजे का छोटा बच्चा सो रहा था, भांजे की पत्नी रसोई में थी। उस कमरे में घुसते ही वो पलंग पर बैठ गए और मुझे अपनी जांघ पर बिठा कर चूम लिया। मेरी साड़ी पेटीकोट समेत ऊँची कर चड्डी के ऊपर से ही चूत को चूम लिया।

कमरे में अँधेरा था तो सब उन्होंने कुछ सेकण्ड में ही कर लिया। मैं कमरे से बाहर निकल गई, उनके भांजे की बहू से मिली और हम फिर अपने घर आ गए !
खाना खाया और जीजाजी ने इशारा किया कि मैं ऊपर हाल में सोता हूँ !
और हाल एक तरफ पलंग पर मेरे बेटे और अपने बेटे को कहा- सो जाओ !
और खुद हाल में चारपाई पर सो गए !

बाहर की ओर उनके एक और कमरा बना था, उसकी कुण्डी खुली रखी थी ताकि उसकी जरुरत पड़े तो रात को कुण्डी नहीं खोलनी पड़े ! पर जीजाजी किस्मत के बहुत तेज थे, इस बात की नौबत ही नहीं आई ! जीजाजी का बेटा थोड़ी देर में ही नीचे चला गया कि मैं ऊपर नहीं सोऊँगा मैं तो अपनी मम्मी के पास ही सोऊँगा।

तो दीदी ने कहा- तू अपने बेटे के पास जाकर हाल में सो जा ! तेरे जीजाजी भी वहीं चारपाई पर सो रहे हैं, तुम माँ-बेटा पलंग पर सो जाना !

मैं चुपचाप आकर हाल में सो गई, मुझे हाल में सोता देख कर जीजाजी की तो बांछें खिल गई !

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उस हाल के साथ ही एक कमरा और बना हुआ था, उसका एक दरवाज़ा तो हाल में था दूसरा नीचे सीढ़ियों की तरफ था, उस कमरे में मोटा गद्दा बिछा हुआ था !
मैं चुपचाप पलंग पर अपने बेटे के पास सो गई और दस मिनट में मुझे नींद भी आ गई।

करीब आधे-पौन घंटे बाद मुझे महसूस हुआ कि कोई मेरा सर सहला रहा है !
मैं जगी तो देखा कि जीजाजी खड़े खड़े मेरा सर सहला रहे थे। मुझे नींद आ रही थी, मैंने उनको कहा- चुपचाप जाकर सो जाओ !

वो मुझे हाथ जोड़ने लगे, मैंने ध्यान नहीं दिया तो वो मेरा हाथ पकड़े-पकड़े ही नीचे जमीन पर बैठ गए घुटनों के बल और नीची आवाज़ में मिन्नतें करने लगे कि शाम को तो वादा किया था और अब मना कर रही हो !

मैं उठ कर एक तरफ सरक गई। पलंग काफी बड़ा था, मैंने कहा- चलो आ जाओ, यहीं सो जाओ !
पर वे बोले- यहाँ नहीं, अभी कहीं तुम्हारा बेटा जाग गया तो वो क्या सोचेगा? मेरी मम्मी के पास मौसाजी क्या कर रहे हैं?
मैं फिर उनके साथ खड़ी हुई, वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे हाल से जुड़े कमरे की तरफ ले जाने लगे !

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कमरे में और हाल में रोशनी बंद थी, जीजाजी के हाथ में मोबाईल था, उसकी रोशनी में वो चल रहे थे। कमरे में जाते ही उन्होंने मुझे उस गद्दे पर लिटा दिया, जो दरवाज़ा नीचे सीढ़ियों की तरफ जाता था, उसकी धीरे से कुण्डी लगाई और हाल की तरफ जिसमें मेरा बेटा सो रहा था, ढुका दिया !

हाथ से मोबाईल को पास के आले में रखा, साथ में कंडोम भी था, मुझे पता चल गया कि चुदना तो है ही ! मैं मानसिक रूप से तैयार होने लगी। मैंने मैक्सी और पेटीकोट पहना था उसको मैंने कमर पर कर अपनी चड्डी उतार कर सिरहाने रख ली ताकि अँधेरे में ढूंढ़ कर पहनने आसानी रहे !

जीजाजी ने पंखा पूरी गति में कर दिया और टटोलते हुए मेरे पास आये।तब तक मैंने उनका आधा काम कर दिया था, चड्डी उतर कर दोनों घुटने खड़े कर दिए थे, टटोलते ही सीधी नंगी चूत मिली उन्हें और वे उस पर टूट पड़े, उसे बुरी तरह से चाटने लगे।

मुझे भी बड़ा आनन्द आ रहा था, मैंने कहा- जी भर कर आइसक्रीम खा लो ! फिर बार बार मत कहना ! आज इसको पूरी खा जाओ।

वो बोले- यार, तेरी आइसक्रीम इतनी शानदार है कि इससे जी भरता ही नहीं है, चाहे कितनी बार ही खाओ !

और वो मेरी चूत बुरी तरह से चाट रहे थे, काट रहे थे, अपनी जीभ को गोल कर अन्दर घुसा रहे थे। मुझे बड़ा आनंद आ रहा था पर मुझे खतरे का अंदेशा भी था कि कहीं दीदी न आ जाएँ या मेरा बेटा न जाग जाये !

दस मिनट हो गए उनको चूत चटाई करते हुए, मैं एक बार परमानन्द ले भी चुकी थी, मैंने उन्हें रोका और कहा- अब आइसक्रीम बहुत हुई ! जो करना है फटाफट कर लो !

वो जैसे यही सुनना चाहते थे, अपनी लुंगी हटाई, चड्डी को एक पैर में किया, मेरी टांगे तो ऊँची थी ही, अपने लण्ड पर थोड़ा थूक लगाया और मेरी चूत में एक झटके से पेल दिया, पर पूरा नहीं घुस सका, थोड़ा पीछे खींचा और साँस रोक कर जोर का झटका मारा और जड़ तक अन्दर ठेल दिया।

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मेरे मुँह से अटकते अटकते निकला- धी…रे… आ…ह.. दू…खे..!

और उन्होंने लाड से मेरे गाल थपथपा दिए और कहा- दुखता है? अब नहीं दुखाऊँगा ! मेरी जान के दुख रहा है ! इस साले लण्ड ने मारी है, अभी रुक, इसको मैं मारूँगा !

मुझे हंसी आई, मैंने आनन्द में आकर चूत में संकुचन किया और उनकी गति धीमी पड़ गई, वो बोले- क्या करती हो? मेरे लण्ड को तोड़ोगी क्या? साली की चूत है या गाण्ड की दरार ! इतनी कसी !

मुझे ख़ुशी हुई, मैंने कहा- मुझे चोदना है तो गाण्ड और लण्ड में जोर रखना पड़ेगा ! वर्ना अंदर-बाहर नहीं कर सकते। यहाँ कोई नाथी का बाड़ा नहीं है, यह मेरी छोटी सी प्यारी सी चूत है !
अब जीजाजी मुझे जोर जोर से चोद रहे थे !

अचानक मुझे कुछ याद आया कि ये मेरे कमरे पर मुझे घोड़ी बनने का कह रहे थे, मैंने सोचा आज इनकी वो इच्छा तो पूरी कर दूँ !
मैंने कहा- थोड़ा रुको और इसे बाहर निकालो !
वो अपना लण्ड निकालते हुए बोले- क्या हुआ?
मैंने कहा- कुछ नहीं !

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कह कर मैंने उस गद्दे पर उनकी तरफ पीठ कर दोनों घुटने मोड़ कर अपना सर गद्दे पर टिका दिया और अपने चूतड़ थोड़े ऊँचे कर दिए। बस यह ध्यान रखा कि कहीं ये अपना लण्ड मेरी कुंवारी गाण्ड में न फंसा दें जिसमें एक अंगुली घुसने की भी गुंजाइश नहीं है।

पर शायद उनका ऐसा कोई इरादा नहीं था इसलिए उन्होंने थोड़ा मेरे कूल्हों को ऊपर किया, मैं काफी ऊपर हो गई तो उन्होंने अपने हिसाब से मुझे थोड़ा नीचे किया और आधा लण्ड पीछे से मेरी चूत में फंसा दिया।
वो अपनी उखड़ी सांसें सही कर रहे थे, उम्र उन पर अपना प्रभाव डाल रही थी !

पर मैं उर्जा से भरपूर थी और मुझे पता था ये थक भले ही जाओ पर रुकने का स्टेमिना तो बहुत है इनमें और मुझे उनको जल्दी झाड़ना था क्यूंकि किसी के आने का डर सता रहा था मुझे !

मैं खुद थोड़ा पीछे हुई और मैंने अपने आप को आगे-पीछे करना शुरू किया और वो जितनी देर सीधे रहे, उसमें मैंने 7-8 धक्के लगा दिए !
मेरे धक्कों से उन्हें भी बहुत जोश आया और बोले- साली चुदाने को बहुत मर रही है तो ले !

ऐसा कह कर वे मेरी पतली कमर को पकड़ कर तूफानी गति से धक्के मारने लगे।उनकी कमर पीछे जाती तो वो हाथों से मेरी कमर को आगे की और धकेलते और जब धक्का मारते तो कमर को अपनी और खींचते इस प्रकार जितना हो सके अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसा रहे थे।

5-7 मिनट के बाद मैं घोड़ी बने बने थक गई थी, मैंने कहा- अब मेरी चूत सूख चुकी है, इसमें जलन हो रही है, जल्दी से अपना निकाल लो !
तो उन्होंने कहा- चलो सीधी लेट जाओ !
मैं सीधी सो गई। उन्होंने सीधा अपना मुँह मेरी चूत पर लगाया और ढेर सारा थूक मेरी चूत में छोड़ दिया।
मैं चिहुंक गई- क्या करते हो? गंदे ! अब कोई मुँह लगाता है क्या?
वो हंस कर बोले- पहले जो लगाया था?
मैंने कहा- अब तो आपने इसकी चटनी बना दी, पहले तो तरोताज़ा थी ना !
वो बोले- इसमें क्या है, मैंने अपने लण्ड की खुशबू डाली है इसमें !
और फिर अपना लण्ड मेरी चूत में डाला, मेरी टांगे उठाई, उन्हें अपने कंधे पर रखी और गपागप चोदने लगे।

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मैं बिल्कुल दोहरी हो गई थी, मेरी चूत जितनी उनके लण्ड के पास हो सकती थी, हो गई थी और वो हचक हचक कर मुझे चोद रहे थे।
मैं देवी-देवताओं को मना रही थी कि इनका पानी निकल जाए !

पूरा कमरा फचक फचक की आवाजों से गूंज रहा था और मेरे तीसरी या चौथी बार पानी आ गया था। अब वे मुझे बोझ लग रहे थे, मैं कुछ रूआंसी होकर कह रही थी- आप अपना डॉक्टर के पास जाकर इलाज करवाओ, आपको कोई बीमारी है जो इतनी देर से छूटता है ! या आप पर बुढ़ापा आ गया है, अन्दर पानी ही नहीं है तो छूटेगा क्या?
वो मेरी किसी बात पर ध्यान ना देकर दांत भींच कर सुपरफास्ट स्पीड से धक्के लगा रहे थे अपने पंजे मेरे कूल्हों पर गड़ा कर !
फिर अचानक उनके शरीर ने एक झटका खाया, मुझे पता चला कि अब मेरी मुक्ति हुई !
उनके मुँह से लार निकल कर मेरे गाल पर गिरी और उन्होंने मेरे गाल चूम लिए।
7-8 धक्के धीरे धीरे और लगाए और…

और मैं कहना भूल गई कि जब घोड़ी के बाद उन्होंने मुझे चोदना शुरू किया, तब कंडोम लगा लिया था !
जीजाजी ने अपना कंडोम निकाला, उसके मुँह पर गांठ लगाई और मुझे बताया- देख कितना पाना आया है, तुम कह रही हो कि है नहीं !

मैंने कहा- इस गन्दी चीज़ को मुझसे दूर रखो और मुझे जाकर सोने दो !
उन्होंने भी गद्दे की सलवटें सही की, दरवाज़े की कुण्डी खोली और कंडोम को कहीं छुपाया और चुपचाप सो गए !
यह थी मेरे जीजाजी के घर में मेरी पहली चुदाई !
कहानी तो अब चलती ही रहेगी !

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आपने मेरे जीजाजी के घर में मेरी पहली चुदाई की दास्तान पढ़ी !

अब आगे :

सुबह जल्दी उठ कर मैं नीचे चली गई, तब तक जीजाजी सो ही रहे थे, मेरा बेटा भी नींद में था।

नीचे जाते ही मेरा सामना दीदी से हुआ और वो कुछ गौर से मेरी तरफ देख रही थी ! पत्नियाँ अपने पति के प्रति हमेशा शक्की रहती ही हैं !

उसे पता था कि सारी रात मैं उसी हाल में सोई रही थी जहाँ उसके पतिदेव सो रहे थे पर मैंने अपने चेहरे पर ऐसे भाव ही नहीं आने दिए और कहने लगी- उस लड़के ने तो सोने ही नहीं दिया, कभी उसको पानी पिलाओ, कभी पेशाब कराओ, मैं तो परेशान हो गई !

मेरे ऐसे बात करने पर दीदी कुछ सामान्य हुई, उसने सोचा होगा कि इसका बेटे इतना जग रहा था तो क्या हुआ होगा ! फिर उसने ऐसे विचार अपने मन से हटा दिए और राजी राजी बातें करने लग गई !

मैंने भी चाय-नाश्ता तैयार किया और जीजाजी से बात तो क्या उनके सामने ही नहीं आई।

शाम को दीदी ने कहा- इसको साड़ी दिला कर लाओ और इसको कोई फार्म भरना है, इसको पासपोर्ट साइज की फोटो खिंचानी है, वो सब भी करवा आओ !

मैं जीजाजी के साथ बाइक पर बैठ बाज़ार चली गई।

जीजाजी मुझे बाज़ार लेकर गए, रास्ते में उन्होंने कहा- आज सारे दिन तुमने मुझसे बात क्यों नहीं की? यहाँ तक कि मेरे सामने भी नहीं आई !

मैंने कहा- आपको पता नहीं है, दीदी को शक हो गया था, बात करने से क्या मतलब? आपका काम तो कर दिया ना !

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तो वो मुस्कुराये और कहा- मेरा मन नहीं भरा, आज फिर करना पड़ेगा !

मैंने कहा- आपकी मांग बढ़ती ही जा रही है, यह गलत है। आपको पता है कि अगर किसी को पता चल गया तो मेरी इज्ज़त मिटटी में मिल जाएगी। औरतों की सिर्फ इज्ज़त ही होती है, पूरुषों को कई कुछ नहीं कहता, सब औरत को ही गलत कहेंगे !

उन्होंने कहा- तुम चिंता मत करो, किसी को पता नहीं चलने दूँगा ! तुम हाँ तो कहो !

मैंने कहा- नहीं का मतलब नहीं अब !

वो फिर मिन्नतें करने लगे, मैंने थक कर कहा- ओ के, हाँ !

तो उन्होंने कहा- कब और कहाँ?

मैंने एक गाने की लाइन गा दी- देख के मौका, मारा चोक्का, दिल की बात बताई रे !

और कहा कि इस मामले में पहले से योजना बना कर नहीं चलता है, मौका मिलते ही अपना काम निकल लो !

वे खुश हो गए, मुझे एक अच्छी और महँगी साड़ी दिलाई और कहा- अपनी दीदी को इसकी कीमत कम बताना !

मेरी फोटो खिंचवाई और एक हम दोनों की साथ खिंचवाई !

फिर हम घर आ गए !

रात को फिर कमाल हुआ जीजाजी की किस्मत तेज़ रही। फिर मुझे उसी हाल में सोना पड़ा, फर्क इतना हुआ कि अपने बेटे के साथ जीजाजी की छोटी बेटी को भी मुझे साथ सुलाना था !

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आज मैं जब ऊपर सोने आई तो मैंने मैक्सी के नीचे पेटीकोट और चड्डी पहनी ही नहीं, ब्रेजरी की कसें भी खोल रखी थी, मुझे पक्का पता था जीजाजी छोड़ेंगे तो नहीं !

मैं उन बच्चों को लेकर सो गई। दीवार की तरफ बच्चों को सुलाया और दूसरी तरफ मैं सो गई। जीजाजी भी अपनी चारपाई पर आकर लेट गए।

मुझे थोड़ी देर में नींद आ गई !

करीब बारह बजे मेरी नींद खुली, जीजाजी मेरे सर के पास खड़े थे और मेरे स्तन सहला रहे थे जोकि कसें खुलने के कारण बाहर ही थे।

मैं एकदम चमक गई, मैं उनका मुँह पकड़ कर अपनी आँखों के पास लाई, अँधेरे में पता चल गया कि हाँ जीजाजी ही हैं, तो आश्वस्त हो गई।

वो थोड़ी देर सहला कर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगे। मुझे वास्तव में नींद आ रही थी, मैंने कहा- मुझे सोने दो और आप भी सो जाओ आज कुछ नहीं करना !

तो उन्होंने धीरे से मेरा वाला गाना गया- देख के मौका, मारा चौक्का ! अभी चोक्का मारने का मौका है ! फिर बार बार नहीं मिलेगा !

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मैंने सोचा- चलो भाई, चुदना तो है ही, ऐसे तो ये छोड़ेंगे नहीं ! इनकी किस्मत तो देखो कैसे बार-बार इनको एकांत मिल जाता है।

फिर से अँधेरे में उनके साथ रवाना हुई साथ वाले कमरे के गद्दे पर जाने के लिए, उन्होंने करीब करीब मुझे उठा ही लिया था, मुश्किल से मेरी एक टांग कभी कभी नीचे ज़मीं पर लग रही थी, बाकी तो वे मुझे अपने से लिपटाये हुए चल रहे थे।

फिर मेरी मंजिल आ गई यानि की ज़मीं पर बिछा हुआ गद्दा !

उन्होंने कल वाला काम किया यानि कुण्डी लगाने और दरवाज़ा ढुकाने का, पंखा पूरी गति पर कर दिया और मेरी बाहों में आ गए।

मैंने उनसे पूछा- यह कमरा और यह गद्दा सिर्फ चुदाई के काम ही आता है क्या? यहाँ न तो कोई सोता है ना और ना इसका कोई और काम है? वे बोले- मेरी जान, यह कमरा और यह गद्दा खास आपकी चुदाई के लिए ही तैयार करवाया है !

और मुझे चूमने लगे।

थोड़ी देर में मेरी मैक्सी कमर पर थी वे नीचे से हाथ डाल कर मेरे स्तन भी दबा रहे थे, छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे, उन्हें वो बुरी तरह से दबा रहे थे, मुझे स्तन दबवाना अच्छा नहीं लगता है इसलिए मैंने उन्हें कहा- अब बस करो ! दर्द हो रहा है !

क्यूँकि वे मेरे स्तन की भूरी घुंडियों को अपनी उंगलियों में मसल रहे थे। उनके हाथ मेरे पूरे बदन पर घूम रहे थे, खास कर मेरी चूत पर ! वहाँ उनका हाथ ज्यादा समय ले रहा था कभी उंगलियों से मेरी चूत के चने को मसल रहे थे तो कभी एक अंगुली मेरी चूत में अन्दर-बाहर कर रहे थे। आनन्द से मेरी चूत चिकनी हो रही थी, हालाँकि चूत की फांकें पिछलीचुदाई से सूजी हुई थी पर उनके हाथ में जादू था। मेरी चूत की फ़ांकों में एक दिक्कत है कि कई दिनों के बाद चुदाई होगी तो चूत कसी हो जाएगी जैसे कुंवारी हो और चूत की फांकें सूज जाएगी जो कई दिनों तक सूजी रहेगी ! फिर 10-15 दिन तक चुदती रहेगी तो सूजन उतर जाएगी। ऐसा कई बार मेरे पति से चुदाने पर होता ही था !

खैर थोड़ी देर में जीजाजी के होंठ मेरी चूत के द्वार पर थे ! वे पता ही नहीं कब नीचे खिसक गए थे। मैंने भी अपनी टांगें उठा ली अपनी चूत आराम से चटवाने के लिए !

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

वो अपनी जबान से पूरी चूत को चाट रहे थे और मेरी सूजी हुई चूत की फांकों को आराम मिल रहा था जैसे उनकी थूक और लार का मरहम लग रहा था। वे अपने मुँह में मेरी चूत की फांकों और मेरे चने को चिभल रहे थे और 3-4 मिनट में मेरा पानी छूटने लगा। मेरा सारा शरीर कांप रहा था, झटके खा रहा था। उन्हें शायद पता चल गया था इसलिए उनके चाटने की गति बढ़ गई थी और अपनी जीभ को कड़ी करके मेरी चूत के चने पर रगड़ रहे थे। दो चार झटकों के बाद मैं शान्त पड़ गई, मैंने उनका कन्धा पकड़ कर रुकने का इशारा किया। पानी निकलते ही औरत को अपनी चूत पर कुछ करना अच्छा नहीं लगता है !

मेरी आँखें बंद थी और आनन्द को महसूस कर रही थी जो स्खलन के रूप में निकला था।

मैंने उनको अपने पास खींचा और उनकी गर्दन पकड़ कर गालों पर चुम्मा देकर काट लिया !

वे उछल पड़े और बोले- साली, निशान लगाएगी? सुबह तेरी बहन को क्या जबाब दूँगा?

ऐसा बोल कर अपने गाल को हथेली से रगड़ कर निशान मिटाने लगे जो मेरे दांतों से पड़ गया था।

अब मैं संतुष्ट थी, मैंने कहा- आपको आइसक्रीम खानी थी, खा ली ! अब मुझे भी सोने दो और आप भी सो जाओ !

मुझे उनको छेड़ना था, मुझे पता है जिसका लण्ड खड़ा हो वो ऐसे नहीं छोड़ेगा भले ही बलात्कार ही करना पड़े तो करेगा !

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

वे फिर से मुझे चूमते हुए बोले- मारोगी क्या मुझे? सारी रात हाथ में पकड़ा बैठा रहूँगा मैं !

मैंने हंस कर कहा- चलो, जल्दी करो, इस चूहे को इसका बिल दिखाओ !

इतना सुनते ही उन्होंने अपने सुपारे को थूक से चिकना किया और मेरी चूत में पेल दिया जो इंतजार ही कर रही थी उसका !

उनका लण्ड बहुत सख्त हो रहा था, मुझे ऐसा लगा जैसे पत्थर का हो, मुझे चुभ रहा था पर उसकी रगड़ अच्छी भी लग रही थी। वे दनादन धक्के लगा रहे थे, मेरी टांगें पूरी ऊपर थी, पंजे पीछे गद्दे को छू रहे थे जैसे मैं योग कर रही हूँ !

वो पूरे जोर से धक्के मार रहे थे, पूरा लण्ड जड़ तक मेरी चूत में ठूंस रहे थे, उनके आंड मेरी गांड से टकरा रहे थे, उनकी जांघें मेरे कूल्हों से टकरा रही थी, पट-पट की आवाजें आ रही थी, उनका लण्ड मेरी चूत में दबादब घुस रहा था, उनके मुँह से ऐसी आवाज़ आ रही थी जैसे कोई लकड़ी काटने वाला कुल्हाड़ा चला कर लकड़ी काट रहा हो !

फिर वो हट गए, एक झटके में मुझे उठा दिया मैं कुछ सोच पाऊँ, तब तक तो मुझे उल्टा कर दिया। मैं समझ गई कि पिछली रात घोड़ी बनकर इनको मज़ा दे दिया है तो ये आज फिर बनायेंगे।

मैंने सोचा कि पुरुषों को ज्यादा मौके देना ही ठीक नहीं है, पर अब तो बनना ही पड़ा।

अब फिर मुझे पीछे से जबरदस्त धक्के लग रहे थे, मैं बार बार मुँह के बल गिर रही थी पर मेरी कमर उनकी हथेली में पकड़ी हुई थी, मेरी चूत में दर्द होने लग गया था, अब मैं उन्हें फिर से जल्दी निकालने की मिन्नतें कर रही थी।

फिर उन्होंने मुझे सीधा लिटा दिया, दोनों टांगें सीधी रखी और फिर से मेरे ऊपर छा गए, मेरी टांगों के ऊपर अपनी टांगें फंसा कर कूद कूद कर चोदने लगे। उनके कूल्हे बिजली की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे, लण्ड पिस्टन की तरह अन्दर-बाहर हो रहा था, मेरे मुँह से आह आह की आवाज़ें आ रही थी, उनकी सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी।

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20-30 धक्के मारने के बाद उन्होंने मेरी टांगें फिर उठा कर अपने कंधे पर रख ली और दे दनादन !

मैं बुरी तरह थक गई थी, मेरा स्खलन 3-4 बार हो चुका था, अब मुझे मज़ा नहीं आ रहा था पर जानबूझकर आह उह मुमः की सेक्सी आवाज़ें निकल रही थी ताकि जीजाजी को मज़ा आये और उनका निकल जाये।

मैं नीचे से ऊँची हो होकर चुदा रही थी, अचानक जीजाजी ने झटका खाया और मैंने उनको धक्का दे दिया।

वो अचकचा गए कि क्या हुआ।

मैंने कहा- कोई इतनी देर ऐसे करता है क्या? मैं मर जाती तो?

मैं फटाफट वहाँ से उठी और लड़खड़ाते कदमो से बाथरूम में गई, काफी देर तक ठन्डे पानी से अपनी चूत धोई और चुपचाप पलंग पर सो गई। जीजाजी की तरफ देखा ही नहीं !

तो यह थी जीजाजी के घर पर मेरी दूसरी चुदाई !

कैसी लगी?

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कहानी तो अब चलती ही रहेगी !

मैं जीजाजी के ही घर दो रात लगातार उन से चुद कर अगले दिन मैं वापिस अपने पीहर चली गई। जीजाजी खुद मुझे अपनी बाइक पर बिठा कर पर बस में बिठाने आये और मना करने के बाद थम्सअप की बोतल और काफी सारे फल लाकर दिए।

3-4 दिन के बाद मैं वापिस जयपुर चली गई अपनी ड्यूटी पर।

जीजाजी से मेरी रोज़ ही मोबाईल पर बात होती थी, उन्हें पता था कि जहाँ मैं रहती थी, उस कमरे में बीएसएनएल के सिग्नल कम आते थे इसलिए उन्होंने कहा कि वे मुझे दूसरा फोन लाकर देंगे जिसमें दो सिम लग जाएँगी और एक ऍम टी एस की सिम ला देंगे जिससे आपस में मुफ़्त बात हो सकेगी।

मैंने उनसे सहमति जता दी।

फोन पर बात करते तो ज्यादातर उनका विषय सेक्स ही होता था। धीरे धीरे मैं भी उनकी बातों में रूचि लेने लग गई थी। वो अपनी सेक्स की बातें बताते कि उन्होंने कितनी लडकियों के साथ सेक्स किया है और तो और उन्होंने बताया की होली के दिनों में अपने दोस्तों के साथ उन्होंने कई बार गधियों को भी चोदा था ! और कई बार लड़कों की भी गाण्ड मारी थी, मुझे नहीं पता था कि कोई गाण्ड भी मार या मरा सकता है !

मेरे सेक्स-ज्ञान में वृद्धि हो रही थी पर मैं यह बात मान नहीं रही थी तो उन्होंने कहा- क्या बात करती हो? औरतें तो कुत्ते से और घोड़े से भी चुदवा लेती हैं या एक साथ दो-दो तीन-तीन आदमियों से चुदवा लेती हैं।

यह मैंने कहीं नहीं सुना था इसलिए मैं उनकी बातें किसी बेवकूफ की तरह सुन रही थी जैसे पाँचवीं में पढ़ने वाले बच्चे को कोई बी.ए. के सवाल पूछ रहे हो !

मैं बार यही कहती कि ऐसा थोड़े ही होता है !

तो जीजाजी ने कहा- अबकी बार मैं अपने मोबाइल में ऐसी फिल्में लेकर आऊँगा तब तुम देख लेना।

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मैंने कहा- ठीक है !

वैसे मैंने कई बार ब्लू फिल्म अपने पति के साथ देखी थी पर जानवरों वाली बात मुझे हज़म नहीं हो रही थी।

वो मुझे फोन करते और और हमारी बातें काफी लम्बी चलती जिनमें वो बार बार मेरी चूत चाटने का जिक्र करते, मेरे खयालों में उनका चूत चाटना आ जाता और मेरी सांसें गर्म हो जाती, मुँह से सिर्फ हूँ हु की आवाज़ निकलती और वे मुझे बातो से ही गर्म कर देते।

फिर फोन पर ही यहाँ वहाँ अपना बदन छूने का कहते पर मुझे अपने हाथ से ऐसा करना अच्छा नहीं लगता ! पर मुझे अपने आप मज़ा लेने आता है, मैं तकिये को खड़ा करके या सोफे की किनारे पर अपनी चूत रगड़ती, थोड़ी देर और मेरा स्खलन हो जाता। यह तरीका मुझे बहुत पहले से आता था, पतिदेव तो साल-छः महीने में आते थे तो कभी कभी चुदने का ख्याल आ ही जाता था तो ऐसे ही अपने को संतुष्ट कर लेती थी पर 2-4 महीनों में एक बार !

चुदने की मन में बहुत ज्यादा तब आती थी जब ऍम सी आने का समय आता पर मैं अपने को काबू में कर लेती थी। पर अब जीजाजी से रिश्ते बन गए तो ये तो रोज़ ही फोन पर सेक्सी बातें करते तो 8-10 दिनों में मुझे तकिये की सवारी करनी ही पड़ती। उन्हें भी यह बात पता चल गई इसलिए वो बात करते करते कहते- अब तकिये को खड़ा कर ले और थोड़ा चूत के दाने को तकिये पर रगड़ ले !

ऐसे ही बातें करते 15 दिन बीत गए।

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तब जीजाजी ने कहा- दीपावली में वहाँ से कब रवाना होना है, मुझे बता देना ताकि मैं तुमसे एक बार वहीं आकर मिल लूँ और जो मैंने तुम्हारे लिए मोबाइल और सिम ली है वो तुम्हें दे सकूँ !

मैंने बताया कि मैं उस दिन ऑफिस से गाँव जाने के लिए निकलूँगी तो जीजाजी ने कहा- अपने पापा और मम्मी को पहले मत बताना कि इस दिन आऊँगी।

मुझे यह बात समझ नहीं आई पर मैंने कहा- ठीक है, नहीं कहूँगी !

और उन्होंने कहा- तो बस स्टैण्ड पर बारह बजे आ जाना !

मैंने कहा- ठीक है, मैं आ जाऊँगी !

साथ ही उन्होंने कहा- तुम मेहंदी लगा कर आना, मुझे तुम्हारे मेहंदी लगे हुए हाथ बहुत अच्छे लगते हैं।

मैंने कहा- ठीक ! पर हम वहाँ थोड़ी देर ही मिल सकते हैं, फिर हम साथ ही बस में बैठकर आ जायेंगे। आप अपना गाँव आये, तब उतर जाना और मैं अपने गाँव आ जाऊँगी।

मेरा गाँव उनके गाँव से थोड़ा आगे है।

उन्होंने कहा- ठीक है।

मैं 12 बजे बस स्टैण्ड पहुँची तो वो वहाँ थे ही नहीं। मैंने उनको फोन किया तो वो बोले- मैं स्टैण्ड के बाहर पहुँच गया हूँ, तुम भी इधर आ जाओ। मेरे हाथ में जो बैग था, उसमें काफी सामान था इसलिए मैं उसे मुश्किल से उठा कर चल रही थी पर बाहर जाते ही वे सामने मिल गए और मुझे देखते ही वो देखते ही रह गए।

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मैंने हरी साड़ी पहन रखी थी, काजल, बिंदी, मेहंदी, नेलपालिश यानि सब नखरे कर रखे थे मैंने और मैं बहुत ही सुन्दर लग रही थी।

मुझे देख कर उनका मुँह खुला का खुला रह गया और मैं अपनी सुन्दरता पर कुछ शरमाई और कुछ गर्व महसूस किया।

वे बोले- कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊँ ! तुम मुझे इतनी सुन्दर लग रही हो !

मैंने कहा- यह मेरा बैग उठाओ, इसका बोझ लगेगा तो होश आ जायेगा।

और मैं हंस पड़ी ! मेरी खिलाहट सुन वे भी मुस्करा दिए !

फिर हम वहाँ से रवाना हुए तो मैंने पूछा- अब हम कहाँ चल रहे हैं?

तो उन्होंने कहा- मैंने एक होटल में कमरा लिया है, वहाँ चल रहे हैं।

मैंने कहा- आपका दिमाग ख़राब है? होटल में कैसे चल सकते हैं? किसी ने देख लिया तो?

वे बोले- तुम चिंता मत करो, यहाँ हमें कोई नहीं जानता, और होटल में भी मैंने तुम्हें पत्नी लिखवाया है।

मैंने कहा- नहीं, मैं होटल नहीं जाऊँगी !

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तो वो मिन्नतें करके बोले- एक बार चलो तो सही, चाहे वहाँ रुकना मत।

मैं बेमन से उनके साथ रवाना हुई !

हम एक सिटी बस में बैठे, हम आमने-सामने बैठे थे, जीजाजी ने चश्मा पहन रखा था, मेरे सामने देखते ही उन्होंने आँख मार दी, मुझे अचानक एक पल के लिए तो गुस्सा आ गया पर फिर याद आया कि आँख मारने वाला तो मेरा आशिक है, फिर मैं मुस्कुरा दी।

होटल के सामने एक रेस्तराँ था, वहाँ हमने लस्सी पी, मुझे वैसे भी भूक लगी हुई थी। रेस्तराँ वाले ने एक दस रूपये का सिक्का दिया जो जीजाजी ने मुझे दे दिया।

मैंने पहली बार दस रूपये का सिक्का देखा था, मुझे बड़ा सुन्दर लगा था जैसे सोने का हो !

सड़क पार करते ही होटल था, उसमें भी नीचे खाने का और फास्ट फ़ूड का स्थान था और ऊपर रहने का होटल था। उसमें खास बात यह थी कि फास्ट फ़ूड वाले रेस्तराँ से ही होटल में जाने की लिफ्ट थी।

जीजाजी का कमरा तीसरी मंजिल पर था, होटल पाँच मंजिल का था जिसमें रिसेप्शन दूसरी मंजिल पर था। मुझे यह बड़ा अच्छा लगा कि मुझे रिसेप्शन के सामने से नहीं जाना पड़ेगा।

हम दोनों लिफ्ट में चढ़े, जीजाजी ने 3 नंबर का बटन दबा दिया। लिफ्ट में हम दो ही थे, लिफ्ट चलते ही जीजाजी मुझे पकड़ कर चूमने लगे।

मैंने कहा- मैं भागी नहीं जा रही हूँ, यहाँ छोड़ दो, कोई देख लेगा !

जीजाजी ने मुझे छोड़ दिया। लिफ्ट रुकी और जीजाजी ने कमरे का दरवाज़ा खोला और हम कमरे में पहुँच गए।

कमरा ऐ.सी. था, ऐ.सी. टी.वी. सब चल रहे थे. बहुत ही शानदार कमरा था, बड़ा सा पलंग, मेज-कुर्सी, अलमारी, अटेच्ड लेट-बाथ !

मैं सीधे फ्रेश होने बाथरूम में घुस गई। मैं बाथरूम से वापिस आई तो…

कहानी तो अब चलती ही रहेगी !

दीपावली के लिए घर जाने के लिए जीजाजी और मैंने साथ ही बस लेने का सोचा और हम दोनों बस स्टैण्ड पर आ गए पर जीजाजी तो कुछ और ही योजना बना कर आए थे। वे मुझे वहाँ से होटल ले गए।

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जीजाजी ने कमरे का दरवाज़ा खोला और हम कमरे में पहुँच गए।

कमरा ऐ.सी. था, ऐ.सी. टी.वी. सब चल रहे थे. बहुत ही शानदार कमरा था, बड़ा सा पलंग, मेज-कुर्सी, अलमारी, अटेच्ड लेट-बाथ !

मैं सीधे फ्रेश होने बाथरूम में घुस गई। मैं बाथरूम से वापिस आई तो…

जीजाजी पलंग के पास खड़े थे !

मेरे बाहर आते ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और अपने सीने से चिपका लिया। मैं भी किसी बेल की तरह उनसे लिपट गई। हम खड़े-खड़े जैसे एक दूसरे में समाना चाह रहे थे। हम करीब दो मिनट ऐसे ही एक दूसरे से चिपके खड़े रहे, जीजाजी ने मुझे इतनी जोर से अपनी बाहों में भींच रखा था कि मेरी हड्डियाँ कड़कड़ाने लगी थी। आज हम पहली बार रोशनी में एक दूसरे की बाहों में समाये थे इसलिए मुझे उनसे शर्म आ रही थी, मैं अपना मुँह उनके सीने में छिपा रही थी और वे बार-बार मेरा मुँह ऊपर कर चूमने की कोशिश कर रहे थे।

हम दोनों को एक दूसरे से चिपक कर खड़े होने में असीम सुख मिल रहा था जैसे कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी प्रेमिका मिले हों।

फिर हम अलग हुए, हमारे चेहरे से मिलने की ख़ुशी फ़ूट रही थी। अलग होकर हम दोनों ने लम्बी और गहरी सांसें ली यानि इतनी देर जैसे हमारी सांसें ही रुक गई थी हम दोनों मुस्कुरा रहे थे, कुछ शर्म आ रही थी तो नज़रें भी चुरा रहे थे और एक दूसरे को छिपी नजरों से देख रहे थे।

मेरे जीजाजी की नजरो में मेरे लिए प्रंशसा और चाहत का भाव था और मैं भी उन्हें खुश होकर देख रही थी। मेरा विचार था कि मैं थोड़ी देर रुक कर गाँव चली जाऊँगी !

फिर उन्होंने अपना बैग खोल कर अपनी लुंगी बाहर निकाली और अपने कपड़े उतारने लगे। उन्हें कपड़े उतारते हुए कुछ शर्म आ रही थी इसलिए मैंने टीवी चालू कर लिया और फिल्म देखने लगी, मेरी मनपसंद फिल्म ‘जब वी मेट’ आ रही थी।

जीजाजी ने अपने कपड़े हेंगर पर टांगें और बाथरूम में चले गए। थोड़ी देर में वापिस आये और मेरे पास आकर पलंग पर बैठ गए, मुझे फिर से बाहों में लेकर चूमने लगे।

मैंने शरारत से कहा- इतनी अच्छी फिल्म आ रही है, देखने दो ना !

वो मुझे अपनी तरफ झुकाते अभी इससे भी अच्छी फिल्म हम बनाते हैं !

मैंने कहा- रुको, मेरी साड़ी में सलवटें पड़ जाएँगी !

उन्होंने कहा- यह बात तो सही है, फटाफट उतार देते हैं और कुछ पलो में मेरी साड़ी जीजाजी के हाथ में थी।

जीजाजी मेरी साड़ी वार्डरोब में रख दी और मेरे बैग से मेरी सेक्सी मैक्सी निकाल कर मुझे देते हुए कहा- चलो, फटाफट यह पहन कर आओ !

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मैंने कहा- इसे पहननी क्या जरूरी है? ऐसे ही आ जाओ ना ! कुछ भी पहनो उसे तो उतरना ही है।

पर उन्होंने कहा- नहीं, इसमें तुम बहुत सेक्सी लगती हो, इसे ही पहन कर आओ ! और नीचे पेटीकोट और चड्डी मत पहनना ! वैसे भी उनकी कोई जरुरत नहीं है।

ऐसा कहते हुए उन्होंने जबरदस्ती मुझे पलंग से नीचे खड़ा कर दिया। मैं मैक्सी लेकर बाथरूम में गई क्योंकि उनके सामने मुझे शर्म आ रही थी और अपने कपड़े बदले, पेटीकोट तो नहीं पहना पर चड्डी तो पहनी।

मैं बाहर आई तब तक वे पलंग पर लेट गए थे और बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं उनके पास गई तो उन्होंने अपनी बाहें उठा कर मेरा स्वागत किया। मैं भी उनकी बाहों में समां गई!

अब वे मुझे बुरी तरह से चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे सारे शरीर पर घूम रहे थे। मेरी मैक्सी कुछ ही पलों में मेरी कमर पर पहुँच गई थी, मैं शरमा कर उसको बार-बार नीचे करने की असफल कोशिश कर रही थी !

