चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

Chudai Ka Aashram Part 2 – Hindi Sex Kahani

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

गुरुजी – ठीक है. सब कुछ नॉर्मल ही लग रहा है. और तुम्हें पीरियड्स भी रेग्युलर आते हैं. अब ये बताओ रश्मि की एक सेशन में तुम कितनी बार संभोग करती हो ? एक बार या एक से ज़्यादा ?

एक मर्द के सामने ऐसे प्रश्नों के जवाब देते हुए मैं पहले से ही नर्वस हो रही थी , अब तो मेरा पूरा चेहरा शरम से लाल हो चुका था.

“शादी के बाद कुछ महीनों तक तो दो बार , पर अब एक ही बार.”

गुरुजी – रश्मि , शादी के शुरुवाती दिनों में जब तुम दो बार संभोग करती थी तो तुम्हारी योनि से दो बार स्खलन होता था ? और क्या दोनों बार बराबर स्खलन होता था या कम ज़्यादा ?

“जी , दो बार होता था. पर कभी कभी ऐसा भी होता था की मेरे पति दो बार स्खलित हो जाते थे पर मैं एक ही बार होती थी.”

गुरुजी – तुम्हारा स्खलन ज़्यादा मात्रा में निकलता है या कम ?

“नही. ज़्यादा नही . मेरा मतलब…….”

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

ऐसी निजी बातों को बोलते वक़्त मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी , मुझे बोलने को सही शब्द ही नही मिल रहे थे. क्या बोलूं ? कैसे बोलूं ?

गुरुजी – मुझे बताओ रश्मि. अपने दिमाग़ को खुला रखो और खुलकर बोलो.

“जी वो …..मुझे आजकल ऐसा लगता है की जब मैं गरम हो जाती हूँ तो संभोग खत्म होने के बाद भी कुछ गर्मी बाहर निकल नही पाती , अंदर ही रह जाती है.”

गुरुजी – ठीक है रश्मि. जो जानकारी मैं चाहता था वो मुझे मिल गयी है.

फिर गुरुजी आँख बंद करके कुछ पलों के लिए ध्यानमग्न हो गये.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज. देखो रश्मि, तुम गर्भवती तभी होओगी , जब संभोग के दौरान तुम्हारा ज़्यादा स्खलन होगा. तुमसे बात करके मुझे ऐसा लग रहा है की तुम उत्तेजना की चरम सीमा तक नही पहुँच पा रही हो , इसलिए स्खलन कम हो रहा है और वो गर्मी तुम्हारे अंदर ही रह जा रही है जिससे तुम्हें एक अपूर्णता का एहसास होता है

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

और पूर्ण संतुष्टि नही मिल पाती. बहुत सारी विवाहित जोडियों में ये समस्या पायी जाती है और इसमे चिंता की कोई बात नही है. पर अगर कोई औरत पूरी तरह से उत्तेजित हो रही है लेकिन फिर भी उसकी योनि से पर्याप्त स्खलन नही हो रहा है तो फिर ये चिंता की बात है.

फिर गुरुजी थोड़ा रुके , जैसे मेरे किसी प्रश्न का इंतज़ार कर रहे हों.

“अगर स्खलन पर्याप्त नही हो रहा है तो फिर क्या होता है , गुरुजी ?”

गुरुजी – देखो रश्मि, अगर स्खलन कम होता है तो फिर औरत के अंडाणु भी कम मात्रा में पैदा होते हैं और इससे गर्भवती होने के चान्स बहुत कम हो जाते हैं. लेकिन तुम चिंता मत करो क्यूंकी योनि से स्खलन को बढ़ाने के लिए कुछ तरीके हैं और जड़ी बूटियों से भी इसको बदाया जा सकता है . लेकिन इसके लिए तुम्हें जैसा मैं बताऊँ , बिना किसी संकोच या शंका के वैसा ही करना होगा.

“गुरुजी, मैं गर्भवती होने के लिए कुछ भी करूँगी. मैं आपको बता नही सकती पिछले कुछ महीनो से मैं कितने डिप्रेशन में हूँ की सभी औरतें तो माँ बनती हैं , मैं ही क्यूँ नही बन पा रही. जैसी आप आज्ञा देंगे मैं वैसा ही करूँगी.”

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गुरुजी – ठीक है रश्मि. लेकिन ये इतना आसान भी नही है , समझ लो.

सबसे पहले मुझे ये जानना होगा की तुम्हारी योनि से स्खलन की मात्रा क्या है. क्या तुम हस्तमैथुन करती हो ?

अब तो मेरा गला सूखने लगा था. 28 बरस की अपनी जिंदगी में मुझे कभी भी ऐसे प्रश्नों का जवाब नही देना पड़ा था. शरम से उस वक़्त मेरा क्या हाल था मैं बता नही सकती .

“हाँ गुरुजी , पर कभी कभार ही करती हूँ और स्खलन भी बहुत कम ही होता है.”

मैं हस्तमैथुन की आदी नही थी . मेरे साथ जो भी हुआ अपनेआप हुआ. मतलब शादी के बाद तो ज़रूरत कम ही पड़ती है . शादी से पहले कभी कामुक सपने आते थे तो चूत गीली हो जाती थी . या फिर कभी बस, ट्रेन में किसी आदमी ने बदन से छेड़छाड़ की हो तो तब या फिर घर आकर बेड में लेटती थी तब उस घटना के बारे में सोचकर चूत गीली हो जाती थी. पर ये सब नेचुरल था.

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लेकिन अब गुरुजी की बातें सुनकर मैं सोच रही थी की योनि से पर्याप्त स्खलन कैसे होगा ? खाली बेड में लेटकर कामुक बातें सोचकर तो नही हो पाएगा. और मेरे पति भी यहाँ नही हैं , तो मैं पूर्ण रूप से उत्तेजित होऊँगी कैसे ?

गुरुजी – रश्मि , मुझे तुम्हारी योनि से स्खलन की मात्रा जाननी पड़ेगी और उसके आधार पर आगे का उपचार होगा.

“लेकिन गुरुजी , मेरे पति के बिना कैसे होगा ? किसी दूसरे मर्द के साथ तो मैं नही कर सकती ना ….”

गुरुजी – रश्मि , तुम क्या सोच रही हो , मुझे नही मालूम. क्या तुम ये सोचती हो की मैं तुम्हें किसी दूसरे मर्द के साथ सोने के लिए कहूँगा ? मैं जानता हूँ की तुम एक हाउसवाइफ हो और समाज के बंधनों से बँधी हुई हो.

गुरुजी की बात से मैंने राहत की साँस ली पर अभी भी मेरी समझ में नही आया की बिना किसी मर्द के साथ संभोग किए मैं पूर्ण रूप से उत्तेजित कैसे होऊँगी ?

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गुरुजी – रश्मि, उपचार का सबसे पहला भाग है ‘माइंड कंट्रोल’. तुम्हें अपने दिमाग़ से सब कुछ हटा देना है और सिर्फ़ अपने शरीर से नेचुरली रेस्पॉन्ड करना है. मतलब इस बात पर ध्यान मत दो की तुम कहाँ पर हो , किसके साथ हो , बस जैसी भी सिचुयेशन मैं तुम्हें दूँगा तुम उसको नॉर्मल तरीके से लो. अपने दिमाग़ पर कंट्रोल करना है और नेचुरली रियेक्ट करना है. ये उपचार का हिस्सा है , चिंता करने की कोई ज़रूरत नही . जय लिंगा महाराज.

मैंने हाँ में सर हिला दिया पर मुझे ज़्यादा कुछ समझ नही आया की करना क्या है.

गुरुजी – देखो, मैं तुम्हें समझाता हूँ. सबसे पहले जड़ी बूटी से बनी दवाइयाँ. ये दवाई तुम्हें दिन में दो बार लेनी है. एक सुबह सवेरे पेशाब करने के बाद और फिर रात में सोते समय ले लेना. कितनी मात्रा में लेना है वो बॉटल में लिखा है. ठीक है ?

मैंने दवाई की बॉटल लेकर सर हिला दिया.

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गुरुजी – ये दूसरी दवाई है. जब भी तुम आश्रम से बाहर जाओगी तो इसे खाकर ही जाना. और ये तेल है. जब तुम दोपहर में नहाओगी तो नहाने से पहले इस तेल से पूरे बदन की मालिश करना. और नहाने के लिए सिर्फ़ जड़ी बूटी वाले पानी से ही नहाना , जिससे दीक्षा से पहले नहाया था. मेरे ख्यालसे इस तेल को तुम कल से लगाना , आज रहने दो.

“ठीक है गुरुजी. जड़ी बूटी से नहाकर कल मुझे बहुत तरोताज़गी महसूस हुई थी.”

गुरुजी – हाँ, जड़ी बूटी से स्नान से बदन में ताज़गी महसूस होती है और ऊर्जा बढ़ जाती है. और हाँ ये जो तेल है इसको अपनी चूचियों पर मत लगाना. उसके लिए ये दूसरा तेल है. याद रखना , चूचियों की मालिश के लिए ये हरे रंग का तेल है. ठीक है ?

मैंने एक आज्ञाकारी छात्र की तरह से सर हिला दिया. लेकिन एक मर्द के मुँह से चूचियों की मालिश , ऐसे शब्द सुनकर ब्रा के अंदर मेरे निप्पल तन कर कड़क हो गये.

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गुरुजी – रश्मि, तेल से मालिश के बारे में राजेश तुम्हें बता देगा. शायद तुम्हारी उससे बातचीत नही हुई है. वो बहुत व्यस्त रहता है क्यूंकी आश्रम में खाना वही बनाता है.

“हाँ गुरुजी. मैंने कल उसे देखा था , जब आपने परिचय करवाया था पर बातचीत नही हुई.”

गुरुजी – अच्छा, दवाइयाँ तो तुम्हें समझा दी. अब बात करते हैं ‘माइंड कंट्रोल’ की. ये देखो, ये ‘सोकिंग पैड’ है , जब भी तुम आश्रम से बाहर जाओगी तो इसे पहन लेना. अगले दो दिन तक तुम्हें ये करना है.

गुरुजी ने मुझे एक छोटा सफेद चौकोर कॉटन पैड दिया. मेरी समझ में नही आया इसे पहनना कैसे है ?

“गुरुजी , मैं इसे पहनूँगी कैसे ?”

शायद मेरी जिंदगी का वो सबसे बेवक़ूफी भरा प्रश्न था , जो मैंने पूछा.

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गुरुजी – रश्मि , मैंने तुम्हें बताया था की जब तुम उत्तेजित होती हो तो तुम्हारी योनि से स्खलन कितना होता है , ये मुझे जानना है. ये खास किस्म का सोकिंग पैड उसी के लिए है. तुम अपनी पैंटी के अंदर अपनी योनि के छेद के ऊपर इसे लगा लेना.

ये सुनते ही मेरा चेहरा शरम से सुर्ख लाल हो गया. मैं इतनी शरमा गयी की गुरुजी से आँख नही मिला पा रही थी. गुरुजी के मुँह से योनि का छेद सुनकर मेरे कान गरम हो गये. उस बिना हुक लगे हुए टाइट ब्लाउज में मेरी चूचियाँ तनकर कड़क हो गयीं. क्या क्या सुनने को मिल रहा था , एक तो वैसे ही मैं शर्मीली थी.

गुरुजी – रश्मि , इस पैड को अपनी पैंटी के अंदर ऐसे रखना की ये खिसके नही. एक एक बूँद इसमे जानी चाहिए , तब सही मात्रा पता चलेगी. सही से मैनेज कर लोगी ना ?

मैंने फर्श की तरफ देखते हुए सर हिला दिया. मैं चाह रही थी की कैसे भी ये डिस्कशन खत्म हो. मुझे लग रहा था अगर ये टॉपिक और लंबा चला तो गुरुजी मुझसे साड़ी कमर तक ऊपर उठाने को ना कह दें. और फिर मेरी पैंटी में हाथ डालकर पैड कहाँ पर लगाना है बता देंगे. हे भगवान !

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“ठीक है गुरुजी. मैं समझ गयी.”

गुरुजी – ठीक है रश्मि. मैं चाहता हूँ की आज और कल के लिए तुम्हें कम से कम दो बार ओर्गास्म आए. तभी स्खलन की सही मात्रा पता चलेगी. याद रखना , तुम्हें कोई सिचुयेशन बहुत अजीब या अभद्र या अपमानजनक लग सकती है , पर ये सब उपचार का ही हिस्सा होगा. इसलिए तुम्हें नॉर्मल होकर रियेक्ट करना होगा और जो हो रहा है उसे होने देना. जय लिंगा महाराज.

“जय लिंगा महाराज.”

गुरुजी – रश्मि , मैं चाहता हूँ की तुम आश्रम के दैनिक कार्यों में हिस्सा लो. तुम किचन में मदद कर सकती हो . और अगर चाहो तो दोपहर बाद कुछ और गतिविधियों जैसे योगा , स्विमिंग में भाग ले सकती हो.

“ठीक है गुरुजी. जो मुझे सही लगेगा मैं उस काम में ज़रूर मदद करूँगी.”

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गुरुजी – अब तुम जाओ रश्मि. मेरे आदेश तुम तक मेरे शिष्य पहुँचा देंगे , क्या करना है, कहाँ जाना है वगैरह. लिंगा महाराज में आस्था रखना , सब ठीक होगा.

“धन्यवाद गुरुजी. जय लिंगा महाराज.”

मैं वहाँ से अपने कमरे में चली आई. गुरुजी की ‘माइंड कंट्रोल’ वाली बात से मुझे टेंशन हो रही थी. गुरुजी ने कहा था की जो हो रहा हो , उसे होने देना , पर मुझसे कैसे होगा ये सब. बिना पति के दिन में दो बार ओर्गास्म कैसे आएँगे ?

शादी के शुरुवाती दिनों में मुझे बहुत तेज ओर्गास्म आते थे पर धीरे धीरे पति के साथ सेक्स भी एक रुटीन जैसा हो गया था.

फिर मैंने अपने मन को दिलासा दी की और कोई चारा भी तो नही है क्यूंकी गुरुजी को ये जानकारी लेनी है की मेरी योनि से स्खलन नॉर्मल है की नही.

