होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अरे लाला पहने तो हो इत्ते मस्त माल लग रहे हो…” दूबे भाभी मुस्करा के बोलीं.
“लेकिन इसको पहन के ..अभी मझे गुड्डी के साथ बाजार जाना है फिर रेस्ट हाउस ..फिर घर…” मैं परेशान हो के बोला…अभी तक तो होली का माहौल था लेकिन ये सब चली जायेंगी तो…
” मुझे कोई परेशानी नहीं है अगर आप ये सब पहन के बाजार चलेंगे…जोगीड़े में तो लडके लड़कियां बनते ही हैं..लौंडे के नाच में भी …तो लोग सोचेंगे होगा कोई लौंडा…” गुड्डी हंस के बोली.
रीत ने भी टुकड़ा लगाया ” हे अगर गुड्डी को अप को साथ ले जाने में परेसानी नहीं है तो फिर किस बात का डर…”
” हे मैंने तुमको दिए थे ना प्लीज दिलवा दो…” मैं गुड्डी से गिडगिडा रहा था.
” वो तो मैंने रीत को दे दिए थे बताया तो था ना….” गुड्डी खिलखिलाती हुयी बोली.
” अरे कुछ माँगना हो तो ऐसे थोड़े ही मागते हैं. मांग लो ढंग से ..दे देगी…” संध्या भाभी ने आँख मार के मुझसे कहा.
” एकदम ” रीत ने हंस के कहा.
” तो फिर कैसे मांगूं….”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अरे पैर पड़ो…हाथ जोड़ो…दिल पसीज जाएगा तो दे देगी..अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोलीं.
तो फिर कैसे मांगूं….”
” अरे पैर पड़ो…हाथ जोड़ो…दिल पसीज जाएगा तो दे देगी..अब इसका इतना पत्थर भी नहीं है दिल…” दूबे भाभी बोलीं.
खैर इसकी जरुरत नहीं पड़ी.
मैंने पूछा, ” क्यों दंडवत हो जाऊं…”
और रीत संध्या भाभी और गुड्डी खिलखिला के`हंस पड़ीं.
संध्या भाभी बोलीं, ” क्या बोले…लंडवत…”
और तीनों फिर खिलखिला के हंस पड़ीं.
रीत बोली, “अरे इसके लिए तो मैं तुरंत मान जाती. चल गुड्डी…”
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और गुड्डी को खींचते हुए धडधडाते सीढियों से नीचे उतर गयी.
और उधर चन्दा, संध्या और दूबे भाभी ने मेरा फिर से चीर हरण शुरू कर दिया. साडी, गहने, सब उतार दिए गए लेकिन जो महावर चुन चुन के संध्या भाभी ने लगाया था वो तो पंद्रह दिन से पहले नहीं उतरने वाला था , वही हालत उन दोनों शैतानों के किये मेक अप की थी. इसके साथ मैंने अब देखा, मेरी नाभि के किनारे और जगह जगह दोनों ने टैटू भी बना दिए थे.
हाँ, पायल और बिछुए, दूबे भाभी ने मना कर दिए उतारने से ये कह के की सुहाग की निशानी हैं.
और नथ और कान के झुमके भी नहीं उतरे की ये सब तो आजकल लड़के भी पहनते हैं बल्कि साफ साफ बोलू तो चंदा भाभी ने कहा, जितने चिकने नमकीन लौंडे है सब पहनते हैं , गांडुओं की निशानी है.
मैंने बहोत जोर दिया की महंगे होगे तो हंस के बोली..रीत से कहना…ये सब उसी की कारस्तानी है…लेकिन मैं बताऊं सब २० आने वाला माल है.
तब तक रीत और गुड्डी सीढ़ी पे नजर आयीं..एक के हाथ में मेरी पैंट और दूसरे के हाथ में शर्ट थी.
” हे भाभी किसे २० आने वाला माल कह रही हो …कहीं मुझे तो नहीं…” हंस के रीत ने पुछा.
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” हिम्मत है किसी की जो मेरी इतनी प्यारी सेक्सी मस्त ननद को २० आने वाला माल कह दे…जिसके पीछे सारा बनारस पड़ा…हो…” चंदा भाभी बोलीं.
” पीछे मतलब…मैं तो सोचती थी की इसकी आगे वाली चीज़ मस्त मस्त है….” संध्या भाभी भी रीत को चिढाने में शामिल हो गयीं.
” अरे आगे पीछे इसकी सब मस्त मस्त है…लेकिन इत्ते मस्त गोल गोल चूतड हों तो पीछे से लेने में और मजा आएगा ना…चूंची चूतड दोनों का साथ साथ…क्यों ठीक कह रही हूँ ना मैं…” मेरी और देखते हुए चंदा भाभी ने अपनी बात में मुझे भी लपेट लिया.
रीत की बड़ी बड़ी हंसती नाचती कजरारी आँखे मुझे ही देख रही थीं.
मैं शर्मा गया.
रीत शर्ट ले के मेरी ओर बढ़ी…” चलो पहनो…”
शर्ट तो मेरी ही थी लेकिन रंग बदल चूका था जहां वो पहले झ्क्काक सफेद होती थी अब लाल नीले पीले पता नहीं कितने रंगों की डिजाइन …
मैंने ३४ सी साइज वाली जो ब्रा मुझे पहनाई गयी थी और उसमे भरे रंग के गुब्बारों की ओर इशारा किया…” अरे यार इन्हें तो पहले उतारो.’
” क्यों क्या बुरा है इनमे अच्छे तो लग रहे हो….” गुड्डी ने आँख नचा के कहा.
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” हे बाबू ये सोचना भी मत …मैंने अपने हाथ से पहनाया है इसको हाथ भी लगाया ना तो बस टापते रह जाओगे…” रीत ने जो धमकी दी तो फिर मेरी क्या औकात थी.
” वैसे भी बनियान नहीं है तो शर्ट के नीचे ठीक तो लग रही है…” गुड्डी ने समझाया और मुझे याद आया …
” हाँ मेरी बनयान और चड्ढी…वो…”
” अरे जो मिल रहा है ले लो…तुम लड़कों की तो यही एक बुरी आदत है..एक से संतोष नहीं है..एक मिलेगा तो दूसरी पे आँख गडाएंगे और तीसरी का नंबर लगा के रखेंगे..” रीत बोली और शर्ट पीछे कर लिया.
मैं सच में घबडा गया. इन बनारस की ठग से कौन लगे.
” अच्छा चलो रहने दो..ऊपर से ही शर्ट पहना दो…” मैं हार कर बोला.
” अरे ब्रा पहनने का बहोत शौक है तुम्हे लगता है बचपन से घर में किसकी पहनते थे या लंड में लगा के मुट्ठ मारते थे..लाला…” संध्या भाभी बोलीं. चित भी उनकी पट भी उनकी.
रीत ने शर्ट पहना ली तब मैंने देखा…होली मैं जैसे ठप्पे लगाते हैं ना… बस वैसे…लेकिन…रीत के यहाँ ब्लाक प्रिंटिंग होती थी और वो खुद कम कलाकार थोड़े ही थी…
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रीत और गुड्डी ने मिल के मुझे शर्ट पहनाई. गुड्डी आगे से जब बटन बंद कर रही थी तब मैंने देखा उसपर लाल गुलाबी रंग में मोटा मोटा लिखा था…बहनचोद …इत्ता बड़ा बड़ा की बहोत दूर से भी साफ दिखे और उससे थोड़े ही छोटे अक्षरों में उसके नीचे काही रंग में लिखा था.
..बहन का भंडुआ…होली डिस्काउंट …बनारस वालों के लिए ख़ास ..और सबसे नीचे मेरे शहर का नाम लिखा था और मेरी ममेरी बहन गुड्डी का स्कूल का नाम रंजीता ( गुड्डी) लिखा था. लेकिन सबसे ज्यादा मैं जो चौंका..वो साइड में उंगली से जैसे किसी ने कालिख से लिख दिया हो, लिखा था रेट लिस्ट पीछे…
अबतक मैंने पीछे नहीं देखा था…जब उधर ध्यान दिया तो मेरी तो बस फट ही गयी.
जैसे कोई सस्ते विज्ञापन ..ऊपर लिखा था…
खुल गयी…चोद लो …मार लो…और उसके नीचे …गुड्डी का स्पेशल रेट सिर्फ बनारस वालों के लिए …आपके शहर में एक हफ्ते के लिए…एडवांस बुकिंग चालू…
उसके बाद जैसे दूकान पे रेट लिस्ट लिखी होती है…
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चुम्मा चुम्मी- २० रूपया
चूंची मिजवायी- ४० रूपया
चुसवायी –५० रूपया
चुदवाई- ७५ रूपया
सारी रात १५० रूपया
और सबसे खतरनाक बात ये थी की नीचे दो मोबाइल नंबर लिखे थे…बस गनीमत ये थी की सिर्फ ९ नंबर ही दिए गए थे.एक तो मैंने पहचान लिया मेरा ही था…लेकिन दूसरा…
मेरे पूछने के पहले ही रीत बोली…मेरा है…गुड्डी तो तुम्हारे साथ चली जायेगी तो मैंने सोचा की मैं ही उसकी बुकिंग कर लेतीं हूँ आखिर तुम्हारी बहन है पहली बार बनारस का रस लूटेगी तो कुछ आमदनी भी हो जाय उसकी और आज कल अच्छा से अच्छा माल बना ऐड के कहाँ बिकता है….
” तो उस साल्ली का नम्बर क्यों नहीं दिया…” संध्या भाभी ने पुछा.
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” अरे तो इस भंडुए का क्या होता…मेरे ये कहाँ से नोट गिनते…” गुड्डी ने प्यार से मेरा गाल सहलाते हुए कहा.
” नहीं यार संध्या दी ठीक कह रही हैं….अरे उस के पास भी तो कुछ मेसेज होली के मिलेंगे…मैं तेरा काम आसान कर रही हूँ…जब उसे मालूम होगा की यहाँ कमाई का इतना स्कोप है तो खड़ी तैयार हो जायेगी आने के लिए…तुझे ज्यादा पटाना नहीं पड़ेगा छिनार को…अरे यहाँ ज्यादा लोग है बनारस के लोग रसिया भी होते हैं …डिमांड ज्यादा होगी होली में…टर्न ओवर की बात है…बोल…”
रीत वास्तव में बी काम में पढ़ने लायक थी. उसका बिजनेस सेन्स गजब का था.
और जबतक मैं रोकूँ रोकूँ…गुड्डी ने दनदनाते हुए..नंबर लिखवा दिया और रीत ने आगे और पीछे जहाँ उसका नाम लिखा था उसके नीचे लिख दिया…
तबतक मुझे ध्यान आया…गुड्डी ने तो पूरा ही दसो नंबर बता दिया..
हे हे हे ये क्या किया तुम दोनों ने …मैंने बोला और गुड्डी को भी लगा वो रीत से बोली..हे यार उस का तो पूरा नम्बर लिख गया…एक मिटा दे ना.
रीत सीधी होती हुयी बोली…
“अब कुछ नहीं हो सकता…ये ना मिटने वाली स्याही है”..और ये नमबर सबसे ज्यादा बोल्ड और चटख थे.
पैंट पहनने के लिए मेरा साया उतार दिया गया.
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मैं हाथ जोड़ता रहा” हे प्लीज बनयान नहीं तो कम से कम चड्ढी तो वापस कर दो…”
“बता दूं किसके पास है …” गुड्डी ने आँख नचा के रीत से पुछा.
” बता दो यार अब ये तो वैसे भी जाने वाले हैं…” हंस के अदा से रीत बोली.
” तुम्हारी सबसे छोटी साली के पास है .. गुंजा के पास वो पहन के स्कूल गयी है..कह रही थी की उसे तुम्हारी फील आएगी. और वैसे भी उसने तुम्हे अपनी रात भर की पहनी हुयी टाप और बार्मुडा दिया था..तो क्या सोचते हो ऐसे ही…एक्सचेंज प्रोग्राम था..” गुड्डी ने हंसते हुए राज खोला.
पैंट पे भी वैसे ही कलाकारी की गयी थी..गनीमत था की पैंट नीली थी लेकिन उस पे सफेद, गोल्डेन पैंट से…पीछे मेरे हिप्स पे खूब बड़े लेटर्स में गांडू लिखा था…आगे भंडुआ, गंडुआ और भी बनारसी गालियाँ…शर्ट मैंने पैंट के अन्दर कर ली की कुछ कलाकारी छिप जाय लेकिन गुड्डी और रीत की कम्बाइंड शरारत के आगे…उन दुष्टों ने इस तरह लिखा था की इसके बावजूद वो नंबर दिख ही रहे थे.
” चलो न अब नीचे नहाने बहोत देर हो रही है…और इनको गुड्डी को जाना भी है…” संध्या भाभी बोलीं और जिस तरह से उन्होंने दूबे भाभी का हाथ पकड़ रखा था उन्हें देख रही थीं ..एक अजीब तरह की चमक…और वही चमक दूबे भाभी की आँखों में…. और दूबे भाभी ने रीत को भी पकड़ लिया. ‘ चल तू भी …”
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रीत की निगाहें मेरी ओर गडी थीं.
और दूबे भाभी भी दुविधा में थीं,
” मन तो नहीं कर रहा है इस मस्त माल मीठे रसगुल्ले को छोड़ कर जाने के लिए ” मेरे गाल पे चिकोटी काटते हुए वो बोलीं.
” अरे आएगा वो हफ्ते भर के अन्दर…फिर तो तीन चार दिन रहेगा ना…बनारस का फागुन तो रंग पंचमी तक चलता है…” चंदा भाभी ने उन्हें समझाया.
तय ये हुआ की रीत, चंदा भाभी, दूबे भाभी, और संध्या सब दूबे भाभी के यहाँ नहायेंगी.
गुड्डी को तो अलग नहाना था और उसे आज बाल धो के नहाना था , ज्यादा टाइम भी लगना था की उसके ‘वो पांच दिन’ ख़तम हो रहे थे. इस लिए वो ऊपर चंदा भाभी के यहाँ जो अलग से बाथरूम था उसमें नहा लेगी.
” और मैं…” मैं फिर बोला.
” अरे इनको भी ले चलते हैं ना अपने साथ नीचे..रंग वंग..” लेकिन रीत की बात ख़तम होने के पहले संध्या भाभी ने काट दी.
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” अरे ये तो वैसे ही मस्त माल लग रहे हैं लाल गुलाबी…फिर पहले रंग लगाओ और फिर साफ करो…जा तो रहे हैं अपने मायके…अपनी उस ऐल्वल वाली बहन से साफ करवा लेंगे…”
चंदा भाभी ने मेरे कान में कुछ कहा. कुछ मेरे पल्ले पड़ा कुछ नहीं पड़ा…मेरे आँख कान बने उस समय रीत की अनकही बातों का रस पी रहे थे.
तय ये हुआ की मैं टेरेस पे ही रंग साफ कर लूँगा और उस के बाद चंदा भाभी के बेडरूम से लगे बाथरूम में …
भाभी मुझे टावल साबुन और कुछ और चीजें दे गयीं.
सब लोग निकल गए लेकिन रीत रुकी रही जाते जाते मेरा हाथ दबा के मुस्करा के बोली…मिलते हैं ब्रेक के बाद और फिर वो हिरणी छलांग लगाते हुए सीढ़ी से नीचे उतर गयी.
रह गया छत पे मैं अकेला.
गुड्डी थी तो लेकिन बाथ रूम में और वो बोल के गयी थी डेढ़ घंटे के पहले वो नहीं निकलेगी.
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मैंने सीढ़ी का दरवाजा बंद किया और पहले तो सर झुका के सर में लगे रंग, फिर चेहरे, हाथ पैर के रंग…जो रीत ने सबसे पहले पेंट लगा दिया था उसका कमाल था या जो बेसन वेसन चंदा भाभी ने दिया था उसका…काफी रंग साफ हो गया…मैंने मुंह में एक बार फिर से साबुन लगाया तभी सीढ़ी के दरवाजे पे खट खट हुयी…
मुंह पोछते हुए मैंने दरवाजे के पास पहुँचा …तब तक खट खट तेज हो गयी थी…जैसे कोई बहोत जल्दी में हो…
कौन हो सकता है ये मैंने सोचा, गुंजा …घड़ी की ओर निगाह पड़ी तो उसके आने में तो अभी पौन घंटे से ऊपर बाकी था वो बोल के गयी थी की मेरे आने के पहले मत जाइएगा….बिना सबै छोटी साली से होली खेले…कहीं जल्दी तो नहीं आ गयी और मैंने दरवाजा खोला…साबुन अभी भी आँख में लगा था साफ दिख नहीं रहा था ….
मुंह पोछते हुए मैं दरवाजे के पास पहुँचा …तब तक खट खट तेज हो गयी थी…जैसे कोई बहोत जल्दी में हो…
कौन हो सकता है ये मैंने सोचा, गुंजा …घड़ी की ओर निगाह पड़ी तो उसके आने में तो अभी पौन घंटे से ऊपर बाकी था वो बोल के गयी थी की मेरे आने के पहले मत जाइएगा….बिना सबै छोटी साली से होली खेले…कहीं जल्दी तो नहीं आ गयी और मैंने दरवाजा खोला…साबुन अभी भी आँख में लगा था साफ दिख नहीं रहा था ….
रीत थी.
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पहले तो उसने मेरे चेहरे का साबुन पोछा, मुझे धक्का देके वापस छत पे किया और फिर मुड कर दरवाजे की सिटकिनी छत की ओर से अच्छी तरह से बंद कर दी…
और मेरा हाथ पकड़ के अन्दर चंदा भाभी के कमरे में ले आई और फिर दरवाजा बंद कर लिया.
उसी जगह जहां थोड़ी देर पहले म्यूजिक की धुन पे उसने ‘ अनारकली डिस्को चली’ के ठुमके दिखाए थे और मैंने जम के उसकी ड्राई हम्पिंग की थी…बिस्तर पे लिटा के भी…
अब मैंने उसे ध्यान से देखा…रंग उसका भी काफी कुछ साफ हो गया. लेकिन जिससे मेरी नीचे की सांस नीचे और ऊपर की ऊपर रह गयी थी वो थी उसकी ड्रेस.
रंग लगी ब्रा और उसकी ट्रेड मार्क पाजामी तो गायब हो गई थी. लेकिन जो थी वो जान लेने के लिए काफी थी.
एक छोटा सा सफेद …आलमोस्ट ट्रांसपरेंट बहोत टाईट ..क्राप टाप…
उसकी गहरी नाभी से कम से कम एक बित्ते ऊपर ख़तम हो जारही थी.
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एक तो वो झीना झीना टाप उसके उरोजों को मुश्किल से छुपा पा रहा था. उसका कटाव, उसका दूधिया रंग, उसका उभार , वो किशोर जोबन साफ साफ झलक रहे थे. दूसरे वो इतना छोटा और टाईट था की..उसके भरे भरे , जवानी के सर उठाये कलश , तने तने , छुप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे. और उन गोरे गोरे कबूतरों की चोंच भी साफ नजर आ रही थी. मतलब साफ था मेरे और उसके किशोर उभारों के बीच सिर्फ वो छोटा सा झीना सा टाप था, मुझे दावत देता, ललचाता …उसके गुदाज जोबन ब्रा की कैद से पहले ही आजाद थे.
पाजामी की जगह एक छोटी सी शोर्ट थी… एक या डेढ़ बित्ते की कसी कसी, ज्सिअमे न उसके नितम्ब छलक रहे थे, आजाद होने को बेचैन थे,
कमरे में घुसते ही उसने पीठ से मार के दरवाजा बंद कर दिया था. मुझे मालूम था की ये स्प्रिंग लाक है और अब बाहर से नहीं खुल सकता.
मैंने उसे बाहों में लेने को कोशिश की तो छलक कर निकल गयी…और सट से कमरे के दूसरे कोने में…उसकी हिरणी सी आँखे चारो ओर कुछ ढूंढ रही थी. वो परेशान भी लग रही थी मुस्करा भी रही थी.
” हे क्या ढूंढ रही हो….” मैंने उससे पूछने की कोशिश की.
उसने अपने रसीले होंठों पे उंगली लगा के शशश श कर धीमे बोलने का इशारा किया और फुसफुसा कर कहा…
” चंदा भाभी …उन्होंने बोला था की…उनके कपडे…यहाँ…लेकिन दिख नहीं रहे हैं…”
अब मेरी चमकी.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
देर से ही सही अब समझ में आया की चंदा भाभी ने जो मेरे कान में बोला था क्यों बोला था…क्या बोला था…
” रीत को मैं कपडे लेने अपने कमरे में भेजूंगी…लेकिन कपडे वहां होंगे नहीं…बाकी तुम जानो…”
” कपडे तो यहाँ दिख नहीं रहे हैं ..सिवाय ये जो सेक्सी टाप और हाट पैंट तुमने पहन रखी है…” मैंने भी उसकी तरह फुसफुसाते हुए बोलते हुए आगे बढ़ा …
लेकिन मेरे पकड़ने से पहले वो छटक कर मेरी पहुँच से दूर…लेकिन…पलंग से एक दम सट कर खड़ी हो गयी…जैसे कोई चिड़िया खुद उड़ के जाल में आ जाए…
और अब मैं जो उसके पास आया तो उसके पास आया तो उसके पास भागने की जगह बची भी नहीं थी.
वो खुद ब खुद मेरी बांहों के घेरे में आ गयी.
बस अब वो इतनी करीब थी की मैं उसके दिल की हर एक धड़कन सुन सकता था…मैंने उसके कान में बोला..
बहोत हुयी अब आँख मिचौली …
खेलेंगे हम रस की होली…रस की होली… रस की होली…
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मेरे होंठ उसके होंठो से इंच भर भी दूर नहीं थे…तितलियों की तरह वो फडफडा रहे थे.
” हे चन्दा भाभी, दूबे भाभी क्या कर रही हैं …तुम लोग तो साथ साथ…” मैं पुछा.
उसकी बाहें भी लता की तरह मेरी पीठ पे लिपट गयीं थीं.
“होली खेल रही हैं…” मुस्करा के वो सारंग नयनी बोली.
“मतलब …” मेरी कुछ समन्झ में नहीं आया.
मेरे सीने पे मुक्के मारती वो बोली…
” पढ़ लिख के किसी को अकल नहीं आ जाती…इसके सबसे बड़े नमूने तुम हो…अरे बुद्धू जो छत पे होली थी वो तो सिर्फ ट्रेलर था…असली होली तो अब हो रही है नीचे बाथरूम में..”
मेरे अभी भी कुछ पल्ले नहीं पड़ा…
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” ऊपर तो रंग की होली हो रही थी…नीचे देह की होली हो रही है…जिस डिल्डो से तुम बच गए न…अब संध्या भाभी उसे लील रही हैं…और दूबे भाभी घोंटा रही हैं.” वो आँख नचा के बोली.
अब मुझे समझ में आया की संध्या भाभी को इत्ती जल्दी क्यों मची थी…मैंने अगला सवाल किया…
” और चंदा भाभी…”
” उनकी उंगलियां काफी हैं..और आज तो उनका पूरा मुट्ठी का प्लान है…” वो मुस्करा के बोली.
” और तुम्हारा …” मेरे सवाल जारी थे..
” हे मिल गया…जो चीज चंदा भाभी ने बोली थी…” बात बदलते हुए उस शैतान ने कहा और हाथ सीधे मेरे टावेल पे ..
वो खोल पाती उसके पहले मैंने उसे हलका सा धक्का दिया…कुछ धक्के से कुछ खुद …वो सीधे बिस्तर पे….
हंसती खिलखिलाती .
“नहीं मैंने कुछ और पुछा था….” बात को मैंने वापस ट्रैक पे लाने की कोशिश की और साथ में एक हाथ से टावेल संभाली.
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” वो…आँख नचा के मुस्करा के वो बोली…वो मुझे प्लास्टिक नहीं पसंद है…लेकिन मेरे पास तो असली वाला है.” और उसकी उंगलियाँ टावेल से सीधे तने हुए तम्बू…बल्कि उसके अन्दर के बम्बू पे आ गयीं.
” तो दे दूँ पूरा अन्दर तक…” उसकी आँखों में आँखे डाल के मैंने पुछा.
“धत्त…” अब वो किशोरी…छुई मुई हो गयी. वो समझ गयी थी की बात अब बात से आगे बढ़ गयी है, और ..कुछ भी हो सकता है.
पता नहीं बात बदलने के लिए या मुझे बताने के लिए वो बोली,
” दूबे भाभी, चंदा भाभी को घंटे भर तो लगेंगे ही.”
तभी मुझे कुछ खटका…लगा..कहीं…सेफ्टी फर्स्ट..
” हे और वो लोग तुम्हे मिस तो नहीं करेंगी,”
वो हलकी सी हंसी.
१०० जलतरंग एक साथ बज गए. ” मिस करना होता तो चंदा भाभी इस तरह …उन कपड़ों के लिए मुझे यहाँ भेजतीं जो..उन्ही के पास हैं…” रीत मुस्कराके बोली.
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अब मैं समझा…चंदा भाभी ने मेरा तो फायदा कराया ही …अपना भी…और रीत का भी…
ठीक तो है एक तीर से तीन शिकार ..
ठीक तो है एक तीर से तीन शिकार ..
मेरी और चमकी …और गुड्डी भी बाथरूम में एक घंटे के लिए…गुंजा भी अभी टाइम है उसको स्कूल से आने में…
तो इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा..
अब तो भरतपुर लुट ही जाना चाहिए…
मेरे होंठ उसकी और बढे, , मुस्कराते हुए…
वो भी बात समझ गयी थी..वो मुस्कराई…
लेकिन लड़की हो, हसीन हो शोख हो…तो अदा आ ही जाती है…
जैसे कोई भौंरा जब किसी कली पे बैठने वाला हो और उसके पहले हलकी सी हवा शाख को जुम्बिश दे दे …
बिलकुल वैसे उसने अपनी गर्दन मोड़ ली…
हे दो ना,… मैं हलके से बोला…मनाते हुये,
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उसकी रसीली आँखे हाँ कह रही थीं…उसकी सारी देह हाँ कह रही थी…
होना है तो हो जाने दे …
लेकिन लाज का पहरा अभी भी उसके होंठो पे था.
वो बुदबुदाते हुये न न ..अभी नहीं फिर…कह रही थी. और मुझे उससे हाँ सुननी थी.
मैंने दोनों हाथों से उसके सर को पकड़ा, सीधा किया और फिर जैसे ही होंठों को उसके होंठो के पास ले गया…
उसने होंठ भींच लिए.
उसकी आँखों में शरारत नाच रही थी. मैंने एक उंगली को अपने होंठो से गीला किया और फिर रीत के गुलाबी होंठो पे रख के हलके हलके सहलाने लगा.
उसकी झील सी आँखों में देखते हुये ..मैंने हलके से गुनगुनाया…
तडपाओगे…तड़पा लो…हम तड़प के भी तुम्हारे गीत गायेंगे
तडपाओगे…तड़पा लो…हम तड़प के भी तुम्हारे गीत गायेंगे
ठुकराओगो ठुकरा लो हम ठोकर खा कर भी तुम्हारे गीत गाएंगे
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उस के मन के बंधन कुछ ढीले हुये. मैंने प्यार से उसके इअर लोबस को हलके से किस किया…और गाना आगे बढाया…
देख निशाने पर रखा है कब से मैने दिल
तीर चला क्या सोच रहा है ओ भोले क़ातिल
क्या पता मौत ही प्यार की हो मंज़िल
और तुरंत उसकी रतनारी आँखों में गुस्सा छलक आया. मेरे मुंह को उसने अपने हाथ से कस के बंद कर दिया…और बोली..
“ऐसे बोलना भी मत…बल्कि सोचना भी मत. अब इस लडके पे तुम्हारा कोई हक़ नहीं है…”
ये कह के उसने मुझे बांहों में खुद भींच लिया..
मैंने उसके गालों के पास होंठ ले जा के बोला..
” लेकिन तुम तडपाती हो…”
वो शोख मुस्करायी और बोली,
” वो तो मैं करुँगी…तडपाना मेरा हक़ है और तड़पना तुम्हारी किस्मत ”
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और फिर चेहरा घुमा लिया…मेरे होंठो के दायरे के बाहर..
मैंने एक बार फिर कोशश की..मुझे मालुम था की उसे गुदगुदी बहोत लगती है मैंने वही किया उसकी कांख में.. गोरी गोरी कांख साफ थी एकदम चिकनी बस एक दो बाल थे सोने के तार की तरह..मेरी उंगलियाँ वहीँ पहुंची…वो हंसी, खिलखिलाई, हंस के दुहरी हो गयी..लेकिन बोली फाउल…ये नहीं चलेगा…
मेरे तरकश का एक और तीर बेकार चला गया…
वो मुझे देख रही थी, मेरी परेशानी देख रही थी…समझ रही थी मैं नौसिखिया हूँ और मुस्करा रही थी.
मैंने एक बार फिर कोशिश की …उसके होंठों के पास होंठ ले जाने की ..अबकी वो खिलखिला के हंस पड़ी…
और मैं गुस्सा हो गया…थोडा सच्चा थोडा नाटक…लेकिन करता भी क्या मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वक्त गुजरता जा रहा था….
मैंने कितनी कहानी में पढ़ा था की बस लड़का लड़की को पकड़ता है एक दो किस करता है, कपडे उतारता है …और चालू हो जाता है…लड़की उह आह करती है…फिर चोदो चोदो बोलती है…लड़का लावा उसके अन्दर छोड़ देता है दो तीन पैरा ग्राफ में कहानी ख़तम हो जाती है …
लोग कमेंट्स में हाट हाट लिखते हैं कभी स्माइली ठोक देते हैं कभी नाईस लिख देते है ..
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लेकिन यहाँ तो …
लेकिन रीत कहानी की हिरोइन नहीं थी सचमुच की थी.
मैं उठ गया.
अब वो भी समझ गयी गड़बड़ हो गयी.
रीत ने अपनी बांहों में मुझे भर के अपनी ओर खिंचा और बोली…
हे गुस्सा हो गए क्या…
सच में मेरा मूड गड़बड़ लग रहा था…एक तो मैं पहली बार…मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था डर भी लग रहा था की कहीं गड़बड़ ना हो जाय…तो रीत क्या सोचेगी…फिर वो इत्ती साफ्ट साफ्ट थी पोर्सलिन की मूरत की तरह की हाथ लगते है गन्दी हो जाय…और ऊपर से रीत भी…मैं जान रहा था की मन उसका भी कर रहा है लेकिन ये भी क्या…
बोल ना …और उसने मुझे.खींच. के अपने करीब कर लिया..
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
गुस्सा हो गए क्या…वो फिर बोली.
और नहीं तो कया इत्ते देर से एक …किस के लिए मुंह बना के मैं बोला…
उसने मुझे बांहों में भींच लिया और बोली…
अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना…
छोटे से कसूर पे ऐसे हो खफा…
और गर्दन उठा के रीत ने मुझे किस कर लिया…
सूरज चाँद सब रुक गए
धरती थम गयी………
वक्त ठहर गया….. और हम दोनों पागल हो गए.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
कौन किसको किस कर रहा था कुछ पता नहीं.
कौन किसकी बांहों में था इसकी किसी को सुध नहीं…
न मैं था न वो थी…बस हम थे…एक सांस एक जान…
मैंने रीत की मांग चुम्बन से भर दी…
काली रात के घने जंगल की तरह उसके गेसुओं के बीच…मेरे होंन्ठो ने प्रीत के तारों की आकाश गंगा सजा दी.
मेरे होंठ सपनों से लदी उसकी पलकों पे रुके और चारो और आसमान में इन्द्रधनुष खिल उठे.
उसकी पूरी देह फागुन हो उठी.
मेरी पूरी देह गुलाल हो उठी.
मेरे होंठो ने रीत की पलकों को सील कर दिया. उसकी कजरारी आँखों ने मुझे वैसे ही पी लिया था और पलकें बंद हो के सपनों में खो गयीं थीं.
मेरे होंठ फिर भी बार बार उन कमल नयनों को चुमते रहे दुलारते रहे…और फिर…
रीत के गालों पे गुलाब खिल उठे.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
वो मुझे चूम रही थी मैं उसे..मुश्किल था इन होंठो की लड़ाई में किसकी जीत होगी ये पता करना .
जीत उसी की हुयी जिस की होनी थी…रीत की …चार आँखों के खेल में जो जीत चूका था …उसी की…
गर बाज़ी इश्क की बाजी है जो जी चाहे लगा दो डर कैसा…
जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाजी मात नहीं….
मेरे दोनों होंठ उस के रसीले होंठों के कब्जे में थे. वो चूम रही थी चूस रही थी.
और मैं भी…लेकिन मेरी जीभ ने उसके मुंह में सेंध लगा ली.
क्या मुख रस था…अमृत…थोड़ी देर मेरी उसकी जीभ में छेड़छाड़ हुयी, खिलवाड़ हुयी…फिर उसके मखमल से मुलायम मुंह ने उसे पहले हलके हलके फिर कस कस के इस तरह चूसना शुरू किया.
कित्ता मजा आया मैंने बता नहीं सकता…एक तो जीभ को सक करने का आनंद ..डीप फ्रेंच किस के बारे मैं सुना था पढ़ा भी था लेकिन इस तरह…और उस भी बढ़ के ये सोच के ..अगर इसी तरह…क्या पता मेरी किस्मत हो..रीत मेरे ‘उसे’ मेरे जंग बहादुर को भी किस कर ले सक कर ले…मेरे मन की तो जो हालत हुयी सो हुई…नीचे भी तनाव के मरे बुरा हाल था.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
होंठों को तो रीत रस मिल रहा था…लेकिन मेरे हाथ भी कुलबुला रहे थे..
.होली खेलते मेरी उंगलियों ने छुआ भी था दबाया भी था और सहलाया भी था…लेकिन जो मजा खुल के करने में है…और रीत थी भी ऐसी…कोई मैन चेस्टर तो थी नहीं…
उसके गदराये गुदाज उभार…कोई भी बात उससे करता लेकिन निगाह उसके उरोजों पे चिपकी रहती…और छोटी सी कुर्तीनुमा टाप के नीचे वो चिप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे…मेरे दोनों हाथों ने कुर्ती के ऊपर से ही उसके उरोजों को दबोच लिया…थोडा प्यार से और थोडा कचकचा के….लेकिन वो झीनी दीवार भी उन्हें बर्दास्त नहीं हुई और अगले पल वो टाप नुमा कुर्ती बाहर थी.
अब एक बार फिर से जंग होंठों और हाथों के बीच थी…उन पूर्ण कमलों को उन किशोर उभारों को छु लूं, दबा दूं कस के , सहला लूं या चूम लूं कस कस के, चूस लूं वो निपल…
मामला बराबरी पे छूटा. लेकिन रीत रीत थी. जैसे हो मेरे हाथों ने उसके टाप को हटाया…उसके पैरों ने वही काम मेरी टावेल के साथ किया. बस गनीमत यही थी की टावेल की नाट तो छूट गयी लेकिन बस वो मेरे ऊपर पड़ी रही. मै जानता था की जरा सा भी इधर उधर सरका तो बस टावेल सरक के नीचे.
लेकिन अब किसको क्या परवाह थी.
मेरे एक हाथ ने रीत के मस्त उभारों को दबा रखा था, वो उसे छु रहे थे, प्यार से सहला रहे थे, हलके हलके दबा रहे थे…
और होंठ उन यौवन की उठती हुयी पहाड़ियों के नीचे कभी छोटी छोटी किस करते, कभी लिक कर लेते.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
रीत के उभार…बहोत नाम हैं इनके…उरोज, कुच,जोबन, और अनगिनत उपमाएं…सोने के प्याले, खिलते कमल, जवानी के खिलोने..लेकिन उनमें से कोई भी रीत के उरोजों के लिए पर्याप्त नहीं था.
बस ये सुख मेरी उँगलियों को था, मेरे होंठों को और मेरी आँखों को था की वो उन छलकते हुए रस के प्यालों को बिना रोक टोक चख सकें और छक सकें.
बहोत हुयी अब आँख मिचौली…अब न तो मेरे हाथ मेरे काबू में थे न मेरे होंठ…
कस कस के अब उसकी चून्चियों से मेरे हाथ खेल रहे थे दबा रहे थे कभी उसके कड़े निपल को फ्लिक कर देते कभी दो उँगलियों के बीच पकड़ के दबा देते तो कभी पिंच कर देते…
मेरी जुबान भी अब कस कस के, उन कड़ी गुदाज गोलाइयों को चाट रही थी कभी बेस से सीधे निपल के पहले तक कभी चूंची पे गोल गोल …और कूछ देर के बाद मेरे होंठ निपल के चारों ओर चुम्बन की वर्षा कर रहे थे…लेकिन निपल छोड़ के. उधर एक हाथ ने कस के रीत के मस्त उभार को पकड़ कर दबा रखा था और दूसरा…तरजनी और अन्गुंठे के बीच, निपल को रोल कर रहा था. मेरी जुबान पीछे क्यों रहती उसने भी लम्बे लम्बे लिक…कड़े कड़े लगभग इंच भर के निपल पे नीचे से ऊपर करने शुरू कर दिए.
रीत सिसक रही थी, अपने नितम्ब हलके हलके उचका रही थी. बड़ी बड़ी दोनों आँखे बंद थी और उसके चेहरे पे जो ख़ुशी थी वो बयां नहीं हो सकती. बस इसी ख़ुशी को तो देखने के लिए मैं बेचैन था…और मैं भी..अब मेरे होंठ जोर जोर से उसके निपल चूस रहे थे, फ्लिक कर रहे थे और अभी हलके से दांत भी लगा देते तो वो जोर से सिसक उठती.
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हाथ अब नीचे की ओर सरक रहे थे..एक उसके पान के पत्ते की तरह चिकने पेट को प्यार से छु रहा था सहला रहा था और दूसरे ने उसके शार्ट कम पैंट को पकड़ के नीचे सरकाना शुरू कर दिया.
रीत ने अपनी आँखे खोल दी और बिना कहे जैसे वो मुझे बरज रही हों, देखा.
मैंने अपने तौलिये की ओर इशारा करते हुए बताने की कोशिश की तुमने भी तो मुझे पूरा ही..तो वो बोली…
” हे तुमने मेरा एक उतारा ( टाप) तो मैंने भी तुम्हारा एक…( टावेल)
रीत से कौन जीत सका था जो मैं बहस करता..हाट पैंट के ऊपर से ही मेरे हाथों ने उसे छूना, सहलाना शुरू कर दिया और वो पिघलने लगी. अपने आप उसके केले के तने ऐसी चिकनी रेशमी जांघे अलग अलग हो गयीं. और उसके बाद जो उसने भींचने की कोशिश भी तो मेरी हथेलियों ने वहां सेंध लगा दी थी.
दूसरा हाथ फिर ऊपर आ चूका था होंठो की सहायता करने और अब उसकी चून्चियों की जम के मसलाई रगड़ाई चालु हो गयी..