वे मेरी पीठ की तरफ हाथ डाल कर मेरी ब्रेजरी के हुक खोलने की कोशिश कर रहे थे।

मैंने कहा- क्या हुआ? आपसे एक हुक भी नहीं खुला?

उन्होंने कहा- अभी खुल जायेगा, खुलेगा नहीं तो टूट जायेगा।

मैंने कहा- तोड़ना मत प्लीज ! नहीं तो आपको दूसरी दिलानी पड़ जाएगी।

मैं थोड़ी देर बिना हिले रही और उन्होंने उसे खोल दिया और मुझे सीधा करके मेरे स्तन दबाने लगे। उन्होंने मेरी मैक्सी काफी ऊपर कर मेरे स्तनों को नंगा कर दिया जो छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे। वे उन्हें सहला रहे थे, उनकी भूरी घुन्डियों को अंगूठे और अंगुली से मसल रहे थे। मुझे भी आनन्द आ रहा था, मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। मैंने उन्हें कहा- आपने कई बार मेरे स्तनों की मांग की थी, अब ये आपके सामने हैं, जो करना है कर लो इनका !

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वे मसलते हुए बोले- हाँ, बहुत तड़फाया है इन्होंने ! इतना तो तेरी चूत ने भी नहीं तड़फाया।

तो मैंने हंस कर कहा- तो क्या करोगे इनका? कही उखाड़ मत ले जाना इनको !

वे बोले- इतनी प्यारी चीज को प्यार करूँगा !

और सीधे मेरे स्तनों पर मुँह लगा दिया और उन्हें चूसने लगे।

मैं सिहर गई, मेरे सारे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी !

वो बारी बारी से दोनों को चूस रहे थे, एक चूसते, तब तक दूसरे को हाथों से दबाते और फिर उन्होंने अपना मुँह पूरा खोल कर मेरे पूरे स्तन को मुँह में भर लिया और उसे साँस के साथ और अन्दर खींचने लगे। मेरा स्तन उनकी साँस के साथ उनके मुँह में खींचा जा रहा था और मुझे आनन्द आ रहा था।

आज हम दोनों बिना किसी डर से सेक्स कर रहे थे इसलिए बहुत ज्यादा आनन्द आ रहा था।

मैंने कहा- अब इन्हें छोड़ो, कोई और आपकी जीभ का इंतजार कर रहा है।

उन्होंने स्तन छोड़े, फटाफट मेरी चड्डी उतारी, मेरे पाव खड़े कर उन्हें थोड़ा चौड़ा किया और सीधे मेरी चूत में अपना मुँह घुसा दिया !

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मैं पहले से ही स्तन चुसवा कर गर्म हो गई थी, अब मेरी किलकारियाँ निकल रही थी। कमरे में ए.सी. टी.वी. पंखे सब चल रहे थे, दरवाज़ा बंद था और साऊँड प्रूफ भी था इसलिए में खुल कर आ…ह आ..ह कर रही थी, उनकी सधी हुई जीभ मेरी संवेदना को जगा रही थी। उनके चूत चूसने का ढंग निराला है, वे काफी पूर्वक्रीड़ा करते हैं, अपने पर उनका गज़ब का काबू है।

थोड़ी देर में मैं स्खलित हो गई, मैंने उनको रोक दिया पर उनका मन अभी चूत चाटने से भरा नहीं था इसलिए थोड़ा रुक कर फिर से अपनी जीभ मेरी चूत में घुसा दी। मेरी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गई। आज मुझे पता चला कि बिना डर के सेक्स में कितना मज़ा आता है।

वो फिर मेरी चूत को बुरी तरह से चूस रहे थे जैसे स्तन को मुँह में भरा वैसे मेरी सारी चूत को काफी हद तक मुँह में भर रहे थे ! मुझे फिर आनन्द की तरंगें मेरे बदन में महसूस हो रही थी, मैंने उन्हें कहा- जाओ अपन मुँह बाथरूम में धोकर आओ और कुल्ला भी कर आओ, बस बहुत हो गया यह चाटना और चूसना ! अब आगे की कार्यवाही करो !

मैंने जितनी देर चूत चटवाई, मैक्सी को शर्म से अपने मुँह पर रखी थी मुझे शर्म आ रही थी और जीजाजी आज तीन ट्यूबलाईट की रोशनी में आराम से मेरी चूत को देख रहे थे। हालाँकि मैंने उन्हें कई बार लाईट बंद करने कहा जिसे उन्होंने अनसुना कर दिया।

वे बाथरूम में मुँह धोने गए मैंने दीवार पर टंगी घड़ी में समय देखा तो एक बजकर पचास मिनट हुए थे।

कुछ ही पलों में जीजाजी आ गए, अपनी लुंगी और चड्डी खोली और मेरी टांगें अपने कंधे पर ली अपने लण्ड के सुपारे को थोड़ा थूक से चिकना किया, मेरी चिकनी चूत में सरका दिया।

मैं मैक्सी मुँह पर ढके ढके ही कराह उठी- आ…ह्ह्ह्हह थो…डा…धी…रे.. डालो दुखता है !

उन्होंने सहमति जताते हुए मेरी गाण्ड थपथपा दी और फिर उन्होंने मेरे चेहरे की तरफ देखा और बोले- यह चेहरा क्यूँ ढक रही हो? आज तो मैं चुदते हुए तेरे चेहरे के भाव देखूँगा। ऐसा कह कर मेरे चेहरे से जबरदस्ती मैक्सी को हटा दिया। मुझे उनके सामने देखने में शर्म आ रही थी इसलिए मैंने पलंग पर पड़े होटल वाले तौलिये को अपने मुँह पर ओढ़ लिया पर आज जीजाजी किसी समझौते के मूड में नहीं थे, उन्होंने मुझ से चोदते चोदते ही तौलिया छीना और दूर सोफे पर फेंक दिया। अब मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और जीजाजी मेरे गालों, आँखों की बंद पलकों और होटों को चूमने लगे।

कमर उनकी लगातार चल रही थी !

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अब मेरी चूत ने भी उनका लण्ड अपने अन्दर खपा लिया था इसलिए मुझे दर्द नहीं हो रहा था और दनादन अन्दर-बाहर हो रहा था !

थोड़ी देर में उन्होंने आसन बदल लिया, मेरी टांगें सीधी कर दी और मेरे पैरों पर अपने पैर जमाकर कूद-कूद कर मुझे चोदने लगे। थोड़ी देर के बाद मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी रगड़पट्टी करने लगे। फिर पलंग के किनारे पर घोड़ी बनाया और पंलग से नीचे खड़े हो कर पीछे से चोदने लगे।

फिर वापिस मुझे पलंग पर लिटा दिया। मुझे पता था आज इनको कोई डर नहीं है इसलिए मेरी चुदाई लम्बी चलेगी।

मैं भी शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार थी इसलिए मैं उनको कुछ नहीं कह रही थी, बस चुदा रही थी, जैसे वे मुझे इधर-उधर कर रहे थे, मैं हो रही थी। और वो लगातार बस चोद रहे थे, और चोद रहे थे।

ए.सी. चल रहा था, तो भी उन्हें पसीने आ रहे थे जिसे वे बार बार पास पड़ी लुंगी से पौंछ रहे थे, खासकर उनके ललाट और गर्दन के पास ज्यादा पसीना आ रहा था।

ना जाने कितने आसन बदले, उन्होंने मुझे जैसे रुई की गुड़ीया समझ लिया हो पर मैं भी उन्हें मज़ा दिलाना चाहती थी इसलिए मैंने उन्हें रोका नहीं ! मेरा पानी ना जाने कितनी बार निकला था, मुझे याद नहीं ! कम से कम 7-8 बार तो निकला ही होगा !

थोड़ी देर बाद मुझे फ़िर मज़ा आने लगता और मेरी चूत गीली हो जाती ! ऐसा कई बार हुआ और फिर उनका स्खलन हुआ !

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उनके मुँह से भैंसे के डकारने जैसी आवाज़ें निकली और स्खलन होते होते उन्होंने धीरे धीरे 15-20 झटके और लगाये, फिर हटे, अपना कंडोम हटाया।

मैंने घड़ी की तरफ देखा 2 बज कर 40 मिनट !

इसका मतलब इन्होने पूरे 50 मिनट मेरी चुदाई की ! आसन बदलने में कोई 5 मिनट बिताये होंगे तो भी 45 मिनट मेरी चुदाई हुई थी, जो कभी धीरे, कभी मंथर गति से और कभी खूब तेज़ चली थी।

मैं अर्ध बेहोशी में पहुँच गई थी।

वे बाथरूम से वापिस आये और मुझे खड़ा करके कहा- बाथरूम जा कर आओ।

मैं बाथरूम में चूत धोकर आई और पलंग पर लेट गई और कहा- मेरा गाँव जाने का पूरा कार्यक्रम खराब कर दिया ! आपने इतनी देर चुदाई की कि मेरी गाड़ी भी चली गई और मुझे चलने लायक नहीं छोड़ा।

वे हंसने लगे, कहा- आज मेरे मन माफिक चुदाई हुई है, हम गाँव कल चलेंगे, आज की रात अभी बाकी है जान। तुम आराम करो, मेरे मोबाईल में सेक्सी फिल्में देखो, मैं अपने एक दोस्त से मिलकर आ रहा हूँ !

मैंने कहा- ठीक है !

वे बाहर गए, मैंने दरवाज़ा बन्द किया, कुण्डी लगाई और पलंग पर लेट गई और थोड़ी देर बाद सामान्य होने के बाद मोबाईल में सेक्सी फिल्में देखने लगी और जीजाजी के स्टेमिना के बारे में सोचने लगी कि इतनी मैराथन चुदाई कर वे बाहर चले गए और मैं उठ भी नहीं पा रही हूँ !

वे बिल्कुल तरोताज़ा बाहर गए हैं।

कहानी तो चलती ही रहेगी !

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जीजाजी के जाने के बाद मैं मोबाईल पर सेक्सी वीडियो देखने लगी। इन वीडियो को देख कर मैं हैरान रह गई !

उनमें एक लड़की के साथ कई लडकों की, बलात्कार की फिल्में, गुदा मैथुन, लड़कियों द्वारा आपस में सेक्स और मैं यहाँ जिस चीज का जिक्र नहीं कर सकती उनका सेक्स ! मैं तो अचंभित रह गई कि मैं कुएँ का मेंढक रह गई !

इस दुनिया में ऐसा ही होता है क्या?

जीजाजी का मोबाईल इन फिल्मों से भरा था, मुझे उनको देखने में ज्यादा मज़ा आया जिसमें किसी लड़की को नींद की गोली खिला कर कोई सेक्स करता था !

जीजाजी कोई 6 बजे तक आये तब तक मैं वे फिल्में ही देखती रही और पिछली 45 मिनट की चुदाई का दर्द भूल कर मैं फिर से गर्म हो गई। अब मुझे उस होटल में ठहरने का कोई डर नहीं लग रहा था क्यूंकि किसी के सामने से तो मैं कमरे में आई नहीं थी और अब मुझे यहाँ मस्ती से चुदाई कराने का आनन्द भी मिलना था इसलिए जब जीजाजी ने दरवाज़े की बेल बजाई तो मुझे बड़ी ख़ुशी हुई पर सावधानी वश मैंने पूछा- कौन है?

जीजाजी की आवाज़ आई- मैं ही हूँ !

तो मैंने फटाफट दरवाज़ा खोल दिया और जीजाजी ने अन्दर आकर दरवाज़े को कुण्डी लगा कर बन्द कर दिया।

जीजाजी ने मुझे वीडियो देखते देखा तो मुस्कुरा दिए और पूछा- कैसे लगी?

मैं काफी गर्म हो चुकी थी, मेरा चेहरा लाल-भभूका हो रहा था और मैं उन्हें देख कर मुस्कुरा रही थी, मैंने कहा- देखो, ये वीडियो मुझे तो बनावटी लग रहे हैं, इतनी छोटी लड़की इतने बड़े आदमी से कैसे चुदवा सकती है?

उन्होंने हंस कर कहा- जैसे तुम मुझसे चुदवाती हो ! पता है तुम मुझसे 16-17 साल छोटी हो। वैसे भी यह लड़की 18 की है और 34 साल वाले से चुदवा रही है।

मैंने कहा- आप देखो तो सही, इसे कितना दर्द हो रहा होगा !

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और मैं उनको अपने पलंग पर वीडियो दिखने के बहाने बुला रही थी ताकि वे भी उसको देख कर मुझे मसल दें। मुझे पता था कि उनके तो ये सारे वीडियो देखे हुए होंगे ही पर मेरी चूत पनिया गई थी और वो लण्ड मांग रही थी !

मैंने कभी अंगुली आदि नहीं की थी, वो मुझे पसंद भी नहीं था, मैं चाहती थी कि जीजाजी मुझे चोद कर ठंडा कर दें !

आज होटल के कमरे में मेरी वासना पूरे उफान पर थी ! जीजाजी शायद मेरी प्यास समझ गए थे उन्होंने फटाफट कपड़े खोल कर लुंगी लगाई और पलंग पर आकर मुझे बांहों में भींच लिया।

मैंने वीडियो बंद नहीं किया था, उसमें से सेक्सी आवाज़ें आ…ह्ह्ह्हह्ह उ…ह्ह्ह्हह्हह्ह्ह या…..फक….मी…. आदि आ रही थी और उसमें वो आदमी उस लड़की को बुरी तरह चोद रहा था।

मैंने जीजाजी की तरफ मोबाईल किया तो वो बोले- इसे तुम्हीं देखो, मैं तो असली देखूँगा !

और वो मेरी चूत के पास सरक गए, मैं मोबाईल में वीडियो देखती रही और उनके हाथ मेरी टांगों के पास लगते ही टांगे खुदबखुद चौड़ी हो गई ! जीजाजी के होंट सीधे मेरी चूत की फांकों पर पहुँच गए, आनन्द के अतिरेक से कुछ क्षण के लिए मेरी आँखे बंद हो गई और मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई ! मुझे पता था कि मैं इतनी गर्म हो गई हूँ कि उनके चाटने से जल्द ही मेरा पानी छुट जायेगा !

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उनकी अनुभवी जीभ और होंट मेरी चूत में चल रहे थे, उन्होंने कई बार साँस के साथ मेरी पूरी चूत को अपने मुँह में भर लिया था तथा बार बार अपनी जीभ मेरे चूत के दाने पर रगड़ रहे थे और तभी अचानक मेरी पनियाई चूत से पानी का बांध टूट गया और मैं झटके खा कर शांत हो गई। पिछले दो घंटों से जो सेक्सी वीडियो देखने से मेरे दिमाग में तनाव था वो शांत हो गया, मैं अभी झटके खाती रुकी ही थी की कपड़ों की सरसराहट सुनकर देखा कि जीजाजी लुंगी हटा रहे हैं और अपनी चड्डी नीचे कर रहे हैं।

मैंने कहा- अब आप क्या कर रहे हो? अभी मत करो, सारी रात पड़ी है। पहले नीचे खाना खाने चलेंगे !

जीजाजी ने कहा- मैं सिर्फ सूखी चुनाई करूँगा !

मैंने कहा- यह क्या होती है?

तो उन्होंने बताया कि तुम्हें चाटते चाटते मेरे खड़े लण्ड में दर्द होने लगा है इसलिए इसे भी तुम्हारी चूत में डालूँगा और अपना पानी नहीं निकालूँगा, बिना पानी निकाले ही 8-10 मिनट तुम्हारी चुदाई करूँगा !

मेरे लिए यह नया अनुभव था कि कोई आदमी चोद कर बिना पानी निकाले कैसे रह पायेगा ! मैंने कहा ऐसा करो- कंडोम लगा लो ! क्या पता पानी छुट गया तो मुझे परेशानी हो जाएगी कि इसका पति यहाँ नहीं है और बच्चा कहाँ से आ गया !

वो हंस कर बोले- चिंता मत करो, पानी निकलने का कंट्रोल मेरे दिमाग में है। मुझे पता है कि 5 मिनट में पानी निकालना है या आधे घंटे में या निकालना ही नहीं, ऐसे ही सूखी चुनाई करनी है।

मैं निरुत्तर हो गई ! मुझे अपने जीजाजी के स्टेमिना के बारे तो पता था ही, मैंने अपनी टांगें ऊँची कर दी और फिर से वो चुदाई का वीडियो देखने लगी। जीजाजी ने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी और अपने लण्ड पर थूक लगा कर मेरी चिकनी और सूजी हुई चूत में पेल दिया।

जब लण्ड सूजी फाड़ों से लगा तो थोड़ा दर्द हुआ और लण्ड जब उस बाधा को पार कर लिया फिर जड़ तक पहुंच हो गया मैं आनन्द और दर्द से कराह उठी !

और आपको तो पता ही है औरत की चुदते हुए कराहने की आवाज़ से आदमी को चोदने का हौसला बढ़ जाता है, वो ज्यादा जोश में धक्के लगता है।

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

जीजाजी ज्यादा जोर से धक्के लगते जा रहे थे और मुझे पुचकारते भी जा रहे थे, कह रहे थे- दुखता है? धीरे डालूँ?

मेरे गाल पर लाड से हाथ भी फेर रहे थे, मुझे तो मज़ा आ रहा था, मैंने कहा- नहीं, जोर जोर से ही चोदो ! मेरे फिर से पानी निकलने को है।

वे बोले- मुझे पता है, चाटने से ज्यादा पानी चोदने से निकलता है इसी लिए तेरी चुदाई कर रहा हूँ, चाटने से तो ओवर फ्लो का पानी ही निकलता है और चोदने से ही असली पानी निकलता है।

मैं हैरान थी उन्हें इतना गूढ़ ज्ञान कहाँ से मिला !

5-7 मिनट में ही मेरी किलकारियाँ निकलने लगी थी, मैंने मोबाईल पास में डाल दिया था, उसे कोई देख भी नहीं रहा था पर फिर भी बेचारा आ…ह्ह्ह्ह ओ…ह की आवाज़ें दे रहा था। मेरी आँखें बंद थी, मेरा दिमाग बस मज़े की तरफ था, जीजाजी मेरी गाण्ड को कस कर पकड़ कर दबादब धक्के मार रहे थे, मैं भी नीचे से उछल-उछल कर उनका लण्ड अपनी चूत में पूरा ले रही थी, मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया और मैं शांत हो गई।

मुझ शांत देख कर जीजाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाल कर लुंगी लपेट ली हालाँकि लुंगी तम्बू की तरह हो रही थी।

वे बोले- अभी बाथरूम जाऊँगा तो धीरे धीरे यह बैठ जायेगा।

और वे बाथरूम में चले गए। मैंने मोबाईल देखा, उसमें वो आदमी अपने वीर्य से उस लड़की को नहला रहा था, मुझे बड़ी घिन आई और मैंने मोबाईल बंद कर दिया !

मुझे वीर्य देखना कभी अच्छा नहीं लगता था और आज जीजाजी ने अपना वीर्य निकाले बिना मुझे चोदा तो मैं बहुत खुश हुई !

थोड़ी देर में वे बाहर आये, अब वे शांत लग रहे थे, उन्होंने कहा- अब फ्रेश होकर कपड़े पहन लो, खाना खाने चलते हैं।

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कहानी तो चलती ही रहेगी !

थोड़ी देर में वे बाहर आये, अब वे शांत लग रहे थे, उन्होंने कहा- अब फ्रेश होकर कपड़े पहन लो, खाना खाने चलते हैं।

कमरे में तो यह पता ही नहीं चल रहा था की दिन है या रात पर घड़ी 7 बजा रही थी और मैं फटाफट नहाने चल दी। नहाने के बाद मैंने पूरी राजस्थानी ड्रेस पहनी घाघरा, लुगड़ी आदि और जीजाजी के साथ लिफ्ट से नीचे खाना खाने चल दी।

जीजाजी ने खाना खाते हुए मुझे कहा- जितनी भूख हो उससे खाना कम खाना, सेक्स में आनन्द आएगा।

यह ज्ञान भी मेरे लिए नया था कि पेट थोड़ा कम भरना चाहिए जब चुदना या चोदना हो !

मैंने कहा- मुझे चुदाई के बाद भूख लगी तो?

जीजाजी ने हंस कर कहा- तुम चिंता मत करो, मेरे बैग में मिठाई, नमकीन, काजू की कतली आदि है। जब हम सोयेंगे और भूख होगी तो खा लेंगे !

मैंने कहा- ठीक है।

और फिर हम खाना खा रहे थे तो वहाँ बैठे लोग हमें ज्यादा देख रहे थे, मेरी पोशाक की वजह से मैं पूरी गाँव वाली लग रही थी पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वे कौन सा मुझे जानते थे और जीजाजी की नज़र तो मेरे ऊपर से हट ही नहीं रही थी, मुझे पता था कि उनका पानी नहीं निकला था और वो अन्दर उबल रहा होगा !

मैं मन ही मन उनकी हालत पर मुस्कुरा रही थी।

वे मुझे खाना परोस रहे थे, मैंने उन्हें कहा- लड़की होने के फायदे हैं ! देखो हमारी चूत के पीछे आप कितनी चमचागिरी कर रहे हो और पैसे खर्च कर रहे हो ! मैं जो कहती हूँ वो करते हो, लड़कों को इतना करना पड़ता है। अच्छा हुआ मैं लड़का नहीं बनी, मुझसे तो इतना नहीं होता ! देखो मज़ा दोनों को आता है प़र पसीने पसीने आदमी ज्यादा होता है, लड़की को कभी कुछ खर्च नहीं करना पड़ता और लड़के उन्हें साथ ही गिफ्ट भी देते है।

जीजाजी मेरी बातें सुनकर मुस्कुरा रहे थे, बोले- जो तुम इतनी कीमती चीज हमें देती हो, उस पर ये सब कुर्बान है। तुम्हें क्या पता तुम हमें कितनी कीमती चीज देती हो ! अपनी इज्जत ! समझी? अभी किसी को पता चल जाये तो लड़कों को फर्क नहीं पड़ता और लड़की बदनाम हो जाती है। समझी इन पैसों का तो क्या, और कमा लेंगे प़र इज्जत?

मैं चुप हो गई, वास्तव में जीजाजी सही कह रहे थे।

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खाना खाकर फिर से हम वापिस रेस्टोरेंट के पास ही लिफ्ट से सीधे तीसरी मंजिल में अपने कमरे के कॉरीडोर में पहुँच गए ! नीचे रेस्टोरेंट था उसके ऊपर रिसेप्शन और कुछ कमरे थे उसके ऊपर हमारा कमरा और भी काफी कमरे थे और उससे भी ऊपर दो मंजिलें और थी यानि उस होटल में काफी कमरे थे ! हमारा कमरा काफी अच्छा था, जीजाजी ने बताया जो सबसे अच्छा और महंगा था, वही हमने लिया है।

हम अपने कमरे में दाखिल हो गए और सीधे बिस्तर पर ढेर हो गए !

मैं टीवी का रिमोट लेकर मनपसंद चैनल स्टार प्लस लगा कर देखने लगी! जीजाजी ने फोन लगा लिया और किसी से बात करने लगे !

अभी हमने अपने कपड़े नहीं बदले थे, जीजाजी ने कहा- अभी बदलना ही मत ! अभी चाय मंगवाएँगे, पियेंगे !

मैंने कहा- ठीकहै।

उन्होंने वहीं इंटरकाम से दो चाय का आर्डर दे दिया और वे बाथरूम में चले गए।

थोड़ी देर में घण्टी बजी, मैंने कहा- अन्दर आ जाओ !

मुझे पता था कि चाय लेकर बैरा आया होगा। बैरा ही था !

उसने मुझे गौर से देखा मुझे उसकी नज़र कुछ अच्छी नहीं लगी। उसने मुझे पलंग पर बैठी हुई को चाय देनी चाही पर मैंने उसे डांट कर कहा- वहीं मेज पर रख दे !

मेरे तेवर देख कर वो सकपका गया और चाय वही मेज पर रख कर मुझसे नज़र चुराता फटाफट बाहर चला गया, दरवाज़ा बंद कर दिया !

जीजाजी आये तो मैंने यह बात बताई तो वो हंसने लगे और कहा- यार तुम्हें बहुत गुस्सा आता है? एकदम झाँसी की रानी हो तुम !

मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, हमने चाय पी, थोड़ी देर में घण्टी बजी, मुझे पता था बैरा चाय के बर्तन लेने आया होगा।

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यह दूसरा बैरा आया था पहले वाला नहीं आया ! बर्तन ले जाने के बाद जीजाजी ने दरवाज़ा बन्द कर दिया, मेरे पास आकर बैठ गए और टीवी देखते देखते मुझे सहलाने लगे।

मैंने भी अपना सर उनके कंधे पर रख दिया !

मैंने कहा- अब तो मैं ये भारी भरकम कपड़े उतार दूँ?

जीजाजी ने मुस्करा कर कहा- हाँ ! बिल्कुल हल्की हो जाओ ! सारे उतार दो !

मैं उनका अभिप्राय समझ कर मुस्करा उठी, मैंने कहा- आप दूसरी तरफ मुँह करो, मैं कपड़े बदलती हूँ !

तो उन्होंने मुँह फेर लिया और बोले- ब्रेजरी और कच्छी मत पहनना !

मैंने कहा- ओके !

और मैं सिर्फ मैक्सी पहन कर सारे कपड़े वार्डरोब में रखे और उनके पास आई।

तब तक उन्होंने भी कपड़े खोल कर लुंगी लगा ली ! मैं पलंग के पास आई, कहा- बाथरूम में जा रही हूँ !

तो वे बोले- इस मैक्सी का बोझ क्यों रखा है? इसे भी उतार दो और सिर्फ यह तौलिया लपेट लो !

मैंने इंकार किया पर मेरा इंकार कहा चलना था, वो जबरदस्ती मैक्सी हटाने लगे तो मैंने कहा- ठीक है। मैं बाथरूम से सिर्फ तौलिया लपेट कर ही आऊँगी !

तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया। मैं बाथरूम में गई, पेशाब किया, चूत को अच्छी तरह से धोया और मैक्सी उतार कर जैसे राम तेरी गंगा मेली में मन्दाकिनी ने लपेटा था, वैसे सिर्फ़ तौलिया लपेट कर बाहर आई !

मैं तौलिया लपेट कर मस्तानी चाल से पलंग के पास गई तो देखा कि जीजाजी ने कम्बल ओढा हुआ है और उनकी लुंगी एक तरफ पड़ी है, चड्डी और बनियान भी कमरे के फर्श पर लावारिसों की तरह पड़े हैं।

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मैं यह सोच कर रोमांचित हो गई कि कम्बल के अन्दर जीजाजी बिलकुल नंगे हैं और मैं नई नवेली दुल्हन की तरह कुछ शरमाती, कुछ सकुचाती उस तौलिये में अपने पूरे बदन को ढकने की असफल कोशिश करती उनके पास आई ! अब मैं उस तौलिये को साड़ी तो नहीं बना सकती ना ! स्तन ढकूँ तो जांघें दिखे और जांघों को ढकूँ तो स्तन उघड़ रहे थे और मुझे चलते हुए आते भी शर्म आ रही थी !

उनके पास आते ही उन्होंने लपक कर मेरा तौलिया छीन के फर्श पर अपनी बनियान-चड्डी पर फेंक दिया और बोले- आज तुम्हारी और अपनी दोनों की शर्म दूर कर दूँगा। अब इस कमरे में ना तुम कपड़े पहनोगी और ना मैं !

मैं भी नंगी होते ही फटाफट उनके कम्बल में घुस गई ताकि अपना नंगापन ढक सकूँ ! मेरे अन्दर जाते ही वे मुझसे चिपक गए, उनका नंगा शरीर मेरे नंगे बदन से चिपक रहा था, मुझे झुरझुरी सी आ रही थी, उनका शरीर वासना की आग में जल रहा था !

जीजाजी का बदन मेरे बदन से चिपका बड़ा भला लग रहा था ! उनका नंगा सीना मेरे स्तनों से रगड़ खा रहा था ! वे मुझे बुरी तरह चूम रहे थे और मैं उनकी बाँहों में मछली की तरह फिसल रही थी, उनके नंगे बदन से रगड़ खा रही थी, उनका लिंग मेरे पेट कमर और जांघों से टकरा रहा था।

मैं भी उनके गालों-कन्धों पर चूम रही थी और उत्तेजना से काट भी रही थी। वे भी उसके जबाब में मेरे गाल-कंधे और वक्ष पर काट रहे थे और हंस कर कह रहे थे- आज मैं तुझे काटने को मना नहीं करूँगा, बस खून मत निकाल देना, बाकी ये निशान तो कल तक हट जायेंगे !

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और जोश में मैंने उनके गाल पर अपने दांतों के निशान बना दिए कि वे सिसिया कर रह गए और जबाब में मेरे भी गाल काट कर मुझे सिसिया दिया !

अब वे चूमते चूमते नीचे सरक रहे थे, गालों से स्तन चूसे, फिर पेट की नाभि में जीभ फिराई और मेरी चूत में आग सी जल गई, मुझे पता चल गया कि जीजाजी खतरनाक सेक्स एक्सपर्ट हैं।

मेरे पति को तो मालूम ही नहीं था कि औरत के किन किन अंगों को चूमने पर मज़ा आता है।

जीजाजी पेट से जांघें, पिण्डली चूमते-चूमते सीधे मेरे पैरों के पंजों के पास चले गए और उन्होंने मेरे पैर के पंजे का अंगूठा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगे।

मैं उन्हें रोकती, तब तक मेरे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी, आज मुझे पता चला कि पैर के अंगूठे या अंगुलियों को चूसने से भी स्त्री कामातुर हो सकती है।

मैं सोचती रह गई कि जीजाजी ने यह ज्ञान कहाँ से लिया होगा !

मेरे मुँह से आनन्दभरी किलकारियाँ निकल रही थी पर अपने पैरों गन्दा समझ कर मैंने उनको वहाँ से हटाना चाहा और कहा- छीः ! कोई पैरों को भी चाटता है क्या?

वे बोले- तू मेरी जान है और तेरे अंग अंग में मुझे स्वर्ग नज़र आता है। तू कहे तो मैं तेरी गाण्ड भी चाट सकता हूँ !

मैंने शरमा कर कहा- धत्त !

फिर वे पैरों को छोड़ कर मेरे मनपसंद स्थान पर आ गए, यानि कि मेरी….चूत !

कहानी तो चलती ही रहेगी ! थक जाएँ तो बता देना !

जीजाजी पेट से जांघें, पिण्डली चूमते-चूमते सीधे मेरे पैरों के पंजों के पास चले गए और उन्होंने मेरे पैर के पंजे का अंगूठा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगे।

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मैं उन्हें रोकती, तब तक मेरे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी, आज मुझे पता चला कि पैर के अंगूठे या अंगुलियों को चूसने से भी स्त्री कामातुर हो सकती है।

मैं सोचती रह गई कि जीजाजी ने यह ज्ञान कहाँ से लिया होगा !

मेरे मुँह से आनन्दभरी किलकारियाँ निकल रही थी पर अपने पैरों गन्दा समझ कर मैंने उनको वहाँ से हटाना चाहा और कहा- छीः ! कोई पैरों को भी चाटता है क्या?

वे बोले- तू मेरी जान है और तेरे अंग अंग में मुझे स्वर्ग नज़र आता है। तू कहे तो मैं तेरी गाण्ड भी चाट सकता हूँ !

मैंने शरमा कर कहा- धत्त !

फिर वे पैरों को छोड़ कर मेरे मनपसंद स्थान पर आ गए, यानि कि मेरी….चूत !

और उसे चाटने लगे !

चूत वैसे भी काफी गर्म हो रही थी और वो पानी छोड़ने लगी। मैंने कहा- अब आप ऊपर आ जाओ !

वे शरारत से बोले- साफ बोलो कि मुझे क्या करना है?

मुझे पता था अब ये मेरे मुँह से बुलवाकर छोड़ेंगे इसलिए मैंने जल्दी से अपनी आँखे बंद कर के कहा- आप मुझे चोद दो !

पर वे कौन से कम थे, बोले- मैंने सुना नहीं ! जरा जोर से बोलो !

मैं जोर से उन्हें अपने ऊपर खींचते हुए बोली- मुझे चोद दो ! चो….द दो !

अब उन्होंने मेरी टांगें अपने कंधे पर रखी, मेरी चूत पूरी ऊपर हो गई, उन्होंने अपने सुपारे पर थूक मला, अपने तने हुए लण्ड को मेरी चूत के मुँहाने पर सटाया और हल्का सा ठेला यह देखने के लिए कि सही जगह है या नहीं क्योंकि मेरी चूत के पपोटे सूज गए थे और उनमें से चूत का सुराख़ दिख नहीं रहा था ! चूत के पपोटो से उनका सुपारा टकराया तो टीस सी उठी, मैंने दर्द को सहने के लिए दांत भींच लिए, मुझे पता था एक बार यह अन्दर चला गया तो फिर नहीं दुखेगा !

सुपारे के थोड़ा अन्दर जाते ही उन्हें पता चल गया कि सही जगह ही है और फिर उन्होंने अपने तन्नाये लण्ड का जबरदस्त धक्का मेरी चूत में लगा दिया। मैं थरथरा उठी और उनका लण्ड का सुपारा सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा गया। दर्द से मेरी आह निकल गई, साथ ही मेरी आँखों के कोने से आँसू की एक बूँद भी ढलक गई।

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जीजाजी को पता चला तो बोले- ज्यादा जोर से लग गया क्या?

और उनकी चोदने की गति में भी कमी आ गई !

मैं आँखों में आँसू और चेहरे पर चुदने की ख़ुशी की मुस्कराहट के साथ बोली- आप मत रुको, दर्द आएगा तभी आनन्द आएगा ! हम औरतों को जब तक दर्द नहीं होता, आनन्द भी नहीं आता, आप तो चोदते रहो, दर्द चला गया अब तो आनन्द ही आनन्द आ रहा है।

अब वे दनादन मेरी चूत में अपना लण्ड पेल रहे थे, कम्बल धीरे धीरे नीचे सरक रहा था अब मेरे स्तन निरावृत हो गए थे ! जीजाजी पूरे जोर शोर से अपने लण्ड की चोट मेरी चूत में मार रहे थे उनके मुँह से हु.. हु..ह.. की आवाज़ें आ रही थी और वो मुझे बिल्कुल निर्दयी तरीके से चोद रहे थे जो मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था।

अब उनके माथे पर पसीने की बूँदें चमकने लगी थी जिसे वे बार बार अपने हाथ से पोंछ रहे थे ! कमरे में ऐसी चल रहा था पर हमें कुछ गर्मी लग रही थी चुदाई के तूफान के कारण !

अब उन्होंने कम्बल बिल्कुल हटा दिया, मैं चौंक गई, मैंने कहा- प्लीज़ आप पीछे कम्बल ओढ़ लें !

जीजाजी ने कहा- पीछे सोफे पर बैठ कर कोई तेरे चूत में घुसता हुआ लण्ड थोड़े ही देख रहा है या पीछे कोई कैमरा लगा है जो कोई फिल्म बन रही है? यार, इस कमरे में सिर्फ मैं और तू हैं। अब यह ओढ़ा-ओढ़ी मत कर ! देख मुझे पसीने आ रहे हैं और कम्बल के बोझ से मेरे कूल्हे भी धीमे ऊपर नीचे हो रहे है। मुझे इसका बोझ भी लग रहा है।

मैं ठंडी साँस भर कर निरुत्तर हो गई, उन्होंने पांव से ठेल कर कम्बल को भी पलंग से नीचे गिरा दिया, अब दो ट्यूबों की रोशनी में मेरा गोरा और नंगा बदन चमक रहा था, जीजाजी सांवले हैं और उनका विशाल शरीर मेरे पूरे शरीर को ऐसे दाब रहा था जैसे कोई परी किसी दानव के नीचे पिस रही हो !

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मैं यह कह रही हूँ पर मेरे जीजाजी चेहरे से कोई दानव नहीं लगते, मुझे बहुत प्यारे लगते हैं। उनके कुछ बाल जरुर उड़ गए हैं पर नाक-नक्श अच्छे हैं और कीमती और शानदार कपड़े पहन कर रईस लगते हैं।

हम दोनों आकर पलंग पर लेट गए और टीवी देखने लगे ! इस सारे प्रोग्राम में टीवी बंद नहीं हुआ था, लगातार चल रहा था, सास-बहू के सीरियल आते जा रहे थे और पलंग पर हमारी कुश्ती चल रही थी। अब मैंने रिमोट हाथ में लेकर टीवी देखना शुरू किया और ए.सी. से ठण्ड लगने का बहाना कर कम्बल से कमर तक अपने को ढक लिया था !

मैं अधलेटी सी टीवी देख रही थी और जीजाजी फिर से कम्बल में घुस गए और मेरी जांघो पर हाथ फेर रहे थे और बातें भी कर रहे थे ! उनकी बातें घूम फिर कर मोबाईल की फिल्मों पर आ रही थी कि अँगरेज़ लड़कियाँ कैसे मुखमैथुन करती हैं या गाण्ड मराती है।

मैंने उन्हें साफ बता दिया कि ये दोनों ही बातें मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। मैंने उन्हें बताया कि सिर्फ मुखमैथुन का सोच कर ही मुझे उबकाई आ जाती है। मुँह के पास लण्ड आ गया तो मैं उलटी कर दूंगी !

उन्होंने कहा- कोई बात नहीं, मुझे तुम्हें लण्ड चुसाने की जरुरत ही नहीं है।

वे फिर धीरे धीरे मेरी चूत पर अपनी अंगुली फिरा रहे थे ! तभी मुझे अपनी चूत पर झनझनाहट सी महसूस हुई ! मैंने देखा जीजाजी ने अपना नोकिया 6303 मोबाईल जो स्लिम आता है और उसमें उन्होंने वाइब्रेटर सोफ्टवेयर डाऊनलोड किया हुआ था उसे चला कर मेरी चूत के दाने के पास कर रहे थे !

मैंने कहा- यह क्या है?

तो वो बोले- तुम हिलो मत, तुम्हें मजा आएगा और मोबाईल का पतला हिस्सा मेरी चूत में डाल कर अन्दर बाहर करने लगे !

मुझे उसकी कंपकंपी अच्छी नहीं लग रही थी, मैंने कहा- मुझे यह अच्छा नहीं लग रहा है। यह जो कांप रहा है, मुझे पसंद नहीं है, इससे तो अच्छा है कि आप मेरी चूत में अंगुली कर दो !

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उन्हें मेरी पसंद का पता चल गया और मोबाईल के वाइब्रेटर को बंद कर एक तरफ रख दिया और मेरी चूत में दाने के पास अंगुली फिराने लगे, यह मुझे अच्छी लग रही थी।

फिर उन्होंने कुछ ज्यादा अन्दर किया मैंने कहा- हाँ.. ऐसे ही करते रहो ! मुझे चुदाई से ज्यादा मज़ा आ रहा है। पर यह आपकी अंगुली या मेरे पति की अंगुली से ही आता है। मेरी खुद की अंगुली अच्छी नहीं लगती।

फिर वे दो अंगुलियाँ डाल कर मेरी चूत में चलाने लगे, मेरे मुँह से सी….सी…की आवाज़ें निकल रही थी। थोड़ी देर में मैंने चूत में कुछ कड़ा कड़ा सा महसूस किया, मैंने देखा कि जीजाजी ने अपने चश्मे के कवर जो चाइना का आता है, गोल गोल मोटे पेन जैसा, उसे मेरी चूत में डाल दिया है और अन्दर बाहर कर रहे हैं।

मैंने कहा- ज्यादा अन्दर मत डाल देना, दुखेगा !

उन्होंने कहा- जितना तुझे सहन होगा, उतना ही डालूँगा। वैसे भी यह ज्यादा बड़ा या मोटा नहीं है।

मैं मुस्कुरा कर रह गई।

मुझे थोड़ी देर में उन्होंने उस चश्मे के कवर से स्खलित करवा दिया और जब मैं उत्तेजना में स्खलित हो रही थी तब करीब करीब आधा अन्दर तक था ! मैंने स्खलित होते ही जीजाजी का हाथ रोक दिया और उनसे लिपट गई !

जीजाजी ने लिपटे ही मेरा स्तन अपने मुँह में भर लिया, उसे चूसने लगे और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर धर दिया। उनका लण्ड फिर से तन्ना रहा था, मैंने जल्दी से हाथ हटा लिया तो जीजाजी बोले- यार चूसने को थोड़े ही कह रहा हूँ, थोड़ा लण्ड तो मसल दे, अपने पति का भी मसला होगा !