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गुरूजी के कहे अनुसार मैं किचन में गयी और सब्जी काटने में राजेश की मदद की.

उसके बाद कमरे में वापस आकर मैंने जड़ी बूटी वाले पानी से स्नान (हर्बल बाथ) किया. हर्बल बाथ से मैंने बहुत तरोताज़ा महसूस किया. नहाने के बाद मैं थोड़ी देर तक बाथरूम में उस बड़े से मिरर में अपने नंगे बदन को निहारती रही. उस बड़े से मिरर के आगे नहाने से , मुझे हर समय अपना नंगा बदन दिखता था, मुझे लगने लगा था की इससे मुझमे थोड़ी बेशर्मी आ गयी है.

कुछ देर बाद 10 बजे परिमल ने मेरा दरवाजा खटखटाया.

परिमल – मैडम , तैयार हो जाओ. गुरुजी ने आपको टेलर के पास ले जाने को कहा है, वो ब्लाउज आपको फिट नही आ रहा है ना इसलिए.

“लेकिन मैंने तो सुबह गुरुजी को इस बारे में कुछ नही बताया था. उन्हे कैसे पता चला ?”

परिमल – गुरुजी को मंजू ने बता दिया था.

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मैंने मन ही मन मंजू का शुक्रिया अदा किया. उसने मुझे गुरुजी के सामने ब्लाउज की बात करने से बचा लिया. और गुरुजी जिस तरह से बिना घुमाए फिराए सीधे प्रश्न करते हैं उससे तो ये सब मेरे लिए एक और शर्मिंदगी भरा अनुभव होता.

ठिगने परिमल की हरकतें हमेशा मेरा मनोरंजन करती थी. मैंने देखा उसकी नज़रें मेरे बदन के निचले हिस्से में ज़्यादा घूम रही हैं. ये देखकर मैंने उससे बातें करते हुए इस बात का ध्यान रखा की उसकी तरफ मेरी पीठ ना हो. कल रात टॉवेल उठाने के चक्कर में ना जाने उसने क्या देख लिया था.

“टेलर आश्रम में ही रहता है ?”

परिमल – नही मैडम , टेलर यहाँ नही रहता. लेकिन यहाँ से ज़्यादा दूर नही है. उसकी दुकान में जाने में 5-10 मिनट लगते हैं. मैडम आपके साथ मैं नही जाऊँगा. आश्रम से बाहर के काम विकास करता है , वो आपको टेलर के पास ले जाएगा.

“ठीक है परिमल. विकास को भेज देना.”

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परिमल – और हाँ मैडम, आश्रम से बाहर जाते समय दवाई लेना मत भूलना और पैड भी पहन लेना.

ऐसा बोलते समय परिमल के चेहरे पर दुष्टता वाली मुस्कान थी . फिर वो बाहर चला गया.

मैं अवाक रह गयी . ये ठिगना भी जानता है की मुझे पैंटी के अंदर पैड पहनना है.

हे भगवान ! इस आश्रम में हर किसी को मेरे बारे में एक एक चीज़ मालूम है.

मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया और गुरुजी की बताई हुई दवाई ली , जो मुझे आश्रम से बाहर जाते समय खानी थी. फिर मैं पैड पहनने के लिए बाथरूम चली गयी. बाथरूम में मैंने साड़ी और पेटीकोट उतार दी. पैंटी को थोड़ा नीचे उतारकर मैंने अपनी चूत के छेद के ऊपर पैड रखा और पैंटी को ऊपर खींच लिया.

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उस पैड के मेरी चूत के होठों को छूने से मुझे सनसनी सी हुई. लेकिन फिर मैंने अपना ध्यान उससे हटाकर साड़ी और पेटीकोट पहन ली. टाइट ब्लाउज के ऊपर के दो हुक खुले हुए थे और वो मेरी चूचियों पर कसा हुआ था लेकिन राहत की बात ये थी की टेलर के पास जाने से ये समस्या तो सुलझ जाएगी.

थोड़ी देर बाद विकास आ गया. विकास आकर्षक व्यक्तित्व और गठीले बदन वाला था. उसने बताया की वो आश्रम में योगा सिखाता है और खेल कूद जैसे खो खो , कबड्डी , स्विमिंग भी वही सिखाता है. कोई भी औरत उसकी शारीरिक बनावट को पसंद करती और सच बताऊँ तो मुझे भी उसकी फिज़ीक अच्छी लगी थी.

हम आश्रम से बाहर आ गये और उस बड़े से तालब के किनारे बने रास्ते से होते हुए जाने लगे. वहाँ मुझे ज़्यादा मकान नही दिखे . कुछ ही मकान थे और वो भी दूर दूर बिखरे हुए.

विकास तेज चल रहा था तो मुझे भी उसके साथ तेज चलना पड़ रहा था. तेज चलने से मेरी पैंटी नितंबों की दरार की तरफ सिकुड़ने लगी. मैं जानती थी की अगर मैं ऐसे ही तेज चलती रही तो थोड़ी देर में ही पैंटी पूरी तरह से सिकुड़कर नितंबों के बीच में आ जाएगी. ये मेरे लिए कोई नयी समस्या नही थी , ऐसा अक्सर मेरे साथ होता था.

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पैंटी के सामने लगा हुआ पैड तो अपनी जगह फिट था, पर पीछे से पैंटी सिकुड़ती जा रही थी. मुझे अनकंफर्टेबल महसूस होने लगा तो मैंने अपनी चाल धीमी कर दी.

मुझे धीमे चलते हुए देखकर विकास भी धीमे चलने लगा. वो तो अच्छा हुआ की विकास ने मुझसे पूछा नही की मेरी चाल धीमी क्यूँ हो गयी है.

जल्दी ही हम टेलर की दुकान में पहुँच गये. गांव का एक कच्चा सा मकान था या फिर झोपड़ा भी कह सकते हैं.

विकास ने दरवाज़े पर खटखटाया तो एक आदमी बाहर आया. वो लगभग 55 – 60 बरस का होगा , दिखने में कमज़ोर लग रहा था. उसने मोटा चश्मा लगाया हुआ था और एक लुंगी पहने हुआ था.

विकास – गोपालजी , ये मैडम को ब्लाउज फिट नही आ रहा है. आप देख लो क्या प्राब्लम है.

गोपालजी – अभी तो मैं नाप ले रहा हूँ. कुछ समय लगेगा.

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विकास – ठीक है गोपालजी.

टेलर ने मुझे देखा. उसकी नज़र कमज़ोर लग रही थी क्यूंकी उस मोटे चश्मे से वो मुझे कुछ पल तक देखता रहा. तभी एक और आदमी बाहर आया , वो भी दुबला पतला था. लगभग 40 बरस का होगा. वो भी लुंगी पहने हुए था.

गोपालजी – मंगल , मैडम को अंदर ले जाओ. मैं बाथरूम होकर अभी आता हूँ.

विकास ने धीरे से मुझे बताया की मंगल गोपालजी का भाई है. और ये दोनों एक ब्लाउज कुछ ही घंटे में सिल देते हैं. मैं इस बात से इंप्रेस हुई क्यूंकी हमारे शहर का लेडीज टेलर तो ब्लाउज सिलने में एक हफ़्ता लगाता था.

विकास – मैडम , मेरे ख्याल से गोपालजी से नया ब्लाउज सिलवा लो. मैं पास में गांव जा रहा हूँ. एक घंटे बाद आपको लेने आऊँगा.

फिर विकास चला गया.

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मंगल – मेरे साथ आओ मैडम.

मंगल की आवाज़ बहुत रूखी थी और दिखने में भी वो असभ्य लगता था. सभी मर्दों की तरह वो भी मेरी चूचियों को घूर रहा था. वो मुझे अंदर एक छोटे से कमरे में ले गया. दाहिनी तरफ एक सिलाई मशीन रखी थी और बायीं तरफ एक साड़ी लंबी करके लटका रखी थी जैसे परदा बना हो. कमरे में कपड़ों का ढेर लगा हुआ था. कमरे में कोई खिड़की ना होने से थोड़ी घुटन थी. एक हल्की रोशनी वाला बल्ब लगा हुआ था और एक टेबल फैन भी था.

मैं बाहर की तेज रोशनी से अंदर आई थी तो मेरी आँखों को एडजस्ट होने में थोड़ा टाइम लगा. फिर मैंने देखा एक कोने में एक लड़की खड़ी है.

मंगल – मैडम सॉरी , यहाँ ज़्यादा जगह नही है. गोपालजी इस लड़की की नाप लेने के बाद आपका काम करेंगे. तब तक आप स्टूल में बैठ जाओ.

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मंगल ने स्टूल मेरी तरफ खिसका दिया लेकिन स्टूल को उसने पकड़े रखा. अगर मैं स्टूल में बैठूं तो मेरे नितंबों का कुछ हिस्सा उसकी अंगुलियों पर लगेगा. मुझे गुस्सा आ गया.

“अगर तुम ऐसे पकड़े रखोगे तो मैं बैठूँगी कैसे ?”

मंगल – मैडम आप गुस्सा मत होओ. मुझे भरोसा नही है की ये स्टूल आपका वजन सहन करेगा या नही. कल ही एक आदमी इसमे बैठते वक़्त गिर गया था , इसलिए मैंने पकड़ रखा है.

स्टूल की हालत देखकर मुझे हँसी आ गयी.

“ये स्टूल भी सेहत में तुम्हारे जैसा ही है.”

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मेरी बात पर वो लड़की हंसने लगी. मंगल भी अपने दाँत दिखाते हुए हंसने लगा पर उसने अपने हाथ नही हटाए. अब मुझे स्टूल पर ऐसे ही बैठना पड़ा. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करी की स्टूल के बीच में बैठूं फिर भी उसकी अंगुलियों का कुछ हिस्सा मेरे नितंबों के नीचे दब गया.

मंगल को कैसा महसूस हुआ ये तो मैं नही जानती लेकिन साड़ी के बाहर से भी मेरे गोल नितंबों के स्पर्श का आनंद तो उसे आया होगा. उसको जो भी महसूस हुआ हो पर अपने नितंबों के नीचे उसकी अंगुलियों के स्पर्श से मेरी तो धड़कने बढ़ गयी. मैंने फ़ौरन मंगल से हाथ हटाने को कहा और फिर ठीक से बैठ गयी.

अब मैंने उस लड़की को ध्यान से देखा, वो घाघरा चोली पहने हुई थी. उसकी पतली सी चोली से उसके निप्पल की शेप दिख रही थी , जाहिर था की वो ब्रा नही पहनी थी. मैंने मंगल की तरफ देखा की कहीं वो लड़की की छाती को तो नही देख रहा है. पर पाया की वो बदमाश तो मेरी छाती को घूर रहा था.

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मेरा पल्लू थोड़ा खिसक गया था और ब्लाउज के ऊपरी दो हुक खुले होने से मंगल को मेरी चूचियों का कुछ हिस्सा दिख रहा था. मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और मंगल जिस फ्री शो के मज़े ले रहा था वो बंद हो गया.

तब तक गोपालजी भी वापस आ गये.

गोपालजी – मैडम , आपको इंतज़ार करना पड़ रहा है. मैं बस 5 मिनट में आपके पास आता हूँ.

अब जो हुआ उससे तो मैं शॉक्ड रह गयी और इससे पहले किसी भी टेलर की दुकान में मैंने ऐसा अपमानजनक दृश्य नही देखा था.

गोपालजी उस लड़की के पास गये जो अपनी चोली सिलवाने आई थी. गोपालजी ने सारे नाप अपने हाथ से लिए , मेरा मतलब है अपनी उंगलियों को फैलाकर. वहाँ कोई नापने का टेप नही था. मैं तो अवाक रह गयी.

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गोपालजी ने उस लड़की की बाँहें, कंधे, उसकी पीठ, उसकी कांख और उसकी छाती , सबको अपनी उंगलियों से नापा. मंगल ने एक नापने वाली रस्सी से वेरिफाइ किया और एक कॉपी में लिख लिया.

गोपालजी ने नापते वक़्त उस लड़की की छोटी चूचियों पर कई बार हाथ लगाया पर वो लड़की चुपचाप खड़ी रही , जैसे ये कोई आम बात हो.

फिर गोपालजी ने अपने अंगूठे से उस लड़की के निप्पल को दबाया और अपनी बीच वाली उंगली उसकी चूची की जड़ में रखी और इस तरह से उसकी चोली के कप साइज़ की नाप ली , ये सीन देखकर मुझे लगा जैसे मेरी सांस ही रुक गयी. क्या बेहूदगी है ! ऐसे किसी लड़की के बदन पर आप कैसे हाथ फिरा सकते हो ?

जब सब नाप ले ली तो वो लड़की चली गयी.

अब मेरे दिमाग़ में घूम रहा प्रश्न मुझे पूछना ही था.

“गोपालजी , आप नाप लेने के लिए टेप क्यूँ नही यूज करते ?”

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गोपालजी – मैडम , टेप से ज़्यादा भरोसा मुझे अपने हाथों पर है. मैं 30-35 साल से सिलाई कर रहा हूँ और शायद ही कभी ऐसा हुआ हो की मेरे ग्राहक ने कोई शिकायत की हो.
मैडम , आप ये मत समझना की मैं सिर्फ़ गांव वालों के कपड़े सिलता हूँ. मेरे सिले हुए कपड़े शहर में भी जाते हैं. पिछले 10 साल से मैं अंडरगार्मेंट भी सिल रहा हूँ और वो भी शहर भेजे जाते हैं. उसमे भी कोई शिकायत नही आई है. और ये सब मेरे हाथ की नाप से ही बनते हैं.

गोपालजी मुझे कन्विंस करने लगे की हाथ से नाप लेने की उनकी स्टाइल सही है.

गोपालजी – मैडम, उस कपड़ों के ढेर को देखो. ये सब ब्रा , पैंटी शहर भेजी जानी हैं और शहर की दुकानों से आप जैसे लोग इन्हें अच्छी कीमत में ख़रीदेंगे. अगर मेरे नाप लेने का तरीका ग़लत होता , तो क्या मैं इतने लंबे समय से इस धंधे को चला पाता ?