मजे से जोश से वो भी पत्थर की तरह कड़े हो गए थे..कभी मेरे होंठ उसके एक निपल को चूसते, कभी दूसरे को और कभी एक से दुसरे तक मेरी जीभ फ्लिक करती. उसके रसीले उरोजों पे एक इंच भी जगह नहीं बची होगी जहाँ मेरे होंठो ने उसे चूमा ना हो..मेरी जीभ ने लिक ना किया हो..लेकिन रीत भी चुप नहीं बैठी थी. वो कस के के मुझे भींच रही थी, अपने गदराये उभारों को मेरे सीने से रगड़ रही थी और जब मेरे दांत हलके से भी उसके निपल पे या चूंची पे हलके से भी बाईट करते वो अपने नितम्ब उचकाती और कस के अपने लंबो नाखूनों से मेरे पीठ को खरोंच लेती. रंग के निशान उतरे न उतारे..इन खरोंचों के निशान जल्द नहीं उतरने वाले थे.
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बचपन में हम एक गेम खेलते थे…जिसमें आपकी गोट जिस खाने पे पहुँच गयी वो खाना आपका हो गया…पहले उसकी पलकें, कजरारी आँखे, फिर होंठ, गाल और अब उरोज मेरे कब्जे में आ चुके थे.
लेकिन अभी भरतपुर का किला तो बचा ही था. होंठ सरकते हुए नीचे पहुंचे और एक पल के लिए उसके नाभि के कूप पे विश्राम किया. मेरी जीभ ने उसकी गहार्यी नापी, हलके हलके किस किया..मेरी हथेली जो रीत की जाँघों के बीच थी, वो कस कस के वहां सहला रही थी, रगड़ रही थी.
रस की एक बूँद की परछाई उस की शार्ट पे दिख रही थी. मैंने अब और देर ना कर दोनों हाथों से उसकी जांघे फैलायीं और मेरे होंठ शार्ट के बीच ठीक सेंटर पे , आज होली में उँगलियों ने तो पजामी के अन्दर और बाहर दोनों ओर से खूब रस लिया था लेकिन होंठो का तो ये पहला ही मौका था…और मैंने एक कस के बड़ी सी चुम्मी वहां ले ली. ..और मैंने एक कस के बड़ी सी चुम्मी वहां ले ली. और उसके बाद दूसरी, तीसरी,चौथी…वहीँ मुंह लगा के मैं सक करने लगा…शार्ट्स के उपर से ही ..
रीत जाल में आई मछली की तरह तडफड़ा रही थी, उछल रही थी, मचल रही थी…अपने दोनों हाथों से मेरे सर को दबोचे हुए थी बार पुश कर रही थी..और मैंने वही किया जो मुझे बहोत पहले कर देना चाहिए था…दोनों हाथों से शार्ट मैंने पकड़ के खींच दी और वो फर्श पे…रीत जब तक कूछ बोले चीखे चिल्लाये गालिया दे माँ बहनों तक पहुँचे मेरे होंठो ने उसके होंठ को गिरफ्तार कर लिया. वो पहले ही रीत के शार्ट के ऊपर छलकते सुधा रस से भीगे थे.
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मेरे दोनों हाथों ने उसके सर को कस के थोडा तिरछे कर के पकड़ लिया था…( ज्सिअसे उसकी लम्बी सुतवां नाक रास्ते में ना आये…) और अब उसका निचला रसीला गुलाबी होंठ मेरे होंठों के बीच में…पहले तो होंठ बस मिले, एक छुअन की चाहत के साथ और फिर गले ही पल ना जाने कब से बिछुड़े दोस्तों की तरह
गलबाहियां डाल के..मेरे होंठों के बीच उसके होंठ भींचे हुए थे मैं कस कस के उनका रस पान कर रहा था और फिर हलकी सी उसकी जुबान बाहर आई और मेरी जीभ ने उसे छु भर लिया..एक बार दो बार..और फिर एक बार मेरी जीभ उसके मुंह में…जैसे मैं अपना लिंग उसकी चूत में घुसेड रहा हूँ ..पहले हल्का हल्का फिर पूरा बस उसी तरह से…और वो भी उसी तरह से उसे अपने मखमली मुंह के अन्दर भींच रही थी, चूस रही थी.
मेरा एक हाथ उसके गोरे गुलाबी कपोलों को सहला रहा था और दूसरा उन उभारों का रस लूट रहा था जिसके मात्र एक दर्शन की चाह में सारे बनारस के लौंडे परेशान रहते हैं. हम दोनों की देह लता की तरह गुथी हुयी थी. रीत बार बार कस के मुझे अपनी लम्बी बाहों में भींच रही थी. और उधर मेरे पूरी तरह बेताब तन्नाया जंगबहादुर भी रीत की परी से दोस्ती यारी बढ़ा रहा था, छु रहा था, ठोकर मार रहा था.
सांप अब फुफकार रहा था.
लेकिन मेरा हाथ एक बार फिर बीच में आगया. मेरी हथेली उसके जांघो के बीच पहुँच गयी. रीत ने अपने आप जांघो को सिकोड़ने की कोशिश की लेकिन ता तक बहूत देर हो चुकी थी. मेरी हथेली का पिछला भाग कस कस के उसकी परी को दबा रहा था, मसल रहा था. वो अन छुई कच्ची कली काँप रही थी , रस से गीली हो रही थी. एक दम मक्खन मुलायम थी…रेशम से भी चिकनी ..
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और फिर मेरी तरजनी और मझली उंगली ने रीत के चूत के पपोटों को भगोष्ठों को पहले हलके हलके फिर कस के दबाना शुरू कर दिया. उसकी चिकनी चमेली , पंखुडियां काँप रही थी जैसे सुबह सुबह मलयानिल के झोंके से कलियों के कपोल लरज जाएँ…मेरा अंगूठा भी हरकत में आ गया और वो भी चूत के दरवाजे पे हलके हलके दस्तक देने लगा. मैंने मझली उंगली की टिप घुसाने की कोशिश की लेकिन उस कच्ची कली की, कुँवारी किशोरी रीत की चूत इतनी कसी..उसकी जांघे पूरी तरह फैली थीं…मैंने बहोत जोर लगा कर किसी तरह टिप घुसाई. मैं समझ रहा था उसे दर्द हो रहा है लेंकिन मेरी खातिर वो दर्द की हर एक बूँद पी गयी. उस उंगली की अगल बगल की दोनों उंगलियाँ चूत के पपोटों को अभी भी हलके सहला रही थी मना रही थीं.
पल दो पल के लिए मेरी अन्दर घुसी उंगली शांत रही और उसके बाद धीमे धीमे गोल गोल मैं घुमाने लगा.
रीत की साँसे गहरी लम्बी होती जा रही थी. वो आधी खुली पलकों से देख रही थी.
थोड़ी उंगली मैंने और अन्दर की…दूसरे पोर तक और टेढ़ी चम्मच की तरह चूत के अन्दर, हलके से बाहर की और उचकाया, रीत के पेट की दिशा में ही..बहोत ध्यान से मैं टिप पे महसूस कर रहा था…कल रात चंदाभाभी की पाठशाला में जो सीखा था.
.मैं बेताब था…साथ में बाहर तरजनी और दूसरी ऊँगली, चूत के पपोटों को रगड़ मसल रही थीं. ‘मिल गया…” मैंने सोचा…चूत की अंदरूनी दीवार में..थोडा सा हिस्सा जरा सा रफ था ..बहोत हल्का सा खुरदुरा…मैंने टिप को हलके से दबाया और रीत की आँखों की ओर देख रहा था.. एक अजीब सी मस्ती पागलपन छा गया उनमें ..फिर मैंने हलके हलके उसे टैप करना फिर रगड़ना शुरू किया…इतना काफी था…रीत पागल हो उठी ..
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” ओह नहीं …प्लीज…क्या करते हो…ओह्ह आह्ह्ह्ह नहीं छोड़ दो ..निकाल लो नहीं बर्दाश्त हो रहा है…प्लीज प्लीज ..हाँ नहीं…करो न रुको मत…”
मैं समझ गया मैंने जी स्पोट हिट कर लिया…ये रसीली सेंसुअस लड़कियों की सबसे बड़ी निशानी है और उनको मजा देने की चाभी…
मैं एक पल उसे दबाता दूसरे पल रुक जाता…फिर मैंने तिहरा हमला शुरू कर दिया…मेरे होंठों ने कस कस के उसके निपल्स को चूसना, चुभलाना, हलके हलके दांत से काटना शुरू कर दिया…मेरा अंगूठा अब उसकी क्लिट पे था…एक क्षण वो उसे दबाता फिर कभी साइड से फ्लिक कर देता…और अन्दर ऊँगली की टिप जी स्पोट को रह रह के सहला देती रगड़ देती. मैंने रीत की चूत में उंगली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी
रीत अपने चूतड मेरी उंगली के साथ साथ गोल गोल घुमा रही थी, पटक रही थी. क्लिट उसकी फूल गयी थी..अब तेजी से चूत में ऊँगली अन्दर बाहर हो रही थी…वो हांफ रही थी लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी उत्तेजना के सागर में गोते खा रही थी..उसे दिखा के मैंने उंगली चूत से बाहर निकाल ली और चूत रस में लिपटी उंगली को अपने होंठों में लगा के चाट लिया.
” गंदे…छि…”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
वो मुस्कराते हुए बोली. उसके चूत रस को मैंने एक बार फिर अपने होंठों पे लिथड लिया और कस के उसके होंठो पे रगड़ दिया.
” गंदे…छि…”
वो मुस्कराते हुए बोली. उसके चूत रस को मैंने एक बार फिर अपने होंठों पे लिथड लिया और कस के उसके होंठो पे रगड़ दिया.
और वहां से हट के अब सीधे मेरे होंठ रीत के कांपते, रस से गीले निचले होंठो पे…पहुँच गए. रीत न्र अब खुद अपनी जांघे फैला रखी थीं.
पहले एक छोटी सी किस्सी और उसके बाद ढेर साड़ी छोटी छोटी किस्सी, चूत के निचले हिस्से से सीधे क्लिट तक, बिना क्लिट को छूए और एक दो बार के बाद जीभ भी मैदान में आगयी. मैंने जीभ की टिप से चूत की दरार को फैलाया और थोडा सा लिक किया और फिर चूत और गांड के बीच की जगह से…पहले २-३ बार सिर्फ टिप से…क्लिट तक लिक किया. रीत सिहर रही थी कांप रही थी. मेरी जुबान ने अब टिप की बजाय पूरी जीभ से लप लप उसकी चूत चाटना शुरू किया…रीत से अब नहीं रहा जा रहा था…उसने जांघो को सिकोड़ने की कोशिश की लेकिन मेरे दोनों हाथ पहले से अलर्ट थे , ऊन्होने उसे कस के पकड़ रखा…
” हे क्या करते हो वहां पे इस तरह…छि…छोड़ो ना…प्लीज …” रीत कुनमुना रही थी, कसमसा रही थी.
” हे तो क्या सिर्फ तुम और तुम्हारो सहेलियां ही लालीपॉप का मजा ले सकती हैं…” आँख उठा के मुस्करा के मैंने रीत को चिढाया और फिर एक बार…लेकिन अब की मेरे दोनों होंठों से हलके से रीत की रसीली चूत को दबोच लिया. पहले हलके हलके फिर जोर से वो चूस रहे थे. एक अलग तरह का टैंगी स्वाद…रीत के दोनों हाथों ने कस के मेरा सर पकड़ रखा था…और वो नीचे से अपने चूतड भी उछाल रही थी.
रीत के नितम्बो के नीचे मैंने एक मोटा सा तकिया लगा दिया और फिर उँगलियों से, उसके चूत की फांकों को इस तरह फैला दिया जैसे दसहरी आम की फांके…और फिर जैसे आम चाटते चूसते हैं बस उसी तरह…जोर जोर से बिना रुके…बीच बीच में मेरे हाथ रीत की गदराई जवान चूंचियों का भी रस ले रहे थे. अभी तक मैंने उसके क्लिट को जुबान से नहीं छुआ था. रीत रस में व्याकुल हो रही थी, कभी वो मेरे सर को खुद पकड़ के अपनी चूत पे रगड़ती तो कभी मेरे होंठों को रोकने की कोशिश करती…उसके निपल एकदम कड़े थे. क्लिट भी खूब रस भरी कड़ी हो गयी थी जो इस बात की गवाह थी को वो कितनी मस्ती में चूर हो रही है.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मैंने होंठ को चूत से हटा लिया और फिर उसको क्लिट के ऊपर हवा में, थोड़ी उंचाई पे रख कर…जुबान के टिप से उसकी कड़ी मस्त क्लिट को पहले तो सिर्फ छुआ, छेड़ा और फिर एक बार में ही उसे अपने प्य्यासे होंटों के बीच गप्प कर लिया और हौले हौले चूसने लगा.
रीत मस्ती से पागल हो रही थी. मैं समझ गया गियर बदलने का यही मौका है. एक बार फिर मैंने तिहरा हमला बोल दिया…. .मेरी मंझली ऊँगली रीत की चूत की गहराई नाप चुकी थी…वो एक बार फिर अन्दर घुसी…और मुड़ी हुयी उंगली की टिप सीधे जी स्पोट पे…मैं बिना रुके वहां सहला रहा था, छेड़ रहा था कबही टैप करता कभी रगड़ देता…रीत का उत्तेजित क्लिट मेरे होंठो के बीच था और अब मैं बिना रुके कभी उसे हलके से दबाता कभी चूसता और साथ मैं मेरे हाथ कस कस के रीत की गदराई गुदाज चूंची दबा रहे थे, उसके निपल को रोल कर रहे थे पिंच कर रहे थे.
रीत अच्छी तरह गीली हो गयी थी…और हालत तो मेरे लंड की भी ख़राब थी. बस लग रहा था एक दो मिनट और ये मैं करता रहा तो बस…तवा गरम था अगर अब भी मैं हथौड़ा ना मारता… तो … तो …रीत की गोरी लम्बी टाँगे उठा के मैंने अपने कंधे पे रख ली और जंग बहादुर सीधे रीत की परी के ऊपर…जो बाहें फैलाए उसका स्वागत काने को बेताब थी. लेकिन तभी मुझे याद आया…रीत मेरे लिए तो कुछ भी कोई भी दर्द सह लेगी लेकीन मैंने इधर उधर नजर दौडाई कुछ भी मिल जाय…वैसलीन, क्रीम…और मुझे रात की बात ..चंदा भाभी के साथ…मैंने तकिये के नीचे हाथ डाला तो वैसलीन की बाटल वहीँ थी.
ढेर सारा अपने लंड के ऊपर और फिर एक उंगली में लगा के रीत की परी के अन्दर…मेरे अंगूठे और तरजनी ने रीत की चूत को फैला रखा था… …मेरा मोटा गुस्सैल पहाड़ी आलू ऐसा सुपाडा, वहां मैंने सेट करने की कोशिश की ..वो सेट क्या होता हाँ बस मैंने उसे सटा दिया…और दोनों हाथो से उसकी कमर पकड़ के ..पूरी ताकत से एक धक्का मारा…जो मुझे डर था वही हुआ…रीत ने कस के दांत से अपने होंठ भींच रखे थे तब भी उसकी चीख निकल गयी…बल्कि निकलने ही वाली थी की मैंने अपने होंठों से उसके होंठ दबा दिए और एक बार फिर जीभ उसके मुंह में घुसेड दी.
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रीत की बड़ी बड़ी आँखे मुझे देख रही थीं और मुझे उसकी दोपहर की बात याद आगई जब उसने मूझसे बोला था..
.” प्रामिस मैं तुम्हे जानती हूँ…तुमसे मेरा दर्द नहीं देखा जाएगा…प्लीज प्रामिस करो चाहे मैंजितना चीखूँ चिल्लाउ, खून खच्चर हो जाए मैं दर्द के मारे बेहोश हो जाऊं…लेकिन तुम्हे मेरी कसम एक इंच …एक मिलीमीटर भी नहीं बचना चाहिए…ये मेरा है..और मेरे अन्दर जाएगा…प्लीज…”
मैं जान रहा था की उसे कितना दर्द हो रहा होगा और अभी कितना होगा…लेकिन जब एक बार फिर मैंने उसकी आँखों में देखा वहां ख़ुशी छलक रही थी.
बस मेरे लिए फैसला हो गया.
एक बार फिर मैंने कंधे पे उसके पैरों को सेट किया..अंगूठे से थोड़ी देर उसके क्लिट को रगडा और अब वो जो एक बार फिर उतेजित हो गयी थी..चूत में फंसे सुपाडे को हलके से बाहर निकाल के फिर दोनों हाथों से उसकी कलाइयों को कस के पकड़ के …पूरी ताकत से धक्का मार दिया. उसके होंठ मेरे होंठों में बंद थे. मजे में अब मेरी भी आँखे बंद हो गयी. उस कसी, कच्ची चूत की जो रगड़न मेरे मोटे सुपाडे पे थी…बा मैं धक्के मारता रहा मारता रहा…२-३-४–५ धक्के के बाद …जैसे कोई जोरदार तूफ़ान निकल जाय मैं रुका…
रीत का चेहरा दर्द से भरपूर था. उसके और मेरी लाख कोशिश के बावजूद …आखिरी दो धक्को में उसकी चीख निकल ही गयी. मैंने ऊँगली से नीचे छुआ तो…कुछ गाढ़ा चपचप सा…मैंने समझ गया ये खून की बूंदे ही है…मैं लाख जानता था की पहली बार झिल्ली फटने पे …खून निकलता ही है…लेकिन मेरा दिल घबडा गया…एक सेन्स ऑफ़ गिल्ट सा हो रहा था…अपने मजे के लिए..
लेकिन रीत ने इत्ते दर्द के बावजूद जो किया…वो सिर्फ वही कर सकती थी. और वो न करती तो शायद मैं वहीँ रुक जाता.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
उसने कस के अपनी टाँगे मेरे नितम्बो पे दबा के मुझे और अपनी ओर खींच लिया. उसका एक हाथ मेरा गाल सहला रहा था..और दूसरे से उसने मेरे सर को खीच के मुझे कस कस के किस कर लिया.
थोड़ी देर तक हम दोनों इसी तरह पड़े रहे फिर वो इशारे से बोली…कितना गया..
मैंने बोला आधे से थोडा कम …इतने दर्द के बावजूद वो मुस्करा के बोली…तो बाकी किसके लिए छोड़ा है अपनी बहन के लिए…
बस इतना काफी था…चलो बताता हूँ लेकिन दर्द …मैंने बोला…
” अरे यार भूल गए क्या कहा था तुमसे तुमने क्या प्रामिस किया था..” वो बोली.
एक बार फिर उसकी एक कलाई मेरे हाथो में दबी थी और मेरा दूसरा हाथ उसके जोबन पे था…जिसे मैं कस कस के सहला रहा था मसल रहा था और फिर मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा तो रुका नहीं.
.एक के बाद एक
और जब मैं रुका तो उसकी कलाई की चूडियाँ आधी रह गयी थीं. मैंने देखा तो बिना मुस्कराए नहीं रह सका…चंदा भाभी के बेड के बगल में एक आदम कद शीशा रखा था…और रीत उसी में हम लोगों की प्रेम लीला देख रही थी.हम लोगों की निगाहें शीशे में मिली और हम दोनों हंसने लगे फिर रीत झेंप गयी…बोली…
“मारूंगी…तुम ऐसे ना ..मत देखो मुझे…”
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“जानू देखूंगा नहीं तो करूँगा कैसे…”
” ऐसे…” नीचे से चूतड उचका के वो बोली. अब रीत फिर अपने फार्म पे वापस आ गयी थी.
मैंने उसे किस करता तो वो जवाब में दूने जोर से किस करती. मैं उसके जोबन मसलता रगड़ता तो वो खुद अपने उभारों को मेरे सीने पे रगड़ने लगती. उसके दोनों पैर अब मेरी कमर में लिपटे थे. और मैंने महसूस किया की उसकी रसीली योनी भी जैसे कोई प्रेयसी किसी कब के बिछुड़े साजन को पा के गलबहियों में जकड ले…बस उसी तरह…मेरे लिंग को भींच रही थी.
कभी उसकी बची हुयी चूड़ियों की चुरमुर सुनाई देती तो कभी पायल की रुनझुन. जैसे कोई झरना पहाड़ों से तेजी से उतर कर मंथर गति से नदी के वेग में मैदान में चलता है बस वही हमारी हालत थी. हम दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे, बाहों में भींच रहे थे..और एक बार मैंने फिर रीत की नीम निगाहों में झाँका और उसकी मुस्कराहट ने वो जवाब दे दिया जो मैं चाहता था..
चौथी गियर…
रीत की टांगों को मोड़ के मैंने लगभग दुहरा कर दिया. एक मोती तकिया उसके मस्त चूतडों के नीचे लगायी…थोडा सा अपना लंड बाहर निकाला और सीधे बस दोनों चूतडों को पकड़ के…एक धक्के में…
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रीत को आने वाले तूफान का अहसास था. वो खुद अपने दोनों हाथों से कस के बेड शीट जोर से पकडे थी, होंठ भी भींच रखे थे…लेकिन तब भी चीख निकल गयी. मेरे धक्के रुके नहीं..एक के बाद एक…वहशी की तरह..जैसे कोई धुनिया रुई धुनें
और कुछ देर बाद रीत भी मेरे साथ…मेरा पूरा लंड उसकी चूत में था.
वह घूँट घूँट कर दर्द पी रही थी और मुसकरा रही थी.
ऐसा सिर्फ बनारस में ही हो सकता है… और उसके बाद तो कब वो ऊपर आई मैं नीचे आया…कब हम दोनों अगल बगल हो के…मुझे कुछ अंदाज नहीं .
..बस जब मैंने उसे..मेरी एक फेवरिट फैंटेसी पोजीशन …डागी के लिए झुकाया..उसके मस्त नितम्ब जो पाजामी के अन्दर से ही पागल करने के लिए काफी थे…उसकी झुके हुए उरोज…मैंने अपनी दोनों टांगो को उसकी टांगों के अन्दर डाल कर पहले तो फैला दिया फिर हचक हचक कर चोदना शुरू किया.मेरे दोनों हाथ कभी उसकी चून्चियां दबाते मसलते कभी उसके चूतड सहलाते तो कभी जांघो के बीच अन्दर हाथ डाल के क्लिट सहला देते. वो बार बार झडने के कगार पे पहुँच जाती…और मैं रुक जाता…मेरा लंड आलमोस्ट सुपाडे तक बाहर आता और फिर इंजन के पिस्टन की तरह सटाक सटाक अन्दर जाता…और उसी गति से मेरे हाथ उसका चूंची मर्दन भी कर रहे थे.
लकिन झड़ने के पहले हम लोग …पहले जैसी …मैं ऊपर वो नीचे वाली पोजीशन में आ गए. मैंने चौतरफा हमला बोला..मेरे होंठ निपल को कस कस के चूस रहे थे…लंड पूरी तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था…और मेरा अंगूठा भी रीत की क्लिट को सहला, रगड़ रहा था..उसने अब जोर जोर से नाखून मेरी पीठ में गडा दिए…वो तेजी से अपने नितम्ब ऊपर नीचे कर रही थी और बोल रही थी…
” प्लीज रुको मत…ओह्ह आह अह्ह्ह बहोत अच्छा लग रहा है ओह आह्ह्ह्हह्ह हाँ और जोर से और..कैसा लग रहा है मुझे…ओह्ह्ह ”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मैं भी पूरी तेजी से…और मैं रुका नहीं एक पल के लिए भी नहीं..जब वो पूरी तरह शिथिल हो गयी तब भी नहीं…लेकिन कुछ ही देर बाद मेरे शरीर का पूरा सत्व जैसे बूँद बूँद बन कर रीतने लगा…मैंने कस के रीत को अपनी बांहों में भींच लिया…
और जब हमारी आँखे खुली..रीत मुस्करा रही थी..लेकिन जैसे ही उसकी निगाह घडी पे पड़ी वो बड़ी जोर से चीखी..दूबे भाभी आज जिन्दा नहीं छोड़ेंगी. उसने पलंग से उतरने की कोशिश की लेकिन उठ नहीं पाई.मैंने सहारा देके उसे बैठाया…और पहली बार उसकी निगाह अपनी जांघो के बीच पड़ी…दो चार वीर्य के थक्के और खून की दो तीन बूंदे…
मुझे लगा की अब वो चीखेगी..डांट पड़ेगी…लेकिन बस वो मुस्करा दी.
मैं बाथरूम से गीजर से गुनगुने पानी से रुमाल भिगो के ले आया और और उसकी जाँघों को साफ कर दिया. मेरे कंधे का सहारा ले के रीत खड़ी हुयी. कपडे पहन के बाल वाल ठीक कर के चलते हुए बोली जाने से पहले जरुर मिलना.
एकदम मैंने बोला.
दरवाजे पर से वो लौट आई…और फिर मुझे बांहों में लेके कस के किस किया . और सीढ़ी धड धड उतरकर नीचे चली गयी.
मैं बहोत देर तक सीढ़ी की और देखता रह गया. लग रहा था मैं किसी तिलिस्म में हूँ…जहाँ बस जो मैं चाहूं मिल सकता हो…मिल तो गया ही…रीत मिल गयी..कुछ घंटो पहले ही तो उसको देखा था…उसकेजादू में कैद हुआ था और…घडी ने मुझे याद दिलाया मैं कहाँ हूँ और मैं बाथरूम में घुस गया.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
नहाकर पहनने के लिए तो वो कही कपडे थे जिस पर रीत और गुड्डी ने चित्रकारी कर रखी थी…वही शर्ट पैंट पहन के टेरेस पे निअक्ला. गुड्डी अभी भी लगता है बाथरूम में ही थी.
शैतान का नाम लो शैतान हाजिर…और वो बाहर निकल आई. लम्बे भीगे बाल टावेल में बंधे, रंग उस का भी साफ हुआ था लेकिन पूरा नहीं और ..एक खूब टाईट शलवार सूट में …उसके किशोर जोबन साफ साफ दीखते छलकते और कसी शलवार में नितम्बों का कटाव, यहाँ तक की अगर वो जरा भी झुकती तो चूतड की दरार तक…मेरी निगाह उसके गदराये जोबन पे टिकी थी…मैं बेशर्मों की तरह उसे घूर रहा था.
” लालची…” वो मुस्कराके बोली बिना दुपट्टा नीचे किये.
” अच्छी चीज हो तो मुंह में पानी आ है जाता है…” मैं बोला.
” मुंह में या कही और …” वो शैतान बोली और उसकी निगाह नीचे की ओर…और मेरी निगाह भी नीचे पड़ी
..ऊप्स मैं जिप बंद करना भूल गया था.
” रहने दो..ऐसे ही…थोडा हवा पानी लगने दो..” खिलखिलाते हुए वो बोली, फिर आँख नचा के कहने लगी..अच्छा चलो मैं बंद कर देती हूँ और मेरे पास आके अपनी कोमल उँगलियाँ…बंद किसे करना उसने हाथ अन्दर डाल के सीधे उसे पकड़ लिया.
रीत के साथ लम्बी जंग के बाद वो थोडा सुस्ता रहा था…लेकिन फिर अब गुड्डी की उंगलिया…वो फिर कुनमुनाने लगा.
” तेरे लिए एक अच्छी खबर है…” मेरे कान में होंठ लगा के गुड्डी बोली…
” क्या…”
” मेरी सहेली…वो पांच दिन वाली …” गुड्डी आँख नचा के बोली.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मेरे मन में चिंता की लहर दौड़ गयी कहीं ये ठीक नहीं हुयी तो…मैंने इतना प्लान बनाया था की रात भर आज इसे और फिर अब मेरे जंग बहादुर को स्वाद भी लग गया था. गुड्डी ने मुझे इन्तजार करा के बोली .
” वो मेरी सहेली…टाटा, बाई बाई …एकदम साफ…इस लिए तो नहाने में इतना टाइम लग गया था…अब तुम्हारा रास्ता एकदम क्लियर…”
” हुर्रे…ये तो बहोत अच्छी खबर है…तो पहले तो कुछ मीठा हो जाय…” मैंने भी उसे कस के बाहों में भींच लिया. जवाब में उसके हाथ ने मेरे लंड को कस के दबा दिया. सोया शेर अब जग गया था.
” एकदम क्यों नहीं…” और दो किस्सी गुड्डी ने मेरे लिप्स पे दे दी.
” अरे इसे भी तो कुछ मीठा खिला दो…बिचारा भूखा है…” मैंने थोडा झूठ बोला..अभी तो रीत ने छप्पन भोग की दावत परोसी थी.
” तो रहने दो न…बुद्धू लोगों के साथ यही होता है..अरे मेरे प्यारे बुद्धू ..चल तो रही हूँ न तेरे साथ..आज रात से…पूरे हफ्ते भर रहूंगी…दिन रात..तो यहाँ रीत है…अभी गुंजा आती होगी..भाभी लोग हैं…इनके साथ करना चाहिए ना…” वो बोली और साथ में लंड को अब जोर जोर से मुठिया रही थी.
” ये भी तो पांच दिनों के बाद…” शलवार के ऊपर से मैं भी अब उसकी चुन्मुनिया को रगड़ रहा था.
” तुम ना बेसबरे…एक से एक भोजन है यहाँ और…चलो अभी गुंजा आयेगी ना…तुम्हे कुछ नहीं मालूम अरे यार अभी तो नहाई हूँ ना…छ: सात घंटे तक कुछ नहीं..” गुड्डी बोली. उसने मेरे सुपाडा खोल दिया था.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” एक उंगली भी नहीं…आखिर इसका उपवास भी तो टूटना चाहिए न …” मैं मुंह बनाते बोला.
खिलखिला के वो हंसने लगी और एक बार फी मुझे किस कर लिया…और बोली…” इसका उपवास पांच दिन का नहीं सत्रह साल का है…और वो उंगली से नहीं इससे टूटेगा ..मेरे बेसबरे बालम ..तुम लेते लेते थक जाओगे मैं देते देते नहीं थकुंगी…प्रामिस है मेरा…बस थोडा सा…वेट…”
गुड्डी की उँगलियाँ लगातार चल रही थी और अब मेरे लंड की हालत खराब हो रही थी.
अब मैंने उसके होंठ पे एक कस के चुम्मी ली उसके निचले होंठों को मुंह में लेके चूस लिया
अब मैंने उसके होंठ पे एक कस के चुम्मी ली उसके निचले होंठों को मुंह में लेके चूस लिया . गुड्डी का गुलाबी रसीला होंठ मेरे होंठो के बीच में था..मैं उसे चूस रहा था चुभला रहा था साथ में मेरा एक हाथ टाईट कुरते को फाड़ती चूंची को दबा रहा था और दूसरा उसके चूतड के कटाव की नाप जोख कर रहा था. हाथ गुड्डी के भी खाली नहीं थे. एक से तो वो मेरा लंड अब खुल के कस कस के मुठिया रही थी और दूसरे से उसने मेर्री पीठ पकड़ रखी थी और अपनी ओर पूरी जोर से खिंच रखा था.
” हे वहां एक छोटा सा किस बस जरा सा…देखो ना उसका कितना मन कर रहा है…” मैंने फिर मनुहार की.
” छोटा सा क्यों..पूरा क्यों नहीं…यहाँ से यहाँ तक…’और उसने अपनी नाजुक ऊँगली से, लम्बे नाखून से मेरे खुले सुपाडे से ले के लंड के बेस तक लाइन खींच दी. लेकिन अगली बात ने उम्मीद तोड़ दी…” लेकिन अभी नहीं…बोला ना…अच्छा चलो..बनारस से निकलने से पहले बस किस दूंगी वहां…” और उसने मेरे सुपाडे को अपने अंगूठे से दबा के इशारा साफ कर दिया की वो किस कहाँ होगा.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अभी…” मैंने फिर अर्जी लगाई.
” उनहूँ..” अब उसने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दी थी और मैं उसे कस कर चूस रहा था. कुछ देर बाद जब सांस लेने के लिए होंठ अलग हुए तो मैंने फिर गुहार की…
” बस थोडा सा..”
” तुम भी ना…अभी गूंजा आती होगी उससे चुसवाना…” थोडा सा वो पसीजी. कम से कम साफ मना तो नहीं किया. ” गूंजा..अरे यार वो छोटी है अभी…” मैंने उसे फिर मुद्दे पे लाने की कोशिश की.
” छोटी जरुर है…अपने पापा के साथ दुबई गयी थी पढ़ने के चक्कर में….लेकिन जमा नहीं …इसलिए एक क्लास पीछे हो गयी..वरना मुझसे दो चार महीने ही छोटी है…आगे पीछे ऊपर नीचे जिधर ट्राई करोगे उधर घोंट लेगी..तुम्ही पीछे हट जाते हो .” गुड्डी बोली.
” अच्छा बस एक छोटा सा किस..बहोत छोटा सा बस एक सेकेण्ड वाला…” गूंजा की बात सोच के मेरा लंड और टनटना गया. लेकिन बर्ड इन हैण्ड वाली बात थी.
गुड्डी घुटने के बल बैठ गयी और मेरी आँखों में अपने शरारती आँखे डाल के ऊपर देखती हुयी बोली..
.” चलो…तुम भी क्या याद करोगे किस बनारस वाली से पाला पड़ा है…” और पैंट के ऊपर से ही उसने ताने हुए तम्बू पे एक किस कर लिया. बिच्चारा मेरा लंड…लेकिन अगले ही पल उसने खुली हवा में साँस ली..जैसे स्प्रिंग वाला कोई चाकू निकल के बाहर आ जाय ८ इंच का …बस वही हालत उसकी थी. मैंने उसे पकड़ के गुड्डी के होंठो से सटाने की कोशिश की तो गुड्डी ने घुड़क दिया..
” चलो हटाओ हाथ अपना…छुना मत इसे…मना किया था ना की अब हाथ मत लगाना इसे अब जो करुँगी मैं करुँगी…”
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उतनी डांट काफी थी. मैंने दोनों हाथ पीठ के पीछे बाँध लिए..की कहीं गलती से ही …
हाथ गुड्डी ने भी नहीं लगाया…सुपाडा उसने पहले ही खोल दिया था. मोटा लाल गुस्सैल ..खुला हुआ और लंड चितकबरा हो रहा था…दूबे भाभी के हाथ की लगायी कालिख, रीत और गुड्डी के लागाये लाल गुलाबी रंग
..गुड्डी ने अपने रसीले प्य्यारे होंठ खोल दिए…मुझे लगा की अब ये किशोरी लेगी लेकिन…उसनी अपनी जीभ निकाली और फिर सिर्फ जीभ की टिप से…मेरे पी होल को..सुपाडे के छेद पे हलके से छुआ दिया…
जोर का झटका जोर से लगा.
उसकी गुलाबी जुबान पूरी बाहर निकली थी. कभी वो पी होल के अंदर टिप घुसेडने इ कोशिश करती तो कभी बस जुबान से सुपाडे के चारो ओर जल्दी जल्दी फ्लिक कराती.. और जब उसकी जुबान ने सुपाडे के निचले हिस्से को ऐसे चाटा जैसे कोई नदीदी लड़की लालीपॉप चाटे तो मेरी तो जान निकल गयी. मेरी आँखे बार बार गुहार कर रही थी ले ले यार ले ले…कम से कम सुपाडा तो ले ले.
.गुड्डी जीभ से सुपाडा चाटते हुए मेरे चेहरे को मेरी आँखों को ही देखती रहती जैसे उसे मुझे तडपाने में सताने में मजा मिल रहा ही..और फिर उसने एक बार में ही गप्प..पूरा मुंह खोल कर पूरा का पूरा सुपाडा अन्दर…जब उसके किशोर होंठ सुपाडे को रगड़ते हुए आगे बढे…और साथ में नीचे से जीभ भी चाट रही थी…लेकिन ये तो शुरुआत थी…मजे में मेरी आँखे बंद हो गयी थी.
अब गुड्डी ने चूसना शुरू कर दिया…पहले धीरे धीरे फिर पूरे जोश से..लेकिन सुपाडे से वो आगे नहीं बढ़ी..हाँ अब उसकी उंगलियाँ भी मैदान में आगयीं थीं…वो मेरे बाल्स को सहला रही थीं दबा रही थीं…एक उंगली बाल्स और गांड के बीच की जगह पे सुरसुरी कर रही थी..और दूसरे हाथ का अंगूठा..और तरजनी लंड के बेस पे हलके हलके दबा रहे थे.. और गुड्डी ने मुंह आगे पीछे करना शुरू कर दिया..
ओह आह हांआ मेरे मुंह से आवाजें निकल रही थी…
तभी सीढ़ी पे हलके से कदमों की आवाजे आई. गुड्डी ने झटके से अपना मुंह हटाया और शेर को वापस पिंजड़े में किया.
जिप मैंने अब की भी नहीं बंद किया लेकिन अबकी भूल के नहीं जान बूझ के…
खुला दरवाजा निकली …गूंजा..
भूत नहीं सारी..चुड़ैल लग रही थी…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
सुबह कैसी चिकनी विकनी हो के गयी थी.
गोरे गालों पे अबीर गुलाल रंग पेंट…बालों में भी..
लेकिन सबसे जबर्दस्त लग रहा था…उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म वाले ब्लाउज पे ठीक उसके उरोज पे…उभरती हुयी चूंची पे किसी ने लगता है निशाना लगा के रंग भरा गुब्बारा फेंका था..फच्चाक …और एकदम सही लगा था…साइड से…लाल गुलाबी रंग…और चारो ओर फैले छींटे..
गुड्डी की निगाह भी वही थी..
ये किसने किया…हंस के उसने पुछा…आखिर वो भी तो उसी स्कूल की थी.
” और कौन करेगा…” गूंजा बोली.
” रजउ…” गुड्डी बोली और वो दोनों साथ साथ हंसने लगी.
पता ये चला की इनके स्कूल के सामने एक रोड साइड लोफर है..हर लड़की को देख के बस ये पूछता है…
” का हो रज्जउ …देबू की ना…देबू देबू की चलबू थाना में …” और लड़कियों ने उस का नाम रजउ रख दिया है..छोटा मोटा गुंडा भी है..इसलिए कोई उसके मुंह नहीं लगता. ” हे टाइटिल क्या मिली…” गुड्डी ने पुछा.
” धत्त बाद में…उसकी निगाहे मेरी ओर थी.
” अरे जीजू से क्या शरमाना…दे ना तेरे लिए एक गुड न्यूज भी है चल..” गुड्डी बोली.
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गूंजा ने टाइटिल वाला कागज़ अपने सीने के पास छिपाने की कोशिश की…और वही उसकी गलती हो गयी. मैंने कागज तो छिना ही ..साथ में जोबन मर्दन भी कर दिया..
.
” हमने माना हम पे साजन जोबनवा भरपूर है…”
मैंने सस्वर पाठ किया…सही तो है उसकी उठती चून्चियों को देखते हुए मैंने कहा..
” बस साजन की जगह जीजा होना चाहिए …” गुड्डी ने टुकड़ा लगाया.