मैंने कहा- कभी-कभी मसलती थी !

और उनका मन रखने के लिए मैंने उनका लण्ड पकड़ कर दबा दिया। वे सिहर कर बोले- धीरे ! साली तोड़ेगी क्या?

मैं हंस कर धीरे धीरे उनके लण्ड की मालिश करने लगी !

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उन्होंने कहा- कैसा लगा मेरा लण्ड ?

और आपको तो पता है कि मैं साफ बोल देती हूँ, मैंने कहा- छोटा है आपका !

वे थोड़ा बुझ से गए। फिर मैंने कहा- मैंने या तो आपका देखा है या मेरे पति का ! उनका आपसे लम्बा और मोटा है पर आनन्द मुझे आपसे ज्यादा आया है, ऐसा क्यों ?

मैंने जब तक नहीं देखा था तब तक मैं आपका लण्ड उनसे बड़ा महसूस कर रही थी !

तो उन्होंने कहा- चोदने की कला और आसन का ज्ञान होना चाहिए, मेरे जितना लण्ड ही बहुत है, बहुत बड़ा लण्ड हो और दो मिनट में पानी छुट जाये तो उस लण्ड का कोई मतलब नहीं है। बड़े लण्ड से अन्दर चोट भी लगती है जो बाद में दुखती है। औरत की चूत में मजा सिर्फ दो इंच तक ही रहता है इसलिए तो अंगुली से भी आनन्द आ जाता है जो लण्ड से काफी छोटी और पतली होती है। डाक्टर का कहना है कि 4 इंच के लण्ड वाला भी सही आसन का प्रयोग कर स्त्री को संतुष्ट कर सकता है।

मैं उनकी बात से सहमत थी क्यूंकि मेरे पति से छोटे और पतले लिंग से उन्होंने मुझे बहुत आनन्द दिया !

ऐसी बातें करते-करते मैं उनके लण्ड को मसल रही थी, अब लण्ड तन्ना गया था, मैं सीधी लेटी थी, वे बैठ गए और मेरी टांगे थोड़ी ऊँची कर बैठे बैठे अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया और अपनी टांगे सीधी रखी जो मेरे सर के आजू-बाजू आ गई ! अब वे सीधे बैठे बैठे अपने हाथों के बल ऊपर उठकर धक्के लगा रहे थे। मेरे लिए यह नया आसन था, उनके पैर मेरे सर के पास आगे-पीछे हो रहे थे। मैंने उनके पैरों के पंजों को चूमा !

अब उन्होंने मेरे पैरों को अपने आजू-बाजू नीचे कर दिया और मेरे कंधे पकड़ कर मुझे बैठा कर दिया था अब मैं उनकी गोद में थी आमने सामने ! उनका लण्ड मेरी चूत में हरकत कर रहा था, वे मेरे स्तनों पर चुम्बन देते-देते मुझे हिला रहे थे और खुद भी आगे-पीछे हिल कर चूत में लण्ड अन्दर-बाहर कर रहे थे। अब मुझे उन्हें कुछ नया आनन्द देने की सूझी मैंने उन्हें पीछे गिरा कर लिटा दिया और मैं उन पर सवार हो गई और जो मैंने अपनी गाण्ड पीछे कर ठाप मारी तो मैं दर्द से कराह उठी। जल्दबाजी में मैंने सीधा ठाप नहीं लगाया था कुछ तिरछा लग गया था और उनका लण्ड मेरे सूजे पपोटों और जो चूत और गाण्ड के बीच चमड़ी होती है, वहाँ टकरा गया और दर्द से मेरी जान निकल गई।

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मैं थोड़ी देर हिल भी नहीं सकी। जीजाजी ने पूछा- क्या हुआ?

मैंने कहा- अपने आप ही लगा ली है मैंने !

मैं बस उनकी जांघों पर बैठी रह गई ! यह चोट मेरी गलती से नहीं लगी थी, मैंने कई बार अपने पति को ऐसे चोदा था पर उनके लण्ड और जीजाजी के लण्ड की लम्बाई के अंतर के कारण जब मैं ऊपर होकर झटके लगा रही थी तो थोड़ा छोटा होने के कारण वो चूत से पूरा निकल गया और वापिस सही जगह घुसा नहीं और मुझे चोट लग गई !

मैं उनका लण्ड डाले-डाले ही बैठी रही और जीजाजी नीचे से धक्के लगाने लगे।

थोड़ी देर में मेरा दर्द भी कम हुआ और मुझे भी मजा आने लगा तो मैं भी उनके ऊपर कूदने लगी पर सवधानी के साथ कि कहीं दुबारा चोट न लग जाये !

थोड़ी देर में मैं थक चुकी थी, मैंने कहा- आप इतनी देर कैसे चोद लेते हो? मेरी तो जांघें दुखने लगी ! अब मैं और नहीं कर सकती !

उन्होंने कहा- उतर कर मेरे पास लेट जाओ।

मैं लेट गई तो उन्होंने मुझे दूसरी तरफ घुमा दिया और मेरी गाण्ड से चिपक कर लेट गए।

मैं सोच रही थी कि पता नहीं अब ये क्या करेंगे, कहीं गाण्ड में न घुसा दें पर उन्होंने पीछे से मेरी टांग उठाई और अपने लण्ड को पकड़ कर पीछे से चूत में घुसाने लगे।

मुझे ऐसे बहुत गुदगुदी होती है इसलिए मैं एकदम आगे सरक गई और उनका लण्ड बाहर ही झूलता रह गया !

उन्होंने कहा- क्या हुआ?

मैंने कहा- धीरे धीरे डालने से ऐसे मुझे गुदगुदी होती है। झटके से डाल दो, फिर एक बार घुस गया तो फिर गुदगुदी नहीं होगी !

उन्होंने कहा- ठीक है।

फिर उन्होंने मेरी कमर पकड़ कर एक टांग थोड़ी ऊँची कि और एक झटके में अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया और धीरे धीरे घस्से लगाने लगे।

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जीजाजी के धक्के मंथर गति से चल रहे थे ! वे मेरी बगलों से हाथ निकाल कर मेरे मेरे स्तन भी दबा रहे थे एक हाथ उनका मेरे नंगे कंधे पर फिर रहा था और मैं अपनी चुदाई से बेखबर तिरछी होकर टीवी में सीरियल देख रही थी ! मैं सोच रही थी अभी वे छुट कर हट जायेंगे, पर मेरा अनुमान गलत था वे लगातार धक्के मार रहे थे कि मेरे मोबाईल की घंटी बज गई।

मैंने पास पड़े रिमोट से टीवी की आवाज़ कम की, जीजाजी को रुकने का इशारा किया, जीजाजी धक्के लगते रुक गए पर अपना लण्ड बाहर नहीं निकाला।

मैंने मोबाईल उठाया और देखा मीना साहब का फोन था।

जीजाजी को पता था कि वो साहब मुझ पर मरता था इसीलिए उसने यहाँ बुलाकर यह नौकरी मुझे दी थी पर आगे उसकी हिम्मत नहीं होती थी और मैं कोई लिफ्ट देती नहीं थी बस कभी कभी फोन पर बात कर लेती थी पर जब मेरा मूड होता तब ही, नहीं तो मैं फोन उठाती ही नहीं थी। उसे मेरा स्वभाव पता था और वो मेरे गुस्से को भी जानता था इसलिए बस फोन पर भी वो सामान्य बाते ही करता था और मुझे बात करनी होती तो भी मैं मिस काल ही करती थी।

अब वो मुझसे पूछ रहा था कि मैं गाँव पहुँच गई क्या?

अब उसे क्या पता कि मैं होटल में बिल्कुल नंगी होकर चुदवा रही हूँ !

मैंने कह दिया- हाँ, पहुँच गई हूँ।

और वो मेरे साथ में काम करने वालों के बारे में पूछने लगा कि वे कोई आपको परेशान तो नहीं करते हैं।

तब तक जीजाजी ने अपने लण्ड को मेरी चूत में अकड़ा कर झटके देना शुरू कर दिया। मैंने भी जबाब में अपनी चूत को संकुचन किया उनका लण्ड मेरी चूत में फंसा तो उन्हें जोश आया और वो फिर से धक्के मारने लगे। अब मुझे फोन पर बात भी करनी पड़ रही थी और पीछे धक्के भी खाने पड़ रहे थे !

अब बात करते करते मुझे अपने आहों पर भी काबू करना पड़ रहा था, शायद इसी बात का जीजाजी को जोश आ रहा था। अब उन्होंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी, मेरी सांसों की आवाज़ तेज़ होने लगी, अब मुझे बात करना अच्छा नहीं लग रहा था।

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मुझे हांफता जान कर मीना साहब ने पूछा- क्या हुआ?

तो मैंने बहाना किया- रसोई में चूल्हे पर दूध चढ़ाया हुआ था, वो उफन रहा है इसलिए बाहर से भागकर चूल्हे के पास आई हूँ उसे उतारने और अब मैं फोन रखती हूँ ! बाय !

ऐसा कहकर मैंने फोन काट दिया और उसका स्विच ऑफ ही कर दिया और जीजाजी को बनावटी घुस्से से बोली- जब मैं किसी से फोन पर बात करती हूँ तो आपको ज्यादा जोश आता हैक्या?

जीजाजी ने कहा- सही बात है। तेरी दीदी जब तेरी मम्मी से रात को बात करती है तब मुझे उसे चोदने का जोश ज्यादा आ जाता है।

फिर मैंने भी उनको कहा- अब ऊपर आकर चोद लो, मुझे भी अब आनन्द आने वाला है।

तो उन्होंने मुझे पलंग की किनारे पर घोड़ी बना दिया और खुद पलंग से नीचे खड़े हो गए, एक पांव अपना नीचे रखा और एक पांव पलंग पर रख दिया मैं पूरी पलंग के ऊपर ही घोड़ी बनी हुई थी और उन्होंने अपना लण्ड का मुँह पकड़ कर मेरी चूत में उतार दिया और जबरदस्त धक्के मारने लगे मेरी चूत बिल्कुल संकरी हो गई थी और उनका लण्ड फंसता फंसता अन्दर-बाहर हो रहा था।

मैंने उनसे एक बार फ़िर पूछ लिया- आपको कोई बीमारी है क्या जो आपका पानी इतनी देर से निकलता है? या आपने को अफीम या नशे की कोई गोली खाई है?

तो जीजाजी हंस पड़े और बोले- मेरी प्रकृति ही ही ऐसी है। तेरी दीदी मुझसे 20 सालों से चुदा रही है और मैं दावा करता हूँ कि मेरे अलावा उसे कोई संतुष्ट नहीं कर सकता ! उसे भी 20-25 मिनट चुदाये और 3-4 बार उसका पानी नहीं निकले तब तक उसको शांति नहीं मिलती। मेरे इस लम्बे स्तम्भन के कारण जब मैं कई प्रेमिकाओ को चोदता था तो वे या तो कोई आने के कारण या चुदाई से थक कर मेरा पानी निकाले बिना ही भाग जाती थी। और जो हकीम जड़ी-बूटी वाले आते और कहते बाबूजी यह जड़ी ले लो, आपका लण्ड ज्यादा उठेगा और काफी देर तक स्खलन नहीं होगा तो मैं कहता कि ऐसी जड़ी-बूटी है क्या जिससे कम उठे और जल्दी पानी छुट जाये?

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

तो वे मेरा मुँह ताकने लग जाते थे। अब मेरा बुढ़ापा है, उठता तो कम है पर स्तम्भन तो वही है। हालाँकि मैं अपने दिमाग से काबू कर लेता हूँ कि मुझे जल्द निकलना हो तो निकाल लेता हूँ पर आज तू चुदती रह, मैं चोदता रहूँगा।

मैं निरुत्तर हो गई और थक कर अपना मुँह बिस्तर पर टिका दिया। गाण्ड उठी हुई थी और मेरी पतली कमर दोनों तरफ से जीजाजी के दोनों हाथों के अंगूठे और उसके पास वाली अंगुली मैं जकड़ी हुई थी और वो पूरे जोर से खींच खींच कर धक्के लगा रहे थे !

घोड़ी बने बने मेरे पैर भी दर्द करने लगे थे मुझे चुदते हुए करीब 20 मिनट हो गए थे। अब मैंने उन्हें छोड़ देने की गुहार लगाई !

जीजाजी भी कुछ थक गए थे और उन्हें मुझ पर भी दया आ गई थी इसलिए उन्होंने कहा- चलो अब मैं अपना पानी निकाल लेता हूँ !

ऐसा कह कर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत से निकाला और मुझे पलंग पर सीधा लिटा दिया में बुरी तरह से थक गई थी इसलिए लेटते ही मुझे काफी आराम मिला !

पर वह आराम कुछ क्षण का ही था बहुत जल्द ही मेरी टांगें जीजाजी के कंधों पर थी और उन्होंने बहुत सारा थूक लेकर मेरी सूख चुकी चूत में लगाया कुछ अपने कंडोम लगे लण्ड पर लगाया और फिर उसे थूक से चिकनी हुई चूत में पेल दिया !

अब मुझे पता था कि अब जीजाजी अपना पानी निकलने की कोशिश में हैं इसलिए मैं भी मुँह से आ….ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊ ह्ह्ह्हह धीरे हु..म्मम्म यह क्या घुस रहा है मेरी चूत में ! कोई तो मुझे बचाओ ! मज़ा आ रहा है ! ओ..ओ….ह.ह.ह्ह्ह. की मादक आवाज़ें निकाल रही थी और उनका लण्ड मेरी चूत में पिस्टन की तरह सटासट अन्दर बाहर हो रहा था।

कभी ज्यादा जोर का धक्का लग जाता तो उनका सुपारा मेरी बच्चेदानी से ही टकरा जाता था। अब वास्तव में भी मुझे मज़ा आ रहा था और मैं फिर से झड़ रही थी और फिर उनके बदन ने भी झटका खाया और उनकी गति कम पड़ गई। अब वे हौले हौले धक्के लगा रहे थे। थोड़ी देर में उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाला, कंडोम के मुँह पर गांठ लगाई और पलंग के पास लगी मेज की दराज़ में डाल कर बाथरूम में चले गए पेशाब करने !

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वापिस आये और नंगे ही लेट गए।

अभी तक जो लण्ड मुझे परेशान कर रहा था, अब बिल्कुल छोटा होकर लटक गया था किसी बच्चे की नूनी की तरह ! उनका बैठा लण्ड काफी छोटा था, खड़ा होने पर काफी बड़ा हो जाता है। मैंने भी बाथरूम में जाकर पेशाब किया अपनी चूत धोई, ठंडा पानी लगते ही चूत में सिरहन हो रही थी और हवा सी लग रही थी अन्दर इसलिए चूत के ऊपर मैं तौलिया फंसा कर आई जिससे मुझे कुछ आराम मिल रहा था और फिर से लेट कर हम दोनों ने कम्बल ओढ़ लिया और टीवी देखने लगे!

रात के करीब 10 बज गए थे, मुझे भी थकान के कारण नींद आ रही थी, मैंने उनसे कहा- अब मैं मैक्सी पहन लूँ क्या?

पर उन्होंने कहा- नहीं, रात भर नंगे ही सोयेंगे और रात को कभी भी मूड बन गया तो मैं तुम्हें चोदना शुरू कर दूँगा।

मैंने कहा- ओ के ठीक है। मुझे क्या फर्क पड़ेगा, आप ही थकेंगे, मुझे तो सिर्फ टांगें चौड़ी करनी हैं, कूदना तो आपको है।

और एक पुरानी कहावत और जोड़ दी- सड़क का क्या बिगड़ेगा, इस पर चलने वाले थकेंगे !

कहानी तो चलती ही रहेगी !

रात के करीब 10 बज गए थे, मुझे भी थकान के कारण नींद आ रही थी, मैंने उनसे कहा- अब मैं मैक्सी पहन लूँ क्या?

पर उन्होंने कहा- नहीं, रात भर नंगे ही सोयेंगे और रात को कभी भी मूड बन गया तो मैं तुम्हें चोदना शुरू कर दूँगा।

मैंने कहा- ओ के ठीक है। मुझे क्या फर्क पड़ेगा, आप ही थकेंगे, मुझे तो सिर्फ टांगें चौड़ी करनी हैं, कूदना तो आपको है।

और एक पुरानी कहावत और जोड़ दी- सड़क का क्या बिगड़ेगा, इस पर चलने वाले थकेंगे !

वे हंस पड़े और बोले- फिर तू चुदते हुए जल्दी जल्दी निकालने का क्यूँ कहती है जब तेरा कुछ बिगड़ना ही नहीं है?

मैंने मुस्कुरा कर कहा- मैं तो आपका ख्याल करती हूँ, बुड्ढे आदमी हो इसलिए !

तो वे बोले- अब तो तुम्हें पता चल गया होगा कि मैं कितना बुड्ढा हूँ !

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मैंने कहा- पता तो है न ! आपने मुझे कितना परेशान किया है ! तो जवानी में क्या करते होंगे, बेचारी मेरी दीदी की क्या हालत होती होगी?

वो हंस पड़े !

मैंने कहा- अब सो जाओ !

तो वे बोले- नहीं, क्रिकेट का मैच आ रहा है, वो देख कर सोऊँगा, तुम सो जाओ !

मुझे तो कोई रुचि थी नहीं क्रिकेट में, मैं तो सो गई, वे भी मेरे पीछे चिपक कर लेट गए और मैच देखने लगे !

कोई डेढ़-दो घंटे के बाद मेरी नींद खुल गई क्योंकि जीजू पीछे से मेरे कूल्हे मसल रहे थे और मेरी एक टांग थोड़ी उठा कर मेरी चूत का छेद टटोल रहे थे। मैं उनकी कोशिश को सरल करने के लिए थोड़ी टांग उठाते हुए बोली- क्या हुआ ?

तो वे बोले- यार भारत मैच हार गया है साउथ अफ्रीका से ! इसलिए गम गलत करना है ताकि मुझे नींद आ जाये !

मैंने हंस क कहा- यह तो मुझे पता ही था कि कभी भी आपका लण्ड मेरी चूत में घुस सकता है पर इतनी जल्दी की आशा नहीं थी।

मैंने कहा- हारे, तो गम गलत करना है ! जीत जाते तो भी जीत की ख़ुशी में चोदते ! यानि मेरी चुदाई तो होनी ही है।

ऐसा कहते हुए मैंने उनके लिए रास्ता बनाया अपनी टांग थोड़ी उठा कर !

और जीजू ने थोड़ा मेरी चूत के छेद पर थूक लगा कर पीछे से ही मेरी चूत में अपना लण्ड सरका दिया था और घस्से लगाने लगे। इस वक़्त वो बहुत जोर से चोद भी रहे थे, साथ ही मेरे स्तन भी बेदर्दी से मरोड़ रहे थे !

मैं उनके हाथ से अपना स्तन छुड़ाते हुए बोली- क्या करते हो? दर्द हो रहा है। भारत को क्या मेरी चूचियों और चूत ने हराया है जो इन पर गुस्सा उतार रहे हो?

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यह सुनकर उन्होंने स्तन मरोड़ना तो बंद कर दिया पर चूत के भरी भरकम धक्के जारी रखे ! उन्होंने कंधे पकड़ रखे थे और अपनी एक टांग भी मेरे ऊपर रख रखी थी वर्ना उनके धक्कों से में कुछ आगे खिसक सकती थी।

मेरी चूत में भी जीजू के धक्कों से कुछ हलचल मचनी शुरू हो गई थी ! मैं अपने शरीर का रहस्य नहीं जान पाई कि कभी तो 6-8 महीनों में एक बार भी चूत से पानी नहीं निकलता है। या कभी मन में ही नहीं आती है और कभी 6-8 घंटों में ही 8-10 बार पानी निकल जाता है। यह भी कुदरत का करिश्मा ही है।

मैंने जीजू को ऊपर आने को कहा ताकि मैं भी आनन्द ले सकूँ ! पीछे से मुझे इतना आनन्द नहीं आता है।

मैंने अपनी दोनों टांगें योग करने के अंदाज़ से उठा दी, तब तक जीजाजी ने पास की दराज़ से निकाल कर कंडोम पहन लिया और मेरे ऊपर आकर घुड़सवारी करने लगे, जिसे सही मायने में ऊँट सवारी कहना ज्यादा सही है क्यूंकि ऊँट पर बैठने वाला ही कभी आगे और कभी पीछे होता है क्योंकि ऊँट के चलने का अंदाज़ ही ऐसा होता है।

उनके धक्के जबरदस्त लग रहे थे, मैंने अपनी टांगें पूरी उठा ली थी जितनी उठा सकती थी, अब मेरी चूत बिल्कुल खड़ी अवस्था में थी जिसमें जीजू अपना लण्ड पूरा पेल रहे थे जड़ तक !

मैंने कहा- मेरी टांगों से नीचे हाथ डालकर मेरे चूचे पकड़ लो और इन्हें दबाओ, मुझे इन्हें दबवाना अच्छा लग रहा है।

जीजाजी ने कोशिश कि पर उनकी लम्बाई ज्यादा होने के कारण उनका बोझ मुझ पर पड़ रहा था इसलिए उन्होंने थोड़ी देर बाद मेरे स्तन छोड़ दिए और वापिस मेरे कूल्हे पकड़ कर झटके लगाने लगे। कमरे में खप-खप, खच-खच और हमारी जांघें टकराने की आवाज़ें गूंज रही थी पर हमें कोई डर नहीं था किसी के सुनने का !

करीब 10 मिनट की चुदाई के बाद मेरा दूसरी बार पानी निकल गया और जीजाजी ने भी झटका खा कर अपना पानी छोड़ दिया !

मेरी ख़ुशी मिश्रित आवाज़ निकली- वाह, आज तो आपने कमाल कर दिया, सिर्फ 10 मिनट में ही पानी निकाल दिया !

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वे बोले- यार, मैंने कहा ना कि अब मैं अपने दिमाग से कंट्रोल कर लेता हूँ कि पानी 10 मिनट में निकलना है या 40 मिनट में !

मैंने कहा- आप ऐसे दिमाग को कंट्रोल कैसे करते हो?

तो वे बोले- सेक्स करते वक़्त सेक्स को दिमाग में नहीं रखता हूँ, तुम्हारी आह-उह पर ध्यान नहीं देता हूँ ! कोई टेंशन वाली बात सोचता रहता हूँ तो मेरा पानी आधा घंटा भी नहीं निकलेगा और जल्दी निकलना हो तो सेक्स का सोच लेता हूँ ! तुम्हें पता नहीं है कि मैं काफ़ी कम उम्र से सेक्स कर रहा हूँ, हस्तमैथुन, लड़कों से गुदामैथुन और जो उन्होंने बताया वो मैं यहाँ नहीं बता सकती प्रतिबंध की वजह से !

और कहा- कई लड़कियों, कई भाभियों, कई रंडियों के साथ मैंने सेक्स किया है। आज में 46 साल का हूँ तो मेरा सेक्स-अनुभव सालों साल का है। जितनी तुम्हारी उम्र भी नहीं है। इतने अरसे के बाद मुझसे से कंट्रोल होना शुरू हुआ है। हाँ ! स्तम्भन का ज्यादा वक्त तो मुझ में पहले से ही ईश्वर की देन ही है। मेरे दोस्त लोग हस्त मैथुन करते थे तो उसको 61-62 कहते थे यानि 61-62 बार लण्ड को आगे पीछे करने से उनके पानी छुट जाते थे पर मेरे को 200-250 बार आगे पीछे करना पड़ता था !

और वो हंस पड़े, मैं बेवकूफ सी उनकी बातें सुन रही थी और एक ज्ञान लेकर में सोने लगी और वे भी मेरी पीठ से चिपक कर सो गए !

सुबह सुबह कोई 6 बजे मेरी नींद जीजाजी के चुम्बनों से खुली ! वो मुझे यहाँ-वहाँ चूम रहे थे।

मैंने कहा- यह सुबह-सुबह भगवान के भजन के वक़्त यह क्या कर रहे हो?

जीजाजी बोले- तभी तो भगवान के भजन में ढोलक बजानी है।

मुझे उनकी बात पर हंसी आ गई, मैंने कहा- अपनी और मेरी हालत देखो, बाल बिखरे हुए और सारा शरीर अस्त व्यस्त हो रहा है, मुँह धोया ही नहीं और आप इस काम के लिए शुरू हो गए?

जीजाजी बोले- सूखी चुनाई करूँगा ! सूखी चुनाई का मतलब ऐसे ही चोदेंगे और अपना पानी नहीं निकालेंगे !

मैंने सोचा- अब ये मानेंगे तो नहीं और अपने क्या फर्क पड़ता है। बेचारे ने इसी काम के लिए इतना खर्चा किया है। और ऐसा मौका बार बार तो मिलना नहीं है। चल कम्मो अपनी ड्यूटी पर ! ड्यूटी क्या टांगें उठा कर लेटना है, कपड़ों का एक रेशा ही नहीं था बदन पर ! पर रात भर से मेरी टंकी फुल हो रही थी।

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मैंने कहा- मुझे बाथरूम जाकर आने दो नहीं तो आपके डालते ही मेरा निकल जायेगा यहीं बिस्तर पर ही !

उन्होंने कहा- जाकर आ जाओ !

मैं वापिस आई तो देखा जीजाजी का लण्ड सीधा खड़ा जैसे छत को देख रहा है। मैंने उसे हाथ में पकड़ कर दबाया और कहा- इसकी अकड़ नहीं निकली अब तक !

जीजाजी बोले- तुम मेरी ड्रीमगर्ल हो ! तुम्हें देखते ही यह तुम्हारे सम्मान में खड़ा हो जाता है।

मैं मुस्कुराती हुई बिस्तर पर लेटी, अपनी टांगें उठाई और बोली- आ जाओ !

जीजाजी मेरे ऊपर आये, चूत को थूक से चिकना किया और लण्ड पेल दिया ! पिछले दिन से चुद रही चूत ढीली पड़ गई थी इसलिए सटासट लण्ड अन्दर-बाहर जा रहा था।

मैंने कहा- कंडोम तो लगा लो ! क्या पता आपके छुट जाये तो?

जीजाजी ने कहा- स्टॉक ही नहीं बचा ! कहाँ से छुटेगा अब? अब तो मुश्किल से छुटेगा, तुम चिंता मत करो !

करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं स्खलित हो गई, मेरा सारा बदन हल्का लगने लगा। उन्हें यह पता चल गया और उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया, अपनी चड्डी-बनियान पहन लिया और मुझे भी कहा कि सिर्फ मैक्सी पहन लूँ क्यूंकि अभी वेटर से चाय मंगवायेंगे !

मैंने भी अपनी मैक्सी पहन ली चड्डी को भी तकिये के नीचे दबा दिया।

थोड़ी देर में जीजाजी ने इन्टारकॉम से फोन कर चाय मंगवा ली।

हमने चाय के साथ हल्का नाश्ता किया और जीजाजी नहाने चले गए।

नहा कर वापिस आये तब तक मैं लेटी हुई ही थी, उन्होंने कहा- नहा कर फटाफट तैयार हो जाओ तो मेरा भी मूड बने !

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मैंने कहा- पहले ही चोद दो ना ! नहाने के बाद वापिस ख़राब करोगे मुझे !

उन्होंने कहा- अगर मूड हो तो फिर नहा लेना ! पर मुझे पता है तुम जितनी बार नहा कर बाहर आओगी, मुझे तुम्हें चोदना पड़ेगा क्यूंकि अब इसमें से में पानी निकालूँगा नहीं और यह तुम्हें नहाई हुई देखते ही खड़ा हो जायेगा!

मैंने कहा- यार, तुम मुझे बार बार परेशान करोगे ! अपना पानी निकाल लो ना !

तो वो बोले- अरे तुम्हें पता नहीं है, तेरी दीदी बहुत शक्की है, मैं जब भी कोई रात बाहर बिताता हूँ तो उसको शक हो जाता है कि किसी दूसरी को चोद के आए होंगे ! अरर अभी मैं अपना पानी निकाल लूँ तो शाम को तेरी बुड्ढी दीदी को देख कर मेरा लण्ड खड़ा नहीं होगा ! तुम्हें पता है, बुढ़ापा है, मेरा कल से 3 बार पानी निकल चुका है। सब खाली हो गया है। अब शाम तक मुझे वापिस स्टॉक बनाना है। हाँ तुम ही रहो शाम को चुदने तो अभी निकाल दूँ ! तो भी रात को तुम्हें देखते ही फिर खड़ा हो सकता है।

मैं क्या बोलती, मुझे उनकी बातें समझ में नहीं आ रही थी, बस यह पता था कि मेरी सूखी चुनाई कितनी बार भी हो सकती है।

मैं नहा कर आई तो वे तैयार ही थे, बोले- यार, कोई नहा कर आता है तो उसके शरीर से, बालों से पानी टपकता है तो मेरा मन हो जाता है।

मैंने कहा- मैं बाल धोकर आई हूँ, मुझे बाल सुखाने तो दो !

पर वे नहीं माने !

मेरे सर पर तौलिये बंधा था, मुझे उन्होंने बिस्तर पर लिटाया और शुरू हो गए !

इस बार उन्होंने मेरी नहाई धोई चूत भी चाटी, फिर लण्ड डाला और झटके देने शुरू !

बस वो यह ध्यान रख रहे थे कि मैं कब स्खलित होती हूँ और फिर हट जाते !

इस धक्कमपेल में मेरे सर का तौलिये भी हट गया और गीले बालों की वजह से बिस्तर पर बड़ा निशान बन गया। मैंने कहा- ये होटल वाले क्या सोचेंगे कि यहाँ पेशाब कर दिया !

जीजाजी ने कहा- इसकी चिंता हम क्यों करें कि हमारे पीछे होटल वाले हमारे बारे में क्या सोचेंगे ! वे तो ये भी सोचेंगे कि साला कैसा माल पटा कर लाया है और रात भर से मज़े ले रहा है।

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मेरी और जीजू की उम्र में अंतर साफ पता चलता है।

मैंने सुना कि बन्दर अपना सम्भोग कई घंटों में पूरा करते है क्योंकि वे शिलाजीत चाटते रहते है इसलिए थोड़ा चोदा और हट गए, फिर चोदा और हट गए। इस प्रकार वे अपना पानी 7-8 घंटों में निकालते है। वही स्थिति जीजाजी ने भी कर दी थी, 10 बजे तक वे मुझे कोई 5-6 बार चोद चुके थे और उनका खड़ा का खड़ा, बस पेशाब कर आते, तब बैठता और थोड़ी देर मुझे सहलाते और फिर खड़ा हो जाता।

मेरी हालत ख़राब हो गई, मैंने कहा- देखो आपने मेरी चूत की क्या हालत कर दी है। अब तो रुक जाओ !

वे बोले- ठीक ! अब हमें यह कमरा भी छोड़ना है। साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ ! अभी हमें खाना भी खाना है।

मैं फटाफट तैयार हुई, उन्होंने भी अपनी जींस और शर्ट पहन लिया।

तभी उन्हें कुछ याद आया और उन्होंने बैग से एक ट्यूब निकाली, क़ुडर्मिस नाम की थी, बोले- चलो तुम्हारी चूत पर दवा लगाता हूँ ! वास्तव में बहुत लाल हो रही है। और जगह-जगह से कुछ कट भी गई है। मेरे लण्ड की भी हालत ख़राब है।

ऐसा बोल कर उन्होंने मेरे सामने ही अपनी जीन की चैन खोली लण्ड को बाहर निकाला चमड़ी को ऊपर कर सुपारे पर ट्यूब से दवाई लगाने लगे। उनका सुपारा भी बहुत लाल हो रहा था !

अपने लण्ड पर दवाई लगा कर उसे मोड़ कर अन्दर डाल लिया और चैन बंद कर दी में किसी बच्चे की तरह उनकी ध्यान से हरकत देख रही थी।

फिर उन्होंने कहा- अब मैं तुम्हारे लगा दूँ, पलंग के किनारे पर लेट जाओ और टांगे नीचे फर्श पर रखो।

मैं लेट गई, जीजाजी ने साड़ी पेटीकोट ऊँचा किया, मेरी चड्डी को काफी नीचे किया और ट्यूब लेकर हल्के-हल्के हाथों से मेरी चूत पर दवाई लगाने लगे। दवाई का ठंडा ठंडा स्पर्श मेरी टूटी फूटी चूत को भला लग रहा था।

वे आराम से मेरी चूत के पपोटों, चने के आसपास और ग़ाण्ड और चूत के बीच की चमड़ी पर दवाई लगा रहे थे जहाँ से मेरे जीजाजी के ऊपर चढ़ कर चोदने से कट लग गया था ! उनकी अंगुली दवा अन्दर तक लगा रही थी तभी मुझे चरर्र की चेन खुलने की आवाज़ आई।

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मैं चौंकी, मैंने देखा कि जीजाजी अपना लण्ड बाहर निकाल रहे हैं।

मैंने कहा- क्या करते हो? अभी तो दवा लगाई है।

उनका लण्ड तना हुआ था, वे बोले- अन्दर तक अंगुली पहुँच नहीं रही थी, इससे लगेगी !

ऐसा कह कर काफी ट्यूब अपने लण्ड पर लगाई और दवा लगी चिकनी चुत में पेल दिया और हौले हौले धक्के लगाने लगे !

मैंने भी ठंडी साँस भर कर चड्डी पहने पहने जितनी चौड़ी टांगे हो सकती थी, की और 5 मिनट में फिर से स्खलित हो गई क्यूंकि उनके दवा लगाने से मैं थोड़ी गर्म तो पहले से ही थी।

जीजाजी को पता चला कि मैं स्खलित हो गई हूँ तो अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मोड़ कर वापिस अपनी पैंट में डाल लिया, मेरी चूत पर फिर से क्रीम लगाई और चड्डी ऊँची कर पहना दी !

फिर हमने कमरा छोड़ा, मैं तो लिफ्ट से नीचे गई, जीजाजी रेसेप्शन पर गए, नीचे रेस्तराँ में खाना खाया और बस स्टैंड पर गये। बस में साथ-साथ बैठे, सारे रास्ते वे पास वालों की नज़र बचा कर मेरी जांघ पर हाथ फेरते रहे, गोद में बैग रख कर मेरा हाथ कई बार अपने लण्ड पर रखते रहे, उनका लण्ड फनफना रहा था, मुझे पता था कि आज दीदी बहुत जोरों से चुदेगी !

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फिर उनका गाँव आ गया, वे उतर गए, जब तक मेरी बस नहीं चली, खिड़की के पास खड़े रहे, मेरी बस दूर मोड़ तक गई तब तक मुझे देखते रहे। उनका चेहरा उदास था, मैं भी उन्हें उदास देख कर उनके प्यार लाड को याद कर उदास हो गई, फिर अपने गाँव पहुँच गई !

कहानी तो चलती ही रहेगी !

मैं अपने गाँव तक पहुँची तब तक जीजाजी का आधे घंटे में दो बार फोन आ गया !

मैं समझ गई कि जीजाजी का मन मेरे में अटका है, उन्होंने बस में हाथ फेरते हुए कई बार कहा था कि मन कर रहा है।

तो मजाक में मैंने कहा था- आ जाओ, यही बस में ही चोद दो ! हिम्मत आपकी होनी चाहिए !

और वे कसमसा कर रह गए थे !

हमारी सीट के बराबर में खड़ा एक लड़का जो 20-22 साल का था हमारी बातें सुन कर और जीजाजी की हरकतें देख कर बेचारा गर्म हो रहा था और बार बार अपनी पैँट ठीक कर रहा था।

मैंने यह बात जीजाजी को बताई तो उन्होंने कहा- इसे भी देख कर बात करना और हाथ फेरना सीखने दो, हमारा क्या जाता है !

और वो बार-बार मुझे होटल में कम चोदने का अफ़सोस कर रहे थे पर मेरा जी जानता था कि मैंने उन्हें कैसे झेला था !

खैर मैं गाँव पहुँच गई और उनसे दिन में कई बार बात होने लगी, मम्मी पापा से छुप कर उनसे बात करने के लिए मुझे कभी छत पर जाना पड़ता था और कभी लेट्रिन में बैठ कर बात करनी पड़ती थी !

उनकी बातें घूम फिर कर सेक्स पर ही आती थी।

अब वे बार-बार मुझसे जल्दी मिलने की बात कह रहे थे !

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फिर एक दिन मैंने उन्हें कहा- आप कल आकर मेरे घर मुझसे मिल सकते हो !

सुनते ही वो खुश हो गए और बोले- क्या वाकई?

मैंने कहा- हाँ, कल 11 बजे तक आ जाओ, मम्मी ननिहाल जा रही हैं, पापा को खेत पर जाना है, भाई जो स्कूल में पढ़ाने जाता है, वो स्कूल में ठेके पर टीचर लगा हुआ है तो ये सभी वापिस शाम को आयेंगे !

मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि भाभी आई हुई है और उसके एक बेटा और एक बेटी और मेरा एक बेटा भी है। उन्होंने मेरी भाभी और उसके बच्चों का तो यह सोचा कि वे भाभी के पीहर में होंगे और मेरे बेटे के बारे में यह सोचा कि वो स्कूल जायेगा !

यह सोच कर वे खुश हो गए और बोले- मैं स्कूल से निकल कर बाइक से सीधा तेरे गाँव आ जाऊँगा।

जीजाजी भी सरकारी टीचर हैं, उनका स्कूल मेरे गाँव से 25-30 किलोमीटर पर है।

मैंने कहा- हाँ, आ जाओ !

मैंने सोचा, देखेंगे, किस्मत हुई तो मौका देखा कर चौका मार लेंगे वरना मिल तो जायेंगे क्योंकि मुझे अगले दिन जयपुर जाना था।

सुबह उन्होंने फोन पर पूछा- मम्मी ननिहाल गई क्या?

मेरी मम्मी जा रही थी इसलिए मैंने दबी आवाज में कहा- हाँ जा रही हैं !

फिर पूछा- और पापा?

मैंने कहा- वे तो जल्दी ही खेत पर गए।

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यह सुनकर वे अपनी स्कूल से रवाना हो गए।

करीब 45-50 मिनट के बाद उनका फोन आया- मैं तेरे गाँव के बस स्टैण्ड तक पहुँच गया हूँ, घर आ जाऊँ क्या?

मैंने कहा- हाँ आ जाओ जल्दी !

उस वक्त मैं कमरे में झाड़ू लगा रही थी, भाभी बाहर हाल में पोचा लगा रही थी, मैं बिल्कुल धूल से भरी हुई थी, नहाई भी नहीं थी, घागरा और कुर्ती-कांचली पहन रखी थी।

और वो 2-3 मिनट में बाइक लेकर घर आ गए। घर में घुसते ही मेरा और भाभी के दोनों बच्चे उनके सामने गए खुश होकर और उनके सर पर मानो बम पड़ा ! रही सही कसर मेरी भाभी जो पौचा लगा रही थी, उसने धोक लगा कर पूरी कर दी !

मुझे उनका चेहरा देख कर हंसी आ रही थी, उनके चेहरे पर पूरे बारह बज रहे थे !

बच्चे बाहर उनकी बाइक पर चढ़ रहे थे !

मुझे मालूम था वे आते ही मुझे बाँहों में पकड़ेंगे, वे फाटक से अन्दर आये और जब मैंने धोक देकर कहा- आइये जीजाजी, जीजी को साथ नहीं लाये?

तो उन्होंने आशीर्वाद देते मेरा कन्धा गुस्से में जोर से दबाया मेरे मुँह से कराह निकल गई पर हंसी भी उनकी हालत देख कर जबरदस्त आ रही थी !

फिर मैंने धीरे से कहा- मैं कल जयपुर जा रही हूँ, आपसे मिलना हो गया, यही क्या कम है !

जीजा मुझे बाहों में लेने की कोशिश करने लगे, मैंने कहा- अरे अभी मैं धूल से भरी हूँ, मेरी हालत ख़राब है !

ऐसा कह कर मैं एकदम नीचे बैठ कर उनकी बाहों से निकल कर बाहर भाग जाना चाहती थी पर जीजाजी बहुत चपल थे और बहुत तेज़ भी, मेरी कोशिश उन्होंने खुद नीचे झुक कर फ़ेल कर दी और मुझे पकड़ कर सीधा खड़ा कर दिया, सीधे मेरे कुर्ती के ऊपर से ही स्तन पकड़े और मैं नहीं-नहीं करूँ, तब तक मेरे चुम्बन लेकर होंठ भी चूस लिए और बोले- मेरी जान तू कैसी भी हालत में हो, मुझे तो बहुत प्यारी लगेगी !