मैंने कपड़ों के ढेर को देखा. वो सब अलग अलग रंग की ब्रा , पैंटीज थीं. कमरे के अंदर आते समय भी मैंने इस कपड़ों के ढेर को देखा था पर उस समय मैंने ठीक से ध्यान नहीं दिया था. मुझे मालूम नहीं था की ब्रा , पैंटी भी ब्लाउज के जैसे सिली जा सकती हैं.

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“गोपालजी मैं तो सोचती थी की अंडरगार्मेंट्स फैक्ट्रीज में मशीन से बनाए जाते हैं. “

गोपालजी – नहीं मैडम, सब मशीन से नहीं बनते हैं. कुछ हाथ से भी बनते हैं और ये अलग अलग नाप की ब्रा , पैंटीज मैंने विभिन्न औरतों की हाथ से नाप लेकर बनाए हैं.

मैडम, आप शहर से आई हो , इसलिए मुझे ऐसे नाप लेते देखकर शरम महसूस कर रही हो. लेकिन आप मेरा विश्वास करो , इस तरीके से ब्लाउज में ज़्यादा अच्छी फिटिंग आती है.

आपको समझाने के लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ. बाजार में कई तरह के टूथब्रश मिलते हैं. किसी का मुँह आगे से पतला होता है, किसी का बीच में चौड़ा होता है , होता है की नहीं ? लेकिन मैडम , एक बात सोचो की ये इतनी तरह के टूथब्रश होते क्यूँ हैं ? उसका कारण ये है की टूथब्रश उतना फ्लेक्सिबल नहीं होता है जितनी हमारी अँगुलियाँ. आप अपनी अंगुलियों को दाँतों में कैसे भी घुमा सकते हो ना , लेकिन टूथब्रश को नहीं.

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मैं गोपालजी की बातों को उत्सुकता से सुन रही थी. वो गांव का आदमी था लेकिन बड़ी अच्छी तरह से अपनी बात समझा रहा था.

गोपालजी – ठीक उसी तरह , औरत के बदन की नाप लेने के लिए टेप सबसे बढ़िया तरीका नहीं है. अंगुलियों और हाथ से ज़्यादा अच्छी तरह से और सही नाप ली जा सकती है. ये मेरा पिछले 30 साल का अनुभव है.

गोपालजी ने अपनी बातों से मुझे थोड़ा बहुत कन्विंस कर दिया था. शुरू में जितना अजीब मुझे लगा था अब उतना नहीं लग रहा था. मैं अब नाप लेने के उनके तरीके को लेकर ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहती थी , वैसे भी नाप लेने में 5 मिनट की ही तो बात थी.

गोपालजी – ठीक है मैडम. अब आप अपनी समस्या बताओ. ब्लाउज में आपको क्या परेशानी हो रही है ? ये ब्लाउज भी मेरा ही सिला हुआ है.

हमारी इस बातचीत के दौरान मंगल सिलाई मशीन में किसी कपड़े की सिलाई कर रहा था.

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“गोपालजी , आश्रम वालों ने इस ब्लाउज का साइज़ 34 बताया है पर ब्लाउज के कप छोटे हो रहे हैं.”

गोपालजी – मंगल , ट्राइ करने के लिए मैडम को 36 साइज़ का ब्लाउज दो.

मुझे हैरानी हुई की गोपालजी ने मेरे ब्लाउज को देखा भी नहीं की कैसे अनफिट है.

“लेकिन गोपालजी मैं तो 34 साइज़ पहनती हूँ.”

गोपालजी – मैडम , आपने बताया ना की ब्लाउज के कप फिट नहीं आ रहे. तो पहले मुझे उसे ठीक करने दीजिए , बाकी चीज़ें तो मशीन में 5 मिनट में सिली जा सकती हैं ना .

मंगल ने अलमारी में से एक लाल ब्लाउज निकाला. फिर ब्लाउज को फैलाकर उसने ब्लाउज के कप देखे और मेरी चूचियों को घूरा. फिर वो ब्लाउज मुझे दे दिया. उस लफंगे की नज़रें इतनी गंदी थीं की क्या बताऊँ. बिलकुल तमीज नहीं थी उसको. गंवार था पूरा.

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मंगल – मैडम , उस साड़ी के पीछे जाओ और ब्लाउज चेंज कर लो.

“लेकिन मैं यहाँ चेंज नहीं कर सकती …..”

पर्दे के लिए वो साड़ी तिरछी लटकायी हुई थी. उस साड़ी से सिर्फ़ मेरी छाती तक का भाग ढक पा रहा था. वो कमरा भी छोटा था , इसलिए मर्दों के सामने मैं कैसे ब्लाउज बदल सकती थी ?

गोपालजी – मैडम , आपने मेरा चश्मा देखा ? इतने मोटे चश्मे से मैं कुछ ही फीट की दूरी पर भी साफ नहीं देख सकता. मैडम , आप निसंकोच होकर कपड़े बदलो , मेरी आँखें बहुत कमजोर हैं.

“नहीं , नहीं , मैं ऐसा नहीं कह रही हूँ……”

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

गोपालजी – मंगल , हमारे लिए चाय लेकर आओ.

गोपालजी ने मंगल को चाय लेने बाहर भेजकर मुझे निरुत्तर कर दिया. अब मेरे पास कहने को कुछ नहीं था. मैं कोने में लगी हुई साड़ी के पीछे चली गयी. मैंने दीवार की तरफ मुँह कर लिया क्यूंकी साड़ी से ज़्यादा कुछ नहीं ढक रहा था और वो जगह भी काफ़ी छोटी थी तो गोपालजी मुझसे ज़्यादा दूर नहीं थे.

गोपालजी – मैडम , फर्श में धूल बहुत है , ये आस पास के खेतों से उड़कर अंदर आ जाती है. आप अपनी साड़ी का पल्लू नीचे मत गिराना नहीं तो साड़ी खराब हो जाएगी.

“ठीक है, गोपालजी.”

साड़ी का पल्लू मैं हाथ मे तो पकड़े नहीं रह सकती थी क्यूंकी ब्लाउज उतारने के लिए तो दोनों हाथ यूज करने पड़ते. तो मैंने पल्लू को कमर में खोस दिया और ब्लाउज उतारने लगी. पुराना ब्लाउज उतारने के बाद अब मैं सिर्फ़ ब्रा में थी.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

मंगल के बाहर जाने से मैंने राहत की सांस ली क्यूंकी उस गंवार के सामने तो मैं ब्लाउज नहीं बदल सकती थी. फिर मैंने नया ब्लाउज पहन लिया. 36 साइज़ का ब्लाउज मेरे लिए हर जगह कुछ ढीला हो रहा था, मेरे कप्स पर, कंधों पर और चूचियों की जड़ में .

अपना पल्लू ठीक करके मैं गोपालजी को ब्लाउज दिखाने उनके पास आ गयी. पल्लू तो मुझे उनके सामने हटाना ही पड़ता फिर भी मैंने ब्लाउज के ऊपर कर लिया.

गोपालजी – मैडम , मेरे ख्याल से आप साड़ी उतार कर रख दो. क्यूंकी एग्ज़ॅक्ट फिटिंग के लिए बार बार ब्लाउज बदलने पड़ेंगे तो साड़ी फर्श में गिरकर खराब हो सकती है.

“ठीक है गोपालजी.”

मंगल वहाँ पर नहीं था तो मैंने साड़ी उतार दी. गोपालजी ने एक कोने से साड़ी पकड़ ली ताकि वो फर्श पर ना गिरे. आश्चर्य की बात थी की एक अंजाने मर्द के सामने बिना साड़ी के भी मुझे अजीब नहीं लग रहा था, शायद गोपालजी की उमर और उनकी कमज़ोर नज़र की वजह से.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

अब ब्लाउज और पेटीकोट में मैं भी उसी हालत में थी जिसमे वो घाघरा चोली वाली लड़की थी , फरक सिर्फ़ इतना था की उसने अंडरगार्मेंट्स नहीं पहने हुए थे.

तभी मंगल चाय लेकर आ गया.

मंगल – मैडम, ये चाय लो , इसमे खास……

मुझे उस अवस्था में देखकर मंगल ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी और मुझे घूरने लगा. मेरी ब्लाउज में तनी हुई चूचियाँ और पेटीकोट में मांसल जांघें और सुडौल नितंब देखकर वो गँवार पलकें झपकाना भूल गया. मैंने उसकी तरफ ध्यान ना देना ही उचित समझा.

मंगल – …….. अदरक मिला है.

अब उसने अपना वाक्य पूरा किया.

मेरे रोक पाने से पहले ही उस गँवार ने चाय की ट्रे गंदे फर्श पर रख दी. फर्श ना सिर्फ़ धूल से भरा था बल्कि छोटे मोटे कीड़े मकोडे भी वहाँ थे.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

“गोपालजी , आप इस कमरे को साफ क्यूँ नहीं रखते ?”

गोपालजी – मैडम , माफ़ कीजिए कमरा वास्तव में गंदा है पर क्या करें. पहले मैंने इन कीड़े मकोड़ो को मारने की कोशिश की थी पर आस पास गांव के खेत होने की वजह से ये फिर से आ जाते हैं , अब मुझे इनकी आदत हो गयी है.

गोपालजी मुस्कुराए , पर मुझे तो उस कमरे में गंदगी और कीड़े मकोडे देखकर अच्छा नहीं लग रहा था.

गोपालजी – चाय लीजिए मैडम, फिर मैं ब्लाउज की फिटिंग देखूँगा.

गोपालजी ने झुककर ट्रे से चाय का कप उठाया और चाय पीने लगे. मंगल भी सिलाई मशीन के पास अपनी जगह में बैठकर चाय पी रहा था. मैं भी एक दो कदम चलकर ट्रे के पास गयी और झुककर चाय का कप उठाने लगी. जैसे ही मैं झुकी तो मुझे एहसास हुआ की उस ढीले ब्लाउज की वजह से मेरे गले और ब्लाउज के बीच बड़ा गैप हो गया है ,

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

जिससे ब्रा में क़ैद मेरी गोरी चूचियाँ दिख रही है. मैंने बाएं हाथ से ब्लाउज को गले में दबाया और दाएं हाथ से चाय का कप उठाया. खड़े होने के बाद मेरी नज़र मंगल पर पड़ी , वो कमीना मुझे ऐसा करते देख मुस्कुरा रहा था. गँवार कहीं का !

फिर मैं चाय पीने लगी.

गोपालजी – ठीक है मैडम , अब मैं आपका ब्लाउज देखता हूँ.

ऐसा कहकर गोपालजी मेरे पास आ गये. गोपालजी की लंबाई मेरे से थोड़ी ज़्यादा थी , इसलिए मेरे ढीले ब्लाउज में ऊपर से उनको चूचियों का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था.

गोपालजी – मैडम ये ब्लाउज तो आपको फिट नहीं आ रहा है. मैं देखता हूँ की कितना ढीला हो रहा है.

गोपालजी मेरे नज़दीक़ खड़े थे. उनकी पसीने की गंध मुझे आ रही थी. सबसे पहले उन्होने ब्लाउज की बाँहें देखी. मेरी बायीं बाँह में ब्लाउज के स्लीव के अंदर उन्होने एक उंगली डाली और देखा की कितना ढीला हो रहा है. ब्लाउज के कपड़े को छूते हुए वो मेरी बाँह पर धीरे से अपनी अंगुली को रगड़ रहे थे.

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गोपजी – मंगल , बाँहें एक अंगुली ढीली है. अब मैं पीठ पर चेक करता हूँ. मैडम आप पीछे घूम जाओ और मुँह मंगल की तरफ कर लो.

गोपालजी – मंगल , बाँहें एक अंगुल ढीली हैं. अब मैं पीठ पर चेक करता हूँ. मैडम आप पीछे घूम जाओ और मुँह मंगल की तरफ कर लो.

मंगल एक कॉपी में नोट कर रहा था. अब मैं पीछे को मुड़ी और मंगल की तरफ मुँह कर लिया. मंगल खुलेआम मेरी तनी हुई चूचियों को घूरने लगा. मुझे बहुत इरिटेशन हुई लेकिन क्या करती. उस छोटे से कमरे में गर्मी से मुझे पसीना आने लगा था. मैंने देखा ब्लाउज में कांख पर पसीने से गीले धब्बे लग गये हैं. फिर मैंने सोचा पीछे मुड़ने के बावजूद गोपालजी मेरी पीठ पर ब्लाउज क्यूँ नही चेक कर रहा है ?

गोपालजी – मैडम , बुरा मत मानो , लेकिन आपकी पैंटी इस ब्लाउज से भी ज़्यादा अनफिट है.

“क्या……. ?????”

गोपालजी – मैडम , प्लीज़ मेरी बात पर नाराज़ मत होइए. जब आप पीछे मुड़ी तो रोशनी आप पर ऐसे पड़ी की मुझे पेटीकोट के अंदर दिख गया. अगर आपको मेरी बात का विश्वास ना हो तो , मंगल से कहिए की वो इस तरफ आकर चेक कर ले.

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“नही नही , कुछ चेक करने की ज़रूरत नही. मुझे आपकी बात पर विश्वास है.”

मुझे यकीन था की टेलर ने मेरे पेटीकोट के अंदर पैंटी देख ली होगी. तभी मैंने जल्दी से मंगल को चेक करने को मना कर दिया. वरना वो गँवार भी मेरे पीछे जाकर उस नज़ारे का मज़ा लेता. शरम से मेरे हाथ अपने आप ही पीछे चले गये और मैंने अपनी हथेलियों से नितंबों को ढकने की कोशिश की.

“लेकिन आप को कैसे पता चला की …….….”

अच्छा ही हुआ की गोपालजी ने मेरी बात काट दी क्यूंकी मुझे समझ नही आ रहा था की कैसे बोलूँ . मेरी बात पूरी होने से पहले ही वो बीच में बोल पड़ा.

गोपालजी – मैडम , आप ऐसी पैंटी कहाँ से ख़रीदती हो , ये तो पीछे से एक डोरी के जैसे सिकुड गयी है.