” जाइए मैं नहीं बोलती…लेकिन वैसे जीजू आप अच्छे हैं मेरे लिए रुके रहे …लेकिन वो गुड न्यूज क्या है…” गूंजा मुस्करा के बोली..
” वही तो तेरे जीजा इत्ते फिदा हो गए तेरे ऊपर की रंग पंचमी में हम लोगों के साथ ही रहेंगे..और वो भी दो दिन पहले आ जायेंगे…है ना गुड न्यूज…” गुड्डी हंस के बोली..
” अरे ये तो बहोत बहोत अच्छी मस्त न्यूज है…एकदम …” और गूंजा आके मुझसे चिपट गयी.
उसकी ठुड्डी उठा के मैं बोला…” तो फिर कुछ मीठा हो जाए…
एकदम वो बोली. और उसके होंठ सीधे मेरे लिप्स पर…गुड्डी दूर खड़ी देख रही थी, मुस्करा रही थी…मानो कह रही हो..देख लो तुम कह रहे थे ना…बच्ची है…कोई बच्ची वच्ची नहीं है..तुम्ही बुद्धू हो.
और गुड्डी की बात की ताईद गूंजा के नव अंकुरित उभार कर रहे थे जो मेरे सीने में दब रहे थे. मैंने गूंजा को और कस के भींच लीया और मैंने भी किस ली..लेकिन कस के..पहले तो उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबाकर चूसा ..और फिर उसके गाल पे भी एक छोटा सा किस किया और उसके फूले फूले गालों को मुंह में भर के हलके से काट लिया.
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उयीई वो चीखी…कुछ दर्द से कुछ अदा से…फिर गुड्डी को देख के बोली…देख दीदी जीजू ने काट लिया…कटखने…
गुड्डी उसे देखती मुस्कराती रही और बोली…तुम सबसे छोटी साली हो..तुम जानो ये जाने…बिचारे तुम्हारे आने का वेट कर रहे थे तो कुछ तो…
मैं उन दोनों की चाल समझ गया.
” हे रंग वंग नहीं ..बहुत मुश्किल से तो मैं नहाया हूँ और फिर अभी जाना भी है देर हो रही है…और तुम तो सब जगह रंगवा के आ गयी हो मेरे लिए कोई जगह बची भी है क्या..” मैं बोला.
सीढ़ी का दरवाजा बंद था..और गुड्डी वहां मुस्तैद चौकीदार की तरह खडी थी. खिस्स से हँसते हुए वो बोली…” क्यों क्या तुमने सब जगह लगवा लिया है …कोई जगह अपने जीजू के लिए बचा कर नहीं रखी.”
और हम दोनों की एक साथ चमकी. और हम दोनों एक साथ बोले.
” ठीक है जीजू..मैं सिर्फ आपके कपड़ों के अन्दर लगाउंगी…जहाँ कोई नहीं देख पायेगा…हाँ गुड्डी दीदी की बात और है…” गूंजा शैतानी से बोली.
” मैं वही लगाऊंगा…जहाँ रंग नहीं लगा है..हाँ पहले ढूँढना पड़ेगा…” मैं बोला और मेरे बाएं हाथ ने पीछे से उसकी दोनों कलाइयाँ कस के पकड़ लीं. मेरा दायाँ हाथ उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म के टाप के अन्दर घुस गया…और उसे स्कर्ट से बाहर कर दिया. गोरे गोरे पेट भी रंग के कुछ छींटे थे …तो इसका मतलब…कपड़ों के अन्दर भी होली हुयी.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मेरी हथेली थोड़ी और ऊपर बढ़ी…और उसके टीन ब्रा में घुस के चूजे को गपुच लिया.
” जीजू हाथ छोडिये ना…” गूंजा बोली.
” और क्या हाथ क्यों पकडे हो हाथ पकड़ने की नहीं होती…” गुड्डी भी गूंजा के साथ हो गयी थी..साथ में उसने मुझे कस के आँख मार दी. मैं समझ गया और मैंने हाथ छोड़ दिया. कबूतर के बच्चों को पकड़ने के लिए मुझा दूसरा हाथ भी तो खाली करना था ना..और वो हाथ भी टीन ब्रा के अन्दर घुस गया.
” देखूं यहाँ रंग लगा है की नहीं और मैंने उसकी ब्रा ऊपर पुश कर दी…टाप तो पहले ही खुल गया था .दोनों कबूतर के बच्चे उछल के बाहर आ गए. गोरे गोरे छोटे छोटे…लेकिन इतने छोटे भी नहीं. बाला जोबन का मजा ही और है…नवांकुरित उरोज…उसकी एक अलग आभा अलग रूप होता है…और आज जवानी की दहलीज पे कदम रखते वो …मेरी मुट्ठी में थे. हलके हलके मैंने हथेली को पहले प्रेस किया और फिर थोडा सहलाया…उसका असर गुंजा पे तुरत दिखना शुरू हो गया….बालेपन से योवन की और आज मैं उसे ऊँगली पकड़ के ले जारहा था. रुई के फाहे ऐसे मुलायम जैसे लग रहा था मेरी मुट्टी में दो बादल आ गए हों. मैंने इधर उधर देखा….गुड्डी मेरी परेशानी समझ गयी थी की मैं रंग ढूंढ रहा हूँ…वो वहीँ से बोली…” अरे साल्ली से होली खेलने के लिए रंग की जरुरत कब से पड़ने लगी…”
अब इससे ज्यादा कोई क्या इशारा देता…
मेरे होंठ बस उग रहे टिट्स पर पहुँच गए…एक पल के लिए मैं ठिठका लेकिन अब मेरे होंठ मेरे कंट्रोल में थोड़े ही थे. चूमना,. चाटना, चूसना
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
गूंजा ने थोडा सा तो नखड़ा किया लेकिन वो कौन सी चूंची हो गी जो होंठों के सामने पिघल ना जाए..
वो भी सिसकियाँ भरने लगी…उसका चेहरा जवानी की मस्ती से चूर हो गया था..आँखे बार बार बंद हो रही थीं. एक उभार मेरे हाथों में था और दूसरा मेरे होंठों के बीच…गुड्डी से थोड़ी ही छोटी रही होंगी गूंजा की चून्चियां. मैं कस क्यों कस के मसल रहा था चूस भी रहा था….आखिर मेरी सबसे छोटी साल्ली जो थी. लेकिन गुड्डी ने अब गूंजा को उकसाया..,” अरे तेरे जीजू अकेले अकेले होली खेलेंगे ….तू क्यों देख रही है..वो क्या सोचेंगे ..बनारस की साल्लियाँ….”
गूंजा ने नीचे देखा..पैंट तना तो था ही जिप भी खुली थी बस उसने आव ना देखा ताव और अन्दर हाथ डाल दिया…उसके हाथ डालने की देरी थी स्प्रिंग के चाकू ऐसा मेरा लंड फुंफकारते हुए खुद बाहर आ गया. गुंजा गुड्डी और रीत से किसी मामले में कम नहीं थी. वो तो मैं सुबह ब्रेकफास्ट की टेबल पे देख ही चूका था.. अभी भी सोच सोच के मुंह में मिर्चे छरछराने लगती थीं. स्कर्ट ले किस कोने से उसने रंग निकला हाथ पर मला मैं देख नहीं पाया. गनीमत थी की मैं तबतक मेज पर पड़े सुबह के बचे रंगों की पुडिया देख चूका था और मेरे हाथ भी रंग लगे तैयार हो चुके थे. बिना किसी झिझक, स्जर्म या देर लगाए गूंजा ने सीधे मेरा लंड पकड़ा और मैंने एक बार फिर से गूंजा की चुन्चिया उठान वाली चूंची.
न वो पीछे हटने वाली थी न मैं…होली अब एक बार फिर जम के शुर्रू हो चुकी थी. मेरे एक हाथ ने नीचे का रुख किया और सीधे स्कर्ट उठा के उसके गोल गोल कटाव वाले नितम्बो पे रंग लगाने लगा और दूसरा कुछ देर बाद आगे जांघो के बीच. .बस मुझे तो जिस कारून के खजाने की तलाश थी वो मिल गया…पहले सीधे हथेली के बीच उसे हलके हलके दबाया और फिर चारों ओर उंगलियाँ सहलायीं…झांटे बस अभी निकलना शुरू हुयीं थी..उसने साफ कर ली थी लेकिन एक दो सुनहले बाल इधर उधर मुश्किल से दिख रहे थे.
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कुछ देर प्यार दिखाने के बाद मेरा एक अंगूठा सीधे क्लिट और मंझली और तर्जनी के बीच उसकी कच्ची कली के पपोटों को रगड़ने मसलने लगी. वो उचक रही थी, सिसक रही थी मचल रही थी. लेकिन इस बीच मेरे लन्ड को पकड़ने, रगड़ने और रंगने में गूंजा ने कोई कसर नहीं छोड़ी. वो दबा ही रही थी…बीच बीच में मुठिया भी रही थी. तभी कुछ आहट हुयी…जो पहले ने मुझे रीत ने बता रखी थी. और सीढियों पर हलके क़दमों की आहट. लंड मेरा एक मिनट में पैंट में गया और उतनी ही देर में गूंजा बाथरूम में. सिर्फ चंदा भाभी थीं. बाकी लोग अपने अपने घर रह गए थे. रीत ने जरूर भाभी को बोला था की जब मैं जाऊं तो उसे बता दिया जाय …
” क्यों गुंजा नहीं आई अभी…” चंदा भाभी ने पुछा…
” आ गयी थी लेकिन नहाने गयी है..” गुड्डी ने बताया.
” अरे इनको तो देख के लग नहीं रहा है…” हंसते हुए चंदा भाभी बोलीं. मेरे चेहरे और कपडे पर रंग के कुछ ताजे दाग नहीं थे इसलिए. उन्हें कौन बताये की सारे रंग तो उसने मेरे लंड पे इस्तेमाल कर दिए…”
गुड्डी भी ऐसे अनजान बन रही थी जैसे उसे कुछ मालूम ही ना हो.
” आजकल की लड़कियां ..चंदा भाभी बोल रही थीं…मेरा जमाना होता तो जीजा आये होते फागुन के मौसम में…तो स्कूल ही नहीं जातीं. ”
उन्हें कौन बताए की आजकल की लड़कियां उन लोगों से भी दो हाथ आगे हैं.
अच्छा मैं जरा कुछ सामान दे रही हूँ ले जाने ले लिए ….तुम्हारे साथ…” वो बोलीं.
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” नहीं भाभी नहीं…बेकार कहाँ…” मैंने मना किया…
” तुम ना …तुम्हे तो लड़की होना चाहिए था…हर बात पर ना करते हो….” वो बोलीं और अपने कमरे में चल दीं.
” अच्छा आप देवर भाभी सलट लीजिये मैं जा के अपना सामान लाती हूँ और गुड्डी चल दी.
मैं भी भाभी के पीछे पीछे उनके कमरे में…चंदा भाभी ने अपनी ननद या मेरी भाभी के लिए गुलाब जामुन , गुझिया ( कहने की जरुरत नहीं सब भांग वाली थीं) इत्यादि दी. और फिर एक आलमारी खोल के बोलीं ..अरे तेरा सामान भी तो दे दूँ.तुझे मायके में बहूत जरुरत पड़ेगी. उन्होंने फिर वो स्पेशल सांडे का तेल जिसका इस्तेमाल उन्होंने इम्रे ऊपर कल रात को किया था…
.वो शिलाजीत और ना जाने क्या क्या पड़ा लड्डू जिसका असर उनके हिसाब से वियाग्रा से भी दूना होता है वो सब दिया और समझाया भी. फिर उन्होंने अपना लाकर खोल के एक छोटी सी परफ्यूम की शीशी दी और कहा की की उसकी एक बूँद भी लड़की को लगा दो तो वो पागल हो जायेगी, बिना चुदवाये छोड़ेगी नहीं.
तब तक गुड्डी अपना सामान लेके आ गयी थी.
उन्होंने उसके कान में सब कुछ समझाया और कहने लगी की हम लोग खाना खा के जायं..
” नहीं भाभी…इतना गुझिया, दही बड़ा मिठाई सब कुछ तो खाया है…
मैंने मना किया . गुड्डी ने भी ना ना में सर हिलाया.
” अरे आगरा का पेठा, बनारस की रबड़ी
बलिया का सत्तू, आजमगढ़ की खिचड़ी ….
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दा भाभी ने हंस के गाया और बोली…
“रबड़ी छोड़ के जा रही हो कल से खिचड़ी खाना..सटासट सटासट …”
” अरे भाभी कल से क्यों आज रात से ही…इतना इंतज़ार क्यों कराएंगी बिचारी को….” मैं हंस के बोला.
“क्यों, गयी तुम्हारी सहेली..ठीक हो गया पेट खिचड़ी खाने को…” चंदा भाभी ने गुड्डी को चिढाया.
गुड्डी शरमा गयी और झिझकते हुए बोली…धत्त …हाँ..
तब तक गुंजा नहा के निकल आई थी और बोली की वो जा के रीत को बुला के आ रही है.
अब सिर्फ मैं, गुड्डी और चंदा भाभी छत पे थे.
“भाभी जरा इस को कुछ समझा दीजिये की कैसे ..क्या …” मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए चंदा भाभी से बोला.
वो लेकिन अब की नहीं शरमाई और चंदा भाभी ने भी उसी का साथ दिया…
” इसे क्या समझाना है…तुम्ही पीछे हट जाते हो शर्मा के…बोलोगे जाने दो कल ..और जो करना है वो तुम्हे करना है…इस बिचारी को क्या करना है.” चंदा भाभी गुड्डी के पास जा के खडी हो गयीं और उसके कंधे पे हाथ रख के बोलीं
” और क्या…” हिम्मत पा के गुड्डी भी बोली…
” तो राजी…हो आज हो जाय…” मैंने छेड़ा.
गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गयी और हलके से बोला…” धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा…” और थोड़ी हिम्मत बटोर के..चंदा भाभी की ओर देख के बोली…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” कपडे लौटा दिए है ना इस लिए बोल रहे है…बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं…तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है…रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी..समझे…”
मैं कुछ बोलता उसके पहले रीत आगई और साथ में गूंजा भी. गूंजा बिली, ” दूबे भाभी ने बोला है की जीजू को बोलना ५ मिनट रुकेंगे वो भी आ रही हैं…’
लेकिन मेरे आँख कान रीत से चिपके थे.
पक्की कैटरीना कैफ…हरे रंग का इम्ब्रायडर किया हुआ धानी कुरता और एक बहोत टाईट पजामी…
मेरी ओर देख के मुस्कराई और गुड्डी के कान में कुछ बोला,
गुड्डी गुलाल हो गयी. लेकिन न में सर हिलाया.
( बाद में बहोत हाथ पैर जोड़ने पे गुड्डी ने बताया रीत ने उससे पुछा था…वैसलीन रखा है की नहीं…) रीत मेरे पास आई और मेरी ओर देख के चंदा भाभी से पुछा हे कुछ गड़बड़ लग रहा है ना…कुछ मिसिंग है…और बिना उंनके जवाब का इंतजार किये मुझे हड़काया…
” शर्त के अन्दर कुछ नहीं पहना…ऐसे बाहर जाओगे झलकाते हुए वो भी मेरी छोटी बहन के साथ नाक कटवाओगे हम लोगों की…तुम्हारे उस खिचड़ी वाले शहर में तुम्हारी बहने बिना अन्दर कुछ पहने झलकाती घूमती होंगी यहाँ ये नहीं होता…”
सब लोग अपनी मुस्कान दबाए हुए थे सिवाय मेरे. घबडा के मैं बोला…
” लेकिन लेकिन मेरे पास वो तो कल गुड्डी ने…आप ही ने तो …”
” क्या गुड्डी गुड्डी रट रहे हो…मैंने कुछ पहनाया नहीं था तुम्हे…कहाँ है वो तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी उसे उतारने की…”
अब मैं समझा उस की शरारत.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
गुड्डी ने गूंजा को पास पड़ी रंग में लथपथ ब्रा की ओर इशारा किया..जिसे रीत ने होली के श्रृंगार के समय पहनाया था लेकिन मैंने बाद में उतार दिया था.
गूंजा ने छोटी साली का हक़ अदा किया. झट से उसने मेरी शर्ट उतार के फिर से ब्रा पहनाई और फिर से शर्ट..और रीत की ओर देखती बोली…” लेकिन दी अभी भी कुछ कमी लग रही है ”
रीत ने उसकी पीठ पे कस के धौल जमाते हुए कहा “तो तू सबसे छोटी साल्ली किस ख़ुशी में बनी है खाली मलाई खाने के लिए जा…पूरा कर…” और जब तक मैं समझूँ गुंजा अन्दर से दो रंग भरे गुब्बारे ले आई और फिर से ब्रा के अन्दर…
मैं लाख चीखता चिल्लाता रहा ..लेकिन कौन सुनता बल्कि अब चंदा भाभी भी उन्ही के साथ …” अरे लाला फागुन का टाइम है लोग सोचेंगे कोई जोगीड़ा का लौंडा है..”
दूबे भाभी भी आ गयीं. सबको नमस्कार करके जब मैं चलने के लिए हुआ तो दूबे भाभी ने याद दिलाया…
” हे अपने उस माल को साथ लाना मत भूलना…और रंग पंचमी से दो दिन पहले…” और रीत से बोली अरे पाहून जा रहे हैं जाने से पहले पानी पिला के भेजना चाहिए सगुन होता है है आज कल की लड़कियां …”
रीत ने गूंजा के कान में कुछ कहा और मुझसे गले मिलते हुए बोली…मिलते हैं ब्रेक के बाद…
हाँ चार पांच दिन की बात है फिर तो मैं वापस ..मैं भी बोला..
” नहीं नहीं मेरी आँख फड़क रही है…मुझे तो लगता है शाम तक फिर मुलाक़ात और …” वो मेरे कान में मुझे चिपकाए हए बोली…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
गुड्डी सामन ले के बाहर निकल चुकी थी. जैसे ही मैं निकला गूंजा ने पानी का ग्लास रीत को पकड़ा दिया.
..
” लीजिये साली के हाथ का पानी पी के जाइए …”
और जैसे मैं ने हाथ बढाया उस दुष्ट ने पूरा ग्लास मेरे ऊपर …गाढ़ा लाल गुलाबी रंग…
अरे ठीक है होली का प्रसाद है…चलिए…चंदा भाभी बोलीं.
मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था मेरा कुछ वहीँ छूट गया है…रीत की बात भी याद आ रही थी…आँख फड़कने वाली…
लेकिन चाहने से क्या होता है …और खास तौर से जब आपके साथ कोई हसीन नमकीन लड़की हो जो पिछले करीब २४ घंटे से आपकी ऐसी की तैसी करने पे जुटी हो…
और वही हुआ..
पहले तो उसने रिक्शे की बात पे ना ना कर दी… ” पैसा है तुम्हारे पास…चले हैं रिक्शे पे बैठने…” घुड़कते हुए वो बोली.
तब मुझे याद आया…मेरा मोबाइल , कार्ड्स पर्स सब तो इसी के पास था….
” हे मेरा पर्स वो…लेकिन मैंने …तो…” हिम्मत कर के मैंने बोलने की कोशिश की.
” जगह जगह नोटिस लगी रहती है…यात्री अपने सामान की सुरक्षा खुद करें ….लेकिन पढ़े लिखे हो के…मेरे पास कोई पर्स वर्स नहीं है…” बडबडाते हुए वो बोली और फिर जैसे मुझे दिखाते हुए उसने अपना बड़ा सा झोले ऐसा पर्स खोला…बाकायदा मेरा पर्स भी था और मोबाइल भी…ऊपर से वो मेरा पर्स निकाल के मुझे दिखाते हुए बोली…देखो मैं अपना पर्स कितना संभाल कर रखती हूँ…तुम्हारी तरह नहीं ..”
.और फिर जिप बंद कर दिया. उसमें मेरी पूरी महीने की सैलरी पड़ी थी.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
और उसके बाद रास्ते के बात पे तो वो एक दम तेल पानी ले के मेरे ऊपर चढ़ गयी..
” बनारस की कौन है…मैं या तुम …” वो आँख निकाल के बोली.
” तुम हो…” मैंने तुरंत हामी भर ली.
” फिर…”
मैं चुप रहा. ऐसे सवाल का जवाब देना भी नहीं चाहिए .
” अरे उलटा पड़ेगा…लेकिन तुम्हे तो बचपन से ही सब काम उलटे करने की आदत है…यहाँ से गौदालिया कित्ता पास है…बगल में वो लक्सा वाली रोड पे एक माल भी खुल गया है…नयी सड़क के बगल वाली गली में सब चीजे इतनी सस्ती मिलती हैं…लेकीन कल से तुम्हे रेस्ट हाउस जाने की जल्दी पड़ी है ….” फिर मुझे मनाते हुए मेरे कंधे पे हाथ रख के बोली..” अरे मेरे बुद्धू राम जी..मैं मना थोड़े ही कर रही हूँ लेकिन इससे टाइम बचेगा…यहाँ की एक एक गलियां मैं जानती हूँ…”
लेकिन गुड्डी का सारा सामान ..एक बड़ा सा बैग उठा के तो मैं चल रहा था..ऊपर से जनाब जी ने तुर्रा ये की मना कर दिया था की मैं इसे अपने पीठ पे ना रखूं…
मैं बड़बड़ा रहा था..”.गधे का बोझ उठा कर कौन चल रहा है…”
” जो गधे ऐसी चीज रखेगा…वही गधे का काम करेगा… और क्या…” उसने मुस्कराती आँखों से मुझे देखते हुए चिढाया. और साथ में बोली ” अच्छा चलो अब ये ब्रा उतार दो बहोत देर से पहने हो हां तुम्हारा मन कर रहा हो तो अलग बात है…” आँख नचा के वो बोली.
और जैसे ही मैंने उतारा सम्हाल के उसने अपने बैग में रख लिया.
मेरी सारी थकान और गुस्सा एक मिनट में पिघल गया.
गली गली हम लोग थोडी ही देर में गौदौलिया चौराहे पे पहुंच गये. भीड, धक्कम धुका, जब की अभी शाम भी नहीं हुयी थी.
समय तो कम लगा…लेकिन मैं जो नहीं चाहता था वही हुआ. मेरी शर्ट पे आगे और पीछे , जो ’अच्छी अच्छी बातें’ मेरी और मेरी ममेरी बहन के बारे में रीत और गुड्डी ने लिखी थीं..एक दम खुले आम दावत देते हुये…सब उसे पढ रहे थे और मुझे घूर रहे थे. और कुछ देर बाद मेरे मोबाइल का मैसेज बजा.
था तो वो गुड्डी के बैग मे…लेकिन उस ने तुरत फुरत निकाला और मेरी ओर बढाया और बोली …बधाइ हो तेरी ममेरी बहन की पहली बुकिन्ग आ गयी. उन दुष्टों ने मेरी शर्ट पे मेरे मोबाइल के ९ दिजिट लिख रखे थे और आखिरी नम्बर की जगह ऐस्टेरिक लगा रखा था. पहले तो मै सोच रह था कि ये सेफ है कौन दसवां नम्बर ढून्ड पायेगा…लेकिन लगता है ये उतना मुश्किल नहीं था. गुड्डी ने जो मेसेज दिखाया, उसमें लिखा था कि क्या दो के साथ एक फ्री होगा या कम से कम कुछ डिस्काउन्ट…गुड्डी ने मुझे दिखाते हुये वो मेसेज पहले तो रीत को पास किया और फिर मुझे दिखाते हुये जवाब भेज दिया…” आपकी पहली बूकिन्ग थी इस लिये स्पेशल डिस्काउन्ट…तीसरा…५० % डिस्काउंट पे…लेकिन पहले दो के साथ…साथ….” उसने मेरे रोकते रोकते मेसेज भेज दिया. और जबतक मोबाइल मैं उससे लेता वापस उसके पर्स में…बाद में मैने नोटिस किया कि वो हर मेसेज के जवाब के साथ साथ रीत का नम्बर दे रही थी आगे की सेटिन्ग के लिये और मेसेज डिलिट भी कर दे रही थी. यानि कि मै चाह के भी कुछ नहीं कर सकता था. तभी मुझे जोर का झटका जोर से लगा…मेरी ममेरी बह्न का तो पूरा नम्बर साल्लीयों ने मेरे शर्ट के पीछे टांक रखा है, तो उस बिचारी के पास तो सीधे ही और वो कित्ति इम्ब्रासेड फील कर रही होगी….( लेकिन ऐसा हुआ कुछ नहीं, मेसेज उसको मिले और एक से एक ….लेकिन जैसा उसने गुड्डी से बोला, की उसे खूब मजा आया और उसने भी उसी अन्दाज में उन लोगों को जवाब दिया. कईयों को तो उसने अपनी मेल आई डी और फेस बुक पेज के बारे में भी बता दिया.
वो समझ गयी थी की ये होली क प्रैंक है और उसी स्प्रीट में मजा ले रही थी. गुड्डी को उसने दिखाया की कईयों ने तो उसे अपने ’ अंग विशेष ’ के फोटो भी भेज दिये थे एक बार इस्तेमाल करने की गुजारिश के साथ. असल में वो फोटुयें तो मेरे मोबाइल पे भी आयीं इस रिक्वेस्ट के साथ कि..
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
.” राजा, अरे तुन्हु मजा ला तोहरि बहिनियो क मजा देब…एक बार में पूरा सटासट सटासट…सरसों क तेल लगा के…तनिको ना दुखायी…मजा जबरद्स्त आयी…’
और साईज भी एक से एक , लम्बे भी मोटे भी..मै अपने आप को शेर समझता था…लेकिन वो भी मेरे से २० नहीं तो १९ भी नहीं थे. खैर मैं ये कहां कि बात ले बैठा…ये बात तो मेरे घर पहुंचने के बाद के प्रसंग में आनी है.
वो समझ गयी थी की ये होली क प्रैंक है और उसी स्प्रीट में मजा ले रही थी. गुड्डी को उसने दिखाया की कईयों ने तो उसे अपने ’ अंग विशेष ’ के फोटो भी भेज दिये थे एक बार इस्तेमाल करने की गुजारिश के साथ. असल में वो फोटुयें तो मेरे मोबाइल पे भी आयीं इस रिक्वेस्ट के साथ कि…
” राजा, अरे तुन्हु मजा ला तोहरि बहिनियो क मजा देब…एक बार में पूरा सटासट सटासट…सरसों क तेल लगा के…तनिको ना दुखायी…मजा जबरद्स्त आयी…’
और साईज भी एक से एक , लम्बे भी मोटे भी..मै अपने आप को शेर समझता था…लेकिन वो भी मेरे से २० नहीं तो १९ भी नहीं थे. खैर मैं ये कहां कि बात ले बैठा…ये बात तो मेरे घर पहुंचने के बाद के प्रसंग में आनी है.
खैर हम जब दुकान में घुसे तो गुड्डी जी ने बहोत अहसान कर मेरा मोबाइल मुझे वापस कर दिया..लेकिन पर्स क्रेडिट कार्ड उसी कि मुट्ठी में…और जब उसने शापिन्ग कि लिस्ट निकाली…उसके हाथ से फर्श तक निकली. मेरी तो रूह कांप गयी. लेकिन मुझे वो कार्ड निकाल के दिखाते हुये बोली…चिन्ता मत करो बच्चे..मैने और रीत ने चेक कर लिया था…ये प्लेटीनम कार्ड है…२ लाख तक तो ओवर ड्राफ्ट मिलेगा…और इसमें भी बैलेन्स काफी है..” वो दुकान ड्रेसेज की थी.
” क्या साइज है…” उसने पूछा.
जोबन उभार के गुड्डी बोली
…बस मेरी हो साइज समझ लीजिये…क्यों ”
मुस्करा के वो बोली तो दूकान दार से लेकिन पुष्टि के लिये उसने मेरी ओर देखा.
दुकान दार कभी गुड्डी की ओर देखता तो कभी मेरी शर्ट पे पेन्ट, इश्त हार पे . तब तक गुड्डी ने आर्डर पेश कर दिया….स्लिव लेस टाप, वो भी हो सके तो शियर…एक दम आइटम गर्ल टाईप और एक लो कट जीन्स…आप समझ गये ना…” दुकान दार समझ गया शायद और अन्दर चला गया…लेकिन मेरे समझ में नही आया.
“ये किसके लिये ले रही हो, कौन पहनेगा इतना बोल्ड वो भी ….”
” तुम्हारे खिचडी वाले शहर में है ना ….खिलखिलाती हुयी वो बोली. और कौन तुम्हारा माल…तुम्हारी ममेरी बहन…गुड्डी…रंजीता…अरे यार उसे पटाना चाहते हो, उससे सटाना चाह्ते हो….तो बाहर से जा रहे हो…होली क मौका है कुछ हाट हाट गिफ़्ट तो ले जानी चाहिये ना …तभी तो चिडिया दाना चुगेगी.’
वो बाहर आया…और साथ मे कयी टाप, सब के सब स्लिव लेस, लो कट….लाल, गुलाबी, पीला… और आलमोस्ट शियर …
मेरे तो पैरों के तले जमीं सरक गयी…ये कोई भी कैसे….लेकिन गुड्डी ने तब तक मेरे हाथ में से मोबाइल छीन लिया और एक पिकचर निकालती हुयी दूकान दार को दिखाया..वो बड़ी प्राइवेट सी फोटो थी..उसने दोनों हाथ एक दूसरे में बाँध के ..सर के पीछे…उभारों को उभार के…मस्ती की अदा में हॉट माडल्स की नक़ल में…मैंने बस मोबाइल से खिंच ली ..मेरी ममेरी बहन ने मुझसे कहा था की मैं डिलीट कर दूँ लेकिन मैंने बोला की यार मेरे मोबाइल में है कर दूंगा…बस वो गुड्डी के हाथ और वही पिक्चर …फिर बोली ..ठीक है लेकिन एक नम्बर छोटा…
” हे हे..अरे थोडा कम… हाट पहनने लायक तो हो…” मैंने दूकान दार से रिक्वेस्ट की…
वो बिचारा फिर अन्दर गया. गुड्डी ने ठसके से बिना मुड़े मुझे सुनाते हुए बोला…” पहनेगी वो और उसकी सात पुस्त….और पहनाओगे तुम अपने हाथ से ..देखना…”
तब तक मेरे फ़ोन पे एक मेसेज आया. नम्बर फोन बुक में नहीं था…मैंने खोला तो लिखा था…
” अरे पांच के बदले पच्चास लग जाय…
बिन चोदे ना छोड़ब चाहे जेहल होय जा…अरे बनारस में आके जरूर मिलना ….हो गुड्डी…”
जब तक मैं ये मेसेज देख ही रहा था वो फिर निकला. अबकी उसने जो टाप दिखाए वो थोड़े कम हाट लेकिन तब भी स्लीव लेस तो थे ही.
” दोनों टाइप के एक एक दे दीजिये…” गुड्डी बोली. मैं इरादा बदलता उसके पहले गुड्डी ने आर्डर दे दिया.
” हे तू भी तो कोई ले ले…” मैंने गुड्डी को बोला…
वो न न कराती रही पर मैंने उसके लिए भी टाप, कैपरी और एक बहोत ही टाईट लो कट जींस ले ली.
दूकान दार के सामने ही मुझसे बोली…ये सब तो ठीक है तेरी वो इसके अन्दर कुछ नहीं पहनेगी क्या…बनारस वालों का तो फायदा हो जाएगा..लेकिन …”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
दुकान दार मुस्कराने लगा और बोला मैं अभी दिखाता हूँ..मेरे पास एक से एक हाट ब्रा पैंटी हैं…और सचमुच जब उसने निकाली तो हम देखते रह गये…एक से एक…कलर, कट, डिजाइन…विक्टोरिया’स सिक्रेट भी मात खा जाय. जो गुड्डी ने छांटी, कयामत थी…वो. एक तो स्किन कलर की ध्यान से ना देखो तो लगेगा ही नहीं कि अन्दर कुछ पहने हैं की नहीं. और पतली इतनी की निपल का आकार प्रकार सब सामने आ जाय…लेकिन दुकान दार नहीं माना.
“मेरी सलाह मानिये तो ये वालि ले जाइये…”और उसने अन्दर से चुन के एक निकाली..थी तो वो भी स्किन कलर की लेकिन सिर्फ हाफ कप, अन्डर वायर्ड…और साथ में हल्के सी पैडेड…” उभार उभर के सामने आयेन्गे…३० कि होगी तो ३२ कि दिखेगी, कप साइज भी एक बडा दिखेगा. क्लिवेज भी पूरा खुल के ….” अब गुड्डी के लिये सोचने की बात ही नहीं थी. उसने एक सेल्क्ट कर लिया. और साथ मेन एक सफेद भि. मैने दुकान्दर से कहा…इन के दो सेट दे देना. फिर वो पैन्टी ले आया. गुड्डी जब तक चुन रही थी…वो धीरे से आके बोला…” साह्ब…वो जो आखिरी एस. एम. एस. मिला होगा ना…वो मैने ही भेजा है.”
मेर माथा ठनका…तो इसका मतलब….” पान्च के बदले पचास लग जाय, बिन चोदे ना छोडब…जहे जेहल होइ जाय ” वाला मेसेज इन्ही जनाब का था. तब तक गुड्डी ने दो थान्ग नुमा पैन्टी पसन्द कर ली थीं. मैने फिर उसे दो सेट का इशारा किया……पैक करते हुये वो बोला सही चुना आपने इम्पोर्टेड है.
तब तो दाम बहोत होगा…” गुड्डी ने चौन्क के पूछा….
” अरे रहने दिजिये आप से पैसे कौन मांगता है….वो मेर मतलब है आप लोग तो आयेंगी ना बस ऐड्जस्ट हो जायेगा…”
” मतलब…ऐसा कुछ नहीं है…”
मैं उसे रोकते हुये बोला लेकिन बीच में गुड्डी बोली,
” अरे भैया आप इनसे पैसा ले लिजिये….होली के बाद जब वो आयेगी ना तो आप के पास ले के आयेन्गे.. और फिर हम दोनो मिल के आप की दुकान लूट लेंगें.” गुड्डी की कातिल अदा और मुस्कान कत्ल करने के लिये काफी थी.
जब हम बाहर निकले तो हमारे दोनो हाथ में शापिन्ग बैग और गुड्डी पर्स निकाल के पैसे गिन गिन के रख रही थी. गुड्डी ने जोड के बताया…४०% ड्रेसेज पे और ४८% बिकनी टाप, पे छूट. कुल मिला के ४२% छूट…फिर नाराज होके मेरी ओर देख के बोली,
” तुम भी ना बेकार में इमोशनल हो जाते हो. अगर वो फ्री में दे रहा था तो ले लेते. बाद कि बात किसने देखी है , कौन वो तुम्हारे उपर मुकदमा करता…और फिर मानलो, तुम्हारी वो ममेरी बहन दे ही देती तो कौन सा घिस जायेगा उसका. फिर इसी बहाने जान पहचान बढती है. अब आगे किसी और दुकान पे टेसुये बहाये ना तो समझ लेना…तडपा दुंगी. बस अपने से ६१-६२ करते रहना…बल्की वो भी नहीं कर सकते हो…मैने तुमसे कसम ले ली है की अपना हाथ इस्तेमाल मत करना.”
और उसके बाद जिस अदा से उसने मुस्करा के तिरछी नजर से मुझे देखा…मै बस बेहोश नहीं हुआ….
उस के बाद एक बाद दूसरी दुकान..अल्लम गल्लम…हां दो बाते थीं…एक तो ये…पहली गलती मेरी थी…मैने ही तो कल शाम उसे बोला था कि उसके यहां से निकल के शापिंग पे जाना है और दूसरी…वो अपने लिये कुछ भी नहीं खरीद रही थी…मेरे बहोत जोर करने पर ही..कभी कभी…एक जगह कहीं डेकोरेटिव कैन्डल्स मिल रही थीं, सबसे बडी..एक फूट की रही होगी..बस उसने वो तो खरीद ली आधी दर्जन…९ इन्च वाली भी जो ज्यादा ही मोटी थीं…साडियां…अपनी भाभी के लिये तो मै पहले से ही ले आया था..लेकिन मैने उसे बता दिया कि मेरे यहां एक पहले काम करता था उसकी बीबी..आज कल रहती थी..और उमर में मुझसे १-२ साल ही बडी होगी..इस लिये रिश्ता वो भौजाई वाला ही जोडती थी…बसंती…उसके लिये भी साडी उस के साथ ब्लाउज..एक दूकान पे तो हद हो गयी..पहले उसने अपनी लिस्ट से वैसलीन की दो शीशी खरीदी, फिर मुझसे कहने लगी कि दो पैकेट कन्डोम के ले लो, दरजन वाले पैकेट लेना…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
लेकिन मैं हिचक रहा था.एक तो दूकान पे सारी लडकियां शापिन्ग कर रही थीं. और दूसरे एक को छोड के बाकी सारी सैल्स गर्ल्स थीं.
“क्यों कल तुमने इ पिल खरीदी तो थी..इस्तेमाल के बाद वाली…वो क्या करोगी. और फिर तुमने तो प्रापर पिल भी ली है…” फुस्फुसाते हुये मैने गुड्डी से कहा.
वहीं दुकान पे मेर कान पकडती हुयी वो बोली, ” तुमको मैं ऐसे ही बुद्धु नहीं कहती…अरे मैं तुम चाहोगे तो भी नहीं लगाने दुंगी..जबतक चमडे से चमडा ना रगडे…क्या मजा..मेरा तो छोडो, तुम्हारे उस माल से भी …लेकिन इस्तेमाल के बारे में बाद में सोचना..पहले जो कह रही हुं वो करो.
मरता क्या ना करता…मैं काउन्टर पे गया. एक सेल्स गर्ल थी, थोडी डस्की, लेकिन बहोत ही तीखे नाक नक्श, गाढी लिपस्टिक, हल्का सा काजल, उभार टाइट टाप में छलक रहे थे कम से कम ३४ सी रहे होंगे…टाप और लांग स्कर्ट.
.”व्हाट कैन आई डू फार य़ु…” टाईट टाप बोली.
मैं पहले तो थोडा हकलाया, फिर अपने सारे अंग्रेजी नालेज का इस्तेमाल करके हिम्मत करके बोला…” आई वांट सम ..सम…सम कन्ट्रासेप्टिव…”
” ओ के …देयर आर मेनी टाईप्स आफ कन्ट्रसेप्टिव्स….पिल्स, जेली, नोव वी हैव…आफटर युज…पिल्स….आप को क्या चाहिये.”डार्क लिपस्टिक बोली.
” जी जी…वो…उधर जो रखा है.” मैने उंगली से रेक में रखे कन्डोम्स के पैकेट्स की ओर इशारा किया.
वो वहां गयी और उस काउन्टर के पास खडी हो के, एक बार मुझे देखा और कन्डोम के पैकेट्स के ठीक उपर एक स्प्रे रखा था उसे उठा लायी और मुझसे बोली,
” यु वान्ट दिस…ये बहोत अच्छा है…नाईस च्वाय्स….इट विल डिले बाई ..ऐट लीस्ट सेवेन -एट मिनट्स मोर…दो सौ अड्सठ रुपये.” और मेरे हाथ मे पकडा दिया.
