चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

Chudai Ka Aashram Part 5 – Hindi Sex kahani

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

मैं बाथरूम चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया. वैसे दरवाज़ा बंद करने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी मैं बेशर्मी से काजल को अपना नंगा बदन दिखा चुकी थी. पैंटी उतारकर मैंने अपने को पानी से साफ किया. और फिर टॉवेल से बदन पोंछ लिया. उसके बाद कमर में टॉवेल लपेटकर ऐसे ही बाथरूम से बाहर आ गयी.

“ऊइईइईइईइई …………”

मैं तो इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी की कमरे में काजल के सिवा कोई और भी हो सकता है. इसलिए मैंने अपनी चूचियाँ भी नहीं ढकी थीं और कमर में लापरवाही से टॉवेल लपेट के बाथरूम से बाहर आ गयी. टॉवेल भी मैंने ठीक से नहीं लपेटा था क्यूंकी अभी तो काजल के सामने मैं सिर्फ़ पैंटी में ही थी तो उससे क्या शरमाना. मेरा पूरा ऊपरी बदन और जांघों से नीचे का हिस्सा पूरा नंगा था. ऐसी हालत में एक हाथ में पैंटी पकड़े मैं लापरवाही से बाथरूम से बाहर आ गयी तो कमरे में क्या देखती हूँ ?

कमरे का दरवाज़ा खुला था और वहां काजल नहीं थी बल्कि मेरे सामने एक 35 – 40 बरस का आदमी बाल्टी लिए खड़ा था , जो नौकर लग रहा था. उसे अपने सामने खड़ा देखकर मैं अवाक रह गयी. मैंने तुरंत अपने दोनों हाथों से अपनी बड़ी चूचियाँ ढकने की कोशिश की. हथेलियों से सिर्फ़ निप्पल और उसके आस पास का हिस्सा ही ढक पा रहा था पर इस हड़बड़ाहट की वजह से हल्के से लिपटा हुआ मेरा टॉवेल खुलकर फर्श में गिर गया. अब मेरे बदन में एक भी कपड़ा नहीं था और मेरी बालों से ढकी हुई चूत उस नौकर के सामने नंगी हो गयी . वो नौकर हक्का बक्का होकर मुझे उस पूरी नंगी हालत में देख रहा था.

नौकर – अरे अरे ……. मैडम.

मैं तुरंत नीचे झुकी और टॉवेल उठाने लगी. मैं फिर से अपनी चूत ढकने के लिए टॉवेल लपेटने लगी तो मेरे दाएं हाथ में पकड़ी हुई पैंटी नीचे गिर गयी. मैंने उस पर ध्यान नहीं देना चाहिए था क्यूंकी सामने खड़े नौकर ने मेरा पूरा नंगा बदन अच्छे से देख लिया था. लेकिन हुआ ये की जैसे ही मैंने फर्श से टॉवेल उठाकर जल्दी से अपनी चूत के आगे लगाया तो पैंटी मेरे हाथ से फिसल गयी. मैंने टॉवेल लपेटना छोड़कर पैंटी को हवा में ही पकड़ने की कोशिश की. 

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असल में उस अंजान आदमी के सामने पूरी नंगी होने से मैं इतना घबरा गयी थी की सब गड़बड़ कर दिया. पैंटी पकड़ने की कोशिश में मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं घुटनों के बल फर्श में गिर गयी. मेरे हाथ से टॉवेल छिटक गया और एक बार फिर से मैं उस नौकर के सामने पूरी नंगी हो गयी.

अब तक वो नौकर आँखें फाड़े मुझे देख रहा था पर इससे पहले की मैं उठ पाती , वो मेरी मदद को आगे आया. पहली बार मैंने ध्यान से उसे देखा. वो काला कलूटा , बदसूरत सा लेकिन मजबूत बदन वाला था. उसने नीले रंग की कमीज़ और सफेद धोती पहनी हुई थी और वो शायद बाथरूम साफ करने वहाँ आया था.

नौकर – मैडम …ध्यान से….

वो आगे झुका और मेरा कंधा पकड़ लिया. मेरी हालत उस समय बहुत बुरी थी. मैं अपने घुटनों के बल फर्श में बैठी हुई थी , कपड़े का एक टुकड़ा भी मेरे बदन में नहीं था, मेरी बड़ी चूचियाँ पूरी नंगी लटक रही थीं और एक अंजान नौकर मेरे नंगे कंधे को पकड़े हुए था.

उसके मेरे नंगे बदन को छूते ही मुझे करेंट सा लगा. मैंने तुरंत उसका हाथ झटक दिया और अपनी नंगी चूचियों को टॉवेल से ढककर उठ खड़ी हुई और बाथरूम में भाग गयी. पीछे मुड़ने से नौकर के सामने अब मेरी बड़ी गांड नंगी थी पर मेरे पास सोचने का समय नहीं था और मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर दिया.

ये सब कुछ अचानक और बहुत जल्दी से हो गया था पर मैं इतनी शर्मिंदगी महसूस कर रही थी की हाँफने लगी थी की जैसे कितना जो दौड़कर आई हूँ. मुझे नॉर्मल होने में कुछ वक़्त लगा . फिर मुझे होश आया की अब क्या करूँ ? पहनने के लिए तो मेरे पास कुछ है ही नहीं. मेरे पास सिर्फ़ एक छोटा सा टॉवेल और एक गीली पैंटी थी. मैंने दरवाज़े पे कान लगाए की शायद काजल कमरे में वापस आ गयी हो पर उसकी कोई आवाज़ मुझे नहीं सुनाई दी. कुछ पल ऐसे ही बीत गये फिर नौकर ने आवाज़ लगाई.

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नौकर – मैडम, मुझे बाथरूम , टॉयलेट साफ करना है. जल्दी से कपड़े पहन लो. मुझे और भी काम है.

“रूको , रूको.”

अब मेरा बदन काँपने लगा था क्यूंकी मुझे समझ ही नहीं आ रहा था की मैं कैसे इस मुसीबत से बाहर निकलूँ ? मैंने बाथरूम में इधर उधर देखा शायद काजल के कोई कपड़े रखे हों. हुक्स में कोई भी कपड़े नहीं टंगे थे पर एक बाल्टी में पड़े हुए कुछ कपड़े मुझे दिख गये. मैंने बाल्टी में हाथ डालकर वो कपड़े बाहर निकाले . उसमें सिर्फ़ एक ब्रा , एक पैंटी , एक चुन्नटदार स्कर्ट और एक मुड़ा तुड़ा टॉप था. मैं बाथरूम में बिल्कुल नंगी खड़ी थी तो मेरे पास कोई और चारा नहीं था. मैंने उन्हीं कपड़ों को पहनने का फ़ैसला किया.

नौकर – मैडम , मैं कितनी देर तक खड़ा रहूँगा ?

अब ये नौकर मुझे इरिटेट कर रहा था. मैंने गुस्से से उसे जवाब दिया.

“या तो एक बार काजल को बुला दो या फिर इंतज़ार करो.”

नौकर – मैडम, काजल तो सेठजी के किसी काम से नीचे गयी है.

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अब तो मैं बुरी फँस गयी थी. अगर मैं गुप्ताजी को बुलाती हूँ तो वो इस हालत में देखकर मुझसे मज़ा लिए बिना छोड़ेगा नहीं. नंदिनी ज़रूर मेरी मदद कर सकती थी लेकिन अभी वो यज्ञ में बिज़ी थी. अगर मैं इस नौकर से अपने कपड़े मांगू तो इससे मुसीबत भी हो सकती है क्यूंकी तब इसे पता चल जाएगा की मेरे पास पहनने को बाथरूम में कोई कपड़े नहीं हैं. इन सब विकल्पों पर सोचने के बाद मैंने जो है उसी को पहनने का मन बनाया.

सबसे पहले तो मैंने अपनी पैंटी पहन ली जो थोड़ी गीली थी लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं था. मैंने पैंटी के सिरों को पकड़कर अपने बड़े नितंबों के ऊपर फैलाने की कोशिश की ताकि ज़्यादा से ज़्यादा ढक जाए. फिर मैंने काजल की ब्रा पहनने की कोशिश की लेकिन वो छोटे साइज़ की थी और ब्रा के कप भी छोटे थे. मेरी बड़ी चूचियाँ ब्रा कप में ठीक से नहीं आयीं पर जितना ढक गया अभी उतना भी बहुत था. मैंने ब्रा के स्ट्रैप्स कंधों पर डाल लिए और पीठ पर हुक नहीं लगा तो ऐसे ही रहने दिया.

उसके बाद मैंने काजल की स्कर्ट उठाई. ये एक चुन्नटदार स्कर्ट थी और खुशकिस्मती से छोटी नहीं थी. मैंने इसे पहना तो मेरे घुटने तक लंबी थी लेकिन समस्या ये थी की इसकी कमर मेरे लिए छोटी हो रही थी. इसलिए बटन लग नहीं रहा था और मेरे बड़े नितंबों पर टाइट भी हो रही थी लेकिन मैंने सोचा की बाहर निकलकर तो अपने कपड़े पहन ही लूँगी.

अब मुझे अपनी नंगी छाती को ढकना था. मैंने काजल का टॉप बाल्टी से निकाला, वो मुड़ा तुड़ा हुआ था तो मैंने उसे सीधा करने की कोशिश की. वो शायद लंबे समय से बाल्टी में पड़ा था इसलिए सीधा नहीं हो रहा था. मैंने उसमें अपनी बाँहें डालने की कोशिश की तो मुझे पता लगा की ये तो मेरे लिए बहुत टाइट है और बहुत छोटा भी. मेरे जैसी भरे पूरे बदन वाली औरत के लिए वो टॉप पूरी तरह से अनफिट था. मैंने उसे फिर से बाल्टी में डाल दिया और टॉवेल को फैलाकर अपनी चूचियों को ढक लिया.

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नौकर – मैडम, क्या दिक्कत है ? सेठजी को बुलाऊँ क्या ?

“नहीं नहीं. किसी को बुलाने की ज़रूरत नहीं. मैं आ रही हूँ.”

मैंने सोचा इससे कहूं या नहीं, फिर सोचा कह ही देती हूँ.

“एक काम करो. कमरे का दरवाज़ा लॉक कर दो.”

नौकर – क्यूँ मैडम ?

“असल में…वो क्या है की ….मेरा मतलब मेरे पास बाथरूम में साड़ी नहीं है.”

नौकर – हाँ मैडम. आपकी साड़ी तो यहाँ बेड पर है.

“हाँ. दरवाज़ा बंद कर दो और मुझे बताओ.”

नौकर – मैडम ये बाकी कपड़े भी आपके ही होंगे क्यूंकी मुझे पता है की ये काजल दीदी के तो नहीं हैं.

मैं सोच रही थी की इस आदमी की बात का क्या जवाब दूँ. उसने ज़रूर मेरी साड़ी के साथ रखे हुए मेरे ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा को देख लिया होगा.

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नौकर – आपके सारे कपड़े तो यहीं दिख रहे हैं तो फिर बाथरूम में क्या ले गयी हो ?

“असल में मैं उनको ले जाना भूल गयी थी लेकिन…”

मैं अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी की उसने टोक दिया. वो बहुत बातूनी आदमी लग रहा था लेकिन मुझे उसकी बातों से इरिटेशन हो रही थी और एंबरेसमेंट भी.

नौकर – ओहो… अब मुझे समझ आया की जब मैंने आपको देखा था तब आपने कपड़े क्यूँ नहीं पहने थे. लेकिन मैडम, आपको ध्यान रखना चाहिए. हमेशा दरवाज़ा लॉक करना चाहिए. किसी को पता नहीं चलेगा की आप …..बिल्कुल नंगी हो.

वो थोड़ा रुका फिर बोलने लगा.

नौकर – लेकिन मैडम, एक बात बताऊँ …..एक सेकेंड रूको, दरवाज़े के पास आता हूँ.

एक पल के लिए शांति रही फिर उसकी आवाज़ मेरे बिल्कुल नज़दीक़ से आई. मुझे पता चल गया की वो बाथरूम के दरवाज़े से चिपक के खड़ा है और वो धीमी आवाज़ में बोल रहा था.

नौकर – मैडम, मैं आपको एक राज की बात बता रहा हूँ. जैसे मैंने आपको देखा अगर वैसे सेठजी ने देख लिया होता तो वो आपको आसानी से नहीं जाने देता. उसका चरित्र अच्छा नहीं है. वो विकलांग ज़रूर है पर बहुत चालाक है. मैडम, ध्यान रखना.

कुछ पल रुककर फिर बोलने लगा.

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नौकर – काजल दीदी भी अपने कमरे में बहुत कम कपड़े पहनती है पर फिर भी आपकी जैसी नहीं मैडम. आप तो बिल्कुल नंगी निकली बाथरूम से.

मेरे पास जवाब देने को कुछ नहीं था और मैं बाथरूम में शर्मिंदगी से खड़ी रही.

नौकर – मैडम फिर भी आपने मुझे देखकर अपने बदन को ढकने की कोशिश तो की. लेकिन काजल दीदी तो मेरे सामने अपने को ढकने की कोशिश भी नहीं करती है. ये लड़की अभी से बिगड़ चुकी है. मैं इस घर का नौकर हूँ अब इससे ज़्यादा क्या कह सकता हूँ.

मैं सोचने लगी कब तक ऐसे ही बाथरूम में खड़ी रहूंगी.

“अच्छा …”

नौकर – मैं आपको बता रहा हूँ मैडम, पर किसी को मत बताना. ना जाने कितनी बार मैंने काजल दीदी को बिना कपड़े पहने बेड में लेटे हुए देखा है.

“क्या..???”

नौकर – मेरा मतलब वो कुर्ता या नाइटी नहीं पहनी थी, सिर्फ़ ब्रा और स्कर्ट पहने हुई थी मैडम. मैं झाड़ू पोछा लगा रहा था और वो ऐसे ही बेड में लेटी थी. कभी कभी मैं जब बाथरूम साफ कर रहा होता हूँ तो वो मुझे कोई हिदायत देने आती है. आपको पता है मैडम की क्या पहन के आती है ?

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वो रुका और शायद मेरे पूछने का इंतज़ार कर रहा था. काजल के किस्से मैं सिर्फ उत्सुकता की वजह से सुन रही थी वरना जिस हालत में मैं थी उसमें तो अपनी इज़्ज़त बचाने के अलावा किसी और चीज़ में ध्यान लगाना मुश्किल था. 

“क्या पहन के ?”

नौकर – मैडम , काजल दीदी एक छोटा सा टॉप और एक चड्डी जैसी चीज़ पहन के आयी थी , जो लड़कियाँ शहर में अपनी स्कर्ट के अंदर पहनती हैं. मैं बार बार उसका नाम भूल जाता हूँ. मैडम आपने भी तो अपने हाथ में पकड़ी थी. क्या कहते हैं उसको ? 

“हाँ मैं समझ गयी बस. तुम्हें इसका नाम लेने की ज़रूरत नहीं है.”

नौकर – नहीं नहीं मैडम. एक बार बता दो. मैं भूल गया हूँ. असल में एक दिन मेरी घरवाली बोली की वो भी अपने घाघरे के अंदर इसको पहनना चाहती है, लेकिन मैंने मना कर दिया. ये सब शहर वालों के फैशन हैं. मैडम ? इसका नाम कुछ प से कहते हैं, है ना ? पा …पा…..?

“पैंटी..”

नौकर – हाँ मैडम , पैंटी….. पैंटी…… मैं इसका नाम भूल जाता हूँ. पता नहीं क्यूँ. 

मैं सोच रही थी की अब फिर से इसे बोलूं की कमरे का दरवाज़ा बंद कर दे ताकि मैं बाथरूम से बाहर निकलूं लेकिन इसका मुँह ही बंद नहीं हो रहा था.

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नौकर – लेकिन मैडम, ये तो इतनी छोटी सी होती है , मुझे समझ नहीं आता की आप लोग इसे पहनते ही क्यूँ हो ? मैडम, सेठानी भी इसे पहनती है. जब वो इसे धोने के लिए देती है तो मेरी हँसी नहीं रुकती.

“क्यूँ ?”

धीरे धीरे मुझे उसकी बातों में इंटरेस्ट आ रहा था इसलिए मेरे मुँह से अपनेआप ‘क्यूँ’ निकल गया. फिर मुझे लगा की बेकार ही पूछ बैठी क्यूंकी जवाब तो जाहिर था.

नौकर –मैडम, आपने तो सेठानी को देखा ही होगा. क्या गांड है उसकी. ये छोटी सी चीज़ क्या ढकेगी मैडम ? ना गांड , ना चूत.

उसने बड़े आराम से बातचीत में ऐसे अश्लील शब्द बोल दिए , मैं तो शॉक्ड रह गयी और दरवाज़े के पीछे अवाक खड़े रही. मैंने अपने मन को ये सोचकर दिलासा देने की कोशिश की, कि ये तो लोवर क्लास आदमी है तो ऐसे शब्द बोलने का आदी होगा. मैंने इसे इग्नोर करने की कोशिश की लेकिन एक मर्द के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर मेरे बदन में सिहरन सी दौड़ गयी.

मुझे शरम भी आ रही थी और इरिटेशन भी हो रही थी कि एक अंजान आदमी, वो भी घर का नौकर, मुझसे ऐसी भाषा में बात कर रहा है. जब मैं शादी के बाद अपनी ससुराल आई तो खुशकिस्मती से वहाँ कोई मर्द नौकर नहीं था लेकिन शादी से पहले मेरे मायके में एक नौकर था पर बोलचाल में मैंने कभी उसके मुँह से ऐसे अश्लील शब्द नहीं सुने. वैसे उसका बोलना ठीक ठाक था लेकिन रवैया ठीक नहीं था. मुझे याद है की जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तो कई बार उसने मुझसे छेड़छाड़ की थी लेकिन वो हमारे घर का पुराना नौकर था इसलिए मैं कभी भी उसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

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मैंने सोचा ये नौकर लोग ऐसे ही होते हैं और इस आदमी के अश्लील शब्दों को वैसे ही इग्नोर करने की कोशिश की जैसे मैं अपनी मम्मी के घर पे नौकर की छेड़छाड़ को इग्नोर किया करती थी. 

अब मुझे बाथरूम से बाहर आना था लेकिन जब मैंने अपने को देखा तो मेरे ऊपरी बदन में टॉवेल था और निचले बदन में काजल की टाइट स्कर्ट थी, और मैं ऐसे बहुत कामुक लग रही थी. अगर कोई भी मुझे इस हालत में देख लेता तो मेरे बारे में बहुत ग़लत सोचता. इसलिए मैंने फिर से दरवाज़ा बंद करने के लिए कहा.

“तुमने दरवाज़ा बंद कर दिया ?”

नौकर – नहीं मैडम. अभी करता हूँ.

मैंने दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ सुनी और थोड़ी राहत महसूस की.

नौकर – मैडम मैंने दरवाज़ा तो बंद कर दिया है पर आप बाहर कैसे आओगी ? आपके सारे कपड़े तो बेड में पड़े हैं.

“तुम्हें उसकी फिकर करने की कोई ज़रूरत नहीं.”

नौकर – मैडम, आप वैसे ही बाहर आओगी जैसे पहले आयी थी ? मुझे तो भगवान का शुक्रिया अदा करना पड़ेगा.

“क्या बकवास कर रहे हो. मतलब क्या है तुम्हारा ?”

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उसके बेहूदे सवाल से मेरा धैर्य समाप्त हो गया और मैं बाथरूम का दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गयी. मैंने ख्याल किया की मुझे देखकर उस नौकर की आँखों में चमक सी आ गयी और वो मेरे चेहरे की तरफ नहीं देख रहा था बल्कि मेरे बदन को घूर रहा था. वो इतनी बेशर्मी से हवस भरी निगाहों से मुझे घूर रहा था की असहज महसूस करके मैंने अपनी नजरें झुका लीं . वो स्कर्ट मेरी मांसल जांघों पर टाइट हो रही थी इसलिए मैं ठीक से नहीं चल पा रही थी. मैंने बाएं हाथ से कमर पे स्कर्ट को पकड़ रखा था क्यूंकी स्कर्ट का बटन टाइट होने से नहीं लग पा रहा था.

नौकर – आआहा….मैडम आप तो बिल्कुल करीना कपूर लग रही हो.

मैंने उसकी बात को इग्नोर किया और बेड की तरफ जाने लगी जहाँ मेरे कपड़े रखे थे. मुझे मालूम था की मेरी पीठ नंगी है और ब्रा का हुक ना लग पाने से ब्रा के स्ट्रैप पीठ में लटक रहे हैं इसलिए मैंने ऐसे चलने की कोशिश की ताकि मेरी नंगी पीठ इस नौकर को ना दिखे. लेकिन पलक झपकते ही सारा माजरा बदल गया.

नौकर – कहाँ जा रही है रानी ?

अचानक वो मेरा रास्ता रोककर खड़ा हो गया. उसकी इस हरकत से मैं हक्की बक्की रह गयी और मेरे बाएं हाथ से स्कर्ट फिसल गयी . मैंने जल्दी से स्कर्ट को पकड़ लिया पर उस कमीने ने मौके का फायदा उठाया और मेरे दाएं हाथ से टॉवेल छीन लिया जिससे मैंने अपनी छाती ढक रखी थी. अब फिर से मेरी छाती नंगी हो गयी हालाँकि चूचियाँ थोड़ा बहुत काजल की ब्रा से ढकी थीं पर हुक ना लग पाने से ब्रा भी खुली हुई ही थी. 

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“ये क्या बेहूदगी है ? मुझे टॉवेल दो नहीं तो मैं शोर मचा दूँगी.”

नौकर – तू शोर मचाना चाहती है रानी ? ठीक है.

उसने अचानक मेरी बायीं कलाई पकड़ी और मरोड़ दी. मेरे हाथ से स्कर्ट छूट गयी और फर्श में गिर गयी. 

नौकर – अब मचा शोर. मैं देखना चाहता हूँ अब कितना शोर मचाती है मेरी रानी. शोर मचा.

अचानक हुए इस घटनाक्रम से मैं हक्की बक्की रह गयी और उस नौकर के सामने अवाक खड़ी रही. मेरी हालत ऐसी थी जैसे की मैं बिकिनी में खड़ी हूँ. काजल की ब्रा से मेरी बड़ी चूचियों का सिर्फ़ ऐरोला और निप्पल ही ढक पा रहा था. मैंने अपनी बाँहों से चूचियों को ढकने की कोशिश की. 

नौकर – क्या हुआ मैडम ? शोर मचा. सबको आने दे और देखने दे की तेरे पास दिखाने को क्या क्या है.

मेरे बदन में सिहरन दौड़ गयी. मुझे समझ आ गया था की मैं फँस चुकी हूँ. मैं सिर्फ़ अंडरगार्मेंट्स में खड़ी थी , इसलिए शोर भी नहीं मचा सकती थी. मेरा दिमाग़ सुन्न पड़ गया और मैं नहीं जानती थी की क्या करूँ ? कैसे इस मुसीबत से बाहर निकलूं ? मैं खुली हुई छोटी ब्रा और गीली पैंटी में , अपनी चूचियों को ढकने के लिए बाँहें आड़ी रखे हुए, उस नौकर के सामने खड़ी रही.

नौकर – शोर मचा ? अब क्या हुआ ? साली रंडी.

उस नौकर के मुँह से अपने लिए ऐसा घटिया शब्द सुनकर अपमान से मेरी आँखों में आँसू आ गये. आज तक कभी भी किसी ने मेरे लिए ये शब्द इस्तेमाल नहीं किया था. इस लो क्लास आदमी के हाथों ऐसे अपमानित होकर मैं बहुत असहाय महसूस कर रही थी.

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नौकर – जैसा मैं कहता हूँ वैसा कर. नहीं तो मैं शोर मचा दूँगा और सबको यहाँ बुला लूँगा. समझी ?

वो बहुत कड़े और रूखे स्वर में बोला. उससे झगड़ने की मेरी हिम्मत नहीं हुई. मैं अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए उससे विनती करने लगी.

“प्लीज़ मुझे छोड़ दो. मुझसे ऐसा बर्ताव मत करो. मैं किसी की पत्नी हूँ.”

नौकर – तो फिर अपने मर्द के सामने नंगी घूम. यहाँ क्यूँ ऐसे घूम रही है ?

“मेरा विश्वास करो. मुझे नहीं मालूम था की तुम कमरे में हो.”

नौकर – चुप साली. गुरुजी अपने साथ ऐसी हाइ क्लास रंडी रखते हैं ? क्या मखमली बदन है साली का.

उसकी बात सुनकर मैंने अपमान से आँखें बंद कर लीं और जबड़े भींच लिए. अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर पायी. मेरे गालों में आँसू बहने लगे. कोई और रास्ता ना देखकर मैं भगवान से प्रार्थना करने लगी.

नौकर – नाटक करके मेरा समय बर्बाद मत कर. तू तो बहुत खूबसूरत बदन पायी है. पैंटी उतार और चूत दिखा मुझे साली.

“प्लीज़ भैया. मैं उस टाइप की औरत नहीं हूँ. मुझ पर दया करो प्लीज़.”

नौकर – साली , भैया बोलना अपने मर्द को. अब नखरे मत कर. उतार फटाफट.

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ऐसा कहकर वो एक कदम आगे बढ़ा. मैं इतना डर गयी की उसके आगे समर्पण कर दिया.

“अच्छा, अच्छा , मैं ….”

मैंने हिचकिचाते हुए अपनी छाती से बाँहें हटाई और मैं अच्छी तरह से समझ रही थी की ये आदमी मुझे फिर से नंगी देखना चाहता है. वो मेरे लिए होपलेस सिचुयेशन थी और उसकी इच्छा पूरी करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मेरे गालों में आँसू बह रहे थे और मैंने दोनो हाथों से पैंटी के एलास्टिक को पकड़ा और नीचे करने लगी. मैं शरम से नजरें झुकाए हुई थी और वो कमीना अपनी धोती में लंड पकड़े हुए मेरे सामने खड़ा था.

मैं सोचने लगी जब से इस आश्रम में आई हूँ , किसी ना किसी वजह से कितनी बार मुझे पैंटी उतारनी पड़ी है. मैं आगे की भी सोच रही थी. क्यूंकी ये तो तय था की मुझे नंगी करने के बाद ये आदमी मुझे बेड में जाने के लिए मजबूर करेगा और फिर मुझे चोदने की कोशिश करेगा. फिर मैं क्या करूँगी ? क्या मैं चिल्लाऊँगी ? लेकिन अगर गुप्ताजी , नंदिनी और गुरुजी मुझे इस नौकर के साथ नंगी देखेंगे तो मेरे बारे में क्या सोचेंगे ?

नौकर – क्या चूत है तेरी रानी.

मैं यही सब सोच के उलझन में थी और समझ नहीं पा रही थी की अपने को कैसे बचाऊँगी तभी अचानक एक झटका सा लगा और उसके टाइट आलिंगन से मैं बेड में गिर पड़ी. इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती , मैं बेड में गिरी हुई थी और वो मेरे ऊपर था.

“कमीने छोड़ दे मुझे…”

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मैं आगे कुछ नहीं बोल पायी क्यूंकी उसने मेरे मुँह में अपना गंदा रुमाल ठूंस दिया. उसके बदन से आती हुई बदबू से मुझे मतली हो रही थी और उस गंदे रुमाल से मेरा दम घुटने को हो गया. मेरी आँखें बाहर निकल आयीं और उसके मजबूत बदन के नीचे दबी हुई मैं उसका विरोध करने लगी. अपने दाएं हाथ से उसने मेरे मुँह में इतनी अंदर तक वो रुमाल घुसेड़ दिया की मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी.

अब उसने अपना दायां हाथ मेरे मुँह से हटाया और दोनो हाथों से मेरे हाथों को पकड़कर दबा दिया और मेरे पेट में बैठ गया. मैं अपनी नंगी टाँगों को हवा में पटक रही थी लेकिन मुझे समझ आ गया था की कुछ फायदा नहीं क्यूंकी मैं उसके पूरे कंट्रोल में थी और हाथों को हिला भी नहीं पा रही थी.

मैं अपना सर भी इधर उधर पटक रही थी और मुँह से जीभ निकालने की कोशिश कर रही थी ताकि रुमाल बाहर निकल जाए लेकिन कमीने ने इतना अंदर डाल रखा था की जल्दी ही मुझे समझ आ गया की बेकार में ही कोशिश कर रही हूँ.

नौकर – रानी , अब क्या करेगी ?

मैंने उस कमीने से आँखें मिलाने से परहेज़ किया , मैं बेड में लेटी हुई थी और वो मेरे ऊपर बैठा हुआ था. अब मेरे बदन में कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था क्यूंकी उसने मेरी ब्रा भी फर्श में फेंक दी थी. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था की इस नौकर के हाथों मेरी ऐसी दशा हो गयी है. अब उसने अपने एक हाथ से मेरी दोनों कलाई पकड़ लीं और दूसरे हाथ से मेरे गुप्तांगो को छूने लगा.

पहले भी बचपन में एक नौकर ने मेरी असहाय स्थिति का फायदा उठाया था वही आज भी हो रहा था. तब भी मेरे मन में घृणा और नफरत की भावनाएं आयीं थी और आज भी वही भावनाएं मेरे मन में आ रही थीं.

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मेरे नंगे बदन के साथ छेड़छाड़ करने से वो बहुत कामोत्तेजित हो गया. लेकिन उसने एक हाथ से मेरी कलाईयों को पकड़ा हुआ था इसलिए एक ही हाथ खाली होने से वो मनमुताबिक पूरी तरह से मेरे बदन से नहीं खेल पा रहा था और मुझे चोद नहीं पा रहा था. मैं भी अपनी भारी जाँघों से उसको लात मारने की कोशिश कर रही थी. उसका ज़्यादातर समय मेरे विरोध को रोकने की कोशिश में बर्बाद हो रहा था. अब वो मेरी रसीली चूचियों को एक एक करके मसलने लगा और उसने मेरे कड़े निपल्स को बहुत ज़ोर से मरोड़ दिया. फिर वो अचानक से मेरी छाती पे झुका और मेरे निप्पल को मुँह में भरकर चूसने और काटने लगा.

“मम्म्म…”

मैं और कोई आवाज़ नहीं निकाल पायी क्यूंकी उसके गंदे रुमाल ने मेरा मुँह बंद कर रखा था. लेकिन अगर कोई मर्द किसी औरत के निप्पल चूसे तो औरत को उत्तेजना आ ही जाती है. मेरी टाँगें अपनेआप खुल गयीं और उसके बदन के नीचे मैं बेशर्मी से कसमसाने लगी. उसका पूरा वज़न मेरे ऊपर था और अब उसका खड़ा लंड धोती से बाहर निकलकर मेरे नंगे पेट में चुभने लगा. उसके बदन से आती बदबू से मेरा दम घुटने लगा था और मुझे समझ आ गया था की अब ये मेरा रेप करने ही वाला है. असहाय होकर मेरी आँखों से आँसुओं की धार बहने लगी और मैं मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी . हे भगवान ! मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ. मुझे इस कमीने से बचा लो.

खट …खट……

दरवाज़े पर खटखट होते ही नौकर हड़बड़ा गया और पीछे मुड़कर दरवाज़े की तरफ देखने लगा. मेरी तो जैसे जान में जान आई.

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खट …खट……

काजल – आंटी….आंटी…..

काजल की आवाज़ सुनते ही मैं खुश हो गयी और मेरे दिल में बहुत राहत महसूस हुई जैसे की मुझे नयी जिंदगी मिली हो.

नौकर – मैडम , अगर तुमने मेरे बारे में किसी से कुछ कहा तो मैं भी कह दूँगा की ये ऐसी ही औरत है. समझ लो.

मैंने अपनी आँखों से उसे इशारा किया की मेरे मुँह से रुमाल निकाल दे. उसने मेरे मुँह से रुमाल निकाल दिया. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं कितने समय बाद ठीक से सांस ले पा रही हूँ. फिर उसने मेरे हाथ भी छोड़ दिए और मेरे ऊपर से उठ गया.

चटा$$$$$$$$$$$कक………

उसकी पकड़ से छूटकर खड़े होते ही पहला काम मैंने यही किया. जो की उस नौकर के लिए मेरे मन में घृणा , गुस्से और नफ़रत का नतीज़ा था. उसने अपने गाल पर पड़ा मेरा जोरदार तमाचा सहन कर लिया और अपने दाँत भींच लिए. मैंने बेड से साड़ी उठाकर अपने नंगे बदन में लपेट ली. ऐसा लग रहा था की मैं ना जाने कब से नंगी हूँ और साड़ी से बदन ढककर सुकून मिला.

नौकर – मैडम, तुम टॉयलेट में चली जाओ. मैं कह दूँगा की तुम टॉयलेट गयी हो और मैं कमरा साफ कर रहा हूँ.

“तुझे जो कहना है कह देना. कमीना कहीं का.”

वो बहुत फ्रस्टरेट दिख रहा था. मुझे ना चोद पाने की निराशा से उसका चेहरा लटक गया था. मैंने जल्दी से पैंटी पहनी और फिर ब्रा पहन ली.

खट …खट……

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

अभी तक मुझसे ज़ोर ज़बरदस्ती करने वाला वो आदमी , काजल की आवाज़ सुनकर, अब फिर से नौकर बन गया था और चुपचाप खड़ा था. मैंने उसे दरवाज़े की तरफ धकेला और ब्लाउज और पेटीकोट लेकर टॉयलेट में भाग गयी. 

नौकर – काजल दीदी, एक सेकेंड रूको. अभी खोलता हूँ.

नौकर ने दरवाज़ा खोल दिया. काजल ने उससे ज़्यादा पूछताछ नहीं करी की दरवाज़ा क्यूँ बंद था वगैरह. कुछ देर बाद कपड़े पहनकर मैं टॉयलेट से बाहर आ गयी. अब वहाँ काजल अकेली कमरे में थी और उस कमीने का कोई अता पता नहीं था.

काजल – आंटी, मम्मी को कितना वक़्त और लगेगा ?

“ अब तो पूरा होने वाला ही होगा. फिर तुम्हें बुलाएँगे.”

वो कुछ मैगजीन्स ले आई थी , जो उसने मुझे दे दी. फिर उसने टीवी ऑन करके फिल्मी गानों का चैनल लगा दिया. मैगजीन्स और टीवी देखने में मेरा बिल्कुल मन नहीं लग रहा था. इनके नौकर ने मेरे साथ जो बेहूदा बर्ताव किया था बार बार मेरे मन में वही घूम रहा था. मैंने सोचा भी ना था की गुरुजी की सहायता करने गुप्ताजी के घर आना मेरे लिए इतना डरावना और बेइज्जत करने वाला अनुभव साबित होगा. 