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मैं थोड़ी देर चुप रही . फिर मैंने सोचा की इस बुड्ढे आदमी को अपनी पैंटी की समस्या बताने में कोई बुराई नही है. क्या पता ये मेरी इस समस्या का हल निकाल दे. तब मैंने सारी शरम छोड़कर गोपालजी को बताया की चलते समय पैंटी सिकुड़कर बीच में आ जाती है और मैंने कई अलग अलग ब्रांड की पैंटीज को ट्राइ किया पर सब में मुझे यही प्राब्लम है.

गोपालजी – मैडम , आपकी समस्या दूर हो गयी समझो. उस कपड़ों के ढेर को देखो. कम से कम 50 – 60 पैंटीज होंगी उस ढेर में. मेरी बनाई हुई कोई भी पैंटी ऐसे सिकुड़कर बीच में नही आती. मंगल , एक पैंटी लाओ , मैं मैडम को दिखाकर समझाता हूँ.

उन दोनो मर्दों के सामने अपनी पैंटी के बारे में बात करने से मुझे शरम आ रही थी तो मैंने बात बदल दी.

“गोपालजी , पहले ब्लाउज ठीक कर दीजिए ना. मैं ऐसे ही कब तक खड़ी रहूंगी ?”

गोपालजी – ठीक है मैडम . पहले आपका ब्लाउज ठीक कर देता हूँ.

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गोपालजी ने पीछे से गर्दन के नीचे मेरे ब्लाउज को अंगुली डालकर खींचा , कितना ढीला हो रहा है ये देखने के लिए. गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श मेरी पीठ पर हुआ , उसकी गरम साँसें मुझे अपनी गर्दन पर महसूस हुई , मेरे निप्पल ब्रा के अंदर तनकर कड़क हो गये.

मुझे थोड़ा अजीब लगा तो मैंने अपनी पोज़िशन थोड़ी शिफ्ट की. ऐसा करके मैं बुरा फँसी क्यूंकी इससे मेरे नितंब गोपालजी की लुंगी में तने हुए लंड से टकरा गये. गोपालजी ने भी मेरे सुडौल नितंबों की गोलाई को ज़रूर महसूस किया होगा.

उसका सख़्त लंड अपने नितंबों पर महसूस होते ही शरमाकर मैं जल्दी से थोड़ा आगे को हो गयी. मुझे आश्चर्य हुआ , हे भगवान ! इस उमर में भी गोपालजी का लंड इतना सख़्त महसूस हो रहा है. ये सोचकर मुझे मन ही मन हँसी आ गयी.

गोपालजी – मैडम , ब्लाउज पीठ पर भी बहुत ढीला है. मंगल पीठ में दो अंगुल ढीला है.

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फिर गोपालजी मेरे सामने आ गया और ब्लाउज को देखने लगा. उसके इतना नज़दीक़ होने से मेरी साँसें कुछ तेज हो गयी. सांसो के साथ ऊपर नीचे होती चूचियाँ गोपालजी को दिख रही होंगी. ब्लाउज की फिटिंग देखने के लिए वो मेरे ब्लाउज के बहुत नज़दीक़ अपना चेहरा लाया. मुझे अपनी चूचियों पर उसकी गरम साँसें महसूस हुई. लेकिन मैंने बुरा नही माना क्यूंकी उसकी नज़र बहुत कमज़ोर थी.

गोपालजी – मैडम, ब्लाउज आगे से भी बहुत ढीला है.

मेरे ब्लाउज को अंगुली डालकर खींचते हुए गोपालजी बोला .

गोपालजी ने मेरे ब्लाउज को खींचा तो मंगल की आँखे फैल गयी , वो कमीना कल्पना कर रहा होगा की काश गोपालजी की जगह मैं होता तो ऐसे ब्लाउज खींचकर अंदर का नज़ारा देख लेता.

गोपालजी – मैडम , अब आप अपने हाथ ऊपर कर लो. मैं नाप लेता हूँ.

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मैंने अपने हाथ ऊपर को उठाए तो मेरी चूचियाँ आगे को तन गयी. ब्लाउज में मेरी पसीने से भीगी हुई कांखें भी एक्सपोज़ हो गयी. उन दो मर्दों के लिए तो वो नज़ारा काफ़ी सेक्सी रहा होगा , जो की मंगल का चेहरा बता ही रहा था.

अब गोपालजी ने अपनी बड़ी अंगुली मेरी बायीं चूची की साइड में लगाई और अंगूठा मेरे निप्पल के ऊपर. उनके ऐसे नाप लेने से मेरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी. ये आदमी नाप लेने के नाम पर मेरी चूची को दबा रहा है और मैं कुछ नही कर सकती. उसके बाद गोपालजी ने निप्पल की जगह अंगुली रखी और हुक की जगह अंगूठा रखा.

गोपालजी – मंगल , कप वन फुल एच.

मंगल ने नोट किया और गोपालजी की फैली हुई अंगुलियों को एक डोरी से नापा.

गोपालजी – मैडम, अब मैं ये जानना चाहता हूँ की आपका ब्लाउज कितना टाइट रखना है, ठीक है ?

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मैंने हाँ में सर हिला दिया , पर मुझे मालूम नही था की ये बात वो कैसे पता करेगा.

गोपालजी – मैडम , आपको थोड़ा अजीब लगेगा , लेकिन मेरा तरीका यही है. आप ये समझ लो की मेरी हथेली आपका ब्लाउज कवर है. मैं आपकी छाती अपनी हथेली से धीरे से अंदर को दबाऊँगा और जहाँ पर आपको सबसे ठीक लगे वहाँ पर रोक देना, वहीं पर ब्लाउज के कप सबसे अच्छी तरह फिट आएँगे.

हे भगवान ! ये हरामी बुड्ढा क्या बोला. एक 28 साल की शादीशुदा औरत की चूचियों को खुलेआम दबाना चाहता है , और कहता है आपको थोड़ा अजीब लगेगा. थोड़ा अजीब ? कोई मर्द मेरे साथ ऐसा करे तो मैं तो एक थप्पड़ मार दूँगी .

“लेकिन गोपालजी ऐसा कैसे ……..कोई और तरीका भी तो होगा.”

गोपालजी – मैडम, आश्रम से जो 34 साइज़ का ब्लाउज आपको मिला है, उसको मैंने जिस औरत की नाप लेकर बनाया था वो आपसे कुछ पतली थी. अगर आप एग्ज़ॅक्ट साइज़ नापने नही दोगी तो ब्लाउज आपको कप में कुछ ढीला या टाइट रहेगा.

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“गोपालजी , अगर टेप से नाप लेते तो मुझे कंफर्टेबल रहता. प्लीज़….”

मैं विनती करने के अंदाज़ में बोली. गोपालजी ने ना जाने क्या सोचा पर वो मान गया.

गोपालजी – ठीक है मैडम, अगर आपको अच्छा नही लग रहा तो मैं ऐसे नाप नही लूँगा. मैं ब्लाउज को आपके कप साइज़ के हिसाब से सिल दूँगा. लेकिन ये आपको थोड़ा ढीला या टाइट रहेगा , आप एडजस्ट कर लेना.

उसकी बात सुनकर मैंने राहत की सांस ली. चलो अब ये ऐसे खुलेआम मेरी चूचियों को तो नही दबाएगा. ऐसे नाप लेने के बहाने ना जाने कितनी औरतों की चूचियाँ इसने दबाई होंगी.

तभी मंगल ज़ोर से चीखा और मेरी तरफ कूद गया , मुझसे टकराते टकराते बचा. गोपालजी दो तीन कदम पीछे हो गया और मेरा हाथ खींचकर मुझे भी दो तीन कदम खींच लिया. मैंने पीछे मुड़कर देखा की क्या हुआ . दरवाजे पर दो साँप खड़े थे.

मंगल – ये तो साँपों का जोड़ा है.

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गोपालजी – हाँ, मैंने देख लिया है. कोई भी अपनी जगह से मत हिलना.

साँप दरवाज़े पर थे और अगर वो हमारी तरफ बढ़ते तो बचने के लिए कोई जगह नही थी क्यूंकी कमरा छोटा था. साँप हमारी तरफ देख रहे थे पर कमरे के अंदर को नही आ रहे थे. अपने इतने नज़दीक़ साँप देखकर मैं बहुत डर गयी थी. मंगल भी डरा हुआ लग रहा था लेकिन गोपालजी शांत था. गोपालजी ने बताया की साँप तो पहले भी आस पास खेतों में दिखते रहते थे पर ऐसे दरवाज़े पर कभी नही आए.

कुछ देर तक गोपालजी ने साँपों को भगाने की कोशिश की. उनकी तरफ कोई चीज़ फेंकी , फिर कपड़ा हिलाकर उन्हें भगाने की कोशिश की, पर वो साँप दरवाज़े से नही हिले.

साँपों को दरवाज़े से ना हिलते देख डर से मेरा पसीना बहने लगा.

गोपालजी – अब तो एक ही रास्ता बचा है. साँपों को दूध देना पड़ेगा. क्या पता दूध पीकर चले जाएँ , नही तो किसी भी समय अंदर की तरफ आकर हमें काट सकते हैं.

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मुझे भी ये उपाय सही लगा .

मंगल – लेकिन दूध लेने के लिए मैं बाहर कैसे जाऊँ ? दरवाज़े पर तो साँप हैं.

“हाँ गोपालजी, बाहर तो कोई नही जा सकता. अब क्या करें ? “

गोपालजी ने कुछ देर सोचा , फिर बोला,”मैडम, अब तो सिर्फ़ आप ही इस मुसीबत से बचा सकती हो.”

“मैं ??….मैं क्या कर सकती हूँ ??

गोपालजी – मैडम , आपके पास तो नेचुरल दूध है. प्लीज़ थोड़ा सा दूध निकालकर साँपों को दे दो , क्या पता साँप चले जाएँ.

मैं तो अवाक रह गयी. इस हरामी बुड्ढे की बात का क्या मतलब है ? मैं अपनी चूचियों से दूध निकालकर साँपों को पिलाऊँ ?

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गोपालजी – मैडम , ज़रा ठंडे दिमाग़ से सोचो. दूध पीकर ही ये साँप जाएँगे. आपको चूचियों से दूध निकालने में 2 मिनट ही तो लगेंगे.

मंगल – मैडम , ये छोटा सा कटोरा है. इसमें दूध निकाल दो.

मैं तो निसंतान थी इसलिए मेरी चूचियों में दूध ही नही था. ये बात उन दोनों मर्दों को मालूम नही थी. मेरे पास और कोई चारा नही था, मुझे बताना ही पड़ा.

“गोपालजी, मैं तो ……मेरा मतलब ……अभी तक मेरा कोई बच्चा नही हुआ है. इसलिए वो……. शायद आप समझ जाओगे…….”

गोपालजी समझ गया की मेरी चूचियों में दूध नही है.

गोपालजी – ओह, मैं समझ गया मैडम. अब तो आख़िरी उम्मीद भी गयी.

गोपालजी मेरी बात समझ गया , पर कमीना मंगल मेरे पीछे पड़ा रहा.

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मंगल – मैडम , मैंने सुना है की अगर अच्छे से चूचियों को चूसा जाए तो कुँवारी लड़कियों का भी दूध निकल जाता है.

“बकवास बंद करो. गोपालजी प्लीज़…..”

गोपालजी – मंगल , बकवास मत करो. क्या मतलब है तुम्हारा ? तुम मैडम की चूचियों को चूसोगे और दूध निकल आएगा ? मैडम की चूचियों में दूध तभी बनेगा जब मैडम गर्भवती होगी. तुमने सुना नही मैडम अभी तक गर्भवती नही हुई है.

मैं बहुत एंबरेस्ड फील कर रही थी. मंगल ने एक जनरल सेंस में बात कही थी पर गोपालजी ने सीधे मेरे बारे में ऐसे बोल दिया. शरम से मैं गोपालजी से आँखें नही मिला पा रही थी. लेकिन उनके शब्दों से मेरी चूचियाँ कड़क हो गयी.

घबराहट और गर्मी से मुझे इतना पसीना आ रहा था की ब्लाउज गीला हो गया था. और अंदर से सफेद ब्रा दिखने लगी थी. कमर से नीचे भी मैं अश्लील दिखने लगी थी क्यूंकी मेरी जांघों पर पसीने से पेटीकोट चिपक गया था. जिससे मेरी जांघों का शेप दिखने लगा था. मैंने हाथ से पेटीकोट को खींचा और जांघों से अलग कर दिया.

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एक बात मुझे हैरान कर रही थी की साँप कमरे के अंदर को नही आ रहे थे , वहीं दरवाज़े पर ही कुंडली मारे बैठे थे.

मंगल – अब क्या करें ?

कुछ देर तक चुप्पी रही. फिर गोपालजी को एक उपाय सूझा , जिससे अजीब और बेतुकी बात मैंने पहले कभी नही सुनी थी.

गोपालजी – हाँ , मिल गया . एक उपाय मिल गया.

गोपालजी ज़ोर से ताली बजाते हुए बोला. मंगल और मैं हैरान होकर गोपालजी को देखने लगे.

गोपालजी – ध्यान से सुनो मंगल. तुम हमें बचा सकते हो.

मेरी ही तरह मंगल की भी कुछ समझ में नही आया.

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गोपालजी – मेरी बात ध्यान से सुनो. एक ही उपाय है जिससे इन साँपों से छुटकारा मिल सकता है. मैडम की चूचियों में दूध नही है इसलिए मैंने ये तरीका सोचा है.

गोपालजी कुछ पल चुप रहा. मैं सोचने लगी अब कौन सा उपाय बोलेगा ये.

गोपालजी – मैडम, हमारे पास दूध नही है लेकिन हम दूध जैसे ही किसी सफेद पानी से साँपों को बेवक़ूफ़ बना सकते हैं. साँप उसमे अंतर नही कर पाएँगे. मंगल तुम मुठ मारकर अपना वीर्य इस कटोरे में निकालो और फिर हम इस कटोरे को साँपों के आगे रख देंगे.

कमरे में एकदम चुप्पी छा गयी. गोपालजी का उपाय था तो ठीक , लेकिन उस छोटे से कमरे में एक अनजान आदमी मेरे सामने मुठ मारेगा , ये तो बड़ी शरम वाली बात थी.