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मैंने उन्हें कहा- अभी देखो, मुझ पर भरोसा रखो, आपका काम हो जायेगा ! अभी बच्चे पड़ोस में जीमने जायेंगे तब मौका निकल जायेगा !

उनके मन में थोड़ी आशा जगी, उन्होंने अपनी पैंट का उभार दिखाया और कहा- मुन्ना जाग गया है अपनी मुन्नी से मिलने के लिए !

मैं हंस पड़ी !

फिर उनको चाय पिलाई और बच्चों को जीमने भेज कर मैं बाथरूम में चली गई नहाने !

जीजाजी भूखे शेर की तरह मेरे घर में इधर उधर घूम रहे थे !

मैं नहा कर आई तब वे कमरे में थे, मैं कमरे में गई खुले और गीले बालों के साथ !

जीजाजी की उत्तेजना चरम सीमा पर थी !

भाभी बाहर झाड़ू लगा रही थी, मैं कमरे में गई तो मुझे कोई गाना याद आया मैंने वो गा कर थोड़ा ठुमका लगा कर जीजाजी के अपनी कमर हिला के गाण्ड से टक्कर मारी तो अनजान खड़े जीजाजी पलंग पर गिर गए, मुझे फिर से हंसी छुट गई, मैं उन्हें देख कर बहुत खुश थी, मेरे लिए सेक्स कोई मायने नहीं रखता पर जीजाजी का दिमाग सेक्स पर ही घूम रहा था इसलिए वे बस कैसे चोदूँगा- कैसे चोदूँगा ही अपने दिमाग में सोच रहे थे, कुछ फिक्रमंद भी थे इसलिए उन्होंने गाण्ड से ठुमका लगा कर गिराने का कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया !

मैं खड़ी थी, जीजाजी पलंग पर बैठे थे। मुझे उन पर कुछ दया आई, मैंने अपनी मैक्सी उठाई और अपनी नंगी चूत उनके सामने कर दी और बोली- अभी भाभी नहाने जाएगी, तब तुम चौका लगा लेना और यह आइसक्रीम खा लो !

ऐसा कहते ही बैठे-बैठे जीजाजी ने अपना मुँह मेरी नहाई-धोई चिकनी चूत पर लगाया और सपर-सपर चाटने लगे। आनन्द से मेरी आँखे बंद होने लगी। एक मिनट भी नहीं चाटा होगा कि बच्चों का शोर सुनाई दिया और मैंने फटाफट अपनी मैक्सी नीचे की और कमरे से बाहर आ गई।

अब जीजाजी का चेहरा और उनकी झुंझलाहट देखने लायक थी !

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मैंने उन तीनों बच्चो को कहा- जल्दी जीम कर आ गए?

तो मेरे बेटे ने कहा- जीमन अच्छा नहीं था !

मेरी भाभी वहाँ आ गई थी और बच्चों से कह रही थी- तुम्हें एक जगह और भी जाना है !

बच्चे मना कर रहे थे- वहाँ नहीं जायेंगे, बहुत दूर घर है।

मैंने कहा- यहाँ तो तुम्हें जिमा कर 2-2 रूपये ही दिए थे, वहाँ 5-5 रूपये देंगे और उनके जिमन भी अच्छा है।

जीजाजी भी जाने का जोर दे रहे थे कि वहाँ जीम के आओगे तो तुम्हें बाइक पर घुमाऊँगा।

खैर जीजाजी की किस्मत ने जोर मारा और बच्चे रवाना हो गए।

उनके जाते ही मैंने दरवाज़ा बंद किया, भाभी ने पानी की बाल्टियाँ बाथरूम में रखी और अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गई।

अब घर सुनसान हो गया था, हम कमरे में भागते से गए और अन्दर वाले कमरे में जाकर मैंने जीजाजी को कहा- अब फटाफट कर लो !

पर उन्होंने कहा- उस कमरे में नहीं, वहाँ से बाहर का ध्यान नहीं रहेगा। इस बाहर वाले कमरे में आओ, इससे बाहर भी दीखता भी रहेगा और कमरे की खिड़की से बाथरूम का दरवाजा भी दीखता रहेगा कि भाभी बाहर निकली तो हमें पता चल जायेगा।

हम ये बातें फुसफुसा कर कर रहे थे !

मुझे जीजाजी का विचार पसंद आ गया, मैं जीजाजी के दिमाग की कायल हो गई और उस कमरे में आकर खिड़की से बाथरूम का दरवाज़ा देखा वो बंद था, खिड़की पर मच्छर जाली लगी थी इसलिए हमें तो बाहर का दिख रहा था बाहर से अन्दर कुछ नहीं दीखता था।

मैं सीधे पलंग पर लेट गई, अपनी मैक्सी ऊँची कर दी और जीजाजी को कहा- फटाफट अपना पानी निकाल लो ! और कुछ भी चूमा चाटी नहीं करनी है, वक़्त बहुत कम है, किसी के आने पर आपका बिना निकले ही रह सकता है, फिर मुझे दोष मत देना !

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जीजाजी ने पैंट की चैन खोली अपने अकड़े हुए लण्ड को मुश्किल से बाहर निकाला और मेरी ऊँची की हुई टांगों के बीच में बसी चूत के छेद में थूक लगा कर पेल दिया !

मैंने कहा- कंडोम कहाँ है? मैं ऐसे नहीं चुदवाऊँगी !

वे बोले- यार तुमने हाथ फ़ेरने दिया नहीं, चाटने दिया नहीं, अब 2 मिनट तो मेरे नंगे लण्ड को तुम्हारी नंगी चूत में जाकर चमड़ी से चमड़ी तो मिलने दे, मेरी जेब में कंडोम है, अभी लगा लूँगा ! तुम्हारे चूत में ऐसे ही थोड़ी देर घुसेगा तो यह ज्यादा गर्म हो जायेगा और मेरा भी पानी फटाफट निकल जायेगा !

मैंने कहा- ठीक है !

अब वे जोर जोर से धक्के लगा रहे थे और उनके हर धक्के से कुछ पुराना पलंग थोड़ा चूं चूं कर रहा था, मैं सोच रही थी कि कहीं बाहर यह आवाज़ नहीं चली जाये। पर कोई विकल्प नहीं था।

दो मिनट बाद ही जीजाजी ने लण्ड बाहर निकल लिया और जेब से कंडोम का पैकेट निकाल कंडोम निकलने लगे।

मैं एकदम पलंग से उठ कर बाहर गई, जीजाजी ने पूछा- क्या हुआ? कहाँ जा रही हो?

मैंने कहा- मैं थोड़ा ध्यान रख कर आ रही हूँ।

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मैंने बाहर हाल में जाकर कुछ कुर्सिया खिसकाई ताकि भाभी को पता चले कि मैं हाल में काम कर रही हूँ, साथ ही भाभी को आवाज़ देकर कहा- पानी ज्यादा मत ख़राब करना, जल्दी से नहा लो !

वो बोली- अभी तो मैंने शुरू किया है, क्यों परेशान करती हो? अभी मुझे नहाने में समय लगेगा !

यह सुनकर मुझे पता चल गया कि भाभी अभी नहीं बाहर आएगी और मैं फटाफट जीजाजी के पास पहुँच गई। वो अपने लण्ड पर कंडोम चढ़ाये हाथ में लेकर मुट्ठिया दे रहे थे। मुझे पता था ये अपना पानी जल्दी निकलने की कोशिश में हैं, मैं यहाँ नहीं थी तब वे रुके नहीं थे और हाथ से काम चला रहे थे !

मैं फिर से फटाफट लेट गई और अपनी मैक्सी उठा कर अपनी टांगें ऊँची कर फिर से चोदने की दावत दी !

जीजाजी तैयार ही थे, उन्होंने फटाफट अन्दर डाला और एक्सप्रेस ट्रेन की तरह शुरू हो गए। उनके कूल्हे बिजली की गति से ऊपर-नीचे हो रहे थे और उनकी तूफानी रफ़्तार से मेरी चूत पसीज गई थी, पानी छोड़ रही थी, मुझे स्वर्गिक आनंद मिल रहा था और मैं पीछे तिरछी होकर खिड़की को देखना बंद कर जीजाजी से चिपक गई और अपनी गाण्ड उचका-उचका कर चुदा रही थी। मेरी दबी-दबी आहें-कराहें निकल रही थी।

पहले मेरा मज़े लेने की कोई इच्छा नहीं थी, मैं सोचती थी कि जीजाजी का पानी निकाल कर इन्हें खुश करना है, पर मेरे भी आनन्द के सोते फ़ूट पड़े थे।

और जीजाजी ने भी झटका खाकर धीरे-धीरे होकर अपना लण्ड फटाफट बाहर निकाला, कंडोम की गांठ लगा कर अपनी जेब में डाल लिया और बाहर हाल में चले गए !

उनके चेहरे से संतुष्टि झलक रही थी।

मैंने भी अपने पानी से गीली हुई चूत को वहाँ पड़े पुराने कपड़े से पौंछा, फटाफट चड्डी पहन ली और मैक्सी को सही कर भाभी के बाथरूम के पास चली गई।

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मुझे अचम्भा हुआ कि जीजू की चुदाई सिर्फ 6-7 मिनट चली थी, यानि मौके के हिसाब से वे सही में अपना पानी निकाल लेते हैं ! हाँ गति उनकी बहुत तेज़ थी।

जीजू बाहर हाल में लेट कर अपनी सांसें सही कर रहे थे !

भाभी भी नहा कर बाहर आ गई, थोड़ी देर में बच्चे भी आ गए और अब मेरी ड्यूटी पूरी हो गई थी इसलिए मुझे कोई चिन्ता नहीं थी !

थोड़ी देर बाद जीजाजी के साथ बाज़ार गई उनकी बाइक पर बैठ कर, मैंने जब तक दूकान से सामान लिया तब तक आगे एक गन्दा नाला था, जिसमें जीजाजी जेब में लाया हुआ कंडोम फेंक आये !

वापिस घर पहुँची तो मैंने जीजाजी को कहा- आप अपने गाँव कल ही जाना, सुबह मेरी जल्दी की गाड़ी है, आप मुझे बाइक पर स्टेशन छोड़ देना ! आपके ससुरजी भी शाम को आ जायेंगे, उनसे भी मिल लेना और जो बच्चो से वादा किया था, इन्हें भी बाइक पर घुमा लाओ ! चलो हमें हमारे खेत ले जाओ !

वहाँ पापा की चाय लेकर जानी थी !

कहानी जारी रहेगी।

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पहले मेरा मज़े लेने की कोई इच्छा नहीं थी, मैं सोचती थी कि जीजाजी का पानी निकाल कर इन्हें खुश करना है, पर मेरे भी आनन्द के सोते फ़ूट पड़े थे।

और जीजाजी ने भी झटका खाकर धीरे-धीरे होकर अपना लण्ड फटाफट बाहर निकाला, कंडोम की गांठ लगा कर अपनी जेब में डाल लिया और बाहर हाल में चले गए !

उनके चेहरे से संतुष्टि झलक रही थी।

थोड़ी देर बाद जीजाजी के साथ बाज़ार गई उनकी बाइक पर बैठ कर, मैंने जब तक दूकान से सामान लिया तब तक आगे एक गन्दा नाला था, जिसमें जीजाजी जेब में लाया हुआ कंडोम फेंक आये !

वापिस घर पहुँची तो मैंने जीजाजी को कहा- आप अपने गाँव कल ही जाना, सुबह मेरी जल्दी की गाड़ी है, आप मुझे बाइक पर स्टेशन छोड़ देना ! आपके ससुरजी भी शाम को आ जायेंगे, उनसे भी मिल लेना और जो बच्चो से वादा किया था, इन्हें भी बाइक पर घुमा लाओ ! चलो हमें हमारे खेत ले जाओ !

वहाँ पापा की चाय लेकर जानी थी !

अब बाइक पर मैं, मेरी भाभी उसके दो बच्चे एक टंकी पर, दूसरा उसकी गोद में ! जीजाजी और भाभी के बीच में मैं ही बैठी थी, मुझे पता था इतने जने बाइक पर बैठेंगे तो एक दूसरे से चिपक कर बैठना पड़ेगा और मैं नहीं चाहती थी कि मेरे जीजाजी के पीठ में मेरी भाभी के स्तन चुभें !

वास्तव में वहाँ मुझे ईष्या हो रही थी।

इस प्रकार हम सब बाइक पर बैठ गए, रास्ते में काफी रेत थी, जीजाजी सावधानी से चला रहे थे पर एक मोड़ पर हमारी बाइक रेत के कारण टेढ़ी हो गई पर जीजाजी ने गिरने नहीं दिया।

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खैर हम खेत पर पहुँच गए, पापा बहुत खुश हुए जीजाजी को देख कर !

फिर हम वापिस आ गए, तब मेरी मम्मी भी ननिहाअल से आ गई, वो बड़ी शक्की है, उन्होंने पूछा- तेरे जीजाजी कब आये? ये कभी आते तो नहीं हैं, आज कैसे आ गए? और तेरी दीदी को साथ क्यों नहीं लाये?

ऐसी बातें वो मुझसे पूछ रही थी। मैंने उसका शक दूर किया पर अब मुझे पता चल गया था कि अब ऐसा कोई काम नहीं करना है जिससे मम्मी को और शक हो जाये।

ये बातें मैंने जीजाजी को भी इशारों से बता दी थी !

जीजाजी ने पूछा- यार, मैं रात को रुकूँगा तो मेरा काम हो सकता है क्या?

पर मैंने उनको सख्ती से चेतावनी दे दी कि आपका काम मैंने कर दिया है, अब रात को आपने कुछ करने की कोशिश की तो अपना रिश्ता आज से टूट जायेगा !

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इतना सुनते ही जीजाजी चुप हो गए और बोले- मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा, मैं संतुष्ट हूँ, बस अपने रिश्ते तोड़ने वाली बात मत करो यार ! मेरे दिल में दर्द होता है !

मुझे जल्दी उठना था, रात को सामान भी बांधना था। वास्तव में जीजाजी ने अपना वादा निभाया, मुझे नहीं छेड़ा, चुपचाप हाल में सोते रहे।

मुझे पता था कि मेरी मम्मी कमरे में सो रही हैं पर हर आहट पर उनके कान लगे हुए हैं, अब उनको क्या पता कि जो होना था वो दोपहर में ही हो गया !

औरत का मन होता है तो वो कहीं भी और कभी भी चुदवा लेती है, उसके लिए कोई पहरा काम नहीं आता है !

सुबह चार बजे जयपुर के लिए गाड़ी थी, मैंने जीजाजी को और अपने भाई को 3.30 बजे उठा दिया था, वो दोनों और मैं साथ-साथ स्टेशन गए। मुझे पता था कि लेडीज डिब्बा गार्ड के डिब्बे के पास लगता है इसलिए हम काफी पीछे गए, आगे-आगे भाई चल रहा था और उसके कंधे पर मेरा बैग था। स्टेशन के इस तरफ 4 बजे से पहले इतने यात्री भी नहीं थे इसलिए जीजाजी चलते चलते कई बार मेरे चूतड़ों पर हाथ फेर देते थे तो कभी स्तन दबा देते थे। कुछ ठण्ड भी लग रही थी और मैं उनके चिपक कर भी चल रही थी। मेरा भाई जो आगे चल रहा था, उसे हमारी इस लीला का कुछ पता नहीं था !

मैं भी रात में जीजाजी के सेक्स के लिए कोशिश नहीं करने पर उनसे खुश थी, मुझे पता था कि उनके लिए कितना मुश्किल हुआ होगा पने पर काबू करना इसलिए मैंने चलते चलते उनका गाल चूम कर उन्हें इसका इनाम दे दिया !

गाड़ी आई और मैं बैठ गई, जीजाजी और मेरा भाई दोनों बाहर रहे। मेरी भी ट्रेन चल रही थी, मैं उन्हें देख रही थी, साथ जाते जाते दोनों ही लम्बे थे, दोनों लम्बू वापिस घर जा रहे थे जब तक मैं देखती रही मैं और वे दोनों हाथ हिलाते रहे। फिर मैं आकर बर्थ पर बैठ गई और अपनी ड्यूटी संभाल ली !

जीजाजी का फोन आता, कहते- अब जब भी तुम्हें गाँव जाना हो, मुझे फोन करना, मैं जयपुर आ जाऊँगा, एक रात वहीं होटल में ठहरेंगे, फिर साथ ही गाँव आ जायेंगे !

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मैंने कहा- पहले कुछ नहीं कह सकती, बाद में सोचेंगे !

मेरी माहवारी की तारीख जीजाजी को पता होती, मेरी माहवारी हमेशा महीने के 4 दिन पहले आती उस हिसाब से जीजाजी हर माहवारी की तारीख का अंदाज़ अगले महीने 4 दिन पहले से लगा लेते !

अब आप सोचेंगे माहवारी का कहानी में क्या मतलब? पर मतलब है इसलिए यह बात बता रही हूँ !

मैंने उन्हें 3-4 दिन पहले गाँव जाने की तारीख बता दी तो उन्होंने कहा- तेरी माहवारी आने की तारीख है उस दिन, इसलिए तू मेडिकल स्टोर से संडे-मंडे की गोलियाँ ले लेना, दो दिन पहले से रोज़ की एक ! ये गोलियाँ माहवारी का दिन आगे खिसकाने के काम आती हैं !

पर मुझे गोलियाँ लेना पसंद नहीं था इसलिए मैं उन्हें झूठ ही कह दिया कि हाँ ले ली !

वो फोन पर बात करते, उनके लिए मेरे फिक्स डायलोग थे ! जैसे वो एक बात पूछते थे- अपना काम कब व कैसे होगा?

मेरा डायलोग था- देख के मौका मारो चौका !

वो पूछते- कंडोम कितने लाऊँ?

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मेरा डायलोग होता था- एज यू लाइक !

हर फोन पर मुझसे चुम्बन जरूर मांगते थे और कहते थे- ये चुम्बन जब तुम मुझसे मिलेगी तो वापिस लौटा दूँगा !

जब तक चुम्बन नहीं देती, मुझे फोन नहीं रखने देते, अगर रख भी देती तो चुम्बन के लिए वापिस लगा देते !

जिस दिन मैं रवाना हुई, जिसका डर था, वही हो गया, मेरी माहवारी शुरू हो गई !

मैंने कपड़ा लगाया और रवाना हुई। अब मैंने जीजाजी फोन किया- कहाँ हो?

वो बोले- रास्ते में हूँ, आ रहा हूँ मेरी जान !

मैंने कुछ अटकते अटकते कहा- आपका काम तो नहीं होगा !

उन्होंने एकदम से पूछा- क्यों?

मैंने कहा- मेरी माहवारी शुरू हो गई है !

उन्होंने फिर पूछा- संडे मंडे गोली नहीं ली क्या?

मैंने झूठ ही कहा- आज सुबह ही ली है पर नहीं रुका !

जीजाजी ने कहा- अरे यार। दो दिन पहले से लेनी थी। खैर कोई बात नहीं। मुझे तेरे साथ रहना है ! रात भर मेरे सीने से चिपक कर सो जाना, मेरा दिल हल्का हो जायेगा और मुझे तुमसे बातें करनी हैं, साथ रहना है, सेक्स कोई जरूरी नहीं है।

वे मुझे होटल में ले गए और फ़िर वही कहा कि सेक्स जरूरी नहीं है।

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मैं उनकी बातें सुनकर उनके प्रति प्यार में भर गई, फिर मैंने कहा- वैसे मेरे इतना ज्यादा खून नहीं आता है, फिर आज तो पहला दिन है !

तो बोले- फिर तुम चिंता मत करो, वैसे भी मैं कंडोम साथ लाया हूँ और उनको प्रयोग करता ही हूँ, बस आइसक्रीम खाने को नहीं मिलेगी !

मैंने सोचा- चलो, ज्यादा नाराज़ तो नहीं हुए ! मैं सोच रही थी कि मेरी गलती से उनका आनन्द चला गया पर वो मुझ पर नाराज़ नहीं हुए !

मुझे किसी ने कहा था कि औरत के जब माहवारी आती है तो कुछ बदबू सी आती है, अब मुझे इस बदबू का कोई पता ही नहीं चलना था क्योंकि मेरे नाक में कोई बीमारी है, मुझे ना तो कोई खुशबू आती है और ना ही बदबू, इस कारण मैं कई बार सब्जी बनाते बनाते जला देती हूँ !

इसलिए जीजाजी कभी अपने बिस्तर पर खुशबू छिड़क कर या फ़ूल बिछा कर चुदाई करते हैं तो मैं कहती हूँ मुझे उस खुशबू का कोई पता ही नहीं चलता तो क्यों पैसे लगाते हो !

फिर उन्होंने कहा- तुम्हारी नाक का ऑप्रेशन करवाना पड़ेगा !

मैंने कहा- मुझे नहीं करवाना, मुझे तो चीरे और टांके के नाम से ही डर लगता है और आपको फायदा है, आप भले कैसे ही रहो, मुझे तो बदबू आएगी नहीं !

और मैं हंस देती थी !

जीजाजी ने कहा- तब तो अच्छा है, मेरे सेंट और स्प्रे के पैसे बच गए !

पर मुझे लग रहा था कि शायद जीजाजी को मेरी बदबू ना आ जाये ! इसलिए मैंने उन्हें उलाहना दिया- आज मैं आपके काम की नहीं हूँ, इसलिए आप ना तो नजदीक आ रहे हैं और ना ही मुझे गले लगा रहे हैं !

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इतरा कर कही हुई मेरी यह बात सुनकर जीजाजी फटाफट मेरे पास आकर लेट गए और मुझे गले से लगा लिया, बोले- ऐसी बात नहीं है जान ! तूने मुझे पहले ही बता दिया था ना फिर भी मैंने तुझे उस वक़्त भी यही कहा था ना कि मुझे तुम्हारे से चिपक कर सोना है, उससे ही मुझे बहुत ख़ुशी मिल जाएगी !

ऐसा सुनकर मैं भी खुश हो गई और उनके चिपक गई !

अब वो मुझे बाँहों में पकड़ कर चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे कंधों और स्तनों पर फिर रहे थे, वो मेरी गोलाइयों को मसल रहे थे, उनके होंठ मेरे चेहरे, मेरे गाल, चिबुक, मेरे कानों की लटकन और ललाट पर चुम्बन कर रहे थे !

मैं भी कभी कभी उन्हें चूम लेती थी और फिर वो मेरे होंठ चूसने लगे, बीच बीच में वो मेरे साँस लेने के लिए छोड़ देते !

मुझे आज तक यह तरीका नहीं आया कि होंट चूसते चुसाते साँस कैसे ली जाती है, जीजाजी को भी पता था इसलिए वो होंट छोड़कर मुझे साँस लेने का मौका दे रहे थे !

मैं गर्म हो रही थी और गोली ना लेने के लिए पछता भी रही थी, पर अब क्या हो सकता था।

अब वे मसलते-मसलते पेट तक आ गए थे और जांघों पर हाथ फेर रहे थे इस बीच उन्होंने अपनी लुंगी हटा कर चड्डी उतार दी थी, अपना फनफनाता और बुरी तरह से अकड़ा लण्ड मेरे हाथ में पकड़ा दिया था जिसे मैं कभी दबा रही थी, मसल रही थी और कभी उसे ऊपर नीचे कर रही थी।

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वो आड़े होकर मेरे हाथ में ही झटके लगा रहे थे। मैंने हथेली गोल करके ऐसा उनका लण्ड पकड़ा हुआ था जैसे वो चूत चोद रहे हों। अब उनके लण्ड का स्पर्श मेरी कमर और पेट पर हो रहा था ! मेरी सांसें तेज हो गई थी, चूत में जैसे चींटियाँ काट रही थी और ऐसा लग रहा था कि चूत में कुछ अटका हुआ है जिसे अन्दर कुछ डाल कर निकलना पड़ेगा !

मेरे चेहरे पर बदलते भाव जीजाजी ने महसूस कर लिए और मेरी चूत चड्डी के ऊपर से ही दबाने लगे। वो अन्दर अंगुली नहीं करके पूरी चूत को अंगूठे और अंगुली के बीच में पकड़ कर दबा रहे थे और मेरी सिसकारियाँ निकल रही थी।

आखिर मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैंने बेशरम हो कर पूछ लिया- आप चोदोगे मुझे? इस हालत में भी चोद दोगे? आपको अजीब और गन्दा तो नहीं लगेगा?

वे मेरी आँखों के लाल डोरे वासना से थरथराते होंट देख रहे थे, बोले- मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं कई बार तेरी दीदी को माहवारी में चोद चुका हूँ और वैसे भी मुझे कंडोम लगा कर चोदना है, जो भी लगेगा, कंडोम के लगेगा हम सावधानी से चुदाई करेंगे !

फिर मैंने सावधानी से अपनी चड्डी उतारी, मेरी टांगें ऊँची हो गई थी, फिर मैंने सावधानी से चूत पर लगा कपड़ा हटाया, उस पर खून नहीं लगा हुआ था, वैसे भी मेरे खून नाम मात्र का आता है, मेरी चूत के अन्दर कुछ लाल लाल सा लग रहा था।

मैं जीजाजी के चेहरे की तरफ देख रही थी पर मुझे वहाँ घृणा नज़र नहीं आई बल्कि उनके चेहरे पर मेरी चूत देख कर चोदने का जोश दिख रहा था।

मैंने राहत की साँस ली, चड्डी और कपड़े को पलंग के नीचे रख कर अपनी टांगें उठा कर उनका इंतजार करने लगी।

उन्होंने फटाफट दराज़ से कंडोम निकाला, वे कमरे में आते ही अपनी काम की चीजें कंडोम आदि दराज़ में रख देते हैं, और उसे अपने लण्ड पर चढ़ा लिया। वो अपने घुटनों के बल बैठे थे, फिर कंडोम के ऊपर ही अपने सुपारे पर थूक लगाया और उसे पकड़ कर मेरी चूत के छेद पर अटका दिया। उन्हें पता था कि गलत जगह र्ख कर धक्का लगने पर मेरी चूत और गाण्ड के बीच की चमड़ी कट सी जाती है और मैं दर्द से दोहरी हो जाती हूँ और फिर वो घाव कई दिन बोरोलीन लगाने से ठीक होता है। इसलिए वे पहले अपने हाथ से अपने लण्ड को सही जगह टिकाते हैं फिर अन्दर धकेलते हैं, आधा अन्दर चले जाने के बाद फिर और से धक्का मारते हैं। उन्होंने वही किया और उनका लण्ड मेरे इंतजार करती और खून से गीली चूत में सररर से जैसे उसे चीरता सा चला गया।

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थोड़ी देर तक जब तक उनका लण्ड मेरी कई दिनों की बिना चुदी चूत जो महीने भर में बिना चुदाई के कुंवारी जैसी हो जाती है, को रवां करता है, 10-15 धक्कों के बाद मेरी चूत इस नए मेहमान को पूरा कबूल करती है फिर उसके स्वागत के लिए पानी छोड़ती है, तब यह आराम से आ जा सकता है, फिर उनके धक्के तूफानी हो जाते हैं। अब उन्हें मेरे घर की तरह जल्दी तो छूटना नहीं था पर स्थिति खास अच्छी भी नहीं थी।

मुझे जब मज़ा आता तो मैं अपनी योनि का संकुचन करती तो उनकी गति धीमी हो जाती और बोलते- तेरे पास यह गोड गिफ्ट है, ऐसा कोई नहीं कर सकती, तू तो अपनी चूत को भींच कर मुझे किसी कुंवारी लड़की को चोदने जैसा मज़ा दे देती है।

और फिर मैं ज्यादा भींच लेती तो उनकी चुदाई रुक जाती और बोलते- साली तोड़ेगी क्या? यार कुछ तो ढीला छोड़ जिससे मैं अन्दर-बाहर कर सकूँ !

और मैं मुस्कुरा कर थोड़ा ढीला छोड़ती और फिर कस लेती ! फिर ढीला छोडती !

इससे उनका और मेरा आनन्द बढ़ जाता और वे दुगने जोश से धक्के मारने लगते ! मेरा भी पानी कई बार छुट गया था जिसका सबूत मैंने उनका गला काट कर दे दिया था, फिर 15 मिनट के बाद वे भी झटके खाते-खाते रुक गए और सावधानी से अपना लण्ड बाहर निकाला।

कंडोम लाल हो रहा था पर उन्होंने उसे हटाकर कंडोम के मुँह पर गांठ लगा दी और उसमें जीजाजी के अजन्मे करोड़ों बच्चो को भी बंद कर दराज़ में दाल दिया और नंगे ही बाथरूम जाकर पेशाब कर और लण्ड को धोकर आ गए।

फिर मैं गई और गीज़र चला कर गर्म पानी से 10-15 मिनट तक चूत धोई। गर्म पानी मेरी चुदी चूत को भला लग रहा था, मैं आधे घंटे तक बाथरूम में ही रही और गर्म पानी से अपनी चूत सेंकती रही जो मुझे बड़ी भली लग रही थी ! क्योंकि माहवारी में मेरा चुदाने का मौका कई साल बाद आया था इसलिए कुछ ज्यादा ही दर्द था पर जीजाजी ने सही कहा था कि आ तेरी नाली साफ कर दूँ ताकि कचरा जो अटका हुआ है तेजी से बहे !

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

वास्तव मेरी योनि से रक्तस्राव की रफ़्तार तेज हो गई थी ! मेरे इतनी देर बाथरूम में रहने के दौरान जीजाजी 2-3 बार बाथरूम के पास आकर देख गए थे कि अब तक मैं बाथरूम में क्या कर रही हूँ !

होटल में हम दोनों ही बाथरूम का दरवाज़ा बंद नहीं करते है इसलिए वे देखने आये तो कभी तो मैं उन्हें कमोड पर बैठी मिली और कभी चूत पर गर्म पानी के छपके लगाती !

और वो मुस्कुरा कर वापिस चले जाते ! जबाब में मैं भी हंस कर कहती- देखो आपने पीट पीट कर इसका क्या हाल कर दिया है, इसको गर्म पानी से सेक रही हूँ।

थोड़ी देर बाद फिर आये और बोले- मुझे भी पेशाब लगी है !

मैंने कहा- कर लो ! मेरे सामने मूत निकलता नहीं है? सीटी की आवाज़ निकालूँ क्या जिससे आपको सू सू लग जाये जैसे बच्चे को लग जाता है !

वे हंस पड़े अपना लण्ड निकाल कर कमोड के अन्दर धार मारनी चाही, मैं लगातार उन्हें देख रही थी और वास्तव में काफी देर तक उनको पेशाब नहीं लगी। फिर उन्होंने अपनी आँखें बंद रखी तब उनकी धार बड़े जोर से बह निकली !

फिर हम वहाँ से पलंग पर आ गए और पास में बैठ कर टीवी देखने लगे !

उनके हाथ मेरे यहाँ-वहाँ घूम रहे थे और कई बार उन्होंने मेरा मुँह चूमा और कहा- इस हालत में भी अपने दर्द की परवाह ना करके जो तुमने चुदा कर मुझे मजा दिया है इसके लिए धन्यवाद !

मैं मुस्कुरा कर रह गई !

अब यह कहानी यहीं पर विराम लेगी, चाहे कुछ दिनों के लिए ही !

टीवी देखते देखते और एक दूसरे के साथ मस्ती करते सात बज गए ! मेरी माहवारी के कारण कमर और पेट दुःख रहा था तो जीजाजी ने एक दर्द निवारक गोली दी !

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मैं गोलियाँ कम लेती हूँ पर उन्होंने जोर देकर दे दी। थोड़ी देर बाद वास्तव में उसे मुझे राहत मिली !

फिर उन्होंने मुझे उल्टा लिटा कर मेरी कमर पीठ जांघों पर पैर रख कर दबाया इससे मुझे बहुत आराम मिला, कुछ देर हाथों से भी मालिश क़ी। मैं उनके सेवा भाव पर फ़िदा हो गई !

थोड़ी देर बाद हम खाना खाने गए और फिर कमरे में आकर अपने कपड़े बदल लिए यानि मैंने मैक्सी और उन्होंने बनियान-लुंगी क्योंकि अब हमें बाहर तो सुबह ही जाना था !

उस गोली से और जीजाजी क़ी सेवा से अब मेरा शरीर नहीं दुःख रहा था और में अपने को तरोताजा महसूस कर रही थी। जीजाजी के हाथ मेरे स्तन सहला रहे थे, मेरी पीठ पर फिर रहे थे और वे मेरे स्तन भी चूस रहे थे, कभी दायाँ तो कभी बायाँ ! वे मेरे स्तनों क़ी घुन्डियों को हल्के हल्के काट भी रहे थे इसलिए उनमे हल्का दर्द और मेरे जिस्म में करेंट साथ ही आ रहा था !

मुझे सब पता था कि आगे क्या होने वाला है, मेरी भी चुदाई क़ी इच्छा हो गई थी जीजाजी के लगातार उकसावे पर !

आखिर मैंने अपनी सेक्सी आवाज़ में उनसे पूछ ही लिया- आप फिर चोदोगे मुझे?

तो वे बोले- हाँ मेरी जान ! अब तुझे चोदे बिना तो मुझे नींद ही नहीं आयेगी ! थोड़ा दर्द मेरे लिए और सहन कर ले ! मेरे लिए चुदाई नींद क़ी गोली क़ी तरह है, चुदाई नहीं करूँगा तो मुझे नींद ही नहीं आएगी !

अब मैं उन्हें क्या कहती, जबकि मेरा भी मन कर रहा था कि जीजाजी अपना डंडा मेरी चूत में फंसा कर मुझे खूब रगड़ें !

क्योंकि खून निकलने के कारण औरत कुछ अजीब सा महसूस करती है और माहवारी से पहले और माहवारी के समय औरत के चुदाने क़ी इच्छा बढ़ जाती है, मुझे तो माहवारी के एक दिन पहले जब चुदाने क़ी बहुत इच्छा होती है तब मुझे पता चल जाता है कि मेरी माहवारी आने वाली है इसलिए माहवारी में सिर्फ आदमी को ही खून देख कर घृणा हो जाती है बाकी औरत को इतनी परेशानी नहीं होती है चुदाने में !

मैंने ऐसे देखा जैसे मैं उनके काम के लिए ही तैयार हुई हूँ, मेरी तो कोई जरूरत नहीं है, फिर मैंने सवधानी से चड्डी और कपड़ा हटाया, अबकी बार कपड़े के खून लगा हुआ था पर जीजाजी तो साण्ड क़ी फुंफ़कार रहे थे, उन्हें कुछ नहीं दिख रहा था, उन्होंने फटाफट अपने कड़क हो चुके लण्ड पर कंडोम चढ़ाया और मेरी टांगों के बीच में आ गए।

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

मैं टांगें पहले से ऊँची करके लेटी थी, उन्होंने सुपारे को मेरी चूत के छेद में फंसा दिया। उनके लोहे क़ी तरह हो चुके लण्ड का आभास पाकर मुझे पता चल गया कि अब मेरी खैर नहीं है, पर मुझे चूत में मचमची भी हो रही थी यानि चूत लण्ड के लिए लपलप कर रही थी !

वे थोड़ी देर रुके तो मैंने नीचे से धक्का मार दिया और उनका लण्ड थोड़ा और अन्दर सरक गया जीजाजी को मेरे उतावलेपन का पता चल गया इसलिए उन्होंने बिना किसी चेतावनी के दांत भींच कर एक जोरदार धक्का मेरी चूत में लगा दिया।

अचानक धक्के से मेरी कराह निकल गई और मैं आ …..ह्ह्ह्हह और अपनी भाषा में दू…खे…रे…धीरे कर रे…म्हारा भोष्या ने फाड़ी काई रे …..इन्हें फाड़ न्हाकी तो पाछे थने ही मजो कोणी आई इरे वास्ते इने प्रेम उ चोद और हावल काम ले !

जीजाजी ने भी कहा- म्हारी जान इ भोष्या ने इ डंडा उ ठोके जित्तो ही थोड़ो प्रेम उ मजो कोणी आई इरे वास्ते इन्हें आज तो इ डंडा उ फोडन दे !

और वे गपागप अपना लण्ड मेरी चूत में पेलते रहे, क्या मजाल कि उनके चोदने का अंदाज़ धीरे हुआ हो, वे दूने जोश में मेरी चुदाई करते रहे। मैं वैसे तो जीजाजी क़ी इज्जत करती हूँ पर चुदाई के समय उनको सम्मान से नहीं बोलती हूँ, कभी कभी तो गालियाँ भी निकालती हूँ, वे भी गालियाँ निकालते हैं माँ बहन ककी, इससे सेक्स का मज़ा बढ़ जाता है हम राजस्थानी में चुदाई क़ी बातें करते रहे और उनकी चुदाई तूफानी रफ़्तार से चलती रही।

कमरा खप खप छप छप क़ी आवाजों से गूंज रहा था, मेरा पानी दो-तीन बार छुट चुका था। आखिर जीजाजी ने भी झटका खाया और फिर 8-10 झटके उन्होंने धीरे धीरे लगाये अपना पानी पूरा झाड़ने के लिए और फिर हट गए, सावधानी से कंडोम निकला और गांठ लगा ली।अब मैंने चूत क़ी तरफ देखा, इतनी देर चुदाई के कारण उसका मुँह खुला हुआ था और खून बहकर जांघ पर आ गया था और नीचे चादर पर भी एक बड़ा धब्बा खून का लग गया था ! हमने अपने गुप्तांग धोये चादर को उल्टा किया और चिपक के सो गए। थके हुए थे इस मेराथन चुदाई से इसलिए जल्दी ही नींद आ गई।

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सुबह देर तक हम चिपक कर सोये रहे ! अब इस हालत में चुदाई का कार्यक्रम तो होना नहीं था, ना उनका मन हो रहा था और ना ही मेरा ! वास्तव में माहवारी के समय औरत की हालत ख़राब हो जाती है और उसकी शक्ल ही बिगड़ जाती है, उसका मन नहीं लगता है और वो कुछ चिड़चिड़ी हो जाती है !

पर हम सच्चे प्रेमी की तरह चिपक के सो रहे थे, मुझे पता था मेरे बाल बिखर गए है और सुबह चेहरे का रंग भी उड़ा उड़ा सा था। मुझे पता था कि जीजाजी को माहवारी के खून की बदबू भी आ रही होगी पर उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। सारी रात उन्होंने मुझे अपने सीने से चिपका कर सुलाया था और कई बार उन्होंने मेरे बालों, चेहरे और पीठ पर प्यार से हाथ फेरा था और मेरे साथ बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह व्यव्हार कर रहे थे, उनका हाथ रात में एक बार भी मेरे स्तन और जांघों पर नहीं गया था। उन्होंने चुम्बन भी मेरे सर और ललाट पर किए थे !

मैं उनकी एक नई छवि देख रही थी जो अपना सपना टूट जाने पर भी नाराज़ नहीं हुए थे और मैं उनकी इस अदा पर बलिहारी हुई जा रही थी !

मैं भी किसी छोटे बच्चे की तरह उनसे चिपक रही थी जैसे कोई छोटी बालिका अपनी माँ से चिपकती है ! और वे भी मेरा दुलार कर रहे थे, एक दो बार उठ कर उन्होंने ग्लास भरकर पानी भी पिलाया और मुझसे तबियत के बारे में भी पूछा !

आठ बजे हम नींद से जगे, मैं उठ कर बाथरूम जाकर आई तब तक जीजाजी ने चाय का ऑर्डर दे दिया, मुझे अपने हाथों से चाय डाल कर दी ! मैं बस मोहित नजरों से उन्हें देख रही थी और किसी छोटे बच्चे की तरह इतरा कर बात कर रही थी और सोच रही थी कि इनकी सेवा का फल इन्हें जरूर देना है भले ही मुझे कितना ही दर्द हो !

पर अभी उनका कोई ऐसा इरादा नहीं लग रहा था।

मैं बाथरूम में फ़्रेश होने चली गई, जीजाजी पहले ही हो गए थे। मैं आई, तब तक जीजाजी ने मेरा मनपसंद नाश्ता मेज पर लगा दिया था यानि काजू की कतली और बीकाजी क़ी नमकीन !