ऐसा ही लज्जित करने वाला अनुभव तब भी हुआ था जब मैं स्कूल पढ़ती थी. उन दिनों हमारे घर के नौकर के मेरे बदन से छेड़छाड़ करने पर भी मैं चुप रही थी और आज जब इनके नौकर ने मेरे रेप की कोशिश की थी तब भी मुझे चुप रहना पड़ रहा था. 

काजल मेरी हालत से बेख़बर होकर टीवी देख रही थी और मैं यूँ ही बिना पढ़े मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी . जो कुछ मेरे साथ अभी हुआ था उससे मेरा मन स्कूल के उन दिनों में चला गया.

फ्लैशबैक –

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

उन दिनों मैं स्कूल पढ़ती थी और मेरी उमर तब 18 की होगी. मम्मी को लगता था की कोई उनकी लड़की से छेड़छाड़ ना कर दे इसलिए वो हमारे नौकर को मुझे लाने भेजती थी. उसका नाम नटवर था और वो तब 36 – 37 बरस का रहा होगा. पहले तो हम पैदल चलकर घर वापिस आते थे बाद में मम्मी ने रिक्शा करवा दिया. लेकिन मम्मी को क्या पता था की रास्ते के लफंगे तो सिर्फ़ भद्दे कमेंट्स ही करते थे लेकिन जिसे वो मेरी सेफ्टी के लिए भेज रही हैं उससे अपने को बचाना ही मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा.

पहले पहल सब ठीक ठाक रहा पर जब बारिश का मौसम आया तो मेरे लिए मुसीबत हो गयी. हमारे इलाक़े में बारिश के मौसम में रिक्शा में एक पॉलिथीन कवर लगा होता था जो पैसेंजर के सर से आगे तक ढका रहता था और साइड्स में खुला रहता था. जब बारिश का मौसम शुरू हुआ तो रिक्शा में नटवर मुझसे सटकर बैठने लगा क्यूंकी साइड्स से बारिश की बूंदे आती थीं. मैंने बुरा नहीं माना क्यूंकी बारिश से बचने के लिए उसका ऐसा करना स्वाभाविक था.

मैं रिक्शा में बैठकर स्कूल बैग अपनी गोद में रख लेती थी. लेकिन अब नटवर बहाने बहाने से मुझसे बैग लेने की कोशिश करता और कभी कहता तुम आराम से बैठो या कभी कहता, बैग तुम्हारे लिए भारी हो रहा है , लाओ मैं पकड़ता हूँ. मैं उसे बैग नहीं देती थी और उसका भी एक कारण था.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

हम लड़कियों का एक स्वाभाव होता है की जब हमने ऐसी ड्रेस पहनी होती है जो हमारी टाँगों को पूरा नहीं ढकती , जैसे की स्कर्ट , तो हम बैग को अपनी गोद में रख लेती हैं , जिससे हमारे सबसे नाज़ुक भाग में एक दोहरा सेफ्टी कवर हो जाता है वरना हमें स्कर्ट के ऊपर जांघों में हाथ रखना पड़ता है जो की थोड़ा अजीब सा लगता है. लेकिन अब नटवर बैग लेने के लिए कुछ ज़्यादा ही ज़ोर देने लगा था ख़ासकर की शुक्रवार(फ्राइडे) के दिनों में.

तब मुझे उसके गंदे इरादों के बारे में अंदाज़ा नहीं था. असल में शुक्रवार के दिन हमारी पीटी क्लास होती थी और मैं पीटी ड्रेस पहनकर स्कूल जाती थी. पीटी ड्रेस और दिनों की तरह ही थी , स्कर्ट और टॉप , पर एक अंतर ये था की स्कूल स्कर्ट घुटनों से नीचे तक थी पर पीटी स्कर्ट छोटी होती थी और घुटनों तक ही थी. चूँकि मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी इसलिए स्कूल में कोई परेशानी नहीं थी लेकिन आते जाते समय रास्ते में ध्यान रखना पड़ता था.

क्यूंकी पीटी स्कर्ट का कपड़ा भी थोड़ा हल्का था , कभी तेज हवा चल रही होती थी तो स्कर्ट उठ जाने से पैंटी दिख जाती थी. मेरी मम्मी शुक्रवार को हमेशा मुझे कहा करती थी की रश्मि, अपनी ड्रेस का ध्यान रखना. मेरी कुछ फ्रेंड्स को-एड स्कूल में पढ़ती थीं लेकिन उनकी पीटी ड्रेस छोटी नहीं थी . शायद हमारा गर्ल्स स्कूल होने की वजह से मैनेजमेंट ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

इसीलिए मैं नटवर को स्कूल बैग नहीं देती थी क्यूंकी रिक्शा में बैठने के बाद स्कर्ट मेरी जांघों तक ऊपर उठ जाती थी.

असल में शुक्रवार के दिन हमारी पीटी क्लास होती थी और मैं पीटी ड्रेस पहनकर स्कूल जाती थी. पीटी ड्रेस और दिनों की तरह ही थी , स्कर्ट और टॉप , पर एक अंतर ये था की स्कूल स्कर्ट घुटनों से नीचे तक थी पर पीटी स्कर्ट छोटी होती थी और घुटनों तक ही थी. चूँकि मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी इसलिए स्कूल में कोई परेशानी नहीं थी लेकिन आते जाते समय रास्ते में ध्यान रखना पड़ता था.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

क्यूंकी पीटी स्कर्ट का कपड़ा भी थोड़ा हल्का था , कभी तेज हवा चल रही होती थी तो स्कर्ट उठ जाने से पैंटी दिख जाती थी. मेरी मम्मी शुक्रवार को हमेशा मुझे कहा करती थी की रश्मि, अपनी ड्रेस का ध्यान रखना. मेरी कुछ फ्रेंड्स को-एड स्कूल में पढ़ती थीं लेकिन उनकी पीटी ड्रेस छोटी नहीं थी . शायद हमारा गर्ल्स स्कूल होने की वजह से मैनेजमेंट ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

इसीलिए मैं नटवर को स्कूल बैग नहीं देती थी क्यूंकी रिक्शा में बैठने के बाद स्कर्ट मेरी जांघों तक ऊपर उठ जाती थी. लेकिन बारिश के मौसम में एक दिन मैं उसको बैग के लिए मना नहीं कर पायी. उस दिन तक तो उसको बारिश की वजह से रिक्शा में मुझसे सटकर बैठने का अवसर ही मिल पाता था लेकिन उस दिन पहली बार उसे छेड़छाड़ का मौका मिल गया.

वो फ्राइडे का दिन था और जब मैं स्कूल से बाहर निकली तो बहुत तेज बारिश हो रही थी. मैं छाता लेकर रिक्शा के पास आई. रिक्शा की सीट पर नटवर पहले से ही बैठा हुआ था. मुझे रिक्शा में चढ़ते समय छाता पकड़े होने की वजह से अपना बैग उसको देना पड़ा. उसने मेरा बैग पकड़ा और हाथ देकर मुझे रिक्शा में चढ़ा लिया. मेरे बैठते ही रिक्शा वाले ने पॉलिथीन कवर को फैला दिया. आज तेज बारिश हो रही थी तो नटवर ने उससे कहा की साइड्स से भी कवर कर दे. अब मैं हमारे नौकर के साथ उस चारो तरफ से बंद रिक्शा में बैठी थी और बारिश की बूंदे पॉलिथीन कवर में पड़ने से तेज आवाज़ हो रही थी और बाहर का कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था.

“नटवर भैय्या , मैं बैग रख लेती हूँ. तुम तकलीफ मत करो.”

नटवर – नहीं नहीं बेबी. आज मैं ही रख लेता हूँ. ये भीग गया है तो थोड़ा भारी भी हो गया है.

नटवर मुझे बेबी कह कर बुलाता था. मैंने सोचा सच ही कह रहा होगा क्यूंकी मेरा बैग वास्तव में भीग गया था.

“ठीक है नटवर भैय्या, आज तुम ही रख लो.”

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मैं मुस्कुरायी और मैंने देखा की उसने अजीब ढंग से मेरा बैग पकड़ा हुआ है. उसने अपनी गोद में बैग जांघों पर ना लिटाकर खड़ा करके रखा हुआ था और बैग के बाहर से छाती पर हाथ फोल्ड किए हुए थे. मुझे मन ही मन हँसी आई की इसने ऐसे बैग पकड़ा हुआ है. थोड़ी देर बाद पॉलिथीन कवर की दोनों तरफ की साइड्स से बारिश की बूंदे आने लगीं तो मुझे सीट पर नटवर की तरफ खिसकना पड़ा और वो भी थोड़ा मेरी तरफ खिसक गया. नतीजा ये हुआ की अब उसकी फोल्ड की हुई बायीं बाँह की अँगुलियाँ मेरी चूची को छूने लगी. रिक्शा को लगते हर झटके के साथ उसके बाएं हाथ की अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को छूने लगी . वो मेरी बायीं तरफ बैठा था और मुझे लगा सटकर बैठने की वजह से ऐसा हो रहा है.

फिर रिक्शा मेन रोड को छोड़कर गली में आ गया और रास्ता अच्छा ना होने से झटके ज़्यादा लगने लगे और बारिश की वजह से गली में पानी भर गया था तो स्पीड भी हल्की हो गयी थी. मैंने दाएं हाथ से रिक्शा को पकड़ा हुआ था और बाएं हाथ को पीटी स्कर्ट के ऊपर जाँघ पर रखा हुआ था. रास्ते भर नटवर की अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को छूते रहीं. जब मैं घर पहुँची तो मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था. मम्मी को चिंता हो रही थी की कहीं इतनी तेज बारिश से मैं भीग तो नहीं गयी लेकिन मेरा ध्यान अपनी चूचियों पर था क्यूंकी ब्रा के अंदर निप्पल एकदम कड़क होकर तन गये थे. 

वो तो बस शुरुवात थी और बारिश के दिनों में नटवर का यही रुटीन हो गया. धूप के दिन वो ऐसे नॉर्मल तरीके से व्यवहार करता था की मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोच पाती थी. फिर एक बारिश के दिन वो मेरी बायीं तरफ बैठा था. रिक्शा की साइड्स से बारिश की बूंदे आने लगीं तो मुझे उसकी तरफ खिसकना पड़ा. उस दिन स्कूल बैग मेरी गोद में ही रखा हुआ था. अब उसने अपना दायां हाथ मेरे पीछे सीट के ऊपर रख दिया. थोड़ी देर तक कुछ नहीं हुआ फिर रिक्शा को एक झटका लगा तो मैं उसकी तरफ झुक गयी , उसने अपने दाएं हाथ से मेरे कंधे को पकड़ लिया. फिर मैं सीधी हो गयी पर उसने अपना हाथ नहीं हटाया.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

बारिश की वजह से मुझे उससे सटकर बैठना पड़ रहा था और उसका हाथ मेरे दाएं कंधे पर था. फिर एक झटका लगा तो उसका हाथ मेरे कंधे से खिसकर मेरी बाँह पर आ गया और अगले झटके में और नीचे खिसककर मेरी कमर पर आ गया. उस दिन जब मैं रिक्शा से उतरने लगी तो उसने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ा जैसे मुझे नीचे उतरने में मदद कर रहा हो. तब तक तो मैं सहन ही करती थी और उसके छूने को इग्नोर कर देती थी

और कभी कभी जब उसका हाथ मुझे ज़्यादा ही महसूस होता था तब मुझे थोड़ा एंबरेसमेंट हो जाती थी . लेकिन जैसे जैसे दिन गुज़रते गये मुझे समझ आने लगा की ये नौकर बारिश की वजह से मेरी सटकर बैठने की मजबूरी का फायदा उठा रहा है और जानबूझकर मेरे बदन को छूने की कोशिश करता है. 

फिर लगातार दो दिनों तक कुछ ऐसा हुआ की मैं बहुत ही परेशान हो गयी और फिर मैंने रिक्शा में बैठना ही छोड़ दिया.

मुझे याद है की उस दिन थर्सडे था और मानसून की तेज बारिश हो रही थी

मुझे याद है की उस दिन थर्सडे था और मानसून की तेज बारिश हो रही थी. मैं छाता लेकर रिक्शा के पास आई तो नटवर रिक्शा में चढ़ गया और मुझसे स्कूल बैग देने को कहा. मैंने उसे अपना बैग पकड़ा दिया.

नटवर – ओह…..सीट तो गीली हो रखी है.

“नटवर भैय्या , ये रुमाल ले लो और सीट पोंछ दो.”

बारिश से सीट गीली हो गयी थी और नटवर ने रुमाल से उसे पोंछ दिया और सीट में बैठ गया. मैं रिक्शा में चढ़ गयी और जैसे ही सीट में बैठने को हुई उसने बड़ी अजीब सी बात कही.

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नटवर – बेबी, सीट अभी भी गीली ही है. अपनी स्कर्ट में मत बैठो, गीली हो जाएगी.

मैंने उसकी तरफ उलझन भरी निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे उसकी बात समझ नहीं आई.

नटवर – बेबी, जैसे फर्श में बैठती हो ना वैसे बैठो. उससे तुम्हारी स्कर्ट गीली नहीं होगी.

असल में हम लड़कियाँ जब फर्श या खुले में घास में बैठती हैं तो स्कर्ट को गोल फैलाकर बैठती हैं क्यूंकी उससे टाँगें अच्छे से ढकी रहती हैं. लेकिन यहाँ रिक्शा में एक आदमी के साथ ऐसे बैठना कुछ अजीब लग रहा था. मैं रिक्शा की सीट में बैठने को आधी झुकी हुई खड़ी थी और नटवर सीट में बैठा हुआ था. मैंने दोनों हाथों से स्कर्ट के कोनों को पकड़कर थोड़ा ऊपर उठाया और सीट में बैठ गयी. मेरी पीठ सीट की तरफ थी और नटवर सीट में बैठा हुआ था तो पीछे से मेरा स्कर्ट उठाकर सीट में बैठने का वो दृश्य देखना उसके लिए रोमांचित कर देने वाला रहा होगा. 

अब मैंने स्कर्ट को गोल फैलाकर अपनी टाँगों के ऊपर कर दिया. लेकिन सीट गीली होने से मेरी जाँघों के निचले हिस्से में गीलापन महसूस होने लगा और कुछ ही देर में मेरी पैंटी भी नीचे से गीली हो गयी. लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती थी इसलिए चुप बैठी रही. पर नटवर के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था.

नटवर – सीट तो अभी भी गीली लग रही है. मेरी पैंट गीली होने लगी है.

“हाँ, सीट थोड़ी गीली है पर क्या कर सकते हैं. चलेगा.”

मैंने बात को टालने की कोशिश की पर …….

नटवर – बेबी, कैसे चलेगा ? मेरे पैंट के अंदर कच्छा भी गीला होने लगा है और तुम कह रही हो की थोड़ी सी गीली है.

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रिक्शा चलते जा रहा था और मुझे समझ नहीं आ रहा था की नटवर की बात का क्या जवाब दूँ.

नटवर – बेबी अपना रुमाल दे दो. मैं फिर से पोंछ देता हूँ.

“लेकिन तुम सीट को पोछोगे कैसे ? हम तो बैठे हैं.”

मेरे मुँह से अपनेआप ये सवाल निकल गया और वो नौकर इसी बात को पूछने का इंतज़ार कर रहा था.

नटवर – मैं थोड़ा सा कमर ऊपर उठाऊँगा फिर तुम मेरे नीचे पोंछ देना और ऐसे ही मैं तुम्हारे नीचे पोंछ दूँगा.

ऐसा कहते हुए उसने अपने नितंबों को सीट से थोड़ा ऊपर उठा दिया, मेरा स्कूल बैग उसने अपनी छाती से चिपकाकर पकड़ा हुआ था. मैं थोड़ा उसकी तरफ मुड़कर उसके नीचे सीट पोछने लगी. रिक्शा को झटके लगने से मेरा हाथ उसके नितंबों पर छू जा रहा था और उसकी तरफ मुड़ने से मेरे चेहरे पर उसके छाती पर फोल्ड किये हुए हाथ की अँगुलियाँ छू जा रही थीं . झ

टकों की वजह से कभी मेरे कानों पर तो कभी मेरे गालों पर उसकी अँगुलियाँ छू रही थीं. लेकिन जब वो मेरे होठों को भी छूने लगीं तो मुझे असहज महसूस होने लगा और मैंने जल्दी से सीट पोछना खत्म किया और सीधी हो गयी. उसकी अंगुलियों के मेरे होठों को छूने से मेरा चेहरा लाल हो गया. 

“नटवर भैय्या, हो गया . अब तुम बैठ जाओ.”

वो बैठ गया और मैंने उसको रुमाल दे दिया और उसने मुझे स्कूल बैग पकड़ा दिया. अब उठने की बारी मेरी थी. मैं थोड़ा सा ऊपर को उठी और सपोर्ट के लिए मैंने एक हाथ से रिक्शा के फ्रेम को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से मैंने बैग पकड़ा हुआ था . थोड़ा ऊपर उठने से पीछे से मेरी स्कर्ट नीचे हो गयी और सीट को ढक दिया.

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अब नटवर ने सीट पोछने के लिए पीछे से मेरी स्कर्ट ऊपर उठा दी . असल में थोड़ी सी स्कर्ट ऊपर करके सीट पोछने की बजाय उसने पीछे से मेरी स्कर्ट मेरे नितंबों तक पूरी ऊपर उठा दी . शरम से मुझे कुछ कहना ही नहीं आया. रिक्शा चलता जा रहा था और चारो तरफ से पॉलिथीन कवर लगा हुआ था. रास्ते में किसी को पता नहीं चल रहा होगा की रिक्शा के अंदर एक लड़की झुकी हुई खड़ी है और उसकी स्कर्ट पीछे से उसके गोल नितंबों तक उठी हुई है.

वो नौकर सीट पोछने में इतना वक़्त ले रहा था की मुझे टोकना पड़ा.

“हो गया क्या ?”

नटवर ने अंदर झाँकने के लिए एक हाथ से मेरी स्कर्ट ऊपर उठा रखी थी और दूसरे हाथ से सीट पोछने का बहाना कर रहा था. 

नटवर – नहीं बेबी. अभी भी गीला है. असल में रुमाल ही गीला हो गया है.

“कोई बात नहीं. मैं ऐसे ही बैठ जाती हूँ.”

और ऐसा कहते हुए मैं बैठने को हुई तो उसके हाथ मेरे नितंबों पर लग गये.

नटवर – बेबी तुम्हारी तो पैंटी भी गीली लग रही है. एक काम करो. मैं बीच में बैठ जाता हूँ, तुम मेरी गोद में बैठ जाओ और बैग साइड में रख दो. देखो बारिश तेज हो गयी है तुम साइड्स से भी भीग जाओगी.

ऐसा कहकर वो मेरी तरफ बीच में खिसक गया. उसकी बात से मैं हैरान हुई और शरमा गयी. मुझे तो बारिश बहुत तेज नहीं लग रही थी लेकिन पॉलिथीन कवर से साइड्स में पानी अंदर ज़रूर आ रहा था. मैंने सोचा मना कर दूँ पर वो मुझसे उमर में बहुत बड़ा था और सीट गीली भी थी और रिक्शा में कवर लगने से किसी के अंदर देखने की गुंजाइश नहीं थी तो मैं बाकी बचे रास्ते के लिए उसकी गोद में बैठने को राज़ी हो गयी. मैंने स्कूल बैग सीट में रखा और अपनी स्कर्ट नीचे को खींची और अनमने मन से उसकी जांघों में बैठ गयी. 

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उस नौकर की जांघों में बैठकर मेरे जवान बदन में कंपकपी सी हो रही थी और मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था. मैंने अपने दाएं हाथ से सपोर्ट के लिए रिक्शा फ्रेम को पकड़ा हुआ था. इसलिए मेरे बदन का दायां हिस्सा चूची से लेकर कमर तक अनप्रोटेक्टेड था. कुछ ही देर में उसने अपना दायां हाथ मेरी दायीं जाँघ में स्कर्ट के ऊपर रख दिया और मुझे सपोर्ट देने के बहाने अपना बायां हाथ मेरी कमर पर रख दिया. जल्दी ही मुझे समझ आ गया की इसका कहना मानकर मैंने ग़लती कर दी है. उसके हाथ एक जगह पर स्थिर नहीं थे , रिक्शा को झटके लग रहे थे और उसके हाथ मेरी जाँघ, मेरी कमर और मेरे पेट को छू रहे थे. 

एक बार तो उसने हद ही कर दी . एक मोड़ पर जब रिक्शा ने टर्न लिया तो संतुलन बिगड़ने से मैं उसकी जांघों में फिसल गयी . उसने मेरी कमर से पकड़कर मुझे वापस गोद में खींच लिया. उसके बाद मुझे फिर से फिसलने से रोकने के बहाने उसने चालाकी से मेरी स्कर्ट को जांघों तक ऊपर करके मेरी नंगी जांघों को कस कर पकड़ लिया. मैं कुछ बोल नहीं पाई क्यूंकी उसने बड़ी चालाकी से ऐसा दिखाया जैसे वो मुझे फिर से फिसलने से रोकने के लिए ऐसा कर रहा है.

नटवर – बेबी , अब नहीं फिसलोगी.

मैं चुप रही लेकिन मुझे इतना असहज महसूस हो रहा था की मैंने अपनी स्कर्ट को अपनी जांघों पर उसके हाथों के ऊपर से ही नीचे खींच दिया. मैंने तो ऐसा अपनी जांघों को ढकने के लिए किया था लेकिन इससे उसको और भी अवसर मिल गया. कुछ ही देर में उसकी अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर नंगी जांघों पर ऊपर को बढ़ने लगी . मुझे इतना अजीब महसूस हो रहा था की बयान नहीं कर सकती. जब उसकी अँगुलियाँ मेरी पैंटी तक पहुँच गयी तो मुझसे अब और सहन नहीं किया गया. मैंने उसके ऊपर को बढ़ते हाथ को पकड़ लिया और उसने अपनी अश्लील हरकत रोक दी.

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घर पहुँचकर ही मुझे उसकी हरकतों से छुटकारा मिला . मेरे मन में उसके लिए इतनी नफरत हो रही थी की उससे बात करने का भी मेरा मन नहीं हो रहा था. लेकिन जो कुछ भी आज हुआ उससे नटवर की हिम्मत बहुत बढ़ गयी. दूसरे दिन फ्राइडे था और बदक़िस्मती से दोपहर बाद फिर से तेज बारिश शुरू हो गयी.

लेकिन जो कुछ भी आज हुआ उससे नटवर की हिम्मत बहुत बढ़ गयी. दूसरे दिन फ्राइडे था और बदक़िस्मती से दोपहर बाद फिर से तेज बारिश शुरू हो गयी. आज फ्राइडे था तो मैंने छोटी पीटी स्कर्ट पहनी हुई थी और हर फ्राइडे की तरह सुबह मम्मी ने मुझसे कहा था की अपनी स्कर्ट का ध्यान रखना और यूँ ही इधर उधर मत घूमना. हमारा गर्ल्स स्कूल होने से स्कूल में तो कोई दिक्कत नहीं थी पर मेरा बदन उन दिनों डेवलप हो रहा था और उस छोटी स्कर्ट में मैं सेक्सी लगती थी , इसलिए मम्मी रोड पे यूँ ही इधर उधर घूमने को मना करती थी. 

स्कूल से घर लौटते वक़्त आज नटवर मुझसे पहले रिक्शा में नहीं चढ़ा और मैं सीट में बैठ गयी. तभी मैंने ख्याल किया की नटवर के हाथ में एक झोला (बैग) है जिसे वो रिक्शा में मेरे पैरों के पास रख रहा था. रिक्शा वाला बारिश की वजह से जल्दी बैठने को कह रहा था पर नटवर झोले को एडजस्ट करने में वक़्त लगा रहा था और एक हाथ से उसने अपने सर के ऊपर छाता लगा रखी थी. पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया , फिर अचानक मुझे लगा की वो मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा है. वो छाता लिए रोड में झुक कर खड़ा था और मैं ऊपर सीट पर बैठी थी. उसने रिक्शा के फर्श में मेरे दोनों पैरों के बीच झोला रख दिया था. 

असल में उसके छाता की वजह से मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था पर एक पल को छाता थोड़ी हटी तो मैं ये देख के सन्न रह गयी की वो झुककर मेरी स्कर्ट के अंदर झाँक रहा था और इसीलिए झोला एडजस्ट करने में इतना वक़्त लगा रहा था. मैंने जल्दी से अपनी टाँगें चिपकाने की कोशिश की पर उसने बीच में झोला रख दिया था इसलिए पूरी नहीं चिपका सकी. मुझे एहसास हुआ की इसने मेरी पिंक कलर की पैंटी देख ली होगी और शरम से मेरा मुँह लाल हो गया. क्लास में भी कभी मेरी पेन फर्श पे गिर जाती थी और मैं उसे उठाने को अपनी चेयर पे झुकती थी तो मुझे पीछे की सीट पे बैठी लड़कियों की पीटी स्कर्ट के अंदर पैंटी दिख जाती थी. वैसा ही दृश्य नटवर को दिखा होगा.

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मैंने अपने स्कूल बैग को गोद से नीचे खिसकाकर अपनी इज़्ज़त ढकने की कोशिश की पर तब तक नटवर का काम हो चुका था. उसने अपनी छाता बंद की और फटाफट मेरे बगल में बैठ गया. अब बारिश बढ़ने लगी थी और घने बादलों की वजह से रोशनी भी कम हो गयी थी. 

नटवर – बेबी, मैं तुम्हारी तरफ साइड से छाता लगा देता हूँ, इससे तुम भीगोगी नहीं.

मुझे उसकी बात ठीक लगी क्यूंकी रिक्शा में ठीक से कवर ना लगा होने से मेरी दायीं तरफ से बारिश का पानी अंदर आ जा रहा था और मेरे टॉप की दायीं बाँह भी गीली हो गयी थी. नटवर ने छाता को थोड़ा सा खोला और मेरे पीछे से हाथ ले जाकर मेरी दायीं तरफ लगा दिया. उसने आधी खुली छाता का एक कोना मुझसे पकड़ने को कहा ताकि मेरी पूरी दायीं साइड छाता से ढकी रहे.

“नटवर भैया , तुम मेरा बैग पकड़ लो.”

छाता को पकड़ने के लिए मुझे अपना स्कूल बैग उसको देना पड़ा. पीटी स्कर्ट में मेरी जांघों का आधा हिस्सा दिख रहा था जो मैंने अब तक बैग से ढक रखा था. उसने मेरे पैरों के बीच झोला रख दिया था इससे टाँगें थोड़ी फैली होने से स्कर्ट भी थोड़ी ऊपर हो गयी थी. अपना स्कूल बैग नटवर को देने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरी तो आधी जाँघें नंगी दिख रही हैं.

मैं चुपचाप छाता के कोनों को पकड़े हुए बैठी रही क्यूंकी मैं नहीं चाहती थी की नटवर को पता चले की मुझे अपनी स्कर्ट के ऊपर उठने से अनकंफर्टेबल फील हो रहा है. लेकिन मन ही मन मुझे इस बात की फिकर थी की तेज हवा आ गयी तो कही मेरी पैंटी ना दिख जाए . मैंने आँखों के कोनों से देखा की नटवर की नज़रें भी मेरी जांघों पर ही हैं. मेरी मम्मी मुझे एक मर्द के साथ ऐसे बैठे हुए देख लेती तो उसे हार्ट अटैक आ जाता. मेरी साँसें भारी हो गयीं. लेकिन मुझे इस बात का सुकून था की नटवर आज मेरे साथ कुछ हरकत नहीं कर रहा था. पर ये राहत थोड़ी देर तक ही रही और फिर उसने अपनी गंदी चालें चलनी शुरू कर दी.

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नटवर – ओह…अब मेरी साइड से भी पानी आ रहा है .

“ये लोग ठीक से कवर क्यूँ नहीं लगाते हैं ?”

नटवर – बेबी, ये रिक्शा वाले ऐसे ही होते हैं. मेरे पास एक पॉलिथीन है, उसे निकालता हूँ.

मुझे आशंका थी की नटवर आज भी मुझसे अपनी गोद में बैठने को कहेगा ताकि सीट के बीच में बैठकर साइड से आने वाली बारिश से बचाव हो सके. लेकिन शुक्र था की उसने ऐसा नहीं कहा पर वैसे भी आज मैंने पक्का ठान रखी थी की इसकी गोद में नहीं बैठूँगी. 

अब नटवर ने अपने पैंट की जेब से एक थैली निकाली और उसे खोलने लगा. तभी सड़क में किसी गड्ढे की वजह से रिक्शा को झटका लगा और उसके हाथ से थैली फिसल गयी. थैली में कुछ सिक्के थे जो बिखर गये. नटवर ने थैली पकड़ने की कोशिश की पर फिर भी कुछ सिक्के बाहर गिर गये. झटका ऐसे लगा की वो सिक्के मेरे ऊपर गिर गये.

नटवर – अरे …अरे …….

“नटवर भैया, घबराओ नहीं, रिक्शा के बाहर कोई नहीं गिरा है.”

नटवर – हाँ यही गनीमत रही. बेबी तुम थैली पकड़ लो , मैं सिक्के ढूंढता हूँ.

अब मैंने बाएं हाथ से उसकी थैली पकड़ ली क्यूंकी दाएं हाथ से छाता का कोना पकड़ा हुआ था. मैंने देखा फर्श में मेरे पैरों में, मेरी सीट में और इधर उधर सिक्के गिरे हुए थे.

नटवर – बेबी तुम हिलो नहीं. मैं सिक्के उठाता हूँ.

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उसने मेरी स्कर्ट और टॉप में गिरे हुए सिक्कों को उठाना शुरू किया. उसने मेरी जांघों को पकड़ा और वहाँ गिरे हुए सिक्के उठाने लगा. मैं कांप सी गयी और अपनी दायीं तरफ छाता की ओर नज़रें घुमा लीं. फिर उसका हाथ मुझे अपने पेट पर महसूस हुआ वो मेरे टॉप में गिरे हुए सिक्के उठा रहा था. उसकी अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को भी छू गयीं. उसके बाद वो सीट में झुक गया और मेरे पैरों के पास गिरे सिक्के उठाने लगा. मैंने तिरछी नज़रों से देखा की ऐसे झुकने से उसे मेरी स्कर्ट के अंदर दिख रहा था. मैंने अपनी टाँगें चिपकाने की कोशिश की पर बीच में झोला रखा होने की वजह से ऐसा नहीं कर पाई.

नटवर – बेबी , अपनी टाँगें थोड़ी सी ऊपर उठाओ. नीचे सिक्के गिरे हैं.

मैंने नटवर की तरफ देखा. मैं जानती थी की झुके हुए नटवर के सामने इस छोटी स्कर्ट में टाँगें ऊपर उठाऊँगी तो बहुत भद्दा लगेगा लेकिन मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैंने शरम से थोड़ी सी ही टाँगें ऊपर की पर मुझे मालूम था की वो इतने से नहीं मानेगा.

नटवर – बेबी , थोड़ा और ऊपर करो. ठीक से दिख नहीं रहा.

अनमने मन से मुझे अपनी टाँगें थोड़ी और ऊपर उठानी पड़ीं. मुझे मालूम था की ये लो क्लास आदमी बहाने से मुझसे बदमाशी कर रहा है , पर उसके पास सिक्के ढूँढने का बहाना था. टाँगें उठाने से मेरी गोरी गोरी चिकनी जांघों का निचला हिस्सा भी नटवर को दिखने लगा. मैं उस समय बहुत अश्लील लग रही हूँगी. एक लड़की छोटी स्कर्ट में टाँगें उठाए बैठी है और एक मर्द उसकी टाँगों के बराबर में झुका हुआ देख रहा है.

नटवर – ठीक है बेबी. लगता है अब नीचे फर्श पर कोई सिक्का नहीं बचा है.

अब वो सीट में सीधा बैठकर अपने सिक्के गिनने लगा और मैंने राहत की सांस ली. पर जल्दी ही उसकी बेहूदी हरकतें फिर शुरू हो गयीं.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

नटवर – इसमें तो पूरे नहीं हैं, ज़रूर सीट में ही होंगे.

उसने मेरी स्कर्ट की तरफ देखा और फिर मेरी पीठ की तरफ देखने लगा.

“लेकिन मुझे तो लगा की सिक्के मेरे आगे ही गिरे हैं.”

नटवर – नहीं बेबी. ये देखो एक यहाँ है.

ऐसा कहकर उसने अपने लंड पर हाथ फेरते हुए , पैंट की ज़िप के पास नीचे से एक सिक्का निकाला. मेरी नज़र उसके पैंट के उभार पर पड़ी. शायद जानबूझकर उसने मुझे वहाँ देखने को कहा. थोड़ी देर तक सिक्के ढूँढने के बहाने वो अपने लंड पर हाथ फेरता रहा. और फिर अपनी पैंट घुटनों तक उठाकर सिक्के ढूँढने का बहाना करने लगा. बालों से भरी हुई उसकी काली काली टाँगें मुझे दिखीं . मैंने उसके पैंट के उभार से नज़रें फेर लीं और नॉर्मल रहने की कोशिश करने लगी.

नटवर – बेबी, एक बार थोड़ी खड़ी हो जाओ ताकि मैं सीट पर देख लूँ.

“नटवर भैया, रिक्शा चल रहा है और मैंने छाता पकड़ा हुआ है. मैं खड़ी कैसे हो जाऊँ ?”

नटवर – हाँ ये तो है . तुम थोड़ा सा आगे को खिसक जाओ बस.

मैं जैसे ही सीट में आगे को खिसकी , वो मेरे पीछे सीट पर सिक्के ढूँढने लगा. इसी बहाने उसने स्कर्ट के बाहर से मेरे गोल नितंबों पर हाथ फिरा दिए और वो बेहूदा इंसान इतने पर ही नहीं रुका. बल्कि वो मेरे नितंबों के नीचे अँगुलियाँ घुसाने लगा जैसे की वहाँ कोई सिक्का घुसा हो. एक बार तो मुझे उसकी अँगुलियाँ स्कर्ट और पैंटी के बाहर से अपने नितंबों के बीच की दरार में महसूस हुई.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

“आउच…”

नटवर – क्या हुआ बेबी ?

वो एकदम से सतर्क हो गया और अपनी अँगुलियाँ बाहर खींच ली.

“कुछ नहीं. सारे सिक्के मिल गये क्या ?”