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मुझे बहुत अनकंफर्टेबल फील हो रहा था लेकिन मेरे पास कोई और उपाय भी नही था. कैसे भी साँपों से छुटकारा पाना था . गोपालजी की बात का मैं विरोध भी नही कर सकती थी.

मंगल – ये उपाय काम करेगा क्या ?

गोपालजी – काम कर भी सकता है और नही भी. मैडम, मैं जानता हूँ की आपको थोड़ा अजीब लगेगा पर आपकी चूचियों में दूध नही है तो हमारे पास कोई और चारा भी नही है.

“मैं समझ सकती हूँ गोपालजी.”

मैं और क्या बोलती. एक तो वैसे ही मैं बहुत देर से सिर्फ़ ब्लाउज पेटीकोट में थी , अब ये ऐसा बेतुका उपाय. मुझे तो इसके बारे में सोचकर ही बदन में झुरजुरी होने लगी थी.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

गोपालजी – मंगल. जल्दी करो. साँप किसी भी समय हमारी तरफ आ सकते हैं.

मंगल – कैसे जल्दी करूँ. मुझे समय तो लगेगा. कुछ सोचना तो पड़ेगा ना.

उसकी बात पर मुझे हँसी आ गयी. मेरी हँसी देखकर मंगल की हिम्मत बढ़ गयी.

मंगल – मैडम, इस बुड्ढे आदमी को ये भी याद नही होगा की कितने साल मुठ मारे हो गये और मुझसे जल्दी करो कह रहा है.

मुझे फिर से उसकी बात पर हँसी आ गयी . माहौल ही कुछ ऐसा था. एक तरफ साँपों का डर और दूसरी तरफ ऐसी बेहूदा बातें हो रही थी. पर इन सब बातों से मुझे कुछ उत्तेजना भी आ रही थी. उस समय मुझे पता नही था की आश्रम से आते वक़्त जो मैंने दवाई ली है , ये उसका असर हो रहा है.

गोपालजी – ऐसी बात नही है. अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं तुम्हें दिखाऊँगा की इस उमर में भी मैं क्या कर सकता हूँ.

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मंगल – अगर तुम ये करोगे तो तुम्हें हार्ट अटैक आ जाएगा . ग़लत बोल रहा हूँ मैडम ?

इस बेहूदे वार्तालाप को सुनकर मुझे मुस्कुराकर सर हिलाना पड़ रहा था.

मंगल अब मुठ मारना शुरू करने वाला था. मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा और मेरे निप्पल तनकर कड़क हो गये. मंगल ने दीवार की तरफ मुँह कर लिया और अपनी लुंगी उतार दी. अब वो सिर्फ़ अंडरवियर और बनियान (वेस्ट) में था. मैंने देखा उसने अपने दोनों हाथ आगे किए और मुठ मारना शुरू किया. बीच बीच में पीछे मुड़कर वो दरवाज़े पर साँपों को भी देख रहा था.

कुछ देर बाद मंगल की आवाज़ आई.

मंगल – मैं कुछ सोच ही नही पा रहा हूँ. मेरे मन में साँपों का डर हो रहा है. मेरा लंड खड़ा ही नही हो पा रहा है.

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कमरे में चुप्पी छा गयी. अब मंगल ने हमारी तरफ मुँह कर लिया. अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उसने अपने लंड को पकड़ा हुआ था. अंडरवियर पतले कपड़े का था जिससे उसके लटके हुए बड़े लंड की शेप दिख रही थी.

गोपालजी – हम्म्म ………अब क्या करें ? मैडम ?

मेरे पास बोलने को कुछ नही था.

गोपालजी – देखो मंगल , एक काम करो. तुम मैडम की तरफ देखो और मुठ मारने की कोशिश करो. औरत को देखने से तुम्हारा काम बनेगा.

“क्या ??? ” ….मैं ज़ोर से चिल्ला पड़ी.

गोपालजी – मैडम, आपको देखने से उसका काम बनता है तो देखने दो ना. हमको सफेद पानी चाहिए बस और कुछ थोड़ी करना है.

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“लेकिन गोपालजी , ये तो बिल्कुल ग़लत…..”

मुझे इतनी शरम आ रही थी की मेरी आवाज़ ही बंद हो गयी. मेरे विरोध से वो दोनों आदमी रुकने वाले नही थे.

गोपालजी – मैडम , प्लीज़ आप सहयोग करो. अगर आपको बहुत शरम आ रही है तो दीवार की तरफ मुँह कर लो. मंगल आपको पीछे से देखकर मुठ मारने की कोशिश करेगा.

मंगल – हाँ मैडम , मैं ऐसे कोशिश करूँगा.

मंगल कमीना बेशर्मी से मुस्कुरा रहा था. और कोई चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी और दीवार की तरफ मुँह कर लिया.

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मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था क्यूंकी पहले कभी ऐसे परिस्थिति में नही फँसी थी. रास्ते में चलते हुए मर्दों की निगाहें मेरी चूचियों और हिलते हुए नितंबों पर मैंने महसूस की थी पर ऐसे जानबूझकर कोई मर्द मेरे बदन को देखे ऐसा तो कभी नही हुआ था.

मंगल पेटीकोट में मेरे उभरे हुए नितंबों को देख रहा होगा. मुझे याद है एक बार मैं अपने बेडरूम में बालों में कंघी कर रही थी तो मेरे पति ने पेटीकोट में मेरे नितंबों को देख कर कहा था , ‘डार्लिंग तुम्हारे नितंब तो बड़े कद्दू की तरह लग रहे हैं’. शायद मंगल भी वही सोच रहा होगा. मेरे उभरे हुए सुडौल नितंब उन दोनों मर्दों को बड़े मनोहारी लग रहे होंगे.

और कम्बख्त पैंटी भी सिकुड़कर नितंबों के बीच की दरार में आ गयी थी. मेरे लिए वो बड़ी शर्मनाक स्थिति थी की एक अनजान गँवार आदमी मेरे बदन को देखकर मुठ मार रहा था और वो भी मेरी सहमति से.

मंगल – मैडम, आप पीछे से बहुत सुंदर लग रही हो. भगवान का शुक्र है , आपने साड़ी नही पहनी है , वरना ये सब ढक जाता.

गोपालजी – मैडम , मंगल सही बोल रहा है. पीछे से आप बहुत आकर्षक लग रही हो.

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अब गोपालजी भी मंगल के साथ मेरे बदन की तारीफ कर रहा था.

मैं क्या बोलती . ‘ प्लीज़ जल्दी करो’ इतना ही बोल पाई.

मंगल – मैडम, आप पीछे से बहुत सुंदर लग रही हो. भगवान का शुक्र है , आपने साड़ी नही पहनी है , वरना ये सब ढक जाता.

गोपालजी – मैडम , मंगल सही बोल रहा है. पीछे से आप बहुत आकर्षक लग रही हो.

अब गोपालजी भी मंगल के साथ मेरे बदन की तारीफ कर रहा था.

मैं क्या बोलती . ‘ प्लीज़ जल्दी करो’ इतना ही बोल पाई.

कुछ देर बाद फिर से उस लफंगे मंगल की आवाज़ आई.

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मंगल – मैडम , मैं अभी भी नही कर पा रहा हूँ. ये साँप अपनी मुंडी हिला रहे हैं , मेरी नज़र बार बार उन पर चली जा रही है.

“अब उसके लिए मैं क्या कर सकती हूँ ?”
मुझे इरिटेशन होने लगी थी.

गोपालजी – मंगल , तुम मैडम के नज़दीक़ आ जाओ. मैं साँपों पर नज़र रखूँगा , डरो मत. मैडम , आप भी इसको जल्दी मुठ मारने में मदद करो.

“अब और क्या करू मैं ?”

गोपालजी – मैडम, आप बहुत कुछ कर सकती हो. अभी आप एक मूर्ति के जैसे चुपचाप खड़ी हो. अगर आप थोड़ा सहयोग करो……… मेरा मतलब अगर आप अपनी कमर थोड़ा हिलाओ तो मंगल को आसानी होगी.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

“क्या मतलब है आपका , गोपालजी ?”

गोपालजी – मैडम, आप दीवार पर हाथ रखो और एक डांसर के जैसे अपनी कमर हिलाओ. मैडम थोड़ा मंगल के बारे में भी सोचो. दरवाज़े पर साँप मुंडी हिला रहे हैं और हम मंगल से मुठ मारने को कह रहे हैं.

“ठीक है. मैं समझ गयी.”

क्या समझी मैं ? यही की मुझे पेटीकोट में अपने नितंब गोल गोल घुमाने पड़ेंगे जिससे ये कमीना मंगल एक्साइटेड हो जाए और इसका लंड खड़ा हो जाए. हे ईश्वर ! कहाँ फँस गयी थी मैं . पर कोई चारा भी तो नही था. मैंने समय बर्बाद नही किया और जैसा गोपालजी ने बताया वैसा ही करने लगी.

मैंने अपने दोनों हाथ आँखों के लेवल पर दीवार पर रख दिए. ऐसा करने से मेरे बड़े सुडौल नितंब पेटीकोट में पीछे को उभर गये. अब मैं अपनी कमर मटकाते हुए नितंबों को गोल गोल घुमाने लगी. मुझे अपने स्कूल के दिनों में डांस क्लास की याद आई जब हमारी टीचर एक लय में नितंबों को घुमाने को कहती थी.

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गोपालजी और मंगल दोनों मेरे इस भद्दे और अश्लील नृत्य की तारीफ करने लगे. मैंने उन्हें बताया की स्कूल के दिनों में मैंने डांस सीखा था. मैंने एक नज़र पीछे घुमा कर देखा मंगल मेरे नज़दीक़ आ गया था और उसकी आँखें मेरे हिलते हुए नितंबों पर गड़ी हुई थीं. इस अश्लील नृत्य को करते हुए मैं अब गरम होने लगी थी.

मैंने अपने नितंबों को घुमाना जारी रखा , पीछे से मंगल की गहरी साँसें लेने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. एक जाहिल गँवार को मुठ मारने में मदद करने के लिए अश्लील नृत्य करते हुए अब मैं खुद भी उत्तेजना महसूस कर रही थी. मेरी चूचियाँ तन गयी थी और चूत से रस बहने लगा था. ये बड़ी अजीब लेकिन कामुक सिचुएशन थी.

फिर कुछ देर तक पीछे से कोई आवाज़ नही आई तो मुझे बेचैनी होने लगी. मैंने पीछे मुड़कर गोपालजी और मंगल को देखा. मंगल के अंडरवियर में उसका लंड एक रॉड के जैसे तना हुआ था और वो अपने अंडरवियर में हाथ डालकर तेज तेज मुठ मार रहा था. मैं शरमा गयी , लेकिन उस उत्तेजना की हालत में मेरा मन उस तने हुए लंड को देखकर ललचा गया.

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मेरे पीछे मुड़कर देखने से मंगल का ध्यान भंग हुआ.

मंगल – अभी नही हुआ मैडम.

अब उस सिचुयेशन में मैं रोमांचित होने लगी थी और मैं खुद को नटखट लड़की जैसा महसूस कर रही थी. मुझे हैरानी हुई की मैं ऐसा क्यूँ महसूस कर रही हूँ ? मैं तो बहुत ही शर्मीली हाउसवाइफ थी, हमेशा बदन ढकने वाले कपड़े पहनती थी. मर्दों के साथ चुहलबाज़ी , अपने बदन की नुमाइश, ये सब तो मेरे स्वभाव में ही नही था.

फिर मैं इन दो अनजाने मर्दों के सामने ऐसे अश्लील नृत्य करते हुए रोमांच क्यूँ महसूस कर रही थी ? ये सब गुरुजी की दी हुई उस दवाई का असर था जो उन्होने मुझसे आश्रम से बाहर जाते हुए खाने को कहा था. मेरे शर्मीलेपन पर वो जड़ी बूटी हावी हो रही थी.

मंगल की आँखों में देखते हुए शायद मैं पहली बार मुस्करायी.

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“कितना समय और लगेगा मंगल ?”

गोपालजी – मैडम , मेरे ख्याल से मंगल को आपकी थोड़ी और मदद की ज़रूरत है.

“क्या बात है ? मुझे बताओ गोपालजी . मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ. मैं उसके मन की बात थोड़ी पढ़ सकती हूँ.”

मंगल के खड़े लंड से मैं आँखें नही हटा पा रही थी. अंडरवियर के अंदर तने हुए उस रॉड को देखकर मेरा बदन कसमसाने लगा था और मेरी साँसें भारी हो चली थीं.

गोपालजी – मैडम , आप अपना डांस जारी रखो और प्लीज़ मंगल को छूने दो अपने…….

गोपालजी ने जानबूझकर अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया. वो देखना चाहता था मैं उसकी बात पर कैसे रियेक्ट करती हूँ. गोपालजी अनुभवी आदमी था , उसने देख लिया था की अब मैं पूरी गरम हो चुकी हूँ और शायद उसकी बात का विरोध नही करूँगी.

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गोपालजी – मैडम , मैं वादा करता हूँ , मंगल आपको कहीं और नही छुएगा. मेरे ख्याल से , आपको छूने से मंगल का पानी जल्दी निकल जाएगा.

आश्रम में आने से पहले , अगर किसी आदमी ने मुझसे ये बात कही होती की वो मेरे नितंबों को छूना चाहता है तो मैं उसे एक थप्पड़ मार देती. वैसे ऐसा नही था की किसी अनजाने आदमी ने मुझे वहाँ पर छुआ ना हो. भीड़भाड़ वाली जगहों में, ट्रेन , बस में कई बार साड़ी या सलवार के ऊपर से , मेरे नितंबों और चूचियों पर , मर्दों को हाथ फेरते हुए मैंने महसूस किया था.

पर वैसा तो सभी औरतों के साथ होता है. भीड़ भरी जगहों पर औरतों के नितंबों और चूचियों को दबाने का मौका मर्द छोड़ते कहाँ हैं , वो तो इसी ताक में रहते हैं. लेकिन जो अभी मेरे साथ हो रहा था वैसा तो किसी औरत के साथ नही हुआ होगा.