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मुझे भूख लग रही थी, हमने नाश्ता किया एक दूसरे को अपने हाथों से खिला कर !अब वे मुझे जीजाजी क़ी जगह मेरे पति जैसे लग रहे थे, अब मुझे कोई शंका या संकोच उनसे नहीं हो रहा था ! मैं कोई भी बात उनसे कर सकती थी जो अपने पति से भी नहीं करती थी, जैसे मैंने उन्हें कहा- मेरी चूत कभी लाल हो जाती है और खुजली भी चलती है !

तो वे बोले- शायद तुम्हें कंडोम से एलर्जी है, मैं अच्छी किस्म के कंडोम लूँगा !

फिर उन्होंने पूछा- तुम चूत में ज्यादा साबुन तो नहीं लगाती?

मैंने कहा- हाँ, लगाती तो हूँ !

तो बोले- फिर साबुन के कास्टिक की वज़ह से खुजली होती है, कई दिन बाद और काफी ज्यादा चुदाने से तेरी चूत में कट लग जाते हैं फिर साबुन से खुजली होनी शुरू हो जाती है। तुम चूत में साबुन मत लगाना, मैं यह ट्यूब दे रहा हूँ क़ुदार्मिस इसे अपनी चूत पर लगाना और सर्तिजिन गोलियाँ दे रहा हूँ इन्हें रोज़ एक लेना।

मैंने कहा- ठीक है !

जीजाजी कई तरह की दर्द, बुखार आदि की गोलियाँ रखते है और उन्हें कुछ इनका ज्ञान भी है क्यूंकि कई दवा की दूकान वाले और डॉक्टर इनके दोस्त हैं !

मैंने वह ट्यूब ले ली और माहवारी के बाद लगाने का वादा भी कर लिया !

जीजाजी ने कहा- माहवारी में वैसे भी सारी एलर्जी निकल जाती है !

मैंने कहा- ठीक है।

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फिर जीजाजी नहाने चले गए !

जीजाजी के बाद मैं नहाने गई और खूब देर तक मल-मल कर नहाई ! गर्म पानी से अच्छी तरह से चूत को भी धोया ! अब मैं जीजाजी को उनकी सेवा का ईनाम देना चाहती थी पर मुझे पता नहीं था कि वे उत्तेजित होंगे या नहीं। मेरी चुदाने की कोई इच्छा नहीं थी पर मैं उन्हें उत्तेजित कर संतुष्ट करना चाहती थी !

पर मुझे पता था कि मेरी इस हालत पर वे सेक्स करने की इच्छा जाहिर नहीं करेंगे पर मुझे उनकी कमजोरी पता थी इसलिए मैंने उस दिन शेम्पू से सिर को धोया और बालों को झटका। अब मेरे बाल शेम्पू की खुशबू में खुले अच्छे लग रहे थे। कुछ सर्दी महसूस हो रही थी पर मैंने ब्रेजरी और मैक्सी भी नहीं पहनी ! चड्डी पहनने की मज़बूरी थी, मुझे अपनी चूत पर कपड़ा अटकाना था !

और मैं धुले और खुले बाल, बिना ब्रेजरी सिर्फ चड्डी पहने मतवाली चाल चलने की कोशिश और अपनी नशीली आँखों से जीजाजी की तरफ देखती देखती धीरे धीरे किसी फ़ैशन गर्ल की तरह चलती आई, अपने बदन को ठण्ड से काम्पने से रोकने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही थी। वैसे मेरी चल मतवाली नहीं है क्योंकि मेरे कूल्हे मोटे नहीं है पर भरसक कोशिश की मैंने।

मैं किसी रंडी की तरह व्यवहार कर रही थी ताकि मेरे जीजाजी उत्तेजित हो जायें और अपना पानी निकाल लें ! मुझे उनकी सेवा और लाड याद आ रहा था, मुझे पता था आज के बाद पता नहीं कब उनको इस सेवा फल देने का मौका मिले !

आखिर मेरी मेहनत रंग लाई और मैंने जीजाजी की आँखों में वासना की चमक देखी और उनके पास जाते ही ठण्ड से काम्पने लगी।

उन्होंने कहा- अरे तू उघाड़ी क्यूँ आई? सी लाग जाई नी।

अब उन्हें क्या पता मैं उघाड़ी उनके कारण ही आई। अब मैं कंपकपाते बोली- थां मने थांके कने कामला(कम्बल) में घालर सुवान (सुला) दो तो म्हारो सी ढब(रुक) जाई।

मेरे दांत बजने शुरू हो गए थे।

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वास्तव में यार, प्यार में क्या क्या परीक्षा देनी पड़ती है, यह मुझे आज पता चला था !

उन्होंने फटाफट अपना कम्बल हटाया और मुझे लिटाने के लिए थोड़ा पीछे हटे। मैंने एक क्षण के लिए उनकी चड्डी में तम्बू बना देख लिया था और मन में खुश हो गई थी कि जो आज मेनका की तरह जो एक्टिंग की, उसका फल भी मिल गया था, जीजाजी का लौड़ा फनफना रहा था !

मुझे उन्होंने कम्बल में घुसा लिया था और मेरे ठंडी पीठ पर अपनी गर्म हथेली मल रहे थे। उनकी टांग भी मेरी जांघ पर थी और अब उनके हाथ मेरे चूचियों पर भी घूम रहे थे। उनके होंट मेरे ठण्डे होंटों को गर्म करने में लगे हुए थे और मैं मर्द की गर्मी को मान गई थी, दो मिनट में ही मेरी सर्दी छूमंतर हो गई थी।

मैं भी अब सर्दी दूर हो जाने पर सामान्य हो गई थी, मेरी नंगा शरीर उनकी बाँहों में मचल रहा था और मैं उनके चेहरे को चूम रही थी, उनके गालों पर जोर से काट कर उन्हें सीईईइ सीईईइ..आह्ह्ह.. करने पर मजबूर कर रही थी।

जबाब में वे मेरे कंधों और स्तनों के आस पास काट कर मुझे गर्म कर रहे थे !

मैंने बेशर्म हो कर अपना हाथ नीचे खिसकाया और उनकी चड्डी के ऊपर से ही उनके लण्ड को दबाने लगी जो बिल्कुल सीधा होकर उनके पेट से लगा हुआ था, ऊपर से चड्डी के बाहर आया हुआ था। मैंने उनकी चड्डी उतरने की कोशिश की तो वे बेहद गर्म हो गए क्यूंकि वे कहते है तो भी मैं लण्ड को हाथ बहुत कम लगाती हूँ और आज खुद पकड़ रही थी ! वे उत्तेजना से पागल हो रहे थे उनकी नाक से तेज सांसों की आवाज आ रही थी किसी साण्ड की तरह !

उन्होंने फटाफट अपनी चड्डी हटा दी और मेरे हाथों में फनफनाता लण्ड दे दिया। मैं उसे ऊपर नीचे करने लगी, वो बहुत सख्त हो रहा था और काफी मोटा भी लग़ रहा था, लण्ड का सुपारा पहाड़ी आलू की तरह हो रहा था मुझे मन ही मन में डर भी लग़ रहा था और मैं रोमांचित भी हो रही थी !

अब उनकी अंगुलियाँ मेरी चूत के ऊपर चल रही थी पर वे अभी मुझे चुदाने का कह नहीं रहे थे !

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अभी उनके लण्ड को मुट्ठिया देते मुझे 1-2 मिनट ही हुआ था तो भी मैंने इतरा कर कहा- मेरी तो कलाई दर्द करने लग़ गई, आपके पानी कब आएगा?

तो वे हिचकिचाते बोले- हाथ से तुम्हें आधा घण्टा लग़ जायेगा। हाँ, अगर अन्दर डालूँ तो ….!

और वे कहते कहते रुक गए।

मैं मन ही मन मुस्कुरा दी, मुझे पता था कि उन्हें मेरी ऐसी स्थिति को देख कर मुझ से चोदने की बात कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर मैंने मासूम सा सवाल किया- अन्दर डालने से तो आपका फटाफट निकाल जायेगा ना !

उन्होंने कहा- हाँ, मैं दो मिनट में निकाल लूँगा, तुम्हें ज्यादा परेशान नहीं करूँगा !

मैंने मन में कहा- अरे मेरे भोले राजा ! परेशान करोगे तभी मुझे आनन्द आएगा !

अब मैं भी इस धींगा मस्ती में गर्म हो गई थी ! मैंने उन्हें हटाकर सावधानी से अपनी चड्डी और कपड़ा हटाया खून तो दिख रहा था। जीजाजी ने सही कहा था कि मैं तेरी नाली साफ कर दूँगा और उनके रात को नाली साफ करने की वजह से ही मेरे आम दिनों के मुकाबले ज्यादा खून आ रहा था पर पेट भी हल्का लग़ रहा था !

मैंने अपनी टांगें छत की तरफ कर दी थी और आने वाले तूफान का इंतजार करने लगी !

जीजाजी मेरे टांगों के बीच घुटनों के बल बैठ गए थे अपने अकड़े हुए लण्ड पर निरोध चढ़ा रहे थे। निरोध चढ़ाने के बाद वे मेरी चूत पर झुके, मेरी चूत उत्तेजना से संकुचन करने लगी तो जीजाजी ने मुझे भरोसा देने के लिए मेरे नितम्ब थपथपा दिए, उससे मुझे कुछ राहत मिली और मैं शांत हुई।

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अब जीजाजी अपने लण्ड को पकड़ कर बमुश्किल नीचे कर रहे थे, उनका सीधा खड़ा हुआ लण्ड जैसे उनकी ही पेट की नाभि में घुसेगा, ऐसा लग़ रहा था।

पर उन्होंने जोर लगा कर मेरी चूत के छेद पर अटकाया, उस पर ढेर सारा थूक उन्होंने पहले ही लगा दिया था और हल्का सा घिसा जिससे उनका थूक मेरी चूत पर भी लगा और फिर धीरे धीरे अपने लण्ड का दबाव मेरी चूत पर बढ़ाने लगे !

उनका लोहे जैसा हो चुका लण्ड मेरी चूत का स्पर्श पाकर किसी सांप की तरह फुफकार रहा था और वो जीजाजी के बोझ से जो वे अपने लण्ड पर अपनी गाण्ड भींच कर लगा रहे थे। उससे वो मेरी चूत के किसी अवरोध को नहीं मान कर अन्दर और अन्दर घुसता जा रहा था। अभी तक उन्होंने धक्का नहीं लगाया था बस दबाव देते जा रहे थे और उनका लण्ड मेरी चूत में निर्विरोध जा रहा था !

मैं सोच रही थी- और कितना घुसेगा अन्दर?

मेरी चूत की फांकों ने उसे बुरी तरह से कसा हुआ था पर वो उन्हें धकेलता हुआ अन्दर जाये जा रहा था। मुझे जीजाजी का लण्ड लम्बा और मोटा लग़ रहा था। शायद उनकी उत्तेजना की वजह से !

अब मेरे मुँह से डरती सी आवाज निकल रही थी- और कितोक है थान्को बारे हाल ताई? अबे घनो इतो ही घालो मारे दुखे ठेठ बचादानी रे कने पुग्गो !

और जीजाजी मुझे पुचकार रहे थे, मेरे नितम्ब थपथपा रहे थे जैसे अन्दर जगह खाली कर अपना लण्ड एडजस्ट कर रहे हों और पुच पुच कर कह रहे थे- अबे तो थोड़ोक है थारे कित्ती वार गलायेड़ो है यूँ काई डरे गेली राधा तुई तो कियो क थारा धणी रो तो म्हाराऊ ही लान्ठो है पचे इत्ती कई डरे बस अबार म्हारी गोलियाँ थारे दूंगा सु अड़ जाई पचे बस में बारे खान्छु और माइने गालू और थने भी मजो आव्णों शरु वे जाई !

जीजाजी ने जब तक पूरा अन्दर नहीं घसा लिया, तब तक जोर से दबाते रहे, मेरी आहों-कराहों, मिन्नतों पर कोई ध्यान ही नहीं दिया ! हाँ, कभी कभी मेरे गालों पर हाथ फेर कर, नितम्ब सहला कर, मुझे पुचकार कर, मेरे गाल चूम कर मुझे दर्द सहने की हिम्मत देते रहे !

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उन्होंने अभी तक एक बार भी बाहर नहीं खींचा था, सिर्फ अन्दर ही अन्दर जोर से दबा रहे थे। उसे दबाने में अपने कूल्हों का जोर काम में ले रहे थे। हालाँकि मेरी योनि की दीवारें संकरी हो रही थी पर उनका लिंग जोर लगाकर ज़बरदस्ती घुसा जा रहा था ! अब जब उनकी तोप के दो पहिये मेरी गुदा से टकराए तो मैं समझ गई कि अब उनका लिंग जड़ तक घुस चुका है !

अब वे बिना हिलेडुले मेरे ऊपर पसरे हुए लम्बी लम्बी सांसें ले रहे थे, उनका लण्ड मेरी चूत में पूरा धंसा हुआ था।

मैंने भी राहत की साँस ली, अब मुझे चुहल सूझी, मैंने उनसे कहा- क्या हुआ? इतना ही है क्या? और नहीं है डालने के लिए? ऐसा करो, अपनी गोलियाँ भी अन्दर डाल दो, कितना छोटा है तुम्हारा !

मेरे इस मजाक पर वे मुस्कुराये और बोले- साली अभी तो थोड़ा कम डालने का कह रही थी और अब बातें आने लग गई? तू रुक, अभी तुझे इतना रगड़ूंगा कि तुम्हें अपनी माँ और नानी दोनों याद आ जाएगी।

मैंने जल्दी से कहा- अरे, मैं तो मजाक कर रही थी, आप मेरी हालत को समझ कर मुझ पर दया रखना !

तो जीजाजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई, अब वे तो नहीं हिल रहे थे पर उनका लण्ड अन्दर झटके खा रहा था और मेरी चूत भी संकुचन कर उसका स्वागत कर रही थी। साली मेरी चूत भी मेरे बस में नहीं है, वो भी मेरे मन की बात जीजाजी को बता रही थी कि मुझे चुदने की कितनी इच्छा है !

अब उन्होंने अपने लण्ड को थोड़ा बाहर खींचा तो साथ में मेरी चूत की दीवारें भी साथ खिंची, ऐसा लग रहा था जैसे मेरी चूत की दीवारें और उनका लण्ड साथ में चिपक गया हो और वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहती थी !

लेकिन वे जोर लगा कर उसे ऊपर खींच रहे थे और फिर से अन्दर धंसा देते थे, 8-10 बार इस अन्दर बाहर से मेरी चूत ने भी पानी छोड़ दिया और उनका लण्ड भी ऐसे एडजस्ट हो गया जैसे यात्रियों के ठसा ठस भरे डब्बे में कोई नया यात्री आकर धक्कों से एडजस्ट हो जाता है। अब उनका लण्ड आराम से अन्दर-बाहर हो रहा था, मेरी टांगें उनकी कमर पकड़ रही थी इसलिए वे ज्यादा ऊँचे होते तो मेरे कूल्हे भी बिस्तर छोड़ देते जैसे मैं झूले पर झूलते हुए चुदवा रही थी, और उनका लण्ड गचागच घुस रहा था। सारा कमरा फच फच, खप खप की आवाजों से गूंज रहा था साथ में मेरी आह उह, धीरे और उनकी वाह मज़ा आ गया, तू तो सेक्स की देवी है मेरी जान, मैं सारी ज़िन्दगी तेरी चूत में लण्ड डालकर रखना चाहता हूँ, कितना मज़ा आ रहा है, ऐसा बोले जा रहे थे और दनादन धक्के मारते जा रहे थे।

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मुझे भी बहुत आनन्द आ रहा था, उनके धक्कों की रफ़्तार बढ़ती ही जा रही थी और इस मस्ती में मेरी भी आँखें बंद थी। कभी कभी जब उनका झटका बहुत गहरे तक लगता और अन्दर दर्द की लहर दौड़ जाती तब मेरी आँखें खुल जाती और मुँह से आह निकल जाती। तब थोड़ी देर तक जीजाजी सावधानी से धक्के लगाते पर 1-2 मिनट बाद फिर से वही हो जाता।

मेरे कितनी ही बार पानी निकल गया था और स्खलन भी 1-1 मिनट तक हुआ था ! पर अब करीब 15 मिनिट हो गए थे तो मैं परेशान हो गई थी, मुझे मज़ा कम और दर्द ज्यादा हो रहा था, मैं फिर से उन्हें उनका वादा याद दिला रही थी- थे कियो नि में सिर्फ दो मिनट चोदु थांका दो मिनट इत्ता लम्बा हेवे कई? अबे थान्को पाणी काड ल्यो नि तो में धक्को दे र नीचे पटक देउला अबे म्हारे दुखे ऍन ही भोष्यो दुखे और थांका भाचीडा और नि खा सकू में !

जीजाजी बस एक मिनट, एक मिनट कर रहे थे, उनका लण्ड बहुत भारी हो गया था और जैसे मेरी चूत की धज्जियाँ उड़ाने में लगा था। मैं मेनका बनकर पछता रही थी और वो यह बात कह भी रहे थे- साली पहले तो उघाड़ी हेर गाण्ड मटकाती मटकाती चाले मने केवे थान्को म्हारा धणी सु तो छोटो और पतलो है और केवे और घालो गोळ्या भी घाल दो अबे चुदाता मौत आवे अबे में म्हारो पाणी निकल्या बिना तो में थने छोडू कोणी ,तू मने थारे ऊपर सु हतावानो छोड़ मने आगो ही नहीं कर सके तू थारा भोस्या सु म्हारो लण्ड भी बाहर नहीं निकाल सके कोशिश कर देख ले थोड़ी देर सीधी सीधी पड़ी रह अबार म्हारी पिचकारी छुट जाई पाछे थने छोड़ देवू !

साथ में वो गालियाँ भी निकाल रहे थे।

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मैं समझ गई कि अब उनके आने वाला है क्यूंकि उनके जब आने वाला होता है तब उनके मुँह से गालियाँ निकलती हैं, वे मादरचोद और थारी माँ ने चोदू आआ ओह्ह्हह्ह्ह्हह्ह कर रहे थे ! मैं भी उनका साथ देकर आ उहह्ह्ह्ह कर रही थी और उन्हें जोश दिला रही थी और कह रही थी- मारी माँ ने छोडो और मारी बहन ने और मने ही चोद चोद धपायदो ! मुझे अब मज़ा तो नहीं आ रहा था पर मैं दिखावा कर रही थी, मुझे पता था कि उनका इससे जल्दी निकलेगा, इसलिए सेक्सी बातें भी कर रही थी और उनकी आँखों में आँखें डाल कर बड़े ही कातिल अंदाज़ से मुस्कुरा रही थी।

अब उनका चेहरा विकृत हो रहा था, मुझे पता था कि यह चरम सुख के लक्षण है, चरम सुख में आते ही स्त्री-पुरुषों के चेहरे विकृत हो जाते हैं तभी सेक्स का आनन्द आँखें बंद कर के करने में ही आता है !

फिर वे जोर से भैंसे की तरह डकारने लगे, मुझे बहुत जोर से भींच लिया और झटके खाने लगे। उनके धक्कों की गति बिल्कुल कम होती होती रुक गई और फिर वे जैसे घुड़सवारी से उतरते वैसे उतरे, सावधानी से कंडोम उतारा जो पूरा खून से तरबतर था।

मेरी टांगें खुली थी, जांघों पर भी खून लग गया था और चूत खुली ही रह गई थी, मुझे उसके अन्दर हवा लगने का अहसास हो रहा था। मैंने उठ कर चादर का हाल देखा तो उस पर जैसे कलर करने वाले ने फव्वारा मारा हो, वैसे मेरा खून लगा था।

मैंने कहा- यह चादर देख कर होटल वाला सोचेगा कि इस पर किसी कमसिन लड़की की सील टूटी है।

यह सुनकर जीजाजी मुस्कुरा दिए और बोले- यार, तुम ही कमसिन लड़की ही हो ! जब भी तुम्हें चोदता हूँ, तुम्हारी चूत चिपकी हुई ही मिलती है, हर बार मुझे म्हणत करनी पड़ती है।

मैंने उन्हें कहा- होटल वाला क्या सोचेगा, इसलिए इसको फिर से उलटी कर देते है ताकि आते ही तो उसको यह खून नहीं दिखे।

फिर हमने उसको जो पैरों की तरफ था उसे सर की तरफ किया साथ में उलटी भी बिछा दी। अब वो मेरे खून के फव्वारे तकियों के नीचे आ गए थे !

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फिर मैं दोबारा नहा कर आई। इस बार बाथरूम से कपड़े पहन कर आई और बिल्कुल सीधी सीधी चलते चलते किसी शरीफ लड़की की तरह !

हा हा हा हा !

अब मैं फिर से उन्हें भड़का कर कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती थी, पहले ही मेरा राम राम करते पीछा छुटा था !फिर हमने कमरा खाली किया, मैं लिफ्ट से सीधे नीचे रेस्टोरेंट में, जीजाजी चाबी देकर और हिसाब कर के आये !
हमने वहाँ खाना खाया और बस से अपने गाँव चले दिए। रास्ते में उनका गाँव आने पर वे उतर गए और मैं अपने गाँव चली गई सीधी शरीफ लड़की की तरह जो अपनी ड्यूटी कर के आई हो जबकि चुदाई के कारण मेरी चूत में रह रह कर दर्द की लहर दौड़ रही थी जो मुझे रोमांचित कर रही थी।

कहानी जारी रहेगी।

जीजाजी से मेरी रोजाना बात होती थी और उनकी बातों का मुख्य विषय सेक्स ही होता था। पहले मुझे उनकी बातों से बोरियत होती थी पर कभी कभी अच्छी भी लगती थी !

वे बार बार मेरी चूत चाटने का जिक्र करते तो मेरे खयालों में उनका अधगंजा सर मेरी टांगों के बीच महसूस होता और ऐसा लगता जैसे उनकी जीभ मेरी चूत को लपर-लपर चाट रही है और आनन्द से मेरी आँखे बंद हो जाती।

उनके बार बार कहने पर भी मैं अपनी चूत को नहीं छूती पर कई बार उनकी बातों से जो आधा-एक घंटा चलती, मैं स्खलित हो जाती पर कोई 20-25 दिन में एक बार, वैसे मेरी स्तम्भन शक्ति बहुत मजबूत है, जीजाजी को और मेरे पति को मुझे डिस्चार्ज करने में पसीने आ जाते हैं, जिसमें भी मेरे पति से तो मैं कई बार डिस्चार्ज होती ही नहीं हूँ, पर मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि उनके चोदने और डिस्चार्ज नहीं होने के बाद भी मैं किसी से चुदवाऊँ ! मैं किसी चीज जैसे कोई खड़ा तकिया, सोफे का हत्था या पति के कुल्हे की हड्डी के ऊपर में चूत के घस्से लगाती और अपने आप स्खलित हो जाती !

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पर कभी कभी जीजाजी की बातों से ही स्खलित हो जाती।

वे कई बार मुझे कहते- मुझे अब तेरी आइसक्रीम की याद आ रही है या तुझे जल्दी ही चोदना है।

पर अब मेरे गाँव में वो स्थिति नहीं थी, मम्मी-पापा भी घर पर रहते थे हालाँकि मेरी भाभी अपने पीहर चली गई थी पर मेरी मम्मी की नज़रें बड़ी घाघ थी और मैं की सेक्स के लिए अपनी इज्ज़त का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी जो मुझे वैसे भी कम पसंद था !

फिर जीजाजी ने मुझे एक योजना बताई- मैं तेरी दीदी को तेरे गाँव लेकर आता हूँ। फिर हम वहाँ एक रात रुक जायेंगे और दूसरे दिन तू अपनी मम्मी और दीदी को कहना कि ससुराल से कोई चीज लानी है, जीजाजी के साथ बाइक पर जाकर ले आऊँगी और वहाँ तेरे ससुराल में तो कोई होगा नहीं, सब दूर रहते हैं। हम वहाँ थोड़ी देर रुक कर चुदाई करके वापिस आ जायेंगे, वहाँ कोई आएगा तो नहीं?

तो मैंने कहा- वहाँ मैं किसी जेठानी या उनके बच्चों को बुलाती हूँ, तभी आते हैं, वैसे कोई नहीं आएगा, और हाँ, हम ऐसा कर सकते हैं।

तो जीजाजी खुश हो गए !

पर हर बार उनकी और मेरी किस्मत काम नहीं कर सकती , वही हुआ।

जीजाजी रवाना हुए मेरी दीदी के साथ बाइक पर और उसी शहर में रहने वाली मेरी दूसरी दीदी ने कहा- फिर हम सभी चलते हैं, और बच्चे भी !

मेरे छोटे जीजाजी व्यापारी हैं, उनके टाटा सफारी गाड़ी है और उन्होंने गाड़ी-ड्राइवर भेज दिया और अब उस गाड़ी में मेरे जीजाजी, जीजी, छोटी जीजी उनके और बड़ी वाली जीजी के बच्चे यानि पूरी बारात साथ थी !

जब वे आये तो मैं और मेरी मम्मी-पापा बहुत खुश हुए।

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बस मायूस लगे मेरे जीजाजी !

पर जैसे उन्होंने हार नहीं मानने की जैसे कसम खाली हो !

हाँ, जो ड्राइवर था, 25-26 साल का, वो भी मुझ पर मरता था, मुझे उसकी आँखों से ऐसा लग रहा था !

उस ड्राइवर ने मोबाईल देखा जो बाहर हाल में चार्ज हो रहा था और उसमें मेरे मैसेज पढ़ने लगा। हालाँकि मेरे मैसेज इन्बोक्स में ऐसा कुछ नहीं था पर मैंने उसे मना कर दिया पर मोबाईल रखते रखते उससे अपने मोबाईल में मिस काल कर लिया !

अब कुछ ठण्ड का समय था, जीजाजी ने उस ड्राइवर को पूछा- तू बाहर बरामदे में सो जायेगा?

तो बोला- बाहर ठण्ड लगेगी !

एक तरफ एक कमरा बना हुआ था जिसमें मेरा भाई पढ़ता रहता है, मैंने कहा- तू वहाँ जाकर सो जा !

वो बुझे मन से वहाँ चला गया ! अब जीजाजी उस हाल में सोने की कोशिश में थे पर मैंने कहा- जो अन्दर दो कमरे हैं, उनमें एक में मेरे मम्मी-पापा सो जायेंगे और एक में आप और दीदी सो जाओ। इस हाल में मैं, छोटी दीदी और सारे बच्चे सो जायेंगे।

अब जीजाजी कुछ न नुकुर कर रहे थे पर मैंने उनको जबरदस्ती उठा दिया और कहा- हम इतने सारे इस हाल में ही सो सकते हैं, उस कमरे में तो नहीं सो सकते !

अब जीजाजी मेरी तरफ हसरत भरी निगाहों से देखते हुए दीदी के साथ उसी कमरे में जाने के लिए तैयार हो गए। मैंने इशारों से उन्हें सख्ती से मना कर दिया था कि कोई कोशिश न करना। क़ल मेरी ससुराल में आपका काम हो जायेगा, पर वे आइसक्रीम-आइसक्रीम कर रहे थे तो मुझे उनका खतरा बराबर बना हुआ था !

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उस हाल में एक लकड़ी का तख्त पड़ा था, मैं और मेरा बेटा उस पर लेट गए, मेरी छोटी वाली दीदी और बच्चे नीचे बिस्तर बिछा कर सोने लगे। वैसे तख्ता छोटा ही था पर मैं और मेरे बेटे के सोने के बाद भी थोड़ी जगह बची हुई थी, और मैंने जीजाजी की निगाहों को उस जगह को देखते हुए देख लिया था तो मैंने फटाफट मेरी छोटी जीजी की बेटी को अपने पास तख्ते पर बुला लिया।

जीजी ने कहा- तुम दोनों आराम से सो जाओ !

पर मैंने जीजाजी का रास्ता बंद करने के लिए उस लड़की को भी पास सुला लिया। अब एक तरफ मेरा बेटा बीच में मैं और दूसरी तरफ वो मेरी भानजी !

यानि मेरी जीजाजी से बचने के मोर्चा बंदी पूरी, अब मैं अपने को सुरक्षित महसूस कर रही थी। यह सब जीजाजी को दिखा कर मैंने अपनी सेक्स के प्रति अनिच्छा जता दी थी पर मुझे पता था जीजाजी सारी मोर्चाबंदी ध्वस्त कर देंगे।

वैसे मैं कभी बिना चड्डी नहीं रहती हूँ पर जिस दिन जीजाजी मेरे साथ रहते हैं, उस दिन मैं चड्डी पहनती ही नहीं हूँ बस मैक्सी, ब्रेजरी और पेटीकोट पहन कर मैं सो गई और जीजाजी को जीजी के साथ उस कमरे में सोने भेज दिया जिसमें मैंने उस दिन जीजाजी से चुदवाया था।

थोड़ी देर बाद मुझे नींद आ गई !

कोई रात के 12 बजे होंगे कि मुझे लगा मेरी टांगों पर कोई हाथ फेर रहा है। मैंने आँखे खोली तो मैंने देखा कि हाल में बाहर बरामदे से कुछ प्रकाश आ रहा है, सब नींद में सोये हुए हैं और जीजाजी शाल ओढ़े हुए और लुंगी लगाये हुए मेरे पैरों की तरफ खड़े खड़े मेरी जांघों पर हाथ फेर रहे थे।

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मैंने अपना सर धुन लिया और उन्हें इशारों से उन्हें वापिस कमरे में जाने के लिए कहने लगी पर वे बार बार धीरे धीरे मिन्नत भरे स्वर में मुझसे आइसक्रीम खिलाने की कह रहे थे। मैंने भी थक हार कर सोते सोते ही अपनी मैक्सी ऊपर खींच ली नीचे वैसे भी मैंने कुछ नहीं पहना था तो मेरी चूत निरावृत हो गई, मैंने मैक्सी एक तरफ से ही खांची थी इसलिए मेरी पूरी जांघें नहीं उघड़ी थी सिर्फ हल्की सी चूत की झलक जीजाजी को मिल गई थी। वे वहाँ खड़े खड़े ही मेरी चूत पर झुक गए और अंगुली से मेरे दाने को सहलाने लगे।

मैंने भी उस स्थिति में जितनी टांगें खोल सकती थीम खोल ली और जीजाजी का मुँह मेरी जांघों में घुस गया, उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को रगड़ रही थी और फिर मेरे चूत के छेद में घुस कर अन्दर-बाहर हो रही थी !

जीजाजी की जीभ मेरी चूत में अन्दर और अन्दर जा रही थी, उनके होंट मेरे चूत के दाने को रगड़ रहे थे, उनकी गर्म सांसें मेरी चूत के अन्दर तक महसूस हो रही थी और चूत चाटने के दौरान उनके मुँह से जो लार गिर रही थी वो मेरी चूत से फिसल कर मेरी गुदा द्वार से होती हुई नीचे बिस्तर में जज्ब हो रही थी और उस लार के साथ मेरे स्खलन का पानी भी शामिल था जिसका एक धब्बा सा बिस्तर पर बन गया था !

मैं भी आनन्द में अपने घुटने मोड़े मोड़े ही टांगें उठा रही थी और जीजाजी के दोनों हाथों के पंजे मेरी दोनों नंगे जांघों पर गड़ से रहे थे, उनकी अंगुलियाँ और नाख़ून जैसे मेरे मांस में घुसे जा रहे थे पर मुझे आनन्द की अधिकता से उसका दर्द महसूस नहीं हो रहा था !

अब तक मैं दो बार पानी छोड़ चुकी थी और उन्हें चूसते चूसते दस मिनट हो गए थे, अब शायद उनका मुँह दुःख रहा था इसलिए वे रुक रुक कर चाट रहे थे और शायद झुके झुके उनकी कमर भी दर्द करने लगी थी, आखिर उम्र का असर तो रहता ही है। पर उन्हें मेरी चूत चटवाने की कमजोरी का पता चल गया था, मुझे भी अपनी इस कमजोरी का पता तब चला था कि चूत चाटने पर मैं आत्मसमर्पण कर देती हूँ जब पहली बार उन्होंने एक तरह से मेरा बलात्कार ही किया था !

चूत चाटने में तब भले ही मेरा सेक्स का मन नहीं हो पर इससे मैं डिस्चार्ज हो जाती हूँ !

अब जब मैं डिस्चार्ज हो गई तो मुझे वहाँ की स्थिति का ज्ञान हुआ, मैं उन्हें रोकना और वापिस कमरे में भेजना चाहती थी क्योंकि में अपने इज्जत के मामले में कोई समझौता नहीं करना चाहती थी और मेरी इज्जत में उनकी इज्जत भी तो शामिल थी। वहाँ किसी को पता चलना मतलब मेरे साथ उन्हें भी नीचा देखना पड़ता !

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अब मैंने उनको इशारों से वापिस जाने का कहा !

वे मुझे कन्धों से पकड़ कर बैठा कर रहे थे फिर मैंने बैठे हो कर देखा जीजाजी का लण्ड अंडरवियर और लुंगी में होने के बाद भी खड़ा होकर लुंगी को तम्बू बना रहा था पर अब मुझे इस समय उससे कोफ़्त हो रही थी, यह कोई जगह नहीं थी इस काम के लिए !

मैंने कहा- क्या है? अब आप जाओ ! मैंने आपकी बात रख दी आइसक्रीम खाने वाली, वो आपने पेट भर कर खा ली अब आप जाओ !

वे मुझे मिन्नत से धीरे धीरे कह रहे थे, कह क्या रहे थे, सिर्फ हम फुसफुसा रहे थे कि एक बार नीचे आकर चुदा लो। उन्होंने अपने लुंगी की अंटी से कंडोम भी निकाल लिया था। मैंने सोचा कि जनाब पूरी तैयारी के साथ आये हैं !

पर मैंने गुस्से से कहा- कहाँ चुदवाऊँ? यहाँ जगह तो नहीं है !

मैंने अपने पास भांजी को सुलाया था, उस बात से मैं मन ही मन खुश थी, वर्ना वे मेरे पीछे उस तख्ते पर सो जाते !

अब मैंने उन्हें फिर फुसफुसा कर कहा- अब आप चले जाओ !

पर उनके मिन्नतें चलती रही तो मुझे गुस्सा आने लग गया ! मैंने उनको चेतावनी दी कि अगर आप अभी यहाँ से नहीं जाते हो तो में आपसे मेरे रिश्ते तोड़ लूंगी !

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और कहावत भी कह दी- आधी छोड़ पूरी को ध्यावे, आधी मिले न पूरी पावे ! अब अगर नहीं गए तो जो ये आइसक्रीम मिली वो भी कभी नहीं मिलेगी !

अब जीजाजी ने हथियार डाल दिए उनके चेहरे पर उनकी वासना पूर्ति नहीं होने का गुस्सा झलक रहा था। शायद वे मुझे कुछ कहना चाहते थे पर उन्होंने अपने मन बात दबा ली और चुपचाप अपने कमरे की तरफ रवाना हो गए और मुझे भी बहुत गुस्सा था उन पर इसलिए उस वक़्त मुझे कोई दया नहीं आई।

मैंने सोचा कही फिर से ना आ जायें, इसलिए हाल का दरवाज़ा बन्द किया, दायें-बायें जो मेरे पहरेदार सो रहे थे, उन्हें अच्छी तरह अपने पास सुलाया और सो गई। हालाँकि 4-5 बजे मेरी भांजी तख्ते से नीचे अपनी मम्मी पर गिर गई थी पर मैं चैन की नींद सोती रही और छः बजे ही जगी !

सुबह मैं उठी तब मुझे अपने बर्ताव पर कुछ दुःख हुआ और मैंने सोचा कि मैंने तो स्खलित होने के मज़े ले लिए और बेचारे जीजाजी रह गए !

अभी तक वे उठे नहीं थे, बड़ी दीदी ने चाय बनाई थी और उन्होंने मुझे कप देकर कहा- अपने जीजाजी को उठा कर चाय दे आ !

मैं चाय लेकर गई और जीजाजी को उठाया। मेरे उठाने पर वे उठ गए और कमरे में कोई नहीं था इसलिए मैंने उनके गाल पर चुम्बन दिया। चुम्बन देते ही वो रात का गुस्सा भूल मुस्कुराने लगे, फिर बोले- तेरे पास से आने के बाद यह जो पलंग और दीवार के पास जगह है उस पर बिस्तर डाल कर उस पलंग से तेरी दीदी को उठाया और तेरा सारा गुस्सा उस पर निकाल दिया और उसकी जम कर चुदाई की !

मुझे हंसी आ गई- अरे तब तो अच्छा रहा, मेरी दीदी को आनन्द आ गया होगा !

वे बोले- मैंने उसे इतनी बुरी तरह से चोदा कि वो 7-8 मिनट तक तो मेरे हाथ पांव जोड़ती रही, करहाती रही। फिर कोई उसे आनन्द आया होगा तब तक उसका चेहरा आँसुओं से भीग गया था।

पर सेक्स पूरा होते होते उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी और बार बार पूछ रही थी- आज आपमें कोई भूत-प्रेत घुस गया क्या?

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अब मैं उसे क्या बताता कि तेरी छोटी बहिन ने यह मुसीबत तेरे लिए भेजी है !

मैंने हंस कर कहा- अरे, तब तो अच्छा हुआ कि दीदी के आनन्द स्रोत खुल गए, औरत के दर्द में मज़ा भी रहता है इसलिए मेरी दीदी को इस बुढ़ापे में आनन्द मेरे कारण आया है तो मुझे बहुत ख़ुशी हुई और आपका पानी भी निकल गया यह दोहरी ख़ुशी की बात है ! आपको भी फिर आराम से नींद आई होगी मेरी तरह !

और हम जीजा साली की इन हंसी मुस्कुराती बातों से रात के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और मैंने हंस कर कहा- तभी दीदी आज अकड़ी अकड़ी चल रही है, आपने उन्हें तूफानी रफ़्तार से और लम्बे समय तक चोदा है !

और फिर मैं किसी के आने की आहट से उनके कमरे से बाहर आ गई।

अभी जीजाजी को मुझे चोदने की एक आस और बाकी थी और उन्होंने कहा- अभी गाड़ी लेकर तुम और मैं तुम्हारे गाँव चलेंगे और वहाँ इस ड्राइवर को गाड़ी में बैठा रखेंगे और अपन अन्दर कुछ मस्ती कर लेंगे !

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मैंने उन्हें कोई जबाब नहीं दिया, सिर्फ मुस्कुराती रही। मुझे पता था कि बाइक पर तो जीजी मुझे और जीजाजी को मेरे गाँव भेज देती, अब इतनी बड़ी गाड़ी है फिर वो हम दोनों को ही क्यों भेजेगी, अब तो वे सब ही साथ ही चलेंगे।

और वही हुआ, सारी बारात साथ रवाना हुई और उस बारात में मेरे भाई के रूप में और बढ़ोतरी हो गई। अब जीजाजी के सारे अरमान धुल चुके थे।

और हम रवाना हुए तो मेरी मम्मी ने कहा- यहाँ से दूध ले जा ! वहाँ कम से कम इन्हें चाय तो पिला देना।

मेरे जीजाजी पहली बार ही आये थे और मेरे नया मकान बना था, एक कमरे में एक चारपाई बिछी थी, उसे वो बड़े हसरतों से देख कर बोले- काश मैं और तुम इस चारपाई पर कुछ देर सोते !

मैंने मुस्कुरा कर कहा- आज यह आपकी किस्मत में नहीं है ! इस पर मेरे साथ सोने वाला परदेस में है, आपका नंबर नहीं आएगा इस चारपाई पर कूदने का !

उनका चेहरा मायूस हो गया !

कहानी जारी रहेगी।

मेरे गाँव से थोड़ी दूर कोई 10-12 किलोमीटर पर देवी का मंदिर है और सबका वहाँ जाने का कार्यक्रम बन गया।

हम सब वहाँ गए, देवी के दर्शन किये। वहाँ कुमकुम था, उससे जीजाजी सबके टीका लगा रहे थे और जब सब उस मंदिर से बाहर निकल रहे थे और मैं आँखें बंद कर प्रार्थना कर रही थी, जीजाजी ने सबकी नज़र बच कर उस कुमकुम से मेरी मांग भर दी।

मैं चौंक पड़ी, मैंने कहा- यह क्या कर रहे हो?