पीछे से गुड्डी मुझे कोन्च रही थी…अरे साफ साफ बोलो ना…कन्डोम..
टाईट टाप अभी भी मेरे सामने खडी थी.मेरे अगल बगल खडी लडकियां मुंह दबा कर मुस्करा रही थीं. मैं एम्ब्रास्ड फील कर रहा था.
टाईट टाप ने फिर पूछा…” कुछ और…ऐनीथिंग मोर…”
” यस….यस …सेम रेक…जस्ट बिलो…”
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वो फिर वहीं जा के खडी हो गयी..” हां बोलिये…क्या..”
बडी हिम्मत जुटा के मैं बहोत धीमे से बोला…” कन्डोम कन्डोम…
” कान्ट लिसेन…थोडा जोर से…” वो बोली.
पीछे से गुड्डी ने घुडका…”अरे जोर से बोल ना यार…”
दो चार स्कूल कि लडकियां और आके दुकान में खडी हो गयी थीं.
” कन्डोम…आई मीन कन्डोम…कन्डोम…” हिम्मत जुटा के थोडा जोर से मैं बोला.
” यस आई नो व्हाट यु मीन…” वो मुस्करा के बोली. एक दो और सेल्स गर्ल उसके बगल में आ के खडी हो गयी थीं.
” लेकिन कैसा…डाटेड, या एक्स्ट्रा लुब्रिकेटेड, या अल्ट्रा थिन…. फ्लेवर्ड भी हैं स्ट्राबेरी, बनाना”
लेकिन बिना मुझे बोलने का मौका दिये अब गुड्डी सामने आ गयी और बोली….दो लार्ज पैकेट, डाटेड, अल्ट्रा थिन…”
उसने निकाल के दे दिये लेकिन फिर मुझ से बोली…”मेरी ऐड्वाइस है…वी हैव सम …विद ईडिबिल फ्लेवर्स…इम्पोर्टेड हैं अभी आये हैं.”
मैं उस को मना नहीं कर सकता था या शायद मेर मन कर रहा थ या बस मैं किसी तरह दुकान से निकलना चाह्ता था. यस …झटके से मैने बोल दिया.
” एक और चीज़ है हमारे पास …सुडौल…फ़ोर यंग ग्रोइंग गर्ल्स…बहोत बढिया और शेपली डेवलपमेंट होता है..इसमें एक होली आफर भी है…ब्रेस्ट मसाजर है…८०% डिस्काउन्ट पे..हफते भर वन कैन फील द डिफरेन्स…”
स्कूल की लडकियां जो आयी थीं उनमें से एक वही खरीद रही थी.
” ठीक है ….ओ.के.” मैं बोला.
गुड्डी ने उसे कार्ड पकडा दिया. सब सामान ले के जब हम बाहर आये तो गुड्डी हंसते हुये दुहरी हो रही थी. वो रुकती , फिर खिलखिलाने लगती…कन्डोम बोल तो पा नहीं रहे थे…करोगे क्या…तुम भी ना यार…और वो…तुम को पूरी दुकान बेच देती लेकिन तुम कन्डोम नहीं बोल पाते.
लेकिन मेरी किस्मत एक और दुकान दिख गयी और वो उसमें घुस गयी.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
जब वो निकली तो फिर एक बैग मेरे हाथ में मेरी पूछने की हिम्मत नहीं थी कि इसमें क्या है. ११ बैग मैं उठाये हुये था.
” अगर तुम कहो तो…अब हम लोग रिक्शा कर लें…और कुछ तो नहीं…” मैने थक कर पूछा.
” नहीं अभी याद नहीं आ रहा है…लिस्ट चेक करते हुये वो बोली. और फिर याद आ जायेगा तो तुम्हारे मायके जाने के पहले एक राउंड और कर लेंगे.
खैर हम रिक्शे पे बैठ गये और रेस्ट हाउस के लिये चल दिये. स्टेशन के कुछ दूर पहले मुझे एक ठेले पे किताब कि दुकान दिखायी पडी, और मुझे बहोत कुछ याद आ गया.
” रोको रोको मैं ने रिक्शे वाले को बोला और उतर पडा..
गुड्डी भी मेरे साथ उतर पडी. मैने उसे समझाने की कोशिश की…” रुको ना मैं जरा एक दो किताब ले के आता हुं.”
” क्यों मैं भी चलती हूं ना साथ…” गुड्डी तो गुड्डी थी.
लेकिन दुकान पर पहुंच कर अब झेंपने की बारी उसकी थी.
ये दुकान पहलवान की थी जहां से मैने मस्तराम साहित्य का अध्ययन प्रारम्भ किया था. सचित्र कोक शास्त्र, देवर भाभी की कहानियां, बसन्त प्रकाशन की मैगजीन से ले कर मस्तराम की भांग की पकौडी और बाकी…सब कुछ…
” का हो पहलवान कैसे हऊवा…” पूरानी यादों को ताजा करते हुये मैने पूछा.
वो तुरंत पहचान गया..
” अरे भैईया…बहूत दिन बाद..सुनले रहलीं कि कतों बडकी सरकारी नौकरी…”
” अरे ठीक हौ..हां इ बतावा की …कुछ हो…”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अरे हौ काहें नाहीं आप के खातिर हम कबौ…लेकिन ” अब उसने गुड्डी की ओर देखा.
गुड्डी कुछ समझ रही थी, कुछ झेंप रही थी.
मेरा हाथ गुड्डी के कंधे पे पहुंच गया और मैने उसे अपनी ओर खींच लिया. मेरी उंगलियां अब उसके उभारों तक पहुंच रही थीं.
ये पोज ही हम लोगों के रिश्तों को बताने के लिये काफी था. बची खुची बात …मेरी बात ने कह दी.
” देखावा ना इहौ देखियें…अरे हम लोगन का ऐसे हौ…कौनौ…छिपावे की…”
पहलवान ने ठेले के अन्दर से अपना झोला निकाल लिया. इसी में उसका खजाना रहता था. उसने निकाल के एक किताब दिखाय़ी…भांग की पकौडी ….भाग दो..स्पेशल एडीशन…
मैने किताब ले के गुड्डी के हाथ में पकडा दी और बीच का एक पन्ना खोल दिया…गुड्डी ने पढ्ने की शुरुआत की…” हां और जोर से चोदो जीजु…ओह आह…” अ
और झेंप गयी.
” मै चलती हुं रिक्शे पे सामान रखा है…तुम ले आओ…किताब…” और पर्स उसने मुझे पकडा दिया.
पर्स तो मैने पकड लिया लेकिन साथ में उसका हाथ भी…
” रुको ना बस दो मिनट…बोलो ना कैसी है किताब पसंद आयी तो ले लें”
” मैं क्या बोलुं जैसा तुम्हे लगे…”
गुड्डी जबरद्स्त झेंप रही थी.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अरे भैईया..फोटुवे वाली हौ…देयीं…” पहलवान ने झोले से एक रंगीन किताब निकालाते हुये कहा.
” हां हां दा ना…” और मैने किताब ले के फिर गुड्डी के सामने ही पन्ना खोल दिया. बहोत अच्छी प्रिन्टिन्ग थी….जो पन्ना खुला उसमें थ्री सम था दो लडके एक लडकी…एक आगे से एक पीछे से…”
गुड्डी ने अपनी निगाह दूसरी ओर कर ली थी लेकिन मैं देख रहा था की तिरछी निगाह से उसकी आंखे वहीं गडी थी.
” होली का कौनो ना हौ…खास बनारसी…” मैने फिर पूछा.
गुड्डी कहीं और देखने का नाटक कर रही थी. लेकिन कान उसके हम लोगों की बात से चिपके थे.
” हौ ना…अरे अन्धरा पूल वाले…दू ठे मैगजीन हओ…होली के स्पेसल आजै आइल हो…”
और उसने निकाल के आजाद लोक और अंगडाई की दो कापी पकडा दी. एक दो और पुरानी मस्त राम एक अन्ग्रेजी की ह्युमन डाईजेस्ट और मैने ले ली.
रिक्शे तक पहुंचने तक गुड्डी ने वो किताबें छुय़ी भी नहीं. लेकिन रिक्शे बैठते ही उसने सारी मेरे हाथ से झपट लीं. अब मुझे भी मौका मिल गया उसे कस के पकड के अपनी ओर खींचने का..साथ साथ किताब देखने के बहाने…उसने आजाद लोक होली अंक खोल रखा था. होली के जोगीडे थे, गाने थे और टाईटिलें थी और साथ में होली के पाठक पाठिकाओं के संस्मरण…जीजा साली की होली…होली में देवर के संग किसी सोनी भाभी ने लिखा था…पन्ने पलटते गुड्डी एक पन्ने पे रुक गयी और जोर से मुझसे बोली…
” हे ये तुम्हारी कहानी किसने लिख दी…कहीं तुम्ही ने तो नहीं..”
मैने देखा…संस्मरण था होली का…हेडिन्ग थी…
” होली में ममेरी बहन को चोदा…”
जब तक मैं बोलुं कुछ… हम लोग रेस्ट हाउस पहूंच गये थे.
कमरे में घुसते ही मैं बेड पे गिर पडा. बगल में ११ बैग शापिन्ग के और गुड्डी का सामान….
गुड्डी ने पहले तो रेस्ट हाउस के कमरे का दरवाजा, खिडकियां सब बंद कीं, फिर सारे बैग, अपना सामान पलंग से हटाया…फिर मेरे बगल में बैठ के बोली,
” थक गये क्या…”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मैं कुछ नहीं बोला…
” अल्ले अल्ले मुन्ना मेरा…अभी ..बस अभी तुम्हारी सब थकान दूर करती हूं….एक मिनट ….लेकिन ये पहले कपडे तो उत्तार दो…” और मेरे लेटे लेटे ही उसने मेरी शर्ट उतार के बिस्तर के नीचे फेंक दी. पहले तो उसने मेरे चेहरे पे हाथ फिराया और धीरे से बोली,…तुम हिलना मत बस लेटे रहो…अच्छे बच्चे की तरह…मुन्ना मेरा…गुड गुड…
.
फिर उसकी उंगलियों ने…बडे से बडे स्पा वाले मात खा जायें.
पहले कंधे पे फिर गले के पीछे…पहले उंगलियों के पोरों से फिर हल्के हल्के दोनो हाथों से फिर जोर से…और वहां से सरक के मेरे हाथों की मांस पेशियों पे…मुट्ठी से दबाते …छोटी छोटी मुक्कि से मारते…उसकी उंगलियां मेरी सारी थकान पी गयीं. लेकिन वो रुकी नहीं. उसने मुझे साईड में किया और फिर कन्धे के नीचे कि मसल्स दोनो हाथों से जोर जोर से मसाज करते हुये बैक बोन के साथ साथ…मेरी आंखे बंद हो गयीं लगा सो जाउंगा…करीब सारी रात चन्दा भाभी के साथ और सुबह से होली…उसने मुझे फिर पीठ के बल लिटा दिया और पैन्ट के बटन खोल के हिप उठा के पैट अपने हाथों से नीचे सरका दी और एक झटके में नीचे उतार के फेंक दी.
मुझे लगा अब गुड्डी कुछ शरारत करेगी.
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
उसने मेरे एक पैर को उपर उठाया पैर के पंजे को हल्के हल्के अपने हाथ से दबाने लगी. दर्द अपने आप घुलने लगा. लेकिन फिर उसने वो किया जो मैं सोच भी नहीं सकता था…
वो पलथी मार के मेरे पैरों के पास बैठी थी. उसने दोनो पैरों के तलवे अपने उभारों के उपर रख लिये और हल्के हल्के उरोजों से ही दबाने लगी. फिर उसके होंठों ने एक किस मेरे पैर के अंगुठे पे लिया फिर बाकी उंगलियों पे…साथ साथ उसकी उंगलियां मेरे टखनों को फिर घुटने और पंजों के बीच दबा रही थी. होंठ अब मेरे पैर के अंगुठे को कस कस के चूस रहे थे किस कर रही थी…फिर जुबान मेरे पूरे तलवे पे…और उंगलियां अब तक जांघो पे आ चुकी थीं. झुक के उसने ढेर सारी किस मेरे पंजो से ले के जांघों तक ली और फिर मुझे पेट के बल लिटा दिया. मेरे जंग बहादुर कुछ कुन्मुनाने लगे थे…उसे जांघ के नीचे दबा दिया.
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अब गुड्डी के हाथ सीधे मेरे नितम्बो पे वो उन्हे दबा रही थी, मींड रही थी, जैसे कोयी आटा गुन्थे, मुट्ठी बांध के उससे दबा रही थी. मेरी सारी थकान काफूर हो चुकी थी. उसने दोनो हाथों से मेरे नितम्बों को फैलाया और देर तक पूरी ताकत से फैलाये रही फिर अपनी मंझली उंगली को मेरे गुदा द्वार के छेद पे ले जाके कस के दो तीन मिनट तक रगडा…और बोली…
एक बार बच गये बार बार नहीं बचोगे…और फिर मुझे सीधा करते हुये बोली…
” आराम मिल गया ना जा के नहाओ तैयार हो ….शाम के पहले हम लोगों को निकल जाना है.”
” हे मेरे कपडे, …” बाथरूम में घुसते घुसते मुझे याद आया.
” अरे निकालती हुं यार….नंगे नहीं ले चलुंगी, तेरे मायके.” वो बोली.
मैने शावर खोला..लेकिन बहोत जोर से…’ आ रही ’ थी इसलिये पहले मैं नम्बर १ के लिये खडा हो गया. शुरु भी नहीं हुआ थ की गुड्डी धढध्ढाडाते हुये घुसी.
” हे मैं सु सु…क रहा था….तुम नाक तो कर देती….”
” भूल भूल जाओ…कि मैं तुम्हारे पास नाक कर के आउंगी. मेरी मर्जी…जब आउं, जैसे आऊं…” और उसने मुझे पीछे से पकड लिया. उसके तने उभरे हुये उरोज मेरी पीठ मे रगड रहे थे. दोनो हाथों से उसने मेरे सीने को पकड लिया और हल्के से मेरे टिट्स को सहलाने लगी. फिर एक टिट को कस के पिन्च कर दिया और अपनी जीभ की नोक मेरे कान में डाल के सुरसुरी करने लगी. उसका एक हाथ मेरे लंड के बेस पे चला गया. उसे दबाते हुये बोली,
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” अरे राज्जा करो ना सुसु…जी भर के करो…इसके खिलाफ कोयी कानून तो है नहीं और ना अभी तक कोयी टैक्स लगा है…मुझसे शरमाता है मुन्ना….अरे एक दिन तो तुझे अपने हाथ से..” ये कहते हुये उसने मेरे बाल्स को हल्के से दबाया, गाल पे काट लिया”
” हे नहला भी दो ना…” मैने आवाज लगायी.
बाहर से उसने आवाज लगायी…” घबडाओ मत एक दिन नहलाऊंगी भी, धुलाउंघी भी, और सु सू भी करा दुंगी…लेकिन आज अभी जलदी भी है और मेरी…तुम्हे बताया तो था.”
मुझे याद आ गया…की उसकी सहेली की तो विदायी हो गयी है लेकिन ५-६ घंटे तक वहां ’अनटचेबल’ है.
नहाने के पहले मैने नल खोल के सर नीचे कर दिया…मेरा गेस सही निकला.
जब रीत ने चलते चलाते, एक रास्ते के लिये कह के गुलाबी रंग से स्नान करा दिया था, उसी समय मेरे सर में गुन्जा ने ढेर सारा सूखा रंग भी डाल दिया था. और अब वो धुल के बह रहा था.
गूड्डी बाथरूम में शैम्पू और साबुन रखने के लिये आयी थी.
जम के नहाने के बाद…रंग तो कुछ कम हुआ ही थकान भी उतर गयी.
तौलिया तो थी नहीं.
अन्दर से मैं चिल्लाया…टावेल प्लीज.
” अरे जानू ..बाहर आ जाओ, रगड भी दूंगी..पोंछ भी दूंगी….” गुड्डी ने जवाब दिया.
कोयी चारा था क्या…
मैं वैसे ही बाहर आया…क्या करता.
कमरा पहचाना नहीं जा रहा था.
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सारा सामान अंदर…मेरा और गुड्डी का सामान करीने से लगा, मेरी शर्ट पैंट बेड पे रखी और गुड्डी के हाथ में टावेल…
” क्या टुकुर टुकूर देख रहे हो….” वो आंख नचा के बोली और अपने हाथ से मुझे पोंछने लगी.
मैं डर रहा था की वो कोयी शरारत न करे….लेकिन उसने धीरे धीरे पहले आराम से मेरे बाल, फिर बाकी देह पोंछी. लेकिन शरारत शुरु हुयी जब टावेल पीछे पहुंची. कस कस के उसने मेरे नितम्ब रगड रगड के साफ किये,सबसे ज्यादा रंग वहीं लगा था और सबसे कम वहीं छूटा..
.उंगली में तौलिये का के कोना लपेट के उसने पहले तो मेरे चूतड फैलाये फिर सीधे गांड में..
” देखूं यहां साफ वाफ किया है कि नहीं…”वहां वो थोडी सी उंगली अंदर डालती, फिर गोल गोल घुमाती, फिर थोडा और अन्दर…दो मिनट तक ..एक पोर से ज्यादा ही अन्दर तक…और उसका दो असर हुआ , मैं सिसकी के साथ उसे मना कर रहा था लेकिन वो मानती तो गुड्डी कहां से होती…और दूसरा…मेरा जंग बहादुर…सीधे ९० डिग्री पे…
और गुड्डी ने तौलिये में लिपटी उंगली मुझे निकाल के दिखाया…सफेद तौलिया…लाल काही हो गया था.
और गुड्डी ने तौलिये में लिपटी उंगली मुझे निकाल के दिखाया…सफेद तौलिया…लाल काही हो गया था.
मैने सोचा भी नहीं था की वहां भी सूखा रंग..( गुड्डी को मालूम था…इसलिये की …वो सूखा रंग डाला भी उसी ने तो था..जब भाभियों ने मुझे निहुरा रखा था…उसी समय..चंदा भाभी ने मेरी गांड फैलाय़ी थी और गुड्डी ने पूरा मुट्ठी भर रंग अंदर तक…”
पैर सुखाने के लिये वो अपने घुटनों ने बल बैठ गयी थी.
पहले टावेल से उसने पैर सुखाये और फिर एक छोटी सी टावेल से मेरे कन्कनाये, तन्नाये जंग बहादुर पे हाथ लगाया. गुड्डी उसे हल्के हल्के रगड भी रही थी और कुछ बोल भी रही थी. और अब सीधे उसकी किशोर उंगलियां, मेरे लंड को सहला रही थीं दबा रही थीं. मोटा बडा सा, गुस्साया, लीची ऐसा सुपाडा पूरी तरह खुला…मैने ध्यान दिया तो वो बोल रही थी…
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” बहोत ईंतजार कराया तुमको ना…अब मैं देखती हूं…”
“हे क्या बोल रही हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है…”
वो बडी बडी आंखे उठा के बोली, ” हे तुम से नहीं इस से बात कर रही हुं…तुम चुप रहो…और अपने होंठों पे उंगली से शान्त रहने का इशारा किया और फिर सर झुका के चालू हो गयी,
पहले तो उसने खुले सुपाडे पे एक दो किस लिये और फिर बोलने लगी,
” बहोत तडपाया है ना तुमको इसने…लेकिन अब देखो तुम्हे क्या क्या मजे कराती हुं…किस किस जगह की सैर कराती हुं, संकरी सुरंग की, गोलकूंडा के गोल दरवाजे की, भरतपुर के स्टेशन की, उपर नीचे आगे पीछे के सब दरवाजे खुलवा दुंगी तेरे लिये…चाहे डुबकी लगाना चाहे गोते खाना…तुम्हारी मर्जी..”
और गुड्डी की लम्बी रसीली गुलाबी जीभ, सीधे लंड के बेस से आगे तक लपर लपर चाटने लगी. और चाटते चाटते वो मेरे कभी एक तो कभी दूसरे बाल्स को अपने होन्ठों के बीच दबा के चूसने भी लगती.
मेरी हालत खराब होने लगी थी. आंखे बंद हो गयी थीं, कमर अपने आप धीमे धीमे आगे पीछे होने लगती. गुड्डी के एक हाथ ने मेरे लंड के बेस को दबा रखा था और दूसरा मेरी बाल्स को सहला रहा था, दबा रहा था. कभी कभी वो बाल्स और पिछ्वाडे वाली जगह के बीच सुरसुरी भी कर रही थी, अपने लम्बे नाखुन से वहां वो खरोंच देती.
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लंड पत्थर की तरह कडा हो गया था. बस मन कर रहा था की वो कुछ कर के उसे रिलीज करा दे. गुड्डी ने फिर अपनी जीभ पूरी बाहर निकाली और जुबान की टिप से मेरे सुपाडे के छेद को, पी होल को,… जस्ट एक हल्के से छेड दिया. लगा जैसे ४४० वोल्ट का झटका लगा हो. उसने एक पल के लिये जीभ हटा ली और फिर दुबारा अबकी वो सुपाडे के होल में टिप डाल के घुमा रही थी, मेरी मजे से जान निकल रही थी. उसने जैसे कोयी लालची लडकी लालीपाप चाटे , बस उसी तरह लंड के अगले हिस्से पे चपड चपड फ्लिक करना शुरु कर दिया. कभी वो सुपाडे के चारों ओर जुबान घुमाती तो कभी सिर्फ नीचे चाटती और अचानक एक बार में ही गप्प से उसने पूरा सुपाडा गपक लिया और चूसने चुभलाने लगी.
मेरी पूरी कोशीश के बावजुद वो और अन्दर नहीं घुसेडने दे रही थी. सुपाडा खूशी से और फूल के कुप्पा हो गया. कुछ देर बाद उसने मुंह से उसे बाहर निकाल लिया और फिर एक बार उसके पी होल पे किस करके बोलने लगी,
” देखा अरे मेरा बस चले तो तुझे इतना मजा दूं ना की तुम सोच नहीं सकते ..ये तो ट्रेलर भी नहीं था..अरे तुम्हारे एक आंख क्यों है, जिससे तुम कोयी भेदभाव ना कर पाओ…तुम्हारे लिये सब चूत एक बराबर हों…बल्की सब छेद एक बराबर हों…लेकिन ये ना इन्हे क्या चिन्ता तुम्हारी…इससे ये रिश्ता ये नाता, ये कजिन है तो ये…अरे खुद उस साल्ली की चूत में चींटे काट रहे हैं, बैगन मोमबत्ती घुसेड रही है, पूरे मोहल्ले वालों के आगे चूत फैला के खडी है लेकिन ये …बस अब देखना तुम मेरे हाथ में आ गये हो ना बस अब हमारा तुम्हारा राज चलेगा…देखना ये चाहें ना चाहें तुम द्नद्ना के घुस जाना, चोद देना साल्ली को जिसका भी मन चाहे बाकी मैं देख लुंगी.”
और ये कह के गुड्डी ने घोंटा तो आधे से ज्यादा लंड उसके मखमली मुंह में.और वह पूरी रफ्तार से चूस रही थी. जैसे कोयी वैक्युम क्लीनर सक कर रहा हो…उसकी आंखे बाहर निकल रही थीं, गाल एक दम अंदर की ओर वो चिपका लेती थी, रसीले गुलाबी होन्ठ लंड को रगड रहे थे और नीचे से जुबान लंड के निचले हिस्से को चाट रही थी.
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मैं बस चुपचाप उस मजे को महसूस्रहा था. गुड्डी ने अपने दोनो हाथों से मेरे चूतडों को कस के भींच रखा था अपनी ओर खींच रखा था. और अब मुझसे नहीं रहा गय और मैने भी गुड्डी के सर को दोनो हाथों से पकड के कस कस के लंड अंदर ठेलना शुरु किया. एक नय़ी नवेली किशोरी के लिये…ये बहोत मुश्किल था लेकिन मैं उस समय सब कुछ भूल गया था और आगे पीछे कर के जैसे उस के मुंह को चोद रहा होंउं बस उस तरह ढ्केल रहा था. वो बिचारी गों गों कर रही थी…लेकिन ना मैं रुकना ना चाहता था ना वो…मेरा सुपाडा गले के अंत तक लग रहा था टकरा रहा था…उस की आंखे उबल रही थीं. फिर भी वो अपने मुंह को मेरे लंड पे ठेले जा रही थी..जैसे कोयी खुद शुली पे चढ्ने की कोशिश कर रहा हो. और इस के साथ उस का चूसना, चाटना जारी था.
लेकिन कुछ देर बाद गुड्डी ने मुंह से लंड को बाहर कर दिया…उसके गाल दुखने लगे. लेकिन ना जीभ कि हरकत रुकी नहीं ना उंगलियों की बदमाशी थमी.
वो साइड से अब लंड को चाट रही थी, चूम रही थी. उसकी उंगलियां मेरे बाल्स को कभी दबा देतीं कभी सहला देतीं तो कभी वो बाल्स और पिछ्वाडे के बीच में उंगली से रगड देती तो कभी लम्बे नाखून मेरी गांड के छेद पे…सुरसुरी कर देते घिसड देते.
कुछ देर बाद उसने फिर तरीका बदला और अपने टाइट कुर्ते से छ्लकते उभारों के बीच उसे दबा दिया…और लंड को बीच में कर के दोनों चूंचीयों के बीच भींच रही थी. थोडी देर के बाद उसने फिर लंड को मुंह में ले लिया. अब तक उसके होंठ गाल अच्छी तरह सुस्ता चुके थे. और इस लिये अब जो उसने लंड को अंदर लिया तो पहली ही बार में तीन चौथाई से ज्यादा घोंट लिया और पहले ही उसके थूक से चिकने हो जाने से अब लंड सटासट उसके मुंह में…जीभ के सहारे…अंदर एकदम जोर से जोश से…उसके होंठ दांतों पे चढे, एक हल्की सी भी खरोंच मेरे लंड पे नही लगी और धीरे धीरे कर के पूरा का पूरा लंड…मुझे विश्वास नहीं हो रहा था…और जैसे ही मेरे बाल्स उसके होंठों से टकराये उसने सर उठा के अपनी बडी बडी आंखों से मुझे देखा…जैसे कह रही हो देखा…ये काम जैसे मैं कर सकती हूं कोयी नहीं कर सकता…सुपाडे ने उसके गले को ब्लाक कर रखा था तब भी वो कम से कम एकाध मिनट तक उसी हालत में रह कर नाक से पूरी तरह सांस लेती हुयी….फिर उसे धीमे धीमे निकालती.
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मैने डीप थ्रोट की बहोत ब्ल्यु फिल्में देख रखी थीं लेकिन जिस तरह से गुड्डी चूस रही थी…वो सब पानी भरती.
गुड्डी पूरे जोर से चूसती और जब लंड पूरा अंदर चला जाता…वो खुद अपने मुंह को सर को लंड के उपर पुश कर के बाल्स से सटा के रखती…मैं देख रहा था की उस की गाल की एक एक नस…उसकी आंखे सब बाहर की ओर हो जाती लेकिन वो मजे ले ले के और फिर जब उसे निकालती तो अगले ही पल पहले से दूने जोश से लंड फिर जड तक अंदर…साथ साथ उस की शैतान उंगलियां मेरे गुदा द्वार को छेडती..और एक बार तो उस ने एक पूरी उंगली की पोर अंदर कर दिया और साथ में कस कस के चूस रही थी.
मुझे लग रहा था कि अब मैं गिरा ..अब झडा…लेकिन अब मैं ये सोचने की हालत में नहीं था…और जिस तरह से गुड्डी के होन्ठ मेरे लंड से चिपके थे ये तय था कि वो सारी मलाई गटक जायेगी.
मैं जोर जोर से लंड गुड्डी के मुंह के अंदर बाहर कर रहा था और वो कस कस के चूस रही थी.
तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी.
मेसेज की घंटी वो रिंग टोन जो मैने रीत के लिये सेट किया…बहोत हुयी अब आंख मिचौली….खेलुन्गी अब रस की होली…और गुड्डी ने अपना मुंह हटा लिया. मैने कोशिश की कि उस के सर को पकड के …लेकिन वो खडी हो गयी और दूर जाके मोबाइल को खोल के मेसेज देख रही थी.
जैसे कोयी किसी बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ले वही हालत मेरी हो रही थी.
जैसे कोयी किसी बच्चे के हाथ से मिठाई छीन ले वही हालत मेरी हो रही थी.
गुड्डी ने मुझसे मेसेज पढते हुये मुझसे कपडे पहनने का इशारा किया. मेरे पास चारा ही क्या था…मैं बस शर्ट पैंट पहनते हुये उसे देख रहा था…मारो तो तुम्ही…जिलाओ तो तुम्ही…
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मेसेज पढ के पहले तो वो खिलखिलायी…फिर बोली…
“अरे इत्ता मुंह मत बनाओ…यार मुझे एक काम याद आ गया था असली चीज खरीदना तो मैं भूल ही गयी थी और उसकी दुकान शाम को ही बंद हो जाती है और दूसरी बात ये तुम्हारी मलाई…अब ये सीधे मेरी भूखी बुल बुल के अंदर जायेगी और कहीं नहीं…भले ही तुम्हे छ: सात घन्टे इंतजार करना पड जाये.”
मैने मोबाइल के लिये हाथ बढाया तो उसने मना कर दिया बोली रास्ते में अभी टाइम नहीं है.
हांक के उसने मुझे रेस्ट हाउस के कमरे से बाहर कर दिया..
.” अरे यार सामान सब मैने पैक कर दिया है…बस वो जो सामान थोडा सा रह गया है बस एक दुकान है…जल्दी से ले के …कहीं कूछ खाना हुआ तो खा के सामान ले के चल देंगे और एक बार तुम्हारे मायके पहुंच गये तो फिर तो….”
उसने रिक्शे पे बैठते हुये मुझे समझाया. सामान जो छूट गया था वो रंग गुलाल था. लेकिन कोयी खास तरह का….वो बोली…
” यार तुम्हारी भाभी ने स्पेशली बोला था इन रंगो के लिये…रीत के यहां ब्लाक प्रिन्टिंग का काम होता था तो ये लोग यहां से रंग लेते थे एक दम पक्का रंग…दूबे भाभी ने जो कालिख लगायी थी वो भी यहीं से…रिक्शा गली गली होते हुये एक बडी सी दुकान के सामने जा पहुंचा…तब उसने रीत का मेसेज दिखाया…
” जीजू…लोग एक पति के लिये तरसते हैं लेकिन आपकी बहना…इतनी कम उमर में बस अगर थोडी सी मेहनत कर दे ना….तो लख पति बन सकती है..मेरा मतलब मर्दो की संख्या से नहीं था…अब तक उसकी जो बुकिंग आ चुकी है और मैने कंफर्म की है…बस एक हफ्ते वो बनारस रह जाय….और रोज ८-१० घंटे….अब पैसा कमाना है तो मेहनत तो करनी पडेगी.”
हम लोग दुकान में घुस गये..एक ग्रासरी की दुकान की तरह बस थोडी बडी…ये थोक की दुकान थी और पूरे ईस्टर्न य़ु पी में होली का सामान सप्ल्लाई करती थी.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
बनारस की गलियां…पतली संकरी और फिर अन्दर एक से एक बड़े मकान, दुकानें बस वैसे ही ये भी…बस थोड़ी ज्यादा चौड़ी.
चौराहे पे दो पोलिस वाले सुस्ता रहे थे, पास में एक मैदान कम कचरा फेंकने की जगह पे ..कुछ बच्चे क्रिकेट का भविष्य उज्जवल करने की कोशिश कर रहे थे, दीवालों पर पोस्टर, वाल राईटिंग पटी पड़ी थी…मर्दानगी वापस लाने वाली दवाओं से ले के कारपोरेशन के इलेक्शन, भोजपुरी फिल्मों के पोस्टर से बिरहा के मुकाबले तक…दूकान के दरवाजे के पास ही दीवाल पर मोटा मोटा लिखा था देखो गधा मूत रहा है …वहां गधा तो कोई था नहीं हां एक सज्जन जरुर साईकिल दीवार के सहारे खड़ी कर लघु शंका का निवारण कर रहे थे. एक गाय वीतरागी ढंग से चौराहे के बीचोंबीच बैठी थी दो तीन सामान ढोने वाले टेम्पो और एक छोटा ट्रक दूकान से सट के खड़ा था. उसमें उसी दूकान से सामान लादा जा रहा था. टेम्पो शायद आस पास के बाजारों के लिए और ट्रक आजमगढ़ बलिया के लिए…
दूकान के अन्दर भी बहोत भीड़ भाड़ नहीं थी. थोक की दूकान थी और नार्मली शायद वो फुटकर सामान नहीं बेचते थे. हाँ दो तीन लोग जिनके ट्रक और टेम्पो बाहर खड़े थे वो थे और दूकान के मालिक तनछुई सिल्क का कुरता पाजामा पहने उन लोगों से मौसम का हाल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति पर चर्चा कर रहे थे.
गुड्डी ने दूर से उन्हें नमस्ते किया और उन्होंने तुरंत पहचान लिया.
वो सिर्फ दूबे भाभी के ब्लोक प्रिंट के लिए सामान ही नहीं सप्प्लाई करते थे बल्कि पारिवारिक मित्र भी थे. और उन्की छोटी लड़की रीत के साथ पढ़ती थी. वो हम लोगों के पास आके खड़े हो गए…गुड्डी ने मेरा परिचय कराया और बताया की वो मेरे साथ जा रही है इसलिए रंग और होली के कुछ सामान …उसकी बात काट के उन्होंने एक गुमास्ते को बुलाया और कहा की इसको बता दो .
मुझे लगा की गुड्डी पता नहीं क्या क्या बोले और देर भी हो रही थी तो लिस्ट मैंने उसे पकड़ा दी.
उन्होंने मेरा परिचय उन सज्जन से भी कराया जिन की ट्रक बाहर लद रही थी ये कह के की तुम्हारे शहर के ही हैं. और जब उन्होंने बताया की जायसवाल जनरल स्टोर तो मैं तुरंत समझ गया..चौक पे डिलाईट टाकिज के बगल में ही तो…और उन्होंने भी बताया की हमारे घर के लोगों से वो भी परिचित हैं… तब तक मैंने दूकान के एक कोने में चाइनीज पिचकारियाँ देखीं तो मैंने उनसे कहा की अरे पिचकारियाँ भी चीनी तो वो हंस के बोलो चलो तुम्हे दिखलाता हूँ.
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तरह तरह की पिचकारियाँ, रंग और साथ में ही नीचे खुले डब्बों में हल्दी, धनिया, मिर्च पीसी तरह तरह के मसाले तभी मेरी निगाह पीतल की दो पिचकारियों पे पड़ी खूब लम्बी मोटी…मैंने उनसे पूछा तो हंस के वो बोले,
” अरे भैया पहले हमको भी शौक था…एक एक पिचकारी में आधी बाल्टी तक रंग आ जाता है और धार इतनी तीखी की मोटे से मोटा कपड़ा भी फाड़ के रंग अंदर ..लेकिन अब किसकी कलाई में इतना जोर है की इसको चलाये….इस लिए तो अब बस प्लास्टिक और वो भी बच्चे ..बड़े तो होली खेलने निकलते नहीं और खेलते भी है तो सूखे रंग या पोतने वाले रंग …पिचकारी कहाँ…”
मुझे लगा की इनकी कहानी कहीं लम्बी ना हो जाय इसलिए मैंने सीधे पूछा कितने की है…तो वो हंस के बोले…अरे ले जाओ तुम जो कहोगे लगा देंगे वैसे ही पड़ी है…गुड्डी सामान चेक कर के देख रही थी.
हमारे कुछ समझ में नहीं आया. जो दूकान के मालिक थे उनका चेहरा एकदम अचानक से उतर गया.
सामने दो लडके खड़े थे वो दोनों टी शर्ट और जींस में थे २२-२४ साल के, कपडे थोड़े तुड़े मुड़े ..दाढ़ी थोड़ी सी बढ़ी…एक के हाथ में साइकिल की चेन लिपटी थी. उन्होंने घबडा के गुड्डी से कहा,
” बेटा तुम लोग चलो हम तुम्हारा सामान भेजवा देंगे…बाद में…ज़रा…जल्दी निकलो..”
हमने चारो ओर देखा दूकान में कोई नहीं …ना काम करने वाले ना बाकी ग्राहक सभी गायब और तभी घडडरर की आवाज हुयी और हमने जब दरवाजे की ओर देखा तो शटर एक आदमी बंद कर रहा था और जब मुड के उसने दूकान के मालिक को देखा तो लगता है उन्होंने मौत देख ली. बस बेहोश नहीं हुए.
उसकी उम्र थोड़ी ज्यादा लग रही थी २८-३० का, पैंट के साथ एक काली शर्ट अन्दर टक की हुयी…लेकिन मसल्स बहोत डेवलप, पैंट की जेबें थोड़ी फूली कमर के पास भी उसी तरह शर्ट फूली एक हाथ में चांदी का कड़ा…वो कुछ बोला नहीं सिर्फ दूकान के मालिक को देखता रहा..
” आप …आप ने बेकार में तकलीफ की खबर कर देते मैं हाजिर हो जाता…आप मेरी….मुझे तो इन लोगो ने बताया …नहीं की ….”
दूकान के मालिक की घिघी बंधी हुयी थी. दोनों हाथ जुड़े हुए आंखों में डर नाच रहा था…
वो आदमी कुछ नहीं बोला. बस उन्हें देखता रहा अपनी फूली हुयी जेब पे हाथ रख के…लेकिन जो दोनों हम तीनो के पास खड़े थे उनमे से एक बोला…
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” अब तो साहब आ ही गए हैं…त….अरे ससुर क नाती…महिना शुरू हुए १० दिन होई गवा है होली अब गिन के ४ दिन बची है…त इ छूटकवा आय रहा की नाय…बोल…और ओके टरकाय दिया …की अरे एकरे तो सर पे खून नाच रहा था उ तो हम रोके एकरा के…की पुरान रिश्ता है ..बडमनई हैं और आप…”
” उ …उ…तो बाबू साहब की इहां हम शुरूये मैं…और होली के अलगे से…”
जो दूकान के मालिक थे…थोड़ी उनकी हिम्मत बंधी की कोई जैसे गलत फहमी हुयी हो और अब वो सुलझ जायेगी….उनके हाथ अभी जुड़े हुए थे.
” बाबू साहब तो ठीक है लेकिन इहो तो हमारो साहब…इनके लिए …दो बार फोन करवाये…त का…साहेब कुछ बोलते ना तो का कपरे पे चढ़ा के ससुर का नाती नाचाबा…” वो आदमी चालू हो गया.