लेकिन सच्चाई ये थी की मैं बहुत उत्तेजित हो चुकी थी. उस छोटे कमरे की गर्मी और खुद मेरे बदन की गर्मी से मेरा मन कर रहा था की मैं ब्लाउज और ब्रा भी उतार दूं. वो अश्लील नृत्य करते हुए पसीने से मेरी ब्रा गीली हो चुकी थी और मेरी आगे पीछे हिलती हुई बड़ी चूचियाँ ब्रा को फाड़कर बाहर आने को आतुर थीं.

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उत्तेजना के उन पलों में मैं गोपालजी की बात पर राज़ी हो गयी , लेकिन मैंने ऐसा दिखाया की मुझे संकोच हो रहा है.

“ठीक है गोपालजी , जैसा आप कहो.”

मैं फिर से दीवार पर हाथ टिकाकर अपने नितंबों को गोल गोल घुमाने लगी. इस बार मैं कुछ ज़्यादा ही कमर लचका रही थी. मैं वास्तव में ऐसा करते हुए बहुत ही अश्लील लग रही हूँगी , एक 28 साल की औरत सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में अपने नितंबों को ऐसे गोल गोल घुमा रही है. ये दृश्य देखकर मंगल की लार टपक रही होगी क्यूंकी मेरे राज़ी होते ही वो तुरंत मेरे पीछे आ गया और मेरे हिलते हुए नितंबों पर उसने अपना बायां हाथ रख दिया.

मंगल – मैडम , क्या मस्त गांड है आपकी. बहुत ही चिकनी और मुलायम है.

गोपालजी – जब दिखने में इतनी अच्छी है तो सोचो टेस्ट करने में कितनी बढ़िया होगी.

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मंगल और गोपालजी की दबी हुई हँसी मैंने सुनी. रास्ते में चलते हुए मैंने कई बार अपने लिए ये कमेंट सुना था ‘ क्या मस्त गांड है ‘ , पर ये तो मेरे सामने ऐसा बोल रहा था.

मंगल एक हाथ से मेरे नितंब को ज़ोर से दबा रहा था और दूसरे हाथ से मुठ मार रहा था. मेरी पैंटी पीछे से सिकुड गयी थी इसलिए मंगल की अंगुलियों और मेरे नितंब के बीच सिर्फ़ पेटीकोट का पतला कपड़ा था.

गोपालजी – मैडम , आप पीछे से बहुत सेक्सी लग रही हो. मंगल तू बड़ी किस्मत वाला है.

मंगल – गोपालजी , अब इस उमर में इन चीज़ों को मत देखो . बेहतर होगा साँपों पर नज़र रखो.

उसकी बात पर हम सब हंस पड़े. मैं बेशर्मी से हंसते हुए अपने नितंबों को हिला रही थी. और वो कमीना मंगल मेरे नितंबों पर हाथ फेरते हुए चिकोटी काट रहा था. अगर कोई मेरा पेटीकोट कमर तक उठाकर देखता तो उसे मेरे नितंब चिकोटी काटने से लाल हो गये दिखते. अब तक मेरी चूत रस बहने से पूरी गीली हो चुकी थी.

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फिर मुझे अपने दोनों नितंबों पर मंगल के हाथ महसूस हुए. अब वो अपना लंड हिलाना छोड़कर मेरे दोनों नितंबों को अपने हाथों से हॉर्न के जैसे दबा रहा था. अपने नितंबों के ऐसे मसले जाने से मैं और भी उत्तेजित होकर नितंबों को ज़ोर से हिलाने लगी.

गोपालजी – मंगल जल्दी करो. साँप अंदर को आ रहे हैं.

गोपालजी ने मंगल को सावधान किया पर मंगल ने उसकी बात सुनी भी की नही. क्यूंकी वो तो दोनों हाथों से मेरी गांड को मसलने में लगा हुआ था. एक अनजान आदमी के अपने संवेदनशील अंग को ऐसे मसलने से मैं कामोन्माद में अपने बदन को हिला रही थी. मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी.

तभी मंगल ने मेरी गांड से अपने हाथ हटा लिए. मैंने सोचा उसने गोपालजी की बात सुन ली होगी , इसलिए डर गया होगा.

लेकिन नही, ऐसा कुछ नही था. उस कमीने को मुझसे और ज़्यादा मज़ा चाहिए था. अभी तक तो वो पेटीकोट के बाहर से मेरी गांड को मसल रहा था और फिर बिना मेरी इजाजत लिए ही मंगल मेरा पेटीकोट ऊपर को उठाने लगा.

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ये तुम क्या कर रहे हो ? रूको . रूको. …….गोपालजी !! “

पेटीकोट के बाहर से अपने नितंबों पर मंगल के हाथों के स्पर्श से मुझे बहुत मज़ा मिल रहा था , इसमे कोई दो राय नही थी. लेकिन अब वो मेरा पेटीकोट ऊपर उठाने की कोशिश कर रहा था. अब मुझे डर होने लगा था की ये बदमाश कहीं मेरी इस हालत का फायदा ना उठा ले.

मेरे मना करने पर भी मंगल ने मेरे घुटनों तक पेटीकोट उठा दिया और दोनों हाथों से मेरी मांसल जांघें दबोच ली. उसके खुरदुरे हाथ मेरी मुलायम जांघों को दबा रहे थे और फिर उसने अपने चेहरे को पेटीकोट के बाहर से मेरी गांड में दबा दिया. ये मेरे लिए बड़ी कामुक सिचुयेशन थी. एक अनजाने गँवार मर्द ने मुझे पीछे से पकड़ रखा है.

मेरी पेटीकोट को घुटनों तक उठा दिया , मेरी मांसल जांघों को दबोच रहा है और साथ ही साथ मेरी गांड में अपने चेहरे को भी रगड़ रहा है.

गोपालजी ने मंगल को नही रोका , जबकि उसने वादा किया था की मंगल मुझे कहीं और नही छुएगा. मुझे हल्का विरोध करते हुए कुछ देर तक ऐसी कम्प्रोमाइज़िंग पोजीशन में रहना पड़ा.

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फिर उस कमीने ने पेटीकोट के बाहर से मेरे नितंब पर दाँत गड़ा दिए और मेरी गांड की दरार में अपनी नाक घुसा दी. मेरे मुँह से ज़ोर से चीख निकल गयी…………..ऊईईईईईईईईई……………..

एक तो मेरी पैंटी सिकुड़कर बीच की दरार में आ गयी थी और अब ये गँवार उस दरार में अपनी नाक घुसा रहा था. वैसे सच कहूँ तो मुझे भी इससे बहुत मज़ा आ रहा था. दिमाग़ कह रहा था की ये ग़लत हो रहा है पर जड़ी बूटी का असर था की मैं बहुत ही उत्तेजित महसूस कर रही थी.

मंगल के हाथ पेटीकोट के अंदर मेरी जांघों को मसल रहे थे. अब मैं और बर्दाश्त नही कर पाई और चूत से रस बहाते हुए मुझे बहुत तेज ओर्गास्म आ गया.
…………..आआहह………………. ओह्ह ………………..ऊईईईईईईईईई……………….आआहह………….

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मेरा पूरा बदन कामोन्माद से कंपकपाने लगा और मेरी पैंटी के अंदर पैड चूत रस से पूरा भीग गया. अब मेरा विरोध बिल्कुल कमजोर पड़ गया था.

मंगल ने मेरी हालत का फायदा उठाने में बिल्कुल देर नही लगाई. मेरी जांघों पर उसके हाथ ऊपर को बढ़ते गये और उसने अपनी अंगुलियों से मेरे उस अंग को छू लिया जिसे मेरे पति के सिवा किसी ने नही छुआ था. हालाँकि मेरा पेटीकोट घुटनों तक था पर मंगल ने अंदर हाथ डालकर पैंटी के बाहर से ही मेरी चूत को मसल दिया.

बहुत ही अजीब परिस्थिति थी, एक तरफ साँपों का डर और दूसरी तरफ एक अनजाने मर्द से काम सुख का आनंद. मुझे याद नही इतना तेज ओर्गास्म मुझे इससे पहले कब आया था. एक नयी तरह की सेक्सुअल फीलिंग आ रही थी.

मंगल भी मेरे साथ ही झड़ गया और इस बार मुझे उसका ‘लंड दर्शन ‘ भी हुआ , जब उसने कटोरे में अपना वीर्य निकाला. ये पहली बार था की मैं अपने पति के सिवा किसी पराए मर्द का लंड देख रही थी. उसका काला तना हुआ लंड कटोरे में वीर्य की धार छोड़ रहा था. मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयी . क्या नज़ारा था . सभी औरतें लंड को ऐसे वीर्य छोड़ते हुए पसंद करती हैं पर ऐसे बर्बाद होते नही बल्कि अपनी चूत में.

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अब मैं अपने दिमाग़ पर काबू पाने की कोशिश करने लगी, जैसा की सुबह गुरुजी ने बताया था की ‘माइंड कंट्रोल’ करना है. गुरुजी ने कहा था, कहाँ हो , किसके साथ हो, इसकी चिंता नही करनी है, जो हो रहा है उसे होने देना. गुरुजी के बताए अनुसार मुझे दो दिन में चार ओर्गास्म लाने थे जिसमे पहला अभी अभी आ चुका था.

ओर्गास्म आने से बदन की गर्मी निकल चुकी थी और अब मैं पूरे होशो हवास में थी. मैंने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए.

मंगल अधनंगा खड़ा था , झड़ जाने के बाद उसका काला लंड केले के जैसे लटक गया था. मेरी हालत भी उसके लंड जैसी ही थी , बिल्कुल थकी हुई, शक्तिहीन.

गोपालजी ने मंगल से कटोरा लिया और साँपों से कुछ दूरी पर रख दिया. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ , साँप उस कटोरे में सर डालकर पीने लगे. कुछ ही समय बाद वो दोनों साँप दरवाज़े से बाहर चले गये.

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साँपों के जाने से हम सबने राहत की साँस ली.

उसके बाद कुछ खास नही हुआ. गोपालजी ने मेरी नाप का ब्लाउज मुझे दिया. मैंने दीवार की तरफ मुँह करके पुराना ब्लाउज उतारा. गोपालजी और मंगल को मेरी गोरी नंगी पीठ के दर्शन हुए जिसमे सिर्फ़ ब्रा का स्ट्रैप था. फिर मैंने नया ब्लाउज पहन लिया , जिसके सभी हुक लग रहे थे , और फिटिंग सही थी.

उसके बाद मैंने साड़ी पहन ली. अब जाकर मुझे चैन आया , साड़ी उतारते समय मैंने ये थोड़ी सोचा था की इतनी देर तक मुझे इन दो मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज पेटीकोट में रहना पड़ेगा.

गोपालजी – ठीक है मैडम. हम साँपों से बच गये. सहयोग करने के लिए आपका शुक्रिया. चलो अंत भला तो सब भला. मैडम , अगर आपको इस ब्लाउज में कोई परेशानी हुई तो मुझे बता देना.

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“शुक्रिया गोपालजी.”

गोपालजी – और हाँ मैडम , अगर शाम को आपको समय मिले तो यहाँ आ जाना. मैं आपकी पैंटी की समस्या भी दूर कर दूँगा.

मैंने सर हिला दिया और उस कमरे से बाहर आ गयी. मैं बहुत थक गयी थी और जो कुछ उस कमरे में हुआ उससे बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी . मैं जल्दी से जल्दी वहाँ से जाना चाहती थी पर मुझे विकास का इंतज़ार करना पड़ा. करीब 10 मिनट बाद विकास गांव से वापस लौटा तब तक मुझे अपने बदन पर मंगल की घूरती नजरों को सहन करना पड़ा.

आश्रम में आने के बाद सबसे पहले मैंने जड़ी बूटी वाले पानी से नहाया. उससे मुझे फिर से तरो ताज़गी महसूस हुई. नहाने से पहले परिमल आकर मेरा पैड ले गया था, जो मैंने पैंटी में पहना हुआ था.. उसने बताया की आश्रम से हर ‘आउटडोर विज़िट’ के बाद गुरुजी मेरा पैड बदलकर नया पैड देंगे.

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दोपहर बाद लंच लेकर मैंने थोड़ी देर बेड में लेटकर आराम किया. लेटे हुए मेरे मन में वही दृश्य घूम रहे थे जो टेलर की दुकान में घटित हुए थे. गोपालजी का मेरे ब्लाउज की नाप लेना,मंगल के मुठ मारने के लिए मेरा वो अश्लील नृत्य करना और फिर मंगल के खुरदुरे हाथों द्वारा मेरे नितंबों और जांघों को मसला जाना.

ये सब सोचते हुए मेरा चेहरा शरम से लाल हो गया. इन सब कामुक दृश्यों को सोचते हुए मुझे ठीक से नींद नही आई.

शाम करीब 5 बजे मंजू ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया.

मंजू – मैडम , बहुत थक गयी हो क्या ?

“नही नही. बल्कि मैं तो……”

क्या मंजू जानती है की टेलर की दुकान में क्या हुआ ? विकास ने तो लौटते वक़्त मुझसे कुछ नही पूछा. मंजू से ये बात सीधे सीधे पूछने में मुझे शरम आ रही थी की उसे मालूम है या नही .

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मंजू – ठीक है मैडम. तब तो आप मेला देखने जा सकती हो. थोड़ी दूरी पर है , लेकिन अगर आप अभी चली जाओ तो टाइम पर वापस आ जाओगी.

“कौन सा मेला ?”

मंजू – मैडम, ये मेला पास के गांव में लगा है. मेले में आस पास के गांववाले खरीदारी करने जाते हैं. बहुत फेमस है यहाँ. हम लोग तो अपने काम में बिज़ी रहेंगे आप बोर हो जाओगी. इसलिए मेला देख आओ.

मैंने सोचा मंजू ठीक ही तो कह रही है , आश्रम में अभी मेरा कोई काम नही है. अभी ये लोग भी यहाँ बिज़ी रहेंगे , क्यूंकी अभी गुरुजी का ‘दर्शन’ का समय है तो आश्रम में थोड़ी बहुत भीड़ भाड़ होगी . मैं मेला जाने को राज़ी हो गयी.