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तो वे बोले- आज देवी माँ के सामने तेरी मांग भर दी है, इसलिए तुम भी मेरी पत्नी हो, अब मेरे और तुम्हारे मन में कोई अपराधबोध नहीं रहेगा !

मैं बोली- ऐसे मांग भरने से कोई पत्नी थोड़े ही होती है, और मैं पहले से किसी की पत्नी हूँ !

तो वे बोले- इसे गन्धर्व विवाह कहते हैं और द्रौपदी 5 पतियों की पत्नी थी तो तुम क्या दो की नहीं हो सकती?

मैंने हंस कर उनकी दलील को ख़ारिज कर दिया और कहा- शादी आज कर रहे हो और सुहागरात पहले ही मना ली?

तो वे बोले- इस शादी की सुहागरात तो अब मनेगी ! बोलो, मुँह दिखाई में क्या दूँ?

मैंने कहा- अब क्या मुँह दिखाई? आपने मुँह क्या, सब कुछ ही देख लिया है।

और ऐसी बातें करते करते हम मंदिर की सीढ़ियाँ उतर कर गाड़ी के पास आ गए, फिर सब वहाँ से चल पड़े।

रास्ते में वो ड्राइवर कुछ ज्यादा ही बोल रहा था, मैंने उसका नाम कुछ अजीब से बोला तो उसने कहा- मेरा नाम निसार है।

तो मैंने एक चुटकुला कहा- निसार पैदा कैसे हुआ?

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तो निसार शरारत से बोला- जवानी जानेमन, हसीं दिलरुबा, मिले जो दिल जवान निसार हो गया !

मैंने उसे डाँटा तो वो कुढ़ कर रह गया।

जीजाजी ने उसे कहा- तू चिढ़ मत, यह तेरे से बड़ी है।

तो वो बोला- मेरे से कहाँ बड़ी? मैं 25 साल का हूँ।

तो जीजाजी बोले- अरे यह 30 साल की है।

मैं वैसे लगती नहीं हूँ तो बेमन से वो यह बात माना कि मैं उससे 5 साल बड़ी हूँ !

मेरा पीहर आया, वहाँ मैं और मेरा भाई उतर गए। वो गाड़ी कहीं किराये पर जानी थी और वो लेट हो रही थी इसलिए जीजाजी और दोनों जीजियाँ और उनके बच्चे मुझे टाटा कर अपने गाँव चले गए।

मैं फिर से अपनी ड्यूटी पर जयपुर चली गई।

जीजाजी ने कहा था कि यह ड्राइवर भी तुझ पर मरने लगा है।

मैंने हंस कर बात टाल दी थी पर एक दिन उसका फोन आ गया और मुझसे पूछा- आप कहाँ हो?

मैंने उसकी आवाज़ पहचान ली और डांट कर पूछा- तूने मेरे मोबाईल पर काल क्यूं की?

तो वो घबरा कर बोला- मेरे इस फोन पर आपका मिस काल आया हुआ था, इसलिए मैंने फोन किया।

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तो मैंने कहा- झूठ बोलता है? मेरे पास तेरा नंबर ही नहीं है, उस दिन तूने हाल में मेरे मोबाइल से अपने फोन में घंटी कर मेरा नंबर लिया था और आज तूने फोन कर दिया, तेरी इतनी हिम्मत हो गई !

मेरे इस प्रकार डांटने से वो घबरा गया क्यूंकि मैं सी बी आई की तरह सवाल कर रही थी।

वो घबरा कर बोला- मैं अभी के अभी आपका नंबर हटाता हूँ और आपको कभी काल नहीं करूँगा, आप प्लीज़ भाई साहब को मत कहना, वर्ना मेरी पिटाई हो जाएगी।

वो मेरे छोटे और बड़े दोनों जीजाजी से डर रहा था।

मैंने कहा- नहीं कहूँगी पर अब कभी काल मत करना !

और फिर उसका कभी काल नहीं आया और कभी जीजाजी की गाड़ी चलाते मिला तो भी उसकी आँखें कभी ऊपर नहीं उठी।

यह बात मैंने अपने बड़े वाले जीजाजी को कही तो वे बोले- उसकी पिटाई करनी पड़ेगी।

तो मैंने कह दिया मैंने उसको काफी डांट दिया है, अब अगर वो और काल करेगा तो मैं आपको बता दूँगी, आप फिर उसे पीटना, अभी तो उसने माफ़ी मांग ली है और कोई विशेष बात की नहीं।

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तो जीजाजी सहमत हो गए ! अब उनकी बातें फिर से मेरे साथ सुहागरात मनाने पर आ गई थी और मैं उन्हें टाल रही थी कि अभी मेरी छुट्टी नहीं है।

फिर एक दिन मेरे नाक का लोंग बाथरूम में मेरे पैर के नीचे आकर टूट गया, यह बात मैंने उन्हें कही तो वे बोले- मैं आज ही नया लोंग लेकर आ रहा हूँ जो तुम्हें सुहागरात पर मुँह दिखाई में दूँगा !

मैंने कहा- मैं दूसरा ले आई हूँ !

पर वे बार बार आने को कहने लगे तो मैंने कहा- मैं ऐसा करती हूँ, शादी में एक रात कहीं जाने का कह दूंगी मकान मालिक को और हम एक रात होटल में रुक जायेंगे। दूसरे दिन मैं वापिस अपने कमरे पर चली जाऊँगी।

जीजाजी मान गए और हमने होटल में रुकने की तारीख पक्का कर ली।

उस वक़्त प्रशासन गाँवों के संग चल रहा था और मुझे उसमें जाना जरूरी था इसलिए छुट्टी नहीं मिल रही थी। वहाँ एक तहसीलदार मिल गया जो मुझ पर मरने लगा और मुझे पटाने की कोशिश में बोला- आप बिल्कुल मेरे उदयपुर वाली गर्लफ्रेंड की तरह लगती हो।

मैंने सोचा, वो यहाँ कहाँ आ गई, मैंने मन में कहा कि बच्चू अब मैं टीनएजर नहीं हूँ जो तुम्हारी इन मीठी बातों में आ जाऊँ।

फिर कहने लगा- मेरी बचपन में शादी हो गई और मेरी पत्नी मुझे पसंद नहीं है।

तो मैंने कहा- अब तो आपको जिंदगी उसके साथ ही गुजारनी पड़ेगी !

फिर वो एस एम एस भेजने लगा मैंने उसके एस एम एस कभी पढ़े ही नहीं ! उसका कई बार फोन आता तो मैं पूछती- कौन बोल रहा है?

तो वो कहता- मेरे नंबर सेव नहीं है क्या?

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तो मैं कहती- मुझे आपसे क्या काम है जो नंबर सेव करूँ?

तो वो कहता- कभी यहाँ आप मकान खरीदोगी तो उसकी रजिस्ट्री मैं ही करूँगा।

तो मैं कहती- मुझे मकान खरीदना ही नहीं है।

और वो मायूस हो जाता ! कभी कहता- आपके पति इतने कम पढ़े हैं और आप इतने पढ़े हैं तो आप खुश नहीं होंगे।

तो मैं कहती- मैं बहुत खुश हूँ और जो ईश्वर ने दिया है उसके लिए ईश्वर को शुक्रिया अदा करती हूँ, उसकी शिकायत किसी से नहीं करती।

तो वो कट कर रह जाता। फिर कई दिन फोन नहीं करता तथा फिर कई दिन बाद फोन करके कहता आपने मुझे इतने दिन याद ही नहीं किया तो मैं कह देती- मुझे किसी की याद नहीं आती !

और इस प्रकार धीरे धीरे उसे हतोत्साहित करके मैंने अपना पीछा छुड़ा लिया, वो भी समझ गया कि यहाँ दाल गलने वाली नहीं है।फिर एक दिन मैंने अपने मकान मालिक को और उनकी बहुओं को कहा- मुझे एक दिन के लिए सहेली के घर जाना है, उसके बच्चा हुआ है !

ऐसा कह कर मैंने जीजाजी को बता दिया कि अभी 25 दिसम्बर वाली छुट्टियों में आ जाओ जयपुर ! आपकी सुहागरात मनवा देती हूँ !

सुनकर जीजाजी बहुत खुश हो गए !

जीजाजी ने कई बार मुझे गुदामैथुन के वीडियो दिखाये जिसमें लड़के और लड़कियाँ दोनों ही गुदामैथुन करवाते पर मुझे वो बहुत बेकार लगते थे और मैं जीजाजी को उन्हें हटाने के लिए कहती थी !

जीजाजी कई लड़कों के साथ और पुरुषों के साथ गुदामैथुन कर चुके थे, ऐसा उन्होंने मुझे कई बार बताया पर मुझे इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी और मैं उन्हें इस काम के लिए सख्ती से मना कर देती थी।

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कई बार वे कहते- जो तुम्हें यह कब्जी रहती है, एक बार गाण्ड मरा लो, सारी कब्जी निकल जाएगी।

पर मैं कहती- मुझे अपनी कब्जी नहीं निकलवानी ! आपको सिर्फ मेरा एक ही छेद मिलेगा जो प्राकृतिक रूप से सही है और जो आप बार बार गाण्ड मराने की बात करते हो तो फिर मैं आपसे चुदवाना भी बंद कर दूंगी !

मेरा ऐसा रौद्र रूप देख कर फिर वो चुप हो जाते पर मुझे पता था कि उनके मन से मेरी गाण्ड मारना नहीं निकला है। इसलिए मैं चुदाते वक़्त सावधान रहती हूँ और उनका सुपारा मेरे गुदा द्वार के पास ठिठकता है तो मैं फटाक से कह देती हूँ- थोड़ा ऊपर !

और सावधानीवश मैं खुद उसे पकड़ कर चूत के छेद में फंसा देती हूँ, क्या पता मेरी जान निकाल दे तो !

कई बार वो कहते हैं तो मैं कहती हूँ- आप गाण्ड मरवा कर मुझे बताओ कि आपको कितना मज़ा आया।

तो वो कहते- तू मेरी गाण्ड अपने बोबों से मारेगी क्या ! वे भी छोटे छोटे हैं !तो मैं कहती- आप किसी दूसरे आदमी से गाण्ड मरवा कर दिखा दो ! फिर मैं मरवाने की सोचूंगी, नहीं तो ऐसा करो कि प्लास्टिक का झाड़ू ले आओ, उसका पीछे का हत्था मैं आपकी गाण्ड में फंसा देती हूँ फिर मुझे बताना कि कितना मज़ा आया !

तो जीजाजी चुप हो जाते और कहते- मुझे मराने का नहीं मारने का शौक है !

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तो मैं कहती- मुझे भी गाण्ड मराने का नहीं सिर्फ चुदवाने का ही शौक है, मेरे पति ने इन 15 सालो में 150 बार कहा होगा पर मैंने उनकी बात भी नहीं मानी और न कभी मानूँगी इसलिए जब मैं आपके साथ होटल में होती हूँ तो दर्द की गोली भी डर डर के लेती हूँ, कहीं नींद की या बेहोशी की ना दे दें और फिर मेरी गाण्ड मार लें !

तो वो बोले- ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा, तेरा मन होगा तो ही करूँगा, तुम चिंता मत करो, मुझे मालूम है कि तेरी मर्ज़ी के बगैर कुछ किया तो तू जिंदगी भर मेरे हाथ नहीं आएगी और मैं तुझे खोना नहीं चाहता !

मैंने कहा- तब ठीक है, ज़िन्दगी में कभी मुझे लण्ड चूसने और गाण्ड मराने का मत कहना !

जीजाजी इस बात के लिए सहमत हो गए !

फिर मैंने उन्हें कहा- 28 तारिख को जयपुर आकर होटल में कमरा ले लो।

तो वे बोले- तू एकदम चिकनी बन कर आना, मेहंदी भी लगी होनी चाहिए !

तो मैंने कहा- आप अपना रेज़र ब्लेड लेकर आना, मैं होटल में ही सफाई कर लूँगी और वहीं नहाऊँगी।

वो बोले- ठीक है !

जीजाजी ने मुझे बस स्टैण्ड पर मिलना था तो नियत समय पर मैं बस स्टैण्ड आने के लिए गाड़ी में बैठी तो उस गाड़ी में मेरी बारहवीं में प्रिंसीपल रही मैडम मिल गई जो अब जिला शिक्षा अधिकारी बन गई थी। उसने मुझे पहचान लिया था। मैंने भी जीजाजी को बस स्टाइण्ड आने के लिए मना कर दिया और कहा- इस मैडम के जाने के बाद मैं सिटीबस में बैठकर उस होटल के पास आ जाऊँगी। नहीं तो यह मेरे साथ होगी और आपका क्या परिचय दूँगी !

जीजाजी ने कहा- ठीक है, मैं होटल के बाहर सड़क पर तेरा इंतजार कर रहा हूँ !

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पर वो मैडम पास के रेस्तराँ में मुझे जूस पिलाने ले गई। जीजाजी इंतजार में बार बार फोन कर रहे थे और मैं उन्हें 5 मिनट, 5 मिनट कर रही थी !

मैडम ने पूछा- किसका फोन आ रहा है? मैंने कहा- मेरी सहेली का ! वो मेरा इंतजार कर रही है।

फिर मैं जूस पीकर सिटी बस में बैठी ! मैंने साड़ी पर काला रेग्जीन का कोट पहन रखा था और उस काले कोट में मेरा बिना नहाई हुई का भी गोरा चेहरा चमक रहा था।

यह मुझे बाद में जीजाजी ने बताया था !

तब तक सिटी बस में उनके 3-4 फोन आ गए। मैं पहुँची तो वे सड़क पर लेफ्ट-राईट कर रहे थे।

आखिर मैं सिटी बस से उतरी और वो मुझे होटल की ओर ले गये।

कहानी जारी रहेगी।

मैं पहुँची तो वे सड़क पर लेफ्ट-राईट कर रहे थे। आखिर मैं सिटी बस से उतरी, वो मुझे होटल की ओर ले गये और कहा- मैं नाश्ता साथ ही लाया हूँ, हम कमरे में ही करेंगे, अभी सर्दी में वैसे भी लस्सी अच्छी नहीं लगेगी।

मैंने कहा- चलो ठीक है।

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उस लिफ्ट में तीन मंजिल तक जाने तक जब लिफ्ट में हम दो ही थे तो उन्होंने बाँहों में भरकर चूम लिया।

मैंने कहा- अरे कमरे में चूमा-चाटी कर लेना यहाँ नहीं ! मैं कोई कहीं भागी थोड़े ही जा रही हूँ !

तो जीजाजी मान गए !

कमरे में पहुँचते ही जीजाजी ने मुझे अपनी बाँहों में लेकर अपने सीने से चिपटा लिया और बिना हिले डुले दो मिनट तक मुझसे चिपके रहे। मैं भी उनके सीने से चिपकी रही, हमें ऐसा लग रहा था जैसे हमारी जन्मों-जन्मों की प्यास बुझ रही हो। वास्तव मुझे उनके सीने से चिपट कर बहुत शांति महसूस हुई।

हम अलग हुए तब तक उन्होंने मेरा चेहरा अपने चुम्बनों से भर दिया था। मैं भी उनका प्यार देख कर ख़ुशी महसूस कर रही थी। हमने अलग होकर 3-4 ठंडी ठंडी सांसें खींची तो मन में तृप्ति का अहसास हुआ !

फिर जीजाजी बोले- पहले हम नाश्ता कर लेते हैं, फिर तुम नहा लेना और अपनी साफ सफाई कर लेना, आखिर आज हमारी सुहागरात है।

मैं मुस्कुरा दी।

उन्होंने अपने बैग से काजू कतली, मावे की मिठाई और नमकीन निकाली तो मैंने कहा- मैं भी मिठाई और नमकीन ले कर आई हूँ।

उन्होंने कहा- लाओ ! पर उस बैग की चेन पर ताला लगा हुआ था और मेरे पर्स में उसकी चाबी ही नहीं मिली। मैं फटाफट में उसके ताला लगाकर चाबी कमरे की दरी पर ही छोड़ आई थी, उसे पर्स में डालना भूल चुकी थी। साइड वाली जेबों में तो शेम्पू तेल आदि था पर मेरे कपड़े और खाने पीने का सामान,पैसे ए टी ऍम उसमें ही था।

जीजाजी ने वो ताला तोड़ने की कोशिश की पर वहाँ कोई प्लास या सरिया तो था नहीं और हाथ से टूटना नहीं था। मैंने कहा- जाने दो, कल वापिस वही जाऊँगी, सिर्फ मेरे कपड़ों की कमी रहेगी।

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तो जीजाजी के चेहरे पर एक चमक आ गई और बोले- ऐसा करो, अपने सारे कपड़े उतार कर अलमारी में रख दो इन्हें मैला नहीं करो और कल वापिस यही पहन कर चले जाना ! मैंने कहा ठीक है जीजाजी बोले नाश्ता बाद में करना, पहले अपने कपड़े उतार कर रख दो, गंदे हो जायेंगे।

उनके चेहरे पर शरारती मुस्कान दौड़ रही थी।

मैंने अपनी साड़ी उतारी तो वे बोले- फटाफट यह ब्लाउज और पेटीकोट भी उतार दो, इन्हें कल तक फ्रेश रखना है।

मैंने वे भी उतार दिए और जीजाजी ने उन्हें अलमारी में रख दिया। अब मैं सिर्फ ब्रेजरी और पैंटी में थी तो वे बोले- इन्हें भी उतारो भाई ! ये भी गंदे हो जायेंगे।

मैंने कहा- इन्हें उतारने की जरूरत नहीं है, ये तो वैसे भी नीचे रहते है, गंदे हो भी जाएँ तो दीखते नहीं हैं।

पर जीजाजी कहाँ मानने वाले थे, उन्होंने जबरदस्ती वे भी उतार दिए। अब मैं सिर्फ होटल का तौलिया लपेटे बैठी थी एकदम मादरजात नंगी और जीजाजी मुस्कुराते हुए बोले- अच्छा रहा जो तू चाबी भूल आई !

फिर हमने नाश्ता किया, मैंने उन्हें खिलाया और उन्होंने मुझे ! कई बार तो उन्होंने कतली मेरे मुँह में देकर आधी अपने मुँह से तोड़ी और इस बहाने अपने होंट मेरे होंटों से सटाए !

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फिर नाश्ता कर जीजाजी ने कहा- मुझे एक दोस्त से मिलने जाना है, तब तक तुम अपनी सफाई करके नहा लो, फिर मैं वापिस आकर सुहागरात मनाऊँगा।

मैंने कहा- ठीक है !

वे बोले- मैं जाऊँ तो तुम कमरा अन्दर से लॉक कर लेना, कोई आये तो दरवाज़ा मत खोलना, मैं आऊँ, तब ही खोलना और कोई परेशानी आये तो मुझे फोन कर लेना।

मैंने कहा- ठीक है !

जीजाजी ने जाते जाते कहा- गुलाब के फ़ूल लाऊँ क्या सेज पर बिछाने के लिए?

तो मैंने कहा- मुझे तो कोई खुशबू आती नहीं तो क्यों फूलों के पैसे खर्च करो?

उन्होंने कहा- ठीक है।

फिर वो बोले- आओ, दरवाज़ा बंद कर लो।

मैं बोली- आप बाहर जाकर दरवाज़ा उढ़काओ, तब मैं आकर बंद कर लूंगी ! अभी जब आप बाहर निकलोगे तो कोई मुझे दरवाज़े के पास इस हालत में देख लेगा।

तो उन्होंने कहा- ठीक है !

वे बाहर चले गए, मैंने भी फटाफट अन्दर से सिटकनी लगा दी, रेजर-ब्लेड, शेम्पू लेकर बाथरूम में चली गई और गर्म पानी वाला नल खोल दिया और फिर तो मेरे दो घंटे बाथरूम में ही गुज़रे।

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अपने आपको मैंने साफ सफाई करके तैयार कर लिया पर रही नंगी ही रही, साड़ी नहीं पहनी, सिर्फ तौलिया लपेटे रही !

मैं नहा कर जो जीजाजी का मोबाईल जिसमे वे सेक्सी वीडियो थे, देखना शुरू हो गई। उनके पास दो मोबाईल हैं, एक में तो सिफ गाने और सेक्सी फिल्में ही हैं जो वे होटल में आते ही मेरे सेक्स ज्ञान वर्धन करने के लिए मुझे दे देते हैं।

करीब 5 बजे मेरे कमरे की बेल बजी, मैंने तौलिया लपेटा, मोबाईल में वीडियो को बंद किया, फिर दरवाज़े के पास आकर पूछा- कौन है?

तो जीजाजी की आवाज़ आई- मैं हूँ !

मैंने कहा- और कोई तो साथ नहीं है?

उन्होंने कहा- कोई नहीं है, मैं अकेला ही हूँ !

तब मैंने दरवाज़े की ओट में होकर जो कमरे की सिटकनी खोली और फटाक से बाथरूम में घुस कर दरवाज़ा बंद कर लिया !

जीजाजी ने दरवाज़ा खोला और अन्दर आकर सिटकनी लगा दी, मैंने बाथरूम से सिर्फ अपना सर निकाल कर देखा फिर आश्वस्त होकर बाहर निकली !

जीजाजी ने हंस कर कहा- इतनी क्या डर रही है मेरी जान?

मैंने कहा- डरना पड़ता है ! मैंने कपड़े भी नहीं पहन रखे हैं, कोई कारीडोर से गुजरता भी देख सकता है !

उन्होंने कहा- मैंने पहले सब स्थिति देख कर ही कालबेल बजाई थी, पर खैर तेरी सावधानी भी जायज है !

अब वे अपने कपड़े उतार कर लुंगी लगा रहे थे, मैं सिर्फ तौलिया लपेटे थी जो मेरे पूरे शरीर को ढकने में असमर्थ था पर अब मुझे जीजाजी से इतनी शर्म महसूस नहीं हो रही थी ! पर मैं उन्हें लुंगी लगाते नहीं देख रही थी शर्म के कारण !

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

मैं टीवी देख रही थी, उसमें भी किसी फिल्म का सुहागरात का दृश्य चल रहा था जिसे देख कर मेरे गाल गुलाबी हो गए थे !

फिर जीजाजी मेरे पास आये और बोले- चलो, अब अपना मुँह ढको, फिर मैं तुम्हें मुँह दिखाई देता हूँ !

मैंने कहा- साड़ी तो वार्डरोब में पड़ी है, मैं अपना चेहरा किससे ढकूँ?

तो जीजाजी बोले- इसी तौलिए से ! बाकी सब उघाड़ दो और सिर्फ अपना मुँह ढक लो !

मैंने कहा- धत्त्त ….ऐसा कैसे हो सकता है? मैं ऐसा नहीं करुँगी !

तो उन्होंने सोफे पर पड़ा होटल का दूसरा तौलिया उठाया और मुझे देकर बोले- इससे ढक लो !

मैंने उस तौलिए से अपना मुँह ढक लिया और बोली- बस अब तो खुश?

वे बोले- अभी तुम घूँघट मत उतारना, इसे मैं उतारूंगा।

मैंने कहा- ठीक है।

मुझे भी उनके इस खेल में कुछ आनन्द आने लग गया था !

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अब उन्होंने अपने बैग से सोने का लोंग निकाल कर पलंग के पास आये और बोले- दूल्हा आ गया है और दुल्हन अभी तक बैठी है? उठकर मेरे पांव छुओ !

मैंने ठंडी साँस भरकर कहा- हे राम ! अब ये उठक बैठक भी करनी पड़ेगी क्या?

जीजाजी बोले- बड़ी बेशरम बीबी है ! पहले से ही बोल रही है, चुपचाप रहना चाहिए सुहाग रात को तो ! फिर तो वैसे भी सारी उम्र बीबी ही बोलती है।

मैंने मन में ही कहा- क्या क्या नाटक करवाएंगे आज !

मैं उठकर नईनवेली पत्नी की तरह उनके पास खड़ी हुई जिसकी टांगें नंगी दिख रही थी ! फिर मैंने उनके पैरों को छूते छूते उनके पंजों पर चिकोटी काटी, उन्होंने मेरी पीठ पर धौल जमाकर मुझे आशीर्वाद दिया, मुझे सीधा खड़ा कर अपनी बाँहों में लिया और अपने सीने से चिपटा कर कहा- मेरी जान, तेरी जगह पैरों में नहीं, तेरी जगह तो मेरे दिल में है !

उनके जोर से लिपटाने से मेरे हाथ खुदबखुद उनकी पीठ पर चले गए, मेरे सर का तौलिया फिसल कर नीचे गिर गया और मेरा लपेटा हुआ तौलिया खुल गया और वो सिर्फ हम दोनों के बीच में अटका हुआ था जिसकी अब कोई जरुरत भी नहीं थी !

हम दोनों के अलग होते ही वो हमारे पैरों पर गिर गया, मैंने झुक कर उठाना चाहा पर जीजाजी ने उठाने नहीं दिया और मुझे अपनी बाँहों में उठाकर हौले से पलंग पर लिटा दिया । मैंने फटाफट वहाँ पड़ा कम्बल अपने शरीर पर डाल लिया !

फिर जीजाजी आकर मेरे कम्बल में घुस गए, मुझे अपने से लिपटा लिया। मैंने भी उन्हें कस कर पकड़ लिया, अपनी एक टांग उनकी कमर पर चढ़ा दी जिससे उनके घुटने मेरे मुनिया को छूने लगे जिसे आज मैंने बाथरूम में रेजर से बिल्कुल चिकनी कर दिया था ! वो छोटी सी चूत किसी कमसिन लड़की की सी लग रही थी, वैसे भी मेरे बाल बहुत कम आते हैं और जांघों और पिंडलियों पर तो बिल्कुल नहीं आते हैं, मेरी सहेलियाँ कहती हैं कि तू ब्यूटीपार्लर से साफ करा के आई है क्या?

जबकि मेरे वहाँ कभी बाल आते ही नहीं है !उनके घुटने ने मेरी चूत की गर्मी और चिकनाई को महसूस किया तो फटाक से जीजाजी का हाथ वहाँ पहुँच गया और उनके हाथ की अँगुलियों का जादुई स्पर्श पाते है मेरे मुँह से मादक आह निकल गई !

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अब उनकी उंगलिया और अंगूठा मेरी चूत पर गोल गोल घूम रहा था ! मेरी आँखें बंद थी पर मेरे हाथ भी जीजाजी के पीठ पर घूम रहे थे और कभी कभी मैं उनका गाल भी काट लेती थी जब वे मुझे चूमते थे और सिसकारी भर के मुझे कहते थे- स….स…स…स साली..ली..ली… काटती है? निशान पड़ जायेंगे !

पर मैं उनकी बात अनसुनी करके फिर जोर से काट लेती तो वो इसका बदला मेरी पूरी चूत को अपनी हथेली में भींच कर चुकाते और मैं भी चिल्ला पड़ती- अरे इसे उखाड़ोगे क्या?

वो बोले- इसे उखाड़ कर मुझे दे दो ताकि मैं इसे जेब में रख लूँ, जब चाहूँ और जहाँ चाहूँ निकालूँ और मार लूँ !

मैंने कहा- उखाड़ लो ! पर फिर यह आपके सामान पर सिर्फ टंग जाएगी और अन्दर वाली गहराई कहाँ से लाओगे? और इसकी जरुरत आपको ही नहीं मेरे पति को भी पड़ती है !

वो हंस पड़े और बोले- यार, साढू को तो मैं भूल ही गया था ! वास्तव में मैं तो अतिक्रमणकारी हूँ।

मैंने कहा- नहीं, आप उनके नहीं रहने पर भी उनकी मशीन को तेल पानी देकर तैयार रखने वाले मिस्त्री हो !

उन्होंने कहा- हाँ यह बात तुम्हारी सही है, चलो अब मशीन लाओ, उसमें तेल पानी चेक करते हैं।

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मैंने कहा- मशीन अपनी जगह ही है, आप थोड़ा नीचे सरको मशीन के पास पहुँच जाओगे !

दरअसल मुझे अपनी चूत चटवाने की जबरदस्त इच्छा हो रही थी !

जीजाजी फटाफट नीचे सरक गए और और मेरी चूत के पास पहुँच कर उसे अंगूठे और अँगुलियों से चौड़ा किया और अपनी लम्बी जीभ को नोकीला करके अन्दर घुसा दी !

मेरे मुँह से आनन्द की आआअ….ह्ह्ह्ह निकल गई, मैं अपने हाथ नीचे कर जीजाजी के सर पकड़ कर मेरी चूत में धकेलने लगी !

मैं उन्हें सर से पकड़ कर टांगो में खींच रही थी और फिर उन्हें साँस आना भी मुश्किल हो गया तो उन्होंने मेरी चूत की फांकों पर हल्का सा काटा तो मैंने उन्हें हटा दिया।

फिर वे जोर जोर से सांस भरते हुए बोले- साली मेरा सारा सर अन्दर डालवाएगी क्या?

मैंने मुस्कुरा कर कहा- मुझे जोश में पता ही नहीं चला कि आपको साँस भी नहीं आ रही है।

उन्होंने फिर से अपना मुँह मेरी चूत में घुसा दिया। इस बार मैं अपनी जांघें नहीं भींच रही थी, मेरी आँखें शर्म से बंद थी पर मुँह से मस्ती की आहें-कराहें निकल रही थी जो मुझे मज़े आने की चुगली मेरे जीजाजी से कर रही थी और वे और जोर जोर से अपनी जीभ मेरे दाने पर रगड़ रहे थे, उनकी एक अंगुली मेरी चूत में आवागमन कर रही थी और जीजाजी के मुँह से लार गिर गिर कर मेरी गुदा के छेद से बह कर जा रही थी।

बाद में मुझे पता चला यह उनकी योजना थी क्यूंकि मैं तो चूत चाटने की मस्ती में खोई थी और उनकी अंगुली उनके थूक से चिकनी हुई मेरी गाण्ड को खोद रही थी।

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धीरे धीरे उन्होंने अपनी अंगुली का एक पोरवा मेरी गाण्ड में घुसा दिया था और चूत चाटते चाटते उसको धीरे धीरे अन्दर-बाहर कर रहे थे। हालाँकि उनकी अंगुली मेरी गाण्ड के छल्ले में नहीं घुसी थी पर वे उसको रवां करके घुसाने की तैयारी में ही थे। मेरी गाण्ड का छिद्र इतना छोटा था कि उसमें उनकी पतली अंगुली भी बहुत सारी थूक की चिकनाई होने के बाद भी मुश्किल से घुस रही थी।

तभी मेरा पानी छूटा, मेरी मस्ती कम हुई और मुझे अनचाहे मेहमान का पता चला !

कहानी जारी रहेगी।

धीरे धीरे उन्होंने अपनी अंगुली का एक पोरवा मेरी गाण्ड में घुसा दिया था और चूत चाटते चाटते उसको धीरे धीरे अन्दर-बाहर कर रहे थे। हालाँकि उनकी अंगुली मेरी गाण्ड के छल्ले में नहीं घुसी थी पर वे उसको रवां करके घुसाने की तैयारी में ही थे। मेरी गाण्ड का छिद्र इतना छोटा था कि उसमें उनकी पतली अंगुली भी बहुत सारी थूक की चिकनाई होने के बाद भी मुश्किल से घुस रही थी।

तभी मेरा पानी छूटा, मेरी मस्ती कम हुई और मुझे अनचाहे मेहमान का पता चला !

मैंने फटाक से अपना हाथ नीचे कर जीजाजी का हाथ झटक दिया और बोली- क्या करते हो? आपका इरादा क्या है? मुझे इस जगह छूना ही पसंद नहीं है।

वे बोले- यार, मैं तो तुम्हारा रास्ता चौड़ा कर रहा था, सॉरी !

मैंने जीजाजी को कहा- आप अपनी अंगुली गलत जगह मत डालो, मेरा सारा मूड ख़राब होता है, मुझे वहाँ बिल्कुल पसंद नहीं है !

जीजाजी ने अंगुली हटाते हुए बोले- यार, जो तुझे कब्जी रहती है न, मैं तो उसके लिए इस छेद को चौड़ा बना रहा था, मुझे कोई इसमें लण्ड थोड़े ही डालना है !

मैंने मुस्कुरा कर कहा- मेरी कब्जी की आप चिंता न करें, आप तो लण्ड वहीं डालें जहाँ उसे डालना है, और पहले मैं आपकी दी हुई गोली इस डर से नहीं लेती थी कि कहीं नींद की गोली देकर मुझे नींद में चोद दो और अब भी डर लगता है कि नींद या नशे की गोली देकर मेरी गाण्ड न फाड़ दो !

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जीजाजी कुछ मायूसी से बोले- तुमने मुझे ऐसे समझा है क्या जो तुम्हें बेहोश कर कुछ करूँगा ! मुझे मालूम है तुझे गाण्ड मराने का शौक बिल्कुल नहीं है, वर्ना जैसे तुझे पहली बार जबरदस्ती चोदा था वैसे तेरी गाण्ड भी मार सकता हूँ !

मैंने कहा- आप चोद तो सके थे जब मेरी भी सहमति बनी थी तब ! पर आप जबरदस्ती गाण्ड नहीं मार सकते, यह मैं आपको दावे के साथ कह सकती हूँ !

जीजाजी बोले- यार, तू मेरी प्रेमिका या साली ही सही थी, देख आज बीवी बनते ही सुहागरात के दिन ही अपनी बहस हो रही है ! अब इस विषय को बंद करो और अपनी सुहागरात में ध्यान लगाओ !

मैंने कहा- मैं तो तैयार हूँ, आप शुरू तो करें !

मेरे पूरे शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था क्योंकि जीजाजी ने चूत चाटते चाटते कम्बल हटा दिया था, पर मैंने अपना मुँह उनकी लुंगी, जो इस धींगा मस्ती में उतर गई थी, उससे ढक रखा था। मुझे उसमें से हल्की हल्की झलक जीजाजी की दिखाई दे रही थी।

मेरी दोनों टांगें छत की तरफ ऊँची की हुई थी, जीजाजी ने अपनी चड्डी उतार दी थी, मुझे उनके उठे हुए सांवले लण्ड की एक झलक मिल गई थी और अब मुझे पता चल गया कि अब मेरी सुहागरात चालू होने ही वाली है। मैं भी मन ही मन कई दिनों के बाद चुदने के लिए तैयार हो रही थी क्यूंकि 20-25 दिन बिना चुदे निकलते ही मेरी चूत चिपक जाती है, थोड़ी देर मुझे दर्द होता है और जीजाजी को या मेरे पति को ऐसा लगता है जैसे वो नई नवेली दुल्हन की सील तोड़ रहे हैं, ऐसा उन्होंने मुझे कई बार बताया था !

इसलिए जब वे कई दिनों के बाद चुदाई शुरू करते तो थोड़ी देर सावधानी से चोदते और मुझे भी थोड़ी देर दर्द होता है !

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अब जीजाजी अपने लण्ड के सुपारे पर पास में पड़ी पोंड्स की छोटी डिब्बी से क्रीम निकाल कर लगा रहे थे। और वो यूँ हुआ कि एक बार फोन करते करते जीजाजी ने एक चुटकुला सुनाया था- टीचर ने बच्चों से पूछा कि अंग्रेजों के बच्चे गोरे और हिन्दुस्तानियों के बच्चे काले क्यों होते हैं? तो बच्चे ने जबाब दिया था कि अँगरेज़ चोदते वक़्त लण्ड पर पोंड्स क्रीम लगाते हैं और हिन्दुस्तानी सरसों का तेल लगा कर चोदते हैं !

यह सुनकर मुझे बहुत हंसी आई थी। तब जीजाजी ने कहा था- अब जब भी हम होटल में रुकेंगे, तब मैं पोंड्स क्रीम की छोटी डब्बी लूँगा और वो लगा कर तुम्हें चोदूँगा। मैंने भी हंस कर हाँ कर दी थी और आज वे पोंडस लगा रहे थे चुदाई के लिए। अपने लण्ड के सुपारे पर लगा कर मेरी चूत के छेद में भी क्रीम भर रहे थे जो मुझे ठंडी ठंडी अजीब लग रही थी !

अच्छी तरह अंगुली से चूत के अन्दर लगाने के बाद उन्होंने अपना सुपारा मेरे चूत पर टिकाया जो मुझे गर्म गर्म अच्छा लगा। मुझे मालूम है वे पहले मुझे बिना कंडोम ही चोदते हैं फिर कंडोम लगाते हैं।

वे घुटनों के बल बैठे हुए थे, सुपारा टिका कर अपना एक हाथ मेरे निरावृत वक्ष पर रख दिया, उसे धीरे धीरे सहलाने लगे और अपनी कमर को हल्की सी थिरकन दी तो उनका सुपारा मेरी चूत में फिसल गया, भले ही कितनी भी चिकनी हो तो भी मेरे चूत से हल्की सी टीस उठी और मेरे मुँह से कराह निकल गई- आआआअ……ह्ह्ह्हह…

जवाब में उन्होंने मुँह से पुचकारा, एक हाथ से लगातार वक्ष सहलाते सहलाते दूसरे हाथ से लुंगी के ऊपर से मेरे गालों पर सांत्वना रूपी हाथ फेरा, थोड़ी देर रुके रहे सिर्फ अपने लण्ड को तना और ढीला कर रहे थे, यानि बिना कमर हिलाए अन्दर झटके दे रहे थे। फिर मेरी भी चूत ने इस कई दिन बाद आये इस पुराने जाने-पहचाने मेहमान का स्वागत संकुचन से किया और मेरी चूत भी मेरे काबू से बाहर होकर अपने आप जीजाजी के लण्ड को पकड़ और छोड़ रही थी !

30-32 साल से सेक्स कर रहे और सेक्स के अनुभवी जीजाजी ने सिगनल समझ लिए और वक्ष को और मेरे कंधे को पकड़ कर जोर से धक्का मार दिया। उनका लण्ड सारी रूकावटों को हटाता हुआ जड़ तक मेरी चूत में धंस गया। संकुचन की मस्ती मेरी चूत पर भारी पड़ गई थी, मुझे तो कराहने का भी मौका नहीं मिला था और अब जीजाजी मेरी दोनों टांगों को कंधे पर लेकर एक्सप्रेस ट्रेन बन गए थे।

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शायद उनको मेरे पीहर वाली बात याद आ गई थी और बड़े बेदर्द तरीके से पूरा लण्ड बाहर निकल कर एक झटके में वापिस डाल रहे थे, रगड़ और लण्ड चूत की गर्मी से सारी पोंड्स क्रीम तेल जैसी हो गई थी ! मुझे वास्तव में दर्द हो रहा था, अभी तक उनका लण्ड मेरी चूत में एडजस्ट नहीं हुआ था और वो दनादन धक्के पर धक्के मार रहे थे। मेरे मुँह से दर्द भरी कराहें निकल रही थी- आआ….ह्ह्ह्ह,ऊऊऊ ….ह्ह्ह, अरीईईईए, हाय ऊऊऊऊ, धीरे ईईईई, धीरे धीरे धीरे !

पर वो उन कराहों को मेरी मादक आहें समझ रहे थे !

उनकी कमर बिजली की रफ़्तार से चल रही थी और मुझे अन्दर उनके लण्ड से लग रही थी। आखिर मैं चिल्ला पड़ी- क्या करते हो? जब तक मैं आप पर चिल्लाऊँ नहीं, तब तक आप रुकोगे ही नहीं, मारोगे क्या? चोद रहे हो या कोई बदला चुका रहे हो?

मेरे इस प्रकार रूआँसी आवाज़ में चिल्लाते ही जीजाजी जड़वत हो गए, लण्ड तो आधा चूत में ही रखा, पर धक्के मारने बंद कर दिए। मेरी टांगों को कंधे से उतार कर कमर पर कर दी और मेरे चेहरे से लुंगी हटाई, मेरा चेहरा लाल हो रहा था, आँखों से आंसू निकल रहे थे !

मेरी यह हालत देख कर उन्हें अपनी गलती समझ आ गई कि मेरी चूत कई दिनों बाद काफी देर में चुदाई के लिए एडजस्ट होती है।

बोले- सॉरी यार, मैंने सोचा तुम्हें मज़ा आ रहा है, मुझे क्या पता तुम दर्द से कराह रही हो और तुम्हें मुझे पहले ही कह देना था।

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मैंने कहा- मुझे साँस लेने का मौका ही नहीं दिया आपने, कब कहती?