नटवर – बेबी, 5 के दो सिक्के नहीं मिल रहे.

मैं उसकी इस ढूँढ खोज से परेशान हो गयी थी और जल्द से जल्द इसे खत्म करना चाहती थी.

“ठीक है. मैं एक बार उठ रही हूँ. तुम पूरी सीट चेक कर लो.”

लेकिन इससे बात और भी बिगड़ गयी. जैसे ही मैंने सीट से अपने नितंब ऊपर को उठाए , रिक्शा ने एक टर्न लिया और मेरा संतुलन बिगड़ गया. नटवर एक हाथ से मेरे नीचे सीट पर सिक्के ढूँढ रहा था और दूसरे हाथ से अपनी गोद में मेरे स्कूल बैग को पकड़े हुआ था. जैसे ही मेरा संतुलन बिगड़ा , मैं उसके सीट पर रखे हाथ के ऊपर गिर गयी और मुझे सम्हालने के चक्कर में नटवर ने मेरी बायीं चूची को पकड़ लिया. जब तक मैं संभलती तब तक हमारे नौकर ने मेरे बदन को अच्छी तरह से दबा दिया था. 

नटवर को कुछ ही पलों का वक़्त मिला था पर मैं हैरान हो गयी की उतने कम समय में ही उसके दाएं हाथ ने मेरी गांड को अपनी हथेली में पकड़कर दबा दिया और बाएं हाथ ने मेरी बायीं चूची को कसकर निचोड़ दिया. मैंने तुरंत उसके हाथ के ऊपर से उठने की कोशिश की और अपनी कमर ऊपर उठाई और अब नटवर ने सारी हदें पार कर दी.

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नटवर – बेबी , ऐसा मत करो. तुम गिर जाओगी.

ऐसा कहते हुए उसने मुझे पकड़ने के बहाने से मेरी स्कर्ट के अंदर हाथ डाल दिया और मेरी पैंटी के बाहर से चूत को अंगुलियों से दबाने लगा. हालाँकि ये कुछ ही पल के लिए हुआ और उसने मेरे नितंबों को पकड़कर वापस सीट में बैठा दिया. उसके मेरे नितंबों को पकड़कर बैठाने से पीछे से मेरी स्कर्ट पैंटी के ऊपर तक उठी रही. मैं जल्दी से सीट में बैठ गयी पर मेरे बैठने तक उसने मेरे नितंबों को अपनी हथेलियों में पकड़े रखा.

मेरे ऊपरी बदन में भी उसकी गंदी हरकतें जारी रही. शुरू में गिरते समय उसने मेरी बायीं चूची को दबोच लिया था . फिर मैं संभली तो मैंने अपनी बायीं बाँह नीचे कर दी. अब उसका हाथ मेरी बाँह और बदन के बीच मेरी कांख में दब गया. उसका हाथ अभी भी मेरी बायीं चूची पर था और वो उसे अपनी हथेली में भरकर दबा रहा था. जब मैं सीट में बैठ गयी तो मैंने उसके हाथ को झटक दिया. मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया था. उसके मेरे बदन से छेड़छाड़ करने से मेरी चूची में और मेरी पैंटी में अजीब सी सनसनाहट होने लगी थी.

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नटवर – बेबी , मेरे दो सिक्के अभी भी नहीं मिले.

मैं उस नौकर की गंदी हरकतों से इतनी असहज और परेशान हो गयी थी की रास्ते भर उससे नहीं बोली. ऐसा लग रहा था की अभी भी उसके हाथ मेरे बदन में घूम रहे हैं. जिस तरह उसने मेरी चूची और नितंबों को दबोचा और मेरी चूत को छुआ मुझे ऐसा मन हो रहा था की उसे थप्पड़ मार दूँ. मैं सोचने लगी की मुझे ऐसे छूने की इसकी हिम्मत कैसे हुई. मुझे समझ आया की ये नौकर लोग ऐसे ही होते हैं और मौके का फायदा उठाने की ताक में रहते हैं. शर्मीली होने की वजह से मैं किसी से कुछ कह भी ना सकी.

“आंटी ….आंटी…”

मैं जैसे सपने से जागी. मेरी गोद में मैगज़ीन खुली हुई थी पर गुप्ताजी के नौकर ने कुछ समय पहले जो बदसलूकी मेरे साथ की थी उससे मेरा मन बचपन की उन बुरी यादों में खो गया था. हालाँकि आज की घटना बहुत ही शर्मिंदगी वाली थी क्यूंकी अब मैं 28 बरस की शादीशुदा औरत थी.

काजल मुझे बुला रही थी.

काजल – आंटी …आंटी….

“ओह……हाँ….क्या हुआ ?”

काजल – गुरुजी बुला रहे हैं.

“हाँ…. हाँ , चलो.”

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काजल – गुरुजी बुला रहे हैं.

“हाँ…. हाँ , चलो.”

मैंने अपनी गोद में खुली हुई मैगज़ीन उठाकर टेबल पे रख दी और अपनी साड़ी ठीक करके काजल के साथ चल दी. काजल मुझसे 10 – 12 साल छोटी थी , वो मेरे आगे चल रही थी और मैं उसका कसा हुआ बदन देख रही थी. मेरे आगे मस्ती में चलती हुई काजल की मटकती हुई गांड बहुत मनोहारी लग रही थी. जब हम पूजा घर पहुँचे तो देखा की वहाँ सभी लोग हैं , गुरुजी , समीर, गुप्ताजी और नंदिनी.

गुरुजी – अब हम यज्ञ के आख़िरी पड़ाव पर हैं और काजल बेटी को इसे पूरा करना है.

काजल – जी गुरुजी.

गुरुजी – समीर, नंदिनी और कुमार को भोग बाँट दो. नियम ये है की काजल के यज्ञ में बैठने से पहले उसके माता पिता को भोग गृहण करना होगा.

समीर – जी गुरुजी.

गुरुजी – समीर, यज्ञ में अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं है. तुम आराम कर सकते हो. रश्मि, तुम्हें काजल को आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करनी है इसलिए तुम यहीं रूको.

नंदिनी और कुमार ने गुरुजी को प्रणाम किया और वो दोनों पूजा घर से बाहर चले गये. समीर भी दो कटोरे भोग लेकर बाहर चला गया. अब गुरुजी , मैं और काजल तीन लोग ही पूजा घर में थे.

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गुरुजी – रश्मि, एक बार देख लो की समीर ने यज्ञ के लिए ज़रूरी सामग्री रखी है ? दूध, घी, शहद, चंदन, हल्दी, फूल, पान के पत्ते, नारियल, सुपारी, तिल , जौ होने चाहिए .

“जी गुरुजी.”

मैं नीचे बैठ गयी और यज्ञ की सामग्री चेक करने लगी. जब मैं नीचे बैठी तो पैंटी का कपड़ा मेरे नितंबों से सिकुड़कर बीच की दरार में घुसने लगा. पेटीकोट के अंदर मेरे बड़े नितंब लगभग नंगे हो गये पर मैं गुरुजी के सामने अपने कपड़े एडजस्ट नहीं कर सकती थी इसलिए वैसी ही बैठी रही.

गुरुजी काजल को मनुष्य के जीवन, दर्शन, उद्देश्य, पढ़ाई आदि के बारे में आध्यात्मिक बातें बता रहे थे और काजल ध्यान से उनकी बातें सुन रही थी. मैं सोचने लगी की गुरुजी को क्या मालूम की ये लड़की अश्लील फिल्में देखती है और कुछ देर पहले मेरे साथ बड़े मज़े लेकर लेस्बियन सेक्स कर रही थी. और अब यहाँ ज्ञान , धर्म की आध्यात्मिक बातें हो रही थीं.

मैंने देखा की समीर ने सभी सामग्री अच्छे से रखी हुई है सिर्फ़ दूध वहाँ नहीं था. मैं गुरुजी की बात खत्म होने का इंतज़ार करने लगी.

“गुरुजी, यहाँ दूध नहीं है और बाकी सब है.”

गुरुजी – ठीक है. तुम नंदिनी से एक लीटर दूध ले आओ. और हाँ, मैंने नंदिनी से एक सफेद साड़ी लाने को कहा था पर यहाँ नहीं दिख रही. उससे कह देना.

“जी गुरुजी.”

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मैं पूजा घर से बाहर आ गयी और गुरुजी फिर से काजल को आध्यात्मिक बातें समझाने लगे. सीढ़ियों से नीचे उतरकर मैंने अपनी पैंटी एडजस्ट करने की सोची क्यूंकी उसका कपड़ा मेरे नितंबों की दरार में फँस गया था जिससे चलने में मुझे असुविधा हो रही थी. लेकिन उस गैलरी में सुनसानी थी तो मुझे डर लगा की कहीं वो कमीना नौकर ना आ जाए इसलिए मैं इस वाले बाथरूम में जाने में घबरा रही थी.

मैं गैलरी से होते हुए ड्राइंग रूम की तरफ चली गयी. वहाँ मुझे कोई बैठा हुआ नज़र आया. मैंने कुछ दूरी से ध्यान से देखा , वो गुप्ताजी था.

“हे भगवान…”

वो शराब पी रहा था और उसके पैरों के पास वही नौकर बैठा हुआ था जिसने मेरे साथ बदतमीज़ी की थी. मेरे पैर वहीं रुक गये . मैं जानती थी की अगर इन्हें अब दूसरा मौका मिल गया तो ये कमीने मुझे नंगी कर देंगे और बिना चोदे जाने नहीं देंगे. मैं काजल के कमरे की तरफ चली गयी. मैंने सोचा की अब मुझे मालूम है की ये दोनों आदमी ड्राइंग रूम में बैठे हैं तो काजल का कमरा सेफ है. मैंने जल्दी से अपनी साड़ी कमर तक ऊपर उठाई और पैंटी के सिरो को पकड़कर नितंबों के बीच की दरार से बाहर निकाला और नितंबों के ऊपर फैला दिया. और चूत के ऊपर भी पैंटी का कपड़ा एडजस्ट कर लिया. फिर साड़ी नीचे कर ली. शुक्र है की यहाँ कोई नहीं था और पैंटी एडजस्ट करके मुझे बहुत राहत हुई.

मैं काजल के कमरे से बाहर आकर गैलरी में ड्राइंग रूम के दूसरी तरफ जाने लगी , तभी मुझे चूड़ियों की खनक सुनाई दी , मैंने इधर उधर देखा पर मुझे कोई औरत नहीं दिखी. गैलरी से एक रास्ता बायीं तरफ मुड़कर बालकनी को जाता था. हाँ, चूड़ियों की आवाज़ वहीं से आ रही थी. मैं समझ गयी की वो नंदिनी होगी. मैंने उसे आवाज़ देने की सोची फिर मुझे उत्सुकता हुई की उसके साथ कौन है ? क्यूंकी मुझे ड्राइंग रूम में समीर नहीं दिखा था. मैं बिना आवाज़ किए धीरे से आगे बढ़ी और बालकनी में झाँका. बालकनी में चाँद की रोशनी आ रही थी और वहाँ नंदिनी के साथ समीर था.

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लेकिन वो दोनों वहाँ कर क्या रहे थे ?

चाँद की रोशनी में सफेद साड़ी लपेटे हुए नंदिनी सेक्सी लग रही थी. समीर उसके हाथ पकड़े हुए था और कुछ फुसफुसा रहा था. मैं बिल्कुल सही वक़्त पर वहाँ पहुँची थी. जल्दी ही मुझे समझ आ गया की समीर उस खुली हुई बालकनी में नंदिनी को फुसला रहा था लेकिन नंदिनी हिचकिचा रही थी क्यूंकी उसका विकलांग पति कुछ ही दूरी पर ड्राइंग रूम में बैठा हुआ था. अब समीर ने नंदिनी को अपने नज़दीक़ खींच लिया , नंदिनी का विरोध भी कमज़ोर पड़ने लगा. कुछ देर बाद नंदिनी मान ही गयी.

नंदिनी – ओके बाबा, करो जो तुम्हारा मन है.

समीर उसकी हामी का इंतज़ार कर रहा था. अब उसने नंदिनी की पीठ में ब्लाउज के ऊपर हाथ फिराना शुरू किया और फिर नंगी कमर पर हाथ फेरने लगा. नंदिनी का चेहरा मेरी तरफ था, उसने अपनी आँखें बंद कर ली. फिर समीर ने नंदिनी को पीठ की तरफ घुमा दिया और दोनों हाथों से उसकी बड़ी चूचियों को मसलने लगा. नंदिनी कसमसाने लगी और हाथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही अपनी चूत को रगड़ने लगी. मैं उन दोनों की कामुक हरकतों को देखने में मगन हो गयी थी

और बिल्कुल ही भूल गयी की मैं नंदिनी के पास दूध और सफेद साड़ी लेने आई थी. अचानक समीर ने अपनी हरकतें रोक दी और चुपचाप खड़ा रहा, उसने हथेलियों में नंदिनी की बड़ी चूचियों को ब्लाउज के बाहर से पकड़ा हुआ था पर उसके हाथ स्थिर हो गये. नंदिनी थोड़ी घबराई , उसने सोचा शायद समीर ने किसी को देख लिया है तभी हाथ रोक दिए. लेकिन मुझे मालूम था की समीर ने किसी को नहीं देखा था वो तो बस नंदिनी की बड़ी बड़ी चूचियों को अपनी हथेलियों में भरकर महसूस कर रहा था.

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नंदिनी – बदमाश……

नंदिनी की सांस अटक गयी थी , वो समीर की तरह घूम गयी. समीर के हाथ उसकी साड़ी के पल्लू के अंदर ब्लाउज के ऊपर थे. अब समीर ने अपने होंठ नंदिनी के होठों पे रख दिए और दोनों कुछ देर तक एक दूसरे के होठों को चूमते रहे. साथ ही साथ समीर ने नंदिनी के ब्लाउज के ऊपर से उसका पल्लू भी नीचे गिरा दिया और फिर उसकी कमर से साड़ी खोलने लगा.

मुझे हैरानी हो रही थी की नंदिनी उस खुली हुई बालकनी में समीर को ऐसी अश्लील हरकतें कैसे करने दे रही थी. वैसे बालकनी से रोड तो नहीं दिखती थी लेकिन अगर कोई इस घर की तरफ आए तो उसे साफ दिख जाता की बालकनी में क्या हो रहा है. समीर अपना काम तेज़ी से कर रहा था और कुछ ही देर में उसने नंदिनी के सफेद ब्लाउज के हुक खोल दिए और उसकी सफेद ब्रा चूचियों से ऊपर कर दी. नंदिनी एक 18 बरस की लड़की की माँ थी , उसका भरा हुआ बदन था और बड़ी बड़ी चूचियाँ थी और उसमें काले रंग के बड़े निप्पल थे जो कड़क होकर तने हुए थे.

अब समीर ने नंदिनी की कमर को अपनी बाँहों के घेरे में लिया और उसकी ठोड़ी को उठाकर उसके होठों के बीच अपनी जीभ डाल दी. नंदिनी ने समीर को अपने आलिंगन में ले लिया और उसकी पीठ पर हाथ फिराने लगी. उसकी साड़ी फर्श में गिरी हुई थी और ब्लाउज खुला हुआ था. उसकी ब्रा नंगी चूचियों के ऊपर को कर रखी थी और सिर्फ़ पेटीकोट से उसकी इज़्ज़त ढकी हुई थी. अब समीर अपने लंड को उसके पेटीकोट के बाहर से चूत पर दबाने लगा. समीर नंदिनी की चूचियों को मसल रहा था और उसके मुँह में जीभ डालकर घुमा रहा था.

“उहहहह…..”

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उनकी कामलीला देखने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था. ये सीन देखकर मुझे नाव में विकास के साथ चुंबन की याद आ गयी. उस रात नाव में बिताए हुए वो पल मैं भूल ही नहीं सकती. मैं सोचने लगी काश विकास यहाँ आया होता तो हम फिर से प्यार भरे कुछ पल बिता सकते थे. फिर मेरे मन में आया की मैं अपने पति को क्यूँ नहीं याद कर रही हूँ , विकास को क्यूँ ? राजेश भी मुझे ऐसे चूमता था पर कभी कभार क्यूंकी वो चुंबन की बजाय सीधे सेक्स में ज़्यादा इंट्रेस्टेड रहता था. लेकिन विकास का चुंबन बहुत रोमांटिक था और अभी समीर भी उसी तरह से नंदिनी को चूम रहा था.

अब समीर के हाथ नंदिनी की गांड पर आ गये और वो उसकी बड़ी गांड को सहलाने और दबाने लगा. मेरा दायां हाथ अपनेआप ही नीचे जाकर साड़ी के बाहर से मेरी चूत को रगड़ रहा था और बायां हाथ ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को सहला रहा था और निप्पल को दबा रहा था.

अब समीर ने नंदिनी के ब्लाउज और ब्रा को उतारकर चेयर पे डाल दिया और नंदिनी अब सिर्फ़ पेटीकोट में टॉपलेस खड़ी थी. उस औरत की हिम्मत देखकर मैं हैरान रह गयी. उसका आदमी घर में मौजूद था और वो समीर के साथ टॉपलेस होकर खुली बालकनी में खड़ी थी. मैं तो अपने घर में कभी भी ऐसा नहीं कर सकती. जब दोपहर में मेरे पति काम पर गये होते थे और कोई सेल्समैन आ जाता था तो मैं कभी भी नाइटी में या बिना ब्रा पहने सेल्समैन के पास नहीं जाती थी जबकि ज़्यादातर उस समय मैं दोपहर की नींद ले रही होती थी इसलिए हल्के कपड़ों में होती थी. लेकिन यहाँ पर नंदिनी सारी हदें पार कर रही थी.

अब समीर ने नंदिनी की बाँहें ऊपर कर दी , मैंने देखा उसकी कांख शेव की हुई थी. समीर ने कांख में अपना मुँह लगा दिया और खुशबू सूंघने लगा. और फिर वहाँ पर जीभ से चाटने लगा. नंदिनी कसमसाने लगी. अब मुझसे और नहीं देखा गया. मैं सोचने लगी नंदिनी से दूध और सफेद साड़ी कैसे माँगू ? मुझे होश आया की देर हो गयी है और गुरुजी कहीं नाराज़ ना हो रहे हों. मैंने मन ही मन नंदिनी से माफी माँगी क्यूंकी मुझे उसकी कामलीला को रोकना पड़ रहा था.

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मैं बालकनी से थोड़ी दूर 7 – 8 कदम वापस पीछे गयी और नंदिनी को आवाज़ लगाने लगी.

“नंदिनीजी ……. नंदिनीजी….”

मैं जानबूझकर आगे नहीं बढ़ी क्यूंकी मुझे मालूम था की मेरी आवाज़ सुनकर वो तुरंत कपड़े पहनने लगेगी इसलिए उसको कुछ वक़्त देना पड़ेगा. कुछ पल बाद मैंने फिर से आवाज़ लगाई. उसकी हल्की सी आवाज़ आई.

नंदिनी – हाँ …..मैं यहाँ हूँ.

मैं बहुत धीमे धीमे बालकनी की तरफ बढ़ी. जब मैं बालकनी में आई तो समीर चेयर पे बैठा हुआ था और नंदिनी बहुत कामुक लग रही थी. उसके जल्दबाज़ी में ब्लाउज पहन लिया था पर उसके सारे हुक खुले हुए थे और साड़ी भी यूँ ही ऊपर से लपेट ली थी. मुझे लगा की उसे कपड़े पहनने को थोड़ा और वक़्त देना चाहिए था.

“गुरुजी ने एक लीटर दूध और एक सफेद साड़ी के लिए कहा है.”

नंदिनी – ओह … हाँ हाँ …रश्मि. मैं तो भूल ही गयी. तुम यहाँ बैठो , मैं अभी लाती हूँ.

नंदिनी बोलते वक़्त हाँफ रही थी और उसका चेहरा लाल हो रखा था. मैं बालकनी में चेयर में बैठ गयी. नंदिनी जल्दी से वहाँ से चली गयी . उसकी चूड़ियों की खनक से मुझे अंदाज़ा हो रहा था की वो गैलरी में जाकर अपने कपड़े ठीक कर रही है. समीर बिल्कुल नॉर्मल होकर मुझसे बातें कर रहा था. कुछ देर बाद नंदिनी एक दूध का बर्तन और एक सफेद साड़ी लेकर आई.

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मैं दूध और साड़ी लेकर वहाँ से चली आई. गैलरी से सीढ़ियां चढ़ते वक़्त मैं सोच रही थी की अब समीर और नंदिनी बालकनी में ही अपनी कामलीला जारी रखेंगे या मेरे आने से सावधान होकर किसी कमरे में जाकर अपनी कामेच्छायें पूरी करेंगे ? जो भी हो पर मैं इतना तो समझ गयी थी की अगर माँ ही ऐसी है तो बेटी को अश्लील फिल्में देखने पर मैं ज़्यादा दोष नहीं दे सकती

मैं पूजा घर में आई. गुरुजी अभी भी कुछ समझा रहे थे और काजल बड़े ध्यान से उनकी बात सुन रही थी. गुरुजी ने मुझे देखा.

गुरुजी – रश्मि, दरवाज़ा बंद कर दो और दूध को स्टोव में गरम कर दो.

मैंने सफेद साड़ी गुरुजी को दे दी और दूध गरम करने स्टोव के पास चली गयी. जब मैं गुरुजी को साड़ी दे रही थी तो मैंने ख्याल किया की ये तो पतली सूती साड़ी है जो अक्सर विधवा औरतें पहनती हैं. मुझे समझ नहीं आया की यज्ञ में इसकी क्या ज़रूरत है ? मैं जैसे ही गुरुजी से पूछने को हुई , तब तक गुरुजी ने काजल को पूजा के बारे में बताना शुरू कर दिया.

गुरुजी – काजल बेटी, अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे. इस पूजा के लिए माध्यम की ज़रूरत पड़ती है. तुम्हारे मम्मी पापा ने समीर अंकल और रश्मि आंटी को माध्यम बनाया और तुम्हारे लिए माध्यम मैं बनूंगा. ठीक है ?

काजल – जी गुरुजी.

गुरुजी – काजल, तुम्हारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पूजा में होना चाहिए. तुम्हें ध्यान नहीं भटकाना है. अगर तुम्हारा ध्यान भटका तो तुम्हें ‘दोष निवारण’ प्रक्रिया करनी होगी. इसलिए सिर्फ अपनी पढ़ाई के लिए पूजा पर ध्यान लगाना. जय लिंगा महाराज.

काजल ने सर हिलाकर हामी भरी और खड़ी हो गयी. अब क्या करना है उसे मालूम नहीं था. गुरुजी ने मुझे इशारा किया. मैं उसे वहाँ पर ले गयी जहाँ पर मैं माध्यम के रूप में फर्श पर लेटी थी. और उसे फर्श में पेट के बल लेटने को कहा. काजल ने सफेद रंग का टाइट सलवार सूट पहना हुआ था , वो पेट के बल लेट गयी. ऐसे उल्टी लेटी हुई काजल के नितंब ऊपर को उठे हुए बहुत आकर्षक लग रहे थे. मैं उसे पूजा के फूल देने लगी तो देखा की उसका चेहरा शरम से लाल हो रखा है. मैंने उसे प्रणाम की मुद्रा में हाथ आगे को करने को कहा.

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गुरुजी – रश्मि तुम वहाँ पर बैठो. काजल बेटी मैं तुम्हारे कान में पाँच बार मंत्र बोलूँगा और तुम उसे ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोल देना. उसके बाद तुम मुझे अपनी इच्छा बताओगी और मैं उसे लिंगा महाराज को बोल दूँगा. ठीक है ?

काजल – जी गुरुजी.

अब गुरुजी ने जय लिंगा महाराज का जाप किया और काजल के ऊपर लेट गये. गुरुजी का लंबा चौड़ा शरीर था , काजल उनके शरीर से पूरी तरह ढक गयी. मैं सोचने लगी की माध्यम के रूप में मैं फर्श में लेटी थी और गुप्ताजी ने मेरे ऊपर चढ़कर मुझसे मज़े लिए थे. लेकिन अब अलग ही हो रहा था. काजल फर्श में लेटी थी और गुरुजी माध्यम के रूप में उसके ऊपर लेटे थे. मेरे मन में आया की गुरुजी से पूछूं की ऐसा क्यूँ ? पर पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

गुरुजी – काजल बेटी तुम्हें अजीब लगेगा, पर यज्ञ का यही नियम है. मैं अपना वजन तुम पर नहीं डालूँगा. तुम बस पूजा में ध्यान लगाओ.

गुरुजी काजल के ऊपर लेटे हुए थे और मैं कुछ फीट की दूरी से देख रही थी. मैंने ख्याल किया की अपनी धोती ठीक करने के बहाने गुरुजी ने अपने बदन को काजल के ऊपर ऐसे एडजस्ट किया की उनका श्रोणि भाग (पेल्विक एरिया) ठीक काजल के नितंबों के ऊपर आ गया. अब गुरुजी ने काजल के कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया. मैंने देखा की वो काजल की गांड में हल्के से धक्का लगा रहे हैं.

मैं ये देखकर शॉक्ड हो गयी की गुरुजी भी काजल के कमसिन बदन से आकर्षित होकर मार्ग से भटक रहे हैं. फिर काजल ने गुरुजी का बताया हुआ मंत्र ज़ोर से बोल दिया. ऐसा पाँच बार करना था. बाद बाद में तो काजल के नितंबों पर गुरुजी का धक्का लगाना भी साफ महसूस होने लगा. 

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मंत्र जाप खत्म होने के बाद अब काजल को अपनी इच्छा गुरुजी को बतानी थी. मैंने देखा गुरुजी अपने चेहरे को काजल के चेहरे के बिल्कुल नज़दीक़ ले गये, उनके मोटे होंठ काजल के गालों को छू रहे थे. गुरुजी ने अपने दोनों हाथ काजल के दोनों तरफ फर्श में रखे हुए थे. अब उन्होंने अपना दायां हाथ काजल के कंधे में रख दिया और अपना मुँह उसके चेहरे से चिपका कर उसकी इच्छा सुनने लगे. 

लिंगा महाराज से काजल की इच्छा कह देने के बाद गुरुजी काजल के बदन से उठ गये. मैंने साफ साफ देखा की उनका खड़ा लंड धोती को बाहर को ताने हुए है. काजल के उठने से पहले ही उन्होंने जल्दी से अपने लंड को एडजस्ट कर लिया.

गुरुजी – काजल बेटी, तुमने पूजा करते समय अपना पूरा ध्यान लगाया ?

काजल – हाँ गुरुजी.

मैंने ख्याल किया उसकी आवाज़ कांप रही थी , शायद कामोत्तेजना की वजह से.

गुरुजी – तो फिर तुम्हारी आवाज़ में कंपन क्यूँ है ? 

काजल गहरी साँसें ले रही थी, जैसे की अगर कोई आदमी उसके ऊपर लेटे तो कोई भी औरत लेती. लेकिन गुरुजी का स्वर कठोर था.

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काजल – मेरा विश्वास कीजिए गुरुजी. मैं सिर्फ अपनी पूजा के बारे में सोच रही थी.

गुरुजी – तुम झूठ क्यूँ बोल रही हो बेटी ?

कमरे में बिल्कुल चुप्पी छा गयी. मैं भी हैरान थी की ये हो क्या रहा है ?

गुरुजी – तुम्हारी असफलता का यही कारण है. तुम्हारा मन स्थिर नहीं रहता और पढ़ाई के अलावा अन्य चीज़ों में ज़्यादा उत्सुक रहता है. वही यहाँ पर भी हुआ. तुम्हारा मन पूजा की बजाय मेरे बदन के तुम्हारे बदन को छूने पर लगा हुआ था. 

काजल – गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए. मैं सिर्फ अपने फाइनल एग्जाम्स को पास करने के लिए प्रार्थना कर रही थी.

गुरुजी – काजल बेटी तुम मुझे मजबूर कर रही हो की मैं अपनी बात साबित करूँ और मैं ये साबित करूँगा. रश्मि यहाँ आओ और पता करो की काजल का मन भटका हुआ था की नहीं.

मैं हैरान थी. ये मैं कैसे पता करूँगी ? काजल सर झुकाए खड़ी थी और मुझे यकीन था की वो झूठ बोल रही थी. उसका ध्यान पक्का एक मर्द के अपने बदन को छूने पर था.

“लेकिन गुरुजी कैसे ? मेरा मतलब….कैसे पता करूँ ?”

गुरुजी – ये तो आसान है. तुम इसके निप्पल चेक करो , तुम्हें पता चल जाएगा की ये कामोत्तेजित हुई थी या नहीं.

एक मर्द के मुँह से ऐसी बात सुनकर हम दोनों हक्की बक्की रह गयीं. लेकिन फिर मुझे समझ आया की गुरुजी ने एकदम सही निशाना लगाया है. क्यूंकी अगर किसी औरत का पता लगाना हो की वो कामोत्तेजित है या नहीं तो ये बात उसके निप्पल सही सही बता सकते हैं.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

“ठीक है, गुरुजी.”

काजल – लेकिन गुरुजी…

काजल शरम से लाल हो रखी थी. शायद उसको समझ आ गया की वो गुरुजी को बेवक़ूफ़ नहीं बना सकती क्यूंकी वो बहुत अनुभवी और बुद्धिमान थे.

काजल – क्षमा चाहती हूँ गुरुजी. आप सही हैं.

गुरुजी – हम्म्म ……देख लिया बेटी तुमने, लोगों को बहलाने का कोई मतलब नहीं है. हमेशा सच बताओ. ठीक है ?

काजल ने सिर्फ सर हिला दिया. मैं समझ सकती थी की गुरुजी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले आदमी के सामने इस टीनएजर लड़की की क्या हालत हो रखी है. उनके सामने उसका झूठ कुछ पल भी नहीं ठहर पाया. 
अब गुरुजी ने अपने बैग से लिंगा महाराज के दो प्रतिरूप निकाले. वो दिखने में बिल्कुल वैसे ही थे जिसकी हम यहाँ पूजा कर रहे थे.

गुरुजी – रश्मि, बेल के पत्ते, दूध, गुलाब जल और शहद मुझे दो. और अग्नि कुंड में थोड़ा घी डाल दो.

मैंने वैसा ही किया और गुरुजी उनसे कुछ मिश्रण बनाने लगे. उन्होंने बेल के पत्तों को कूटकर शहद में मिलाया. और उसमें बाकी चीज़ें मिलाकर एक गाढ़ा द्रव्य तैयार किया. फिर लिंगा महाराज के एक प्रतिरूप पर वो द्रव्य चढ़ाने लगे. उन्होंने उस प्रतिरूप को द्रव्य से नहलाकर हाथ से उसमें सब जगह मल दिया. फिर दूसरे प्रतिरूप को उन्होंने अग्नि में शुद्ध किया और गुलाब जल से धो दिया. उसके बाद दोनों प्रतिरूपों की पूजा की. मैं और काजल चुपचाप ये सब देख रहे थे.

गुरुजी – काजल बेटी, यहाँ आओ और अग्नि के पास खड़ी रहो. अपनी आँखें बंद कर लो और मैं जो मंत्र पढ़ूँ , अग्निदेव के सम्मुख उनका जाप करो.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

मेरे घी डालने से अग्निकुण्ड में लपटें तेज हो गयी थीं. गुरुजी ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे. मैंने काजल के होठों को हिलते हुए देखा, वो मंत्रों को दोहरा रही थी. पांच मिनट तक यही चलता रहा.

गुरुजी – काजल बेटी, अब ये यज्ञ का बहुत महत्वपूर्ण भाग है. तुम अपना पूरा ध्यान इस पर लगाओ. लिंगा महाराज के ये दोनों प्रतिरूप तुम्हें जाग्रत करेंगे. इसे ‘जागरण क्रिया’ कहते हैं. तुम्हें इस प्रतिरूप से पवित्र द्रव्य को पीना है और साथ ही साथ मैं दूसरे प्रतिरूप को तुम्हारे बदन में घुमाकर तुम्हें ऊर्जित करूँगा.

काजल ने सर हिला दिया पर उसके चेहरे से साफ पता लग रहा था की उसे कुछ समझ नहीं आया. लेकिन गुरुजी से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी. मुझे भी ठीक से समझ नहीं आया की गुरुजी क्या करने वाले हैं.

गुरुजी – काजल बेटी, अब ये यज्ञ का बहुत महत्वपूर्ण भाग है. तुम अपना पूरा ध्यान इस पर लगाओ. लिंगा महाराज के ये दोनों प्रतिरूप तुम्हें जाग्रत करेंगे. इसे ‘जागरण क्रिया’ कहते हैं. तुम्हें इस प्रतिरूप से पवित्र द्रव्य को पीना है और साथ ही साथ मैं दूसरे प्रतिरूप को तुम्हारे बदन में घुमाकर तुम्हें ऊर्जित करूँगा.

काजल ने सर हिला दिया पर उसके चेहरे से साफ पता लग रहा था की उसे कुछ समझ नहीं आया. लेकिन गुरुजी से पूछने की उसकी हिम्मत नहीं थी. मुझे भी ठीक से समझ नहीं आया की गुरुजी क्या करने वाले हैं.

काजल यज्ञ के अग्निकुण्ड के सामने हाथ जोड़े खड़ी थी , उसने आँखें बंद की हुई थीं. गुरुजी उसके बगल में खड़े थे और मैं अग्निकुण्ड के दूसरी तरफ खड़ी थी.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

गुरुजी ज़ोर से मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे. अब उन्होंने लिंगा महाराज के पवित्र द्रव्य से भीगे हुए प्रतिरूप को काजल के मुँह में लगाया. काजल ने पहले तो थोड़े से ही होंठ खोले , लेकिन लिंगा प्रतिरूप की गोलाई ज़्यादा होने से उसे थोड़ा और मुँह खोलना पड़ा. गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को उसके मुँह में डाल दिया और वो उसे चूसने लगी. प्रतिरूप में लगे हुए द्रव्य का स्वाद अच्छा आ रहा होगा क्यूंकी काजल तेज़ी से उसे चूस रही थी. गुरुजी ने लिंगा प्रतिरूप को धीरे धीरे काजल के मुँह में और अंदर घुसा दिया और अब वो मुझे बड़ा अश्लील लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई औरत किसी मर्द का लंड चूस रही हो. 

गुरुजी – लिंगा को अपने हाथों से पकड़ो और ध्यान रहे इस ‘जागरण क्रिया’ के दौरान ये तुम्हारे मुँह में ही रहना चाहिए.