मंजू – ठीक है मैडम , ये लो नया पैड. और हाँ जाते समय दवाई खाना मत भूलना. जब भी आश्रम से बाहर जाओगी तो वो दवाई खानी है. आप तैयार हो जाओ , मैं 5 मिनट बाद विकास को भेज दूँगी.

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मंजू अपने बड़े नितंबों को मटकाते हुए चली गयी. उसको जाते हुए देखती हुई मैं सोचने लगी , वास्तव में इसके नितंब आकर्षित करते हैं.

फिर मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया और बाथरूम में चली गयी. ये हर बार पैड बदलना भी बबाल था. पैंटी नीचे करो फिर चूत के छेद पर पैड फिट करो. खैर , ऐसा करना तो था ही. मैंने पैंटी में ठीक से पैड लगाया और हाथ मुँह धोकर कमरे में आ गयी. फिर नाइटगाउन उतारकर साड़ी ब्लाउज पहन लिया.

तब तक विकास आ गया था.

विकास – मैडम , मेला तो थोड़ा दूर है , पैदल नही जा सकते.

“फिर कैसे जाएँगे ?”

विकास – मैडम, हम बैलगाड़ी से जाएँगे. मैंने बैलगाड़ीवाले को बुलाया है वो आता ही होगा.

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“ठीक है. कितना समय लगेगा जाने में ?”

मैं कभी बैलगाड़ी में नही बैठी थी , इसलिए उसमें बैठने को उत्सुक थी.

विकास – मैडम, बैलगाड़ी से जाने में थोड़ा समय तो लगेगा पर आप गांव के दृश्य, हरे भरे खेत इन सब को देखने का मज़ा ले सकती हो.

कुछ ही देर में बैलगाड़ी आ गयी और हम उसमें बैठ गये.
गांव के खेतों के बीच बने रास्ते से बैलगाड़ी बहुत धीरे धीरे चल रही रही थी. बहुत सुंदर हरियाली थी हर तरफ, ठंडी हवा भी चल रही थी. विकास मुझे मेले के बारे में बताने लगा.

करीब आधा घंटा ऐसे ही गुजर गया , पर हम अभी तक नही पहुचे थे. मुझे बेचैनी होने लगी.

“विकास, कितना समय और लगेगा ?”

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विकास – मैडम, अभी तो हमने आधा रास्ता तय किया है, इतना ही और जाना है. बैलगाड़ी धीरे चल रही है इसलिए टाइम लग रहा है.

शुरू शुरू में तो बैलगाड़ी में बैठना अच्छा लग रहा था पर अब मेरे घुटने दुखने लगे थे. गांव की सड़क भी कच्ची थी तो बैलगाड़ी में बहुत हिचकोले लग रहे थे. मेरी कमर भी दर्द करने लगी थी. बैलगाड़ी में ज़्यादा जगह भी नही थी इसलिए विकास भी सट के बैठा था और मेरे हिलने डुलने को जगह भी नही थी. हिचकोलो से मेरी चूचियाँ भी ब्रा में बहुत उछल रही थीं , शरम से मैंने साड़ी का पल्लू अच्छे से अपने ब्लाउज के ऊपर लपेट लिया.

आख़िर एक घंटे बाद हम मेले में पहुँच ही गये. बैलगाड़ी से उतरने के बाद मेरी कमर, नितंब और घुटने दर्द कर रहे थे. विकास का भी यही हाल हो रहा होगा क्यूंकी उतरने के बाद वो अपने हाथ पैरों की एक्सरसाइज करने लगा. लेकिन मैं तो औरत थी ऐसे सबके सामने हाथ पैर कैसे फैलाती. मैंने सोचा पहले टॉयलेट हो आती हूँ , वहीं हाथ पैर की एक्सरसाइज कर लूँगी.

“विकास, मुझे टॉयलेट जाना है.”

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विकास – ठीक है मैडम, लेकिन ये तो गांव का मेला है. यहाँ टॉयलेट शायद ही होगा. अभी पता करता हूँ.

विकास पूछताछ करने चला गया.

विकास – मैडम ,यहाँ कोई टॉयलेट नही है. मर्द तो कहीं पर भी किनारे में कर लेते हैं. औरतें दुकानो के पीछे जाती हैं.

मैं दुविधा में थी क्यूंकी विकास से कैसे कहती की मुझे पेशाब नही करनी है. मुझे तो हाथ पैर की थोड़ी स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करनी थी.

विकास – मैडम , मैं यहीं खड़ा रहता हूँ , आप उस दुकान के पीछे जाकर कर लो.

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. ये आदमी मुझसे खुली जगह में पेशाब करने को कह रहा है, जहाँ पर सबकी नज़र पड़ रही है.

“यहाँ कैसे कर लूँ ?”

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मैं कोई छोटी बच्ची तो हूँ नही जो सबके सामने फ्रॉक ऊपर करके कर लूँ. उस दुकान के पीछे एक छोटी सी झाड़ी थी जिससे कुछ भी नही ढक रहा था. वैसे तो शाम हो गयी थी लेकिन अभी अंधेरा ना होने से साफ दिखाई दे रहा था. आस पास गांववाले भी खड़े थे , उन सबके सामने मैं कैसे करती.

विकास – मैडम ये शहर नही गांव है. यहाँ सभी औरतें ऐसे ही कर लेती हैं. शरमाओ मत.

“क्या मतलब ? गांव है तो मैं शरमाऊं नही ? इन सब गांववालों के सामने अपनी साड़ी उठा दूं ?”

विकास – मैडम , मैडम , नाराज़ क्यूँ होती हो. मेरे कहने का मतलब है गांव में शहर के जैसे बंद टॉयलेट नही होते. ज़्यादा से ज़्यादा टाट लगाकर पर्दे बना देते हैं टॉयलेट के लिए, यहाँ वो भी नही है.

“विकास, यहाँ इतने लोग खड़े हैं. मैं बेशरम होकर इनके सामने तो नही बैठ सकती. गांववाली औरतें करती होंगी , मैं ऐसे नही कर सकती. चलो मेले में चलते हैं.”

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विकास ने ज़्यादा ज़ोर नही दिया और हम दुकानों की तरफ बढ़ गये. मेले में बहुत सारी दुकानें थी और गांववालों की बहुत भीड़भाड़ थी. मेले में घूमने में हमें करीब एक घंटा लग गया. भीड़ की वजह से मुझे विकास से सट के चलना पड़ रहा था. चलते हुए मेरी चूचियों पर विकास की कोहनी कई बार छू गयी.

पहले तो मैंने इससे बचने की कोशिश की लेकिन भीड़ की वजह से उसकी बाँह मुझसे छू जा रही थी , मैंने सोचा कोई बात नही भीड़ की वजह से ऐसा हो जा रहा है.

कुछ देर बाद मुझे लगा की विकास जानबूझकर अपनी बाँह मेरी चूचियों पर रगड़ रहा है. क्यूंकी जहाँ पर कम भीड़ थी वहाँ भी उसकी कोहनी मेरी चूचियों से रगड़ खा रही थी. उसके ऐसे छूने से मुझे भी थोड़ा मज़ा आ रहा था , पर मुझे लगा इतने लोगों के सामने विकास कुछ ज़्यादा ही कर रहा है.

मैं विकास के दायीं तरफ चल रही थी और मेरी बायीं चूची पर विकास अपनी दायीं कोहनी चुभा रहा था. सामने से हमारी तरफ आते लोगों को सब दिख रहा होगा. मैं शरम से विकास से कुछ नही कह पाई , वैसे भी वो कहता भीड़ की वजह से छू जा रहा है , तो कहने से फायदा भी क्या था.

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लेकिन उसके ऐसे कोहनी रगड़ने से मेरी चूचियाँ कड़क होकर तन गयीं , मैं भी गरम होने लगी थी. मुझे कुछ ना कहते देख उसकी हिम्मत और बढ़ गयी और उसने अपनी कोहनी को मेरी चूचियों पर दबा दिया. शायद उसे बहुत मज़ा आ रहा था , किसी औरत की चूचियाँ ऐसे दबाने का मौका रोज़ रोज़ थोड़े ही मिलता है.

फिर मैं एक दुकान के आगे रुक गयी और कान के झुमके देखने लगी. विकास भी मेरे से सट के खड़ा था. उसकी गरम साँसें मुझे अपने कंधों पर महसूस हो रही थी.

विकास – मैडम , ये आप पर अच्छे लगेंगे.

ऐसा कहते हुए उसने मुझे कान का झुमका और एक हार दिया. मैंने उससे सुझाव नही माँगा था पर देख लेती हूँ. मैंने वो झुमका पहन कर देखा , ठीक लग रहा था.

विकास – मैडम, हार भी ट्राइ कर लो , अच्छा लगे तो खरीद लेना, मेरे पास पैसे हैं.

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दुकानदार ने भी कहा, मैचिंग हार है , झुमके के साथ पहन कर देखो. मैं गले में हार पहनने लगी तभी विकास जबरदस्ती मेरी मदद करने लगा.

विकास – मैडम , आप छोड़ दो , मैं आपके गले में हार पहना देता हूँ.

मैंने देखा विकास की बात पर वो दुकानदार मुस्कुरा रहा है. दुकान में 2-3 और ग्राहक भी थे , वो भी हमें देखने लगे. मैंने सोचा विकास से बहस करूँगी तो और लोगों का भी ध्यान हम पर चला जाएगा , इसलिए चुप रही. लेकिन विकास ने जो किया वो शालीनता की सीमा को लाँघने वाला काम था , वो भी सबके सामने.

विकास मेरे पीछे आया और हार को मेरे गले में डाला और गर्दन के पीछे हुक लगाने लगा. फिर मुझे पीछे से आलिंगन करते हुए हार को आगे से ठीक करने के बहाने से ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों पर हाथ फेर दिया.

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दुकानदार और उसके ग्राहकों की नज़र भी हम पर थी और उन्होने भी विकास को मेरी चूचियों पर हाथ फेरते हुए देखा. सबके सामने मुझसे ऐसे भद्दे तरह से बिहेव करने से मुझे बुरा लगा. वो लोग मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे ?

अब वो दुकानदार भी मुझमें कुछ ज़्यादा ही इंटरेस्ट लेने लगा और मेरे आगे शीशा पकड़कर कुछ और झुमके , हार दिखाने लगा.

विकास – मैडम , इसको ट्राइ करो. ये भी अच्छा लग रहा है.

“नही विकास, यही ठीक है.”

मैं उसकी मंशा समझ रही थी लेकिन दुकानदार भी पीछे पड़ गया की ये वाला ट्राइ करो. मैंने दूसरा झुमका पहन लिया और विकास मुझे उसका मैचिंग हार पहनाने लगा. इस बार वो और भी ज़्यादा बोल्ड हो गया. हार पहनाने के बहाने विकास, दुकानदार के सामने ही मेरी चूचियाँ छूने लगा. ये वाला हार थोड़ा लंबा था तो मेरी चूचियों से थोड़ा नीचे तक लटक रहा था.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

इससे विकास को मेरी चूचियाँ दबाने का बहाना मिल गया. उसने मेरी गर्दन के पीछे हार का हुक लगाया और आगे से हार को एडजस्ट करने के बहाने मेरी तनी हुई चूचियों के ऊपर अपनी बाँह रख दी. एक आदमी मेरे पीछे खड़ा होकर अपनी बाँह मेरी छाती से चिपका रहा है और मैं सबके सामने बेशरम बनकर चुपचाप खड़ी हूँ.

फिर विकास ने दुकानदार से शीशा ले लिया और बड़ी चालाकी से अपने बाएं हाथ में शीशा पकड़कर मेरी छाती के आगे लगा दिया , जैसे मुझे शीशे में हार दिखा रहा हो. उसके ऐसा करने से दुकानदार की आँखों के आगे शीशा लग गया और वो मेरी छाती नही देख सकता था. इस बात का फायदा उठाते हुए विकास ने अपने दाहिने हाथ से मेरी दायीं चूची को पकड़ा और ज़ोर से मसल दिया.

विकास – ये वाला हार ज़्यादा अच्छा है. आपको क्या लगता है मैडम ?

मैं कुछ बोलने की हालत में नही थी क्यूंकी उसके हाथ ने मेरी चूची को दबा रखा था. मैंने अपनी नज़रें दूसरी तरफ घुमाई तो देखा दो लड़के हमें ही देख रहे थे. विकास की नज़र उन पर नही पड़ी थी वो तो कुछ और ही काम करने में व्यस्त था.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

इस बार उसने मेरी दायीं चूची को अपनी पूरी हथेली में पकड़ा और तीन चार बार ज़ोर से दबा दिया, हॉर्न के जैसे. ये सब कुछ ही सेकेंड्स की बात थी और खुलेआम सब लोगों के सामने विकास ने मुझसे ऐसे छेड़छाड़ की और मैं कुछ ना कह पायी.

फिर मैंने ये दूसरा वाला झुमके और हार का सेट ले लिया और हम उस दुकान से आगे बढ़ गये.

शाम होने के साथ ही मेले में लोगों की भीड़ बढ़ गयी थी. दुकानों के बीच पतले रास्ते में धक्कामुक्की हो रही थी. मैंने विकास का हाथ पकड़ लिया , और कोई चारा भी नही था वरना मैं पीछे छूट जाती. दूसरा हाथ मैंने अपनी छाती के आगे लगा रखा था नही तो सामने से आने वाले लोगों की बाँहें मेरी चूचियों से छू जा रही थीं.

मैंने विकास से नार्मल बिहेव किया और जो उसने दुकान में मेरे साथ किया , उसको भूल जाना ही ठीक समझा. शायद विकास भी मेरे रिएक्शन की थाह लेने की कोशिश कर रहा था और मुझे कोई विरोध ना करते देख उसकी हिम्मत बढ़ गयी.

विकास – मैडम , ये गांववाले सभ्य नही हैं. थोड़ा बच के रहना.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

“हाँ , वो तो मुझे दिख ही रहा है. धक्कामुक्की कर रहे हैं.”

विकास – मैडम , ऐसा करो. मेरा हाथ पकड़कर पीछे चलने की बजाय आप मेरी साइड में आ जाओ. उससे मैं आपको प्रोटेक्ट कर सकूँगा.