फिर उन्होंने अपनी लुंगी को उठा कर दूर फेंकी और बोले- एक तो साली को न जाने कितनी शर्म आती है, अपना मुँह ढक लेती है। मैंने यह शर्म हटाने के लिए ही तो होटल में नंगा रहना चालू करवाया था और फिर से चुदाते हुए मुँह ढक रही है? क्या मतलब? मुँह ढके होने से मुझे तेरे दर्द का पता ही नहीं चला, नहीं तो मैं पहले ही रुक जाता !

फिर थोड़ी देर वे मेरे गालों के आँसू पौंछने लगे, मेरे वक्ष मसलने लगे, गालों पर चुम्बन दिए। थोड़ी देर के लिए मेरे साँस आने की जगह रख कर होंट भी चूसे।

अब मुझे फिर से मज़ा आने लग गया था इसलिए मैं नीचे से थोड़ा-ऊपर नीचे हो रही थी तो वो समझ गए और उन्होंने धीरे धीरे धक्के मारने शुरू कर दिए !

अब धीरे धीरे उनका लण्ड मेरी चूत में एडजस्ट हो गया था इसलिए उनके धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ गई थी और अब मेरी मादक कराहें निकलने लगी थी !

और मैं आआह्हह्ह, जिजूऊउ, मज़ा आ रहाआ हीईईए, अभी मेरी चूत फाड़ देते अगर मैं नहीं रोकती तो फिर किस को चोदते? आराम से चोदो जानी, कोई किराये की थोड़े ही है, तुम्हारी अपनी साली की है, आधी घरवाली की है, तुम्हारे सारी जिंदगी काम आएगी, इस साईकिल को सीट पर बैठ कर चलाओ क्यों डंडे पर बैठ कर मचका रहे थे, चेन उतार जाती कुत्ते छिटक जाते, तुम्हारी ही साइकिल ख़राब होती ना !

फिर मैंने मस्ती में गालियाँ निकालनी शुरू कर दी- मादरचोद… मेरे पीहर में ही आ जाता है लण्ड हाथ में लेकर ! अरे जगह तो देखा कर ! हर जगह कैसे मैं तेरे नीचे टांगें उठाकर बिछ सकती हूँ? इतना कितना उठता है तेरा बुढ़ापे में बूढ़े… अभी तो मादरचोद मुझे रुला रहा था अब चोद मुझे कूद कूद कर ! अब मैं तुमसे हारने वाली नहीं हूँ !

ऐसी कई अनर्गल बातें मेरे मुँह से निकल रही थी और जीजाजी को भी मस्ती आ गई थी, वे भी मुझे गालियाँ दे रहे थे- मादरचोद तेरी माँ को चोदूँ, मुझे गाली निकाल रही है? मैं चोद चोद कर तेरी गाण्ड फ़ाड़ दूँगा, अभी रुक तेरी मस्ती उतर जाने दे, फिर कहेगी कि अब छोड़ दो, मेरा छुट गया है, मेरे दुःख रहा है, और मैं तुझे चोदता ही रहूँगा ! साली अपने पीहर में अपना पानी निकालने के लिए तो मैक्सी ऊँची कर चूत दिखा दी और जब मेरा पानी निकलने की बारी आई तो मुझे गेट आउट कर दिया? अब देख मैं कैसे तेरे बारह बजाता हूँ !

 

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मुझे जीजाजी के स्टेमिना के बारे में पता था और अब मुझे उन्हें फिर से राज़ी करना था इसलिए मैंने कहा- वहाँ पता चल जाता तो आज हम यहाँ सुहागरात नहीं मना पाते। मेरे राजा, मेरे जानू मेरे जीजू, आप तो मेरी जान हो !

तब थोड़ा जीजाजी खुश हुए और मैंने सोचा- चलो बला टली !

मैंने देखा है कि औरत थोड़ा खुश हो कर बोल दे, अपना दुःख आदमी को बता दे तो आदमी खुश हो जाता है।

फिर वे धक्के मारते मारते बोले- अपनी जान को ज्यादा दुःख नहीं दूँगा, मेरी ही चीज है, इसे ख़राब थोड़े ही करूँगा ! तुम बताओ मेरे से बुढ़ा जाने तक चुदवाओगी?

मैंने कहा- मरते दम तक !

वो यह सुनकर खुश हो गए। अब तक मेरे भी दो बार पानी आ चुका था, मैंने उन्हें कहा तो उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया और मेरे बराबर में सीधे लेट गए। उनका लण्ड सीधा खड़ा था, वो मुझसे बाते करने और मुझे सहलाने लग गए थे !

उनके हाथों में जादू था, वे मेरे चूत के दाने को सहला रहे थे और मेरी सांसें फिर से तेज़ हो गई थी। मैंने आज पहली बार उनके कहे बिना उनका लण्ड पकड़ा और उसे ऊपर-नीचे करने लगी !

मैंने उसे गौर से देखा, कुछ तिरछा था, उनके सुपारे की चमड़ी भी पूरी तरह से पीछे नहीं हो रही थी और 5 इंच का होगा, मेरे पति से तो पतला भी था और छोटा भी था। पर वो जब चोदता था तो मेरी नानी याद आ जाती थी और मुझे आनन्द बहुत देता था जबकि मेरे पति से मुझे आनन्द कभी कभी ही आता था। एक तो उनके लण्ड से मेरे अन्दर लगती थी और एक उनके 5 मिनट में पानी निकल जाता था इसलिए जब मेरा आने की तैयारी में होता तब तक वे रुक जाते। हालाँकि वे भी एक रात में 3-4 बार चोदते पर उनके राऊँड 5-7 मिनट के होते और वो मुझे बिना गर्म किये ही शुरू हो जाते इसलिए मुझे कभी कभी ही मज़ा आता था !

जीजाजी मेरी चूत चाट कर शुरू होते थे इसलिए मैं तैयार रहती थी और मेरा ओर्गाज्म भी 1-2 मिनट का होता है इसलिए जीजाजी अपने स्टेमिना के कारण पूरा ओर्गाज्म कराते हैं इसलिए मुझे प्यारे लगते हैं।

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मेरे थोड़ी देर मुठ्ठी देने पर जीजाजी बोले- तेरे हाथ दुःख जायें तो भी ऐसे नहीं निकलेगा। यह तो चूत में जायेगा तब ही पानी छोड़ेगा ! तेरी दीदी जब माहवारी में होती है तो उसके बारी बारी से दोनों हाथ दुखने लग जाते थे और कभी कभी मुँह भी !

मैंने पूछा- दीदी मुँह में भी लेती हैं?

जीजाजी बोले- ज्यादा जोर देने पर थोड़ी देर के लिए !

मैंने कहा- छीः… अब दीदी के साथ खाना नहीं खाऊँगी।जीजाजी बोले- अरे, कोई महीनो में एक-दो बार लेती है यार ! हर वक्त उसके मुँह में मेरा लण्ड थोड़े ही रहता है? चलो अब तुम घोड़ी बन जाओ !

मैंने घोड़ी बनते बनते कहा- सुहागरात के दिन कोई दुल्हन घोड़ी थोड़े ही बनती है, इस दिन तो शर्म रखो !

जीजाजी बोले- शादी की सुहागरात आज है पर डेटिंग पर मैं पहले ही दुल्हन को ले गया था और घोड़ी भी बना दी थी ! मुझसे सेक्स में संतुष्ट होकर ही दुल्हन ने मुझसे शादी की है !

वो मेरे पीछे आ गए, मैंने कहा- जानू अब तुम अपना पानी निकाल लेना, फिर रात को ही करेंगे। अभी शाम को खाना खाने नीचे होटल में जाना पड़ेगा और ज्यादा चुदाई से मेरी चाल ही बदल जाएगी !

जीजाजी ने सहमति से अपना सर हिला दिया और मेरे पीछे से मेरी चूत का छेद टटोल कर अपना लण्ड फंसा दिया और हौले हौले हिलने लगे। यह मेरी डांट का असर था अब जबकि मेरी चूत रवां हो गई थी, वे धीरे धीरे ही चोद रहे थे।

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मैंने अपन सर बिस्तर पर टिका लिया था और धक्के खा रही थी। हर धक्के में मेरे छोटे छोटे स्तन झूल जाते थे जिन्हें कभी कभी जीजाजी थाम कर सहला रहे थे, बाकी तो हर वक़्त उनके हाथ में मेरी पतली कमर ही रहती है जिसे वे जब भी धक्का मारते तब अपनी तरफ खींचते।

कमरे में फच फच की आवाज़े गूंज रही थी जो उस माहौल को और मादक बना रही थी, फिर से मेरा पानी छुट गया था !

जीजाजी ने मुझे फिर से सीधा लिटा दिया, कंडोम पहन लिया और मेरी टांगें सीधे रख कर ऊपर लेट गए। मेरे पैरों में पैर फंसा कर मेरे चूत में थोड़ा थूक लगा कर अपना लण्ड सरका दिया और कूद कूद कर मुझे चोदने लगे !

अब फच फच के साथ हमारी जांघों के टकराने की आवाज़ भी गूंजने लगी और मैं भी मस्ती में बड़बड़ा रही थी। जीजाजी भी कुछ बड़बड़ा रहे थे तो मुझे पता चल गया कि अब मंजिल करीब है, मुझे भी अपनी मंजिल पानी थी इसलिए मैं भी नीचे से उछल रही थी, मेरा फिर से पानी छुट गया, जीजाजी ने भी झटका खाया और उनकी कमर धीरे चलने लगी कंडोम की वजह से मुझे पानी आने का तो पता नहीं चला पर मुझे महसूस हो गया कि उनकी बन्दुक छुट चुकी है, अब बस पूरा पानी निकाल रहे हैं।

फिर वे हटे, मैं वैसे ही पड़ी रही। उन्होंने कंडोम को गांठ बांध कर दराज़ में रखा, पेशाब करके आये नंगे ही ! अब उनका लण्ड छोटा होकर झूल रहा था।

फिर उन्होंने मुझे सहारा देकर उठाया और बाथरूम तक छोड़ कर आये। मैंने भी गर्म पानी से चूत धोई, पेशाब किया और नंगी ही कमरे में पलंग पर जीजाजी के पास आ गई। उन्होंने कम्बल ओढ़ लिया था, मैं भी उनके कम्बल में घुस गई !

कहानी जारी रहेगी।

कम्बल में घुसते ही जीजाजी ने बाहें फैलाकर मेरा स्वागत किया, मैं भी उनकी बाँहों में समां गई और उनके चौड़े चकले सीने में अपना मुँह छुपा लिया !

पर जल्दी ही उन्होंने मुझे ऊपर खींच कर मेरा चेहरा अपने चेहरे के बराबर कर लिया, मेरे गालों पर चुम्बन देने लगे और मुझसे पहले उनके गंवारूपन सेक्स से हुए दर्द के बारे में माफ़ी मांगने लगे।

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मैंने कहा- ऐसी कोई बात नहीं है !

फिर उन्होंने अपने हाथों से मेरी चूत को टटोल कर थपथपा दिया और मुझे चूमते रहे। मैं कितना ही अपना मुँह इधर उधर करूँ, फिर भी मेरे गाल, मेरी ठोड़ी, मेरा ललाट, मेरी गर्दन मेरे कानो की लटकन और कभी कभी होंट चूम ही लेते !

फिर मुझे जो नाक का लोन्ग दिया उसके बारे में पूछा- मुँह दिखाई का तोहफा पसंद आया?

मैंने कहा- मुझे तोहफों की कोई जरूरत नहीं है, न ही इस बात का कोई लालच है, बस आपका प्रेम देख कर मैं आप पर फ़िदा हूँ, वर्ना आपको तो पता है कि मेरे कितने आशिक तैयार बैठे हैं मेरे कदमों पर तोहफों का अम्बार लगाने के लिए !

जीजाजी ने कहा- अब तुम्हें किसी आशिक की जरूरत नहीं पड़ेगी, जो तुम चाहोगी वो मिलेगा, मेरी जान भी ! और कोई तुम्हारे नज़दीक आया तो मुझे सहन नहीं होगा, सिर्फ तुम्हारे पति के अलावा, क्या करूँ मेरा नम्बर दूसरा है ना !

मैंने कहा- जवानी में ही किसी आशिक को नजदीक नहीं आने दिया, अब तो बुढ़ापा आने लगा है, अब तो वैसे भी कोई नहीं आएगा !

और मैं हंस पड़ी !

जीजाजी ने कहा- तुम बुढ्ढी नहीं हो, जवान हो मेरी जान ! और बिस्तर पर तो नई लड़कियाँ भी तुमसे पीछे हैं !

मैंने कहा- मुझे चढ़ाओ मत !

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जीजाजी बोले- अब तुम्हें कोई मुझे पटाना तो है नहीं जो झूठ बोलूँगा ! तुम वास्तव में चीज हो, मैंने ज़िन्दगी में 25-30 चूतें तो देखी ही होंगी, तुम्हारी चूत सबसे अच्छी है !

मेरी और मेरी चूत की तारीफ सुन कर मेरे गालों पर गुलाब बिखर गए !

मैं और जीजाजी एक दूसरे से बहुत सारी बातें करते हैं जो मैं कभी अपने पति से भी नहीं कह पाती और जीजाजी मुझे वो बातें भी बता देते हैं जो शायद वो मेरी दीदी को भी नहीं बताते हैं। यानि अपनी प्रेमिकाओ के बारे में उन्होंने सारी घटनाएँ मुझे बताई जो मुझे काफी रोचक लगी।

कभी वे एकदम खुली किताब की तरह हो जाते हैं मेरे सामने ! उनकी यही बात मुझे अच्छी लगती है। अगर वे मुझसे नाराज़ होंगे तो छिपाएँगे नहीं, कह देंगे, और खुश होंगे तो भी कह देंगे।

उन्होंने मुझसे से भी सारी बातें पूछी कि किस किस ने तुम पर ट्राई मारी है? और तुम्हें कौन कौन पसंद आया था?

मैं भी मजाक में कहती हूँ- आपके अलावा मुझे सब पसंद आये थे, आप ही नहीं आए क्यूंकि आप ही मेरे पहले आशिक हैं जो मुझ पर चढ़ कर मुझे परेशान करते हैं।

और मैं हंस पड़ती, जीजाजी भी मुस्कुरा जाते। मैंने अपनी ज़िन्दगी की सारी बातें उन्हें बता दी, मेरे जेठुते(जेठ के बेटे) से लेकर जब मैं पढ़ती थी तब एक जने ने प्रेमपत्र दिया था और वो मैंने अपनी माँ को बता दिया था, और मेरी माँ ने उस लड़के को काफी गालियाँ निकाली थी।

ऐसी सारी बातें !

मुझे उन्होंने पूछा- तुम किस पर मरती थी?

तो मैंने कहा- मुझे वैसे किसी से चुदाने की मन में नहीं आई थी पर एक आदमी मुझे कुछ अच्छा लगा था जो मेरे ससुराल का था, मुझे अक्सर फोन करता था, कहता था कि प्लीज आप मुझसे बात कर लें, मैं खुश हो जाऊँगा !

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मैंने उसको कहा था कि जब भी तुमने कोई गलत बात निकाली तो मैं बात करना बंद कर दूंगी। तो वो सहमत हो गया था और वास्तव में मुझसे वो अच्छी बातें ही करता था। मैंने यह भी कह दिया था उसको कि मेरा मूड होगा तो ही बात करुँगी वर्ना नहीं, और जब मेरा मूड होता तभी उससे बात करती, वो मुझे प्यार की देवी और न जाने क्या क्या कहता।

वो बहुत सुन्दर था और मेरे गाँव में सबसे ज्यादा पैसे वाला था, कभी बात करते करते वो रोने लग जाता था और रोजाना मेरे घर के पास शिव मंदिर में जल चढ़ाने आता था, मुझे कहता था- आप एक बार चेहरा दिखा दें, मेरा दिन अच्छा गुजर जायेगा। और मेरा वहाँ ससुराल होने के कारण मैं घूँघट में रहती पर कभी कभी उसे चेहरा दिखा देती और वो बहुत खुश हो जाता।

एक बार उसने कहा था कि मैं आपसे आपके घर आकर मिलना चाहता हूँ तो मैंने सख्ती से मना कर दिया ! उस रात एक चोर मेरे घर के पास आया और मेरी सास जो उस वक़्त मेरे साथ रहती थी, उसकी नींद खुल गई और वो चोर अपनी चप्पल छोड़ कर भाग गया। एक दिन पहले से मेरी माहवारी आई हुई थी

और मेरा पेट दर्द के मारे बुरा हाल था पर कुछ जो मुझसे जलते थे उन्होंने कहा कि पति तो रहता नहीं है और यह आशिक को बुलाती है। पर शुक्र था कि सास ने मेरा पक्ष लिया और कहा कि मैं इसके साथ सोती हूँ और इसको तब माहवारी आई हुई थी तो यह कैसे बुला सकती है। मुझे उस आशिक पर गुस्सा आ रहा था, मैंने सोचा कि हो ना हो वही आया होगा मना करने के बाद भी। हालाँकि बाद में हमें उस चोर का पता चल गया था पर उस वक़्त नहीं पता चला था।

मैंने सुबह उस आशिक को फोन कर रोते रोते इतनी गालियाँ निकाली कि पूछो मत ! वो बेचारा अपनी सफाई पेश करता रहा पर मैं नहीं रुकी, अगर वो सामने होता तो मैं उसको चप्पल की मार देती, खूब गालियाँ निकाल कर मैंने उसे फोन न करने का कह दिया। फिर जब उस चोर का पता चला तो मुझे बहुत अफ़सोस हुआ कि मैंने उस बेचारे के ऐसे ही बारह बजा दिए ! पर उस दिन के बाद न तो उसका फोन आया न ही कभी वो जल चढ़ाने आया। आज उस बात को साल भर हो गया है।

मेरी बात सुनकर जीजाजी ने मजाक में कहा- सच बताना, जब तुम्हें पता चला कि तुमने उसे गलत गालियाँ निकाली हैं तो तुम्हारे मन में क्या आया?

मैंने कहा- दया आई थी !

उन्होंने फिर कहा- तो पछतावे के रूप में तुम्हें नहीं लगा कि उससे चुदवा लेना चाहिए?

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मैंने कहा- ऐसा तो कभी नहीं होगा ! आपका दाव लग गया, यही बहुत है, मेरे पास तो उसके नंबर भी थे, मैंने उसे फोन भी नहीं किया, चुदाना तो बहुत दूर की बात है !

मेरी यह बात सुनकर जीजाजी ने मुझे ख़ुशी में बुरी तरह जकड़ कर चूम लिया और बोले- इसी बात पे तो मरता हूँ मेरी जान ! मुझसे भी तू 10-15 सालों की मेहनत के बाद पटी हो ! वो भी शायद उस दिन मेरे पर किस्मत मेहरबान थी, वरना आज तक मैं तुम्हे सपने में ही चोदता !

मैं भी हंस पड़ी !

जीजाजी फिर सात बजे तक कम्बल ओढ़े बातें ही करते रहे जैसे वास्तव में हमने सुहागरात ही मनाई हो और जैसे वे मुझे अपनी पहली चुदाई के बाद आराम दे रहे हों !

हाँ, उनके हाथ यहाँ-वहाँ घूम रहे थे और मैं उन्हें और वे मुझे अपनी बातें सुना रहे थे जैसे मैंने अपनी असफल इश्क की दास्तान सुनाई और मैं उनके चेहरे पर हज़ार रंग देख रही थी उनमें ईर्ष्या, जलन, दुःख, ख़ुशी, हंसी, मजाक आदि सब शामिल थे।

बाद में उन्होंने मुझे कहा भी कि अब कोई किसी का फोन आ जाये तो उसके नंबर तू मुझे दे देना, मैं बात कर लूँगा।

मैंने कहा- कई फोन आते हैं, मुझे ही नहीं पता वे किसके हैं। साले बोलते ही नहीं हैं या कोई म्यूजिक बजता रहता है, मैं भी उन्हें खूब माँ-बहन की गालियाँ निकाल देती हूँ ! आप चिंता ना करें, मेरी फोन वाली आशिकी भी आपसे ही है।

यह सुनकर जीजाजी ने मेरा मुँह ख़ुशी से चूम लिया !

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सात बज चुके थे, मैंने कहा- आप भी कपड़े पहन लीजिये, मैं भी पहन लेती हूँ, नीचे खाना खाने चलते हैं !

जीजाजी तैयार हो गए और मेरे गाल पर उठते उठते ही जोरदार चुम्बन जड़ दिया।

मैंने कहा- मैं भी यही हूँ और रात भी बाकी है फ़िर इतना उतावलापन क्यूँ?

फिर वे अपने कपड़े उठाकर बाथरूम में घुस गए, मैंने अलमारी से कपड़े निकाले और फटाफट पहन लिए ! जीजाजी बाथरूम से कपड़े पहन कर निकले तो मैं बाथरूम में घुस गई !हम दोनों लिफ्ट से नीचे आ गए और खाना खाने लगे !

कहानी जारी रहेगी।

वे अपने कपड़े उठाकर बाथरूम में घुस गए, मैंने अलमारी से कपड़े निकाले और फटाफट पहन लिए ! जीजाजी बाथरूम से कपड़े पहन कर निकले तो मैं बाथरूम में घुस गई !

हम दोनों लिफ्ट से नीचे आ गए और खाना खाने लगे !

खाना खाकर हम दोनों फिर से कमरे में थे। साढ़े आठ ही बजे थे, जीजाजी ने चाय मंगवा ली, कहा इससे जल्दी नींद नहीं आएगी।

मैं मुस्कुरा कर बोली- क्या रात जागने की सोची है क्या?

कोई नया वेटर था जो चाय लाया और अर्थपूर्ण मुस्कान से मुझे देखते हुए चाय रख कर चला गया। मैंने उसकी तरफ देखा ही नहीं, मोबाइल में व्यस्त होने का दिखावा किया।

जीजाजी ने चाय पीते ही इन्टरकॉम पर कह दिया कि किसी को भेज दो ताकि चाय के बर्तन ले जाये। वे नहीं चाहते थे कि कोई बार बार परेशान करे !

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वेटर आकर बर्तन ले गया, वेटर के जाते ही उन्होंने अन्दर से सिटकनी लगा कर दरवाज़ा लॉक कर दिया और आकर मुझे कहने लगे- चलो अब यह साड़ी आदि उतार दो, सलवटें पड़ जाएँगी।

मुझे पता था कौन सी सलवटें पड़ेगी पर मैंने अपनी ब्रेजरी और पेटीकोट पहने रखा बाकी सारे कपड़े जीजाजी को दे दिए, उन्होंने उन्हें अलमारी में रख दिया !

जीजाजी ने भी अपने कपड़े उतारे सिर्फ बनियान और चड्डी पहने रखी और फटाफट मेरे कम्बल में घुस गए। मैं अधलेटी सी टीवी देख रही थी, मैंने कहा- अभी रुको यार, टीवी देखने दो !

उन्होंने कहा- तुम देखो टी वी ! मैं कौन सा रोक रहा हूँ। मैं तो अपना काम कर रहा हूँ।

और उन्होंने धीरे से मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल कर मुझे ऊँचा कर पेटीकोट भी मेरे पैरों से निकाल दिया और लगे हाथ मेरी ब्रेजरी का हुक भी खोल कर उसे भी उतार दिया !

मैंने कहा- क्या करते हो यार? मुझे ठण्ड लग रही है !

वे बोले- अभी थोड़ी देर में तुम कहोगी कि गर्मी लग रही है, हम दोनों साथ हों तो ठण्ड बेचारी कहाँ टिकेगी !

यह सुनकर मैं मुस्कुरा दी !

अब जीजाजी मेरी जांघों पर हाथ फेर रहे थे और चूम रहे थे। उनके चुम्बन मेरी कमर और नाभि पर भी हो रहे थे। मैं भी धीरे धीरे नीचे सरक कर पूरा लेट चुकी थी। अब जीजाजी के पैर तो पलंग के सर की तरफ थे और उनका मुँह मेरे जन्घो से होते होते मेरी चूत पर आ गया था, पर चूँकि वे तिरछे थे इसलिए मेरी चूत चटाई उतनी अच्छी तरह से नहीं हो रही थी !

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मैं उनको बार बार अपनी टांगें मेरे सीने के दायें बाएं रखने का कह रही थी ताकि मेरी चूत में उनकी जीभ अन्दर तक जाये पर उन्हें पता था कि मैं लण्ड चूसती नहीं हूँ और मेरे मुँह के पास आ जाये तो भी मुझे बुरा लगता है, इसी डर से वे अपनी टांगें मेरे सीने के दायें बाएं नहीं कर रहे थे पर मेरे बार बार कहने पर उन्होंने 69 का आसन बनाया पर अपनी गाण्ड उन्होंने मेरे चेहरे के काफी ऊपर रखी। वो मेरी चूत अब गहराई तक चाट रहे थे मेरी आँखें गुलाबी और सांसें भारी हो रही थी, मैंने भी मस्ती में भरकर उनके कूल्हों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया !

उन्हें भी अच्छा लग रहा था, मैंने फिर उनका गुदा द्वार टटोला, मेरे जितना ही छिद्र था उनका और उसके आस-पास काफी बाल भी थे। मैंने अब तक किसी मर्द की गाण्ड पर हाथ नहीं फेरा था, अपने पति के भी नहीं, इसलिए मुझे अचम्भा हुआ कि इस गाण्ड के छिद्र पर भी बाल होते हैं क्या क्यूंकि मेरे नहीं आते हैं !

उनकी गाण्ड के आस पास कुछ उभरी हुई सी चमड़ी थी शायद उन्हें थोड़ी मस्से की बीमारी थी। पर मैं उनके छिद्र के आस पास हाथ फेर रही थी और मुझे कुछ शरारत सूझी, मैंने अपनी अंगुली पर पास में पड़ी पोंड्स क्रीम लगाई और और अंगुली छिद्र के आसपास घुमाने लगी और धीरे से अन्दर को दबा दी। उन्होंने जो अपनी गाण्ड को ढीली छोड़ रखी थी अंगुली के दबाव से दर्द महसूस कर अपनी गाण्ड भींच ली और उछल पड़े।

मेरी अंगुली जो एक पोरवे तक अन्दर धंसी थी वो भी बाहर आ गई। जीजाजी ने अपना मुँह मेरी चूत से हटा कर मेरी तरफ गुस्से से देखा और बोले- मादरचोद, क्या कर रही है? मेरी गाण्ड दुखती है !

उनका मुँह मेरे पानी से और उनकी लार से सना हुआ था !

मैंने कहा- आपके तो यह छोटी अंगुली ही दर्द करने लग गई और जब आप हमें गाण्ड मरवाने का कहते तो कुछ नहीं? मैं आपको यह अहसास करना चाहती थी कि औरत सिर्फ दबाव में गाण्ड मराती है, उसे कोई मज़ा नहीं आता है !

वे बोले- यार, मेरी गाण्ड में अंगुली मत करो, मुझे नहीं मारनी तुम्हारी गाण्ड ! अब तो खुश?

और फिर से मेरी चूत पर झुक गए !

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मैंने भी उनकी गाण्ड से हाथ हटा लिया ! वे अपने घुटनों के बल थे इसलिए मेरे सीने से ऊँचे थे मैंने उनके पप्पू पर ध्यान लगाया जो सीधा खड़ा था और वे खुद घोड़ी बने हुए थे उसका मुँह उनके पेट की सुँडी की तरफ था, खूब तना हुआ था, थोड़ा तिरछा था और सुपारे पर से पूरी चमड़ी नीचे नहीं हो रही थी जैसे कोई लड़की आधा घूँघट निकाले हो !

मुझे पता था कि उनका बचपन से ही ऐसा ही है। उनकी चमड़ी पूरी तरह से नीचे नहीं होती जब उनका लण्ड उठा हुआ हो और ये ऐसे ही सेक्स का आनन्द ले सकते हैं। उन्होंने एक बार कहा था- यह उत्पादन दोष है, इसको या तो खतना करवाओ जो मुस्लिम धर्म में होता है या डॉक्टर से सर्जरी करवाओ तो सही रहता है। मैंने दोनों ही काम नहीं किये, मुझे कोई परेशानी नहीं है, उस चमड़ी को काटने पर मुझे कई दिन बिना चोदे रहना पड़ता जो मुझे मंजूर नहीं है।

हाँ, जब मैं उनके लण्ड की मुठ्ठी मारती तो वे सावधानी से हाथ चलाने का कहते ताकि ज्यादा नीचे करने से चमड़ी के खिंचाव से उन्हें दर्द ना हो ! और मैं भी उनकी इस बात को ध्यान रखती !

अब मैंने उनके तने हुए लण्ड को हाथ में पकड़ा, उनका लण्ड नारी के हाथ का स्पर्श पाकर फुफकार उठा और एक जोर का झटका खाकर मेरे हाथ से फिसल गया और ठुमके लगाने लगा। उनके मुँह को भी जोश आ गया जो मेरी चूत पर घूम रहा था। मैंने इस बार उनके लण्ड को कस के पकड़ा उसके ठुमके लगाने पर भी छोड़ा नहीं। लण्ड बहुत गर्म हो रहा था और मैं हौले हौले उसे आगे पीछे करने लगी।

मेरे इस प्रकार मुठ्ठिया देने से उनके मुँह को भी जोश आ गया था और वे अपनी जीभ को नुकीली कर मेरे चूत में गहराइयों में घुसेड़ रहे थे जो मेरे आनन्द की वजह बन रही थी !

अभी तक जो ठण्डी चूत चटाई हो रही थी, मेरे हाथ में उनका लण्ड पकड़ने के बाद उसमे जबरदस्त जोश और गति आ गई थी, मेरे भी मुँह से आहें-कराहें निकल रही थी और हाथ भी गति से चल रहा था। मुझे उनके झड़ने का डर नहीं था, मैं उनके स्टेमिना के बारे में जानती थी। हाँ, मैं उनको मुठ्ठिया देने में कई बार अपने हाथ दुखने के कारण हाथ बदल रही थी।उनका लण्ड बहुत मोटा और गर्म हो गया था। मेरे पानी का झरना छुट गया और उस जोश में मैंने उनका लण्ड ज्यादा पीछे खींच लिया तो उनके दर्द हुआ और वे मेरे सीने पर बैठ गए मैंने जल्दी से अपना हाथ उनके नीचे से खींच लिया। अब उनकी गाण्ड मेरे स्तनों के ऊपर थी और वे अपने लण्ड को देख रहे थे क्यूंकि उन्हें दर्द हुआ था।

वे बोले- साली चुदाना नहीं हो तो मना कर दो, तुम्हें पता है मेरे ऐसे दर्द होता है !

मैंने उनके सीने पर हाथ फेरा, वे अभी मेरे ऊपर ही बैठे हुए थे, मुझे बोझ भी लग रहा था, मैं बोली- आप नीचे तो उतरो, मुझे साँस भी नहीं आ रही है यार ! जोश में हाथ ज्यादा चल गया और चुदाने के लिए तो आपके पास आई हूँ, नहीं तो आती ही क्यों?

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मेरे ऐसे बात करने से और उनके सीने पर हाथ फेरने पर उनकी छाटी की घुण्डियाँ मसलने से उनका गुस्सा कुछ ठण्डा हुआ। वे मुस्कुराने लगे और मेरे ऊपर से हट कर मेरे पास में लेट गए। वास्तव में उनका लण्ड दर्द की वजह से मुरझा गया था !

मैंने फिर से उस पर हौले हौले प्यार से हाथ फेरना शुरू कर दिया और नाग ने धीरे धीरे फन उठाना शुरू कर दिया !

उन्होंने जोश में मुझे चूमना चाहा पर मैंने हाथ से उन्हें रोक दिया, बोली- पहले मेरे चूत चटाई का मुँह धोकर आओ तब चुम्बन मिलेगा, नहीं तो अपना मुँह मेरे मुँह से दूर रखो।उनके मुँह से मेरे लिए माँ की गाली निकली और बोले- अरे तेरा ही तो पानी है मेरा थोड़े ही है !

मैंने कहा- मुझे सब पानी एक जैसे लगते हैं, आप मुँह धोकर कुल्ला करके आये तो आपको होंट भी चूसने दूंगी जो मैं कभी कभी चूसने ही देती हूँ।

इस होंठ चूसने की बात सुनकर जीजाजी उठे और नंगे ही बाथरूम की तरफ गए। उनका लण्ड सीधा खड़ा था और हवा में ही ठुमके लगा रहा था। मैं उसे तब तक देखती रही जब तक वो दूर होकर दिखना बंद नहीं हुआ।

बाथरूम से जीजाजी मुँह धोकर और कुल्ले करके आये तो फिर उनका तना हुआ लण्ड मेरे सामने था। मजाल थी कि इतनी देर में वो नर्म पड़ा हो, जैसे गया वैसे ही आया !

अब जीजाजी मेरे ऊपर लेट गए, लण्ड उनके और मेरे पेट के बीच था और वे अपना बोनस वसूल करने लगे थे जो उनको बहुत प्रिय था यानि मेरे होंट चूसना ! वे कस के मेरे होंट चूस रहे थे और कुछ जगह छोड़ थी, लिप लॉक नहीं किया था, उन्हें पता था कि मेरा दम घुटता है लिप लॉक से इसलिए वे थोड़ी थोड़ी देर में मेरे होंट भी अपने होंठों से छोड़ देते थे ताकि मैं लम्बी लम्बी सांस ले सकूँ !

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अब मेरे होंठ दर्द करने लग गए थे। मैंने जीजाजी को बताया तो वे होंट छोड़ कर स्तनों पर आ गए, अब वे उन्हें पूरा पूरा मुँह में भर रहे थे और साँस के साथ और अन्दर की तरफ खींच रहे थे। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, मेरी योनि में संकुचन तेज़ हो गया था, मैं शर्म के मारे कह नहीं पा रही थी कि अब डाल दो, पर मेरी गर्म सांसें, अधखुली मदभरी आँखें, दांतों से कटते होंट, उनको पकड़ के भींचना, और अपनी टांगें उनके कमर में बांधना और मस्ती की कराहों आदि ने उन्हें बता दिया था कि लोहा गर्म है, अब चोट मारने का समय आ गया है !

वे मेरे स्तनों में मुँह मारना बंद कर नीचे खिसके, मेरी टांगें तो पहले से ही उनकी कमर पर थी उन्होंने अपने हाथ की अँगुलियों से मेरी चूत का छेद टटोला उस पर थूक लगा कर चिकना किया और एक अंगुली डाल कर उसे अन्दर बाहर किया। उत्तेजना में मेरी चूत की फांकें उस पतली सी अंगुली को भी कसने का असफल प्रयास कर रही थी ! मेरी चूत से आग के भभके से निकल रहे थे क्योंकि जीजाजी कोई एक घंटे से मेरे बदन से खेल रहे थे ! उनकी स्थिति ऐसी थी जैसे किसी बच्चे को कोई मनपसंद टॉफ़ी कई दिनों के बाद मिले और वो उसके ख़त्म हो जाने के डर से उसे खाए नहीं और सिर्फ चाट चाट के रखे !

जीजाजी को पता था कि पानी निकल जाने के बाद क्या मज़ा है, वो तो आना ही है पर इसका मज़ा लम्बे समय तक फोरप्ले से ही लिया जा सकता है।

पर यह हर किसी के बस की बात नहीं है उसके लिए जीजाजी जितनी स्तंभन शक्ति चाहिए जो मेरे पति में नहीं है अगर इतनी देर वे उत्तेजित अवस्था में रह जाये तो उनकी पिचकारी बिना डाले ही छुट जाये !

इसी लिए मुझे जीजाजी सेक्स में बहुत प्रिय हैं भले ही उनका लण्ड मेरे पति से पतला और छोटा हो पर हर बार वे मुझे पूरी तरह से संतुष्ट कर निचोड़ डालते हैं !

मेरी कमर भी जीजाजी के नीचे दबी होने बावजूद उस अंगुली की हरकत के साथ ऊपर नीचे हो रही थी !

जीजाजी मुझे बहुत तड़फा रहे थे पर मुझे पता था कि वे भी तड़फ रहे हैं !आखिर लिंग प्रवेश का मुहूर्त आया और जीजाजी ने अपना लण्ड थूक से चिकना कर मेरी चूत के छोटे से छिद्र पर अटका दिया जो उसके स्वागत में मच-मच कर रही थी और डिपर की तरह खुल और बंद हो रही थी। मेरी चूत के पास की हड्डी की बनावट ऐसी है कि बिना चूत में घुसे लण्ड को भी वहाँ टिकने की जगह मिल जाती है, उस जगह पर

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उनका लण्ड टिका हुआ था और उन्होंने मेरे कंधे और स्तन पकड़ कर अपने कूल्हों को नीचे दबाना शुरू किया, उनका लण्ड मेरी चूत में फिसलने लगा, धीरे धीरे अपने गंतव्य स्थान पर जाकर रुक गया और वहाँ जाकर ऐसे ठुमके लगाने लगा जैसे घोड़ा अपना सर हिला रहा हो !

फिर धीरे धीरे जीजाजी की कमर लयबद्ध थिरकन करने लगी जो मेरी उत्तेजना को बढ़ा रही थी। मैं भी अपनी कमर को ऊँची नीची कर उनके साथ तारतम्य बिठा रही थी।

वे बस मंथर गति से अपनी कमर हिला रहे थे, मेरे मुँह से मादक आहें निकल रही थी- आआआ…ह ईईईए…..जीजू मज़ा आआ रहाआआ रहाआ है… जीजू तुम चुदाई के भी मास्टर हो। (मेरे जीजाजी सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं) क्या चोदते हो यार ! वास्तव तुम किसी को आनन्द दिला सकते हो। एक साथ दो को संतुष्ट कर सकते हो ऊऊउ ….ह्ह्ह…..!

मेरी चूत में उनके लण्ड का घर्षण बहुत भला लग रहा था, मैं बार बार उनके गाल को काट रही थी पर उन्होंने अपनी रफ़्तार वही रखी !

अब वास्तव में उनकी यह रफ़्तार मुझे अच्छी लग रही थी, वे भी बार बार मेरे कान की लो को चूम रहे थे, हल्के हल्के काट रहे थे और मैं उत्तेजना से पागल हो रही थी। मुझे पता भी नहीं था कि कान की लो चूमने पर भी नीचे आग लग सकती है, उन्हें ना जाने कैसे पता था !

मेरा स्खलन शुरू हो गया था, मैं जोर से चिल्ला रही थी, चीख रही थी पर वे बिना ध्यान दिए मेरे खेत में हल चला रहे थे उसी गति में, उन्हें मेरी चीखों, आहों कराहों से कोई मतलब नहीं था, बस सट सट उनका लण्ड अन्दर-बाहर हो रहा था, मेरी चूत में खलबली मची हुई थी और वो पानी पर पानी छोड़ रही थी जो उनके सूख चुके लण्ड को गीला कर रही थी !

कोई एक मिनट तक मेरी चूत में बारिश बरस कर रुक चुकी थी पर उनका मेरे खेत में ट्रैक्टर चलन नहीं रुका था, वे तो बस जैसे मशीन की तरह मुझे चोद रहे थे !

मेरा बदन ढीला पड़ चुका था, मेरे स्तन ढलक गए थे और मेरी कमर भी ऊपर नीचे होना बंद हो चुकी थी पर उनका सुपारा बस अपना रास्ते पर चलता जा रहा था ! उनके हाथ मेरे स्तनों को गोल-गोल घुमा रहे थे। हल्के हल्के उमेठ रहे थे। मेरी स्तनों की भूरी घुन्डियों को हल्का हल्का दबा रहे थे और उनकी इतनी कोशिश के कारन मेरे चुचूक फिर से कठोर होने शुरू हो गए थे।

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जीजाजी के हाथों और होटों के कमाल से मैं फिर से उत्तेजित होना शुरू हो गई थी ! जब जीजाजी सेक्स करते हैं तो मैं अब यह याद नहीं रखती कि मैं कितनी बार स्खलित हुई क्यूंकि उनके चूमने चाटने और मेराथन चुदाई से में कम से कम 5-6 बार तो स्खलित होती ही हूँ !

मैं फिर से गर्म हो रही थी, मस्ती के कारण मेरी चूत फिर से चिकनी हो गई थी !

जीजाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया, मैंने सवालिया नज़रों से उनकी तरफ देखा, मेरी टाँगें अभी हवा में ही थी, उन्होंने हाथ से उन्हें सीधा कर दिया और मुझे कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ मेरी पीठ करने लगे !

सेक्स करते वक़्त वो कुछ बोलते नहीं हैं, सारा काम इशारों से ही करते हैं। मैं समझ गई कि वे पीछे से मेरी चूत मारेंगे !