अब काजल ने अपने दोनों हाथों से लिंगा प्रतिरूप को पकड़ लिया और चूसने लगी. गुरुजी की आज्ञा के अनुसार उसने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं. आँखें बंद करके लिंगा को चूसती हुई काजल बहुत अश्लील लग रही थी , शरम से मैंने अपनी नज़रें झुका ली. गुरुजी काजल को गौर से देख रहे थे. उन्हें इस दृश्य को देखकर बहुत मज़ा आ रहा होगा की एक टीनएजर लड़की , तने हुए लंड की आकृति के लिंगा को मज़े से मुँह में चूस रही है. काजल ने अब अपना चेहरा ऊपर को उठाया और लिंगा से थोड़ा और द्रव्य बहकर उसके मुँह में चला गया. लिंगा को चूसते हुए काजल बहुत कामुक सी आवाज़ निकाल रही थी. 

काजल को लिंगा चूसते देखकर मुझे अपनी एक पुरानी घटना याद आ गयी. मैंने अपने पति का लंड सिर्फ एक बार ही चूसा था और तब भी मैंने असहज महसूस किया था. शादी के बाद पहली बार जब मेरे पति ने मुझसे लंड चूसने को कहा तो मैं बहुत शरमा गयी और तुरंत मना कर दिया. फिर और भी कई दिन उन्होंने मुझसे इसके लिए कहा , पर जब देखा की मेरा मन नहीं है तो ज़्यादा ज़ोर नहीं डाला. लेकिन बारिश के एक दिन मैं एक नॉवेल पढ़ रही थी और पढ़ते पढ़ते कामोत्तेजित हो गयी ,

जब मेरे पति काम से घर लौटे तो मेरा सेक्स करने का बहुत मन हो रहा था. लेकिन वो थके हुए थे और उनका मूड नहीं था. उस दिन मैं जानबूझकर देर से नहाने गयी और मैंने ध्यान रखा की जब मैं बाथरूम से बाहर आऊँ तो उस समय मेरे पति बेड में हों. मैं ड्रेसिंग टेबल के पास गयी और वहाँ खड़ी होकर नाइटी के अंदर से अपनी पैंटी उतार दी. ताकि मेरे पति को कामुक नज़ारा दिखे और मैं भी शीशे में उनका रिएक्शन देख सकूँ. मेरी ये अदा काम कर गयी क्यूंकी जब मैं बेड में उनके पास आई तो देखा पाजामे में उनका लंड अधखड़ा हो गया है.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

लेकिन वो दिखने से ही थके हुए लग रहे थे और एक आध चुंबन लेकर सोना चाह रहे थे. लेकिन मैं तो चुदाई के लिए बेताब हो रखी थी. वो लेटे हुए थे और मैं उनके बालों में उंगलियाँ फिराने लगी और अपनी नाइटी भी ऐसे एडजस्ट कर ली की मेरी बड़ी चूचियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी रहें. वैसे तो मैं , ज़्यादातर औरतों की तरह बिस्तर में पहल नहीं करती थी. पर उस दिन अपने पति को कामोत्तेजित करने के लिए बेशरम हो गयी थी. अब मेरे पति भी थोड़ा एक्साइटेड होने लगे और उन्होंने मेरी नाइटी के अंदर हाथ डाल दिया.

मैं इतनी बेताब हो रखी थी की मैंने अपनी जांघों तक नाइटी उठा रखी थी. वो मेरी नंगी मांसल जांघों में हाथ फिराने लगे. लेकिन मैंने देखा की उनका लंड तन के सख़्त नहीं हो पा रहा है. फिर मेरे पति ने लाइट ऑफ कर दी , तब तक मेरे बदन में सिर्फ मंगलसूत्र रह गया था और मैं बिल्कुल नंगी हो गयी थी . मैं अपने हाथों से उनके लंड को सहलाने लगी ताकि वो तन के खड़ा हो जाए .

उन्होंने कहा की मुँह में ले के चूसो शायद तब खड़ा हो जाए. मैंने मना नहीं किया और उस दिन पहली बार लंड चूसा. सच कहूँ तो ऐसा करना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा और दूसरे दिन मैंने अपने पति से ऐसा कह भी दिया. लेकिन उस दिन तो मेरा लंड चूसना काम कर गया क्यूंकी चूसने से उनका लंड खड़ा हो गया और फिर हमने चुदाई का मज़ा लिया.

जैसे आज काजल लिंगा को चूस रही थी , उस दिन मैंने भी अपने पति के लंड को चूसा और चाटा था. उसके प्री-कम से लंड चिकना हो गया था और चूसते समय मेरे मुँह से भी वैसी ही कामुक आवाज़ें निकल रही थीं जैसी अभी काजल निकाल रही थी. गुरुजी अब काजल के पीछे आ गये और लिंगा के दूसरे प्रतिरूप को काजल के बदन में छुआकर मंत्र पढ़ने लगे.

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काजल के बदन में एक जगह पर लिंगा को लगाते और मंत्र पढ़ते फिर दूसरी जगह लगाते और मंत्र पढ़ते. ऐसा लग रहा था जैसे कोई जादूगर जादू कर रहा हो. सबसे पहले उन्होंने काजल के सर में लिंगा को लगाया फिर गर्दन में और फिर उसकी पीठ में. जब गुरुजी ने काजल की कमीज़ से ढकी हुई पीठ में लिंगा को छुआया तो काजल के बदन को एक झटका सा लगा. फिर गुरुजी ने कुछ ऐसा किया जो किसी भी औरत को अपमानजनक लगेगा.

गुरुजी काजल के पीछे खड़े थे और जैसे ही लिंगा काजल की कमर में पहुँचा , गुरुजी ने काजल के सलवार से ढके हुए गोल नितंबों के ऊपर से कमीज़ ऊपर उठा दी. स्वाभाविक रूप से काजल शॉक्ड हो गयी . उसने लिंगा को चूसना बंद कर दिया और शायद वो लिंगा को मुँह से बाहर निकालने ही वाली थी. तभी गुरुजी ने उससे कहा.

गुरुजी – काजल बेटी, जैसा की मैंने तुमसे कहा था , तुम जो कर रही हो उसी पर ध्यान दो. मैं तुम्हें बता दूँ की लिंगा से ऊर्जित करने की इस प्रक्रिया में किसी अंग के ऊपर ज़्यादा से ज़्यादा दो ही वस्त्र होने चाहिए. तुमने पैंटी के ऊपर सलवार पहना है इसलिए मुझे तुम्हारी कमीज़ ऊपर उठानी पड़ी.

ऐसा कहते हुए गुरुजी काजल का रिएक्शन देखने के लिए रुके और जब उन्होंने देखा की वो उनकी बात समझ गयी है तो उन्होंने मेरी तरफ देखा.

गुरुजी – रश्मि, काजल के लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दो.

“जी गुरुजी.”

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मैं थोड़ा साइड में खड़ी थी , मैंने ख्याल किया की काजल की पीठ में पीछे से रोशनी पड़ रही है. गुरुजी ने उसकी कमीज़ कमर तक ऊपर उठा दी थी तो उसके पतले सलवार पे रोशनी ऐसे पड़ रही थी की उसकी पैंटी दिख रही थी. लड़कियों को पतले सलवार से कोई परेशानी नहीं होती क्यूंकी कमीज़ जांघों या घुटनों तक लंबी होने से सलवार के ऊपर ढका रहता है. लेकिन यहाँ पर गुरुजी ने सलवार के ऊपर कमीज़ का कवर हटा दिया था और मैं शॉक्ड रह गयी की काजल की पैंटी उसके नितंबों के ऊपर साफ दिख रही थी. गुरुजी तो मर्द थे उन्हें तो ये देखकर मज़ा आ रहा होगा.

मैंने द्रव्य का कटोरा लिया और काजल के पास आ गयी. काजल ने मुँह से लिंगा को बाहर निकाल लिया और वो हाँफ रही थी. उसकी आँखें अभी भी बंद थीं. मैंने उसके लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया.

गुरुजी – देर मत करो. यज्ञ का शुभ समय निकल ना जाए.

मैं अपनी जगह वापस चली गयी और काजल ने फिर से लिंगा को मुँह में डालकर चूसना शुरू कर दिया. इतनी देर तक गुरुजी काजल की सलवार से ढकी गांड के ऊपर से कमीज़ हटाए खड़े थे. अब काजल फिर से लिंगा को चूसने लगी तो गुरुजी ने उसके गोल नितंबों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया. मैं अपनी जगह से थोड़ा खिसकी ताकि गुरुजी की हरकतों को देख सकूँ.

अब मैंने देखा की गुरुजी ने उसकी कमीज़ नीचे कर दी है और दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर मंत्र पढ़ रहे हैं. उनके हाथ कमीज़ के अंदर घूम रहे थे और सिर्फ काजल को ही मालूम होगा की वो क्या कर रहे थे क्यूंकी कमीज़ नीचे हो जाने से मुझे नहीं दिख रहा था. जिस तरह से खड़े खड़े काजल अपने बदन को झटक रही थी उससे मुझे लग रहा था की गुरुजी उसके पतले सलवार के बाहर से उसकी गांड को सहला रहे होंगे.

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ये दृश्य बहुत अश्लील लग रहा था. पहली बार काजल असहज दिख रही थी. और क्यूँ ना हो ? वो एक टीनएजर लड़की थी और अगर कोई मर्द उसकी गांड में दोनों हाथों से लिंगा घुमाए और साथ ही साथ उसको दूसरा लिंगा चूसना पड़े तो कोई शादीशुदा औरत भी कामोत्तेजित हो जाएगी. गुरुजी मंत्र पढ़े जा रहे थे और अपनी ऊर्जित प्रक्रिया को जारी रखे हुए थे. अब वो काजल के सामने आ गये और लिंगा को उसके घुटनों में लगाया और धीरे धीरे ऊपर को उसकी जांघों में घुमाने लगे. जैसे जैसे गुरुजी के हाथ ऊपर को बढ़ने लगे तो मेरे दिल की धड़कनें तेज होने लगी क्यूंकी अब गुरुजी के हाथ काजल के नाजुक अंग तक पहुँचने वाले थे. तभी अचानक गुरुजी ने मुझसे कहा.

गुरुजी – रश्मि , यहाँ आओ.

मैं उनके पास आ गयी.

गुरुजी – तुम काजल की कमीज़ ऊपर करके पकड़ो. मैं इसकी योनि को ऊर्जित करता हूँ.

गुरुजी के मुँह से योनि शब्द सुनकर मुझे थोड़ा झटका लगा लेकिन फिर मैंने सोचा ये तो यज्ञ की प्रक्रिया है तो इसका पालन तो करना ही पड़ेगा. किसी भी औरत के लिए ये बड़ा अपमानजनक होता की उसके कपड़े ऊपर उठाकर कोई मर्द उसके गुप्तांगो को छुए लेकिन गुरुजी के अनुसार यज्ञ की प्रक्रिया होने की वजह से इसका पालन करना ही था. काजल ने भी कुछ खास रियेक्ट नहीं किया, शायद इसलिए क्यूंकी मैं भी वहाँ मौजूद थी. 

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मैंने एक हाथ से काजल की कमीज पकड़ी और आगे से कमर तक ऊपर उठा दी. लेकिन गुरुजी ने मुझसे दोनों हाथों से पकड़कर ठीक से थोड़ा और ऊपर उठाने को कहा. मैंने दोनों हाथों से कमीज पकड़कर थोड़ी और ऊपर उठा दी. अब काजल की नाभि और उसके सलवार का नाड़ा दिखने लगे.

गुरुजी ने काजल के सलवार के ऊपर से दोनों हाथों से लिंगा को उसकी योनि के ऊपर घुमाना शुरू किया और ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने लगे. उस सेन्सिटिव भाग को छूने से काजल का चेहरा लाल हो गया और उसने लिंगा को चूसना बंद कर दिया. वैसे लिंगा अभी भी उसके मुँह में ही था और उसकी आँखें बंद थीं. फिर मैंने देखा की गुरुजी उसके सलवार और पैंटी के ऊपर से चूत की दरार में ऊपर से नीचे अंगुली फिराने की कोशिश कर रहे हैं. ये देखकर मेरी ब्रा के अंदर निप्पल एकदम तन गये. गुरुजी की अँगुलियाँ काजल की चूत को छू रही थीं और अब आँखें बंद किए हुए काजल हल्की सिसकारियाँ लेने लगी.

काजल – उम्म्म्ममम…….

गुरुजी अब साफ साफ काजल की चूत के त्रिकोणीय भाग को अपनी अंगुलियों से महसूस कर रहे थे और लिंगा को बस नाममात्र के लिए घुमा रहे थे. वो इस सुंदर लड़की की चूत के सामने झुककर इस ‘जागरण क्रिया’ को कर रहे थे. काजल अब अपनी खड़ी पोजीशन में इधर उधर हिल रही थी और मैं उसकी असहज स्थिति को अच्छी तरह से समझ सकती थी. कुछ देर बाद ये प्रक्रिया समाप्त हुई और गुरुजी सीधे खड़े हो गये. मैंने काजल की कमीज नीचे कर दी और उसने राहत की सांस ली.

गुरुजी – लिंगा में थोड़ा और द्रव्य डालो.

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मैंने उस गाड़े द्रव्य का कटोरा लिया और काजल से लिंगा को मुँह से बाहर निकालने को भी नहीं कहा और ऐसे ही लिंगा में थोड़ा द्रव्य डाल दिया. लिंगा में बहते हुए द्रव्य काजल के होठों में पहुँच गया और थोड़ा सा ठुड्डी से होते हुए उसकी गर्दन में बह गया. गुरुजी ने तक तक उसके सपाट पेट में लिंगा घुमा दिया था और अब ऊपर को बढ़ रहे थे.

एक मर्द के द्वारा नितंबों और चूत को सहलाने से अब काजल गहरी साँसें ले रही थी और उसकी नुकीली चूचियाँ कड़क होकर सफेद कमीज को बाहर को ताने हुए थीं. मैं उसके एकदम पास खड़ी थी इसलिए उसकी कमीज में खड़े निप्पल की शेप देख सकती थी. उसने चुनरी नहीं डाली हुई थी इसलिए उसकी चूचियाँ बहुत आकर्षक लग रही थीं.

काजल लिंगा से द्रव्य को चूस रही थी. अब ऐसा लग रहा था की गुरुजी भी अपनी भाव भंगिमाओं पर थोड़ा नियंत्रण खो बैठे हैं. इस सुंदर लड़की के बदन के हर हिस्से से छेड़छाड़ करने के बाद अब उनके जबड़े लटक गये थे और वो खुद भी गहरी साँसें लेने लगे थे और उनका लंड धोती में खड़ा हो गया था. मंत्र पढ़ते हुए अब उनकी आवाज भी कुछ धीमी हो गयी थी. 

अब गुरुजी ने काजल की चूचियों पर लिंगा को घुमाना शुरू किया. काजल की आँखें बंद थीं शायद इसलिए गुरुजी को ज़्यादा जोश आ गया. उन्होंने मेरी मौजूदगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए लिंगा से अपना दायां हाथ हटा लिया और काजल की बायीं चूची को पकड़ लिया.

काजल – उम्म्म्मम……

उसके मुँह से सिसकारी निकल गयी. वो लिंगा चूस रही थी और उसने कस के आँखें बंद की हुई थी, शायद उत्तेजना की वजह से. मुझे लगा अब गुरुजी हद पार कर रहे हैं, खुलेआम अपनी बेटी की उमर की लड़की की चूची दबा रहे हैं. वो अपनी हथेली से काजल की चूची की गोलाई और सुडौलता को महसूस कर रहे थे और मेरे सामने खुलेआम ऐसा करना इतना अश्लील लग रहा था की मुझे अपनी नजरें फेरकर दूसरी तरफ देखना पड़ा. गुरुजी इस परिस्थिति का अनुचित लाभ उठा रहे थे

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

और इस गुलाब की कली के कोमल बदन को महसूस कर रहे थे. लेकिन जल्दी ही गुरुजी ने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ते हुए दोनों हाथों से लिंगा पकड़कर काजल की चूचियों पर घुमाने लगे. अंत में गुरुजी ने काजल की चूचियों को लिंगा के आधार से ऐसे दबाया जैसे उनपर अपनी मोहर लगा रहे हों.

गुरुजी – काजल बेटी, अपनी आँखें खोलो. तुम्हारी ‘जागरण क्रिया’ पूरी हो चुकी है. अपने मुँह से लिंगा निकाल लो. 

काजल – उफफफफफफफ्फ़….

काजल ने राहत की सांस ली. मैंने ख्याल किया की उसे बहुत पसीना आ रहा था , एक तो अग्निकुण्ड की गर्मी थी ऊपर से बदन में नाज़ुक अंगों की एक मर्द द्वारा छेड़छाड़.

गुरुजी – मैं उम्मीद करता हूँ की तुम्हारा पूरा ध्यान पूजा में रहा होगा. वरना तुम्हारे लिए ‘अमंगल’ हो सकता है और तुम एग्जाम्स में सफलता भी प्राप्त नहीं कर पाओगी.

काजल – नहीं गुरुजी. मैं ध्यान लगा रही थी.

गुरुजी – ठीक है. अब यज्ञ का पहला भाग पूरा हो चुका है. अब दूसरा भाग शुरू होगा. रश्मि, मेरे बैग से पवित्र धागा ले आओ.

मैं गुरुजी के बैग के पास चली गयी.

गुरुजी – काजल बेटी, यज्ञ के दूसरे भाग के लिए भक्त को माध्यम के वस्त्र पहनने होते हैं.

ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी. मैंने पीछे मुड़कर देखा , काजल उलझन भरा चेहरा बनाकर गुरुजी को देख रही थी. स्वाभाविक था. मैं भी हैरान थी. 

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गुरुजी – काजल बेटी, माध्यम के रूप में मैंने तुम्हारी प्रार्थना को लिंगा महाराज तक पहुँचा दिया है. अब तुम्हें मेरे वस्त्र पहनकर अपनी प्रार्थना को प्रमाणित करना है और यज्ञ के शेष भाग को हमने साथ साथ करना है, यानि की अब माध्यम और भक्त दोनों एक ही हैं. जय लिंगा महाराज.

काजल और मैंने भी जय लिंगा महाराज का जाप किया. लेकिन मैंने साफ महसूस किया की काजल की आवाज में आत्मविश्वास की कमी है, क्यूंकी उसे मालूम था की अब उसे अपनी सलवार कमीज उतारनी पड़ेगी. गुरुजी ने काजल को सोचने का ज़्यादा वक़्त नहीं दिया और अपने ऊपरी बदन से भगवा वस्त्र उतार कर काजल की ओर बढ़ाया. गुरुजी अब सिर्फ़ धोती पहने हुए थे. उनका बालों से भरा हुआ लंबा चौड़ा ऊपरी बदन नंगा था. उनको इस हालत में देखकर कोई भी लड़की डर जाती.

गुरुजी – काजल बेटी, समय बर्बाद मत करो. शुभ घड़ी निकली जा रही है.

काजल हक्की बक्की होकर खड़ी थी. एक मर्द के सामने कपड़े उतारने की बात से वो स्तब्ध रह गयी थी और उसकी आवाज ही बंद हो गयी. कुछ पल बाद उसकी आवाज लौटी.

काजल – लेकिन गुरुजी , मेरा मतलब…..मैं इसको कैसे पहन सकती हूँ ? ये तो सिर्फ़ एक शॉल जैसा कपड़ा है.

गुरुजी – काजल बेटी, तुम कोई पार्टी में नहीं जा रही हो जिसके लिए तुम सज धज के ड्रेस पहनो. ये यज्ञ है. तुम्हें इसके नियमों का पालन करना ही होगा. जानती हो बहुत से यज्ञ ऐसे होते हैं जिनमें भक्त को पूर्ण नग्न होकर भाग लेना होता है. पूरे मन से ही भक्ति होती है. लिंगा महाराज के सामने शरम के लिए कोई स्थान नहीं है. बेवकूफ़ लड़की.

गुरुजी का स्वर लोहे की तरह कठोर था. उसके बाद काजल की एक भी शब्द बोलने की हिम्मत नहीं हुई.

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गुरुजी – रश्मि, इसको अपने अंतर्वस्त्र उतारने की जरूरत नहीं. तुम इसकी कमर में इसे लुँगी की तरह लपेट दो.

मैंने काजल को देखा और उसकी आँखें कहानी को बयान कर रही थीं. अपना सर झुकाए वो पूजा घर के कोने में चली गयी और हमारी तरफ पीठ करके कमीज उतारने लगी. अपने हाथ सर के ऊपर उठाकर उसने कमीज उतार दी . उसके बाद वो सलवार का नाड़ा खोलने लगी और उसको उतारने के लिए नीचे झुकी तो उसकी छोटी सी सफेद पैंटी से ढकी हुई गोरी गांड पीछे को उभर कर इतनी उत्तेजक लग रही थी कि एक पल के लिए मुझे लगा की गुरुजी ने अपने लंड को हाथ लगाया.

काजल ने जल्दी से भगवा वस्त्र लपेटने की कोशिश की लेकिन कुछ पल के लिए सिर्फ़ ब्रा पैंटी में उसका बदन गुरुजी को दिख गया.. मैं उसके पास गयी और गुरुजी के भगवा वस्त्र को उसकी कमर में नाभि से घुटनों तक लुँगी जैसे लपेट दिया और नाभि के नीचे कपड़े में गाँठ लगा दी. सच कहूँ तो मुझे लगा की अगर वो ब्रा पैंटी में रहती तो कम अश्लील लगती पर अब इस पारदर्शी कपड़े को कमर में लपेटकर वो बहुत मादक लग रही थी और उसके सफेद अंतर्वस्त्र और भी ज़्यादा चमक रहे थे.

शरम से नजरें झुकाए वो गुरुजी के सामने आ खड़ी हुई. उसकी जवान चूचियाँ ब्रा के अंदर हिल डुल रही थीं और ब्रा कप से बाहर आने को मचल रही थीं. उसको एक मर्द के सामने ऐसे अधनंगी देखकर खुद मैं असहज महसूस कर रही थी. उसका जवान खूबसूरत बदन इतना मनमोहक लग रहा था की मुझे भी ईर्ष्या हो रही थी. पतली सी ब्रा में उसकी तनी हुई चूचियाँ, सपाट गोरा पेट , पतली कमर और फिर बाहर को फैलती हुई गोल घुमावदार गांड बहुत लुभावनी लग रही थी.

मैंने गुरुजी को धागा लाकर दे दिया और वो झुककर काजल की कमर में पवित्र धागा बाँधने लगे. काजल इतना शरमा रही थी की गुरुजी के अपनी नंगी कमर को छूने से वो भी आगे को झुक जा रही थी. धागा बाँधकर जब गुरुजी सीधे खड़े होने लगे तो उनका सर काजल की ब्रा में क़ैद चूचियों से जा टकराया क्यूंकी वो भी आगे को झुकी हुई थी. गुरुजी ने आँखें ऊपर को उठाकर देखा और काजल की अनार जैसी चूचियाँ ठीक उनकी हवसभरी आँखों के सामने थीं . काजल बहुत शरमा गयी और गुरुजी ने सॉरी बोल दिया लेकिन मुझे उनकी आँखों में कुछ और ही दिखा.

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गुरुजी – रश्मि , चंदन की थाली मुझे दो.

मैंने चंदन की थाली गुरुजी को दे दी . उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं और मंत्र पढ़ने लगे. काजल सर झुकाए फर्श को देख रही थी , वो एक मर्द के सामने सिर्फ़ ब्रा पैंटी में खड़े होकर बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही होगी. कहने को तो उसकी कमर में भगवा वस्त्र लिपटा हुआ था पर उसका कुछ फायदा नहीं था क्यूंकी पारदर्शी कपड़ा होने से उसकी छोटी सी सफेद पैंटी साफ दिख रही थी. अब गुरुजी ने आँखें खोली और काजल के माथे में चंदन का टीका लगाया.

गुरुजी – अब मेरी तरह ज़ोर से मंत्र पढ़ो.

मंत्र पढ़ते हुए गुरुजी झुके और काजल की नाभि में चंदन का टीका लगाया और फिर पंजों पर बैठकर काजल की टाँगों से कपड़ा हटाकर उसकी चिकनी जांघों पर भी टीका लगा दिया. 

गुरुजी – काजल बेटी अब हम साथ साथ हवन करेंगे. हवन हमारे शरीर के अंदर के दोषों को दूर करने की प्रक्रिया है. अगर तुमने इसे ठीक से पूरा कर लिया तो तुम अपनी पढ़ाई में आने वाली बाधाओं को सफलतापूर्वक पार कर सकोगी
गुरुजी – मेरे पास आओ बेटी.

काजल गुरुजी के पास चली गयी और हाथ जोड़कर अग्निकुण्ड के पास खड़ी हो गयी. उसका करीब करीब नंगा बदन अग्नि की लपटों से लाल लग रहा था.

गुरुजी – लिंगा महाराज के सामने कुछ भी मत छिपाओ. माध्यम के रूप में मैं भी उसका ही एक भाग हूँ. मुझे बताओ क्या तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है ?

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काजल शरमा गयी और कुछ देर तक चुप रही. गुरुजी ने धैर्यपूर्वक उसके जवाब देने का इंतज़ार किया.

काजल – हाँ गुरुजी.

गुरुजी – हम्म्म ….मेरा अंदाज़ा है की जबसे तुम उससे मिली हो ज़्यादातर तब से ही अपनी पढ़ाई से तुम्हारा ध्यान भटका है.

काजल ने हाँ में सर हिला दिया.

गुरुजी – तुम दोनों कब कब मिलते हो ? वो कॉलेज में है क्या ?

काजल – हाँ गुरुजी, वो कॉलेज में है. हम हफ्ते में दो तीन बार मिलते हैं.

गुरुजी – तुम उसे कब से जानती हो ?

काजल – जी, तीन चार महीने से.

गुरुजी – तुम दोनों का संबंध कितनी दूर तक गया है ?

काजल ने आँखें झुका ली और फर्श को देखने लगी. ये देखकर मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था की कैसे गुरुजी बड़ी चालाकी से काजल की पर्सनल बातों को उगलवा रहे हैं.

गुरुजी – काजल बेटी, तुमने कोई पाप नहीं किया है जो तुम गिल्टी फील कर रही हो. मुझे बताओ कितनी दूर तक गये हो ?

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एक लड़की के लिए ये एक मुश्किल सवाल था क्यूंकी उसको बताना था की उसने अपने बॉयफ्रेंड को अपने साथ क्या क्या करने दिया है.

काजल – गुरुजी, हमने साथ साथ समय बिताया है, मेरा मतलब…..बस इतना ही, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.

गुरुजी – क्या उसने तुम्हारा चुम्बन लिया है ?

गुरुजी ने अब सीधे सीधे पूछना शुरू कर दिया . कुछ पल तक चुप रहने के बाद काजल ने जवाब दिया.

काजल – मैंने इन चीज़ों से अपने को बचाने की कोशिश की . लेकिन गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए, परिस्थितियों ने मुझे इतना कमज़ोर बना दिया की…

गुरुजी – हम्म्म ….तुम लोग अक्सर कहाँ समय बिताते हो ?

काजल – जी, वाटरवर्ल्ड या लुंबिनी पार्क में.

मैं तो बाहर से आई थी इसलिए मुझे इन जगहों के बारे में नहीं पता था. लेकिन लगता था की गुरुजी इन जगहों को जानते थे.

गुरुजी – लुंबिनी पार्क ! वो तो खराब जगह है. ख़ासकर शाम को तो वहाँ आवारा लोगों का जमावड़ा रहता है.

काजल – लेकिन गुरुजी हम वहाँ शाम को कभी नहीं गये. हम स्कूल के बाद 3-4 बजे वहाँ जाते थे. 

गुरुजी – अच्छा अब ये बताओ की परिस्थितियों ने तुम्हें कमज़ोर कैसे बना दिया ? बेटी, कुछ भी मत छिपाना. लिंगा महाराज के सामने दिल खोलकर सब कुछ सच बताना.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

काजल को अब पसीना आने लगा था और वो कुछ गहरी साँसें लेने लगी थी जिससे उसकी सफेद ब्रा में चूचियाँ कुछ ज़्यादा ही उठ रही थीं.

काजल – गुरुजी, शुरू में तो सिर्फ़ ये होता था की पार्क बेंच में बैठकर हम बातें करते थे और घूमते समय एक दूसरे का हाथ पकड़ लेते थे बस इतना ही. लेकिन जैसे जैसे दिन गुज़रते गये मुझे उसके छूने से अच्छा लगने लगा और मेरी भी इच्छा होने लगी की वो मुझे छुए. एक दिन हल्की बूंदाबादी हो रही थी और हम दोनों एक छाता के नीचे चल रहे थे. पार्क में जिस बेंच में हम अक्सर बैठते थे उस दिन उसमें एक जोड़ा बैठा हुआ था. हम भी उनके बगल में बैठ गये. उस दिन मैं अपने बॉयफ्रेंड को रोक नहीं पाई लेकिन ये पूरी तरह से मेरी ग़लती नहीं थी. 

गुरुजी – काजल बेटी, जो हुआ सब कुछ बताओ. ये भी तुम्हारे ‘दोष निवारण’ की एक प्रक्रिया है.

काजल – गुरुजी , जब हम उस जोड़े के बगल में बेंच में बैठे तो वो दोनों एक दूसरे के बहुत नज़दीक़ बैठे थे और जल्दी ही उन्होंने एक दूसरे के होठों को छूना शुरू कर दिया. फिर उस आदमी ने उस औरत को अपने आलिंगन में लेकर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया. गुरुजी वो हमसे सिर्फ़ एक फुट की दूरी पर थे और खुलेआम ऐसा कर रहे थे. वो औरत लगभग रश्मि आंटी की उमर की होगी और तब तक उसके कपड़े इतने अस्त व्यस्त हालत में आ गये थे की मुझे अपने बॉयफ्रेंड को उसकी तरफ देखने से रोकना पड़ा.

गुरुजी – मुझे सब कुछ बताओ बेटी. उसी दिन से तुम्हारी अपने बॉयफ्रेंड से नज़दीक़ियाँ बढ़ गयीं. ठीक ?

काजल – हाँ गुरुजी. ज़रा सोचिए खुलेआम वो दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे और उस औरत की साड़ी का पल्लू ज़मीन में गिरा हुआ था और उसके खुले हुए ब्लाउज और ब्रा में से एक चूची बाहर निकली हुई थी.

“खुले पार्क में ?”

वो सवाल पूछने से मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई.

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गुरुजी – रश्मि, तुम उस जगह को नहीं जानती. वहाँ कोई सिक्योरिटी गार्ड वगैरह नहीं रहते इसलिए कोई डिस्टर्बेंस नहीं होता. बेटी, फिर क्या हुआ ?

काजल – गुरुजी, अपने इतने नज़दीक़ ऐसा सीन देखकर हम दोनों भी एक्साइटेड हो गये. और फिर जब उसने मुझे आलिंगन में लिया तो मैं उसे रोक नहीं पाई. वो पहला दिन था, मेरा मतलब उस दिन पहली बार उसने मेरा चुंबन लिया.

गुरुजी – फिर ?

काजल – हम दोनों अपनी मुलाक़ातों को लेकर बहुत उत्सुक रहते थे और अपनी पढ़ाई से मेरा ध्यान भटकने लगा. हम पार्क में मिलते थे, बातें करते थे और मज़े में समय गुजारते थे. मुझे लगने लगा था की उसकी इच्छायें बढ़ते जा रही हैं और पार्क में सुनसानी होने से कोई रोक टोक नहीं थी उसके बाद तीसरी या चौथी मुलाकात में उसने चुंबन लेने के बाद मेरे पूरे बदन को छुआ और मेरी ड्रेस के अंदर भी. गुरुजी, मेरा विश्वास कीजिए, हर दिन मैं मन में सोचती थी की जब मैं उससे मिलूंगी तो अपने बदन को छूने नहीं दूँगी , लेकिन…..

गुरुजी – हम्म्म ….बेटी, लिंगा महाराज जानना चाहते हैं की तुम कितनी दूर तक गयी ? क्या तुम उसके साथ बेड तक …

काजल – नहीं नहीं गुरुजी. कभी नहीं.

कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया. गुरुजी अभी भी एक पैर पे सर के ऊपर हाथ जोड़े खड़े थे. लेकिन उनके कच्छे में उभार थोड़ा बढ़ गया था और बड़ा अजीब लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसी किसी पोल को कपड़े से ढक रखा हो.

काजल – गुरुजी मेरा विश्वास कीजिए, हम ज़्यादातर सिर्फ़ बातें ही करते थे. लेकिन अक्सर आस पास में कोई ना कोई जोड़ा ऐसी हरकतें कर रहा होता था और हम भी उनसे प्रभावित हो जाते थे. मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे टॉप के ऊपर से छुआ है लेकिन सीधे नहीं , मेरा मतलब…

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काजल थोड़ा रुकी और तभी गुरुजी ने एक बेहूदा सवाल पूछ लिया.

गुरुजी – तुमने अपने बॉयफ्रेंड का छुआ है ?

ऐसा कहते हुए उन्होंने अपनी आँखों से अपने लंड की तरफ इशारा किया. काजल एकदम बहुत शरमा गयी. मेरे भी ब्लाउज और ब्रा के अंदर निप्पल कड़क हो गये और चूत में सनसनी सी हुई.

गुरुजी – क्या हुआ बेटी ? तुमने बताया की तुम्हारे बॉयफ्रेंड ने तुम्हारी चूचियों को छुआ है पर क्या तुमने उसका नहीं छुआ ?

काजल ने ना में सर हिला दिया.

गुरुजी – सच बताओ. अभी तुम लिंगा महाराज के सामने हो .

काजल कुछ देर चुप रही और नीचे फर्श को देखती रही. फिर उसने सब कुछ बता दिया.

काजल – गुरुजी , आप सब कुछ जानते हैं. हाँ उसने मुझे इनरवियर के अंदर छुआ था और मैंने भी उसका छुआ था. पार्क में तो सिर्फ़ चुंबन और आलिंगन होता था , वैसे कभी कभी वो मेरे टॉप में भी हाथ डाल देता था पर मैं हमेशा मना ही करती थी. लेकिन जब हम वाटरवर्ल्ड जाने लगे तो नज़दीक़ आ गये. वहाँ पूल में जब वो मेरे नज़दीक़ आता था तो मैं उसे रोक नहीं पाती थी. पानी के अंदर वो मेरे स्विमिंग सूट के ऊपर से मुझे हर जगह छूता था और मैंने भी उसके अंडरवियर के ऊपर से उसका छुआ है.