” नहीं नहीं गलती होई गई मालिक माफ कय दिहल जाय….अब आगे से…अबहिंये…” वो झुके जा रहे थे गिडगिडा रहे थे…बस रो नहीं रहे थे…
” भूल गए …पिछली बार तुम्हरी लौंडिया ले गए थे तीन दिन के लिए…तबे किश्त बंधी थी…तब …तब बाबू साहेब नहीं इहे साहब बचाए थे…नहीं तो हमार तो पूरा मन था की ससुरी को गाभिन कर के भेजते …इ तो साहब तुम्हारो पुरानी …बस खियाल आ या गया…वरना मडुआडीह में बैठाया देते…रोज १०-१० मर्द ऊपर से उतरते ना…ता जताना तुम बक रहे हो उतना त उ ससुरी महिना में अपनी चूत से उगल देती. नाही तो बम्बई ले जा के बेच आते …कच्ची माल थी उस बकत ….त अब तू अपन दूकान सम्हाला अब तोहरी बिटिया एक नयी दूकान खोलिहें…और जेतना लेवे के होई हम लोग ले लेब…”
हम लोगके पास खड़ा आदमी फिर चालू हो गया.
अब तो वो बिचारे अलमोस्ट दंडवत होके माफी मांगने लगे…लेकिन गुड्डी बोली..जो अब टक हम सबके साथ दहसी हुयी खड़ी थी…
” चाचा जी नहीं…”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
बस गुड्डी का ये बोलना जहर हो गया. हमारे पास जो दो लोग थे उनमें से जो साइलेंट टाईप का था उसने गुड्डी की बांह कस के पकड़ ली और अपनी और खींच लिया.
दरवाजे के पास खड़ा तीसरा आदमी अब बोला….
‘ तो ये तुम्हारी भतीजी है …”
” नहीं नहीं जी ..ऐसा कुछ नहीं …अरे ऐसे ही बोल रही है सौदा लेने आई थी बस…ये लोग तो बस जा रहे थे बस…इसका मुझसे कोई लेना देना नहीं बस छोड़ दीजिये इसे…हे जाओ तुम लोग कहाँ रुके हो…हम सब वो कुछ नहीं रखते …जाओ…”
दरवाजे के पास खड़ा आदमी मुस्करा रहा था….और एक हाथ से उसने जेब से गुटका निकला और खाने लगा.
जिसने गुड्डी को पकड़ रखा था उसने दूसरा हाथ उसके कमर पे रख दिया और अपनी और खींचा कस के…दूसरे ने सेठ जी का कंधा पकड़ा और कहने लगा…
” अच्छा इनसे कुछ लेना देना नहीं तो ये तुम्हे चाचा जी क्यों बोल रही थी…दूसरे फिर तुम इसे बचाने के लिए काहें झूठ पे झूठ बोले जा रहे हो.”और जो आदमी गुड्डी को पकडे हए था उससे बोला….
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” हे ज़रा साली की चूंची ज़रा दाब के तो बता…ये साल्ली तो सेठ जी की बेटी से भी ज्यादा करारा माल लग रही है…”
मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करें
” भैया हम लोगों को जाने दो…हम लोगों से कोई मतलब नहीं है बस… चले जा रहे हैं.” बोलते गिडगिडाते मैं नीचे झुका जैसे मैं उनके पाँव पड़ने की की कोशिश कर रहा हूँ.
और नीचे झुकाते ही रंगों के डिब्बो के साथ साथ एक खुले बरतन में लाल पिसी मिर्च का पाउडर और बगल में हल्दी का पाउडर …झुके झुके लाल पाउडर मैंने उठाया और तेजी से ऊपर उठाते हुए उसकी आँखों में पूरा का पूरा झोंक दिया. जैसे ही वो सम्ल्हता ….दूसरी मुट्ठी फिर .. अबकी आँख के साथ नाक और मुंह में …छींक से उसकी बुरी हालत हो गयी.
तभी गुड्डी ने साथ साथ, दूसरे आदमी के पैर में अपनी लम्बी तीखी हील भी पहले तो कस के घुसा दी और फिर गोल गोल घुमाने लगी…उसकी पकड़ ढीली हो गयी और गुड्डी के दोनों हाथ छूट गए….गुड्डी ने उस आदमी के पेट में पूरी ताकत लगा के अपनी कुहनी दे मारी.
बस वो मौका मिल गया जो मैं चाहता था. दोनों से एक साथ निपटना असंभव था. और दोनों के पास ही हथियार थे. चाक़ू कट्टा .. या ऐसे कुछ भी..
गुड्डी को मैंने हल्का सा धक्का दिया और वो उस आदमी को लिए दिए सामान के ढेर के बीच जा गिरी.
जिसकी आँख में मैंने मिर्च झोंकी थी वो अब कुछ संभल रहा था. आँखे खोलने की कोशिश करते हुए वो अपने साथी से बोला.
.” पकड़ ले साल्ली को…इस सेठ की लौंडिया को तो तीन दिन में छोड़ दिया था सिर्फ एक और से मजा ले कर …इसकी तो चूत का भोंसडा बना देंगे…और तुझे तो गांड पसंद है न…”
मैं समझ रहा था ये सिर्फ बोल नहीं रहा है…और हमारे पास सिर्फ एक रास्ता था…हमला.
मैंने जूते पूरी ताकत से उस के घुटने पे दे मारे और एक बाद एक ,,,,चार बार वहीँ..एक पैर उसका ख़तम हो गया. लेकिन उसके गिरने से पहले ही मैंने एक हाथ से उसे पकड़ा और दूसरे हाथ से एक चाप सीधे उसके कान के नीचे और अब वो जो गिरा तो मैं समझ गया की कुछ देर की छुट्टी ..
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
.लेकिन मैं कनखियों से देख रहा था की दूसरा जिसे मैं गुड्डी के साथ धक्का दे के गिरा दिया था अब अपने पैरों पे खड़ा था और उसके हाथ की चेन हवा में लहरा रही थी और अगले ही पल ठीक मेरे उपर …अगर मैं झटके से बैठता नहीं. और बैठे बैठे ही मैंने मेज जिस पर सामान रखा था उसकी ओर दे मारा. लेकिन वो सम्हल गया और पीछे खिसक गया. चेन अभी भी उसके हाथ में लहरा रही थी.
मैं चेन की रेंज से तो बाहर हो गया था क्योंकि अब बीच में मेज और गिरा हुआ सामान था लेकिन मैं भी उसे पकड़ नहीं सकता था.
तब तक नीचे गिरे आदमी ने उठने की कोशिश की और मैंने बायं हाथ बढ़ा के उसका दायाँ हाथ पकड़ के अपनी ओर खिंचा. जैसे ही वो थोडा उठा मेरे खाली हाथ ने एक चाप उसके दायें हाथ की कुहनी पे दे मारा और साथ ही में पैर उसके घुटने पे …मैं अपने निशाने के बारे में कांफिडेंट था की अब सारे कार्टिलेज घुटने और कुहनी के गए…और वो अब उठने के काबिल नहीं है…
दूसरा चेन वाला ज्यादा फुर्तीला और स्मार्ट था….मेज से बस वो आधे मिनट ही रुक पाया और घूम कर पीछे से उसने फिर चेन से मेरे उपर वार किया. मैं अब फँस गया.
मेरे उन आर्म्ड कम्बैट के लेसन तब काम आते जब वो पास में आता और चेन से एक दो बार से ज्यादा बचना मुश्किल था…वो एक बार अगर हिट कर देती तो …और फिर गुड्डी..
.बचते हुए मैं दूकान के दूसरे हिस्से पे आगया था जहाँ इन्सेक्ट रिपेलेंट मास्किटो रिपेल्नेट ये सब रखे थे..
.और अब मैंने चेन वाले को पास आने दिया…वो भी समझदार था अब वो दूर से चेन नहीं घुमा रहा था…अपनी ताकत उसने बचा रखी थी और जब मेरे वो नजदीक आया तो चेन उसने फिर लहराई…लेकिन मैंने हाथ में पीछे पकडे काक्रोच रिपेलेंट को खोल लिया था और पूरा स्प्रे सीधे उसकी आँख में …एक पल के लिए उसकी हालत खराब हो गयी और इतना वक्त मेरे लिए काफी था और मैंने पहले तो उसकी वो कलाई पकड़ के मोड़ दी जिसमें चेन थी एक बार क्लाक वाइज और दुबारा एंटी क्लाक वाइज और वो लटक के झूल गयी.
उसने बाएं हाथ से चाकू निकालने की कोशिश की लेकिन तब तक मेरी उंगलिया सारी एक साथ उसके रीब केज पे …वो दर्द से झुक दुहरा हो गया और मेरी कुहनी उसके गले के निचले हिस्से पे. साथ में घुटना उसकी ठुड्डी पे…जबतक वो सम्हालता मैंने उसकी दूसरी कलाई भी तोड़ दी.
बचो ….गुड्डी जोर से चीखी .
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मैं उस तीसरे आदमी को भूल ही गया था. अब तक वो चूहे बिल्ली की लड़ाई की तरह हम लोगों को देख रहा था. उसे पूरा कांफिडेंस था की उसके दोनों मोहरे मुझसे निपटने के लिए काफी थे और वो अपना हाथ गन्दा नहीं करना चाहता था. दूसरा आर्ग्नैजेशन में वो अब मैनेजमेंट पोजीशन में पहुँच चुका था लेकिन अब दूसरे बन्दे के गिरने के बाद…
उसके हाथ में चाकू था और तेजी से उसने मेरी ओर फेंका..निशाना उसका भयानक था. मेरे बगल में हटने के बावजूद वो मेरी शर्ट फाड़ते हुए हलके से बांह में लगा….अगर गुड्डी ना बोली होती तो सीधे गले में…
डेड लाक की हालत थी. उसने पलक झपकते जेब से रिवाल्वर निकाल लिया था. और ये कोई कट्टा (देसी पिस्तोल ) नहीं था की मैं रिस्क लूं की शायद ये फेल कर जाय…
उसने नहीं चलाया. मैं पल भर सोचता रहा फिर मेरी चमकी. दो बातें थीं…एक तो उसके मोहरे को मैंने पकड़ लिया था और उस गुत्थ्म्गुथा में गोली किसे लगेगी ये तय नहीं हो सकता था. दूसरे दिन का समय था, चारो ओर बस्ती थी और गोली चलने की आवाज सुन के कोई भी आ सकता था.
मैंने एक रिस्क लिया…उस चेन वाले मोहरे को आगे कर के में बढ़ा…ये बोलते हुए .
.प्लीज गोली मत चलाना में निहत्था हूँ…हम लोगों से कोई मतलब नहीं बस हम दोनों को निकल जाने दीजिये प्लीज बाकी आप के और सेठ जी के बीच है बस हम दोनों को…
वो थोडा डिसट्रैक्ट हुआ लेकिन रिवालवर ताने रहा …” हे इसको छोड़ो पहले…फिर …हाथ ऊपर …”
” बस बस जी करता हूँ जी गोली नहीं जी….”
मैं गिडगिडा रहा था. उस चेन वाले के हाथ से मैंने चेन ले ली और मुट्ठी में ले के चेन वाले मुहरे को उस की ओर थोडा धक्का दे के छोड़ दिया…उसके घुटने और कुहनी तो जवाब दे ही चुके थे…वो धडाम से उसके सामने जा गिरा…मैंने हाथ ऊपर कर लिया था ये बोलते हुए की जी देखिये मेरे हाथ ऊपर है …प्लीज…
जैसे ही वो चेन वाला उसके पैरों के पास गिरा…उसका ध्यान बट गया और मेरे लिए इतना वक्त काफी था.
मैंने पूरी ताकत से चेन उसके रिवाल्वर वाले हाथ पे दे मारी …रिवाल्वर छटक के दूर गिरी…मैंने पैरों से मार के उसे गुड्डी की ओर फ़ेंक दिया.
वो अपने जमाने का जबर्दस्त बाक्सर रहा होगा. इतना होने के बाद भी तो तुरंत बाक्सिंग के पोज मैं और एक मुक्का जबर्दस्त मेरे चेहरे की ओर ….
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मैं बाक्सर न हूँ न था इसलिए जवाब मेरे पैर ने बल्कि पैर की एडी ने…सीधे दोनों पैरों के बीच किसी भी पुरुष के सबसे संवेदनशील स्थल पर…और उसका बैलेंस बिगड़ गया .. .वो सीधे मेरे पैरों के सामने धडाम गिरा.
मैं जानता था वो उन दोनों मोहरों की तरह नहीं हैं…सामने से निपटना उस से मुश्किल है ….फिर भले ही उसका चाक़ू और रिवाल्वर अब उस से दूर है लेकिन क्या पता उसके पास कोई और हथियार हो…
मौके का फायदा उठा के मैं उस के ठीक उस के पीछे पहुँच गया. पलक झपकते मैंने चेन भी उठा ली.
ये आर्डिनरी चेन नहीं थी चेन का एक फेस बहोत पतला, शार्प लेकिन मजबूत था …गिटार के तार की तरह. ये चेन गैरोटिंग के लिए भी डिजाइन थी…दूर से चेन की तरह और नजदीक आ जाए तो गर्दन पे लगा के …गैरोटिंग का तरीका माफिया ने बहोत चर्चित किया लेकिन पिंडारी ठग वही काम रुमाल से करते थे…प्रैक्ट्स, सही जगह तार का लगना और बहोत फास्ट रिएक्शन तीनो जरूरी थे.
पनद्रह बीस सेकेण्ड के अन्दर ही वो अपने पैरों पे था और बिजली की तेजी से अपने वेस्ट बैंड होल्स्टर से उसने स्मिथ एंड वेसन निकाली. माडल ६४०..
.मैं जानता था की इसका निशाना इस दूरी पे बहोत एक्युरेट …इसमें ५ शाट्स थे …लेकिन एक ही काफी था. उसने पहले मुझे सामने खोजा फिर गुड्डी की और..तबतक तार उस के गले पे ……पहले ही लूप बना के मैंने एक मुट्ठी में पकड़ लिया था और तार का दूसरा सिरा दूसरे हाथ में. तार सीधे उसके ट्रैकिया के नीचे.
छुड़ाने के लिए जितना उसने जोर लगाया तार हल्का सा उसके गले में धंस गया…वो इस पेशे में इतना पुँराना था की समझ गया था की जरा सा जोर और …लेकिन मैं उसे गैरोट नहीं करना चाहता था. मेरे पैर के पंजे का अगला हिस्सा सीधे उसके घुटने के पिछले हिस्से पे पूरी तेजी से…और घुटना मुड गया…और दूसरी किक दूसरे घुटने पे …वो घुटनों के बल हो गया…लेकिन रिवालवर पर अब भी उसकी ग्रिप थी…और तार गले में फंसा हुआ …
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” मैं पांच तक गिनूंगा गिनती ..और अगर तब तक रिवाल्वर ना फेंकी…” मैंने उसके कान में बोला… गले पे दबाव…आक्सीजन की सप्प्लाई काट रहा था और उसके सोचने की शक्ति, रिफ्लेक्सेज कम हो रहे थे.
…मैंने चेन अब बाएं हाथ में ही फंसा ली थी और गिनती गिन रहा था…१…२….३ और मेरे दायें हाथ का चाप पूरी ताकत से उस के कान के नीचे…चूँकि वो घुटने के बल झुका था… ये दुगनी ताकत से पड़ा…रिवाल्वर अपने आप उसके हाथ से छूट गयी…
मैंने तार थोडा और कसा …अब उसकी आँख के आगे अँधेरा छा रहा था …एक बार उसने फिर उठने की कोशिश की…मैंने उसे उठने दिया और वो पूरा खड़ा भी नहीं हुआ था की फिर पूरे पैरों के जोर से, घुटने के पीछे वाले हिस्से में…दोनों पैरों में…अब तो वो पूरी तरह लेट गया था. मैं ने टाइम पे चेन छोड़ दी थी वरना उसका गला ….मैंने उसका दायाँ हाथ पकड़ा और कलाई के पास से एक बार क्लाक वाईज और दूसरी बार एंटी क्लाक वाईज ..पूरी ताकत से…कलाई अच्छी तरह टूट गयी…दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ भी…अब वो बहोत दिन तक रिवाल्वर क्या कोई भी हथियार और उसके बाद पैर …
फिर तो जो भी मेरा गुस्सा था….कोहनी से घुटनों से आग बन कर निकला उसके चमचों की हिम्मत कैसे हुए गुड्डी को हाथ लगाए और फिर रीत की सहेली के साथ…ये हरकत …
कुछ ही देर में दायीं कुहनी, पंजा और बायाँ पैर नाकाम हो चूका था.
सेठ जी अभी भी परेशान थे उन्हें अपने से ज्यादा हम लोगों की चिंता थी.
” भैया तुम लोग चले जाओ जल्दी ….वरना तुम जानते नहीं ये कौन हैं…चूहे के चक्कर में सांप के बिल में हाथ दे दियो हो…भाग जाओ जल्दी…”
वो हम लोगों से हाथ जोड़े खड़े थे. तभी मुझे ख़याल आया सबसे खतरनाक हथियार तो मैंने छिना ही नहीं…इसका मोबाइल…जेब से मैंने उसके मोबाइल निकाल और चेक किया ..गनीमत थी की आखिरी डायल नम्बर आधे घंटे से ज्यादा पहले का था. मैंने सिम निकाल के अपने फ़ोन में डाला और सारी फोन बुक, डायल और रिसीव नम्बर अपने मोबाइल में ट्रांसफर कर लिए.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है…पुलिस क़ानून कुछ है की नहीं आप लगाइए ना फ़ोन पोलिस को…” मैंने उन्हें हिम्मत दिलाई.
जमीन पर पड़ा हुआ वो बॉस नुमा छोटा चेतन ..हंसने लगा.
” अरे है सब कुछ है …लेकिन एनाही की है…”
सेठ जी ने मेरे कान में फुसफुसा के कहा, और फिर बोले आप लोग जाओ.
गुड्डी ने हुकुम दागा..
.” आप भी ना…बिचारे इन ही को बोल रहे हैं बाहर थे ना दो ठो पोलिस वाले बुल्लाइये ना….”
सेठ जी और मैंने मिल के शटर खोला.
दूकान के बाहर सन्नाटा पसरा पड़ा था. दूर दराज तक गली में सन्नाटा था. पोलिस वाला तो दूर , वो क्रिकेट खेलते बच्चे, सामान वाली ट्रक और टेम्पो, कुछ नहीं थे. यहाँ तक की सारी खिड़कियाँ तक बंद थी.
सिर्फ गाय अभी भी चौराहे पे मौजूद थी..जुगाली करती.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
दूकान के अन्दर घुस के मैंने अब की गुड्डी से बोला…हे तुम फोन लगाओ ना पोलिस वालों को…और उसने १०० नंबर लगाया. बड़ी देर तक घंटी जाने के बाद फ़ोन उठा और सब सुनने के बाद कोई बोला..
” आरे काहें जान ले रही हो बबुनी भेजते हैं…थे ता दू ठे ससुरे वहीँ चौराहावे पे…कौअनो कतल वतल ता न हुआ है ना…” गुड्डी ने फोन रख दिया.
थोड़ी देर में टहलते हुए वही दोनों पोलिस वाले आये है…
” का हाउ सेठ जी के हो…अरे कान्हे छोट छोट बात पे पोलिस थाना करते हैं…सलट लिया करिए ना…”
का हाउ सेठ जी के हो…अरे कान्हे छोट छोट बात पे पोलिस थाना करते हैं…सलट लिया करिए ना…”
फिर गुड्डी की और देख के गन्दी सी मुस्कान निकालते बोले,
… ” कहो कतो रेप वैप की फरियाद तो नहीं थी…चलो थाने में पहले थानेदार साहब बयान लेंगे तोहार सरसों का तेल लगा के…फिर हमरो नमबर आएगा…तब तक तो बिना तेलवे का काम चल जाएगा….थानेदार साहेब का डंडा बहोत लम्बा हाउ और मजबूत भी….होली मैं थानेदारिन मायके भी गयी हैं…”..
मैंने तब तक उस बॉस उर्फ छोटा चेतन और दोनों मोहरों की फोटो मोबाइल पे ले ली थी.
मैं कुछ बोलता उसके पहले सेठ जी बोले,
” अरे इंस्पेक्टर साहब…( थे दोनों कास्टेबल) बच्चे है, क़ानून कायदा नहीं मालूम फोन घुमाय दिए…हम समझा देंगे…कौनो ख़ास बात नहीं है…”
और हम लोगो से मुखातिब हो के बोले अब जाओ तुम लोग ना…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
उनके काम करने वाले भी अब वापस आ गए थे और एक ने हम लोगों का सामान भी पकड़ा दिया था.
मैं अब बीच में आ गया…” देखिये बात ये है की …तीन लोगों ने यहाँ सेठ जी पे …”
मेरी बात रोक के पोलिस वाला बोला,
“…अरे आप हो कौन नाम पता…इ लौंडिया के साथ हो का…का रिश्ता है..राशन कार्ड है…वोटर आईडी ….भगा के ले जा रहे हो…”
दूसरा पोलिस वाला भी अब बीच में आगया…,
” मालूम है ….न बालिग़ लग रही है अभी तो इसकी डागदरी होगी…साल्ले..किडनैपिंग …लगेगी ..दफा ३५९, दफा ३६० दफा ३६४ साले चक्की काटोगे और अगर कहीं रेप का केस लग गया तो दफा , ३७६ ३७५ ..डागदरी में साबित हो गया तो जमानतो नहीं होगी साल भर …”
” अरे जब एक बार हमारे थानेदार साहब का डंडा चल गया ना रात भर …तो डागदरी में ता रेप के कुल निशान मिलने ही वाला है …और कौनो कसर रही तो …डाक्टरों साहेब के थाने पे दावत पे बुलाये लेंगे…छमिया तो मस्त है…”
अब मैं आग बबूला हो रहा था….बहुत हो गया…
” हे कौन है तुम्हारा इन्स्पेक्टर ..क्या नाम है कौन थाना है…अभी मैं बात करता हूँ…”
मैं गुस्से में बोला…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
तब तक एक पोलिस वाले की निगाह जमीन पे पड़े छोटा चेतन …उन मोहरों के बॉस पे पड़ी. वो झुक के बोला…
” अरे बाबू साहब…. कौन ससुरा….का हो सेठ जी ..इ का हो… जानते नहीं है आप…”
पड़े पड़े उस ने मेरी ओर इशारा किया. मेरा एक पैर उसके मुंह पे भी पड़ गया था…बोलना मुश्किल हो रहा था.
मैंने फिर बोलने की कोशिश की …” जी यही थे ..एक्सटार्शन, हमला के लिए आप इन्हें पकडिये…ये सेठ जी को धमकी दे रहे थे…और हम लोगो पे भी इनके साथियों ने….बताइए थाने का नाम मैं ही इन्स्पेक्टर को फोन करता हूँ…”
” अब फ़ोन मैं करूँगा और इन्स्पेक्टर साहेब यहीं आयेंगे …वो बोला और मोबाइल निकाल के लगाया…”
मैं उसकी बात सुन रहा था..
.” जी हाँ अरे अपने …उनके ख़ास…हाँ हाँ वही…पता नहीं… …कैसे …अरे कौनो ससुरा लौंडा लफाड़ी है स्टुडेंट छाप और साथ मैं एक ठो छमिया भी है….फोनवा वही किये थी…हाँ आइये नहीं कहीं नहीं जाने देंगे…और एम्बुलेंस बाबू साहेब मना कर दिए ..उनके कौनो ख़ास डाकटर हैं बस उन्ही को फोन किये हैं प्राइवेट नर्सिंग होम है सिगरा पे …अउते होंगे वो भी…हाँ आप को याद कर रहे थे ..बस आप आ जाइए ..तुरंत…अरे हम रोके हैं ले चलेंगे थाने उन दोनों को..’
अब मेरी हालत पतली हो रही थी. इन सिपाहियों से तो मैं निपट लेता लेकिन वो पता नहीं कौन ….
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गुड्डी भी मेरा हाथ पकड़ के खींच रही थी…हे कुछ करों ना…अगर वो आ गया ना…
मैं भी डर रहा था..अगर एक बार इन सबो ने मेरा मोबाइल ले लिया..तो फिर…
बिचारे सेठ जी अपनी ओर से कोशिश कर रहे थे….हे कुछ ले दे के मान जाइए…बच्चे हैं नहीं मालूम था किससे उलझ रहे हैं
अचानक बल्ब जला वो भी २५० वाट का…
डी. बी. ..दो साल मुझसे सीनियर थे हास्टल में …मेरी रैगिंग उन्होंने ही ली थी…अभी फेस बुक में किसी ने बताया था की उनकी पोस्टिंग यहीं हो गयी है नंबर भी लिया…था…
बस मैंने लगा दिया नंबर…२-३-४-५- बार रिंग गयी लेकिन कोई जवाब नहीं..
.
मैं समझ गया अब गयी भैंस पानी में
अचानक बल्ब जला वो भी २५० वाट का…
डी. बी. ..दो साल मुझसे सीनियर थे हास्टल में …मेरी रैगिंग उन्होंने ही ली थी…अभी फेस बुक में किसी ने बताया था की उनकी पोस्टिंग यहीं हो गयी है नंबर भी लिया…था…
बस मैंने लगा दिया नंबर…२-३-४-५- बार रिंग गयी लेकिन कोई जवाब नहीं…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मैं समझ गया अब गयी भैंस पानी में.
हो सकता है…मेरा नंबर तो है नहीं उनके पास ….इस लिए इस पोस्ट पे ना जाने कितने फ़ोन आते होंगे…लेकिन कहीं सो वो रहे हों तो…खैर मैंने एक मेसेज छोड़ दिया अपने नाम के साथ कोड नेम भी लिख दिया ४४…हम दोनों का रूम नंबर हास्टल में एक ही था विंग अलग अलग थे…
तुरंत रिस्पोंस आया …बोलो कहाँ हो. मेरी जान में जान आई.
सब मुझे ही देख रहे थे….छोटा चेतन …पोलिस वाले, सेठ जी और गुड्डी…मोहरे अभी भी देखने की हालत में नहीं थे.
मैं दूकान के दूसरे कोने में चला गया. और फ़ोन लगाया.
उनकी पोस्टिंग यहीं हो गयी थी…एक महीने पहले एसपी सिटी में….एस एस पी कहीं बाहर गए थे तो पूरा चार्ज उन्ही के पास था. पूरी दास्तान सुन के वो बोला…
“चल यार तूने रायता फैला दिया है तो समेटना तो मुझे ही पडेगा न…वो हैं कैसे बता जरा…मैंने बोला अरे मैं अभी फोटो स एम् स करता हूँ. लेकिन वो तुम्हारा इंस्पेक्टर आ गया तो,…मैंने जान बूझ के उसे पोलिस वालों ने क्या बोला था मुझे और गुड्डी को नहीं बताया…उसका गुस्सा …खासतौर से अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करे तो जग जाहिर था…”
थोड़ी देर में फिर फ़ोन बजा…डी बी का ही था…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” ये तूने क्या किया…तो ना..चल लेकिन …चाय बनती है…हाँ दो बात ….पहली किसी को उन तीनों को ले मत जाने देना…खास तौर से उस इन्स्पेक्टर को या किसी डाकटर को…और दूसरा सुन…अपने बारे में भी किसी को बताया तो नहीं…मत बताना…समझे…”
” लेकिन मैं कैसे रोक पाऊंगा…” मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
‘ ये तेरा सरदर्द है हाँ असली बात तो मैंने बतायी नहीं…मैं एक सिद्दीकी नाम के इन्स्पेक्टर को भेज रहा हूँ …बस उसी को इन तीनों को …और मुझसे बात करा के …” ये कह के फ़ोन काट दिया.
सांस भी आई और घबडाहट भी …इसका मतलब ये तिलंगे कोई इम्पोर्टेंट है.
छोटा चेतन …उन दोनों के बॉस को दोनों पुलिस वालों ने मिल के के कुर्सी पे बिठा दिया था और एक कोल्ड ड्रिंक ला के दे दिया था. वो बैठ के सुडुक सुडुक के पी रहा था. बाकी दोनों मोहरे भी फर्श पे काउंटर के सहारे बैठ गए थे.
हम लोग भी अगले पल का इंतजार कर रहे थे. मेरी समझ में नहीं आ रहा था की थानेदार से मैं कैसे निबटूंगा…और पता नहीं वो सिद्दीकी का बच्चा …फिर ये जो डाक्टर आने वाला है तीन तिलंगों को लेने…उससे ….कैसे निबटेंगे …तब तक शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर…
धडधडाती हुयी जीप की आवाज सुनाई पड़ी. सब के चेहरे अन्दर खिल पड़े सिवाय मेरे और गुड्डी के.
दनदनाते हुए चार सिपाही पहले घुसे …ब्राउन जूते और जोर दार गालियों के साथ…
.कौन साल्ला है..गांड मैं डंडा डाल के मुंह से निकाल लेंगे…झोंटा पकड़`के खींच साली को डाल दे गाडी में पीछे ….गुड्डी की और देख के वो बोलो…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
और पीछे से थानेदार साहब ..पहले थोड़ी सी उनकी तोंद फिर वो बाकी खुद…सबसे पहले उन्होंने ‘ छोटा चेतन ‘ साहब की मिजाज पुरसी की, फिर एक बार खुद उस डाक्टर को फ़ोन घुमाया जिनके पास उसे जाना था और फिर मेरी और गुड्डी की ओर…
” साल्ला मच्छर …; ” बोल के उसने वहीँ दूकान के एक कोने में पिच्च से पान की पीक मार दी. और अब उसने फिर एक पूरी निगाह गुड्डी की ऊपर डाली बल्कि सही बोलूं तो दृष्टिपात किया…धीरे धीरे…ऊपर से नीचे तक रीति कालीन ज़माने के कवि जैसे नख शिख वर्णन लिखने के पहले नायिका को देखते होंगे एकदम वैसे..
.
” माल तो अच्छा है…ले चलो दोनों को लेकिन पहले साहब चले जाएँ…डायरी में इस लड़की के फोन का तो नहीं कुछ…”
उन्होंने पहले आये पुलिस वाले से पुछा.
” नहीं साहब …बिना आपकी इजाजत के…अब इस साले को ले चलेंगे तो किड नैपिंग और…लड़की को नाबालिग कर के …ये उससे धंधा करवाता था …तो वो…”
” सही आइडिया है तुम्हारा… ससुरी वो जो पिछले वाली सरकार में मंत्री की रखैल ….चलाती है क्या तो नाम है…जहाँ इ सब दालमंडी वालियों को….” थानेदार जी बोले..
” वनिता सुधार गृह …” कोई पढ़ा लिखा पोलिस वाला पीछे से बोला.
” हाँ बस वहीँ …अरे सरकार गयी धन्धवा तो सब वही है…बस वहीँ रख देंगे बस पूछताछ के लिए जब चाहेंगे बुलवा लेंगे….” थानेदार जी ने चर्चा जारी रखी.
अब उन्होंने अगले अजेंडे की ओर रुख किया यानी मेरे ओर.
” ले आओ जरा साले को..” दो पोलिस वालों को उन्होंने आदेश दिया.
” अरे साहब अभी ले चलेंगे न साल्ले को थाने में वहां आराम से ..जरा आधा घंटा हवाई जहाज बनायेंगे, टायर पहनाएंगे …फिर आप आराम से दो चार हाथ …अरे जो कहियेगा हुजुर वो कबूलेगा साल्ला , रेप, किडनैपिंग, ब्लू फ़िल्म ड्रग्स…अपने हाथ से लौंडिया का नाडा खोलेगा…” एक पोलिस वाले ने समझाया
” अरे साहब अभी ले चलेंगे न साल्ले को थाने में वहां आराम से ..जरा आधा घंटा हवाई जहाज बनायेंगे, टायर पहनाएंगे …फिर आप आराम से दो चार हाथ …अरे जो कहियेगा हुजुर वो कबूलेगा साल्ला , रेप, किडनैपिंग, ब्लू फ़िल्म ड्रग्स…अपने हाथ से लौंडिया का नाडा खोलेगा…” एक पोलिस वाले ने समझाया
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” अरे जरा बात कर लें नाम पता पूछ ले बाकी तो थाने में ही होगा…” वो बोले.
दो पोलिस वाले मेरी और बढे.
तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी.. डी बी ….
” सिद्दीकी पहुंचा….” वो बोले.
” नहीं लेकिन वो थानेदार आ गया है और मुझे पकड़ने के चक्कर में है…”
” वो तो ठीक है तुम्हारी ट्रेनिंग का पार्ट हो जाएगा ….लेकिन सिद्दीकी पहुँचाने ही वाला है बस २-४ मिनट …उन तीनों को उसी के हवाले करना.
मैंने फ़ोन इस तरह किया था की दूकान में हो रही आवाजें भी उन्हें सुनाई पड़े.
” हे चल दरोगा साहेब बुला रहे हैं…”
उन दोनों ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की …
” चल रहा हूँ साहब ” मैंने बोला और हाथ पकाड़ने से रोक दिया.
‘क्यों बे किससे बात कर रहा है तुझे टाइम नहीं है….और ये क्या यहाँ शरीफ आदमियों के साथ लफडा किया और ..ये साल्ली लौंडिया कहाँ भगा के ले जा रहा है…किससे बात कर रहा है….मोबाइल छीन इसका.”
वो गरजे.
डी बी अभी फोन पर ही थे.
” वो …वो…आप से ही बात करना चाहते हैं जी…लीजिये ”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
और फोन मैंने थानेदार को पकड़ा दिया.
सारे पोलिस वाले हमने ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी से सोर्स सिफारिश लगवा रहा हूँ और जिसका थानेदार साहब पे कोई असर नहीं होगा..उलटे उनकी एक घुड़क से उसकी पैंट ढीली हो जायेगी.
थानेदार जी ने फोन ले लिया…फ़िल्म अब स्लो मोशन में हो गयी…
” कौन है बे ..ये जो पोलिस के मामले में …टांग….नहीं नहीं सर इन्होने बताया नहीं मैं तो इसी लिए खुद आगया था..पहले दो जवान भेजे थे लेकिन मैं खुद तहकीकात करने आ गया ..मैडम ने फोन किया था …नहीं कोई छोटा मोटा लुच्चा लफंगा है होली का चंदा मांगने वाला…वैसे साहब ने खुद उसके हाथ पांव ढीले कर दिए है…”
इतना तेज ह्रदय परिवर्तन, भाषा परिवर्तन और पोज परिवर्तन मैंने एक साथ कभी नहीं देखा था…फिल्मों में भी नहीं.
फोन लेने के चार सेकेण्ड के अन्दर….उनके ब्राउन जूते कड़के. वो तन के खड़े हो गए हाथ सैल्यूट की मुद्रा में और दूसरे हाथ से फोन पकडे…
वार्ता जारी थी
“….नहीं नहीं सिद्दीकी को भेजने की कोई जरुँरत नहीं …नहीं मेरा मतलब…अरे मैडम ने जैसे ही फोन किया जी डी में दर्ज कर दिया है, एफ आई आर भी लिख ली है…जी सेठ जी का बयां लेने ही मैं आया था…दफा ..जी नहीं एकाध कड़ी दफा भी….जी उसने अपने वकील को फोन कर दिया था मेरे आने के पहले …नहीं साहब अरे एकदम छोटा मोटा कोई …नहीं कोई गलतफहमी हुयी है….ठीक है आप कहते हैं तो पन्ना फाड़ दूंगा..( .( फ़ोन दो सेकेण्ड के लिए दबा के उन्होंने सर्व साधारण को सूचित किया की …साल्ले तेरा बाप है…डी बी साहेब का फोन है…ये उनके दोस्त हैं…)…जी हाँ एकदम दुरुस्त ..और फोन बंद कर के मुझे पकड़ा दिया.
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माहौल एकदम बदल गया…जो दो पोलिस वाले मेरे हाथ पकडे थे और हवाई जहाज , टायर इत्यादि की एडवेंचर्स योजनाये बना रहे थे…उन्होंने मौके का फायदा उठाया और मेरे चरणों में धराशायी हो गए…
” जी माफ कर दीजिये…ये तो इन दोनों ने…साल्ले अब जिन्दगी भर ट्रैफिक की ड्यूटी करेंगे…थाने के लिए तरस जायेंगे ..जूते मार लीजिये साहब …लेकिन …:”
वो दोनों पोलिस वाले भी मेरे पास खड़े थे लेकिन चरण कम पड़ रहे थे …इसलिए वो जाकर गुड्डी के चरणों में …
” माता जी…माता जी हम ..पापी हैं हमें नरक में भी जगह नहीं मिलेगी…लेकिन आप तो दयालु हैं…माफ कर दीजिये हम कान पकड़ते हैं…बरबाद हो जायेंगे …साहेब हमें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे …बाल बच्चे वाले है हम आप के पैरों के दास बन के रहेंगे …”
फर्क चारों और पड़ गया था…दोनों मोहरे जो काउंटर का सहारा लेके आराम से अधलेटे बैठे थे जमीन पे फिर से सरक गए थे.
” छोटा चेतन ” जो ओवर कांफिडेंट था …के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थी और वो बार बार मोबाइल लगता और उम्मीद की निगाह से थानेदार की और देख रहा था.
यहाँ तक की सेठ जी भी एक नयी नजर से हम लोगों की तरफ देख रहे थे.
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छोटा चेतन उन तिलंगो का बॉस दरवाजे की और देख रहा था और मैं भी…मैं सोच रहा था की अगर वो डाक्टर आ गया तो उसे मैंने कैसे रोकूंगा…
दरवाजा खुला लेकिन धडाके से…
क्या जंजीर में अमिताभ बच्चन की या दबंग में सलमान की एंट्री हुयी होगी…
सिर्फ बैक ग्राउंड म्यूजिक नहीं था बस…
सिद्दीकी ने उसी तरह से जूते से मार के दरवाजा खोला
उसी तरह से १० नंबर का जूता और ६ फिट ४ इंच का आदमी…
और उसी तरह से सब को सांप सूंघ गया…
ख़ास तौर से छोटा चेतन को…अपने एक ठीक पैर से उसने उठने की कोशिश की ..और यहीं गलती होगई..
एक झापड़ ..जिसकी गूँज फ़िल्म होती तो १०-१२ सेकेण्ड तक रहती …और वो फर्श पे लेट गया..,
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सिद्दीकी ने उसका मुआयना किया…और जब उसने देखा की एक कुहनी और एक घुटना अच्छी तरह टूट चूका है…तो उसने आदर से मेरी तरफ देखा…और फिर बाकी दोनों मोहरों को …टूटे घुटने और हाथ को.. और फिर अब उसकी आवाज गूंजी..
“साले मादरचोद …बहोत चक्कर कटवाया था…अब चल ” और फिर उसकी आवाज थानेदार के आदमियों की तरफ मुड़ी …” साल्ले भंडुवे, क्या बता रहे थे इसे …छोटा मोटा…. सारे थानों में इसका थोबड़ा है और..चलो अब होली लाइन में मनाना…पुलिस लाइन में मसाला पिसना… किसी साहब के मेमसाहब का पेटी कोट साफ़ करना…”
तब तक फिर फोन की घंटी बजी …
डी बी
” सिद्दीकी पहुंचा…”
” हाँ …” मैंने बोला…
” उसको फोन दो ना…”
मैंने फोन पकड़ा दिया…
सिद्दीकी बोल रहा था लेकिन कमरे में हर आदमी कान पारे सुन रहा था…
मैं समझ गया था पब्लिक जितना डी बी के नाम से डरी उससे ज्यादा….सिद्दीकी को देख के…
वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा..मैं समझ गया था.