मैं बिना बोले पलट गई और थोड़ी अपनी टांगें भी उठा दी ताकि मेरी चूत का छेद चौड़ा हो जाये !

उन्होंने पीछे चिपक कर अपने लण्ड को मेरी चूत में थूक लगा कर एडजस्ट किया और मेरी चूत में सर्रर्र से सरका दिया जो चिकनी हो रही थी। अब उनका हाथ मेरे स्तन आसानी से मसल रहा था जो ऊपर चढ़ के मसल नहीं पाते थे, मुझ से जीजू की लम्बाई ज्यादा होने के कारण दिक्कत आती है, मेरे पति की लम्बाई मेरे बराबर होने के कारण उन्हें यह दिक्कत नहीं आती !

अब वे तूफानी गति से धक्के लगा रहे थे कि अचानक कालबेल बज उठी !

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कहानी जारी रहेगी।

अब वे तूफानी गति से धक्के लगा रहे थे कि अचानक कालबेल बज उठी !

मैं और जीजाजी दोनों चौंक पड़े। मैंने धीरे से जीजू से पूछा- कौन हो सकता है?

जीजाजी ने मुझे हाथ से सहला कर आश्वस्त करते हुए अपने कमर पर लुंगी लपेटी और दरवाज़े के पास चले गए। मैंने भी पास पड़ा कम्बल मुँह तक ढक लिया और सो जाने का दिखावा करती दम साधे लेट गई।

जीजाजी ने झटके से सिटकनी खोली और देखा तो वेटर था। उन्होंने पूछा- क्या है?

वो बोला- मैं चाय के बर्तन लेने आया हूँ।

जीजाजी ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए कहा- बर्तन तो पहले ही कोई वेटर ले गया है !

वेटर ने भांप लिया की गलत समय पर दरवाज़ा खटखटा दिया है। हालाँकि समय तो नौ सवा नौ ही हुआ था पर जीजाजी के हाव-भाव और कमर के ऊपर का नंगा बदन देखा कर वो समझ गया था इसलिए उसने फटाफट माफ़ी मांग ली।

जीजाजी ने कहा- कोई बात नहीं !

और फिर से दरवज़ा बंद कर लिया और सिटकनी लगा कर फिर से पलंग पर आ गए, बोले- साले ने सारे मूड की माँ चोद दी ! मादरचोद कप क्या अपनी माँ की गाण्ड में डालेगा?

मेरे कान वैसे भी दरवाज़े पर ही लगे हुए थे और आपको पता ही है एक अपराधबोध के साथ होटल में रुकते हैं। हालाँकि यह काफी अच्छा और महंगा होटल है पर मन में पुलिस की रेड का डर लगा रहता है कि कहीं बदनाम न हो जाएँ ! कहीं मिडिया वाले खबर ना छाप दें कि जीजा-साली रंगरेलियाँ मनाते पकड़े गए !

क्यूंकि जीजाजी के ड्राइविंग लाइसेंस की फोटो कोपी की पहचान से तो कमरा मिलता है, उसमें सब नाम पते होते हैं और साथ में मेरा मिलना भगवान बचाए ऐसी परिस्थिति से ! खैर यह बात हुई नहीं थी पर जीजाजी का बैठ गया था, वे अपनी लुंगी लपेटे ही मेरे पास कम्बल में लेट गए थे। बोले- यार, मेरी मेहनत बेकार गई ! अब फिर से तुम्हें काफी देर परेशान होना पड़ेगा, तब मेरे पानी छुटेगा, अभी तो यह वापिस ऊपर चढ़ गया है !

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मैंने कहा- आप परेशान मत हो, हमारी कौन सी गाड़ी छूट रही है ! हमारे पास तो सारी रात है, अब मैं कुछ करती हूँ, आप सीधे सीधे लेट जाओ !

मेरे इतना कहते ही उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और वे सीधे लेट गए, मैं बैठ गई और धीरे से उनकी लुंगी हटा दी, उनके लण्ड पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगी और वो अंगड़ाई लेने लगा। मैं उस पर सावधानी से मुठ्ठिया दे रही थी ताकि फिर से उन्हें दर्द ना हो जाये !

थोड़ी देर में उनका लण्ड फिर से तन्ना रहा था, जीजाजी मुझे देख रहे थे कि अब क्या करेगी !

मैंने वहाँ पड़ी पोंड्स की डिब्बी खोली और काफी क्रीम उनके लण्ड के ऊपर लगाई और फिर अपनी चूत के छेद पर लगाई और जीजाजी की झांघों पर बैठ गई !

फिर कुछ सोच कर मैंने अपनी पीठ जीजाजी की तरफ कर ली ताकि मुझे उनके सामने नहीं देखना पड़े क्यूंकि जब वे देखते है तो मुझे शर्म आती है।

दूसरी बात उल्टा बैठने पर लण्ड चूत में अच्छी तरह से जाता है और उनका कुछ छोटा लण्ड भी गहराई में पहुँचेगा और चुदाई में अचानक बाहर निकाल कर मेरे चूत की चमड़ी को क्षति ग्रस्त नहीं करेगा।

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मैं उकड़ु बैठ कर थोड़ी ऊपर होकर लण्ड के सुपारे को चूत के छेद पर हिला हिला कर एडजस्ट कर रही थी, फिर सही जगह अटका कर मैंने हल्का सा धक्का मारा तो थोड़ा दर्द हुआ मुझे। जीजाजी का चेहरा तो दिख नहीं रहा था, मुझे तो सामने की दीवार और सोफा टेबल दिख रही थी पर जीजाजी की मादक आह सुनकर पता चल गया कि उन्हें भी मज़ा आ रहा है !

अब मैंने यह पता लगा लिया कि चाहे छुरी खरबूजे पर गिरे अथवा खरबूजा छुरी पर, कटना खरबूजे को ही है ! यानि मर्द लण्ड डाले या औरत ऊपर चढ़ कर डलवाए, दर्द तो औरत को ही होगा ! पर उस दर्द की मंजिल आनन्द होती है, मुझे चुदाने पर जो आनन्द मिलता है तो मैं कई बार जीजाजी से पूछती हूँ- आपको भी आनन्द आता है/

वे हाँ बोलते हैं तो मुझे बड़ा अचम्भा आता है कि इन्हें आनन्द कैसे आता है, हमारे तो उस वक़्त खुजली होती है जिसे वे उस डंडे से खुजाते हैं, इन्हें क्या मज़ा आता होगा।

जीजाजी कहते- हम मेहनत कर मज़ा लेते हैं, तुम तो आराम से लेट के आनन्द लेती हो, हम अपने कूल्हे चलाते हैं इस आनन्द के लिए।

तो आज मैं भी अपने कूल्हे चला कर मेहनत का आनन्द लेने की कोशिश कर रही थी !

मैंने एक ठाप और मारी और उनका लण्ड आधे से ज्यादा गुस गया। एक लम्बी साँस लेकर मैंने फिर थोड़ा बाहर निकाल कर कूल्हे का झटका दिया तो जड़ तक अन्दर घुस गया। मैंने लम्बी लम्बी सांसें ली, जीजाजी नीचे से कुछ हिल रहे थे, मैंने उनकी टांगों के बीच की खाली जगह पर अपना सर टिका दिया और पलंग पर घुटने टिका दिए, पैर के पंजे जीजाजी की कमर की तरफ कर दिए और फिर जीजाजी को खपाखप चोदने लगी।

मुझे जैसे जूनून चढ़ गया था, मेरी रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई थी, जीजाजी के मुँह से मेरी तारीफ निकलने लगी और उनके हाथ मेरी ऊँची नीची होती गाण्ड पर फिरने लगे !

पर मेरी चोदने की रफ़्तार बस दो मिनट ही चली थी, मैं हांफने लगी थी और अब घिसट-घिसट कर धक्के लगा रही थी।

जीजाजी ने थोड़ी देर तक तो नीचे से उछल उछल कर मेरा साथ दिया पर ऊपर चढ़ा हुआ बल्लेबाज़ तो हर गेंद पर टिक कर रहा था, एक भी शॉट नहीं मार रहा था इसलिए थोड़ी देर में ही उन्होंने कहा- अब उतर जाओ ! हो गई तुमसे चुदाई ! लड़का होती तो कोई तुझसे चुदती ही नहीं। साली इतनी सी देर में थक गई !

मासूम यौवन – Antarvasna Sex Kahani

मैंने कोई जबाब नहीं दिया, कोई जबाब था ही नहीं मेरे पास और मुस्कुरा कर वहीं उलटी लेट गई !

जीजाजी मेरे नीचे से निकल गए थे अभी तक मैं थकान के कारण उनके पैरों की तरफ मुँह करके उलटी ही लेटी हुई थी ! फिर जीजाजी ने मेरे कूल्हों पर थाप देकर उन्हें उठाने को कहा।

मैं उनका इशारा समझ गई कि अब वे मुझे घोड़ी बनाना चाहते हैं, वे घुटनों के बल बैठे हुए थे और उनका अतृप्त लण्ड सीधा खड़ा होकर झटके खा रहा था ! मैं वहीं पीछे से थोड़ी उठ कर घुटनों के बल हो कर घोड़ी बन गई, उनकी अंगुलियाँ मेरी चूत की फांकों को अलग अलग कर रही थी। फिर उन्हें उनके बीच में थोड़ी जगह मिल गई वहाँ उन्होंने अपना लण्ड फंसा दिया और मेरी पतली कमर अपने दोनों हाथों में थाम ली और अपनी कमर को हरकत दी, उनका लण्ड जो अभी तक पोंड्स क्रीम से चिकना हो रहा था, आसानी से अन्दर घुस गया। अब मेरी चूत रवां हो गई थी इसलिए मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था !

उनकी गति बढ़ती जा रही थी, मेरे पीछे चोट लग रही थी जो हम औरतों की नियति है मार खाने की ! पर इस मार में आनन्द ही आनन्द था ! वे मेरी कमर को बुरी तरह दबोच कर धक्के मार रहे थे और साथ ही पीछे भी उस समय खींच लेते जब उनका पिस्टन अन्दर जाता ! तब वे मेरी कमर को खींच कर मेरी चूत को अपने लण्ड से बुरी तरह टकराते और उनका लण्ड जड़ तक जाकर मेरे बच्चेदानी के मुँह से टकराता और उसके दो दोस्त मेरी गुदा से टकरा कर जैसे टंकार बजाते ! जब मेरी गुदा से उनकी गोलियाँ स्पर्श होती तो मैं उनके पूरे लण्ड को अपनी चूत में महसूस कर आनन्दित होती !

अब उनकी गति बहुत तेज़ हो गई थी, मैं भी अपनी गाण्ड को पीछे कर उन्हें सहयोग दे रही थी। अब जब मैं खुद अपनी गाण्ड को उनके धक्के के समय पीछे कर रही थी तो उन्होंने भी कमर को छोड़ दिया था और मेरे कूल्हों पर प्यार से हाथ फेर रहे थे !

मुझे भी आनन्द आ रहा था और मैं झड़ने लगी थी, मेरे झड़ने का जीजाजी को पता चल गया था, अब वे पागलों की तरह मुझे चोद रहे थे और मुझे झड़ते वक़्त वही अंदाज़ चाहिए था।

मेरी मुठ्ठी में पलंग की चादर कसी हुई थी जो अस्त-व्यस्त हो रही थी, होनी ही थी, पलंग पर तो जैसे फ्री स्टाइल कुश्ती हो रही थी या कोई कबड्डी का मैच हो रहा था जैसे ! जीजाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाल कर कंडोम पहन लिया था अब मुझे फिर से चुदते 15 मिनट हो गए थे और जीजाजी के मुँह से अनर्गल आवाजें निकल रही थी जो उनके छूटने के लक्षण थे और यही मैं भी चाहती थी। मेरी चूत में अब दर्द होना शुरू हो गया था इतनी देर के घर्षण से जो साले उस वेटर ने बीच में कालबेल बजा कर बढ़ा दिया था !

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पर अब मेरी जान में जान आने वाली थी, उनके नहीं आने तक तो मैं उन्हें रोक नहीं सकती थी, कटखने कुत्ते की तरह करते हैं अगर उस वक़्त बोल जाओ तो !

मैं सिर्फ आअ…. आअ…. दुखे.. रीईईईए… म्हारो भोश्यो छुल गो र्र्र्रर्र्र्रे…..कर रही थी जो उनकी उत्तेजना को बढ़ा रही थी और वे मेरी चूत से मुँह तक लण्ड बाहर निकाल कर एक झटके में पूरा ठूंस रहे थे।

फिर उनके शरीर ने झटका खाया, उन्होंने धीरे धीरे 5-6 धक्के मारे और अपना कंडोम हटाया उसमें गांठ लगाई और दराज़ में डाल दिया। मैं वहीं सो गई, मुझ में सीधी होने की हिम्मत भी नहीं थी।

जीजाजी बाथरूम में लण्ड धोने चले गए थे। वापिस आकर मुझे उठाया बाथरूम में जाने के लिए और मैं भी बाथरूम में घुस गई अपनी मुनिया को धोने और पेशाब करने के लिए जो दर्द के कारण मुश्किल से उतर रहा था !

फिर हम साथ में लेट कर बाते करने लगे ! मैं भी बहुत बातूनी हूँ और जीजाजी तो अच्छे वक्ता हैं ही ! मैं तो बकवास ज्यादा करती हूँ, जितना बोलती हूँ उससे ज्यादा हंसती हूँ पर जीजाजी का सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा है, वे किसी भी विषय पर बोल सकते हैं !

कहानी जारी रहेगी।

जीजाजी बाथरूम में लण्ड धोने चले गए थे। वापिस आकर मुझे उठाया बाथरूम में जाने के लिए और मैं भी बाथरूम में घुस गई अपनी मुनिया को धोने और पेशाब करने के लिए जो दर्द के कारण मुश्किल से उतर रहा था !

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फिर हम साथ में लेट कर बाते करने लगे ! मैं भी बहुत बातूनी हूँ और जीजाजी तो अच्छे वक्ता हैं ही ! मैं तो बकवास ज्यादा करती हूँ, जितना बोलती हूँ उससे ज्यादा हंसती हूँ पर जीजाजी का सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा है, वे किसी भी विषय पर बोल सकते हैं ! पर मेरे साथ उनका पसंदीदा विषय सेक्स ही होता है !

वे मुझसे पूरी तरह खुले हुए हैं, उन्होंने मुझे सारी बातें बताई हैं, उनका पहला सेक्स, सुहागरात, कोई असफल सेक्स या किसी आदमी की गाण्ड मारी हो या अपना लण्ड चुसाया हो।

करीब 8-10 महीने हो गए थे उनसे सेक्स सम्बंध बने तो वे सारी बातें बता चुके थे और मैं भी उनसे कुछ नहीं छिपाती हूँ !

वे मुझसे बात भी करते जा रहे थे पर उनके हाथ अपना काम करते रहते हैं यानि मुझे सहलाना !

मैंने बातों बातों में कहा- अब किसकी चुदाई करोगे पटा कर?

तो वे बोले- तू मिल गई है, अब मुझे किसी को नहीं पटाना है !

मैंने हंस कर कहा- लोमड़ी के लिए अंगूर खट्टे हैं, अब आप जैसे बुढ्ढे के कोई पटेगी भी नहीं !

वे बोले- तुझे मैं बिस्तर पर बुड्ढा लगता हूँ?

मैंने कहा- बिस्तर तक आएगी तो जानेगी न ! वो तो आपको पहले ही नापसंद कर देगी !

तो वे बोले- तू पटी है ना मुझसे?

मैंने कहा- मैं तो आपके घर की हूँ इसलिए पट गई, और वो भी पटाना क्या आपने तो एक तरह से मेरा बलत्कार ही किया था !

वे बोले- यह बात तो है पर तुम्हें मुझ पर गुस्सा नहीं आया था !

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मैंने कहा- आया तो था पर जब आनन्द आया तो उसके साथ चला गया !

फिर उन्होंने पूछा- अगर मैं किसी दूसरी को चोदूँ तो तुझे गुस्सा नहीं आएगा?

मैं बोली- बिल्कुल नहीं आएगा ! अरे यह तो मर्दानगी की निशानी है, आप तो देखो मौका और मारो चौक्का !

वे बोले- सही बता, तुझे जलन नहीं होती है?

मैंने कहा- वास्तव में मुझे जलन नहीं होती है, मैं तो किसी दूसरी को आपको चोदते देखना चाहती हूँ ! एक औरत रोज़ मेरा माथा खाने आ जाती है कि मेरी भी कही नौकरी लगवा दो। आप एक बार उसको पकड़ कर चोद दो ताकि वो फिर मेरे कमरे पर नहीं आये और मेरा पीछा छूटे !

जीजाजी बोले- फिर उसको मज़ा आ गया तो फिर वो ना तो तेरा कमरा छोड़ेगी और न ही मुझे !

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मैंने हंस कर कहा- हाँ, यह बात तो है ! पर आप उसे चोदना मत, उसकी गाण्ड मार देना फिर तो उसे दर्द ही होगा ना ! मैंने आपको कई बार फोन पर उसके बारे में बताया था और आपने कहा था कि साली की गाण्ड में झाड़ू डाल दे, आना भूल जाएगी, तो आप अपना लण्ड ही डाल दो ना ताकि उसका इलाज़ हो जाये !

जीजाजी ने कहा- मुझे किसी की गाण्ड नहीं मारनी है, मुझे तो सिर्फ तुम्हें ही चोदना है, तेरी चूत भी किसी गाण्ड से कम कसी नहीं है। और अब उनकी अंगुलियाँ मेरी चूत के दाने पर घूम रही थी !

मैंने उनका हाथ वहाँ से झटक दिया और कहा- मैं तो आपसे चुदना नहीं चाहती हूँ इसलिए आपको ऑफर दे रही हूँ और आप घूम फिर कर वहीं पहुँच गए !

फिर उन्होंने पूछा- जब तेरी भाभी आई थी तब भी तुमने पूछा था कि वो कहाँ सोई और आप कहाँ सोये और देख के मौका मारा चोक्का की नहीं !

जीजाजी बोले- मुझे तो ख़ुशी हुई जब तुमने यह पूछा। तब मैंने यह सोचा था कि तुझे उससे जलन हो रही है, तू मुझ पर हक जता रही है। पर फिर सारा मूड इसलिए ख़राब हो गया कि तुमने यह कह दिया कि आप तो मौका लगे तो किसी को चोद दो !मैंने कहा- वास्तव में तो अपने पति को भी कहती हूँ ! एक बार उन्होंने कहा था कि गाँव में एक औरत कई बार कहती है घर आने को, उसके पति से वह संतुष्ट नहीं है। तो मैं कहती हूँ कि जाओ, उस बेचारी को चोद आओ। तो वे भी कहते हैं कि यार तुझे छोड़ कर उसे कौन चोदे? तुम इतनी प्यारी और सुन्दर हो ! तो मैं अपना सर पीट लेती हूँ, वास्तव में चुदाई से परेशान हो जाती हूँ, मैं सोचती हूँ कि एक दिन तो मेरा पीछा छुटेगा। आप भी मेरी भाभी को पटा कर चोद दो, वो मुझ से छोटी भी है और सुन्दर भी ! ताकि कहीं हम दोनों हों तो कभी मेरा पीछा तो छूटे चुदाई से !

जीजाजी ने कहा- वो भले ही तुमसे छोटी हो या सुन्दर हो, मुझे तो तू ही अच्छी लगती है, मैं तो सिर्फ तुम्हें ही चोदूँगा !

मैंने कहा- धत्त यार ! इतनी देर आपको समझाया पर ढाक के वही तीन पात !

जीजाजी बोले- वही बात है, जो गाँव में किसी पंचायती में कही जाती है कि पंचों का हुकुम सर माथे पर ! पर यह नाला तो यहीं गिरेगा !

मैं खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली- यानि यह बोझ तो मुझे अपने सीने पर झेलना ही पड़ेगा।

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तो जीजाजी बोले- बिल्कुल यही बात है !

और फिर से मेरी चूत सहलाने लगे। इस बार उन्होंने अपनी अंगुली थूक से गीली कर दी, जिसे वे आसानी से अन्दर-बाहर कर रहे थे !

मैंने कहा- अपनी अंगुली हटाओ ! इतनी देर बातें करने के बाद मेरा टैंक फ़ुल हो गया है, मुझे पेशाब कर आने दो, वर्ना कभी भी मेरी पिचकारी छूट जाएगी, मैं पहले कह देती हूँ ! जीजाजी मुस्कुरा कर बोले- चलो छोड़ो पिचकारी ! मैं भी देखता हूँ कि कितनी ऊँची जाती है !

मैंने हंस कर उनका हाथ उठाया और बाथरूम की तरफ चल दी। जीजाजी भी मेरे नंगे मटकते कूल्हे देखते हुए मेरे पीछे बाथरूम में आ गए, वे भी पूरे नंगे ही थे !

मैंने कहा- आपको मूतना है तो आप पहले कर लो ! मैं बाहर जाती हूँ, मैं बाद में कर लूँगी।

पर जीजाजी बोले- नहीं, मैं तुम्हें पेशाब करते हुए देखूँगा और उसका संगीत सुनूँगा।

मैंने कहा- अजीब पागल हो? लो देखो और सुनो।

और मैं उनके सामने कमोड पर पैर लटका कर बैठ गई और वेग से पिचकारी छोड़ दी। जो शर्र्रर्र्र की आवाज़ के साथ बह निकली।

जीजाजी बड़ी गौर से देख रहे थे और मैं उनका चेहरा देख कर मुस्कुरा रही थी !

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फिर उन्होंने कहा- वाल्व खोल लो ! ताकि तुम्हारे अंग भी धुल जाए!

मैंने कहा- नहीं, उसकी तेज़ धार मुझे लगती है, मैं तो गर्म पानी से धोऊँगी, अभी मेरे को फिर से चुदाई भी करवानी है।

जीजाजी ने कहा- ठीक है !

मैंने गीजर वाली टोंटी खोली और गर्म पानी बाल्टी में भरने लगी !

फिर जीजाजी ने अपने अर्ध उत्तेजित लण्ड को हाथ में पकड़ा उसका सुपारे का चमड़ा थोड़ा पीछे किया और कमोड में धार छोड़ दी। मैं भी तिरछी नजरों से उन्हें पेशाब करती देख रही थी, तो वे बोले- आराम से देख लो !

मैं चौंक कर दूसरी तरफ देखने लगी तो वे बोले- तेरे-मेरे बीच तो बिल्कुल शर्म और पर्दा रखना ही नहीं है। आज तक तेरी दीदी से शादी हुए 22 साल हो गए पर ऐसे नंगे तो तो हम कभी नहीं रहे।

मैंने कहा- आपने ही मुझे इतनी बेशर्म बना दिया है, मैं क्या करूँ।

वे बोले- नहीं जान, तुम मेरी सबसे प्यारी-न्यारी मेरी जान हो ! जिसे मैं बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ।

मैं तब तक अपनी चूत को धोती रही, उन्होंने भी अपने लण्ड को धोया और मेरे कंधे पर हाथ रख कर वापिस पलंग पर आ गए। दोनों बिल्कुल नंगे अजीब लग रहे थे। मेरी आँखें अधमूंदी क्या करीब करीब बंद ही थी, मैं सिर्फ जीजाजी के सहारे ही पलंग पर पहुँची थी और फटाफट कम्बल में घुस गई। मुझे पता था कि यह कम्बल भी मेरा साथ जल्द ही छोड़ देगा।

और वही हुआ, जीजाजी बड़ी जल्दी मेरी धुली हुई चूत पर टूट पड़े, वे तो सीधा मेरी टांगों के बीच ही घुस गए और अपना चेहरा मेरी टांगों के बीच छिपा लिया !

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जीजाजी का मुँह मेरी चूत से लगा हुआ था और वे उसे ऊपर से नीचे तक चाट रहे थे, उनकी जीभ मेरे चूत के दाने से ऊपर से नीचे चूत के किनारे तक घूम रही थी। अभी तक उन्होंने मेरी चूत की फाड़ियाँ खोल कर अभी तक अन्दर नहीं डाली थी, बस ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की तरफ फिरा रहे थे।

और जब उनकी जीभ ऊपर फिरती, और अन्दर नहीं घुसती तो मेरी चूत अन्दर से कचमचाने लगी और जब उनकी जीभ मेरे छेद से फिसलती ऊपर या नीचे जाती तो न चाहते हुए भी मेरी गाण्ड उठ जाती। जीजाजी को पता चल गया और उन्होंने आराम से मेरी फाड़ें अलग अलग की और अपनी जीभ को थोड़ा गोल कर कड़क किया और मेरे चूत के दाने जिसको वे चना कहते हैं, उसे रगड़ने लगे। मैं उत्तेजना से पागल सी होने लगी और उनके बाल पकड़ कर उनका मुँह में अपनी चूत में दबाने लगी !

वे भी अब मेरी चूत को पूरी तरह से अपने मुँह में भरने लगे। ये उनकी एक और जानलेवा अदा थी सेक्स में !

मेरी हालत ख़राब होने लगी और मैं बेशर्म होकर धीरे धीरे बड़बड़ाने लगी- अबे घाल दो नि म्हारे मन में हांची आयोडी है अबे जीभ सु काम कोणी चले अब तो काम डंडा सु ही चली ऐ मार का भुत है बाता सु कोणी माने ! और मेरी आआआआआअ….ऊऊऊऊ…ह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अरीईईईए …कई करो म्हारे घाल दो नि ओ……..
!

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पर जीजाजी के कानों पर जूँ ही नहीं रेंग रही थी, हाँ, उन्होंने चाटने की गति बढ़ा दी थी साथ ही हल्का हल्का काट भी रहे थे जो मुझे अच्छा भी लग रहा था। मैंने उनके जो थोड़े बहुत बाल हैं उन्हें बिखेर दिया था !

उनके बाल बिखर गए थे और कम होने वजह से खड़े भी हो गए थे और कुछ अजीब से लग रहे थे जैसे कोई तूफान से आया हो पर वे तो मेरे चूत के तूफान में फंसे हुए थे और मुझे आनन्द दे रहे थे।

अब मुझे भी पता चल गया कि अबकी बार तो ये चाट चाट कर ही पानी निकालेंगे तो मैं भी अब अपनी कमर नीचे से उठा उठा कर मज़े ले रही थी और वे भी बहुत गति से अपनी जीभ नुकीली कर उसे मेरे चूत की गहराइयों तक पहुँचा रहे थे, साथ ही मेरे चूत के दाने को अपनी गीली अंगुली से हल्के हल्के सहला रहे थे !

और मेरा बांध फट पड़ा, मैं झटके खाती-खाती झड़ने लगी। मैंने जीजाजी का चेहरा पूरी तरह से अपनी चूत पर चिपका दिया था और उन्हें हिलने ही नहीं दे रही थी। वे हिल नहीं रहे थे पर उनकी जीभ और होंट चलायमान थे जो मेरे पानी अंतिम बूंद तक निचोड़ रहे थे और मेरे झड़ने के बाद तक अपनी जीभ को अन्दर तक घुसा कर साफ कर रहे थे।

मैंने कहा- अब रुक जाओ, अब मेरा पानी निकल गया है।

वे बोले- मैंने चख भी लिया है, थोड़ा नमकीन सा लगा है।

मैंने कहा- धत्त ! अपना मुँह धोकर आओ और कुल्ले भी करके आना। आपको गन्दा नहीं लगता?

जीजाजी बोले- नहीं, यही तो अमृत है जो मुझे पीना है, पर यार तुम्हारे आता बहुत कम है, हमारा चाहिए तो आधा कप भर लो !

मैंने कहा- कम है, तभी तो मांग है।

और मैं खिलखिला उठी, मेरी स्वछंद हंसी को सुनकर वे भी मुस्कुराते हुए बाथरूम में कुल्ला करने चले गए अपने पप्पू को सीधा खड़ा हुआ और तना हुआ लेकर !

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मैं उनके आने तक मानसिक रूप से चुदाई के लिए तैयार होने लगी, मुझे पता था कि अब मेरे चूत की धज्जियाँ उड़ने की बारी है।

थोड़ी देर में वे अपना मुँह धोकर और कुल्ले करके वापिस आ गए और मेरे बराबर में आकर लेट गए, वे शायद पेशाब कर और अपने लण्ड को धोकर आये थे इसलिए कुछ मुरझा गया था और अर्ध- उत्थित अवस्था में था। पर मुझे पता था इसका जहर अभी निकला नहीं है, इसलिए यह थोड़ी देर में ही अपना फन उठा लेगा !

उन्होंने आते ही मेरे चेहरे की तरफ होंट बढ़ाये ! चूँकि अभी अभी उन्होंने मुझे स्वर्गिक सुख दिया था इसलिए मैं भी उन्हें कुछ इनाम देना चाहती थी जो मैं उनकी तरह उनका तो नहीं चूस सकती थी पर मुझे पता था उन्हें होंट चूसना और चुसाना बहुत पसंद है इसलिए मैंने उनका नीचे वाला होंट अपने होंटों की गिरफ्त में ले लिया और जम कर चूसने लगी ! मैं वैसे कभी होंट ना तो चूसती हूँ और ना ही चुसवाती हूँ इसलिए मेरी इस अदा पर मैंने जीजाजी की आँखों में आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी आ गई थी !

मैंने वास्तव में इतनी बुरी तरह से उनके होंट चूसे कि उनके होंट में सूजन सी आ गई पर उन्हें तो मज़ा आया और बोले- तू सूजन की चिंता मत कर, मुझे कल जाना है तेरी दीदी के पास, तब तक सूजन उतर जाएगी !

मैं भी थक कर ठंडी साँस ले रही थी कि उन्होंने अपने होंटों से मेरे होंटो को जम कर चूसा, उनका हाथ मेरे सर के पीछे था क्यूंकि कई बार मैं अपना मुँह हटाने की कोशिश कर रही थी पर वे बलपूर्वक मेरे सर को अपने मुँह की तरफ दबा कर रख रहे थे !

फिर उन्होंने मेरा मुँह छोड़ा तो मैंने अपनी अटकी हुई साँस ली पर मेरी साँस पूरी नहीं होने के बीच में ही फिर अटक गई थी क्यूंकि इतनी देर में जीजाजी ने उठ कर मेरे पांव अपने कंधों पर ले कर अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया था !

और दूसरे झटके में तो जड़ तक अन्दर था।

मेरे मुँह से अह की आवाज़ निकली और फिर मैं शांत हो गई और दम साध कर धक्कों का इंतजार करने लगी !

और जीजाजी ने भी मुझे इंतजार नहीं करवाया दनादन धक्के मारने शुरू कर दिए !

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उनका लण्ड सटासट अन्दर-बाहर हो रहा था, वे जब ऊपर की तरफ होकर धक्के मारते तो उनके लण्ड की रगड़ मेरे चूत के दाने से लगती और मेरे दिमाग में उत्तेजना की चिन्गारियाँ सी फूटती ! और थोड़ी देर में मुझे लण्ड का स्पर्श अपनी चूत में भला लगने लगा !

ईश्वर ने हम औरतों को वरदान दिया है कि हम चाहे जितनी बार चुदा सकती हैं भले ही हमें मज़ा आये या नहीं हमें कोई उठाना तो है नहीं, टांगें खोल कर लेटना ही तो है, मर्द को लण्ड उठाना पड़ता है जो उसकी सिमित शक्ति होती है !

पर जीजाजी मुझे फिर से उत्तेजित कर देते, मैं सोचती बस अभी इनका निकल जाये तो बहुत है, मेरा इतनी बार आ गया है कि अब शायद ही आएगा, पर मैं उत्तेजित हो जाती हूँ !

मैंने जीजाजी को कहा- आप मेरे स्तन भी दबाओ, मुझे इन्हें आज दबवाना अच्छा लग रहा है ! और आप मेरी टांगों को अपने कंधे पर ही रखो और इनके नीचे से हाथ डाल कर मेरे स्तन पकड़ लो, मै और ज्यादा धनुषाकार हो जाऊँगी !

जीजाजी बोले- मैं ज्यादा लंबा हूँ इसलिए ऐसे नहीं पकड़ सकता, मेरा सारा बोझ तुम पर आ जायेगा और अभी तुम्हें साँस भी नहीं आएगा। मैं एक हाथ की कोहनी बल रहूँगा और एक हाथ से बारी बारी से तेरे दोनों वक्ष मसल दूँगा।

मैंने कहा- ठीक है !

और वे बारी बारी से मेरे उत्थित वक्षों का मर्दन करने लगे जो आज ज्यादा ही उछल रहे थे !

अब उन्होंने वक्ष मसल कर उन्हें कोमल कर दिया था और फिर उन्हें तनहा छोड़ कर अपने हाथों से मेरा सर पकड़ लिया था और बहुत तेज़ धक्के लगाने लगे। मैं भी उन्हें अपनी कमर उचका कर पूरा साथ दे रही थी और वे पूरे लण्ड को बाहर निकाल कर एक झटके में जड़ तक घुसा रहे थे और अब मेरी चूत रवां हो गई थी इसलिए पूरे लण्ड को गप-गप खा रही थी। मेरी चूत से पूर्व रस निकल कर लण्ड को चिकना बना रहा था और वातावरण में चुदाई का मधुर संगीत बरस रहा था- चप चप, खप खप, सट सट, पुच पुच, पच पच की आवाजों ने मुझे जल्दी ही झड़ने पर मजबूर कर दिया और फिर जीजाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

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मैंने कहा- क्या हुआ? कंडोम पहन कर अपना पानी भी निकाल लो !जीजाजी बोले- बुड्ढा आदमी हूँ मैडम, अभी तो कई बार चुदाई करनी है और अन्दर सामान थोड़ा है, अभी निकाल लूँगा तो फिर मुश्किल से उठेगा !

मैंने कहा- तो अब क्या करना है? आप निकाल लो, फिर सो जायेंगे, बहुत हो गई चुदाई !

वे बोले- नहीं मैडम, आप जब यहाँ से जाओ तो आपको चुदाई का अहसास होना चाहिए और 2-3 तीन दिन तक तो आपकी चूत भी आपको बोलनी चाहिए कि ऐसे आदमी के पास फिर नहीं जाना है। और मैं जो होटल का खर्चा करता हूँ उसका मज़ा तो पूरा लूँगा न !

मैंने कहा- आप जो चाहे करो, मैं तो अब पेशाब करके सोऊँगी, नंगी ही हूँ, जब चाहे मार लेना, जब चाहे अपना लण्ड फंसा देना, मेरे क्या फर्क पड़ेगा !

और ऐसा कह कर में पेशाब करके आकर के सो गई। जीजाजी पीठ पर चिपक कर सो गए !

कहानी जारी रहेगी।

रात को जोरदार चुदाई के बाद जीजाजी और मैं बाथरूम में जाकर फ़्रेश हो आए और फ़िर जीजाजी बिस्तर पर आ कर मेरी पीठ से चिपक कर सो गए !

चुदाई की थकान से मुझे एकदम नींद आ गई और मैं सपनों की दुनिया में पहुँच गई।

मैंने सपने में देखा कि मैं सुनहरे पंखों वाली एक परी हूँ जो किसी अनजान लोक में उड़ रही हूँ, मैं बहुत ही गोरी, नाजुक और मासूम सी परी हूँ जो आज ही इस लोक में आई हूँ। मेरी कमसिन काया अभी तक यहाँ के तेज़ हवा के थपेड़े भी नहीं सहन कर पा रही है और मेरी प्यारी आँखें हर चीज को उत्सुकता से देख रही हैं।

चारों तरफ हरे भरे घास के मैदान, आकाश को चूमती बड़े बड़े पेड़ों की डालियाँ, बस जनजीवन नज़र नहीं आ रहा था।

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उड़ते उड़ते थक गई तो नीचे हरी हरी घास का मैदान ऐसे दिख रहा था जैसे कोई कालीन बिछा हुआ हो।

तो उसे देख मैं अपनी माँ की सीख भूल गई कि किसी अनजान जगह ना तो जाना चाहिए और न ही रुकना चाहिए !

जमीन पर उतरते ही वहाँ की कोमल घास ने स्वागत किया, थोड़ा दूर वे विशालकाय पेड़ अब मुझे भयानक लग रहे थे ! उस घास पर बैठते ही लेटने का मन हुआ और मुझे थोड़ी देर में नींद आ गई।

मेरी नींद कोई भारी बोझ सीने पर आ जाने के कारण टूटी, मैंने देखा कि मेरे ऊपर एक काला कलूटा भारी भरकम दानव चढ़ा हुआ है, उसकी आँखों में वासना के साथ आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी भी है कि आज उसे मेरे जैसी सुन्दर परी मिल रही है !

मुझ कोमल सी परी के लिए जिसने अभी सेक्स किया क्या कभी देखा भी नहीं, उसे एक धक्का सा लगा और चेतना-संज्ञा शून्य हो गई, तब तक उस दानव ने मेरे पर नोच दिए, उसके भारी हाथ मेरे कोमल हाथों से नहीं रुक रहे थे और मेरे पूरे शरीर को जैसे नोच रहे थे, मैं दर्द से कराह रही थी और मेरे दर्द को देख कर उस दानव के मुख से आनन्द भरी चीखें निकल रही थी। थोड़ी देर में ही मेरे परी लोक के कपड़े उसके हाथों से फट कर उतर चुके थे, अब मेरा बदन चमक रहा था जिसे देख कर वो दानव बौरा गया था और उसने भी अपने कपड़े फटाफट फाड़ डाले। अब वो मेरे टांगों के बीच आ गया, मैं अपने नाजुक हाथों से उसे दूर करने की भरसक कोशिश कर रही थी और उसके पत्थर जैसे सीने पर मुक्के बरसा रही थी जो उसे फ़ूल की तरह लग रहे थे और उसकी उत्तेजना में वृद्धि ही कर रहे थे। उसने मेरे पैर जबरदस्ती फ़ैला दिए उसका लिंगमुंड मेरी अक्षत योनि के मुख पर आ गया। उसने उसे मेरी चूत के छेद पर टिका कर एक धक्का मारा तो उसका लण्ड सारे किलों को मटियामेट करता अन्दर घुस गया। मेरे मुँह से आह की आवाज़ निकली और तभी मेरा सपना टूटा।

मैंने आँखे खोली- कहाँ परी ! कहाँ दानव !

मैं और जीजाजी होटल के कमरे में एक पलंग पर नंगे हैं, जीजाजी ने अपना लण्ड मेरी चूत में फंसा रखा है, मेरे टांगें अपनी भारी टांगों के नीचे दबा रखी है और दनादन चोद रहे हैं !

मुझे अपने सपने पर हंसी आई पर मैंने जीजाजी को कहा- मुझे जगाया क्यों नहीं जब चोदना था तो?

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वे बोले- तुमने ही तो कहा था कि जब इच्छा हो अपना लण्ड फंसा लेना और मैंने फंसा लिया पर तुम नींद में मुझे रोक रही थी और मुझे धक्के भी दे रही थी और हल्की-हल्की रो भी रही थी। और जब तुमने मुझे नींद में रोका तो मुझे भी तुम्हें जबरदस्ती चोदने का मज़ा आ रहा था।

अब मैं उन्हें क्या कहती कि मैं सपना देख रही थी और उन्हें कह देती कि सपने में आप दानव हो !

मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा और उनके सीने से चिपक गई, उनके धक्कों का आनन्द लेने लगी। अब मेरी चूत सपने के आनन्द के कारण ज्यादा ही चिकनी हो गई थी और जीजाजी का लंड सटासट जा रहा था।

मैं जल्दी ही स्खलित हो गई और फिर जीजाजी भी ढह गए। उन्होंने कंडोम पहले से लगाया हुआ था। उन्होंने कहा- मेरी नींद खुली तो मैं ज्यादा उत्तेजित था इसलिए मैंने कंडोम लगा कर ही चुदाई शुरू की थी।

वे भी कोई दस मिनट में झर गए थे पर मुझे भी आनन्द दे गए ! मैं पेशाब करके चूत धोकर आई तब रात के ढाई बज रहे थे। और फिर जीजाजी भी पेशाब करके आये और मुझसे चिपक कर लेट गए। उनका मुरझाया और पानी से धुला हुआ लण्ड कुछ गीला सा मेरे कूल्हों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था !

फिर सुबह हमने कमरा छोड़ा, मैं अपनी ड्यूटी और जीजाजी अपने गाँव चले गए।

बस ! यही है मेरी कहानी !

 

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