काजल ने थोड़ा रुककर एक गहरी सांस ली.

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काजल – स्वाभाविक रूप से उसका मेरे बदन को छूना मुझे अच्छा लगता था लेकिन एक दिन कुछ ज़्यादा ही हो गया और मैंने तुरंत उसको मना कर दिया और उसने भी अपनी हरकत के लिए माफी माँगी. वाटरपार्क में लड़कों और लड़कियों के कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम अगल बगल थे. वो रूम्स छोटे छोटे थे. उस दिन हल्की बारिश थी और लोग भी बहुत कम थे. चेंजिंग रूम में कोई नहीं था . मैं वहाँ अपने कपड़े बदल रही थी तभी उसने दरवाज़ा खटखटाया और आवाज़ दी.

काजल ने अपने बॉयफ्रेंड का नाम नहीं लिया.

काजल – मैंने थोड़ा सा दरवाज़ा खोला और बाहर झाँका, वो मुझे धकेलते हुए अंदर घुस आया. मैं जैसे अभी हूँ वैसे ही सिर्फ़ अंडरगार्मेंट्स में थी. मैं अंडरगार्मेंट्स के ऊपर स्विमिंग सूट पहनने ही वाली थी की वो अंदर आ गया था. उसने अपने कपड़े बदलकर स्विमिंग ब्रीफ पहन लिया था. अंदर आते ही उसने मुझे आलिंगन में लिया और चूमना शुरू कर दिया. गुरुजी मैंने उससे बचने की कोशिश की पर मैं करीब करीब…..मेरा मतलब …नंगी थी, उसके मुझे छूने से मैं कमज़ोर पड़ती चली गयी ….

काजल ने सर झुका लिया और कुछ पलों तक चुप रही. 

काजल – गुरुजी , उस दिन पहली बार उसने मुझे अंडरगार्मेंट्स के अंदर छुआ. आप मेरी हालत समझ सकते हैं. मुझे डर भी लग रहा था. फिर मैंने उसे चेंजिंग रूम से बाहर निकाल दिया.

गुरुजी – उसने कुछ और करने की कोशिश नहीं की ?

काजल – उसने मेरी ब्रा उतारने की कोशिश की लेकिन मेरे विरोध करने से वो थोड़ा सा ही नीचे कर पाया.

गुरुजी – और इसको ?

गुरुजी ने अपनी आँखों से काजल की पैंटी की तरफ इशारा किया. कितनी अपमानजनक बात थी. लेकिन वो लड़की कर ही क्या सकती थी.

काजल – हाँ गुरुजी….मेरा मतलब….उसने इसे नीचे कर दिया था लेकिन उसके कुछ करने से पहले ही मैं तुरंत संभल गयी.

गुरुजी – हम्म्म ….तो उसने तुम्हारी चूत देख ली. तुमने उसका लंड देखा ?

गुरुजी के मुँह से सीधे ऐसे शब्द सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी. काजल भी ऐसे शब्दों का जवाब देने के लिए तैयार नहीं थी. उसके लिए बड़ी अजीब स्थिति थी. बल्कि ऐसा सवाल सुनकर मैं भी असहज महसूस कर रही थी. कुछ देर बाद काजल ने सर झुकाए हुए जवाब दिया.

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काजल – नहीं गुरुजी.

गुरुजी – लेकिन ऐसी सिचुयेशन में तुमने अपने हाथ से छुआ तो होगा.

काजल – उसने ज़बरदस्ती मुझे छूने पर मजबूर किया.

गुरुजी – ठीक है. ये जानकर अच्छा लगा की तुमने अपना कुँवारापन बचा लिया. लेकिन इससे ये तो पूरी तरह से साबित हो गया की तुम्हारा ध्यान अपनी पढ़ाई से क्यूँ भटका. लेकिन ध्यान रखो की शादी से पहले शारीरिक संबंध रखना हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं है. बल्कि किसी लड़के का तुम्हें चूमना या तुम्हारे बदन को छूना भी हमारी संस्कृति के अनुसार ठीक नहीं है. है की नहीं ?

काजल – जी गुरुजी.

गुरुजी – इसलिए बेहतर होगा की तुम अपने बॉयफ्रेंड से दूरी बना के रखो. लेकिन अगर तुम उसे वास्तव में चाहती हो तो संबंध बिगाड़ना मत. तुमने लिंगा महाराज के सामने सच स्वीकार किया है , तो अब तुमने
‘दोष निवारण’ की आधी प्रक्रिया पूरी कर ली है.

काजल ने सर हिलाया और काफ़ी देर बाद उसके चेहरे पर मुस्कान आई, ऐसा लग रहा था जैसे उसे बड़ी राहत हुई हो.

गुरुजी – ठीक है फिर. रश्मि , काजल बेटी को यज्ञ के शेष भाग के लिए तैयार करो.

मैंने गुरुजी की और प्रश्नवाचक निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे मालूम नहीं था की करना क्या है. वो मेरा चेहरा देखकर समझ गये.

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गुरुजी – काजल बेटी, लिंगा महाराज की पूजा और मंत्रोच्चार के दौरान तुम्हारा ध्यान भटक गया था , इस तरह उनकी पूजा तुमने पूरे मन से नहीं की क्यूंकी तुम्हारा ध्यान कहीं और था. अब मैं तुम्हें वो उपाय बताता हूँ जिससे लिंगा महाराज तुम्हें क्षमा कर दें. तुम्हारे इस दोष से मुक्ति पाने का उपाय ये है की तुम अपने को लिंगा महाराज को समर्पित कर दो.

काजल ने हाँ में सर हिला दिया , हालाँकि उसकी समझ में कुछ नहीं आया.

गुरुजी – रश्मि सफेद साड़ी को फर्श में फैला दो और काजल बेटी के बदन में चंदन का लेप लगाओ.

“जी गुरुजी.”

नंदिनी ने जो सफेद साड़ी मुझे दी थी मैंने उसको फर्श में फैला दिया और काजल से उसमें लेटने के लिए कहा.

काजल – लेकिन ये तो मेरी मम्मी की साड़ी नहीं है.

गुरुजी – हाँ बेटी, मैंने यज्ञ के लिए मँगवाई है.

“हाँ, ये तो विधवा औरतों की साड़ी जैसी लग रही है.”

काजल साड़ी में लेट गयी. उसकी ब्रा से ढकी हुई चूचियाँ दो चोटियों जैसी लग रही थीं. मैंने वो बड़ा सा कटोरा उठा लिया जिसमें गुरुजी ने चंदन का लेप बनाया था.

गुरुजी – रश्मि, अब तुम इसकी कमर से कपड़ा निकाल सकती हो.

काजल ने अनिच्छा से अपने नितंब ऊपर को उठाए और मैंने उसके बदन को कुछ हद तक ढक रहा आख़िरी कपड़ा निकाल दिया. वैसे तो उस कपड़े से उसकी सफेद पैंटी साफ दिख रही थी लेकिन फिर भी गुरुजी के सामने वो कपड़ा लपेटने से काजल को कुछ तो कंफर्टेबल फील हो रहा होगा. अब वो सिर्फ ब्रा पैंटी में थी. शरम से उसने तुरंत अपना दायां हाथ पैंटी के ऊपर रख दिया. मैंने कटोरे से अपने दाएं हाथ में चंदन का लेप लिया और काजल के माथे और गालों में लगाया. फिर उसके बाद गर्दन और छाती के ऊपरी भाग में लगाया. काजल के गोरे बदन में चंदन का लेप ऐसा लग रहा था जैसे एक दूसरे के पूरक हों. मैंने शरारत से थोड़ा चंदन उसकी चूचियों के बीच की घाटी में भी लगा दिया. लेकिन शरम की वजह से काजल अभी मुस्कुराने की हालत में भी नहीं थी. 

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गुरुजी अब अग्निकुण्ड के सामने आँखें बंद करके बैठ गये थे . ये देखकर काजल ने मुझसे कुछ कहने के लिए अपना सर थोड़ा सा ऊपर उठाया.

काजल – आंटी, मेरे पूरे बदन में चंदन क्यों लगाना है ?

मैंने उसकी फुसफुसाहट के जवाब में कंधे उचका दिए की मुझे नहीं मालूम. फिर उसने जाहिर सा सवाल पूछ दिया.

काजल – आंटी, मुझे ये भी उतारने पड़ेंगे ?

काजल ने अपने अंडरगार्मेंट्स की तरफ इशारा करते हुए पूछा. मेरे पास इसका भी कोई जवाब नहीं था. काजल मेरा चेहरा देखकर समझ गयी और अब उसने अपना सर वापस फर्श में रख लिया. मैंने उसके पेट में भी चंदन लगा दिया था. अब मैं उसकी नंगी जांघों में लेप लगाने लगी और मेरी अंगुलियों के उसकी नंगी त्वचा को छूने से उसके बदन में कंपकपी को मैं महसूस कर रही थी. मैंने ख्याल किया अब गुरुजी ने आँखें खोल दी हैं और फिर उन्होंने जय लिंगा महाराज का जाप किया.

“गुरुजी, इसकी पीठ में भी लगाना होगा क्या ?”

गुरुजी – नहीं सिर्फ आगे लगाना है. धन्यवाद रश्मि, अब तुम वहाँ बैठ जाओ.

गुरुजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए. उनका लंड अभी भी कच्छे को भोंडी तरह से ताने हुए था. अग्नि के सामने उनका लंबा चौड़ा बालों से भरा हुआ नंगा बदन डरावना लग रहा था. अब वो काजल के पास आकर बैठ गये. मैंने ख्याल किया की काजल ने पहले ही आँखें बंद कर ली हैं. अबकी बार गुरुजी मुझे कुछ ज़्यादा ही सक्रिय लग रहे थे. काजल उनके सामने सफेद साड़ी में सिर्फ छोटे से अंतर्वस्त्रों में लेटी हुई थी. उन्होंने काजल के बदन में कुछ फूल फेंके और मंत्र पढ़े और फिर उसके पैरों के पास बैठ गये.

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गुरुजी – काजल बेटी , सबसे पहले मैं तुम्हारे बदन के बाहरी भाग से ‘दोष निवारण’ करूँगा. तुम जैसी हो वैसे ही लेटी रहो. जो करना होगा वो मैं कर लूँगा.

काजल चुपचाप रही और मैं ये देखकर शॉक्ड रह गयी की अब गुरुजी ने झुककर उसकी टाँगों को चाटना शुरू कर दिया. उन्होंने दोनों हाथों से काजल की नंगी टाँगें पकड़ लीं और चंदन को चाटना शुरू कर दिया जो कुछ ही पल पहले मैंने लगाया था. वो लंबी जीभ निकालकर काजल की चिकनी टाँगों को चाट रहे थे. अपनी टाँगों पर गुरुजी की गीली जीभ लगने से काजल के बदन में कंपकपी होने लगी. मैंने ख्याल किया की उसकी मुट्ठियां बंध गयी थी और वो अपने दाँत भींचकर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पाने की कोशिश कर रही थी. स्वाभाविक रूप से एक मर्द की गीली जीभ लगने से उसको सहन करना मुश्किल हो रहा होगा.

काजल की हालत मैं अच्छी तरह से समझ रही थी. वो तो अभी लड़की थी , मैं तो शादीशुदा थी और सेक्स के काफ़ी अनुभव ले चुकी थी फिर भी जब भी मेरे पति मेरे साथ ऐसा करते थे तो मेरे लिए सहन करना मुश्किल हो जाता था. मेरे पति ने ऐसा सुख मुझे बहुत बार दिया था. एक बात जो मुझे पसंद नहीं आती थी वो ये थी की मेरे पति मुझे पूरी नंगी करके ही मेरी टाँगों और जांघों को चाटते थे जबकि मुझे पैंटी या कोई और कपड़ा पहनकर ही इसका मज़ा लेना अच्छा लगता था.

शायद औरत होने की स्वाभाविक शरम से मैं ऐसा महसूस करती थी. क्यूंकी अगर मैं किसी मर्द को अपनी जाँघें चूमने देती हूँ तो इसका मतलब ये है की मैं उसकी बाँहों में नंगी हूँ. लेकिन मेरी समस्या ये थी की जब मेरे पति मेरी टाँगों और जांघों को चाट रहे होते थे तो उनका हाथ मेरे प्यूबिक हेयर्स को सहलाता और खींचता रहता था , जिससे मैं बहुत अनकंफर्टेबल फील करती थी. इसलिए मुझे ज़्यादा मज़ा तभी आता था जब मैंने पैंटी पहनी होती थी पर ऐसा कम ही होता था. 

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अब गुरुजी ने काजल के दोनों तरफ हाथ रख लिए थे और उसकी टाँगों को चाटते हुए घुटनों तक पहुँच गये थे. मैंने देखा उनके कच्छे में उभार भी थोड़ा बढ़ गया है , स्वाभाविक था आख़िर गुरुजी भी थे तो एक मर्द ही. अब गुरुजी रुक गये और ज़ोर से कुछ मंत्र पढ़े और फिर से उस सेक्सी लड़की की नंगी टाँगों को चाटने लगे. काजल की गोरी गोरी मांसल जांघों पर गुरुजी की जीभ लपलपाने लगी. काजल आँखें बंद किए चुपचाप लेटी रही , उसका चेहरा शरम से लाल हो गया था. गुरुजी अब काजल की पैंटी के पास पहुँच गये थे , उन्होंने कुछ कहने के लिए अपना सर उठाया.

गुरुजी – बेटी, अपनी टाँगें खोलो.

काजल ने आँखें खोल दी लेकिन उसके चेहरे पर उलझन के भाव थे. उसने टाँगें चिपका रखी थी. वो सोच रही होगी की अगर टाँगें खोलती हूँ तो गुरुजी टाँगों के बीच में मुँह डाल देंगे. स्वाभाविक था की वो हिचकिचा रही थी. 

गुरुजी – बेटी, मुझे ठीक से कार्य करना है. तुम अपनी टाँगें पूरी खोल दो और बिल्कुल मत शरमाओ. 

मैं सब देख रही थी. काजल ने अनिच्छा से थोड़ी सी टाँगें खोल दी लेकिन गुरुजी संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने थोड़ा ज़ोर लगाकर काजल की नंगी टाँगों को फैला दिया. काजल के कुछ कहने से पहले ही गुरुजी ने ज़ोर से जय लिंगा महाराज का जाप किया और काजल की गोरी जांघों के अंदरूनी भाग को चाटने लगे. 

काजल – उम्म्म्म……गुरुजी….

गुरुजी रुके और सर उठाकर देखा.

गुरुजी – बेटी , अपने मन में इस मंत्र का जाप करती रहो और अपनी शारीरिक भावनाओं पर ध्यान मत दो.

ऐसा कहते हुए उन्होंने काजल को एक मंत्र दिया और अपने मन में जाप करने को कहा. काजल उस मंत्र का जाप करने लगी और गुरुजी ने उसकी जांघों को फिर से चाटना शुरू कर दिया. मैंने देखा की गुरुजी अब काजल की जांघों के ऊपरी भाग से चंदन को चाट रहे हैं. उनका मुँह काजल की पैंटी के बिल्कुल पास पहुँच गया था और काजल बहुत असहज महसूस करते हुए फर्श पर अपने बदन को इधर उधर हिला रही थी. गुरुजी की जीभ उसकी जांघों के सबसे ऊपरी भाग में पैंटी के थोड़ा नीचे घूम रही थी. उस सेंसिटिव हिस्से में एक मर्द की जीभ और नाक लगने से कोई भी औरत उत्तेजना से बेकाबू हो जाती. काजल का भी वही हाल था और वो ज़ोर ज़ोर से सिसकारियाँ लेने लगी थी.

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काजल – उहह…..आआहह….उफफफफफ्फ़…..

मैंने ख्याल किया की गुरुजी ने काजल की पैंटी के आस पास मुँह , जीभ और नाक लगाई लेकिन उसके गुप्तांग को नहीं छुआ और जय लिंगा महाराज का जाप करने के बाद उसकी नाभि से चंदन चाटने लगे. अब काजल का निचला बदन गुरुजी के बदन से ढक गया था. नाभि और चिकने पेट पर गुरुजी की जीभ लगने से काजल बहुत उत्तेजित हो गयी और ज़ोर से सिसकने लगी. वो दृश्य ऐसा ही था जैसे मैं बेड में नंगी लेटी हूँ और मेरे पति चुदाई करने के लिए धीरे धीरे मेरी टाँगों से मेरे बदन के ऊपर चढ़ रहे हों.

अपनी आँखों के सामने ये सब होते देखकर अब मेरी साँसें भारी हो गयी थीं और मेरी ब्रा के अंदर चूचियाँ वैसी ही टाइट हो गयी थीं जैसी लगभग दो घंटे पहले बाथरूम में गुप्ताजी के मसलने से हुई थीं. मैं ये कभी नहीं भूल सकती की बाथरूम में कैसे गुप्ताजी ने मुझसे छेड़खानी की थी और चुदने से बचने के लिए मुझे उसकी मूठ मारनी पड़ी थी.

गुरुजी ने अब काजल के पेट को पूरा चाट लिया था. गुरुजी जैसे जैसे ऊपर को बढ़ते जा रहे थे , अपने बदन को काजल के ऊपर खिसकाते जा रहे थे. हर एक अंग को चाटने के बाद वो जय लिंगा महाराज का जाप करते और फिर ऊपर को बढ़ जाते. काजल वही मंत्र बुदबुदा रही थी जो कुछ मिनट पहले गुरुजी ने उसे दिया था. लेकिन जब कोई मर्द किसी लड़की के बदन को चाट रहा हो तो उसका ध्यान किसी और चीज़ पर कैसे लग सकता है ? अब गुरुजी काजल के कंधों और गर्दन से चंदन को चाटने लगे और फिर उसके चेहरे पे आ गये. अब काजल का नाज़ुक बदन गुरुजी के विशालकाय नंगे बदन से पूरा ढक चुका था. गुरुजी ने काजल के माथे को चाटना शुरू कर दिया.

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गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

अब गुरुजी काजल के गालों को चाटने लगे. उनकी चौड़ी छाती से काजल की ब्रा से ढकी नुकीली चूचियाँ पूरी तरह से दबी हुई थीं. उन्होंने काजल के बदन के ऊपर अपने बदन को ऐसे एडजस्ट किया हुआ था की कच्छे के अंदर उनका लंड ठीक काजल की पैंटी के ऊपर था. जिस तरह से काजल अपनी टाँगों को हिला रही थी उससे साफ जाहिर हो रहा था की एक मर्द के अपने बदन के ऊपर चढ़ने से वो बहुत कामोत्तेजित हो गयी थी.

मैं फर्श पे बैठी हुई थी और गुरुजी अब क्या कर रहे हैं देखने के लिए अपना सर थोड़ा सा टेढ़ा किया. मैंने देखा गुरुजी ने दोनों हाथों में काजल का चेहरा पकड़ लिया. काजल की आँखें बंद थी. फिर गुरुजी ने अपने मोटे होंठ काजल के नाज़ुक होठों पर रख दिए. गुरुजी काजल का चुंबन ले रहे थे. शुरू में काजल हिचकिचा रही थी फिर गुरुजी के डर या आदर से उसने समर्पण कर दिया.

वो चुंबन धीमा पर लंबा था. मैं वहीं पर बैठकर सूखे गले से ये सब देख रही थी, मेरा भी मन हो रहा था की कोई मर्द मुझे भी ऐसे चूमे. बाथरूम में कुछ देर पहले गुप्ताजी ने मेरे होठों को चूसा था , वही याद करके मैंने अपने सूखे होठों पर जीभ फिरा दी. मैंने देखा अभी मुझे कोई नहीं देख रहा है , तो अपने बैठने की पोज़िशन एडजस्ट करते हुए थोड़ी सी टाँगें खोल दीं और साड़ी के ऊपर से अपनी चूत सहला और खुजा दी. अब गुरुजी और काजल का चुंबन पूरा हो चुका था और गुरुजी ने काजल के गीले होठों से अपना चेहरा ऊपर उठाया. लंबे चुंबन से काजल की साँसें उखड़ गयी थीं और वो हाँफ रही थी. उसके चेहरे से लग रहा था की उसने चुंबन का मज़ा लिया है लेकिन गुरुजी जैसी शख्सियत के साथ चुंबन से उसके चेहरे पर घबराहट और विस्मय के भाव भी थे. गुरुजी अब काजल के बदन से उठ गये और उसके पास बैठ गये.

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गुरुजी – काजल बेटी, अब मैं तुम्हारे मन और शरीर से ‘दोष निवारण’ करूँगा. मैंने ख्याल किया की जब मैं तुम्हारे होठों को शुद्ध कर रहा था तब तुम काँप रही थी. ऐसा क्यूँ ? तुम डर क्यूँ रही थी बेटी ?

काजल – जी गुरुजी.

गुरुजी – क्यूँ बेटी ? जब तुम्हारा बॉयफ्रेंड तुम्हारा चुंबन लेता है तब भी तुम घबराती हो ? मुझे ‘दोष निवारण’ की प्रक्रिया का ठीक से पालन करना होगा नहीं तो लिंगा महाराज रुष्ट हो जाएँगे और ना सिर्फ तुम्हें बल्कि मुझे भी उनका प्रकोप भुगतना पड़ेगा. इसलिए घबराओ मत और अपने बदन को ढीला छोड़ दो.

काजल ने सर हिला दिया.

गुरुजी – देखो , तुम कितनी देर से अंतर्वस्त्रों में हो. शुरू में तुम बहुत शरमा रही थी. लेकिन अब तुम उतना नहीं शरमा रही हो. इसलिए इन बातों पर ज़्यादा ध्यान मत दो और जो मंत्र मैंने तुम्हें दिया है उसका जाप करती रहो. तुम्हारी आत्मा के शुद्धिकरण के लिए जो करना है वो मुझे करने दो.

काजल फिर से शरमाने लगी क्यूंकी गुरुजी की बात से उसको ध्यान आया की वो एक मर्द के सामने सिर्फ ब्रा पैंटी में लेटी है. गुरुजी की बात का वो कोई जवाब नहीं दे पायी.

गुरुजी – मैं जानता हूँ की तुम्हारे मन में कुछ शंकाएँ हैं, कुछ प्रश्न हैं और यही कारण है की बार बार तुम्हारा ध्यान भटक जा रहा है. मैं चाहता हूँ की तुम उस स्थिति को प्राप्त करो जहाँ तुम्हारा ध्यान बिल्कुल ना भटके.

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काजल – वो कैसे गुरुजी ?

गुरुजी – अपनी आँखें बंद कर लो और मंत्र का जाप करो. मन में किसी शंका, किसी प्रश्न को आने मत दो. जो मैं करूँ उसकी स्वाभाविक प्रतिक्रिया दो. ठीक है ?

काजल ने सर हिलाकर हामी भर दी. पर उसे मालूम नहीं था की इस तरह उसने गुरुजी को अपने खूबसूरत अनछुए बदन से खेलने की खुली छूट दे दी है.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज. बेटी अपनी आँखें बंद कर लो और मंत्र का जाप करती रहो जब तक की मैं रुकने के लिए ना बोलूँ. ‘दोष निवारण’ की प्रक्रिया में अगला भाग है तुम्हारे बदन के बाहरी भाग की शुद्धि. रश्मि, मुझे वो जड़ी बूटी वाले पानी का कटोरा लाकर दो.

गुरुजी मेरी तरफ देखेंगे या मुझे कोई आदेश देंगे, इसकी अपेक्षा मैं नहीं कर रही थी. और इसके लिए तैयार भी नहीं थी. क्यूंकी काजल के साथ गुरुजी जो हरकतें कर रहे थे उन्हें देखकर मैं कामोत्तेजित हो गयी थी और उस समय अपने दाएं हाथ से ब्लाउज के ऊपर निप्पल को सहलाने और दबाने में मगन थी. इसलिए जब उन्होंने मेरी तरफ देखकर मुझे आदेश दिया तो मैं हड़बड़ा गयी.

“जी…जी गुरुजी.”

मैं जल्दी से उठी और पानी का कटोरा लाकर गुरुजी को दिया. गुरुजी ने मुझसे कटोरा ले लिया लेकिन आँखों से मेरी गांड की तरफ इशारा किया. मैं हैरान हुई की क्या कहना चाह रहे हैं ? मैंने उलझन से उनकी तरफ देखा तो उन्होंने बिना कुछ बोले, मेरी दायीं जाँघ पकड़कर मुझे थोड़ा घुमाया और मेरी गांड की दरार में फँसी हुई साड़ी खींचकर निकाल दी. उनकी इस हरकत से मुझे इतनी शर्मिंदगी हुई की क्या बताऊँ. असल में बैठी हुई पोजीशन से मैं हड़बड़ाकर जल्दी से उठी थी तो अपने नितंबों पर साड़ी फैलाना भूल गयी और साड़ी मेरे नितंबों की दरार में फँसी रह गयी . मुझे मालूम है की ऐसे मैं बहुत अश्लील लगती हूँ. मैं गुरुजी के सामने खड़ी थी और शरम से मेरा मुँह लाल हो गया था और

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मेरी नजरें फर्श पर झुक गयीं.

वैसे तो मैं जब भी देर तक बैठती हूँ तो खड़े होते समय इस बात का ख्याल रखती हूँ लेकिन कभी कभी ध्यान नहीं रहता जैसा की आज हुआ था.एक बार मैं बस से बाजार गयी थी और जब बस से उतरी तो साड़ी ठीक करने का ध्यान नहीं रहा. मुझे मालूम नहीं था की मेरी साड़ी गांड की दरार में फँसी हुई है. मैं पूरे बाजार में ऐसे ही घूमती रही और मेरे मटकते हुए बड़े नितंबों के बीच फँसी साड़ी को ना जाने कितने मर्दों ने देखा होगा. मुझे तब पता चला जब एक कॉस्मेटिक्स शॉप में किसी औरत ने मुझे बताया.

लेकिन आज से पहले कभी किसी मर्द की इतनी हिम्मत नहीं हुई की वो मेरी साड़ी को अपने हाथ से ठीक कर दे. घर में काम करते हुए मेरे पति ने कई बार मुझे इस हालत में देखा होगा लेकिन वो भी कभी नहीं बताते थे. लेकिन वो जानबूझकर ऐसा करते थे क्यूंकी मेरी बड़ी गांड में फँसी साड़ी में मुझे अपने सामने इधर उधर चलते हुए देखने का मजा जो लेना होता था. 

मैं ख्यालों में डूबी हुई थी. मुझे तब होश आया जब गुरुजी ने मंत्रोच्चार शुरू किया. उन्होंने काजल के बदन में पानी छिड़का और मुझे अपनी जगह बैठने को कहा. गुरुजी ने काजल के बदन में बचे हुए चंदन को अपने दाएं हाथ से पानी से साफ कर दिया. काजल आँखें बंद किए हुए लेटी थी लेकिन गुरुजी के अपनी गर्दन, नाभि, पेट और नंगी जांघों को छूने से थोड़ा कांप रही थी. गुरुजी ने उसके ऊपर काफ़ी पानी छिड़क दिया था जिससे उसकी सफेद ब्रा और पैंटी भी गीली हो गयी थी. उसकी गीली हो चुकी ब्रा में निप्पल तने हुए थे जो अब साफ दिख रहे थे. गुरुजी के जीभ लगाकर चाटने से वो बहुत गरम हो गयी थी. 

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

अब गुरुजी काजल के बगल में बैठकर गौर से उसे देख रहे थे. मैंने ख्याल किया उनकी नज़रें काजल की ब्रा से झाँकती चूचियों पर थी. पानी छिड़कने से काजल की गोरी त्वचा चमकने लगी थी और बहुत लुभावनी लग रही थी. अब गुरुजी ने काजल के दोनों तरफ हाथ रख लिए और उसके चेहरे पे झुके. मैं सोचने लगी , गुरुजी क्या कर रहे हैं ? उन्होंने काजल के दोनों कानों को धीरे से चूमा. काजल के बदन में कंपकपी दौड़ गयी. फिर उनके मोटे होंठ काजल के गालों से होते हुए उसकी गर्दन पर आ गये. और फिर उसकी गर्दन को चूमने लगे. काजल हाँफने लगी और उसकी टाँगें अलग अलग हो गयीं.

उनके लव सीन को देखकर मुझे आनंद आ रहा था. उसके बाद गुरुजी ने काजल के हाथों को चूमा. उनके होठों ने एक एक करके दोनों बाँहों को कांख तक चूमा. काजल अब गहरी साँसें लेने लगी थी. ये पहली बार था जब इतने कम कपड़ों में कोई मर्द उसके बदन को चूम रहा था. फिर गुरुजी ने उसकी नाभि, पेट, जांघों और घुटनों को चूमा. उसके बाद वो काजल के पैरों के पास बैठ गये और उसकी बायीं टाँग को अपनी गोद में उठा लिया. मैंने देखा कच्छे में गुरुजी का लंड खड़ा हो गया था और उन्होंने जानबूझकर काजल के पैर को अपने लंड से छुआ दिया.

गुरुजी ने थोड़ी देर तक अपनी आँखें बंद कर लीं. शायद वो अपने लंड से काजल के पैर को महसूस कर रहे थे . फिर उन्होंने ऐसा ही उसकी दायीं टाँग को अपनी गोद में उठाकर किया. फिर उन्होंने वो किया जिससे कोई भी औरत उत्तेजना से पागल हो जाती. उन्होंने काजल की दायीं टाँग ऊपर उठाई और उसका तलवा चाटने लगे.

काजल – आआईयईईईईईईईईई……गुरुजी प्लीज़……….

काजल उत्तेजना से सिसकी , जो की स्वाभाविक ही था. गुरुजी के तलवा चाटने से वो फर्श पे अपने नितंबों को इधर उधर हिलाने लगी , उसकी टाँग गुरुजी ने ऊपर उठा रखी थी और वो दृश्य देखने में बहुत अश्लील लग रहा था. मैंने अपनी नजरें झुका लीं. गुरुजी ने ऐसा ही दूसरे पैर के साथ भी किया और काजल की पैंटी ज़रूर गीली हो गयी होगी. उसने अपनी आँखें बंद ही रखी थीं और उसके चेहरे पर शरम और कामोत्तेजना के मिले जुले भाव आ रहे थे.

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

मैंने देखा की गुरुजी ने बड़ी चालाकी से काम किया और काजल को राहत दिए बिना उसे खड़ा कर दिया. काजल मुझसे नजरें नहीं मिला पाई और नीचे फर्श को देखने लगी. गुरुजी अब उसके पीछे खड़े हो गये. उनका खड़ा लंड काजल के उभरे हुए नितंबों में चुभ रहा था. गुरुजी ने अपनी बाँहें उसके पेट में लपेट दीं. अब वो गुरुजी की बाँहों के घेरे में थी. गुरुजी ने उसके कान में कुछ कहा जो मुझे सुनाई नहीं दिया. काजल आँखें बंद किए चुपचाप खड़ी रही और उसके होंठ कुछ बुदबुदा रहे थे ,

शायद गुरुजी ने कोई मंत्र जपने को बोला था. अब पहली बार गुरुजी की अँगुलियाँ काजल के बदन के सबसे सेंसिटिव भाग में पहुँच गयीं. गुरुजी धीरे से काजल की पैंटी के ऊपर अँगुलियाँ फिरा रहे थे. काजल पीछे को गुरुजी के बदन पर झुक गयी और वो दृश्य देखकर मेरे निप्पल कड़क होकर ब्रा के कपड़े को छेदने लगे. असहज महसूस करके मुझे अपने ब्लाउज और ब्रा को एडजस्ट करना पड़ा.

तब तक गुरुजी ने काजल की ब्रा का हुक खोल दिया जिससे काजल असहज हो गयी और उसने हल्का सा विरोध किया.

काजल – गुरुजी , प्लीज़……मैं बहुत असहज महसूस………..

गुरुजी – काजल बेटी, तुम अपने को शारीरिक रूप से लिंगा महाराज को समर्पित करने के लिए अपने मन को दृढ़ बनाओ. मुझसे क्या शरमाना ? अगर रश्मि आंटी के यहाँ होने से तुम असहज महसूस कर रही हो तो बोलो ?

गुरुजी की बाँहों में काजल थोड़ा हिली और उसकी ब्रा का हुक खुला होने से चूचियाँ उछल गयीं.

काजल – नहीं नहीं , रश्मि आंटी से मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही लेकिन……

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

काजल बोलते हुए अभी भी गुरुजी के बदन में झुकी हुई थी और जवाब देते हुए गुरुजी भी उसके नंगे पेट के निचले भाग में अँगुलियाँ फिरा रहे थे. मैं सोच रही थी, ये तो हद हो रही है.

गुरुजी – काजल बेटी, मैं कोई पहली बार ‘दोष निवारण’ नहीं कर रहा हूँ. तुम्हारी उमर ही कितनी है ? 18 ? मेरे सामने तुम्हारी माँ की उमर की औरतों को ‘दोष निवारण’ के लिए अपने अंतर्वस्त्र उतारने पड़ते हैं. यही नियम है बेटी. और अगर वो औरतें नहीं शरमाती हैं तो तुम क्यूँ असहज महसूस कर रही हो ?

काजल – लेकिन….

काजल अभी भी कोई तर्क करना चाह रही थी , तभी अचानक गुरुजी ने उसकी पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया और उसकी चूत को सहलाने लगे.

काजल – आउच….आआअहह.

अब माहौल बहुत गर्म हो गया था. काजल की ब्रा खुली हुई थी और उसकी पैंटी में एक मर्द का हाथ घुसा हुआ था , वो हाँफने लगी और उसकी टाँगें जवाब देने लगीं. गुरुजी बहुत चतुराई से एक एक कदम आगे बढ़ा रहे थे.

गुरुजी – काजल बेटी, अगर तुम्हें बहुत शरम आ रही है तो एक काम करो. अपनी आँखें बंद कर लो और अपनी योनि के ऊपर हथेलियां रख लो.

मैं हैरान हो गयी की गुरुजी काजल की पैंटी में हाथ डालकर उसे सलाह दे रहे हैं. काजल अभी भी आश्वस्त नहीं हुई थी , जो की उसकी उमर की लड़की के लिहाज से स्वाभाविक था.

काजल – नहीं गुरुजी, मैं नहीं कर सकती…..

चुदाई का आश्रम पार्ट 5 – Hindi Sex Kahani

ऐसा कहते हुए उसने वो किया जिसकी अपेक्षा नहीं थी. वो गुरुजी की तरफ मुड़ी और शरम से उनकी चौड़ी छाती में मुँह छुपा लिया. गुरुजी को उसकी पैंटी से हाथ बाहर निकालना पड़ा और कुछ पल के लिए तो उन्हें भी समझ नहीं आया की कैसे रियेक्ट करें. लेकिन जल्दी हो वो संभल गये.