मैंने सोचा , ठीक ही कह रहा है , एक तरफ से तो सेफ हो जाऊँगी. फिर मैं उसकी दायीं तरफ आ गयी. लेकिन विकास का कुछ और ही प्लान था. मेरे आगे आते ही उसने लोगो से बचाने के बहाने मेरे दाएं कंधे में अपनी बाँह डाल दी और मुझे अपने से सटा लिया. चलते समय मेरा पूरा बदन उसके बदन से छू रहा था. उसके दाएं हाथ की अंगुलियां मेरी दायीं चूची से कुछ ही इंच ऊपर थीं.

धीरे धीरे उसका हाथ नीचे सरकने लगा और फिर उसकी अंगुलियां मेरी चूची को छूने लगीं. कुछ ही देर बाद उसने हथेली से मेरी दायीं चूची को पकड़ लिया , जैसे दुकान में किया था. अबकी बार वो बहुत कॉन्फिडेंट लग रहा था और चलते हुए आराम से अपनी अंगुलियां मेरी चूची के ऊपर रखे हुए था. उसकी अंगुलियां मेरी चूची की मसाज करने लगीं.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

अपनी चूची पर विकास की अंगुलियों के मसाज करने से मैं उत्तेजित होने लगी. थोड़ी देर तक ऐसा ही चलता रहा. कुछ समय बाद विकास मेरी चूची को ज़ोर से दबाने लगा. फिर उसकी अंगुलियां ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरे निप्पल को ढूंढने लगीं. मैंने देखा सामने की तरफ से आने वाले लोगों की निगाहें विकास के हाथ और मेरी चूची पर ही थी.

अब मेरी बर्दाश्त के बाहर हो गया, सब लोगों के सामने विकास मुझसे ऐसे बिहेव कर रहा था , मुझे बहुत शरम महसूस हो रही थी. उसके ऐसे छूने से मुझे मज़ा आ रहा था और मेरी चूत गीली हो चुकी थी लेकिन सबके सामने खुलेआम ऐसा करना ठीक नही था. सुबह जब टेलर की दुकान पर मैं बेशरम बन गयी थी तब भी कम से कम एक कमरे में तो थी , ये तो खुली जगह थी. मुझे विकास को रोकना ही था.

“विकास, प्लीज़ ठीक से रहो.”

विकास – सॉरी मैडम , लेकिन भीड़ से बचाने के लिए करना पड़ रहा है , वरना लोग आपके बदन से टकरा जाएँगे.

विकास ने अपना बहाना बना दिया. मैं बहस करने के मूड में नही थी. लेकिन उत्तेजित होने के बाद अब मुझे पेशाब लग गयी थी.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

“विकास मुझे टॉयलेट जाना है. उस समय मैं नही जा पाई थी………”

विकास ने मेरी चूची पर से हाथ हटा लिया और मुझे एक गली से होते हुए दुकानों के पीछे ले गया. मेले में बल्ब जले हुए थे लेकिन दुकानों के पीछे थोड़ा अंधेरा था . दूर खड़े लोगों के लिए साफ देख पाना मुश्किल था. पर मैं अभी भी हिचक रही थी क्यूंकी वहाँ कोई झाड़ी नही थी जिसके पीछे मैं बैठ सकूँ.

विकास – मैडम , अब क्या दिक्कत है ?

“देख नही रहे , यहाँ कोई झाड़ी नही है. कैसे करूँ ?”

विकास – लेकिन मैडम, यहाँ अंधेरे में कौन देख रहा है. उस कोने में जाओ और कर लो.

“इतना अंधेरा भी नही है. मैं तो तुम्हें साफ देख सकती हूँ.”

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

विकास – मैडम , आप भी ….. ठीक है , मैं आपकी तरफ नही देखूँगा.

वो शरारत से मुस्कुराया लेकिन मैंने उसकी तरफ ध्यान नही दिया. मुझे तो यही फिकर थी की कैसे करूँ.

“कोई आ गया तो ….?”

विकास – मैडम , इसमें टाइम ही कितना लगना है. कुछ ही सेकेंड्स में तो हो जाएगा.

मुझे तो ज़्यादा समय लगना था , क्यूंकी ऐसा तो था नहीं की साड़ी कमर तक उठाओ ,फिर बैठ जाओ और कर लो. मुझे तो पैंटी भी नीचे करनी थी और उसमे लगे पैड को भी सम्हालना था.

विकास – मैडम , अगर आप ऐसे ही देर करोगी तो कोई ना कोई आ जाएगा. इसलिए उस कोने में जाओ और कर लो , मैं यहाँ खड़े होकर ख्याल रखूँगा , कोई आएगा तो बता दूँगा.

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विकास ऐसे बोल रहा था जैसे उसकी मौजूदगी से मुझे कोई फरक नही पड़ता. अरे कोई आए ना आए वो खुद भी तो एक मर्द ही है ना.

मैंने फिर से एक नज़र हर तरफ दौड़ाई. वहाँ थोड़ा अंधेरा ज़रूर था पर वो जगह तीन तरफ से खुली थी क्यूंकी एक तरफ दुकानों का पिछला हिस्सा था. और अगर कोई वहाँ आ जाता तो मुझे साफ देख सकता था. लेकिन मेरे पास कोई चारा नही था . मुझे बहुत शरम आ रही थी पर मुझे उस खुली जगह में ही करना पड़ रहा था.

“ विकास, प्लीज़ इस तरफ पीठ कर लो और कोई आए तो मुझे बता देना.”

विकास – मैडम , अगर मैं इस तरफ पीठ करूँगा तो मुझे कैसे पता चलेगा , कोई उस तरफ से आ रहा है या नही ?

मैं सब समझ रही थी की विकास मुझे देखने का मौका हाथ से जाने नही देगा. मगर मजबूरी थी की उसका यहाँ खड़ा रहना भी ज़रूरी था क्यूंकी कोई आएगा तो कम से कम बता तो देगा.

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कोई और चारा ना देख मैं राज़ी हो गयी. मैंने देखा मुझे कोने में जाते देख विकास की आँखों में चमक आ गयी है. मैं विकास से 10 – 12 फीट की दूरी पर दुकानों के पीछे चली गयी. उससे आगे जाने जैसा नही था क्यूंकी वहाँ पर दुकानों से लाइट पड़ रही थी.

मैंने विकास की तरफ पीठ कर ली पर मुझे वहाँ बैठने में शरम आ रही थी. पता नही विकास को कितना दिख रहा होगा. मैं थोड़ा सा झुकी और दोनों हाथों से साड़ी और पेटीकोट को अपने नितंबों तक ऊपर उठाया. मेरी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका लगते ही बदन में कंपकपी दौड़ गयी. मुझसे रहा नही गया और मैंने एक नज़र पीछे मुड़कर विकास को देखा.

विकास – मैडम , पीछे मत देखो. जल्दी करो.

विकास मेरी नंगी जांघों को देख रहा था और मुझसे ही कह रहा था की पीछे मत देखो. एक झलक मुझे दिखी की उसका हाथ अपने पैंट पर है. शायद एक औरत को ऐसी हालत में देखकर वो अपने लंड को सहला रहा होगा. मैंने और समय बर्बाद नही किया. जल्दी से पैंटी घुटनों तक नीचे की और पैड एक हाथ में पकड़ लिया.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

पैंटी उतरने से विकास को मेरी नंगी गांड का नज़ारा दिख रहा होगा , वैसे मैंने जितना हो सके , साड़ी से उसे ढकने की कोशिश की थी. फिर जब मैं बैठ गयी तो विकास को मेरी बड़ी गांड पूरी तरह से नंगी दिख रही होगी.

मेरे पेशाब करते वक़्त निकलती …….श्ईईई……….की आवाज़ मेरी शरम को और बढ़ा रही थी. मैंने एक बार और पीछे मुड़कर देखा की कहीं कोई आ तो नही रहा है और विकास क्या कर रहा है. लेकिन मुझे हैरानी हुई विकास तो वहाँ था ही नही. उस बैठी हुई पोजीशन में मैं अपने सर को ज़्यादा नही मोड़ पा रही थी.

मेरी पेशाब पूरी होने ही वाली थी और मुझे राहत हुई क्यूंकी वो …… श्ईईई ………..की निकलती आवाज़ से मुझे ज़्यादा शरम आ रही थी. मैं सोच रही थी की विकास कहाँ गया होगा तभी…….

विकास – मैडम, बच के…..

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

मैं शॉक्ड रह गयी , विकास की आवाज़ बिल्कुल मेरे नजदीक से आई थी. अभी अभी पीछे मुड़कर वो मुझे नही दिखा था क्यूंकी वो तो मेरे आगे आ गया था. मैं उसको अपने सामने खड़ा देखकर सन्न रह गयी क्यूंकी आगे से मेरी चूत , मेरी टाँगें और जांघें नंगी थी और अभी भी थोड़ी पेशाब निकल रही थी. विकास मेरी चूत और उसके ऊपर के काले बाल साफ देख सकता था.

हे भगवान ! ऐसा ह्युमिलिएशन , ऐसी बेइज़्ज़ती तो मेरी कभी नही हुई थी. विकास खुलेआम मेरी नंगी चूत को देख रहा था , मेरा चेहरा बता रहा था की मुझे किस कदर शॉक लगा है और मुझे कितनी शरम आ रही है.

विकास – मैडम , मैडम घबराओ नही. असल में आप चींटियों की बांबी पर बैठ गयी हो इसलिए मैं आपको सावधान करने आ गया.

“ तुम जाओ यहाँ से.”

विकास – मैडम, आपने उनकी बांबी गीली कर दी है, अब चींटियां बाहर आ जाएँगी. संभाल कर…..

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

विकास एक कदम भी नही हिला और उसकी नज़र एक औरत को पेशाब करते हुए सामने से देखने के नज़ारे का मज़ा ले रही थी, शायद जिंदगी में पहली बार उसे ये मौका मिला होगा.

मैं अब उसके सामने ऐसे नही बैठ सकती थी और उठ खड़ी हुई जबकि मेरे छेद से पेशाब की बूंदे अभी भी निकल रही थीं. अपने बाएं हाथ से मैंने जल्दी से साड़ी और पेटीकोट नीचे कर ली क्यूंकी दाएं हाथ में तो पैड पकड़ा हुआ था.

विकास ने मुझे उस चींटियों की बांबी से धक्का देते हुए हटा दिया. मैंने देखा वो सही कह रहा था क्यूंकी बहुत सारी लाल चींटियां बांबी से निकल आई थीं. मेरी पेशाब से उनमें खलबली मच गयी थी.

मैं ठीक से नही चल पा रही थी क्यूंकी पैंटी अभी भी घुटने में फंसी थी. मुझे पैंटी ऊपर करने से पहले पैड भी लगाना था.

मैं शरम से विकास से आँखें नही मिला पा रही थी. मुझे अभी भी यकीन नही हो रहा था की विकास ने मुझे ऐसे पेशाब करते हुए देख लिया था. मुझे नही पता की उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था पर वो नार्मल लग रहा था.

चुदाई का आश्रम पार्ट २ – Hindi Sex Kahani

विकास – मैडम , अब हम लेट हो रहे हैं. हमें वापस जाना चाहिए.

“हाँ , मैं भी यहाँ अब और नही रहना चाहती हूँ.”

मैं सोच रही थी की विकास से कैसे कहूं की मुझे अपने कपड़े ठीक करने हैं ,पैड लगाना है.

विकास – ठीक है मैडम, आप यही इंतज़ार करो या दुकानों के आगे. मैं बैलगाड़ीवाले को लेकर आता हूँ.

“नही नही विकास. बैलगाड़ी में नही. मेरे घुटनों और कमर में और दर्द नही चाहिए.”

विकास – लेकिन मैडम……

मैंने उसकी बात काट दी.

“कुछ और आने जाने का साधन भी तो होगा.”

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विकास – मैडम, मैंने बताया ना इस रास्ते में ज़्यादा चोइस नही है.

मेरे ज़िद करने पर विकास बैलगाड़ी के सिवा कुछ और साधन ढूँढने चला गया और मुझसे उस झुमके वाली दुकान के आगे इंतज़ार करने को कहा. मैं सोचने लगी अगर कुछ और नही मिला तो उस बैलगाड़ी में ही जाना पड़ेगा, बड़ी मुश्किल हो जाएगी. एक तो बहुत धीरे धीरे चलती है और कमर दर्द अलग से.

अब विकास चला गया तो मैं पैंटी में पैड लगाकर ऊपर करने की सोचने लगी. तभी मैंने देखा वहाँ पर कुछ लोग आ गये हैं तो मुझे उस जगह से जाना पड़ा.

मैं छोटे छोटे कदम से चल रही थी क्यूंकी पैंटी घुटनों में फंसी होने से ठीक से नही चल पा रही थी. मैंने सोचा कोई और जगह देखती हूँ. जल्दी ही मुझे एक दुकान के पीछे कुछ जगह मिल गयी , वहाँ थोड़ा अंधेरा भी था और कोई आदमी भी नही था. मुझे वो जगह सेफ लगी. मैं एक कोने में गयी और जल्दी से साड़ी और पेटीकोट को कमर तक ऊपर उठा लिया.

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उसके बाद्र पैंटी को भी घुटनों से थोड़ा ऊपर खींच लिया. फिर से मैंने अपनी नंगी जांघों पर ठंडी हवा का झोंका महसूस किया. जैसे ही पैड को पैंटी में चूत के छेद के ऊपर फिट करने लगी , तभी मुझे किसी की आवाज़ सुनाई दी. मैं एकदम से घबरा गयी क्यूंकी मेरी जवानी बिल्कुल नंगी थी. मैंने इधर उधर देखा पर मुझे कोई नही दिखा.

कोई आवाज़ तो मैंने पक्का सुनी थी पर थोड़ा अंधेरा था तो कुछ पता नही चल रहा था. कुछ पल ऐसे ही ठिठकने के बाद मैंने पैड लगाकर पैंटी ऊपर कर ली और साड़ी पेटीकोट नीचे कर ली. फिर मैं अपनी चूचियों के ऊपर पल्लू ठीक से कर रही थी तो मुझे फिर से किसी की आवाज़ सुनाई दी.