मैं समझ गया था पब्लिक जितना डी बी के नाम से डरी उससे ज्यादा….सिद्दीकी को देख के…
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वो बनारस का ‘अब तक छप्पन’ होगा..मैं समझ गया था.
” जी इन दोनों को आपके पास लाने की जरुरत नहीं है खाली शुक्ला को…जी मैं कचड़ा ठिकाने लगा दूंगा… हाँ एक रिवाल्वर और दो चाक़ू मिले हैं…जी …मैं साथ में वज्र एक लाया हूँ यहीं लगा दिया रामनगर से दो पी ए सी की ट्रक आई थी होली ड्यूटी के लिए ..उन्हें गली के बाहर …डाक्टर को पहले ही उठवा लिया है…और मेरे करने के लिए कुछ बचा नहीं था…साहब ने पहले ही..मुझे बहोत घमंड था अपने ऊपर लेकिन जसी तरह से साहब ने चाप लगाया है सालों के ऊपर .’
और उसने फोन मुझे पास कर दिया…
डी बी अभी भी लाइन पर थे…
” अभी एक मोबाइल भेज रहा हूँ…तुम लोग…”
” मोबाइल ..मतलब…” मेरी कुछ समझ में नहीं आया…
” अरे पोलिस की गाडी ..भेज रहा हूँ जाना कहा था….” वो बोले…
“अरे कही खाना वाना खा के घर जाते बस पकड़ के ..लेकिन ये सब…” मैंने कहा.
” तो ठीक है सिद्दीकी जैसे निकले उसके बाद …हाँ ये बताने की जरुरत नहीं की..किसी को बताना मत कुछ भी और तुम्हारे साथ वही है …ना…जिसकी चिट्ठी आती थी…”
” हाँ वही …गुड्डी…”
” अरे यार तुम लोग शाम को घर आते ..खैर लौट के मिलवाना जरुर …” मैंने फोन बंद किया..
सिद्दीकी अभी भी मुझे देख रहा था..
” साहेब बहोत दिन हो गए मुझे भी गुंडे बदमाश देखे साहब देखे…लेकिन जो हाथ आप ने लगाये है न…बस सुनते थे या …वो जो चीनी टाइप है हाँ जैकी चान उसकी पिकचर में देखते थे…सब एक दम सही जगह पड़ा है…अभी से ये हालात है तो जब आप यहाँ आयेंगे तो क्या हाल होगा इन ससुरों का…कैडर तो आप का भी यु पी है ना…”
” मतलब ….” पतली सी अवाज थानेदार के गले से निकली.
” अरे साले तेरे बाप हैं…साल भर में आ जायेंगे यही…” सिद्दीकी बोला और अपने साथ आये दो आदमियों से कहा…ये दोनों कचड़ा उठा के ( मोहरों की तरफ इशारा करता हुआ…) पीएसी की ट्रक में डाल दो और शुकुल जी को ( छोटा चेतन की और इशारा करते ही) बज्र में बैठा दो..उठ नहीं पायेंगे…गंगा डोली कर के ले जाना. हाँ एक पीएसी की ट्रक यही रहेगी गली पे और अपने दो चार सफारी वालों को गली के मुहाने पे बैठा दो की कोई ज्यादा सवाल जवाब न हो …और न कोई ससुरा मिडिया सीडिया वाला…बोले तो साले की बहन चोद देना …” जब वो सब हटा दिए गए तो
थाने दार से वो बोला…मुझे मालूम है ना तो अपने जीडी में कुछ लिखा है न फ आई आर ..फोन का लाग बुक भी ब्लैंक है चार दिन से. तो जो कहानी साहब से सूना रहे थे दुबारा न सुनाएगा तो अच्छा होगा…और थानेदारिन जी को भी हम फोन कर दिए हैं…भाभी जी शाम तक आ जायंगी तो जो हर रोज शाम को थाने में शिकार होता है ना उ बंद कर दीजिये…चलिए आप लोग…अगर एको मिडिया वाला ह्युंमन राईट वाला झोला वाला साल्ला मक्खी की तरह भनभनाया ना …तो समझ लो…तुम्हरो नंबर लग जाएगा…”
थाने के पोलिस वाले चले गए. तब तक एक गाडी की आवाज आई , वो हमारे लिए जो पोलिस की गाड़ी थी वो आ गयी थी.
हम लोग निकले तो दूकान के एक आदमी ने होली का जो हमने सामान ख़रीदा था वो दे दिया.
सिद्दीकी हमें छोड़ने आया और हमारे पीछे पीछे अपनी गाडी में…गली के बाहर वो दूसरी तरफ मुड गया.
गुड्डी के चेहरे से अब जाकर डर थोडा थोडा मिटा.
किधर चले…तुम्हारा शहर है बोलो …मैंने गुड्डी से पूछा…
साहेब ने आल रेडी बोल दिया है मलदहिया पे एक होटल है…वहां से आप का रेस्ट हाउस भी नज्दिके है …आगे से ड्राइवर बोला.
पीछे से मैं बैठा सोच रहा था…थोड़ी ही देर में कहाँ कहाँ से गुजर गए. इतना टेंसन…लेकिन अब माहौल नारमल कैसे होगा…गुड्डी क्या सोच रही होगी. मेरे कुछ दिमाग में नहीं घुस रहा था.
” ये ये तुम्हारी शर्ट पे चाकू लगा है क्या…” गुड्डी ने परेशान हो के पुछा…और टी शर्ट की बांह ऊपर कर दी
वहां एक ताजा सा घाव था ज्यादा बड़ा नहीं लेकिन जैसे छिल गया हो …दो बूँद खून अभी भी रिस रहा था..
मुझे लगा वो घबडा जायेगी…लेकिन उसने लाइटली लिया और और चिढाती सी बोली ‘ अरे मैं सोच रही थी की फिल्मों के हीरों ऐसा कोई बड़ा घाव होगा….और मैं अपने दुपट्टे को फाड़ के पट्टी बांधुंगी लेकिन ये तो एकदम…छोटी सी पट्टी…” लेकिन उसकी आंखों में चिंता साफ झलक रही थी.
” ड्राइवर साहब कोई मेडिकल की दूकान पास में हो मैं बैंड एड ..एक ”
मैं बोला लेकिन गुड्डी बीच में काटती बोली, अरे नहीं कुछ जरुरत नहीं है..आप सीधे होटल ले चलिए बहोत भूख लगी है. ”
और उसने अपने बड़े से झोला नुमा पर्स से बैंड ऐड निकला और एक दम मुझसे सट के जितना जरुरी था उससे भी ज्यादा …मेरे हाथ में बैंड ऐड लगा दिया लेकिन वैसे ही सटी रही अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ पकडे जैसे खून बहने से रोके हो.
मैं बस सोच रहा था की कैसे उस दुस्वप्न से बाहर निकलूं…पहले तो वो गुंडे और फिर पुलिस वाले …वो थानेदार..
.मैं अकेला होता हो ये यूजुअल बात होती लेकिन गुड्डी भी साथ…होली में उस के घर कितना मजा आया और घर पहुँच के ….कितना डर गयी होगी..हदस गयी होगी वो…और मजे वजे लेने की बात तो दूर नार्मल बात भी शायद मुश्किल होगी.
लेकिन गुड्डी गुड्डी थी…एक हाथ से मेरा हाथ पकडे पकडे दूसरा हाथ सीधे मेरे पैरों पे और वहां से सीधे हलके हलके ऊपर…मेरे कान में बोली..
.” तुम डर गए हो तो कोई बात नहीं लेकिन कहीं ये तो नहीं डर के दुबक गया हो..वरना मेरा पांच दिन का इंतज़ार सब बेकार चला जाएगा”
.मैं समझ गया की नारमल होने की कोशिश वो मुझसे भी ज्यादा कर रही है.
मैं बस मुस्करा दिया.
तब तक फोन बजा…
डी बी
“हाँ अब बता…गाडी में हो न …वो सब कचड़ा साफ हो गया ना…” वो पूछ रहे थे.
” हाँ बॉस लेकिन ये लफडा था क्या…” मैंने पुछा.
‘ अबे तेरी किसमत अच्छी थी जो ये आज हुआ..तीन महीने पहले होता न…तो बॉस मैं भी कुछ नहीं कर सकता था सिवाय इसके की तुम्हे किसी तरह यु पी के बाहर पहुंचा दूँ…लेकिन अभी तो एकदम सही टाइम पे…” उन्होंने कुछ रहस्यमयी ढंग से समझाया…
” अरे बास कुछ हाल खुलासा बयान करों ना मेरे कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा …” मैंने फिर गुजारिश की.
” अरे यार हाल खुलासा बताऊंगा न तो गैंग आफ वासेपुर टाइप दो पिक्चरें बन जायेंगी. ..राजेश सिंह का नाम सुना है…” सवाल के जवाब में सवाल…पुरानी आदत थी.
” किसने नहीं सूना है…वही ना जिसने दिन दहाड़े बम्बई में…ऐ जे हास्पिटल में शूट आउट किया था डी कंपनी के साथ…” मैंने अपने सामने ज्ञान का परिचय दिया…
” वो उसी के आदमी थे जिसके साथ तुम…और ख़ास लोग…” वो जवाब मेरी नींद हराम करने के लिए काफी था.
” वही …और पिछली सरकार में तो किसी की हिम्मत नहीं थी की…लेकिन तीन महीने पहले जो सरकार बदली है वो ला एंड आर्डर के नाम पे आई है इसलिए थोडा जयादा जोर है.
मेरे दिमाग में गूंजा ..फेस बुक पे जो हम लोग बात कर रहे थे …नयी गवरमेंट ख़ास तौर से डी बी को ले आयी है इमेज इम्प्रोवेम्नेट के नाम पे ..पुरानी वाली इलेक्शन इसी बात पे हारी की माफिया, किड नैपिंग ये सब बहुत बढ़ गया था ख़ास तौर पे इस्टर्न यु पी में था तो हमेशा से …लेकिन अभी बहोत खुले आम हो गया था ….
डी बी का फोन चालू था…
” तो वो सिंह …पिछले सरकार में तो सब कुछ वो चलाता था…लेकिन जब गवर्मेंट बदली तो वो समझ गया की मुश्किल होगी…उसके बहुत छुट भैये पकडे गए, कुछ मारे गए…उसने उड़ीसा में माइनिंग में इन्वेस्ट कर रखा था तो अब वो उधर शिफ्ट कर गया है…..जो दुसरे गैंग है उनको उभरने में थोडा टाइम लगेगा.. इसके गैंग के जो २-३ नंबर वाले थे वो अब हिसाब इधर उधर सेट कर रहे हैं…या के पता सिंह ही दल बदल कर ६-७ महीने में इधर आ जाय…”
” और वो शुक्ला…” मेरे सवाल जारी थे.
” वो तो ख़ास आदमी था सिंह का …तुमने सुना होगा बाटा मर्डर….” वो बोले…
” हाँ …वो भी तो सिंह ने ..दिन दहाड़े पुलिस की कस्टडी में …” मैंने बताया.
” वो साला भी कम नहीं था …लेकिन अभी जो होम मिनिस्टर हैं उनका ख़ास आदमी था…जेल से उसको ट्रांसफर कर रहे थे यहीं बनारस ला रहे थे…आगे पीछे पुकिस की एस्कोर्ट वान थी एक ट्रक पीएसी भी थी…लेकिन तब भी….४ ए के ४७ चली थी आधे घंटे तक…५४० राउंड गोली…सिंह ने जो ४ शूटर लगाए थे उसमें से एक तो उसी समय थाईलैंड भाग गया…शकील का गैंग ज्वाइन कर लिया…एक नेपाल में है…एक को हम लोगों ने पिछले हफ्ते मार दिया …यही शुक्ला बचा था…ये सिंह का रेलवे, हॉस्पिटल और रोड का ठीका भी सम्हालता था …लेकिन अब उसे गर्वमेंट चेंज होने के बाद उसे कुछ मिल नहीं रहा था ..इस लिए अपना सीधा…सिंह का बचा खुचा नेटवर्क तो है ही लेकिन शुक्ला अलग से…इसलिए अब सिंह के लोग भी उसको बहोत सपोर्ट नहीं करते थे …हाँ ६-७ महीने बचा रहता तो जड़ जमा लेता….बाटा वाले शूट आउट में सिद्दीकी का बहनोई भी मारा गया था…३८ साल का बहोत हानेस्ट इन्स्पेक्टर ….उसके अलावा साल्ल्ले सभी मिले थे…वरना पुलिस की कस्टडी से…इसलिए मैंने सिद्दीकी को खास तौर से चुना…”
मेरा एक सवाल अभी भी बाकी था…सवाल भी और डर भी
” वो सेठ जो…उनको तो कहीं कुछ नहीं होगा…”
डी.बी हँसे और बोले…” अरे यार तुम मौज करो…ये सब ना,,,उसको कौन बोलेगा…सिंह को तो वो अभी भी हफ्ता देता ही है…और वैसे भी अब वो यहाँ का धंधा समेट रहा है…माइनिंग में बहोत माल है ख़ास तौर से उसने वहां एक दो मल्टी नेशनल से हिसाब सेट कर लिया है…यूपी से लडके ले जाता है..वहां जमीं पे कब्ज़ा करने में ट्राइबल्स को हड़काने में…तो अब बनारस की परचून की दूकान में…और शुक्ला था तो उसको तुमने अन्दर करवा दिया..अब साल भार का तो उसको आराम हो गया…और उनका रिश्ता सिंह से पुराना था…उसकी दूकान से इस्टर्न यूपी …बिहार सब जगह माल जाता था तो उसी के अन्दर डाल के हथियार खास तौर से कारतूस …बदले में सेल्स टैक्स चुंगी वाले किसी की हिम्मत नहीं थी….और बाद में शुक्ल ड्रग्स में भी …तो सेठ जी की हिम्मत नहीं हो रही थी…तो उसकी लड़की उठा के ले गए थे…फिर जो सौदा सेट हो गया तो…वैसे भी शुक्ला को एक दो बार इसने घर पे भी बुलाया था…वहीँ पे उसकी लड़की ..इसने देखि…और ज्यादातर माफिया वाले मेच्योर होते हैं उनका लड़की वडकी का नहीं होता …जयादा शौक हुआ तो बैंगकाक चले गए…लेकिन ये नया और थोडा ज्यादा …तो अब वैसे भी उन्हें डरने की बात नहीं है और एक दो हफ्ते के लिए तुम्हे इत्ता डर है तो सिक्युरिटी लगा दूंगा…उस का फोन तो हम टैप करते हैं…”
तब तक होटल आगया था…राडीसन होटल…शायद नया बना था…थ्री स्टार रहा होगा…
” ठीक है तो लेकिन लौटते समय घर जरूर आना ..और अकेडमी का क्या हाल है वो खडूस चला गया …”
“हाँ…नए डायरेक्टर तो यु पी में ही ए डी जी थे ना…हां लौटूंगा तो मिलूँगा…”मैंने बोला.
” पक्का…वो भी खाली भाषण है… चलो टच में रहना ….” ये कह के उन्होंने फोन काट दिया…
” अरे हम लोगों को तो खाली खाना खाना था यहाँ कहाँ ..”.होटल की बिल्डिंग देखते हए मैंने ड्राइवर से कहा..
“नया खुला है साब अच्छा है..और साहब ने यहाँ बोल भी दिया है…” ड्राइवर ने कहा और जब हम उतरे तो होटल का मैनेजर खुद हमारा इंतजार कर रहा था.
“”सर का फोन आया था,,,ये होटल हमारा नया है लेकिन सारी फैस्लिटी हैं..” उसने हाथ मिलाया और ले के अन्दर चला.
सामने ही रेस्टोरेंट था…मैंने कहा…असल में हम लोग सिर्फ लंच के लिए आये है और रेस्टोरेंट की ओर मुड़ने लगा.
एक्सक्यूज मी…पीछे से एक मीठी सी आवाज आई..मैंने मुड के देखा ..
डार्क कलर की साडी में…हलके मेकअप में …रिसेप्शनिस्ट थी…अक्चुअली …वी हैव मेड अरन्जेम्नेट्स एट अवर स्यूट …फोल्लो मी
असल मैं भी यही कह रहा था …मनेजर बोला…आज रेस्टोरेंट में थोडा रिनोवेशन चल रहा है…एंड रूम इस कम्फर्टेबल. आप थोडा रिलेक्स भी कर सकते हैं.
रूम क्या था पूरा घर था.
दो कमरों का स्यूट ….
रूम क्या था पूरा घर था.
दो कमरों का स्यूट ….
मीठी आवाज वाली दरवाजे के बाहर तक छोड़ के गयी और बोली…” आप लोग चाहें तो थोडा फ्रेश हो लें…मैं १० मिनट में वेट्रेस को भेजती हूँ…या १०८ पे आप रूम सर्विस को भी आर्डर दे सकते हैं.
दरवाजा उसने खुद बंद कर दिया था…मैग्नेटिक चाभी टेबल पे छोड़ दी थी.
मैं जानता था अब ये कमरा सिर्फ अन्दर से खुल सकता है…
गुड्डी तो पागल हो गयी.
बाहर वाले कमरे में सोफा, एक छोटी सी डाइनिंग टेबल ४ लोगों के लिए, मिनी फ्रिज …और एक बड़ा सा टीवी ३२ इंच का एल सी डी,
और बेड रूम और भी बढ़िया…लेकिन सबसे अच्छा था बाथरूम …बाथ टब,शावर सारी चीजें जो कोई सोच सकता है…
गुड्डी ने बाथरूम में ही मुझे किस कर लिया …एक दो पांच १० बार….झूठ बोल रहा हूँ…किस करते समय भी कोई गिनता है…
फिर दूर खड़ी हो गयी और वहीँ से हुक्म दिया…शर्ट उतारो..
मैं एक मिनट सोचता रहा फिर बोला …” अरे यार मूड हो रहा है तो बेड रूम में चलते हैं ना यहाँ कहाँ…”
वो मुस्करायी और बिना रुके पहले तो आराम से शर्ट के सारे बटन खोले और फिर उतार के सीधे हुक पे…अगला नम्बर बनियाइन का था ….अब मैं पूरी तरह टाप लेस था.
गुड्डी ने पहले मुझे सामने से ध्यान से देखा…एकाध जगह हलकी खरोंच सी थी…वहां हलके से उसने ऊँगली के टिप से सहलाया और फिर पीछे जा के …एक जगह शायद हल्का सा लाल था…वहां उसने दबाया…मेरी धीमी सी चीख निकल गयी.
खड़े रहना वो बोली और बाहर जाकर फ्रिज से बर्फ एक टिशू पेपर में रैप कर के ले आई और उस जगह लगा दिया…एक दो जगह और शायद कुछ घूंसे लगे थे या गिरते पड़ते टेबल का कोना…वहां भी उसने बर्फ लगा के हल्का हल्का दबाया.
पैंट उतारो…मैडम जी ने हुकम सुनाया…पीछे से फिर बोली,” मैं ही बेवकूफ हूँ…तुम आलसी से अपने हाथ से कुछ करने की उम्मीद करना बेकार है .”
और मुझे पीछे से पकडे पकडे मेरी बेल्ट खोल दी और पैंट भी हुक पे शर्ट के ऊपर…
और अब वो अपने घुटनों के बल बैठ गयी थी…और एक क्लोज इंस्पेक्शन मेरी टांगों का …फिर पीछे से ….घुटनों के पास एक बड़ी खरोंच थी….
वाश बेसिन पे होटल वालों ने जो आफ्टर शेव दिया था उसे हाथ में ले के उसने ढेर सारा घुटने पे लगा दिया
उई ईई मैं बड़ी जोर से चीखा …..
‘ज्यादा चीखोगे ….तो इसे खोल के लगा दूंगी…” मुस्कराते हुए उसने अपनी लम्बी उँगलियों से चड्ढी के ऊपर से ‘उसे;’ दबा दिया.
दर्द डर और मजे में बदल गया…
” चड्ढी उतारोगे या मैं उतर दूँ…वैसे अन्दर वाला कई बार देख चुकी हूँ आज इसलिए जयादा शर्माने की जरुरत नहीं है
” नहीं मैं वो उतार दूंगा…” और मैंने झट से नीचे सरका दिया.
“देखा…चड्ढी उतारने में कोई देरी नहीं… ” मुस्कराते हुए वो बोली. फिर पीछे से उसने देखा…एक हाथ में उसके बर्फ के क्यूब थे ….
मैं जो डर रहा था वही हुआ…झुको वो बोली…मैं झुक गया…टाँगे फैलाव…मैंने फैला दी…और बर्फ का क्यूब सीधे मेरे बाल्स पे…
और वहां से हटाने के बाद मेरे पिछवाड़े के छेद पे…और असर वही हो होना था …वही हुआ…९० डिग्री…
वो सामने आई खिलखिलाती …और बोली मुंह धो लो या वो भी मैं करूँ…
नहीं नहीं…मैंने वाश बेसिन पे रखे लिक्विड फेस सोप से मुंह अच्छी तरह धोया…सर नीचे कर के बाल भी…तब तक वो गुनगुने पानी से भीगा के बाथ टावेल ले आई थी और मेरी पूर देह उसने रगड़ रगड़ के पोंछ दी. और टंगी बाथ गाउन उतार के दे दिया की अभी यही पहन लो…
मैं एक दम से फ्रेश हो गया…और हम लोग बाहर जा के खाने की मेज पे ही सीधे बैठ गए
..उसने रिमोट उठा के टीवी आन कर दिया…
एक कोई म्यूजिक चैनल आन हो गया…
वो ठसके से मेरे बगल में आ के बैठ गयी और बोली…
” हे ये डी बी कौन है…”
गुड्डी का हाथ मेरे कंधे पे था और वो एक दम सटी हुयी फिर मेरे कुछ बोलने से पहले बोलने लगी..
.” हे ये मत बताना की तुम्हारे हास्टल में सीनियर थे आई पी एक में हैं यहाँ सिटी एस पी हैं…ये सब मुझे आधे घंटे में दो तीन बार सुनाई पड़ गया है…इनका पूरा नाम …तुमसे ले के सब लोग खाली डी बी …डी बी बोलते हो….”
मैं हंसने लगा..
वो बुरा सा मुंह बना के बैठ गयी…तो क्या मैंने चुटकुला सुनाया है….
” अरे नहीं यार बात ही ऐसी ही…चलो मैं पूरी बात सुना देता हूँ…वो महाराष्ट्र के हैं ..सतारा जिले के…ओके ..इसका पूरा नाम है…धुरंधर भाटवडेकर…उनके पिता जी जो फिल्में खास तौर से उत्पल दत्त की….बस एक पिक्चर आई थी रंग बिरंगी …उस में उत्पल दत्त का वही नाम था बस….लेकिन वो इन्शियल ही यूज करते हैं बहोत लोगों को पूरा नाम मालूम नहीं है …”
और मैंने उसके हाथ से रिमोट ले के चैनेल चेंज कर दिया कोई न्यूज …
.
उसने मुस्कराते हुए रिमोट फिर छीन लिया और बोली…” तुम्हारे अन्दर ये बुराई है की तुम हर जगह अपनी बात चलाते हो…” और फिर से गाने वाला चैनल लगा दिया…
” जिया तू बिहार के लाला …” आ रहा था.
” तो ठीक है…जहां मेरी बात चलनी हो वहां तुम्हे मेरी बात माननी होगी…और बाकी जगह…”
और मैं उसके पास सट गया अब मेरे हाथ भी उसके कंधे पे और उंगलिया..उसके उभार पे….जरा सा रिमोट के लिए मैं रात का प्रोग्राम चौपट नहीं करना चाहता था…
वो मुस्करायी, कनखियों से मुझे देखा और मेरे हाथ जो उसके उभारों के पास था खींच के उसे सीधे उसके ऊपर कर लिया …और हलके से दबा दिया. उसका दूसरा हाथ अब मेरे बाथिंग टावेल के ऊपर …जंग बहादुर से एक इंच से भी कम दूर…बाथ रूम में जो उसने शरारत की थी उससे वो कुनमुना तो गए ही थे अब फिर से उन्होंने सर उठा लिया…और बिना मुझे देखे टी वी की और देखते बोली…” मंजूर …लेकिन बाकी हर जगह मेरी बात चलेगी…समझ लो ..फिर …इधर उधर मत करना…”
एकदम और मैंने अब उसका उभार हलके से दबा दिया…
तभी कालबेल बजी..खाना…
उस नटखट किशोरी ने उठते उठते मेरा बाथिंग गाउन खोल दिया और ” वो” बाहर पूरी तरह सर उठाये… ..यही नहीं चलते चलाते वो उठी और खुले जंगबहादुर के सर की टोपी भी खोल दी…अब सुपाडा पूरी तरह खुला और …गुड्डी ने दरवाजा खोल दिया….
खाने की महक ने मेरी भूख जगा दी…एक डिनर ट्राली पे कुछ प्लेट्स….और ड्रिंक्स की बाटलस ….एक सुपर सेक्सी वेट्रेस और एक मिडिल एज का आदमी ..खिचड़ी फ्रेंच दाढ़ी ….
वेट्रेस ने टिपिकल फ्रेंच मेड की कास्ट्यूम पहन रखी थी…
खूब गोरी, हल्का गुलाबी फाउंडेशन, बड़ी सी आई लैशेज , मस्कारा, बाल पोनी टेल में, सफेद बस्टियर ऐसा टाप , थोडा छोटा और गहरी क्लीवेज वाला जिसमे से उसकी ३४ सी गोलाइयों का आकार साफ नजर आ रहा था, बस्टियर कमर पे बहुत टाईट था..एकदम आवर ग्लास की फिगर के लिए . ब्लैक … स्कर्ट घुटनों से करीब एक डेढ़ बित्ते ऊपर और ब्लैक स्टाकिंग्स ….
“गुड आफ्टर नून मदमोजेल, गुड आफ्टर नून सर..मैं तान्या …आय ऍम हियर टू सर्व यू टूडे …एंड मेरे साथ हैं मोंस्यु सिम्नों ….फ्रॉम ऑकवूड बार ऑवर वाइन हेड ”
उन्होंने भी सर झुका के ग्रीट किया और मैंने और गुड्डी ने भी जवाब दिया.
उन्होंने भी सर झुका के ग्रीट किया और मैंने और गुड्डी ने भी जवाब दिया.
तान्या ने पहले तो दमस्क के टेबल मैट लगाये फिर सिल्वर वेयर, क्राकरी और नेपकिन …तब तक मुझे अचानक याद आया की ‘ वो ‘ तो खुला हुआ है. मैं कुछ बोलता उसके पहले तान्या हमारी और बढ़ी लेकिन गुड्डी ने गनीमत थी नेपकिन से ‘उसे’ ढक दिया और खुद भी नेपकिन रख ली.
तान्या के चेहरे पे एक हलकी सी मुस्कराहट खेल गयी.
मैं समझ गया की वो समझ गयी.
उसने गुड्डी की आँखों में देखा और एक मुस्कान दोनों की आँखों में तैर गयी.
लेकिन तान्या कम दुष्ट नहीं थी…वो हम लोगों की कुर्सी के पीछे वो खड़ी थी…बल्कि ठीक मेरी कुर्सी के पीछे …और हल्की सी झुकी…उसके ३४ सी उभार मेरी गर्दन को पीछे से हल्के हल्के ब्रश कर रहे थे…यहाँ तक की खड़े निपल्स भी मैं फील कर सकता था…
वो थोडा और झुकी अब उसके उभार खुल के रगड़ रहे थे…” वुड यु लायिक टू हैव सम वाइन…वे हैव…सम ऑफ़ बेस्ट वाइन…
मैं मना करता उसके पहले ही गुड्डी बोल पड़ी …हाँ हाँ क्यों नहीं.
और जब तान्या ने झुक के वाइन टेस्टिंग ग्लास सामने रखी तो मेरी आँखे ख़ुशी से चमक पड़ी..दुहरी ख़ुशी ….
” आई विल हैव प्लेजर ऑफ़ टेस्टिंग…इफ यू परमिट …”
मैंने उसकी आँखों की और चेहरा उठा के कहा.
दुहरी ख़ुशी…जब वो झुकी…तो उसकी …आधी गोलाईयां बस्टियर से छलक रही थीं…परफेक्ट उभार, खूब कड़े और गुदाज…वो भी कनखियों से देख रही थी और आँखों में मुस्करा रही थी. ..
और वो वाइन टेस्टिंग ग्लास…Merlot
कनोसियार्स डिलाईट…
मोंस्योर सिम्नों ने बोतल तान्या को दी और उसने थोड़ी सी डाल के मुझे दी….
परफेक्ट व्हाईट ग्लोव सर्विस …
मैंने ग्लास ऊपर कर के अपनी आँख के सामने ला के देखा ..और मोंस्योर सिम्नों की ओर देख के बोला…
बोर्देऔक्स (Bordeaux )
वो हल्का सा मुस्कराए और तान्या भी…
मैंने ग्लास को हलके से घुमाया, ट्विर्ल किया और ग्लास की ओर देखता रहा, हलके से सूंघा और बोला..
.लेफ्ट बैंक
अबकी तान्या और मोंस्योर सिम्नों दोनों की मुस्कराहट ज्यादा स्पष्ट थी.
फिर दो चार बूंदे जीभ पे रख के एक मिनट के लिए महसूस किया…और मेरी आँखे बंद हो गयी. धीमे धीमे मैंने उसे गले के नीचे उअतारा…और जब मैंने आँखे खोली तो मेरी आँखे चमक रही थीं…
ग्रेट ..ग्रेट विंटेज मोंस्योर…इफ आई ऍम नाट रांग…आई थिंक…२००५ .२००५ एंड सैंट मार्टिन …
बस मोंस्योर ने ताली नहीं बजाई …
प्रिमुर क्र्यू (Premier Cru)
अब वो बोले..यस ….वि हव स्पेशली सेलेक्टेड फार यू …
मैंने दो घूँट और मुंह में डाली और बोला …मेर्लोत…
उनकी आँखे थोड़ी सिकुड़ी लेकिन फिर मैंने बोला ब्लेंड के लिए अक्चुअली ….
कब्रेंते सुव्ग्नन (Cabernet Sauvignon )
उन्होंने हलके से झुक के बो किया और बोले…यु र अ रियल गूर्मे एनी थिंग मोर
मैंने हलके से उठने की कोशिश की तो मुझे याद आया …अरे जंग बहादुर तो खुले हुए हैं और पीछे सट के तान्या खड़ी है.
और मैं बैठ गया.
तान्या ने पीछे से मोंशुर से इशारा किया..
” आई थिंक इट्स आल राईट …आई विल सर्व देम…”
जाते जाते वो दरवाजे पे एक मिनट के लिए रुक के फिर बोले…
” आय ऍम एत ओक वूड बार…एंड माय फ्रेंडस काल मी क्लोस्ज्युन …एंड नोऊ यू टू कैन काल मी…” और दरवाजा बंद कर दिया.
तान्या अब एक बार फिर सामने और उसके ड्रेस फाड़ते उरोज मेरा ध्यान खिंच रहे थे. मैं नदीदों की तरह देख रहा था.
उसने एक प्लेट में ढेर सारे कबाब रख दिए. और कहा…
” ये हमारी …कबाब फैक्ट्री से हैं…टुंडा, गलवाटी, काकोरी, सीख और ढेर सारे.. नान वेज प्लैटर …वेज प्लैटर भी दूँ….”
“नहीं …ये बहोत हैं…क्यों ..” गुड्डी बोली और मुझसे पुछा…
मेरा ध्यान तो तान्या के उभारो में खो गया था. कड़े कड़े मादक रसीले …और जब वो झुकी थी तो आधी गोलाइयां बाहर झांकती…और फिर गुड्डी की बात टालना…
” हाँ हाँ….” मैंने भी बोला.
उसने हम लोगों के प्लेट में डालना चाहा तो फिर गुड्डी ने मना कर दिया.. नहीं हम लोग ले लेंगे.
लेकिन उसने बोतल से हम दोनों के वाइन ग्लास में रेड वाइन पोर कर दी. अभी भी ३/४ बाटल बची थी.
मैं भी अब सोच रहा था की वो कहीं ज्यादा देर रुकी और नेपकिन सरक गया तो बनी बनायी …सब गड़बड़ हो जायेगा.
मेनू उसने बगल में रख दिया.
” ओ के …यू फिनिश यौर ड्रिंक्स …देंन काल में जस्ट प्रेस दिस बटन …उसने एक कार्ड लेस काल बेल पकड़ा दी. एंड यु कैन आर्डर…ऑर जुस्त रिंग मी अट १०४ …एंड आई विल कम बोन अपेतित …”
ओह थैंक्स …मैंने और गुड्डी ने साथ साथ बोला.
वो आपने नितम्ब मटकाते हुए बाहर गयी और मेरी आँखों ने तुरंत नाप लिया ..३५ …
उसके जाते ही गुड्डी उठी और तुरंत जाके दरवाजा लाक भी कर दिया. ( बाद में हम लोगों ने देखा की उसके लिए भी एक रिमोट था…)
और लौट के दो काम किया..पहला मेरे ‘जंगबहादुर’ को नेपकिन मुक्त किया…वो हुंकार करते हुए बाहर निकला.
और दूसरा…कस के मुझे बाहों में भर लिया और मेरे होंठो से अपने होंठ चिपका के एक जबर्दस्त चुम्मी दी.
गुड्डी के अन्दर कई अच्छी बातें थी लेकिन एक सबसे अच्छी बात ये थी की वो अपनी बात बोलने के बाद जवाब सुनने का न तो इन्तजार करती थी ना उम्मीद. इसलिए उसको ये बताना बेकार था की जलवा मेरा नहीं मेरे सीनियर… डी. बी. का था…
फिर वो मुंह फुला कर बैठ गयी …फिर मुस्कराने लगी…
” तुम कैसे लालचियों की तरह उसे देख रहे थे…खास तौर से उसके सीने को…” वो बोली.
लेकिन फिर चालु हो गयी…वैसे माल मस्त था…और एक सिप उसने ड्रिंक का लिया..एक सिप मैंने भी …इस वैरायटी में अल्कोहल बाकी रेड वाइन्स से थोडा ज्यादा होता है लेकिन उसका मजा भी है…
मेरा ‘ वो’ जो नेपकिन से मुक्त हो गया था फिर कैद हो गया गुड्डी के बाएं हाथ में…और सिर्फ कैद ही नहीं थी कैद बा बा मशक्कत थी…उसे मेहनत भी करनी पड़ रही थी….गुड्डी का हाथ आगे पीछे हो रहा था..
.इस सांप का मंतर गुड्डी ने अच्छी तरह सीख लिया था.
इस सांप का मंतर गुड्डी ने अच्छी तरह सीख लिया था.
गुड्डी ने दूसरा, तीसरा सिप भी ले लिया…पहले मने सोचा की बोलूं जरा धीरे धीरे…लेकिन फिर टाल गया.
गुड्डी फिर बोली …
.” यार वैसे आइडिया बुरा नहीं है…वो साल्ल्ली सिग्नल इतना जबर्दस्त दे रही थी…यार मैं लड़कियों की आँख पहचानती हूँ भले ऊपर से मना करें…और ये तो पिघली जा रही थी…वो आदमी था वरना…अबकी तो जरुर उसे इसकी झलक दिखलाउंगी…गीली हो जायेगी…और खाने के बाद ,स्वीट डिश में वही रस मलाई गप कर जाना…मेरा तो खुद मन कर रहा है लेकिन क्या करूँ…रात के पहले तो कुछ हो नहीं सकता …ये भी पगला रहा है बिचरा…”
मेरे लंड को कस के मसलते वो बोली…
वो आलमोस्ट मेरी गोद में बैठ गयी थी..लेकिन अब मुड के सीधे मेरी गोद में…मेरी ओर मुंह कर के…मेरी ही चेयर पे..दोनों टाँगे मेरी टांगो के बाहर की ओर फैला के…
गुड्डी के उभार मेरे सीने से रगड़ रहे थे और मेरा खड़ा मस्ताया खुला लंड उसकी शलवार के बीच में…
एक हाथ से उसने अपनी वाइन ग्लास की आधी बची वाइन सीधे एक बार में ही मेरे मुंह में उड़ेल दी और बोली..
” सच सच बतलाना..चलो तान्या की बात अभी छोड़ो…”
” पूछो ना जानम …” मेरी ऊपर भी हल्का सा एक साथ इतनी गयी वाइन का सुरूर चढ़ गया….और मैंने कस के उसे अपनी बाहों में भींच लिया…तुमसे कोई बात छिपाता हूँ मैं…”
” सच्ची…अगर तुम हिचकिचाए भी ना तो तुम जानते हो न मुझे…” गुड्डी के होंठ मेरे होंठ से एक इंच भी दूर नहीं रहे होंगे ..
मुझ से ज्यादा कौन जानता था उसको…अगर वो नाराज हो गयी तो…उसको मनाना …असंभव नहीं तो मुश्किल जरुर था…आज रात क्या पूरी होली की छुट्टी सुखी सुखी बीतने वाली थी…और फिर अब से बड़ी बात मैं अगर कोशिश भी करता न…तो उससे झूठ नहीं बोल सकता था…मेरा दिल अब मुझसे ज्यादा उसके कंट्रोल में था…
” ये बताओ…मैं मजाक नहीं कर रही हूँ…सच सच पूछ रही हूँ….वो जो मेरी नाम राशि है …तेरी ममेरी बहन…गुड्डी …उसे देख के कभी कुछ…मन वन किया…”
मैं हिचकिचा रहा था…फिर बोला…” ऐसा कोई चक्कर …..नहीं है…”
मेरे गाल पे एक किस कर के फिर वो बोली …” ये तो मुझे भी मालूम है …की कोई अफेयर वफेयर नहीं है…लेकिन …मैंने कई बार तुम्हे उसके उभारों को देखते देखा है …वैसे ही जैसे आज तुम इसके सीने को देख रहे थे…खुद मैंने देखा है इस लिए झूठ मत बोलना…”
” नहीं…वो नहीं…मेरा मतलब …अब यार…कोई लड़की सामने होगी..उसके उभार सामने होंगे तो नजर तो पड़ ही जायेगी ना…” मैं बोला.
” अरे सिर्फ नजर पड़ गयी या उसे देख के कुछ हुआ भी. माना उस के मेरे से छोटे ही होंगे लेकिन इतने छोटे भी नहीं हैं…हैं तो मस्त गद्दर….” वो फिर बोली.
” हुआ क्यों नहीं…ऐसा कुछ ख़ास भी नहीं…लेकिन तुम तो खुद ही बोल रही हो की ….की…उस के भी मस्त उभार हैं ….तो बस वही हुआ …मन किया…” मैं हकलाते हुए बोल रहा था.