गुरुजी – काजल बेटी , शरमाओ मत. देखो तुम्हारी आंटी तुम्हें देखकर मुस्कुरा रही है.

मैं बिल्कुल भी नहीं मुस्कुरा रही थी. लेकिन जब गुरुजी और काजल , दोनों ने मुड़कर मुझे देखा तो मुझे मुस्कुराना पड़ा.

“हाँ काजल…”

मैं और कुछ नहीं बोल पाई. और कहती भी क्या ? “हाँ , हाँ , अपने अंतर्वस्त्र खोल दो और नंगी हो जाओ” , खुद एक औरत होते हुए मैं उस लड़की से ऐसा कैसे कह सकती थी ? 

गुरुजी ने मेरी बात पूरी कर दी.

गुरुजी – अब तो तुम्हारी आंटी ने भी कह दिया है. अब तुम्हें शरमाना नहीं चाहिए.

ऐसा कहते हुए वो काजल से अलग हो गये. काजल सर झुकाए खड़ी थी उसकी ब्रा के हुक कांखों के नीचे लटक रहे थे और शरम से उसने अपनी छाती पे बाँहें आड़ी करके रखी हुई थीं. 

गुरुजी – काजल बेटी, समय बर्बाद मत करो. अपने अंतर्वस्त्र उतारो.

काजल चुपचाप खड़ी रही. गुरुजी ने सख़्त आवाज़ में आदेश दोहराया.

गुरुजी – मैंने कहा…..बिल्कुल नंगी !!

काजल ने धीरे धीरे अपनी छाती से ब्रा हटानी शुरू की और जब उसने ब्रा फर्श में गिरा दी तो उसकी चूचियाँ अनार के दानों जैसी लग रही थीं. उसकी गोरी चूचियाँ कसी हुई थीं और उनमें गुलाबी रंग के निप्पल तने हुए खड़े थे. मैंने ख्याल किया उनकी खूबसूरती देखकर गुरुजी रोमांचित लग रहे थे , 18 बरस की कमसिन लड़की की कसी हुई अनछुई चूचियों को देखकर कौन नहीं होगा.

फिर काजल थोड़ा सा झुकी और अपनी पैंटी उतारने लगी. किसी मर्द के लिए वो दृश्य बहुत ही लुभावना था , क्यूंकी जब भी हम औरतें ऐसे झुकती हैं तो हमारी चूचियाँ हवा में लटककर पेंडुलम की तरह इधर उधर डोलती हैं. मैं तो किसी औरत के सामने कपड़े बदलते समय भी ऐसे झुकने से बचने की कोशिश करती हूँ क्यूंकी मेरी बड़ी चूचियों के ऐसे लटकने से मुझे बड़ा अजीब लगता है. काजल उस पोज़ में बहुत सेक्सी लग रही थी और मैंने देखा गुरुजी के लंड ने कच्छे में तंबू सा बना दिया है. अपने अंतर्वस्त्र उतारकर अब काजल पूरी नंगी हो गयी.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुरुजी ने काजल को अपने आलिंगन में ले लिया. उनके छूने से काजल के नंगे बदन में कंपन हो रहा था जो की मुझे साफ दिख रहा था. फिर गुरुजी नीचे झुके और काजल के गोरे पेट में मुँह रगड़ने लगे. काजल हल्के से सिसकारियाँ लेने लगी. गुरुजी अब कामोत्तेजित हो उठे थे और काजल के चिकने सपाट पेट को हर जगह चाटने लगे. उनके हाथ काजल के नग्न नितंबों को सहला और दबा रहे थे. काजल भी अब धीरे धीरे गुरुजी की कामेच्छाओं की प्रतिक्रिया देने लगी. उसने गुरुजी के सर के ऊपर अपने हाथ रख दिए , शायद सहारे के लिए.

अपने सामने ये नग्न कामदृश्य देखकर मेरी आँखें बाहर निकल आयीं. गुरुजी के लंबे चौड़े बदन में सिर्फ़ एक छोटा सा कच्छा था जिसे उनका खड़ा लंड ताने हुए था और कमसिन कली काजल के बदन में कपड़े का एक धागा भी नहीं था. अब गुरुजी ने काजल की नाभि में जीभ डालकर गोल घुमाना शुरू किया , काजल उत्तेजना से कसमसाने लगी. मेरे लिए तो ये ना भूलने वाला अनुभव था. मैंने कभी अपनी आँखों के सामने ऐसी कामलीला नहीं देखी थी. फिर गुरुजी खड़े हो गये और उन्होंने अपना ध्यान काजल की चूचियों पर लगाया. उसकी चूचियाँ उनकी आँखों के सामने और होठों के बिल्कुल पास थीं. कुछ पल तक गुरुजी खुले मुँह से उसकी कसी हुई नुकीली चूचियों को देखते रहे. फिर उन्होंने अपना मुँह एक चूची पर लगा दिया और निप्पल को चूसने लगे और दूसरे हाथ से दूसरी चूची को दबाने लगे.

काजल – आआअहह….ऊऊऊओह…उम्म्म्मममम…..गुरुजिइइईईईईईईईईईईई…………..

गुरुजी के चूची को चूसने और दबाने से काजल बहुत कामोत्तेजित हो गयी और जोर जोर से सिसकारियाँ लेने लगी. गुरुजी ने काजल की हिलती हुई रसीली चूचियों का अपने मुँह, होठों, जीभ और हाथों से भरपूर आनंद लिया. ऐसा कुछ देर तक चलता रहा और अब काजल हाँफने लगी थी. गुरुजी ने काजल को सांस लेने का मौका नहीं दिया और दाएं हाथ से उसके गोल मुलायम नितंबों को मसलने लगे. गुरुजी के मसलने से काजल के गोरे नितंब लाल हो गये. उसके बाद उन्होंने फिर से काजल को आलिंगन में ले लिया , शायद कामोत्तेजना से उनकी खुद की साँसें उखड़ गयी थीं. उन्होंने काजल को कस कर आलिंगन किया हुआ था और उसकी चूचियाँ उनकी छाती से दब गयीं. काजल ने भी गुरुजी की पीठ में आलिंगन किया हुआ था और गुरुजी के हाथ उसकी पीठ और नितंबों को सहला रहे थे.

गुरुजी ने काजल के नितंबों को पकड़कर अपनी तरफ खींचा और उसकी चूत को अपने कच्छे में खड़े लंड से सटा दिया. कुछ पल बाद गुरुजी ने काजल को धीरे से फर्श में सफेद साड़ी के ऊपर लिटा दिया और खुद भी उसके ऊपर लेट गये. अब गुरुजी काजल के होठों को चूमने लगे और उसके चेहरे और गर्दन को चाटने लगे , साथ ही साथ उसकी चूचियों को हाथों से पकड़कर मसल दे रहे थे. अब मुझे बेचैनी होने लगी थी क्यूंकी गुरुजी इन सबमें बहुत समय लगा रहे थे और मेरी हालत खराब होने लगी थी. मेरा मन कर रहा था की टाँगें फैलाकर अपनी चूत खुजलाऊँ. गुरुजी को काजल की चूचियों से खेलते देखकर मेरा मन भी ब्लाउज खोलकर अपनी चूचियों को आज़ाद कर देने का हो रहा था.

काजल – आअहह……ओइईई……माआआअ…

शायद गुरुजी ने काजल की चूचियों पर दाँत काट दिया था. मैं सोचने लगी अगर किसी मर्द के नीचे इतनी सुंदर लड़की नंगी लेटी हो तो ऐसा मौका भला कौन छोड़ेगा. गुरुजी अब नीचे की ओर खिसकने लगे. मैंने देखा काजल की चूचियाँ गुरुजी की लार से गीली होकर चमक रही थीं और उसके निप्पल एकदम कड़क होकर तने हुए थे. वैसे निप्पल तो मेरे भी इतने ही कड़क हो गये थे. अब गुरुजी ने काजल की चूत में मुँह लगा दिया और जीभ से चूत की दरार को कुरेदने लगे.

काजल – उफफफफफ्फ़….नहियीईईईईईईईईई प्लेआसईईईईईईईई……………

पहली बार अनछुई चूत में जीभ लगते ही काजल कसमसाने लगी. गुरुजी ने दोनों हाथों से उसे कस कर पकड़ा और उसकी चूत को और वहाँ पर के छोटे छोटे बालों को चाटने लगे. उन्होंने चाट चाटकर उसकी चूत के आस पास सब जगह गीला कर दिया और फिर उसकी चूत की दरार के अंदर जीभ घुसा दी. काजल से बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था और वो साड़ी के ऊपर लेटे हुए अपना सर और बदन इधर उधर हिलाने लगी. काजल अब बहुत जोर जोर से सिसकारियाँ ले रही थी. और गुरुजी के मुँह में अपनी गांड को ऊपर उछाल रही थी. अब गुरुजी उसकी दूधिया जांघों को चाटने लगे. मैंने देखा काजल का चूतरस उसकी जांघों के अंदरूनी भाग में लगा हुआ था.

अब गुरुजी ने अपना कच्छा उतार कर फर्श में फेंक दिया जो मेरे पास आकर गिरा. उस नारंगी रंग के कच्छे में मुझे गीले धब्बे दिखे जो की गुरुजी के प्री-कम के थे. उनके तने हुए लंड की मोटाई देखकर मेरी सांस रुक गयी.

हे भगवान ! कितना मोटा है ! ये तो लंड नहीं मूसल है मूसल ! मैंने मन ही मन कहा. काजल अगर देख लेती तो बेहोश हो जाती. मैं सोचने लगी की गुरुजी की कोई पत्नी नहीं है वरना हर रात को इस मस्त लंड से मज़े लेती. मैं गुरुजी के लंड से नज़रें नहीं हटा पा रही थी , इतना बड़ा और मोटा था , कम से कम 8 – 9 इंच लंबा होगा. आश्रम आने से पहले मैंने सिर्फ अपने पति का तना हुआ लंड देखा था और यहाँ आने के बाद दो तीन लंड देखे और महसूस किए थे लेकिन उन सबमें गुरुजी का ही सबसे बढ़िया था. काजल आँखें बंद किए हुए लेटी थी इसलिए उसने गुरुजी का लंड नहीं देखा. एक कुँवारी लड़की नहीं जान सकती की मुझ जैसी शादीशुदा औरत जो की कई बार लंड ले चुकी है , के लिए इस मूसल जैसे लंड के क्या मायने हैं. गुरुजी के लंड को देखकर मैं स्वतः ही अपने सूख चुके होठों में जीभ फिराने लगी , लेकिन जब मुझे ध्यान आया तो अपनी बेशर्मी पर मुझे बहुत शरम आई. मुझे डर था की काजल की कुँवारी चूत को तो गुरुजी का लंड फाड़ ही डालेगा.

अब गुरुजी ने काजल की टाँगें फैला दीं और उनके बीच में आकर अपने कंधों पर उसकी टाँगें ऊपर उठा ली. उनकी इस हरकत से काजल को अपनी आँखें खोलनी पड़ी. उसने गुरुजी को देखा और शरम से तुरंत नज़रें झुका ली. गुरुजी ने एक बार उसके निपल्स को दबाया और मरोड़ा. उसके बाद उन्होंने अपने तने हुए लंड को काजल की चूत के होठों के बीच छेद पर लगाया और एक धक्का दिया.

काजल – ओह……..आआआआअहह…ओओओईईईईईईईईईईईईईईईईइ…..माआआआआ……….

काजल मुँह खोलकर जोर से चीखी और कामोत्तेजना में उसने गुरुजी के सर के बाल पकड़ लिए. काजल की कुँवारी चूत बहुत टाइट थी और गुरुजी का मूसल अंदर नहीं घुस पाया. अब गुरुजी ने एक हाथ से उसकी चूत के होठों को फैलाया और दूसरे हाथ से अपना लंड पकड़कर अंदर को धक्का दिया. इस बार काजल और भी जोर से चीखी. गुरुजी ने एक बार बंद दरवाज़े की ओर देखा और फिर काजल के होठों के ऊपर अपने होंठ रखकर उसका मुँह बंद कर दिया. मैं समझ रही थी की इस कुँवारी कमसिन लड़की के लिए ये दर्दभरा अनुभव है , ख़ासकर इसलिए क्यूंकी उसकी टाइट चूत के छेद में गुरुजी का मूसल घुसने की कोशिश कर रहा था. बल्कि मुझे तो लग रहा था की अनुभवी औरतों को भी गुरुजी के मूसल को अपनी चूत में लेने में कठिनाई होगी. गुरुजी इस बात का ध्यान रख रहे थे की काजल को ज़्यादा दर्द ना हो और धीरे धीरे धक्के लगा रहे थे. वो बार बार काजल का चुंबन ले रहे थे और उसे और ज़्यादा कामोत्तेजित करने के लिए उसके निपल्स को भी मरोड़ रहे थे. 

काजल – आआहह…..ओइईईईईई….माआआ….उफफफफफफफ्फ़…..

काजल गुरुजी के भारी बदन के नीचे दबी हुई दर्द और कामोत्तेजना से कसमसा रही थी. यज्ञ की अग्नि में उनके एक दूसरे से चिपके हुए नंगे बदन अलौकिक लग रहे थे. उस दृश्य को देखकर मैं मंत्रमुग्ध हो गयी थी. वो दोनों पसीने से लथपथ हो गये थे. अब गुरुजी ने तेज धक्के लगाने शुरू किए और काजल जोर से सिसकारियाँ लेती रही और दर्द होने पर चिल्ला भी रही थी. मैंने काजल के नीचे सफेद साड़ी में खून की कुछ बूंदे देखी जो की इस बात का सबूत थी की अब काजल कुँवारी नहीं रही. अब गुरुजी उसके चिल्लाने पर ध्यान ना देकर अपने मोटे लंड को ज़्यादा से ज़्यादा उसकी चूत के अंदर घुसाने में लगे थे. मैं महसूस कर सकती थी की इतने मोटे लंड को अपनी टाइट चूत में घुसने से काजल को बहुत दर्द हो रहा होगा. कुछ देर बाद काजल की चीखें कम हो गयीं और सिसकारियाँ बढ़ गयीं , लग रहा था की अब वो भी चुदाई का मज़ा लेने लगी है. सफेद साड़ी में खून के लाल धब्बे लग गये थे और गुरुजी काजल की चूत में धक्के लगाए जा रहे थे. पहली बार मैं अपनी आँखों के सामने चुदाई होते देख रही थी और मंत्रमुग्ध हो गयी थी. अब गुरुजी ने अपने होंठ काजल के होठों से हटा लिए थे क्यूंकी वो भी चुदाई का मज़ा ले रही थी और उसको दर्द भी कम हो गया था. काजल की चूत में धक्के लगाते हुए गुरुजी ने अपनी हथेलियों में काजल की चूचियों को पकड़ रखा था और उन्हें जोर से मसल रहे थे.

अब पहली बार गुरुजी हाँफने लगे थे और मुझे अंदाज़ा लगा की वो काजल की चूत में वीर्य गिरा रहे हैं. काजल कामोत्तेजना से सिसक रही थी. मुझे अपने पति के साथ पहली रात याद आई और उस रात को मुझे भी ऐसा ही दर्द, आँसू , कामोत्तेजना और कामानंद का अनुभव हुआ था जैसा अभी काजल को हो रहा था. लेकिन सच कहूँ तो मेरे पति का लंड 6 इंच था और गुरुजी के मूसल से उसकी कोई तुलना नहीं थी. थकान से धीरे धीरे उन दोनों के पसीने से भीगे हुए बदन शिथिल पड़ गये. गुरुजी काजल के नंगे बदन के ऊपर लेटे हुए थे और उन दोनों की आँखें बंद थीं और रुक रुक कर साँसें चल रही थीं.

बार बार मेरा ध्यान गुरुजी के लंड पर चला जा रहा था. काजल की चूत के छेद में जब वो घुसने वाला था तो कितना कड़ा, बड़ा और मोटा लग रहा था जैसे कोई रॉड हो और उसका लाल रंग का सुपाड़ा इतना बड़ा था की मेरी नज़र उस पर से हट ही नहीं रही थी. मैं इतनी गरम हो गयी थी की मेरी पैंटी चूतरस से भीग गयी थी और मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर तन गयी थीं. 

मैंने देखा की काजल और गुरुजी की आँखें अभी बंद हैं , वैसे काजल अभी भी हल्के हल्के सिसक रही थी, मैंने जल्दी से साड़ी के ऊपर से अपनी चूत खुजा दी , वैसे तो मेरा मन चूत में अंगुली करने का हो रहा था. उसके बाद मैंने अपनी साड़ी के पल्लू के अंदर हाथ डालकर ब्लाउज और ब्रा को थोड़ा एडजस्ट कर लिया. मेरी भी इच्छा होने लगी की काश गुरुजी का मूसल मेरी चूत में भी जाए. मैं शादीशुदा थी और मुझे ऐसी लालसाओं से दूर रहना चाहिए था. मैंने मन ही मन अपने को फटकार लगाई की ऐसे गंदे विचार मेरे मन में क्यूँ आए. मैं सिर्फ़ अपने शारीरिक सुख के बारे में सोच रही थी जबकि आश्रम आने का मेरा उद्देश्य गर्भधारण ना कर पाने का उपचार करवाना था. मैं अपने पति राजेश से ऐसी बेईमानी कैसे कर सकती हूँ जबकि वो मुझे बहुत प्यार करते हैं. आश्रम में अब तक जो भी मेरे साथ हुआ था वो मेरे उपचार का हिस्सा था. हाँ ये बात सच है की उस दौरान मैंने बहुत बेशर्मों की तरह व्यवहार किया था और कुछ मर्दों ने मेरे बदन से छेड़छाड़ की थी. लेकिन वो सब कुछ गुरुजी के निर्देशानुसार हुआ था. एक ग़लती ज़रूर मेरी थी , विकास की पर्सनालिटी और फिज़ीक से मैं बहक गयी थी और गुरुजी के निर्देशों से भटक गयी थी. मैंने अपने मन में ये सब सोचा और अपनी कामेच्छा को काबू में करने की कोशिश की.

अब गुरुजी काजल के बदन के ऊपर से उठ गये. मैंने देखा मुरझाई हुई अवस्था में भी उनका लंड केले के जैसे लटक रहा है. मैं उसी को गौर से देख रही थी तभी गुरुजी से मेरी नज़रें मिली और शरम से मैंने तुरंत अपनी आँखें नीचे कर ली. क्या गुरुजी ने मुझे अपने मूसल को घूरते हुए पकड़ लिया था ? अब गुरुजी ने अपनी नंगी गांड मेरी तरफ करके लिंगा महाराज और यज्ञ की अग्नि को प्रणाम किया. काजल भी उठने की कोशिश कर रही थी. मुझे लगा उसे मेरी मदद की ज़रूरत है. वो सफेद साड़ी में नंगी लेटी हुई थी. गुरुजी का वीर्य उसकी चूत से बाहर निकालकर जांघों में बह रहा था. मैं एक सफेद कपड़ा लेकर उसके पास गयी.

गुरुजी – काजल बेटी अब तुम शुद्ध हो. तुम्हारा ‘दोष निवारण’ हो चुका है. अब तुम्हें रहस्य पता चल चुका है इसलिए मेरे ख्याल से अब तुम्हारा ध्यान नहीं भटकेगा.

काजल कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं थी क्यूंकी उसे इस सच्चाई से पार पाने में समय लगना था की थोड़ी देर पहले वो गुरुजी के हाथों अपना कौमार्य खो चुकी है. मैंने उसकी चूचियाँ, होंठ और पेट पोंछ दिए. गुरुजी ने मुझे गरम पानी का एक कटोरा दिया और मैंने उससे काजल की चूत साफ कर दी , जो की उसके चूतरस, खून और गुरुजी के वीर्य से सनी हुई थी. उसके बाद मैंने उसकी जाँघें और चेहरा भी पोंछ दिया. काजल को साफ करते हुए मुझे उन दोनों के पसीने और कामरस की मिली जुली गंध आ रही थी. अब काजल कुछ ताज़गी महसूस कर रही थी.

गुरुजी – रश्मि, इसकी योनि में ट्यूब लगा दो इससे दर्द चला जाएगा और फिर ये गोली खिला देना.

ऐसा कहते हुए गुरुजी ने मुझे एक ट्यूब और एक गोली दे दी. मैंने उसकी चूत में ट्यूब से निकालकर जेल लगा दिया. गुरुजी की दवाई से कुछ ही मिनट्स में काजल का दर्द चला गया. मैंने उसे खड़े होने में मदद की. गुरुजी कपड़े पहन रहे थे और मैंने जल्दी से उनके मूसल की आख़िरी झलक देख ली. काजल को अब अपनी नग्नता से कोई मतलब नहीं था. हमारे सामने पूरी नंगी होकर भी उसे कोई फरक नहीं पड़ रहा था. लेकिन मुझे बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी गुरुजी और मैं कपड़ों में थे. मैंने उसकी ब्रा और पैंटी उठाई और उसे पहनाने की कोशिश की ताकि उसके गुप्तांग ढक जाएँ.

काजल – आंटी, प्लीज़ ….

उसने अपने अंतर्वस्त्र पहनने से मना कर दिया , क्यूंकी पहली बार संभोग करने से उसके गुप्तांगों में जलन हो रही होगी.

“लेकिन काजल, इसे तो पहन लो. अभी सब लोग यहाँ आ जाएँगे.”

ऐसा कहते हुए मैंने उसकी ब्रा की तरफ इशारा किया लेकिन उसने सर हिलाकर मना कर दिया. मैं समझ रही थी की वो थककर चूर हो चुकी है.

काजल – आंटी, मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा है …उफफफफ्फ़….

मैंने सलवार कमीज़ पहनने में उसकी मदद की. गुरुजी ने फर्श से सफेद साड़ी उठाकर वहाँ पर साफ कर दिया और अब कोई नहीं बता सकता था की कुछ देर पहले यहाँ क्या हुआ था.

यज्ञ की समाप्ति पर घर के सभी लोगों ने प्रसाद गृहण किया. गुप्ताजी शराब पिया हुआ था लेकिन होश में था. शुक्र था की उसने मुझसे कोई बदतमीज़ी नहीं की. नंदिनी बहुत खुश लग रही थी और हो भी क्यू ना. मैं अंदाज़ा लगा सकती थी की जब यहाँ काजल की चुदाई हो रही थी तो नीचे किसी कमरे में नंदिनी और समीर क्या कर रहे होंगे.

रात में मुझे ठीक से नींद नहीं आई. अपनी आँखों के सामने जो जबरदस्त चुदाई मैंने देखी उसी के सपने आते रहे. गुरुजी का तना हुआ मूसल भी मुझे दिखा और मैं सपने में उसे ‘लंड महाराज’ कह रही थी. मैं सुबह जल्दी उठ गयी क्यूंकी गुरुजी ने कहा था की सवेरे आश्रम वापस चले जाएँगे. हाथ मुँह धोकर फ्रेश होने के बाद मेरा दरवाज़ा समीर ने खटखटाया. मैंने थोड़ा सा दरवाजा खोला क्यूंकी अभी मैं सिर्फ नाइटी में थी और उसके अंदर अंतर्वस्त्र नहीं पहने थे.

समीर – मैडम, हम तैयार हैं. आप नीचे डाइनिंग हॉल में आ जाओ.

वो चला गया और मैं कपड़े पहनकर नीचे डाइनिंग हॉल में चली गयी. वहाँ गुप्ताजी, नंदिनी, काजल , गुरुजी और समीर सभी लोग मौजूद थे. 

नंदिनी – गुड मॉर्निंग रश्मि. उम्मीद करती हूँ की तुम्हें अच्छी नींद आई होगी.

मैंने हाँ में सर हिला दिया और चाय का कप ले लिया.

गुरुजी – नंदिनी, तुम कह रही थी की पूजा घर में हनुमान जी की मूर्ति लगानी है. समीर तुम्हें बता देगा की कहाँ पर लगानी है और किधर को मुँह करना है. 

समीर – जी गुरुजी.

नंदिनी – ठीक है गुरुजी. हम इस काम को कर लेते हैं.

गुरुजी – हाँ, जाओ.

मैंने देखा नंदिनी खुशी खुशी समीर के साथ डाइनिंग हॉल से बाहर चली गयी. वैसे भी उसके लिए समीर के साथ थोड़ा समय बिताने का ये आख़िरी मौका था क्यूंकी कुछ देर बाद तो वो वापस आश्रम जाने वाला था. अपनी टाइट पहनी हुई साड़ी में चौड़े नितंबों को मटकाती हुई नंदिनी को जाते हुए हम सभी देख रहे थे सिवाय काजल के. काजल का ध्यान कहीं और था , जाहिर था की वो अपने कौमार्यभंग होने की घटना से अभी उबर नहीं पाई थी और उसने ये बात जरूर अपने पेरेंट्स से छुपाई होगी.

गुरुजी – रश्मि, तुमने इनका छोटा सा मंदिर नहीं देखा होगा ना ?

मैंने ना में सर हिला दिया.

गुरुजी – ये छोटा सा बड़ा अच्छा मंदिर है. एक बार तो देखना ही चाहिए. कुमार तुम रश्मि को मंदिर क्यूँ नहीं दिखा लाते ? तब तक नंदिनी भी वापस आ जाएगी.

कुमार – जरूर गुरुजी. मुझे बड़ी खुशी होगी. आओ रश्मि.

मैंने देखा अचानक गुप्ताजी के चेहरे में मुस्कुराहट आ गयी. सच कहूँ तो उस समय मुझे उसके गंदे इरादों का ख्याल नहीं आया था. वो अपनी बैसाखी के सहारे धीरे धीरे चलने लगा और मैं उसके पीछे थी. हम उनके घर के पिछवाड़े में चले गये. अब गुरुजी ने सबको इधर उधर भेज दिया था और काजल उनके साथ अकेली थी . मैं सोच रही थी की ना जाने गुरुजी उससे क्या कह रहे होंगे. लेकिन जल्दी ही मुझे समझ आ गया की काजल और गुरुजी के बारे में सोचने की बजाय , ये सोचना है की अपने को कैसे बचाऊँ ? मंदिर बहुत अच्छा बनाया हुआ था और अंदर जाने के लिए 2-3 सीढ़ियां थी. सीढ़ियां चढ़ते हुए मैं मन ही मन मंदिर की तारीफ कर रही थी तभी मेरी पीठ में हाथ महसूस हुआ. मैंने भौंहे चढ़ाकर गुप्ताजी की ओर देखा.

कुमार – रश्मि , सीढ़ियां चढ़ने के लिए सहारा ले रहा हूँ.

मुझे इस विकलांग आदमी को सहारा देना पड़ा पर उसने तुरंत इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया. वो मेरे ब्लाउज के कट में गर्दन के नीचे अँगुलियाँ फिराने लगा. मैंने उसके छूने पर ध्यान ना देकर मंदिर की तरफ ध्यान देने की कोशिश की. जैसे ही हम सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के फर्श में पहुँचे तो उसका हाथ मेरी पीठ में खिसकते हुए दाएं ब्रा स्ट्रैप पर आ गया. मैंने उसकी तरफ मुड़कर आँखें चढ़ायीं. उसने अपना हाथ फिराना बंद कर दिया लेकिन ब्रा स्ट्रैप के ऊपर हाथ स्थिर रखा. 

कुमार – रश्मि, मंदिर की छत का डिज़ाइन देखो.

“बहुत सुंदर है.”

गुंबद के आकर की छत में अंदर से बहुत अच्छी पेंटिंग बनी हुई थी. मैं सर ऊपर उठाकर उस सुंदर पेंटिंग को देख रही थी और गुप्ताजी का हाथ खिसककर मेरी नंगी कमर में आ गया. मुझे इतना असहज महसूस हो रहा था की अब मुझे टोकना ही पड़ा.

“क्या है ये ? बंद करो अपनी हरकतें और …….”

मैं अपनी बात पूरी कर पाती इससे पहले ही उसने मुझे अपने आलिंगन में भींच लिया. ये इतनी जल्दी हुआ की मैं अपनी चूचियाँ भी नहीं बचा पाई और वो गुप्ताजी की छाती से दब गयीं.

कुमार – रश्मि, मेरी सेक्सी डार्लिंग.

“आउच….”

कुमार – रश्मि, मैं कल सारी रात सो नहीं पाया, तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा.

“आआआआह ……तमीज से रहो. क्या कर रहे हो ?”

मैं गुप्ताजी की बाँहों में संघर्ष कर रही थी और अपने कंधों और कमर से उसके हाथों को हटाने की कोशिश कर रही थी. उसका चेहरा मेरे इतने नजदीक़ था की उसका चश्मा मेरी नाक को छू रहा था और उसकी दाढ़ी मुझे गुदगुदी कर रही थी. लेकिन उसकी पकड़ मजबूत होते गयी और मेरे विरोध का कोई असर नहीं हुआ. मेरी बड़ी चूचियों को अपनी छाती में महसूस करने के लिए वो मुझे और भी अपनी तरफ दबा रहा था. फिर वो मेरे गालों, होठों और नाक को चूमने की कोशिश करने लगा. अचानक मेरे पेट में कोई चीज चुभने लगी. 

“आआह….इसे हटाओ. मुझे चुभ रहा है.”

गुप्ताजी की बैशाखी मेरे पेट में चुभ रही थी , उसने बिना मुझे अलग किए बैशाखी को थोड़ा खिसका दिया. क्यूंकी घर के पिछवाड़े में कोई नहीं था इसलिए गुप्ताजी ने मौके का फायदा उठना शुरू कर दिया था. अब गुप्ताजी ने मेरे विरोध करते हाथों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए मुझे साइड से आलिंगन कर लिया. उसका दायां हाथ मेरी दायीं बाँह को पकड़े हुए था और उसका बायां हाथ मेरी बायीं बाँह को मेरे ब्लाउज में दबाए हुए था. अपनी दोनों टाँगों के बीच उसने मेरी बायीं जाँघ दबाई हुई थी. एक दो मिनट तक संघर्ष करने के बाद मुझे समझ आ गया की कोई फायदा नहीं , इस ठरकी बुड्ढे से छुटकारा पाने के लिए मेरे पास उतनी ताक़त नहीं थी.

कुमार – शशश…… …..रश्मि, तुम कितनी सेक्सी हो …आआहह…

वो कपटी बुड्ढा मेरी बायीं चूची को अपनी हथेली में दबाते हुए ऐसा कह रहा था. उसने मेरे दाएं हाथ को छोड़कर मेरी चूची पकड़ ली थी और मेरे गाल को चूमते हुए चूची को दबाए जा रहा था. वो मेरे होठों को चूमना चाह रहा था पर मैंने मुँह घुमा लिया. 

“उम्म्म्म….आआहह……”

गुप्ताजी ने जोर से मेरी बायीं चूची मसल दी. उसकी अँगुलियाँ ब्लाउज के बाहर से मेरी चूची के हर हिस्से को दबा रही थीं. उसका अंगूठा मेरे निप्पल को दबा रहा था. उत्तेजना से कुछ पल के लिए मेरी आँखें बंद हो गयीं और मेरी सिसकी निकल गयी. वो अनुभवी आदमी था और एकदम से मेरी हालत समझ गया. अब वो कमीना बार बार मेरे निप्पल को ब्लाउज के बाहर से मसलने लगा.

“ऊऊओ…….प्लीज रुक जाओ. प्लेआस्ईईईई….”

अब वो रुकनेवाला नहीं था. उसने मेरे ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर चूची को मसल दिया. मैं भी गरम हो गयी और काजल की चुदाई मेरी आँखों के सामने घूमने लगी. अब गुप्ताजी ने अपनी बैशाखी फर्श में फेंक दी और मेरे बदन का सहारा लेकर मुझे कमरे की दीवार की तरफ धकेलकर दीवार से सटा दिया. अब मैं दीवार और गुप्ताजी के बीच फँस गयी थी. मैंने अपनी पीठ पर ठंडी दीवार महसूस की. उसने अपनी बैशाखी फेंक दी थी इसलिए सहारे के लिए पूरा वजन मुझ पर ही डाला हुआ था. वो मेरे पूरे बदन में हाथ फिराने लगा.

उसका दुस्साहस बढ़ता गया. मैं ज़्यादा विरोध नहीं कर पायी और धीरे धीरे समर्पण कर दिया. वो दोनों हाथों से मेरे नितंबों को दबा रहा था और मेरे पूरे चेहरे पर अपनी दाढ़ी चुभा रहा था. उसके हाथ मेरे अंगों को सिर्फ सहलाने और दबाने तक ही सीमित नहीं थे. अब उसने मेरी साड़ी भी ऊपर उठाकर मेरी नंगी टाँगों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया. स्वाभाविक रूप से अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी और उसकी कामुक हरकतों से मेरी पैंटी गीली हो गयी थी. उस कमीने ने मेरी ऐसी हालत का फायदा उठाया और मेरे होठों को चूमने लगा , अबकी बार मैंने कोई विरोध नहीं किया. मुझे चूमते हुए उसने मेरे नितंबों से अपना दायां हाथ हटाया और मेरी दायीं चूची पकड़ ली. मेरे बदन में जैसे तीन तरफ से आग लग गयी, उसके मोटे होंठ मेरे होठों को गीला कर रहे थे , उसका बायां हाथ साड़ी के बाहर से मेरे नितंबों को मसल रहा था और उसका दायां हाथ मेरी चूची के निप्पल को दबा रहा था. 

मेरी आँखें बंद हो गयी थीं और सच कहूँ तो अब मुझे भी मज़ा आ रहा था. तभी किसी के कदमों की आवाज आई.

“गाता रहे मेरा दिल…..”

कोई गाना गाते हुए मंदिर की तरफ आ रहा था. मैंने देखा गुप्ताजी के हाथ जहाँ के तहाँ रुक गये.

कुमार – शशश…..….वो हमारा माली है. लेकिन ये यहाँ क्यूँ आ रहा है ?

मैंने जल्दी से अपना पल्लू उठाया और साड़ी ठीक करने की कोशिश की लेकिन गुप्ताजी ने मेरी साड़ी कमर से करीब करीब निकाल दी थी और पेटीकोट दिखने लगा था. मेरे ब्लाउज के दो हुक भी उसने खोल दिए थे. इतनी जल्दी ये सब ठीक करने का समय नहीं था. 

“वो अंदर आएगा क्या ?”

गुप्ताजी ने तुरंत मेरे होठों पर अंगुली रख दी. गाने की आवाज अभी भी आ रही थी लेकिन हमारी तरफ नहीं बढ़ रही थी. इसका मतलब था की माली बाहर कुछ कर रहा था.

कुमार – रश्मि बहुत धीमे बोलो. ये माली नंदिनी का खास है. अगर वो यहाँ आकर हमें ऐसे देख लेगा तो मैं बहुत बुरा फँस जाऊँगा.

वो मेरे कान में फुसफुसाया.

कुमार – रश्मि जल्दी से मेरी बैशाखी उठा लाओ. अगर यहाँ से गुजरते हुए उसने देख ली तो वो जरूर अंदर आ जाएगा.

“लेकिन मैं ऐसे चलूं कैसे ? देखते नहीं आपने मेरी साड़ी खोल दी है ……”

मैंने थोड़ा जोर से बोल दिया और तुरंत गुप्ताजी ने मेरे पेटीकोट के बाहर से मेरे नितंबों पर चिकोटी काट दी और धीरे बोलने का इशारा किया. इस तरह से मुझे धीरे बोलने को कहने पर मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई और मैंने पक्का उसे झापड़ मार दिया होता लेकिन अभी मेरी हालत ऐसी थी की मुझे चुपचाप सहन करना पड़ा. 

कुमार – रश्मि , समझने की कोशिश करो. अगर वो मुझे तुम्हारे साथ ऐसे देख लेगा तो……तुम बस मेरी बैशाखी ले आओ. जल्दी से.

मैं अभी भी अपनी साड़ी पकड़े हुए थी और उसे ठीक करने की कोशिश कर रही थी. शायद ये देखकर गुप्ताजी ने एक हाथ से मेरी बाँह पकड़ी और दूसरे हाथ से मेरी साड़ी को मेरे बदन से अलग कर दिया. अब मैं उसके सामने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी. मेरी पीठ अभी भी दीवार से सटी हुई थी.

“प्यार हुआ….”

माली दूसरा गाना गाने लगा था लेकिन शुक्र था की वो हमारी तरफ नहीं बढ़ रहा था. ऐसा लग रहा था की माली एक जगह पर ही रुक कर कुछ कर रहा है.

कुमार – रश्मि, प्लीज ….मेरी बैशाखी ला दो.

जिस तरह से उसने मेरी साड़ी उतार दी थी उससे मैं थोड़ी हक्की बक्की रह गयी थी लेकिन अभी हालत थोड़ी गंभीर थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा. मैंने उसे दीवार के सहारे खड़ा किया और उसकी बैशाखी लाने गयी. चलते हुए मैंने अपने ब्लाउज के खुले हुए दोनों हुक लगा लिए और अपनी आधी खुली हुई चूचियों को ढक लिया. बिना साड़ी के चलना बड़ा अजीब लग रहा था ख़ासकर इसलिए क्यूंकी मैं जानती थी की गुप्ताजी की नजर मुझ पर ही होगी. मैंने बैशाखी उठाई और एक नजर मंदिर के दरवाज़े से बाहर देखा लेकिन वहाँ कोई नहीं था. मैं जल्दी से उसके पास दौड़ गयी और बैशाखी दे दी. मैंने तुरंत अपनी साड़ी लपेटनी शुरू कर दी तभी गाने की आवाज हमारी तरफ बढ़ने लगी.

कुमार – रश्मि , एकदम चुप रहो. वो इसी तरफ आ रहा है.

उसने एक हाथ से बैशाखी पकड़ी हुई थी और दूसरे हाथ से जोर से मुझे अपनी तरफ खींचा. मेरी बड़ी चूचियाँ फिर से उसकी छाती से जा टकराई और मेरा चेहरा उसके चश्मे से. अब मेरा दिल भी जोर जोर से धड़कने लगा क्यूंकी मैं भी ऐसी हालत में किसी के द्वारा पकड़े जाने से डरी हुई थी, मैं सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थी और मेरी साड़ी फर्श में गिरी हुई थी और उस बुड्ढे ने मुझे अपने से चिपटाया हुआ था.

कुमार – शायद वो दरवाज़े के पास है.

उसने मेरे कान में फुसफुसाया और पकड़े जाने की चिंता से मैंने उसकी छाती में अपना मुँह छुपा लिया. कुछ पल तक शांति रही. फिर गाना शुरू हो गया.

“गाता रहे मेरा दिल….”

इस बार वो आवाज हमारे बहुत करीब थी. अब गुप्ताजी ने मुझे बहुत कसकर पकड़ लिया शायद घबराहट की वजह से. मैंने भी कोई विरोध नहीं किया. लेकिन उसकी हरकतों से मैं कन्फ्यूज हो गयी. वो मेरी दोनों चूचियों को अपनी छाती में दबा रहा था. मुझे अपने पेट के निचले हिस्से में उसका लंड भी महसूस हो रहा था. अपने हाथों से मेरे पतले पेटीकोट के बाहर से वो मेरी गांड भी दबा रहा था. कोई आदमी ऐसे कैसे बिहेव कर सकता है अगर वो पकड़े जाने के डर से घबरा रहा है तो ?

मैं अपने हाथ पीछे ले गयी और अपनी गांड से उसकी हथेलियों को हटाने की कोशिश की. वो मेरे हाथ से बचते हुए मेरे नितंबों में अपनी हथेलियां घूमने लगा. मेरे हाथ पीछे होने से मेरा बदन गुप्ताजी की तरफ झुक गया और मेरी चूचियाँ उसकी छाती से और भी ज़्यादा दबने लगी. मुझे समझ आ गया की उसके हाथों को मैं हटा नहीं सकती क्यूंकी एक जगह से हटाने पर वो दूसरी जगह मेरे नितंबों को पकड़ लेता था.

“ठीक से रहो ना …”

मैंने ऐसा कहते ही अपनी जीभ बाहर निकाल ली क्यूंकी मुझे एहसास हुआ की मैंने जोर से बोलकर ग़लती कर दी है.

कुमार – रश्मि डार्लिंग, वो चला गया है.

अरे हाँ. अब तो गाने की आवाज नहीं आ रही थी. माली जरूर चला गया होगा.

“आउच…… अरेरेरेरे……….रुको$$$$$$$$$…..….”

इससे पहले की मैं अपने नितंबों से हाथ आगे ला पाती उस कमीने ने मेरा पेटीकोट कमर तक ऊपर उठा दिया और दोनों हाथों से मेरी नंगी मांसल जाँघें पकड़ लीं. मैंने उसको रोकने की कोशिश की पर तब तक उसने मेरी पूरी टाँगें नंगी कर दी थीं. मुझे मालूम था की अब वो मेरी पैंटी नीचे करने की कोशिश करेगा , इस बार मैंने उसका विरोध करने की ठान ली , चाहे कुछ भी हो जो इसने मेरे साथ बाथरूम में किया था अब नहीं करने दूँगी.

“देखो, अगर तुम नहीं माने तो मैं चिल्लाऊँगी.”

मैंने दृढ़ स्वर में उसे चेतावनी दी. गुप्ताजी एक पल के लिए रुक गया. उसने अभी भी मेरा पेटीकोट मेरी कमर तक उठाया हुआ था जिससे मेरी सफेद पैंटी दिखने लगी थी. लेकिन उसने मेरी बात को गंभीरता से नहीं लिया और फिर से मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की. लेकिन इस बार मैंने उसके आगे समर्पण नहीं किया क्यूंकी मुझे मालूम था की अबकी बार ये हरामी बुड्ढा मेरी चूत में लंड घुसाए बगैर मानेगा नहीं. मैंने उसको थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया तभी ……….

“कुमार ….. कुमार ….”

दूर से नंदिनी ने आवाज लगाई. उसकी आवाज सुनते ही गुप्ताजी में आया बदलाव देखने लायक था. उसने मुझे अलग किया, अपने कपड़े ठीक किए और बैशाखी लेकर मंदिर के दरवाज़े की तरफ जाने लगा. अपनी बीवी की आवाज सुनकर वो घबरा गया था और उसकी शकल देखने लायक थी. उसकी हालत देखकर मैं मन ही मन मुस्कुरायी . मेरी खुद की हालत भी देखने लायक नहीं थी इसलिए मैंने जल्दी से साड़ी पहनी और ब्लाउज ठीक करके मंदिर से बाहर आ गयी.

उसके बाद कोई खास घटना नहीं हुई और करीब एक घंटे बाद हम कार से आश्रम चले गये. कार में बातचीत के दौरान गुरुजी ऐसे बिहेव कर रहे थे जैसे कल रात कुछ हुआ ही ना हो और उन्हें इस बात की रत्ती भर भी शरम नहीं थी की मैंने उनको पूर्ण नग्न होकर एक कमसिन लड़की को चोदते हुए देखा है. बल्कि समीर जिसे मैंने नंदिनी के साथ करीब करीब रंगे हाथों पकड़ा था वो भी बहुत कैजुअली बिहेव कर रहा था. लेकिन कल रात की घटना की वजह से मुझे गुरुजी से नजरें मिलाने में थोड़ी शरम महसूस हो रही थी.

गुरुजी – रश्मि, अब तुम अपने उपचार के आखिरी पड़ाव में पहुँच गयी हो. आराम करो और महायज्ञ के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करो. लंच के बाद मेरे कमरे में आना फिर मैं विस्तार से बताऊँगा.

“ठीक है गुरुजी.”

मैं अपने कमरे में चली गयी और नाश्ता किया. फिर दवाई ली और नहाने के बाद बेड में लेट गयी. बेड में लेटे हुए सोचने लगी , अब क्या होनेवाला है ? गुरुजी ने कहा था महायज्ञ उपचार का आखिरी पड़ाव है. यही सब सोचते हुए ना जाने कब मेरी आँख लग गयी. नींद में मुझे एक मज़ेदार सपना आया. मैं अपने पति राजेश के साथ एक सुंदर पहाड़ी जगह पर छुट्टियाँ बिता रही हूँ. हम दोनों एक दूसरे के ऊपर बर्फ के टुकड़े फेंक रहे थे और तभी मैं बर्फ में फिसल गयी. राजेश ने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और मेरा चुंबन लेने लगे तभी……

“खट खट …..”

किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया. मुझे बड़ी निराशा हुई , इतना अच्छा सपना देख रही थी , ठीक टाइम पर डिस्टर्ब कर दिया. दरवाज़े पे परिमल लंच लेकर आया था.

मैं नींद से सुस्ती महसूस कर रही थी और परिमल से टेबल पर लंच रख देने को कहा क्यूंकी अभी मेरा खाने का मन नहीं था. मैंने ख्याल किया ठिगना परिमल मुझे घूर रहा है , कुछ पल बाद मुझे समझ आ गया की ऐसा क्यूँ. मैंने जब दरवाज़ा खोला तो नींद से उठी थी और अपने कपड़ों पर ध्यान नहीं दिया. मैं नाइटी पहने हुए थी और अंदर से अंतर्वस्त्र नहीं पहने थे. परिमल की नजरें मेरे निपल्स पर थी. मैं थोड़ी देर और आराम करने के मूड में थी इसलिए उससे जाने को कह दिया. निराश मुँह बनाकर परिमल चला गया. मैं बाथरूम में गयी और शीशे के सामने अपने को देखने लगी.

“हे भगवान ..”

मेरे दोनों निपल्स तने हुए थे और नाइटी के कपड़े में उनकी शेप साफ दिख रही थी. ये देखकर मैं शरमा गयी और समझ गयी की परिमल घूर क्यूँ रहा था. मैंने अपनी चूचियों के ऊपर नाइटी के कपड़े को खींचा ताकि निपल्स की शेप ना दिखे लेकिन जैसे ही कपड़ा वापस अपनी जगह पर आया, मेरे तने हुए निपल्स फिर से दिखने लगे. वास्तव में मैं ऐसे बहुत सेक्सी और लुभावनी लग रही थी. ये जरूर उस सपने की वजह से हुआ होगा. बाथरूम से बाहर आते हुए मैं राजेश के चुंबन को याद करके मुस्कुरा रही थी. मैं फिर से बेड में लेट गयी और अपनी जांघों के बीच तकिया दबाकर दुबारा से सपने को याद करने लगी. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी ठीक से सपना याद नहीं आया ना ही दुबारा नींद आई. निराश होकर कुछ देर बाद मैं उठ गयी और लंच किया.

फिर मैंने नयी ब्रा पैंटी के साथ नयी साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहन लिए और गुरुजी के कमरे में जाने के लिए तैयार हो गयी थी. तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया. दरवाज़े पे परिमल था.

परिमल – मैडम, अगर आपने लंच कर लिया है तो गुरुजी बुला रहे हैं.

“हाँ ….”

उसने मेरी बात काट दी.

परिमल – अरे , आप तो तैयार हो. मैडम, समीर ने पूछा है की धोने के लिए कुछ है ?

“हाँ , लेकिन…”

मेरे कल के कपड़े धोने थे लेकिन मैं परिमल को वो कपड़े देना नहीं चाहती थी क्यूंकी ना सिर्फ साड़ी बल्कि ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा पैंटी भी थे.

परिमल – लेकिन क्या मैडम ?

मैंने सोचा कुछ बहाना बना देती हूँ ताकि कपड़े इसे ना देने पड़े.

“असल में मैंने पहले ही समीर को धोने के लिए दे दिए थे.”

परिमल – लेकिन मैडम, मैंने तो चेक किया था वहाँ तो सिर्फ मंजू के कपड़े हैं.

अब मैं फँस गयी थी, क्या जवाब दूँ ?

परिमल – आज तो समीर की जगह वहाँ मैं काम कर रहा हूँ.

मेरा झूठ परिमल ने पकड़ लिया था. पर मुझे कुछ तो कहना ही था.

“अरे हाँ. तुम ठीक कह रहे हो. मैंने आज नहीं दिए , कल दिए थे. मुझे याद नहीं रहा.

परिमल मुस्कुराया और मुझे भी जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ा.

परिमल – मैडम, आप मुझे बता दो कहाँ रखे हैं , मैं उठा लूँगा. आपको पुराने कपड़े छूने नहीं पड़ेंगे.

मुझे कुछ जवाब नहीं सूझा और उसकी बात माननी पड़ी.

“धन्यवाद. बाथरूम में रखे हैं, दायीं तरफ.”

परिमल मुस्कुराया और मेरे बाथरूम में चला गया. मैं भी उसके पीछे चली गयी वैसे इसकी जरूरत नहीं थी. जो कपड़े मैंने कल गुप्ताजी के घर जाने के लिए पहने हुए थे वो बाथरूम के एक कोने में पड़े हुए थे. परिमल ने फर्श से मेरी साड़ी उठाई और अपने दाएं कंधे में रख ली और मेरा पेटीकोट उठाकर बाएं कंधे में रख लिया. मैं बाथरूम के दरवाज़े में खड़ी होकर उसे देख रही थी. अब फर्श में ब्लाउज के साथ मेरी सफेद ब्रा और पैंटी लिपटे हुए पड़े थे. मुझे बहुत अटपटा महसूस हो रहा था की अब परिमल उन्हें उठाएगा. परिमल झुका और उन कपड़ों को उठाकर मेरी तरफ घूम गया. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मुझे बहुत इरिटेशन हुई जब मैंने देखा की मेरे अंतर्वस्त्रों को देखकर उसके दाँत बाहर निकल आए हैं. मेरी तरफ मुँह करके वो ब्लाउज से लिपटी हुई ब्रा को अलग करने की कोशिश करने लगा.

इतना बदमाश. उसको ये सब मेरे ही सामने करना था. 

मैंने देखा मेरी ब्रा का स्ट्रैप ब्लाउज के हुक में फँसा हुआ है . परिमल को ये नहीं दिखा और वो ब्रा को खींचकर अलग करने की कोशिश कर रहा था.

“अरे ….क्या कर रहे हो ? हुक टूट जाएगा.”

परिमल ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा जबकि मुझे बिल्कुल हँसी नहीं आ रही थी. अब उसने हुक से स्ट्रैप निकाला.

परिमल – मैडम, मुझे पता नहीं चला की आपकी ब्रा ब्लाउज के हुक में फँसी है. आपने सही समय पर बता दिया वरना मैंने ग़लती से आपके ब्लाउज का हुक तोड़ दिया होता.

ऐसा कहते हुए उसने अपने एक हाथ में ब्रा और दूसरे में ब्लाउज पकड़ लिया जैसे की मुझे दिखा रहा हो की देखो मैंने बिना हुक तोड़े अलग अलग कर दिए हैं. ब्लाउज से ब्रा अलग करने में मेरी पैंटी फर्श में गिर गयी.

परिमल – ओह…..सॉरी मैडम.

पैंटी के गिरते ही मैं अपनेआप ही झुक गयी और पैंटी उठाने लगी. मेरी मुड़ी तुड़ी पैंटी फर्श से उठाकर उसको देने में बड़ा अजीब लग रहा था. आश्रम आने से पहले कभी किसी मर्द को अपने अंतर्वस्त्र देने की जरूरत नहीं पड़ी. अपने घर में मैं अपने अंतर्वस्त्र खुद धोती थी. इसलिए कभी धोबी को देने की जरूरत नहीं पड़ी. मैंने तो कभी अपने पति से भी नहीं कहा की अलमारी से मेरी ब्रा पैंटी निकाल कर दे दो. मुझे याद है की जब मैं आश्रम आई थी तो पहले ही दिन मुझे अपने अंतर्वस्त्र समीर को देने पड़े थे. वो तो फिर भी चलेगा लेकिन इस बौने की हरकतों से मुझे इरिटेशन हो रही थी.

परिमल अब मेरी पैंटी को गौर से देखने लगा. असल में वो एक रस्सी की तरह मुड़कर उलझ गयी थी. नहाने के बाद मैंने उसे सीधा नहीं किया था. 

परिमल – मैडम, ये तो घूम गयी है.

मेरे पास इस बेहूदी बात का कोई जवाब नहीं था और मैंने नजरें झुका ली और शरम से अपने होंठ काटने लगी.

परिमल – मैडम , मैं इसको सीधा करता हूँ , नहीं तो ठीक से धुल नहीं पाएगी. आप इनको पकड़ लो.

एक मर्द मुझसे मेरी ब्रा और ब्लाउज को पकड़ने के लिए कह रहा था और खुद मेरी पैंटी को सीधा करना चाहता था. मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया. मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज पकड़ लिए. परिमल दोनों हाथों से मेरी घूमी हुई पैंटी को सीधा करने लगा. वो देखकर मैं शरम से मरी जा रही थी.

मुझे बहुत एंबरेस करके आखिरकार परिमल बाथरूम से बाहर आया. 

परिमल – मैडम अब आप गुरुजी के पास जाओ. उन्होंने लंच ले लिया है.

अपने हाथों में मेरे अंतर्वस्त्र पकड़कर दाँत दिखाते हुए परिमल चला गया. उसकी मुस्कुराहट पर इरिटेट होते हुए मैं भी गुरुजी के कमरे की तरफ चल दी.

“गुरुजी, मैं आ जाऊँ ?”

गुरुजी एक सोफे में बैठे हुए थे और समीर भी वहाँ था.

गुरुजी – आओ रश्मि. मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था.

मैं अंदर आकर कालीन में बैठ गयी. समीर भी वहीं पर बैठा हुआ था. वो एक कॉपी में कुछ हिसाब लिख रहा था. मैंने गुरुजी को प्रणाम किया और उन्होंने जय लिंगा महाराज कहकर आशीर्वाद दिया.

गुरुजी – रश्मि , मुझे कुछ देर बाद भक्तों से मिलना है इसलिए मैं सीधे काम की बात पे आता हूँ. जैसा की मैंने तुम्हें बताया है की महायज्ञ तुम्हारे गर्भधारण में आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति का आखिरी उपाय है. ये एक कठिन प्रक्रिया है और इसको पूरा करने में तुम्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. सिर्फ तुम्हारी लगन ही तुम्हें पार ले जा सकती है. तुम्हें सिर्फ उस वरदानी फल का ध्यान करना है जो महायज्ञ के उपरांत तुम अपने गर्भ में धारण करोगी.

मैं उनकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गयी. गुरुजी की ओजस्वी वाणी से मुझे कॉन्फिडेन्स भी आ रहा था. मैंने सर हिलाया.

गुरुजी – महायज्ञ का पाठ किसी भी औरत के लिए कठिन है लेकिन अंत में जो सुखद फल प्राप्त होगा , उसकी इच्छा से तुम अपनेआप को तैयार करो. महायज्ञ में कुछ चरण हैं और हर चरण को पूरा करने के बाद तुम अपने लक्ष्य के करीब आती जाओगी. ये तुम्हारे मन, शरीर और धैर्य की कड़ी परीक्षा होगी. अगर तुम्हें मुझमें और लिंगा महाराज में विश्वास है तो तुम अपनी मंज़िल तक जरूर पहुँचोगी.

“गुरुजी , मैं जरूर पूरा करूँगी. किसी भी कीमत पर मैं माँ बनना…….”

मेरी आवाज गले में रुंध गयी क्यूंकी संतान ना हो पाने का दुख मेरे मन पर हावी हो गया.

गुरुजी – मैं तुम्हारा दुख समझता हूँ रश्मि. अभी तक तुमने सफलतापूर्वक उपचार की प्रक्रिया पूरी की है और लिंगा महाराज के आशीर्वाद से तुम जरूर महायज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा करोगी.

गुरुजी कुछ पल के लिए रुके फिर ….

गुरुजी – मैं तुम्हारा दुख समझता हूँ रश्मि. अभी तक तुमने सफलतापूर्वक उपचार की प्रक्रिया पूरी की है और लिंगा महाराज के आशीर्वाद से तुम जरूर महायज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा करोगी.

गुरुजी कुछ पल के लिए रुके फिर ….

गुरुजी – मैं जानता हूँ की तुम्हारी जैसी शादीशुदा औरत के लिए किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने देने के लिए राज़ी होना बहुत कठिन है. लेकिन मेरे उपचार का तरीका ऐसा है की तुम्हें इन चीज़ों को स्वीकार करना ही पड़ेगा. संतान पैदा होना ‘यौन अंगों’ से संबंधित है , है की नहीं रश्मि ? इसलिए मैं उपचार के दौरान उन्हें बायपास कैसे कर सकता हूँ ? अगर मुझे तुम्हारे स्खलन की मात्रा ज्ञात नहीं होगी, अगर मुझे ये मालूम नहीं होगा की तुम्हारे योनीमार्ग में कोई रुकावट है या नहीं तो मैं उपचार का अगला चरण कैसे तय कर पाऊँगा ?

मैंने एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह गुरुजी की बात पर सर हिला दिया. 

गुरुजी – इसीलिए मैंने पहले ही दिन तुमसे कहा था की अपना सारा संकोच और शरम को भूल जाओ. और आज जब तुम अपने उपचार के आखिरी पड़ाव पर हो, मैं तुमसे कहूँगा की महायज्ञ के दौरान कोई संकोच , कोई शरम अपने मन में मत रखना.

गुरुजी – मेरा मतलब है की मानसिक तौर पर किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना. वैसे तो तुमने पिछले कुछ दिनों में उपचार की प्रक्रिया ठीक से पूरी की है लेकिन महायज्ञ में हो सकता है की तुम्हें और भी ज़्यादा बेशरम बनना पड़े. असल में जो तुम्हारे लिए बेशरम कृत्य है , वो हमारे लिए साधारण कृत्य है. जैसे उदाहरण के लिए कल कुमार के घर में मुझे नग्न होकर काजल के साथ संभोग करते हुए देखकर तुमने जरूर मेरे बारे में ग़लत सोचा होगा लेकिन तांत्रिक क्रियाएँ ऐसे ही की जाती हैं, यही विधान है. 

स्वाभाविक शरम से मैंने गुरुजी से आँखें मिलने से परहेज किया. मेरे चेहरे की लाली बढ़ने लगी थी.

गुरुजी – जब मैंने अपने गुरु से तांत्रिक दीक्षा ली थी , तब हम पाँच शिष्य थे और उनमें से दो औरतें थीं. उन दिनों पूरी प्रक्रिया के दौरान नग्न रहना जरूरी होता था. इसलिए तुम समझ सकती हो……

मैंने फिर से गुरुजी से नजरें नहीं मिलाई और मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गयी थीं. गुरुजी सीधे मेरी आँखों में देखकर बात कर रहे थे.

गुरुजी – रश्मि, मैं फिर से इस बात पर ज़ोर दूँगा की अपनी शारीरिक स्थिति पर ध्यान देने की बजाय जो प्रक्रिया चल रही है उस पर ध्यान देना. तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी. समझ गयीं ?

“जी गुरुजी.”

गुरुजी – जैसा की मैंने तुम्हें पहले भी बताया था महायज्ञ दो रातों तक चलेगा. आज रात 10 बजे से शुरू होगा. कल दिन में तुम आराम करना और कल रात को महायज्ञ का दूसरा चरण होगा. महायज्ञ में क्या क्या होगा इसके बारे में मैं अभी बात नहीं करूँगा, यज्ञ के दौरान ही तुम्हें पता चलते रहेगा. ठीक है ?

मैंने फिर से सर हिला दिया.

गुरुजी – ठीक है फिर. समीर जरा देखो की सभी भक्त आ गये हैं या नहीं. वरना मुझे जाना होगा.

समीर – जी गुरुजी.

समीर ने अपनी कॉपी बंद की और कमरे से बाहर चला गया. अब मैं गुरुजी के साथ अकेली थी.

गुरुजी – रश्मि , महायज्ञ और तंत्र दर्शन कोई आज के दिनों के नहीं हैं. ये प्राचीन काल से चले आ रहे हैं और इस प्रक्रिया में भक्तों को अपने शुद्ध रूप यानी की नग्न रूप में रहना होता है. लेकिन आज के दौर में शहरों में रहने वाले स्त्री – पुरुष भी इसका लाभ प्राप्त करने आते हैं , अब आज के समय को देखते हुए हम उन्हें नग्न रूप में पूजा के लिए नहीं कहते बल्कि ‘महायज्ञ परिधान’ पहनना होता है. एक बात मैं साफ बता देना चाहता हूँ की पहले के समय में भक्त और यज्ञ करवाने वाले दोनों को ही नग्न रूप में रहना होता था.

गुरुजी थोड़ा रुके शायद मेरा रिएक्शन देखने के लिए. मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी की मुझे क्या पहनना होगा ? मैं गुरुजी से पूछना चाह रही थी की ‘महायज्ञ परिधान’ होता क्या है ? इस परिधान के बारे में अंदाज़ा लगाते हुए मेरा गला सूखने लगा था. गुरुजी ने जैसे मेरे मन की बात जान ली.

गुरुजी – रश्मि, मैं इस बात से सहमत हूँ की ‘महायज्ञ परिधान’ एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है पर मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता. लेकिन जैसा की मैंने कई बार कहा है तुम्हारा ध्यान लक्ष्य पर होना चाहिए ना की और बातों पर.

“लेकिन फिर भी गुरुजी…”

गुरुजी – मैं जानता हूँ रश्मि की तुम्हें उत्सुकता हो रही होगी. लेकिन तुम्हारा ध्यान लिंगा महाराज की पूजा पर होना चाहिए. बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.

ऐसा कहते हुए वो मुस्कुराए और उठने को हुए. सच कहूँ तो उस समय तक मुझे इस ‘महायज्ञ परिधान’ को लेकर फिक्र होने लगी थी.

गुरुजी – अब मुझे जाना है. मुझे उम्मीद है की तुम्हें गोपाल टेलर को कपड़े की नाप देने में कोई आपत्ति नहीं होगी.

गोपाल टेलर ? हे भगवान ! मुझे तुरंत याद आया की उसकी दुकान में ब्लाउज की नाप देते समय गोपालजी और उसके भाई मंगल ने मेरे साथ क्या किया था. मेरा मुँह शरम से लाल हो गया.

“लेकिन गुरुजी , क्या मैं कहीं और से …”

गुरुजी – रश्मि, ‘महायज्ञ परिधान’ एक खास तरह का वस्त्र है जो उच्चकोटि के कपास (कॉटन) से बनता है. ये बाजार में नहीं मिलता की तुम गये और खरीद कर ले आए. 

गुरुजी खीझ गये. मैं अपने उपचार के आखिरी पड़ाव में गुरुजी को नाराज नहीं करना चाहती थी.

“माफ़ कीजिए गुरुजी. मुझे ये समझ लेना चाहिए था.”

गुरुजी – तुम्हें ये जानकार आश्चर्य होगा की गोपाल टेलर आज ही तुम्हारा परिधान सिल देगा और वो भी रात 10 बजे से पहले. तुम यज्ञ के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करो और उसका काम उसे करने दो. वो तुम्हारे कमरे में दोपहर 2 बजे आ जाएगा.

मैंने सहमति में सर हिलाया और कालीन से उठ खड़ी हुई. मेरे दिमाग़ में परिधान को लेकर बहुत से प्रश्न थे लेकिन गुरुजी से पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

गुरुजी – अब तुम जाओ.

मैं अपने कमरे में चली आई. लेकिन मेरी उत्सुकता बढ़ते जा रही थी की आखिर ये परिधान होता कैसा है ? गुरुजी ने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया था. मैंने अपने मन में याद करने की कोशिश की गुरुजी ने क्या कहा था ? मुझे याद आया की उन्होंने कहा था की ये परिधान एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है. इसका क्या मतलब हुआ ? ये कोई साड़ी या सलवार कमीज जैसी पूरे बदन को ढकने वाली ड्रेस तो नहीं होगी लेकिन कुछ छोटी होगी.

तभी मेरे दिमाग़ में ख्याल आया की मुझे कौन बता सकता है. वो थी मंजू. मैं आश्रम के किसी मर्द से ये बात पूछने में बहुत असहज महसूस करती पर मंजू जरूर मुझे इसके बारे में बता सकती थी.

“मंजू….”

मंजू अपने कमरे में थी और मुझे अंदर आने को कहा. वो अपने बेड में बैठी हुई कुछ सिल रही थी. मैं भी उसके साथ बेड में बैठ गयी.

मंजू – गुप्ताजी के घर की सैर कैसी रही ?

“ठीक रही. असल में मैं तुमसे कुछ पूछने आई थी.”

वो मुस्कुरायी और प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा.

“तुम्हें मालूम ही होगा की गुरुजी मेरे लिए महायज्ञ करने वाले हैं और ….”

मंजू – हाँ , मुझे मालूम है.

“उन्होंने अभी मुझे इसके बारे में बताया.”

मंजू – कोई समस्या ?

“मेरा मतलब वो …..असल में गुरुजी कुछ ‘महायज्ञ परिधान’ की बात कर रहे थे.

मंजू – तो ?

“असल में मैं जाना चाहती थी की ये कैसी ड्रेस होती है ?”

मंजू – ओह …..तुम इसके लिए बहुत चिंतित लग रही हो.

“हाँ, तुम्हें मालूम होगा की यज्ञ के दौरान मुझे उसी ड्रेस में रहना होगा, इसलिए…”

मंजू – सच बात है रश्मि. ये हम औरतों के लिए समस्या है. मर्द तो दिन भर एक कच्छा पहनकर घूम सकते हैं लेकिन हम औरतें नहीं.

मुझे लगा आखिर कोई तो मिला जो औरत होने के नाते मेरी शरम को समझता हो.

मंजू – रश्मि, मैं तुम्हें कोई दिलासा नहीं दे सकती क्यूंकी महायज्ञ में पूर्ण भक्ति और शरीर की शुद्धि की जरूरत होती है.

“हाँ, गुरुजी भी कुछ ऐसा ही कह रहे थे.”

मंजू – फिर भी मैं तुम्हें ये भरोसा दिला सकती हूँ की ये दो हिस्से ढके रहेंगे.

ऐसा कहते हुए उसने अपने हाथ से अपनी चूचियों और चूत की तरफ इशारा किया और शरारत से मुस्कुराने लगी. ये सुनकर सचमुच मुझे राहत मिली और मैं भी मुस्कुरा दी लेकिन मैं अभी भी चिंतित थी. ये देखकर उसने अपना सिलाई का कपड़ा एक तरफ रख दिया और मेरी तरफ झुककर अपनी अंगुलियों से मेरा दायां गाल पकड़कर हिलाया.

मंजू – चिंता मत करो रश्मि. परिधान के बारे में रहस्य को बने रहने दो.

वो ज़ोर से हंस पड़ी और उसके व्यवहार को देखकर मैं भी मुस्कुरा रही थी.

मंजू – ये बताओ , तुम्हारी शादी को कितने साल हो गये ?

“चार साल…”

मंजू – हे भगवान . तब तो तुम्हारे पति ने तुमसे 400 बार मज़े लिए होंगे , है ना ?

वो हँसे जा रही थी और उसके चिढ़ाने से मेरा चेहरा लाल होने लगा था.

मंजू – तुममें अब भी शरम बाकी है ? कहाँ रखती हो उसे ?

उसकी बात पर हम दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े और बेड पे लोटपोट हो गये.

मंजू – मैं सोच रही हूँ की गुरुजी से कहूँ की तंत्र के नियमों के अनुसार महायज्ञ के लिए शादीशुदा औरतों को कोई वस्त्र पहनने की अनुमति ना दें.

हम अभी भी हंस रहे थे और मंजू की इस बात पर मैंने उसे चिकोटी काट दी. और सच कहूँ तो अब मेरी चिंता काफ़ी कम हो चुकी थी.

मंजू – रश्मि, मज़ाक अलग है लेकिन तुम बिल्कुल फिक्र मत करो.

वो थोड़ा रुकी और हम फिर से बेड पे ठीक से बैठ गये. ब्लाउज के ऊपर से उसका पल्लू गिर गया था और उसकी बड़ी क्लीवेज दिख रही थी ख़ासकर इसलिए क्यूंकी उसके ब्लाउज का ऊपरी हुक खुला हुआ था. उसके साथ ही मैंने भी अपना पल्लू ठीक कर लिया.

मंजू – रश्मि, इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान मत दो और बस लिंगा महाराज की पूजा करो ताकि तुम्हें इच्छित फल की प्राप्ति हो.

“तुम ठीक कह रही हो मंजू. मुझे सिर्फ उस पर ही ध्यान लगाना चाहिए. सिर्फ मैं ही जानती हूँ की कितनी रातों को मैं अकेले में चुपचाप रोई हूँ…..”

हम दोनों कुछ पल के लिए चुप रहे फिर कुछ इधर उधर की बातें करके मैं वापस अपने कमरे मैं चली आई. अब 2 बजने में आधा घंटा ही बचा था और गोपाल टेलर को मेरे कमरे में आना था.