गुडीडी ने अब मेरी ग्लास मुड के उठा ली ..एक सिप खुद ली और बाकी फिर मुझे पिला दिया….
” हाँ तो क्या मन किया उस के उभार देख कर साफ साफ बोलो यार….” गुड्डी ने फिर पुछा….
कुछ रेड वाइन का असर…कुछ मेरे लंड पे गुड्डी के मस्त चूतडों की रगड़ाई का असर.. मैंने कबूल दिया…
” अरे वही यार…जो होता है..मन करता है बस पकड़ लो दबा दो…मसल दो…कस के…चूम लो…वही…”
” अरे बुद्धू साफ साफ क्यों नहीं बोलते की तू उसकी चूंची मसलने के लिए तडप रहे थे …सिर्फ चूंची…लेने का मन नहीं किया.. कभी…एकाध बार…यार बुरी तो नहीं है वो…और मैं बताऊँ …मेरी तो सहेली है…मुझसे तो सब बताती है…तू इतने बुद्धू न होते न तो वो खुद ही चढ़ जाती तेरे ऊपर…मैं ये नहीं कह रही हूँ की कोई चक्कर है या तू उसको पटाना चाहता है…बस एकाध बार मजे के लिए कभी तो मन किया होगा ये खड़ा हुआ होगा उसके बारे में सोच के…”
गुड्डी खुद कस कस के अपने चूतड मेरे लंड पे रगड़ते बोली…
मेरा लंड अब पागल हो रहा था था…उसका बस चलता तो गुड्डी की शलवार फाड़ के उसके अन्दर घुस जाता. लेकिन हाथ तो कुछ कर सकते थे…मैंने उसके टाईट कुरते के ऊपर से ही उसकी चून्चियां दबानी शुरू कर दीं…वो बात भी ऐसी कर रही थी…
” नहीं यार …नहीं मेरा मतलब एकाध बार तो …यार किस का नहीं हो जायेगा…वो खुद ही…हाँ दो चार बार हुआ था एकदम ज्यादा…बस मन कर रहा था…लेकिन …वैसा कुछ है नहीं हम दोनों के बीच में…लेकिन हां …ये खड़ा हुआ भी था कई बार सोच के ….लेकिन…”
मैंने मान लिया.
” चलो चलो कोई बात नहीं…अब की होली में मैं दिलवा दूंगी …लेकिन तुम पीछे मत हटना..समझे वरना…मन तो तुम्हारा किया था ना उसकी लेने का…तो बस…अब उसको पटाना मेरा काम है…मंजूर …”
और ये कह के उसने कस के फिर दो चार किस लिए और अपनी कुर्सी पे….और प्लेटर पे नजर डाल के जोर से चिल्लाई ..
” ऊप्स…सारी…मैं तो भूल ही गयी थी तुम प्योर वेजिटेरियन हो…अरे यार मिस्टेक हो गया….वेज स्टार्टर मैंने मना कर दिया …और तुम भी तो तान्या के चूंची दर्शन में इतने मगन थे…की भूल गए…तुम क्यों नहीं बोले…अब चलो…तुम मेंन कोर्स का इन्तजार करो मैं तो खाती हूँ…”
और फोर्क में एक चिकेन कबाब का टुकड़ा लगा के मुझे दिखाते हुए गड़प कर गयी.
प्लैटर मैंने एक बार फिर से देखा. मैंने बचपन से अब तक नान वेज कभी नहीं खाया नाम के लिए भी नहीं..स्कूल और हॉस्टल में दोस्तों ने बहोत जिद्द की, फिर ट्रेनिंग और बाहर भी गया …लेकिन कभी नहीं…कोई धार्मिक या पारिवारिक कारण नहीं …बस नहीं खाया. भूख जोर से लगी थी…लेकिन अब जो गुड्डी ने बोला था मेन कोर्स का इन्तेजार करने के अलावा चारा ही क्या था….
लेकिन उन सबसे बढ़ कर इतनी अच्छी वाइन ..एक ग्लास से ज्यादा तो मन गटक गया था …गुड्डी के सौजन्य से …लेकिन खाली पेट…और खाली पेट वाइन मतलब हैंगओवर …गैस ..और वाइन की ३/४ भरी बोतल सामने थी…
मैंने फिर प्लेटर की ओर देखा…कम से कम १४ आइटम रहे होंगे…उसके अलावा सास, तरह तरह की चटनी ….
पांच आइटम तो खाली चिकेन के थे…चिकेन लालीपॉप, चिकेन टिका, चिकेन रेशमी कबाब, टंगड़ी कबाब और मुर्ग अचारी टिक्का.
उसके बाद मटन के आइटम…
मटन गिलाफी सीक, मटन मटन मेथी सीक , मटन काकोरी कबाब और मटन लैम्ब चाप इन सिनेमम सास.
फिर फिश फिंगर और फिश बटर फ्राई भी थी. इसके अलावा, झींगा लासुनी, थाई श्रिम्प केक और चिली गार्लिक प्रान….
” तुमने कभी नान वेज नहीं खाया ना…” गुड्डी के होंठो के बीच में एक गिलाफी सीक था…
” न..’ मैं वाइन की ग्लास हाथ में घुमाते बोल रहा था.
” घर में और कोई…” गुड्डी ने फिर पुछा …
” तुम्हे मालूम है…भाभी तो खाती है और कोई नहीं…”
सामने वाइन का ग्लास तो मैंने भर लिया था …लेकिन…
” नहीं खाओगे पक्का ….” उसने मेरा इरादा टेस्ट किया.
” नहीं…” मैंने अपने निश्चय को पक्का करते हुए कहा….और गुड्डी के ग्लास मैं भी वाइन डाल दी.
” चलो …मैं कहूँगी भी नहीं….”
और अब वो मेरी ओर और सरक आई एक दम सट के…और उसका हाथ मेरे कंधे पे …उसने मुझे अपनी ओर खिंच रखा था.
चिकेन लालीपॉप उसके मुंह में था और वो मेरे मुंह के पास अपना मुंह ला के बोली…
” वैसे है बहोत स्वादिष्ट…”
मैं क्या बोलता…
” मुंह खोलो खूब बड़ा सा…” गुड्डी बोली.
मैं सशंकित…क्यों…मैंने धीमे से पुछा.
” अभी क्या तय हुआ था….उस समय मैं तुम्हारी सब बात मानूंगी और बाकि समय तुम….और इतनी जल्दी…मुंह ही खोलने को कह रही हूँ…और कुछ खोलने को तो नहीं कह रही हूँ.”
मैंने मुंह खोल दिया.
” आँखे बंद…”
मैंने आँखे बंद कर लीं.
और अगले पल लालीपाप मेरे मुंह के अन्दर और गुड्डी मेरी गोद में…
” यार तेरे हाथ मार कुटाई कर के थक गए होंगे और अभी वो तान्या आती होगी…उसका भी जोबन मर्दन करना होगा…तो चलो थोडा आराम करो और थोडा प्रैक्टिस ….मेरे हाथ गुड्डी के जोबन पे थे वो भी ऊपर से नहीं
गुड्डी ने अपने कुरते के बटन खोल कर अन्दर सीधे वहीँ…
बाकी का लालीपॉप गुड्डी के होंठो से कुचला कुचलाया….
मेरे हाथ गुड्डी के रसीले उभारों का रस लूट रहे थे…
थोड़ी देर में पूरा प्लेटर और वाइन की बाटल ख़तम हो गयी थी…
थोडा गुड्डी के हाथों से गया…थोडा गुड्डी के मुंह से और काफी कुछ मेरी जीभ ने गुड्डी के मुंह में जा कर निकाल कर…मुख रस में लिथड़ा….अधखाया …कुचला…
और इस दौरान एक पल के लिए भी…. दूकान में हुयी घटना…वो गुंडे…वो पोलिस वाले जो हम लोगों को अन्दर करना चाहते थे…और बाद में जो डी बी ने बताया की जिससे मैं भिड गया था…शुक्ला एक नोन गैंगस्टर था…कुछ भी नहीं याद आया…
गुड्डी ने जैसे सब कुछ इरेज कर दिया है और हम लोग सीधे उस के घर से रीत के पास से …अपने घर जा रहे हों…और बीच में हुआ जो वो एक दुस्वप्न था जिसे हम लोग भूल चुके हों.
गुड्डी ने पुछा ….मीनू देखे या…और खुद ही फैसला कर दिया…उस छैल छबीली को ही बोल देते हैं और फोन उठा के गुड्डी ने बोल दिया मैंने सिर्फ हाँ हूँ…एकदम सुना.
( पता ये चला की अबकी फिर गुड्डी ने नान वेज का ही आर्डर कर दिया और पूछने पे बोला की…कौन दिमाग लगाए…खाना तो खाना…)
जब तक मेन कोर्स आता मैं बाथरूम में जाके अपने कपडे पहन के वापस आगया .
और उसी समय तान्या फिर फूड ट्राली के साथ आई.
हम लोगों का पेट तो स्टार्टर्स से ही काफी भर गया था…लेकिन फिर भी इसरार कर के …और इस बार भी
…लैम्ब विद पोर्ट -रेड वाइन सास, चेत्तिनाड मटन करी और लखनवी चिकेन दो प्याजा..साथ में असारटेड ब्रेड और हैदराबादी बिरयानी.
तान्या थी तो गुड्डी खिलाती नहीं …तो मुझे अपने हाथ से ही…नान वेज खाना पड़ा …और गुड्डी कनखियों से देख के मुस्करा रही थी…जैसे कह रही हो देखा …अभी तो ये शुरुआत है…देखो क्या क्या करवाती हूँ तुमसे…
खाने के बाद जब गुड्डी बात रूम गयी तो …तान्या ने राज खोला…मेरी खातिर डी बी के चक्कर में तो हो ही रही थी लेकिन कुछ कुछ मेरे चक्कर में भी…
शुक्ला के पकडे जाने को पुलिस ने दबा कर रखा था…और मुझे तो वैसे भी कोई नहीं जानता था…
लेकिन थोड़ी बहोत खबर लग गयी थी.
शुक्ला के नाम पे हर होटल में एक स्यूट रिजर्व रहता था …इसके आलावा ताज, क्लार्क हर जगह …एक कमरा होटेल वालों को खाली रखना पड़ता था…उसकी मर्जी जहाँ रुके…और ऐयाशी भी उसने काफी शुरू कर दी थी…सेक्स के साथ साथ वो सैडिस्ट भी था…
इसलिए और सब उस से डरते थे…
तान्या पे भी उसकी नजर थी और वो बोल के गया था की अगली बार वो होटल में आया तो रात उसे ..उसके साथ ही गुजाने पड़ेगी…होटल के मैनेजर को उसने बोला था की आपकी लड़की शाम को चार बजे लहुराबीर कोचिंग के लिए जाती है….
स्वीट डिश में ….राबड़ी गुलाब जामुन …लेकिन गुलाब जामुन के चारों बूंदी लगी थी …मीठी बूंदी…
हमने स्वीट डिश शुरू ही किया था की मेरा फोन बजा…लेकिन कोई नंबर नहीं…
मैंने फिर ध्यान से देखा…लिखा था ….प्राइवेट नम्बर
अचानक मुझे ध्यान आया …डी बी का नंबर ..उनसे मुझे एस एम् एस किया था की कोई खास बात होगी तो मुझे वो इस नम्बर से रिंग करेगा…
मैंने फ़ोन उठाया…
” टीवी देख रहे हो….” वो बोला.
” हाँ…”
टीवी पर गाना आ रहा था हंटर वाला…
आई ऍम अ हंटर एंड शी वांट तो सी माई गन ..
व्हेन आई पुल इट आउट द वोमन स्टार्ट टू रन
ऊ ऊ ….
आवाज उनके फोन पे जा रही होगी…
” अरे लोकल चेंनेल लगाओ न्यूज ..” वो बोला.
मैंने तान्या को इशारा किया ..उसने चैनेल चेंज कर बी एन एन ( बनारस न्यूज नेटवक ) लगाया.
एक स्कूल की धुंधली फोटो आ रही थी नाम भी सही नहीं सुनाई दे रहा था….
एक न्यूज कास्टर सामने खड़ा बोल रहा था..
.नीचे ब्रेकिंग न्यूज भी चल रही थी….
.कन्या विद्यालय मैं दो लोगो ने लड़कियों को बंधक बनाया…आतंकी हमला होने की आंशंका
गुड्डी उठ के खड़ी हो गयी ये तो मेरा स्कूल है…
” तुम्हे कुछ मालूम है इस इलाके के बारे में…हम ने रेड अलर्ट डिक्लेयर कर दिया है…” डी बी की आवाज फोन पे आ रही थी…
” में…हम आ सकते हैं. ? मैंने पुछा….
” आ जाओ में कंट्रोल रूम में हूँ कोतवाली में स्कूल भी पास में ही है…” और उसने फोन रख दिया…
न्यूज चैनेल ने अब ढेर सारी पोलिस की गाडी ..अम्बुलेंस …वो एरिया अब बैरिकेड कर दिया गया था…
बाकी चैनेल ने भी न्यूज पिक अप कर ली थी…इण्डिया टी वि चीख चीख कर कह रहा था ..साबसे पहले इस चैनेल पे ब्रेकिंग न्यूज…एक नया आतंकी हमला…सरकार फेल
उइयी माँ गुड्डी अचानक चीखी…
” गूंजा….”
” क्या हुआ गूंजा को ” मैंने पूछा…
” अरे स्कूल की तो छुट्टी हो गयी थी तो…उसके क्लास की …बोला था ना उसने एक्स्ट्रा क्लास है …ये उसी के क्लासकी …लड़कियां होंगी …” गुड्डी की आवाज रुनांसी हो गयी थी.
” अरे हम लोग चलते हैं ना चलो….” गुड्डी को बोला मैंने .वो हाथ धोने बाथरूम चली गयी
” आप हो न कुछ नहीं होगा…” तान्या बोली
एक और चैनेल अब बोल रहा था था. ” हालांकि पोलिस ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया है…लेकिन हामरे सोरेसेज के अनुसार ये आतंकी हमला ही लगता है…क्योंकि बंधक बानें वालों ने एक बाम्ब का प्रयोग किया है..
.डी जी पोलिस ने लखनउ से बताया है की स्थिति पर कड़ी नजर रखी जा रही है …
.मुख्यमंत्री इटावा से वापस आ रहे हैं….
अभी अभी खबर आई है की कुल २२ लड़कियों में से १९ बंधकों के घुसने के समय निकल भागीं लेकिन ३ लड़कियां बंधक हैं…उन का नाम पुलिस ने बताने से इनकार किया है….
मोबाईल , पुलिस की गाडी बाहर खड़ी थी. हम लोग सीधे उसी में जाकर बैठ गए.
अचानक मुझे याद आया…चंदा भाभी कहीं वो टी वी तो नहीं देख रही होंगी…और वो चैनेल देख कर… घबडा तो नहीं रही होंगी.
गुड्डी ने ऐस्योर किया ..”.नहीं वो नार्मली सोती हैं…और ज्यादातर लड़कियां तो चैनेल बता रहा था की निकल गयी थीं…तो गुंजा निकल ही गयी होगी ….और अगर हम लोगों ने फोन किया तो पहले तो जवाब दो की हम लोग अब तक गये क्यों नहीं …फिर वो कहेंगी की घर आ जाओ और फिर की ये शहर में टेंशन है ..तो आज मत जाओ…तो फिर तो …”
जिस तरह गुड्डी का चेहरा उदास हो गया…मैं समझ गया…रात की बात सोच के… की हम लोगो ने जो इतनी प्लानिंग की है सब जस की तस धरी रह जायेगी…अगर हम रात तक घर न पहुंचे.”
अब उसके बाद तो गुंजा के घर फोन करने की बात ही नहीं थी..फिर मैने भी सोचा की वो लोग बेकार में परेशान होंगे
जगह पोलिस के बैरिकेड लगे थे..उस डायरेक्शन में जाने वाली गाड़ियों को रोका जा रहा था..टेंशन महसूस किया जा सकता था….आफिस जल्दी बंद हो रहे थे…यहाँ तक की रिक्शे वाले भी बजाय सवारी लेने के अपने घरों को वापस जा रहे थे…जगह जगह टी.वि की दुकानों पे..जहाँ कही भी टी.वि लगा था …भीड़ लगी थी.
.जैसे जैसे हम लोग कोतवाली की और जा रहे थे..सड़क खाली लग रही थी ..रस्ते में जो भी मंदिर मस्जिद पड़ती गुड्डी आंखे बंद कर हाथ जोड़ लेती थी. बस हम यही मन रहे थे की वहां फसी लड़कियों में गुंजा ना हो…न हो…जब हम लोग कबीर चौरा हास्पिटल के सामने से निकले तो वहां से ऐम्बुलेंसेज कोतवाली की और जा रही थीं…हम लोगों का डर और बढ़ गया. टाउन हाल के आगे तो एकदम सन्नाटा था…खाली पोलिस की गाडी दिख रही थी…फायर ब्रिगेड वाले भी आ गए थे…चैनेल वालों की भी गाड़ियाँ थी एक दो जगह से न्यूज कास्टर खड़े हो के बता रहे थे की वो स्कूल बस यहाँ से ४०० मीटर दूरी पे है…
चारों ओर टेंशन साफ झलक रहा था. सब के चेहरे पे हवाइयां उड़ रही थीं….स्कूल के बगल से हम गुजरे … वहां आसपास की बिल्डिंग्स खाली करायी जा रही थीं. बाम्ब डिस्पोजल स्क्वाड के दो दस्ते खड़े थे. एक ट्रक से काली डूंगरी पहने कमांडो दस्ते उतर रहे थे.
गुड्डी का दिल धकधक कर रहा था. मेरा भी…सुबह हम लोग …आज दिन भर इतनी मस्ती से लेकिन अचानक…कुछ समझ नही आ रहा था. तब तक हम लोगों की गाडी सीधे कोतवाली में कंट्रोल रूम के सामने जाकर रुकी. ड्राइवर हम लोगों को सीधे अन्दर ले गया.
अन्दर भी बहोत गहमागहमी थी. पुलिस के अलावा अन्य डिपार्टमेंट्स के भी लोग थे…सिटी मजिसट्रेट, सिवल डिफेंस के लोग…डाक्टर्स ….ड्राइवर ने सीधे हम लोगों को वहां पहुंचा दिया जहाँ डी बी थे…एक बड़ी से मेज जिस पे ढेर सारे फोन रखे हुए थे..सामने एक बोर्ड पे उस एरिया का डिटेल्ड मैप बना हुआ था…चारो ओर पुलिस के अधिकारी . मजिस्ट्रेट ….जब हम लोग पहुंचे तो वो एस पी ट्रैफिक को बोल रहे थे…” ट्रैफिक डाइवर्ट कर दिया…एक किमी तक पूरा …यहाँ तक प्रेस को भी जिनके पास अक्रेडीशन हो…दो किमी तक सिर्फ उस एरिया के लोगों को…. नो वेहिकुलर ट्रेफिक. तब तक एक किसी आफिसर ने उन्हें फ़ोन पकडाया…बजाय फ़ोन लेने के उन्होंने स्पीकर फ़ोन आन कर दिया जिससे सब सुन सके.
.प्रिंसिपल सेक्रेटरी होम का फोन था…उन्होंने पूछा..
” हाउ इस सिचुएशन…”
” टोटली अन्दर कंट्रोल सर…” डी बी ने जवाब दिया..” लेकिन अभी कुछ साफ पता नहीं चल पाया है…की वो हैं कौन उन का मोटिव क्या है…साइकोलोजिकल प्रोफाइलिंग भी करवाई है…बेहैवियर पाटर्न अन सर्टेन है,,,अन्दर का कोई प्लान भी नहीं है…लेकिन रेस्ट अशयुर्ड….डैमेज कन्टेन हम करेंगे…”
” ओ.के…एस . टी . ऍफ़. की टीम निकल गयी है दो तीन घंटे में वो पहुँच जायेंगे…मैंने सेंटर से भी बात कर ली है…मानेसर में एन एस जी रेडी नेस में है….” होम सेक्रेटरी की काल जारी थी.
” नहीं सर होप्फुल्ली उनकी जरूरत नहीं पड़ेगी…” डी बी ने बोला.
” लेट अस होप…लेकिन लास्ट टाइम की तरह मैं फंसना नहीं चाहता ना ….बी एस फ का प्लेन रेडी है…एंड चापर मानेसर में तैयार है…कोई मल्टीपल अटैक के चांस तो नहीं हैं…” होम सेक्रेटरी ने पुछा.
” नहीं सर एक दम नहीं…एक घंटे से ऊपर हो गए हैं और अभी कही से….” डी बी ने बोला.
” ओके वि आर विथ यू …” और उधर से फोन कट गया.
एस टी फ यानी स्पेशल टास्क फ़ोर्स …जो पिछली सरकार ने बनाया था, ओर्गनाईज्ड क्राइम और स्पेशल इवेंट से निपटने के लिए ..उनके तरीके अलग थे और वो सीधे गृह राज्य मंत्री को रिपोर्ट करते थे.
तब तक ड्राइवर ने उनका ध्यान हम लोगों की ओर दिलाया.
तीन साल बाद मैं डी बी से मिल रहा था ….५ फिट ११ इंच…गेंहुआ रंग…हलकी मूंछे …छोटे छोटे कृ कट बाल…हाफ शर्ट…कुछ भी नहीं बदला था…वही कांफिडेंस वही मुस्कान ..तपाक से उसने हाथ मिलाया और पुछा हे तुम लोग इत्ते देर से आये हो बताया नहीं..
‘ बस अभी आये…” मैंने कहा और तभी उसकी निगाह गुड्डी पे पड़ी…और वो झटके से उठ के खड़ा हो गया. तुरंत उसने नमस्ते किया..उसकी देखा देखी बाकी आफिसर्स भी खड़े हो गए.
हम ये जानने के लिए बेचैन थे की गूंजा उन तीन लड़कियों में है की नहीं…मैं ने कुछ पूछना चाहा तो उसने हाथ के इशारे से मना कर दिया…और किसी से बोला …” जरा एम् को बुलाओ..”
एक लम्बा चौड़ा पोलिस आफिसर आ के खड़ा हो गया.यूनिफार्म में…तीन स्टार लगे थे
डी बी ने इंट्रोड्यूस कराया…”ये हैं…ए म..अरिमर्दन सिंह… यहाँ के सी ओ …सारी चीजें इनकी फिंगर टिप्स पे हैं…यही सब सम्हाल रहे हैं…और ये हैं…”
मुझे इंट्रोड्यूस कराने के पहले…ए म ने मुझसे हाथ मिला लिया…और बोले…” अरे सर हमें मालूम है सब आप के बारे में…आज चलिए एक्शन का भी एक्सपोजर हो जाएगा,,,”.
डी बी ने किसी से गुड्डी के लिए एक कुर्सी लाने को बोला..लेकिन मैंने मना कर दिया… कोई रूम हो तो …इतने दिनों बाद हम मिले हैं तो …
” एकदम…” डी बी ने बोला.
हम लोग एक कमरे की ओर चल दिए…शायद सी ओ का ही कमरा था…
कमरे में ४-५ कुर्सियां मेज और एक छोटा सोफा था…घुसने से पहले ….डी बी ने कहा..मेरे जो भी काल हो ना…यहीं डाइवर्ट करना और अगर सी एस ( चीफ सेक्रेटरी ) या सी एम् का फोन हो तो मोबाइल पे पेच करवा देना…
अन्दर घुसते ही मैंने पहला काम ये किया की सारी खिड़कियाँ बंद कर दिन और परदे भी खीच दिए और बाहर का दरवाजा बस ऐसे खोल के रखा की अगर कोई दरवाजे के आस पास खड़ा हो तो दिखाई पड़े…
हम लोग ठीक से बैठे भी नहीं थे की डी बी चालू हो गए,,,
” यू नो तीन बाते हैं…जो क्लियर नहीं हो रही हैं…
” यू नो तीन बाते हैं…जो क्लियर नहीं हो रही हैं…
पहली..आई बी ने कोई वार्निंग नहीं दी….ये बात नहीं है की वो कभी सही वार्निंग देते हैं स्पेस्फिक…लेकिन कुछ जनरल उनको आइडिया रहता है….अगर वो गौहाटी में कहेंगे तो गुजरात वाले नार्मली जग जाते हैं. वैसे वो कभी लोकेशन सेपेस्फिक वार्निंग नहीं देते लेकिन उन्हें जनरल हवा रहती है…और ना हुआ तो कम से कम घटना के बाद वो मैदान में आ जाते हैं …कम से कम ये दिखाने के लिए स्टेट पोलिस वाले कितने बेवकूफ हैं…ख़ास तौर से अगर गवरमेंट दूसरी पार्टी की हो…और यहाँ गवर्मेंट दूसरी पार्टी की है…लेकिन अभी तक वो सर खुजला रहे हैं….तुमको याद होगा समीर सिन्हा की….”
” हाँ जो हम लोगों से चार साल सीनियर थे ….बिहार कैडर के….हास्टल में नाटक वाटक करवाते थे …जिन्होंने आई ए एस लड़की से शादी की थी….” मुझे भी याद आया…
” हाँ वही….वो लखनऊ में ज्वाइंट डायरेक्टर हैं आई बी में…उनसे भी मैंने बात की थी ना कोई ह्युमिनइट ( ह्युमन इंटेलिजेंस ) ना कोई टेक्नीकल …” डी बी ने बात आगे बढाई.
” और…” मैंने हुंकारी भरने का योगदान दिया.
गुड्डी बेचैन हो रही थी…ये सब ठीक है लेकिन गुंजा…उसकी आँखों में झलक रहा था. डी बी ने अपनी बात बढाई.
दूसरी पैटर्न ….ये एक दम गड़बड़ है…टेररिस्ट पागल नहीं होता. वो भी रिसोर्स यूज करता है जो बहोत मुश्किल से उसे मिलते हैं. इसलिए वो मक्सिमम इम्पैक्ट के लिए ट्राई करेगा …जहाँ बहोत भीड़ भाड़ हो….और नार्मली वो बम्ब का इस्तेमाल करेगा, होस्टेज का नहीं….और होस्टेज का होगा तो डिमांड क्या होगी….अब तक सिर्फ कश्मीर में हिजबुल के लोग इस तरह की हरकत करते हैं ….लेकिन वहां हालत एक दम अलग है. यूपी में जितने भी हमले हुए ….वो सिर्फ बम्ब से हुए….और ज्यादातर में कोई पकड़ा भी नहीं गया तो ये बात कुछ हजम नहीं होती. ”
तब तक डी. बी का फोन बजा…दशाश्वमेध थाने से रिपोर्ट थी …बोट पुलिस …ने सब घाट नदी की ओर से भी चेक कर लिए हैं. आल ओके
डी बी ने घंटी बजायी.
चपरासी को उन्होंने ३ चाय के लिए बोला और मुझसे पुछा…समोसा चलेगा…जलजोग का …”
“एकदम दौड़ेगा ….” मैंने बोला.
गुड्डी नेमुझे आँख दिखाई…कितना खाओगे…लेकिन जलजोग का समोसा मैं नहीं मना कर सकता था.
” हाँ तो …मैं क्या कह रहा था …हाँ तीसरी बात…उसका मोबाइल फोन….कोई टेररिस्ट मोबाइल पे बात नहीं करता…अगर करेगा तो अपने आका से करेगा…पोलिस से नहीं…एक बार उसने थाने पे यहीं रिंग किया और दूसरी बार अरिमर्दन से बात हुयी…तब तक मैं भी यहाँ आ गया था.मोबाइल मतलब अपना सब अता पता बता देता है ….तो इसलिए मुश्किल है ये सोचना की…”
मैंने बात बीच में रोक कर पुछा…” वो सिम कहाँ का है….”
” यार क्या बच्चो जैसे ….आज कल सिम का क्या…और वो तो पहली चीज इंस्पेक्टर भी देख लेता है…बक्सर के पास किसी जगह से ली गयी थी….आधे घंटे में उसकी कुंडली भी आ जायेगी…लेकिन वो सब फर्जी मिलेगी …इतनी बात तो वो सोनी पे कौन सा सीरियल आता है…”
डी बी बोले और अबकी बात काटने का काम गुड्डी ने किया. बड़े उत्साह से उसने अपने ज्ञान का परिचय दिया…
” सी आई डी… मैं भी देखती हूँ…” वो चहक कर बोली.
” वही तो मैं कह रहा था …बच्चों को भी ये सब चीजें मालोम होती हैं…सिम विम से क्या होगा…” वो बोले.
” तो इसका मतलब की टेरर वेरेर ..की बात…” मैंने थोड़ी रिलीफ की सांस ली.
” नहीं ऐसा कुछ नहीं है….कुछ कही नहीं सकते मान लो निकल जाय कोयी तो ..प्रिकाशन तो लेनी पड़ेगी…” वो बोले और ये भी नहीं कह सकते की कोई गुंडा बदमाश है .
” क्यों,,,: मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
“तीन बाते हैं …ये तीन बातों का चक्कर उनका पुराना हॉस्टल के दिनों का था. डी बी ने फिर समझाना शुरू किया…
” देखो पहली बात आज कल नयी नयी सरकार आई है अभी सेट होने में टाइम लगेगा सब कुछ …तो उस समय नार्मली ये सब एक्टिविटी स्लो रहती हैं. फिर आज कल बनारस मैं वैसे ही हम लोगो ने झाड़ू लगा रखी है. एक मोटा असामी था उसका पत्ता तुमने साफ करा दिया …फिर क्रिमिनल भी रिटर्न देखता है…ठेका हो, माइनिंग हो, प्रोटेक्शन हो…अब किड नैपिंग तक तो होती नहीं फिर ये होस्टेज वोस्टेज का चक्कर क्रिमिनल्स के बस का नहीं… .ना उनका कोई फायदा है इसमें आधी चीज तो मोटिव है …वो क्या होगी. फिर यु नो…ज्यादातर बड़े क्र्मिनल अब नहीं चाहते की फालतू का लफडा हो….उनकी असली कमाई तो अब सेमी लीगल धंधो से होती है. कई ने तो थानों पे फोन कर के बोला जैसे ही चैनेल पे खबर आई की उनका कोई लेना देना है इस इंसिडेंट से….”
तब तक चपरासी समोसा और चाय ले के आगया.
गरम गरम ताजा समोसे..डी बी ने इन्सिस्ट किया की गुड्डी पहले समोसा ले.
गुड्डी ने समोसा तो ले लिया लेकिन जो सवाल उसे और मुझे तब से परेशान किये हुए था…पूछ लिया…
” वो तीन ….तीन लड़कियां ….जो …नाम क्या है…पता चला.”
समोसा खाते हुए डी बी ने बोला…” हूँ…हूँ…कुछ…बताता हूँ…हाँ लेकिन मैं क्या कह रहा था…”
मैंने याद दिलाया…” तीन ….तीन बाते क्यों वो गुंडे बदमाश नहीं हो सकते…एक आप बता चुके हैं की बड़े गुंडों के लिए इस तरह की हरकत प्रोफिटेबल नहीं है …”
” हाँ…” चाय पीते हुए डी बी ने बात जारी रखी…” दूसरी बात…बाम्ब..ये कन्फर्म है की उन के पास बम्ब है…और उसमे ट्रिगर डिवाइस भी है…नारामली…छोटे मोटे गुंडों के पास इम्पैक्ट बाम्ब …यानी जो फोड़ने या फेंकने पे फूटते हैं वही होते हैं…ये साफीसटीकेटेड बाम्ब हैं…जो लड़कियाँ बच के आई हैं उन्होंने जो बताया है ..उसके हमने स्केच बनवाये हैं …और उसके अलावा जहाँ जहाँ यहाँ बम बनाते हैं, सोनार पूरा में , लंका में आस पास के गावों में गंगा पार रामनगर…हर जगह से हम लोगो ने चेक कर लिया ये उनकी हरकत नहीं…और जो लोकल माफिया है…या तो गायब हो चुके है या उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए हैं…
जब तक वो तीसरी बात पे आते मैंने बचा हुआ समोसा भी उठा लिया…गुड्डी ने मुझे बड़ी तेजी से घुरा लेकिन मैंने पूरा ध्यान समोसे की और और डी बी की ओर दिया. डी बी ने तीसरा कारण शुरू कर दिया.”
तीसरी बात…बहोत सिंपल ..हमारे किसी खबरी को लोकल बन्दों को हवा नहीं है….तो…
” तो ये है कौन …” अबकी मैंने सवाल दाग दिया.
” यही तो…अगर साफ हो जाय कोई टेररिस्ट ग्रुप है तो हमें मोटा मोटा उनकी मोडस आप्रेंडी, काम करने का तरीका मालूम है…क्रिमिनल को तो हम लोग आसानी से टैकल कर लेते हैं..पर अभी तक पिक्चर…तब तक उनका फ़ोन बजा..
” सी एस का फ़ोन है …किसी दरोगा ने बताया
अब तक मैं भी इन शब्दों से परिचित हो चूका था की सी एस का मतलब चीफ सेक्रेटरी….और वो स्टेट गवर्नमेंट में सबसे ऊपर होते हैं…
” साहब खुद लाइन पे है या…” डी बी ने पुछा.
” नहीं पी एस…है ” उधर से आवाज आई…
” उनको बोल दो की मैं मोबाइल पे सीधे रिंग कर लूँगा…” वो बोले और उठ कर कमरे के दूसरे कोने की ओर चले गए.
यहाँ मुझ पर डांट पड़ना शुरू हो गयी…
” तुम यहाँ समोसा खाने आये हो की…कितना खाते हो….वहां अभी होटल में फिर समोसा…हम यहाँ समोसा खाने आये हैं की गूंजा का पता लगाने आये हैं…” गुड्डी ने घुड़का”
” तुम यहाँ समोसा खाने आये हो की…कितना खाते हो….वहां अभी होटल में फिर समोसा…हम यहाँ समोसा खाने आये हैं की गूंजा का पता लगाने आये हैं…” गुड्डी ने घुड़का”
नहीं वो बात नहीं है….” मैंने बात बदलने की कोशिश की …” देखो ये लोग बीजि हैं…अभी चीफ सेक्रेटरी से बात हो रही है…”
“तुम लोग ना…तुम भी इन्ही की तरह हो…सिर्फ बातें करते हो काम वाम नहीं….” गुड्डी बोली.
” अरे करेंगे…काम वाम भी करेंगे…प्रामिस घर पहुँचने दो तुम्हारी सारी शिकायत दूर…” मैंने माहौल को हल्का बनाने की कोशिश की.
” धत्त ….तुम भी न कहीं भी कुछ भी…” गुड्डी शर्मा गयी.
तब तक बात करते करते डी बी नजदीक आ गए थे और हम लोग चुप हो गए…
” थैंक्स सर…दो बटालियन आर ए फ …और एक प्लाटून सी आर पी फ …नहीं सर…दैट विल बी ग्रेट हेल्प…जी मैं भी यही सोच रहा हूँ…आज जो भी होगा उसके रियक्शन का रिस्पोंस प्लान तो करना पड़ेगा….कुछ अन्फर्च्नेट हो जाए तो …और कम्युनल टेंशन तो यहाँ …नहीं इतना काफी होगा….एस टी फ की कोई जर्रोरत तो नहीं है…यु नो सर पिछली गव्रेंमेंट में तो दे हैड बेकम …ए सोर्ट ऑफ़ गवर्नमेंट …काल सब लोकल पुलिस का होता है…इंटेलिजेंस …सब कुछ…उनके आने में तो चार पांच घंटे लगेंगे तब तब तो मैं इसे…मैं समझ रहा हूँ…सर …वो अपने राज्य मंत्री जी…स टी फ के हेड उनके जिले में एस एस पी रह चुके हैं और पुराना परिचय है…माई…स्पेसल प्लेन से आ रहे हैं…कोई बात नहीं…मैं आपको इन्फार्म करूँगा…कोई प्राब्लम होगा तो बताऊंगा.”
एस टी ऍफ़…मतलब स्पेशल टास्क फोर्स …इतना तो मैं समझ गया था…लेकिन अब डी बी के चेहरे पे थोड़ी परेशानी साफ दिख रही थी.
जब वो फिर आ के बैठे तो उन्होंने पुछा ..
” हाँ तो मैं क्या बोल रहा था…”
” तीन…” मैं असल में तीन लड़कियों के नाम के बारे में जानना चाहता था ..लेकिन डी बी तो…वो चालू हो गए…
” हाँ तीन बड़ी परेशानिया हैं …कमांडो हमारे तैयार हैं शाम जहाँ जरा हुयी …लेकिन अब जल्दी करनी पड़ेगी…वैसे शाम तो होने ही वाली है…उस स्पेशल टास्क फोर्स के पहुचने के पहले…तो पहली बात..हमें स्कूल के अन्दर का नक्शा एकदम पता नहीं है…हमने स्कूल के मैनेजर , प्रिंसिपल और नगर निगम से प्लान की कापी मंगवाई है…लेकिन बहोत से अनअथाराइज्द काम हो गए हैं और वो नक्शा एकदम बेकार है. फिर पता नहीं किस कमरे में लड़कियां होंगी…कई फ्लोर हैं कुल २८ कमरे हैं …और अगर जरा भी पता चला उन्हें तो… एलिमेंट आफ सरप्राइज गायब हो जाएगा.”
गुड्डी के लिए इन टेक्नीकल बातों का कोई मतलब नहीं था…वो फिर से बोली…जी वो तीन लड़कियाँ…
” जी हाँ…डी बी ने विनम्रता पूर्वक बात आगे बढाई…” मैं भी वही कह रहा था…उन तीन लड़कियों से बात और उलझ गयी है…एक तो वो लोग कहीं बम्ब न छोड़ दें फिर अगर कमांडो कायर्वाही में…कई बार स्मोक बाम्ब से ही घबडा के… फिर मिडिया हम लोगों की …सी एम् ने खुद बोला है…टाइम चाहे जितना लगे …लड्कोयों को सेफ निकलना है.
जब तक वो तीसरी बात बताते गुड्डी मैदान में कूद गयी.
” मैं प्लान बना सकती हूँ…और रास्ता भी…एक कागज मंगाइए..”
कागज आया और तीन चार फोन भी ..आखिरी फोन शायद एस टी एफ के हेड का….डी बी का चेहरा टेंस हो गया और आवाज भी तल्ख़ थी. वो सर सर तो बोल रहे थे…लेकिन टोन साफ था की उसे ये पसंद नहीं आ रहा था.
गुड्डी ने प्लान खींच दिया…और बताने लगी…
” ये ऊपर का रूम है …इसी में एक्स्ट्रा क्लास चल रही थी…लड़कियां यहीं होंगी.
” ये तुम्हे कैसे मालूम …” डी बी ने आश्चर्य से पुछा…
” तो किसको मालूम होगा…” गुड्डी ने झुंझलाकर बोला.