मंगल से फिर से सामना होने को लेकर मैं थोड़ी असहज थी. जिस तरह से उसने मेरे साथ लफंगों जैसा व्यवहार किया था वो मुझे पसंद नहीं आया था. मुझे अभी भी उसके भद्दे और अश्लील कमेंट्स याद हैं जैसे की ……
‘मैडम , मैंने सुना है की अगर अच्छे से चूचियों को चूसा जाए तो कुँवारी लड़कियों का भी दूध निकल जाता है. 
मैडम , क्या मस्त गांड है आपकी. बहुत ही चिकनी और मुलायम है.’
और मूठ मारते समय मंगल का तना हुआ काला लंड मैं कैसे भूल सकती हूँ. इन सब बातों को याद करके मेरी चूचियाँ ब्लाउज में टाइट होने लगीं और मैंने अपना ध्यान दूसरी बातों की तरफ लगाने की कोशिश की. तभी दरवाज़े में खट खट हुई.

“आ गये “ मैंने सोचा और दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़े में मुस्कुराते हुए गोपाल टेलर खड़ा था.

गोपाल टेलर – मैडम, फिर से आपसे मुलाकात हो गयी.

मैं भी मुस्कुरा दी और उससे अंदर आने को कहा. उसके साथ मंगल की बजाय एक छोटा लड़का था.

गोपाल टेलर – आप कैसी हैं मैडम ?

“ठीक हूँ. उम्मीद है आपके हाल भी ठीक होंगे.”

गोपाल टेलर – मैडम , अब इस उमर में तबीयत ठीक नहीं रहती है. दो दिन पहले ही मुझे बुखार था , पर अब ठीक हूँ.

“अच्छा …”

गोपाल टेलर – मेरे आने के बारे में गुरुजी ने आपको बताया होगा.

“हाँ गोपालजी. पर ये कौन है ?”

मैंने उस लड़के की तरफ इशारा किया.

गोपाल टेलर – असल में मैंने नाप लेने के लिए मंगल को ले जाना बंद कर दिया है. ये लड़का सिलाई सीख रहा है और नाप लेने में मेरी मदद करता है.

ये सुनकर मुझे बड़ी राहत हुई की मंगल यहाँ नहीं आएगा. मेरे चेहरे पर राहत के भाव देखकर गोपालजी ने उलझन भरी निगाहों से मुझे देखा. मैंने जल्दी से बात संभाल ली.

“आप जैसे एक्सपर्ट के साथ ये लड़का जल्दी सीख जाएगा.”

गोपालजी ने सर हिला दिया और मेरे बेड पर कॉपी और पेन्सिल रख दी. वो लड़का एक बैग लेकर बेड के पास खड़ा था.

गोपाल टेलर – ये बहुत ध्यान से सीखता है और बहुत सवाल करता है, जो की अच्छी बात है.

“लेकिन मंगल को क्या हुआ ?”

मुझे ये सवाल पूछने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी इससे कुछ ऐसी बातें हुई जिनकी वजह से मुझे इस 60 बरस के बुड्ढे के सामने असहज महसूस हुआ.

गोपाल टेलर – क्या बताऊँ मैडम.

वो थोड़ा रुका और उस लड़के से बोला.

गोपाल टेलर – दीपक बेटा, मेरे लिए एक ग्लास पानी ले आओ.

दीपक – जी अभी लाया.

दीपक कमरे से बाहर चला गया और गोपालजी मेरे पास आया.

गोपाल टेलर – मैडम, ये बात मैं दीपक के सामने नहीं बताना चाहता था. आखिर मंगल मेरा भाई है.

अब मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी थी.

“लेकिन हुआ क्या ?”

गोपाल टेलर – मैडम , हम अपने डिस्ट्रीब्यूटर को कपड़े देने पिछले हफ्ते शहर गये थे. उसने हमें बताया की एक धनी महिला है जो उसकी दुकान में आती रहती है, उसे कुछ मॉडर्न ड्रेस सिलवानी है और उसने खास तौर पर कहा है की टेलर बड़ी उमर का ही होना चाहिए. तो हुआ ये की मेरे डिस्ट्रीब्यूटर ने मुझे उसके घर भेज दिया. मंगल भी मेरे साथ था. जब हम उसके घर पहुँचे तो पहले तो वो औरत मंगल के सामने नाप देने में हिचकिचा रही थी फिर बाद में मान गयी. लेकिन जानती हो उस सुअर ने क्या किया ?

मैं बड़ी उत्सुकता से टेलर का मुँह देख रही थी और मेरे दिल की धड़कनें तेज हो गयी थीं. मेरा चेहरा देखकर गोपालजी का उत्साह भी बढ़ गया और वो विस्तार से किस्सा सुनाने लगा.

गोपाल टेलर – मैडम, वो औरत पार्टी के लिए एक टाइट गाउन सिलवाना चाहती थी. जब मैं उसके नितंबों की नाप ले रहा था तो उसके कपड़ों के ऊपर से सही नाप नहीं आ पा रही थी , इसलिए मैंने उससे साड़ी उतारने के लिए कहा. पहले तो वो राज़ी नहीं हुई फिर अनिच्छा से तैयार हो गयी. मैंने उससे कहा, साड़ी को बस पेटीकोट के ऊपर उठा दो , उतारो मत ताकि उसको असहज ना लगे. लेकिन खड़ी होकर वो ठीक से साड़ी ऊपर नहीं कर सकी तो मैंने मंगल से मदद करने को कहा. मंगल ने उसकी साड़ी ऊपर उठा दी और उसके पीछे खड़ा हो गया. अब मैं उसके पेटीकोट के बाहर से नितंबों की नाप लेने लगा. जब मैं अपने हाथ पीछे उसके नितंबों पर ले गया तो , अब मैं क्या कहूँ मैडम, वो बदमाश मेरा भाई है, वो उस औरत की गांड में अपना लंड चुभो रहा था. 

“क्या…???”

मेरे मुँह से अपनेआप निकल पड़ा.

“आपका मतलब उसने अपना पैंट खोला और …….”

गोपाल टेलर – नहीं नहीं मैडम , ये आप क्या कह रही हो. उसने सिर्फ अपने पैंट की ज़िप खोली और अपना …..

मैंने जल्दी से अपना सर हिला दिया , ये जतलाने के लिए की मैं बखूबी समझती हूँ की अपने पैंट की ज़िप खोलकर एक मर्द क्या चीज बाहर निकालता है ताकि गोपालजी को मेरे सामने उस चीज का नाम ना लेना पड़े. फिर क्या हुआ ये जाने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ रही थी.

गोपाल टेलर – शायद उस औरत को पहले पता नहीं चला क्यूंकी ज़रूर उसने ये सोचा होगा की मंगल उसकी साड़ी को ऊपर करके पकड़े हुए है इसलिए उसकी अँगुलियाँ गांड पर छू रही होंगी. मंगल के व्यवहार से मुझे ऐसा झटका लगा की मेरी अँगुलियाँ काँपने लगीं. तभी उस औरत ने कहा की नितंबों पर थोड़ी ढीली नाप रखो क्यूंकी वो गाउन के अंदर पैंटी के बजाय अंडरपैंट पहनेगी और अगर गाउन नितंबों पर टाइट हुआ तो अंडरपैंट की शेप दिखेगी. मैं उसकी बात समझ गया और फिर से उसके नितंबों की नाप लेने लगा लेकिन अपने भाई की हरकत देखकर मैं टेंशन में आ गया था.

गोपालजी थोड़ा रुका और दरवाज़े की तरफ देखने लगा की कहीं दीपक वापस तो नहीं आ गया है. लेकिन वो अभी नहीं आया था. उस टेलर का ऐसा कामुक किस्सा सुनते सुनते मेरी चूत में खुजली होने लगी थी लेकिन मैं उसके सामने खुज़ला नहीं सकती थी.

गोपाल टेलर – मैडम , उस दिन मंगल की हरकत देखकर मुझे बहुत हताशा हुई. ग्राहक से ऐसे व्यवहार किया जाता है ? फिर मैं उस औरत के सामने बैठ गया और दोनों हाथ पीछे ले जाकर नितंबों की नाप लेने लगा तभी मंगल ने कहा की पंखे की हवा से मैडम का पेटीकोट उड़ रहा है इसलिए मैं पेटीकोट भी पकड़ लेता हूँ. उस मैडम को इसमें कोई परेशानी नहीं थी. मंगल को दो अंगुलियों से पेटीकोट का कपड़ा पकड़ना था ताकि वो उड़े ना. लेकिन उस बदमाश ने पेटीकोट को मैडम की गांड पर हथेली से दबा दिया.

गोपालजी थोड़ा रुका. अबकी बार मैंने साड़ी एडजस्ट करने के बहाने बेशर्मी से अपनी चूत खुजा दी. गोपालजी ने ये देख लिया और मुस्कुराया. अब मेरे कान भी लाल होने लगे थे.


गोपाल टेलर – मैडम फिर क्या था, जैसे ही मंगल ने उस मैडम की गांड में पेटीकोट को हथेली से दबाया , वो औरत असहज दिखने लगी और फिर अगले एक मिनट में क्या हुआ मुझे नहीं मालूम पर मैंने चटाक की आवाज़ सुनी.
चटा$$$$$$$$$$क………..

मंगल को थप्पड़ मारकर वो मैडम गुस्से से आग बबूला हो गयी और ख़ासकर उसके पैंट की खुली ज़िप देखकर. शुक्र था की उस दिन उसका पति घर पर मौजूद नहीं था. वरना हम ज़रूर मार खाते. आप मेरी हालत समझो मैडम, इस उमर में इतनी बेइज़्ज़ती, इतनी शर्मिंदगी.

मंगल की इस लम्पट हरकत पर मैंने ना में सर हिलाकर अफ़सोस जताया.

गोपाल टेलर – मैडम, मैंने मंगल से पूरे एक दिन तक बात नहीं की. उस दिन से मैंने नाप लेने के लिए उस सूअर को साथ आने से मना कर दिया.

“बहुत अच्छा किया गोपालजी. इतना बदतमीज.”

गोपाल टेलर – मैडम, मैं आपसे माफी चाहता हूँ की उस दिन आपके ब्लाउज की नाप लेते समय मंगल भी मेरे साथ था. लेकिन सब उसके जैसे नहीं होते. असल में इसीलिए मैं इस नये लड़के को लाया हूँ….

तभी दीपक पानी का ग्लास लेकर कमरे में आ गया और गोपालजी चुप हो गया. गोपालजी पानी पीने लगा वैसे तो मेरा गला ज़्यादा सूख रहा था. पानी पीने के बाद गोपालजी ने बैग से सामान निकलना शुरू कर दिया.

गोपाल टेलर – मैडम ,एक बात तो अच्छी हुई है.

“कौन सी बात ?”

गोपाल टेलर – मैडम , पिछली बार आपने अपनी समस्या बताई थी. तब समय नहीं था पर इस बार मैं उसे ठीक कर दूंगा.

मुझे तुरंत याद आ गया की मैंने इस बुड्ढे टेलर को अपनी पैंटी की समस्या बताई थी जो की अक्सर चलते समय मेरे नितम्बों के बीच की दरार में सिकुड़ जाती थी. शादी के बाद मेरे नितम्ब चौड़े हो गए थे और ये समस्या और भी बढ़ गयी थी. मै चाहती थी की इस समस्या का हल निकले . मैंने अपने शहर के लोकल दुकानदार को भी ये समस्या बताई थी, जिसकी दुकान से मैं अक्सर अपने अंडर गारमेंट्स खरीदती थी और उसने ब्रांड चेंज करने को कहा. मैंने कई दूसरी कम्पनीज की ब्रांड चेंज करके देखि पर उससे कोई खास फायदा नहीं हुआ. जब भी मै किसी भीड़ भरी बस या बाजार में जाती थी तो किसी मर्द का हाथ मेरे नितम्बों पर लगता था तो मुझे बहुत उनकंफर्टबल फील होता था क्यूंकि पैंटी तो नितम्बों पर होती नहीं थी. दूसरी बात ये थी की पैंटी के सिकुड़ने से मेरे चौड़े नितम्ब कुछ ज्यादा ही हिलते थे. वैसे तो ये समस्या ऐसी थी की किसी से खुलकर बात भी नहीं कर सकती थी लेकिन गोपालजी बूढ़ा था और अनुभवी टेलर था इसीलिए मैंने उसे अपनी समस्या के बारे में बात करने में ज्यादा संकोच नहीं किया. वैसे तो वहां पर दीपक भी था पर वो छोटा लड़का था इसलिए मैंने उसे नज़रंदाज़ कर दिया.

“हाँ, गोपालजी. मुझे लंबे समय से ये परेशानी है. और मै बहुत असहज महसूस करती हूँ…”

गोपाल टेलर – मै समझता हूँ मैडम. क्यूंकि मै पैंटी सिलता हूँ इसीलिये मुझे मालूम है कि समस्या कहां पर है. आपकी परेशानी ये है की पैंटी नितम्बों से सिकुड़ जाती है. है न मैडम?

“हाँ , यही परेशानी है.”

गोपाल टेलर – आप कौन सी ब्रांड की पैंटी पहनती हो ?

“आजकल मैं ‘डेज़ी’ ब्रांड की यूज करती हूँ.”

गोपाल टेलर – ‘डेज़ी नार्मल’ ?

मैंने सर हिला दिया.

“कोई और वैरायटी भी है क्या इसमें ?”

मुझे हैरानी हो रही थी की मई एक मर्द के साथ खुलकर अपने अंडर गारमेंट्स की बात कर रही थी , लेकिन मंगल के यहाँ न होने से मुझे झिझक नहीं हो रही थी. उस कमीने को तो मै नहीं झेल सकती. दीपक चुपचाप हमारी बातें सुन रहा था.
गोपाल टेलर – हाँ मैडम. डेज़ी नार्मल, डेज़ी टीन और डेज़ी मेगा.

“लेकिन मै तो सोचती थी की उनकी वैरायटी सिर्फ प्रिंट्स में है , नार्मल और फ्लोरल.”

गोपाल टेलर – मैडम, दुकानदार तो हमेशा उसी ब्रांड को ग्राहकों को दिखायेगा जिसमें उसे ज्यादा कमीशन मिलेगा. लेकिन आपको वही लेनी चाहिए जो आपको सूट करे.

“लेकिन मुझे तो ये मालूम ही नहीं था. इनमें अंतर क्या है ?”

गोपाल टेलर – मैडम जैसा की नाम से अंदाजा लग रहा है, डेज़ी नार्मल जो आप यूज करती हो वो नार्मल साइज की पैंटी है , इसमें नार्मल कट होते हैं. और डेज़ी टीन ….

मैंने स्मार्ट बनने की कोशिश करते हुए गोपालजी की बात बीच में काट दी.

“टीनएजर लड़कियों के लिए . अच्छा ऐसा है नाम के अनुसार.”

गोपाल टेलर – नहीं मैडम, आपका अंदाज़ गलत है. डेज़ी टीन , टीनएजर लड़कियों के लिए नहीं है. नाम से साइज और पैंटी के कट्स का पता चलता है. ये पैंटी डेज़ी नार्मल से साइज में छोटी होती है और कट्स भी ऊँचे होते हैं. मैडम, आप भी डेज़ी टीन पहन सकती हो , टीनएजर से कोई मतलब नहीं है.

“ओह…अच्छा…..”

गोपाल टेलर – असल में जब मेरे पास ऑर्डर्स आते हैं तो मुझे भी डिमांड के अनुसार अलग अलग टाइप की पैंटी सिलनि पड़ती हैं जैसे की नार्मल, टीन, मेगा, मिग. हर कंपनी अलग अलग नाम रखती है.

मिग ? ये क्या है ? मैं अपने मन में सोचने लगी. लेकिन मुझे बड़ी ख़ुशी हुई की गोपालजी को इन सब चीज़ों की बहुत बारीकी से जानकारी है. अब मै अपनी शर्म छोड़कर और भी खुलकर बात करने लगी.

“डेज़ी मेगा में क्या है ?”
गोपाल टेलर – मैडम, डेज़ी मेगा आपके लिए सही रहेगी क्यूंकि आपके बहुत मांसल नितम्ब हैं. ये पैंटी ऐसी ही औरतों के लिए है जिनके आपके आपके ही जैसे बड़े बड़े गोल नितम्ब हो मतलब की बड़ी गाँड वाली.

उस बुड्ढे टेलर के मुंह से ऐसे शब्द सुनकर मेरी नज़रें झुक गयी और मेरे कान गरम हो गए. गोपालजी साइड से मेरी साड़ी से ढकी हुई गाँड देख रहे थे और मैंने देखा की वो छोटा लड़का दीपक भी मेरी गांड देख रहा था. मैंने बात बदलने की कोशिश की.

“गोपालजी आपने कुछ मिग के बारे में कहा था, ये क्या है ?”

गोपाल टेलर – मैडम, ये डायना कंपनी की पैंटी का नाम है. आपने डायना ब्रा पैंटी के बारे में सुना है ?

मैंने न में सर हिला दिया क्यूंकि मैंने कभी इस कंपनी का नाम नहीं सुना था.

गोपाल टेलर – मैडम, ये पैंटी मॉडर्न टाइप की है और उप्पेर क्लास की औरतें इसे पसंद करती हैं.

“लेकिन मिग का मतलब क्या है ?”

गोपाल टेलर – मैडम , मिग अंग्रेजी शब्द ‘मर्ज’ का छोटा रूप है, जिसका मतलब है बहुत कम. इसलिए इसमें बहुत कम कपडा होता है. इसमें पैंटी के पीछे बहुत पतला कपडा होता है और कट्स भी बहुत बड़े होते हैं. और आगे से इसमें नायलॉन नेट होता है जिससे ये आकर्षक लगती है.

गोपालजी मुस्कुराया. उसकी बात से मैं असहज महसूस कर रही थी , खासकर सामने से नायलॉन नेट वाली बात से. मैं समझ सकती थी कि जो औरत इस पैंटी को पहनेगी उसकी चूत साफ़ दिखती होगी क्यूंकि नायलॉन नेट से ढकेगा कम दीखेगा ज्यादा.

“ऐसी पैंटी कौन खरीदता है ?”

गोपाल टेलर – मैडम, आपको शायद मालूम नहीं लेकिन दुनिया कहाँ की कहाँ पहुँच गयी है. मेरे पास इस मिग पैंटी के बहुत आर्डर आते हैं और सेल्समेन ने मुझे बताया कि ज्यादातर नयी शादी वाली लड़कियां इसे खरीदती हैं लेकिन मिडिल एज्ड औरतें भी इसे पसंद करती हैं. 

मुझे हैरानी हुई कि इस बुड्ढे टेलर के पास सारी जानकारी है. मै गहरी सांसे लेने लगी थी और मेरे कान और चेहरा गरम हो गए थे जैसे मुझे इस मिग पैंटी को पहनने के लिए कहा गया हो. लेकिन मुझे क्या पता था कि गुरूजी ने मेरे लिए इस मिग पैंटी से भी सेक्सी सरप्राइज रखा है.

गोपाल टेलर – ठीक है मैडम. आप डेज़ी नार्मल ब्रांड यूज करती हो. मेरे ख्याल से दो बातें हैं अगर ये ठीक हो जाएँ तो आपकी परेशानी खत्म हो जाएगी.

मैंने उत्साही नज़रों से उसकी तरफ देखा.

गोपाल टेलर – मैडम, पहली ये कि आपकी पैंटी के पिछले हिस्से को खींचना पड़ेगा और दूसरी ये की उसमें कट्स को थोड़ा टाइट करना पड़ेगा और अच्छी क्वालिटी के इलास्टिक बैंड्स लगाने पड़ेंगे. बस इतना ही.

“ओह्ह.. इतना सरल उपाय…”

मैंने राहत की सांस ली.

गोपाल टेलर – अनुभव है मैडम , अनुभव.

गोपालजी मुस्कुराया और मुझे भरोसा हो गया की मेरी पैंटी की परेशानी अब नहीं रहेगी.

गोपाल टेलर – मैडम, अभी मई यहाँ महायग्य परिधान के लिए आया हूँ. अगर बुरा न माने तो पैंटी को मै बाद में ठीक करूँगा .

“हाँ ठीक है.”

मुझे इस महायज्ञ परिधान के बारे में कुछ भी नहीं पता था और अभी भी मैं इसे लेकर थोड़ी चिंतित थी लेकिन मैंने अपने चेहरे से ये जाहिर नहीं होने दिया.

गोपाल टेलर – दीपू , कॉपी लाओ जिसमें डिजाइन बनाया है. मैडम, गुरुजी ने आपको बताया होगा लेकिन फिर भी एक बार डिजाइन देख लो उसके बाद मैं नाप लूँगा.

मैं डिजाइन देखने के लिए उत्सुक थी और दीपू के पास जाकर खड़ी हो गयी. दीपू के हाथ में कॉपी थी और गोपालजी उसकी बायीं तरफ खड़े हो गया. दीपू ने कॉपी खोली और उस पेज में चार डिजाइन थे, एक चोली , एक घाघरा जैसा कुछ था, एक ब्रा और एक पैंटी . सच कहूँ तो चोली घाघरा देखकर मेरी चिंता कम हुई क्यूंकी मुझे फिकर हो रही थी की महायज्ञ परिधान कितना बदन दिखाऊ होगा. गुरुजी के शब्द मुझे याद थे…..” रश्मि, मैं इस बात से सहमत हूँ की ‘महायज्ञ परिधान’ एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है पर मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता”……

मैंने राहत की सांस ली और अब नाप देने के लिए मैं सहज महसूस कर रही थी.

गोपाल टेलर – मैडम, जैसा की आप देख रही हैं , महायज्ञ परिधान में अंतर्वस्त्रों के साथ कुल चार वस्त्र हैं. इसी डिजाइन के अनुसार मैं नाप लूँगा.

“ठीक है.”

उस कॉपी में ब्रा का डिजाइन मेरी ब्रा से बिल्कुल अलग लग रहा था. क्या है ये ? मैं सोचने लगी.

गोपाल टेलर – मैडम, अगर नाप लेते समय मैं इस लड़के को नाप का तरीका बताते जाऊँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी ? आपको बोरिंग लगेगा लेकिन इस लड़के को सीखने में बहुत मदद मिलेगी.

“ना, ना मुझे कोई दिक्कत नहीं है.”

मैंने सोचा मेरे लिए तो ये अच्छा ही है क्यूंकी अगर मैं टेलर से पूछती की ये कैसी ब्रा का डिजाइन है तो औरत होने की वजह से मुझे शरम आती लेकिन अगर टेलर लड़के को समझाते हुए नाप लेगा तो मुझे भी बिना पूछे सब पता चलते रहेगा.

गोपाल टेलर – धन्यवाद मैडम. दीपू बेटा, अब ध्यान से देखो मैं कैसे मैडम की नाप लेता हूँ. अगर कोई शंका हो तो सवाल पूछ लेना.

दीपू – जी ठीक है. मैं मैडम को ध्यान से देखूँगा.

दीपू की इस बात से मुझे थोड़ा झटका लगा और मैंने गौर से उसके चेहरे की तरफ देखा. लग तो छोटा ही रहा है , मुझे ऐसा लगा की मासूमियत से ऐसा बोल दिया होगा. एक अच्छी बात जो मुझे उसमें लगी वो ये थी की बाकी मर्दों की तरह वो मेरे ख़ास अंगों को बिल्कुल भी नहीं घूर रहा था. इसलिए मैंने उसकी बात को नजरअंदाज कर दिया.

गोपाल टेलर – अच्छा दीपू अब यहाँ देखो. पहले दो डिजाइन मैडम के अंतर्वस्त्रों के हैं लेकिन ये साधारण ब्रा पैंटी नहीं हैं जैसी हम रोज सिलते हैं.

दीपू – जी मैंने ख्याल किया था. ब्रा में स्ट्रैप नहीं हैं और पीछे तीन हुक्स हैं.

गोपाल टेलर – हाँ, ये स्ट्रैपलेस ब्रा है और ब्रा के कप्स को सहारा देने के लिए इसमें तीन हुक्स लगेंगे.

ओह्ह …ये स्ट्रैपलेस ब्रा है. मैंने स्ट्रैपलेस ब्रा के बारे में सुना तो था पर पहले कभी पहनी नहीं. बल्कि मैंने किसी और को पहने हुए भी कभी नहीं देखा. महायज्ञ परिधान का डिजाइन देखकर अब मैं थोड़ी बेफ़िक्र हो गयी थी. क्यूंकी गुरुजी ने कहा था की पहले तो इस यज्ञ को निर्वस्त्र होकर ही करना होता था , उस हिसाब से मैं घबरा रही थी की बहुत कम या छोटे कपड़े होंगे.

गोपाल टेलर – तुमने ये भी देखा होगा की पैंटी में एक भाग में दोहरा आवरण है.

दीपू – जी मैंने ये भी ख्याल किया था.

गोपाल टेलर – असल में ये अलग डिजाइन के इसलिए हैं क्यूंकी ये ड्रेस महायज्ञ के लिए है. मैडम, मैं आपको बता दूं की मैं इस ड्रेस में कोई फेर बदल नहीं कर सकता क्यूंकी महायज्ञ परिधान गुरुजी के निर्देशानुसार बनाया गया है.

ऐसा कहते हुए गोपालजी ने पेज पलटे और कुछ लिखा हुआ दिखाया जो महायज्ञ परिधान के लिए आश्रम से मिले हुए निर्देश थे. मैं उसे पढ़ नहीं पाई क्यूंकी समझ में नहीं आ रहा था की लिखा क्या है.

“ठीक है. मैं भी गुरुजी के निर्देशों का प्रतिकार नहीं कर सकती. इसलिए जो भी उन्होंने आपसे सिलने को कहा है , मुझे वही पहनना पड़ेगा.

गोपालजी मुस्कुराया और उसने सहमति में सर हिलाया.

गोपाल टेलर – दीपू अभी हम अंतर्वस्त्रों को रहने देते हैं. चोली बिना बाहों की है इसलिए कपड़ा काटते समय बाहों का कपड़ा कम करके काटना. मैडम की छाती का साइज 34 है तो 34 साइज के ब्लाउज के अनुसार कपड़ा काटना.

दीपू – जी ठीक है.

दोनों मर्द मेरी चूचियों की तरफ देखने लगे जैसे की आँखों से ही मेरी 34” की चूचियों का साइज नाप रहे हों. उनकी निगाहों से बचने के लिए मुझे अपनी नजरें झुकानी पड़ी.

गोपाल टेलर – मैडम, जो कपड़ा इसमें लगेगा वो बहुत खास और महँगा है. गुरुजी क्वालिटी से कभी समझौता नहीं करते. ये खास मलमल के कपड़े की तरह है, एकदम सफेद और मुलायम. दीपू , एक बार मैडम को कपड़ा दिखाओ.

दीपू ने बैग से निकालकर मुझे एक सफेद कपड़ा दिया.

“हाँ ये तो वास्तव में बहुत मुलायम और हल्का कपड़ा है.”

गोपाल टेलर – मैडम , इसको पहनकर आपको बहुत अच्छा लगेगा, ये मेरी गारंटी है.

मैंने वो कपड़ा वापस दीपू को दे दिया और उसने बैग में रख दिया. अचानक मेरी नजर दीपू की हथेलियों पर पड़ी , मैं कन्फ्यूज हो गयी , चेहरे से तो बहुत मासूम लग रहा है पर हाथ तो बड़े लग रहे हैं.

गोपाल टेलर – मैडम, प्लीज यहाँ पर लाइट के पास आ जाइए.

मैं दो तीन कदम चलकर लाइट के पास खड़ी हो गयी. मैं सोचने लगी ये छोटा लड़का कितने साल का होगा. मैंने उससे बात करने की कोशिश की.

“दीपू, सिलाई के अलावा और क्या करते हो ?”

दीपू – मैं शाम को एक किताबों की दुकान में भी काम करता हूँ. 

“अच्छा. तुम्हारे कितने भाई बहन हैं ?”

असल में बात ये थी की मुझे मालूम था की नाप देते समय टेलर के सामने थोड़ा एक्सपोज करना पड़ सकता था और मैं दीपू को छोटा लड़का समझकर नजरअंदाज कर सकती थी लेकिन अब मुझे उसकी उमर पर शक़ हो रहा था.

दीपू – मेरी दो बड़ी बहनें हैं और दोनों की शादी हो चुकी है.

“अच्छा तो तुम अकेले अपने मां बाप की देखभाल करते हो.”

दीपू – हाँ मैडम, लेकिन कुछ महीने बाद मेरी घरवाली भी उनकी देखभाल करेगी.”

ये सुनकर मैं हक्की बक्की रह गयी.

“क्या ? तुम्हारी घरवाली ?”

गोपाल टेलर – मैडम, गांव में जल्दी शादी हो जाती है.

“लेकिन इसकी उमर कितनी है ?”

गोपाल टेलर – ये 18 बरस का है.

हे भगवान , जिसे मैं मासूम लड़का समझ रही थी वो तो 18 बरस का है और अब इसकी शादी भी होने वाली है. गोपालजी ने मेरे चेहरे पर आश्चर्य के भावों को देखा.

गोपाल टेलर – मैडम , ये छोटा लगता है क्यूंकी अभी इसकी दाढ़ी मूँछ नहीं आई हैं.

टेलर ज़ोर से हंसा और दीपू भी शरमाते हुए मुस्कुराने लगा. लेकिन मुझे बिल्कुल हँसी नहीं आई और ये जानकर की दीपू बालिग है अब मुझे असहज महसूस हो रहा था. इसकी तो शादी भी होने वाली है, बुड्ढे टेलर के लिए भले ही वो छोटा लड़का हो पर मेरे लिए नहीं. समस्या ये थी की अब मैं गोपालजी से कह भी नहीं सकती थी की दीपू के सामने नाप देने में मुझे असहज महसूस हो रहा है इसलिए चुप ही रहना पड़ा.

गोपालजी टेप लेकर मेरे पास आया. मुझे ध्यान आया की पिछली बार मेरे ब्लाउज की नाप लेते समय इसके पास टेप नहीं था और ये मेरे लिए बहुत शर्मिंदगी वाली बात थी क्यूंकी गोपालजी ने अपनी अंगुलियों से मेरे सीने की नाप ली थी और ब्लाउज के बाहर से मेरी बड़ी चूचियों पर अपनी हथेली रख दी थी.

गोपाल टेलर – मैडम , मेरे हाथ में टेप देखकर आपको आश्चर्य हो रहा होगा. मैंने आपको बताया था की नाप लेने के लिए मैं अपनी अंगुलियों पर भरोसा करता हूँ पर ये ख़ास ड्रेस है और मुझे गुरुजी के निर्देश मानने पड़ेंगे.

मैं मुस्कुरायी और टेप देखकर वास्तव में मुझे खुशी हुई.

गोपाल टेलर – मैडम आप अपना पल्लू हटा दें तो …

मुझे मालूम था ऐसा ही होगा लेकिन पहले मैं दीपू को छोटा समझ रही थी तो मुझे ज़्यादा संकोच नहीं था पर अब बात दूसरी थी. मैंने संकोच से पल्लू अपनी छाती से हटाया और बाएं हाथ में पकड़ लिया. दीपू की नजरें भी मुझ पर होंगी सोचकर मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था. पल्लू हटने से मेरी गोरी चूचियों का ऊपरी हिस्सा ब्लाउज के कट से दिखने लगा था. मैंने देखा दीपू की नजरें मेरी रसीली चूचियों पर ही हैं और जब हमारी नजरें मिली तो वो जल्दी से अपनी कॉपी देखने लगा.

गोपालजी टेप लेकर मेरे बहुत नजदीक़ खड़ा था और अब एक मर्द मेरे बदन को छुएगा सोचकर मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गयी थीं. वैसे तो उस टेलर से मुझे ज़्यादा शरम नहीं थी क्यूंकी वो बुड्ढा भी था और उसने पहले भी मेरा बदन देखा था. लेकिन एक 18 बरस का जवान लड़का भी मेरी जवानी पर नजर गड़ाए है ये देखकर मेरी पैंटी में खुजली होने लगी थी.

जब मैं अपने लोकल टेलर के पास नाप देने जाती थी तब भी मैं थोड़ी असहज रहती थी क्यूंकी वो गोपालजी जैसा बुड्ढा नहीं था बल्कि 38- 40 का होगा. नाप लेते समय वो अपनी अंगुलियों से मेरे ब्लाउज के बाहर से चूचियों को छूता जरूर था. और ब्लाउज की फिटिंग देखने के बहाने चूचियों को दबा भी देता था. मुझे मालूम था की टेलर को तो नाप देनी ही पड़ेगी और वो सभी के साथ ऐसा ही करता होगा लेकिन फिर भी मैं असहज महसूस करती थी और हर बार नाप देने के बाद मेरी पैंटी गीली जरूर हो जाती थी.

गोपाल टेलर – मैडम , ये चोली बिना बाहों की है इसलिए बाँहों की नाप नहीं लेनी पड़ेगी.

“शुक्र है.”

हम दोनों मुस्कुराए और फिर मैं शरमा गयी क्यूंकी टेलर ने एक नजर मेरी बिना पल्लू की गोल चूचियों पर डाली , जो की मेरे सांस लेने के साथ ऊपर नीचे उठ रही थीं. गोपालजी ने मेरी गर्दन का नाप लिया और दीपू से कुछ नोट करने को कहा. मेरी गर्दन पर गोपालजी की ठंडी अंगुलियों के स्पर्श से मेरे बदन में कंपकपी सी हुई.

गोपाल टेलर – चोली स्ट्रैप ½ इंच.

कंधों पर स्ट्रैप की चौड़ाई सुनकर मुझे टोकना पड़ा.

“गोपालजी , कंधों पर ½ इंच तो कुछ भी नहीं है , बाँहें भी खुली हैं.”

गोपाल टेलर – लेकिन मैडम, आपको चौड़ी पट्टी क्यूँ चाहिए ? आपकी ब्रा भी तो स्ट्रैपलेस है.

मैं भूल गयी थी की इस चोली के अंदर स्ट्रैपलेस ब्रा है. इसलिए गोपालजी की बात में दम था.

“लेकिन गोपालजी इतने पतले स्ट्रैप से तो मेरे कंधे पूरे नंगे दिखेंगे.”

गोपाल टेलर – मैडम, अब डिजाइन ही ऐसा है तो….

“प्लीज गोपालजी. ये तो बहुत खुला खुला दिखेगा.”

गोपाल टेलर – नहीं मैडम, ज़्यादा खुला नहीं दिखेगा. आपके कंधे खुले रहेंगे लेकिन आपकी छाती ढकी रहेगी.

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