गुड्डी तो गुड्डी थी. गनीमत है…डी बी अभी रीत से नहीं मिले थे…सुपर चाचा चौधरी… चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है और रीत का चाचा चौधरी से भी
” अरे मैं पिछले छ साल से वहां पढ़ रही हूँ…और कितनी बार उस कमरे में एक्स्ट्रा क्लास अटेंड की है…एक्स्ट्रा क्लास वहीँ लगती है…और आज तो गुंजा ने बोला भी था की क्लास वहीँ लगेगी..” गुड्डी बोली.
गनीमत था की डी बी ने ये नहीं पुछा की गूंजा कौन है…
” दो दरवाजे हैं एक बाहर का जिससे सब लोग आते हैं और एक पीछे का जो नार्मली बंद रहता है…चार खिड़कियाँ हैं…एक खिड़की दायें साइड की है जो बंद नहीं होती…”
अबकी मैंने टोका …” क्यों…”
मुझे डांटने में उसने कोई गुरेज नहीं किया….न आँखों से ना आवाज से…
” क्यों का क्या मतलब…अरे हवा आती है धुप आती है…मैं तो हमेशा वहीँ बैठती थी…टीचर के पास से दिखाई भी नहीं पड़ता था…तो एकाध झपकी भी आ जाय…एस में स करते रहो..टीचर ने एकाध बार बंद करने की कोशिश की लेकिन नहीं बंद हुयी…और बगल की छत से लडके लाइन मारते थे…कई बार चिट्ठी फेंकते थे….उस फ्लोर पे पहले कोई कमरा बन रहा था था …फिर आधा बन के रुक गया है काम इसी लिए…और कोई उन लडकों को मना भी नहीं करता था…”
” तभी तुम वहां बैठती थी…” मैंने गुड्डी को छेड़ा…
” चुप रहो यार…ये बहोत काम की बात बता रही है और तुम..खाली ३ समोसे खा गाये…कालेज में राकेश के यहाँ ब्रेड पकौड़े साफ करते थे और…आप बोलिए…ये ऐसा ही है…इसकी बात पे ध्यान मत दिया करिए…” वो गुड्डी से बोले…हमने बिल्डिंग के चारो ओर से फोटोग्राफ भी लिए हैं…लेकिन…” और अपनी बात रोक के उन्होंने फोटोग्राफ मंगाए…
” यही खिड़की है…” गुड्डी ने उंगली से इशारा किया..
” लेकिन ये तो बंद है…” डी बी ने बोला..” कोई भी खिड़की या दरवाजा नहीं खुला है…”
” ओह्ह मैंने पूरी बात नहीं बतायी…. गुड्डी चालू हो गयी …”असल में…हम लोगो ने एक लकड़ी का पच्चा उसमें फंसा रखा था….बाहर से टीचर को दिखता नहीं था…कब्जे में लगा रखा था…जो लड़की सबसे पहले पहुंचती थी उसका काम होता था…और वो खिड़की के बगल वाली डेस्क भी हथिया लेती थी… साल भर ये काम मैंने किया…रात को तो चौकीदार चेक करता था ना…इस लिए शाम को उसे हटा लिया जाता था…”
डी. बी. प्लान पे तमाम निशान बना रहे थे…और किसी को बुला के ऊन्होने तमाम आर्डर दिए और गुड्डी से पुछा…
” वो जो जगह काम हो रहा था…मतलब बंद था…कितना दूर था…गैप कितना था…”
दोनों हाथ फैला के गुड्डी बोली” इतना…थोडा सा ज्यादा…”
‘१० फिट …२० फिट …” डी बी ने पूछा.
” नहीं नहीं…और कम ..८ फिट ज्यादा से ज्यादा…अरे कई बार..लडके तो पास में रखे पटरों की ओर इशारा कर के बोलते…आ जाऊं …आ जाऊं…और हम लोग उन को चिढाते …आ जाओ..आओ …इशारे करते और जब वो आने का नाटक करते तो …हम उन्हें अंगूठा दिखा देते और खिडकी उठंगा देते…”
डी बी ने गुड्डी को चुप रहने का इशारा किया और सी ओ ….अरिमर्दन सिंह को बुलाया…
” बगल में जो मकान बन रहा है…वहा किसी को लगाया है…” डी बी ने पुछा…
” जी जी…दो लोग एक गनर भी है…” सी ओ ने बोला.
” वहां १+४ के दो सेक्शन लगा दो ..एक ऊपर और एक उस बिल्डिंग से जहाँ उतरने का रास्ता हो….स्मार्ट लोगों को लगाना…” डी बी ने बोला.
” और एक टियर गैस वाला सेक्शन भी…स्मोक बम्ब के कुछ कैनिस्टर भी उनको दिलवा दो…हाँ वो सी सी टी वी वाले कैमरे लग गए चारों ओर….” उन्होंने बात जारी रखी.
” जी ”
” तो उसके मेन फीड की स्क्रीन इसी कमरे में लगाओ…” डी बी ने फिर बोला और उसको जाने का इशारा किया. उसके जाने के बाद वो गुड्डी से बोले,
” यार तुमने….छोटी हो तुम तो बोल सकता हूँ….”
” एकदम….” मुस्करा के वो बोली.
” बहोत बड़ी प्राब्लम तुंने साल्व कर दी…” डी बी इतने देर में पहली बार मुस्कराए.
” असल में…डी बी ने बात आगे बढाई…हमें एंट्री समझ में नहीं आ रही थी..चौकीदार से मैंने खुद बात की उसने लड़कियों के अलावा और किसी को स्कूल में घुसते नहीं देखा. सामने जो हलवाई की दूकान है…उस पे जो लड़का बैठता है….”
” नंदू ….” गुड्डी ने बात काट के बोला…
” हाँ …वही…उसने यहाँ तक बताया की ९थ क्लास की लड़कियां थीं…२४ लड़कियां अन्दर गयीं…सब डिटेल …लेकिन उसने भी बोला की किसी को उसने अन्दर जाते नहीं देखा…और टीचर के आने के पहले ये हादसा हो गया…वो थोड़ी लेट आयीं थी…” डी बी ने कहा.
” वो हमेशा लेट आती हैं…मंजू बहन जी…उनके पीरियड में बहोत मस्ती होती है….” गुड्डी ने जोड़ा…
” वो हमेशा लेट आती हैं…मंजू बहन जी…उनके पीरियड में बहोत मस्ती होती है….” गुड्डी ने जोड़ा…
” तो उस लडके ने भी किसी आदमी को अन्दर आते नहीं देखा…इसका साफ मतलब है…वो इसी खिड़की से अन्दर गए और उनके साथ या उन्हें किसी ने इस के बारे में बताया होगा…और कोई रास्ता है क्या..”
डी बी ने गुड्डी ने जो प्लान बनाया था उसे और फोटुयें देखते हुए पुछा.
” उन्ह ..नहीं…नहीं…हाँ एक रास्ता है…लेकिन उसे सिर्फ मैं और कुछ लड़कियां जानती हैं….ज्यादातर लोगों को ये मालूम नहीं की ये रास्ता अन्दर जाता है…एक बहोत जंग खाया सा दरवाजा है उस पे फिल्मों के पोस्टर लगे रहते हैं…बाहर और अन्दर दोनों ओर से बंद रहता है…एक सीढ़ी है…बहोत पतली…और एक दम अँधेरी…सीधे ऊपर जाती है…उस के नीचे बहोत कचड़ा भी पड़ा रहता है. सीढ़ी ऊपर बरामदे में खुलती है. लेकिन उस की सिटकिनी जरा सा झटके से खुल जाती है…बस वहां से निकलिए तो उस क्लास का पीछे वाला दरवाजा…”
” वो भी तो बंद रहता है…तुमने बताया…था ना…” डी बी बोले…
” हाँ एक दम..लेकिन दो बार अपनी ओर खींच के हलके से अन्दर की ओर धक्का दीजिये तो बस खुल जाता है…” गुड्डी ने राज खोला…और मेरी ओर देख के बोली..
.” मुझे क्या मालोम था रीत ने बताया था मुझे “.
डी बी फिर मुस्करा रहे थे…
” एक बार एक दो महीने पहले मैं गयी थी उधर से ….अक्षय कुमार की एक पिक्चर देखने …राठोर…हाँ क्या करूँ क्लास बहोत बोरिंग थी…और एक दो बार क्लास में चुपके से लेट होने पे…एक बार तो तुम्हारे से ही बात करने के चक्कर में…”
मेरी ओर देख के उसने इल्जाम लगाया.
तब तक दो लोग आके स्क्रीन सेट करने लगे…और एक रिमोट हम लोगों के पास लगा दिया जिससे कैमरा सेल्केट हो सकता था.
” वो जो मकान बन रहा है ना…कैमरा उधर सेट करो…हाँ ज़ूम करो….बस उसी खिडकी पे…हाँ और …..”
खिड़की अच्छी तरह बंद थी.
” इंटेलिजेंट….जाओ तुम सब…” और उन्होंने हांक के जमूरों को बाहर कर दिया. और हम लोगों को समझाया….उन सबों को ये अंदाज लग गया होगा की देर सबेर एंट्री प्वाइंट हमने पता चल जाएगा इस लिए उन्होंने अच्छी तरह से बंद कर दिया…ये कोई ….”
तब तक एक और इंस्पेक्टर आलमोस्ट दौड़ता आया…
” सर साइटिंग हो गयी…एक स्नाइपर ने देखा…ग्राउंड फ्लोर बाएं से तीसरी खिड़की…उसका कहना है आब्जेक्ट अभी भी वहीँ होगा…हालांकि खिड़की अब बंद हो गयी है…वो पूछ रहा है…एंगेज करें उसे…एक्शन स्टार्ट करें ….” उसने हांफते हुए पुछा…कमांडो वाला ग्रुप भी रेडी है.”
” अभी नहीं…कैमरा उधर करो…हाँ फोकस … दो लोगो को बोलना क्राल कर के…इनर पेरी मीटर के अन्दर घुसे …बट नो एक्शन नाट इवेन वार्निंग शाट…जाओ…” डी बी ने आर्डर दिया.
अब कैमरा नीचे का फ्लोर दिखा रहा था…एक खिड़की हलके से खुली थी लेकिन पर्दा गिरा था…
” मोबाइल….वो आप कह रहे थे न की उस का फोन….” गुड्डी भी अब पूरी तरह इन्वोल्व हो चुकी थी.
” हाँ हाँ क्यों नहीं….एकदम और थोड़ी देर में रिकार्डिंग की कापी हमारे सामने बज रही थी…शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था…फिर एक कुर्सी घसीटने की आवाज…अस्फुट शब्द…फिर बैक ग्राउंड में एक हलकी सी चीख…
ये तो गूंजा लग रही है…गुड्डी बोली…उसने कान एकदम स्पीकर फोन से सटा लिए..
फोन पर बोलने वाले ने एकाध लाइन बोली…फिर पीछे से आवाज आई…छोडो मुझे…हाथ छोडो….
एकदम गूंजा है ही मैंने बोला…गुड्डी ने लेकिन ध्यान नहीं दिया अब फोन की आवाज साफ हो गयी थी…गुड्डी ध्यान से सुन रही थी…और उस की आँखों में एक चमक सी आ गयी. फिर वो एक मुस्कान में बदल गयी और वो वापस कुर्सी पे आराम से बैठ गयी. अब दूसरी बार के फोन की रिकार्डिंग बज रही थी….
डी बी ने हलकी आवाज में गुड्डी से पुछा…” तुम्हे कुछ अंदाज लग रहा है…”
” हाँ…” उसी तरह गुड्डी धीमे से बोली. उन्होंने गुड्डी को होंठों पे उंगली रख कर चुप रहने का इशारा किया…और एक मिनट वो बोले…और जा के दरवाजा बंद कर दिया.
लौट के उन्होंने रिकार्डिंग फिर से आन की और फुसफुसाते हुए गुड्डी से बोले…ध्यान से एक बार फिर से सुनो…और बहोत कम और बहोत धीमे बोलना.
रिकार्डिंग एक बार फिर से बजने लगी.
ख़तम होने के पहले ही गुड्डी ने कहा…” बताऊँ मैं….”
डी बी …ने नाड किया …हाँ..
” चुम्मन …” गुड्डी ने बोला.
हम सब लोग चुप्पी साधे वेट कर रहे थे . गुड्डी हम लोगो को देख रही थी.. फिर बात आगे बढ़ायी….
” बहोत दिन से नहीं दिखा ….७-८ महीने पहले … छोटा मोटा दादा टाइप…चौराहे पे खड़ा रहता था…एक नयी मोटर साइकिल भी थी ली थीमतलब वो ज्यादा लड़कियों के चक्कर में नहीं रहता था…लेकिन बाकि सब उसे अपना बॉस मानते थे….लेकिन वो एक गूंजा के साथ लड़की है..महक..मेहकदीप ..उसी की बड़ी बहन, प्रीत के साथ…वो सीरियस हो गया था…उसको लगता था बस जो वो कहें सब माने …जैसे उसके चमचे मानते थे ..तो उसने उसको अपने साथ चलने के लिए कहा…दोनों बहनें स्कूटी पे आती थीं …प्यारी गुलाबी रंग की …उसके अंकल बहोत पैसे वाले हैं….सिगरा पे उनका एक माल है, हथुवा मार्केट में कई दुकाने हैं, उसके अंकल के कोई है नहीं तो वो दोनों बहने उनके साथ रहती थीं…वैसे उसके फादर कनाडा में रहते थे…”
” हुआ क्या यार ये बताओ…” मैंने फास्ट फारवर्ड करने की कोशिश की…
” ठीक है..बोलने दो ना इसे…” डी बी ध्यान से सुन रहे थे.
” तो उसने…चुम्मन ने एसिड फ़ेंक दिया….” गुड्डी बोली.
” अरे इतना शार्ट कट भी नहीं….” मैंने समझाया.
गुड्डी बोली.
” तुम्ही तो कह रहे थे…खैर…तो मैं बता रही थी ना की चुम्मन ले जाना चाहता था उसको…कोई क्यों ले जाएगा किसी लड़की को…. मौज मस्ती..लेकिन प्रीत ने चुम्मन को चांटा मार दिया..और अगले दिन से कार से आने लगी…ड्राइवर भी उसका बाड़ी गार्ड टाइप. चुम्मन ने उसे दो चार बार बोला…चलती क्या खंडाला…और एक दिन उसकी स्कूटी का हैंडल पकड़ के रोक दिया…जब तक वो संभलती…उसने प्रीत का …हाथ पकड़ लिया…और हम अब लोग वहीँ खड़े थे साथ साथ…चुम्मन ने उसे अपनी मोटर साइकिल की और खींचा….चारो ओर उसके चमचे खी खी कर रहे थे घेरकर …चुम्मन ने बोला…हे चल आज एक बार मेरे खूंटे पे बैठ जा…फिर खुद आएगी रोज दौड़ी दौड़ी…और प्रीत ने पूरी ताकत से एक चांटा मार दिया और जब तक वो संभले …स्कूटी उठायी और चल दी.:”
” एसिड उसने कब फेंका…” डी बी ने पुछा …क्या अगले ही दिन…
” नहीं…१०-१२ दिन हो गए थे. गुड्डी फिर बोली..
.” एक्जाम का आखिरी दिन था…हम सब लोग बहोत मस्ती में थे…प्रीत मेरे आगे थी. मैं और महक साथ साथ थे…उस की कार थोड़ी दूर खड़ी होती थी. अभी तक मुझे एक एक चीज याद है…अचानक कहीं से वो निकला…उस दिन वो अकेला था…हाथ पीछे..प्रीत की ओर आके उसने एक बोतल दिखाई और बोला…” बहोत गुमान था ना गोरे रंग पे इस जोबन पे अब देखता हूँ…तुझे कोई देखेगा भी नहीं…”और पूरी की पूरी बोतल उसकी ओर खोल कर उछाल दी. लेकिन तब तक मैंने प्रीत का हाथ पकड़ के जोर से पीछे की ओर खींचा…वो पीछे की ओर मुंह के बल गिर पड़ी…इस लिए बच गयी…थोडा सा उसके पैर के पंजे पे पड़ा..बस…करीब १० दिन बी एच यु में भर्ती रही प्लास्टिक सरजरी भी थोड़ी हुयी ..फिर ठीक हो गयी.”
” और चुम्मन….” डी बी कुछ कागज़ पर नोट कर रहे थे, फोन उनके लगातार जारी थे…लेकिन साथ साथ वो गुड्डी की बात भी ध्यान से सुन रहे थे.
” वो दिखा नहीं उसके बाद से…उसके अगले दिन उसकी मां आई थी ..सब दुकानदारों से मिली …की कोई गवाही ना दे…वैसे भी किसको पड़ी थी…हम लोगों से भी बोला…महक के अंकल से भी…” गुड्डी बोली.
” वही जो बगल वाली टेबल पे बैठे थे…” डी बी ने बोला. तब मुझे याद आया…एक लहीम शहीम…५०-५५ के बीच के…रंग ढंग कपडे अंदाज से काफी पैसे वाले संभ्रांत लगते थे.
” था वो कहाँ का कुछ याद है…”डी बी ने पुछा…साथ साथ वो किसी को फोन लगा रहे थे…उसे वेट करने के लिए बोल कर गुड्डी को उन्होंने देखा…
” सोनारपुरा…शायद…” गुड्डी बोली और डी बी ने फोन पर वेट कर रहे आदमी को बोला…” सोनारपुरा पी एस को बोलना…उसका एक बन्दा है…हाँ वो जानता है मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ…बस उसको बोलना उस आदमी को बोलें मेरे दूसरे वाले फोन पे रिंग करे.”
थोड़ी देर में ही ब्लेक बेरी पे रिंग आई.
” सुनो…सोनारपुरा में…कोई चुम्मन है..सुना है उसके बारे में…पिछले एक हफ्ते का उसका अता पता मालुम करो…और उसकी मां होगी…उसको मेरे पास ले आना हाँ बुरके में..और सीधे मेरे पास…आधे घंटे के अन्दर ”
“इट मेक्स सेन्स बट डज नाट आन्सर आल द क्वेस्चन्स. ऐनी वे…इट साल्व्स प्रजेन्ट प्राब्लम …इट सीम्स…” फोन रख कर डी बी बोले
पहली बार डी बी ने राहत कि सान्स ली और दोनो हाथ पीछे कर अंगडाय़ी ली.
आप ने बहोत हेल्प कि..उसने गुड्डी की ओर देख कर कहा…और फिर मुझे देख के बोला…
.” बस यही बद्किस्मती है आप इस जैसे घोन्चु….के साथ चलिये आप कि बदकिस्मती लेकिन इस की किस्मत…”
गुड्डी मुस्करायी और बोली…” बात तो आपकि सही है..लेकिन किस्मत के आगे कुछ चलता है. वैसे आपका…”
मैं और डी बी दोनो मुस्कराये.
” मेरी लाइन बहोत पहले ही बन्द हो चुकी है…बचपन में एक मेरी ममेरी बहन थी ….वान्या…मुझसे बहोत छोटी और मै उसके कान खिंचा करता था…और उसने पूरा बदला ले लिया अब ….वो जिन्दगी भर मेरे कान खिंचेगी.”
गुड्डी ने बहोत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आंख मार दी…और हल्के से बोली.. सीखो…सीखो….”
गुड्डी ने बहोत अर्थपूर्ण ढंग से देखते हुये मुझे हल्के से आंख मार दी…और हल्के से बोली.. सीखो…सीखो….”
डी बी फोन पर दूर खडे होके बात कर रहे थे.
आके वो फिर हम लोगों के पास बैठ गये और बोले..
.” अच्छा ये चुम्मन डरता है किसी चीज से…और क्या …तुम सोचती हो… कौन होगा…उसके साथ.”
गुड्डी ने कुछ देर सोचा…और लगभग उछल कर बोली…
” चुहा…मेरे ख्याल से वो चुहे से डरता है….बल्कि पक्का डरता है…जब …जिस दिन उसने प्रीत पे ऐसिड फेंका था…मैने बताया था ना कि मैं प्रीत के पीछे पीछे ही थी…और मैने उसक हाथ पकड कर पीछे खिंचा था….तो हम लोग ना जब किसी को डराना होत था…तो बडी जोर से बोलते थे….चूहा..हमारे क्लास में थे भी बहोत…मोटे मोटे …बस वो डर कर बिदक गया…थोडा सा ऐसिड उसके अपने हाथ पे भी गिर गया…प्रीत को इस लिये भी कम लगा. और उसके साथ…मेर पूरा शक्क है …रजऊ ही होगा….वही उसका सबसे बडा चमचा था और उस का नाम ले के लडकियों को डराता था…और खिडकी पे सबसे ज्यादा वही खडा रहता था…”
मुझे दिन का सीन याद आया…गुंजा के उरोज पे रंगीन गुब्बारे का सटीक निशाना…”
तब तक ओलिव कलर में कुछ मिलेट्री के लोग आये…डी बी ने खडे होके उनसे हाथ मिलाया…और हम लोगों को इन्ट्रोड्युस कराया..
” हम लोगो ने पूरी रेकी कर ली है…थर्मल इमेजिन्ग डिवाइसेज से भी…एक कोयी नीचे के कमरे में है और एक ऊपर के कमरे में….
“थैन्क्स सो मच मेजर समीर…इत विल बि ग्रेट हेल्प और मेरे ख्याल से…वी विल नाट रिक्वायर…बिग गन्स…लेकिन आप तैयार रहिये…वी डोन्ट नो…सिचुयेशन क्या टर्न ले….” डी बी बोले
और डी बी खडे हो गये. मेजर को संकेत मिल गया और वो हाथ मिला के चले गये.
डी बी अब हम लोगो के साथ खुल के बात करने के मूड में थे…
” चलो…ये बात अब साफ हो गयी ये नीचे वाला कमरा जिसे तुम प्रिन्सिपल का रूम कह रही हो चुम्मन यहां है….फिर अचानक उन्हे कुछ याद आया और उन्होने ऐ. म…..अरिमर्दन सिंह …सी ओ कोतवाली को बुलाया…और बोले…
” ये मीडिया वाले साल्ले ….इनको बोल दो कोयी भी लाइव टेलीकास्ट के चक्कर में ना पडें…..अगले तीन घन्टों तक….एवेन मोबाइल पे अगर कोयी फोटो लेते दिखे…उसे अन्दर कर दो…ये भी साल्ले फीड करते हैं…. और ५०० मीटर के बाहर …”
” मैं सबको हैण्डल कर लुंगा पर सर वो इन्डिया टीवी….”
” उस की तो तुम…अचानक डी बी की निगाह बोलते बोलते गुड्डी पे पडी और उस को देख के बोले …ऊप्स सारी तुम्हारे सामने…”
सी ओ चले गये.
डी बी ने फिर गुड्डी से माफी मांगने कि कोशिश की तो मैने रोक दिया,…
” आप इसको नहीं जानते…ये अगर मूड में आ जाय ना…तो ये सब जो आप बोल रहे थे ना कुछ नही है और अगर आप इनकी दूबे भाभी से मिलेंगे तो फिर तो जो आप फ्रेशर्स को सिखाते थे ना वो शरीफों की जुबान हो जाय.” मैने जोडा.
” मैं फिर जरूर मिलुंगा…बनारस में एक दो भाभियां तो होनी ही चहिये…ओके…डी बी बोले फिर बात पर लौट आये.
” वो चुम्मन…वो नीचे प्रिन्सिपल के कमरे में इसलिये है कि वहां टी वी होगा…”
गुड्डी ने तुरन्त हामी भरी.
” वो वहां से लाइव टेली कास्ट देख रहा होगा. दूसरे वहा से मेन गेट और घुसने के सारे रास्ते दिखते हैं यहन तक की खिडकी भी जिससे वो सब इन्टर हुये थे…तो अगर उसके पास कोयी रिमोट होगा तो वहीं से वो एक्स्प्लोड कर सकता है. लेकिन लडकियों को वो अकेले नहीं छोड सकता तो ये जो थरमल इमेजिन्ग दिखा रही है…गुड्डी आपने एक्दम सही कहा था …लडकियां इसी कमरे में होस्टेज हैं …लेकिन घुसेंगे कैसे….सामने से ….वहां वो बन्दा है…और अगर उसके पास रिमोट हुआ…खिडकी…लेकिन लडकियां एक दम सट के हैं…ऐन्ड माइ ब्रीफ इज ज़ीरो कैजुअल्टी….” डी बी बोले
तब तक एक फटीचर छाप जीन्स…और कुर्ते में एक आदमी द्न दनाता हुआ अन्दर घुसा. बाहर कोयी उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी बी ने आवाज दे कर उसे अन्दर बुला लिया.
तब तक एक फटीचर छाप जीन्स…और कुर्ते में एक आदमी द्न दनाता हुआ अन्दर घुसा. बाहर कोयी उसको अन्दर आने से मना कर रहा था पर डी बी ने आवाज दे कर उसे अन्दर बुला लिया.
” सर जी आप ने एक दम सही कहा था…कुछ दिन में तो आप को हम लोगों की जरुरतो ना रहेगी.” वो बोला.
” सीधे मुद्दे पे आओ…ये बोलो…उसकी मां मिली कि नहीं ….” डी बी ने पूछा.
” अरे आप चन्दर को हुकुम दें और वो..फेल होयी जाय ये हो नही सकता…लाये हैं बाहर बैठी हैं .,..लेकिन मैने सोचा कि मैं खुद साहब को पहले बता दुं ना…” उस आदमी ने बोला.
” ठीक है बोलो…” डी बी ने कहा.
” वो ऐसिड वाले वारदात के बाद ….करीब छ महीने से वो गायब था….लेकिन अभी १०-१२ दिन से नजर आ रहा है. अब सब लोग कहते हैं …एकदम बदल गया…एक्दम शान्त…बोल्बै नहीं करता….घर पे भी कम नजर आता है…और उस की दो बातें जबरद्स्त हैं..एक तो चाकु का निशाना…अन्धेरे में भी नहीं चूक सकता….और दूसरा जो लौन्डे लिहाडी हैं ना…वो सब बहुत कदर करत हैं उसकी बात मानते हैं….” चंदर ने कहा.
” ठीक है…उसकी मां को बुला लाओ…”डी बी ने कहा.
जैसे ही बुरके में वो औरत आयी…डी बी उठ के खडे हो गये…और बोले….
” अम्मा बैठिये….”
वो बैठ गयीं और नकाब उठा दिया….
एक मिडिल ऐजेड…४५-५० की….गोरी थोडे स्थूल बदन की…
” अरे भैय्या..उ चुम्मनवा काव गडबड किहिस….आप लोग काहेन ओके पकडे हैं…” उन्होने बोला.
डी बी ने बडे शान्त भाव से प्यार से उनसे कहा…
” अरे नाहिं आप निसाखातिर रहिये….कोहि नहि पकडे है उसको…कुछ नहीं किये है वो…आप पानी पिजिये….” और अपने हाथ से उन्होने पानी बढाया.
उन्होने पानी का एक घूंट पिया और पूछा…” त बात का है…हम कसम खात हैं उ अब बहुत सुधर गया है.”
” जरा ये आवजिया सुनियेगा…” डीबी ने मोबाइल रिकार्डिन्ग को आन किया….
वो ध्यान से सुनती रहीं …चुपचाप…फिर बोलीं..
.” अवाजिया त ओहि का है बाकि….”
” बाकी का अम्मा…” डी बी ने बडे प्यार से उनसे पूछा.
” हमार मतलब…बाकी उ कह का रहा है ये हमारे समझ में नहीं आ रहा है.”
” कौनो बात नहीं…त इ बतायीं की…”और डी बी की प्यार भरी बात ए ५ मिनट में सब कुछ साफ करा दिया.
चुम्मन की मां ने बताया कि उस तेजाब वाली घटना के बाद वो बम्बई चला गया…उसके कोइ फूफा रहते थे उसके यहां…कुछ दिन टैक्सी वैक्सी का काम किया लेकिन जमा नहीं…लाइसेंस नहीं मिला…फिर वो भिवंडी में….वहीं उसकी कुछ लोगों से उसकी मुलाकात हुयी …वो एक्दम मजहबी हो गया…और अब जब आया है तो अब अपने पूराने दोस्तों से बहोत कम…खाली एक दो से…और एक कोयी साहब कुछ खास काम दिये हैं…पता नही…बस यही कहता है…अम्मी बहोत बिजी हौं और कुछ जुगाड बन गया तो…सऊदीया…जाने का प्रोग्राम भी बन सकता है…
चन्दर को बुला के डी बी ने हिदायत दी की ..उन महिला को आराम से एक कमरे में रखे.. और हम लोग मिल के ऐक्शन प्लान बनाने में जुट गये.
मैने डी बी से पूछा …अरे जब पत्ता चल गया है कि ऐसा कोयी खास नही हैं तो आप बता क्यों नही देते …फालतू का टेन्शन …”
” मुझे बेवकूफ समझ रखा है…पहली बात इस बात कि क्या गारन्टी की वो टेररिस्ट नहीं है…दूसरी इतना बढिया मौका मेरे लिये….इसी बहाने आर. ऐ. एफ़……सी आर.पी. एफ ये सब मिल गयीं अब होली पीसफुली गुजर जायेगी. वरना डंडा छाप होमगार्ड के सहारे ….इतना ज्यादा रयुमर है होली में दंगे की…और तीसरी बात…बेसिक सिचुएशन तो नहीं बदली है ना…वो तीन लडकिया तो अभी तक होस्टेज हैं….”डी बी बोले
बात तो उनकी सही थी.
हम दोनो ने मिल के प्लान बनाना शुरु किया…लेकिन शुरु में ही झगडा हो गया.
और सुलझाया….गुड्डी ने…उसकी बात टालने कि हिम्मत डी बी में भी नहीं थी.
झ्गडा इस बात पे था कि पिछे वाली सीढी से अन्दर कौन घुसे.
मेरा कहना था मैं…डी बी का कहना था …पुलिस के कमान्डो…
मेरा आब्जेक्शन दो बातों से था…पहला जूते…दूसरा सफारी…पुलिस वाले वर्दी पहने ना पहने…ब्राउन कलर के जूते जरुर पहनते हैं और कोयी थोडा स्मार्ट हुआ, स्पेशल फोर्स का हुआ तो स्पोट्स शू….और सादी वर्दी वाले सफारी…दूर से ही पहचान सकते हैं..और सबसे बढकर…बाडी स्ट्रक्चर और ऐटीट्युड….उनकी आंखे…
डी बी का मानना था कि बो प्रोफेशनल हैं हथियार चला सकते हैं….और फिर बाद में कोयी बात हुयी तो….
मेरा जवाब था…हथियार चलाने से ही तो बचना है…गोली चलने पे अगर कहीं किसी लडकी को लगी तो फिर इतने आयोग हैं,,,और सबसे बढकर न मैं चाह्ता था…ना वो की ये हालत पैदा हों. दूसरी बात…अगर कुछ गडबड हुआ तो वो हमेशा कह सकता है की उसे नही मालूम कौन था…वो तो एस टी फ का इन्तजार कर रहा था.
लेकिन फैसला गुड्डी ने किया…वो बोली…साली इनकी है, जाना इनको चाहिये. और ये गुंजा को जानते हैं तो इन्हे देख के वो चौंकेगी नहीं और उसे ये समझा सकते हैं.
तब तक एक् आदमी अन्दर आया और बोला बाबत पुर ऐयर पोर्ट(बनारस का ऐयर पोर्ट) से फोन आया ऐ…की एस.टी.ऎफ का प्लेन २५ मिनट में लैन्ड करने वाला है…और बाकी सारी फ्लाइट्स को डिले करने के लिये बोला गया है…उनकी वेहिकिल्स सीधे रन वे पर पहुंचेंगी.”
डी बी ने दिवाल घडी देखी…कम से कम २० मिनट यहां पहुंचने में लगेंगें यानी सिर्फ ४५ मिनट ….हम लोगों क काम ४० मिनट में खतम हो जाना चाहिये…
फिर उस वेट कर रहे आदमी से कहा…
“जो ऎल.आई.य़ु के हेड है ना पान्डे जी…और ऐयर पोर्ट थाने के इन्चार्ज को बोलियेगा…उन्हे रिसीव करेंगे और सीधे सर्किट हाउस ले जायेंगे . वहां उनकी ब्रीफिंग करें…”
अब डी बी एक बार फिर ….पूरी टाइम लाइन चेन्ज हो गयी.
” ज़ीरो आवर इज़ २० मिनट्स फ्राम नाउ” डी बी ने बोला
…मुझे १५ मिनट बाद घुसना था…१७ मिनट बाद प्लान टू शुरु हो जायेगा…२० वें मिनट तक मुझे होस्टेज तक पहुंच जाना है..और अगर …३० मिनट तक मैने कोयी रिस्पान्स नहीं मिला तो सीढी के रास्ते से मेजर समीर के लोग और …छत से खिडकी तोड के पुलिस के कमान्डों…
“तुम्हे कोयी हेल्प सामान तो नहीं चाहिये…” डी बी ने पूछा.
” नहीं बस थोडा मेक अप..पेन्ट….” मैने बोला.
” वो मैं कर दुंगी….” गुड्डी बोली.
” कैमोफ्लाज पेंट है हमारे पास…भिजवाउं….” डी बी बोले.
गुड्डी बोली,” अरे मैं ५ मिनट में लडके को लडकी बना दूं…ये क्या चीज है. आप जाइय़े…टाइम बहोत कम है.”
डीबी बगल के हाल में चले गये और वहां पुलिस वाले, सिटी मजिस्ट्रेट, मेजर समीर…तेजी से बोलने की आवाजें आ रही थीं.
गुड्डी ने अपने पर्स उर्फ जादू के पिटारे से…कालिख की डिबिया जो बची खुची थी…दूबे भाभी ने उसे पकडा दी थी…और जो हम लोगों ने सेठ जी के यहां से लिया था…निकाली और हम दोनो ने मिल कर…
४ मिनट गुजर गये थे.
११ मिनट बाकी थे….
” तुम्हारे पास कोयी चूडी है क्या….” मैने पूछा.
” पहनने का मन है क्या… गुड्डी ने मुस्कराकर पूछा और अपने बैग से ….हरी लाल चुडीयां…जो उसने और रीत ने मिल कर मुझे पहनायी थीं …सब मैने उपर के पाकेट में रख ली.
” चिमटी और बाल में लगाने वाला कांटा….” मैने फिर मांगा.
तुमको ना लडकियों क्का मेक अप लगता है…बहोत पसन्द आने लगा…वैसे एक दम ए वन माल लग रहे थे जब मैने और रीत ने सुबह …तुम्हारा मेक अप किया था…चलो घर कल से तुम्हारी भाभी के साथ मिल कर वहां इसी ड्रेस में रखेंंगें….” ये कहते हुये गुड्डी ने चिमटी और कांटा निकाल कर दे दिया.
७ मिनट गुजर चुके थे…
सिर्फ ८ मिनट बाकी थे.
निकलुं किधर से…बाहर से निकलने का सवाल ही नहीं था..इस मेक अप में..सारा ऐड्वान्टेज खतम हो जाता…
मैने इधर उधर देखा…कमरे की खिडकी में छड थीं…मुश्किल था.
अटैच्ड बाथ रूम…मैं आगे आगे गुड्डी पीछे पीछे…
खिडकी में तिरछे शीशे लगे थे…मैने एक एक करके निकालने शुरु किये और गुड्डी ने एक एक को सम्हाल कर रखना..जरा सी आवाज गडबड कर सकती थी. ६-७ शीशे निकल गये और बाहर निकलने की जगह बन गयी.
९ मिनट
सिर्फ ६ मिनट बाकी…
बाहर आवाजें कुछ कम हो गयी थीं लगता है उन लोगो ने भी कुछ डिसिजन ले लिया था.
गुड्डी ने खिडकी से देख के इशारा किया…रास्ता साफ था…
मैं तिरछे हो के बाथ रूम की खिडकी से बाहर निकल आया.
वो दरवाजा ३५० मीटर दूर था. यानी ढाई मिनट….
वो तो प्लान मैने अच्छी तरह देख लिया था…वरना दरवाजा कहीं नजर नही आ रहा था…सिर्फ पिक्चर के पोस्टर…
तभी वो हमारी मोबाईल का ड्राईवर दिखा…उस को मैने बोला…तुम यहीं खडे रहना..और बस ये देखना कि द्ररवाजा खुला रहे.
पास में कुछ पुलिस की एक टुकडी थी…ड्राइवर ने उन्हे हाथ से इशारा किया और वो वापस चले गये.
१३ मिनट..
सिर्फ २ मिनट बचे थे.
मैं एक दम दीवाल से सट के खडा था…
कैसे खुलेगा ये दरवाजा…कुछ पकडने को नहीं मिल रहा था..
एक पोस्टर चिपका था…सेन्सर की तेज कैन्ची से बच निकली…कामास्त्री…हीरोईन का खुला क्लिवेज दिखाती ..और वहीं कुछ उभरा था…हैंडल के उपर ही पोस्टर चिपका दिया था…
दो बार आगे तीन बार पीछे जैसा गुड्डी ने समझाया था…सिमसिम…दरवाजा खुल गया…वो भी पूरा नहीं थोडा सा…
१५ मिनट हो गये थे…
सीढी सीधी थी…लेकिन अन्धेरी…जाले…जगह जगह कचडा. थोडी देर में आंखे अन्धेरे की अभ्यस्त हो गयी थीं.
मेरे पास सिर्फ 10 मिनट थे काम को अन्जाम देने के लिये…
सीढी २ मिनट में पार कर ली…
साथ में कितनी सीढीयां है रास्ते में कौन सी सीढी टूटी है उपर के हिस्से पे सीढी बस बन्द थी….लेकिन अन्दर की ओर इतना कबाड….टूटी कुर्सीयां. एक्जाम की कापियों के बन्डल, रस्सी…उसे मैने एक किनारे कर दिया…लौटते हुये बहोत कम टाइम मिलने वाला था.
क्लास के पीछे के बरामदे में भी अन्धेरा था. मैं उस कमरे के बाहर पहुंचा और दरवाजे से कान लगा के खडा हो गया. हल्की हल्की पद्चाप सुनायी दे रही थी… बहोत हल्की.
मैने दरवाजे को धक्का देने की कोशिश कि..वो बस हल्के से हिला.
मैने नीचे झुक के देखा…दरवाजे में ताला लगा था.
गुड्डी ने तो कहा था कि ये दरवाजा खुला रहता है.
अब.
तब तक मैने देखा मोबाइल का नेट्वर्क चला गया. लाइट भी चली गयी. अन्दर कमरें घुप्प अन्धेरा छा गया.
लाउड स्पीकर पर जोर से चुम्मन की मां की आवाज आने लगी..
.” खुदा के लिये इन लडकियों को छोड दो….इन्होने तुम्हारा क्या बिगाडा है…अल्लाह तुम्हारा गुनाह माफ कर देंगें पुलिस के साहब लोग भी ….बाहर आ जाओ…”
प्लान टू शुरु हो चुका था. १७ मिनट हो गये थे.
मेरे पास सिर्फ ८ मिनट थे.
मैने गुड्डी की चिमटी निकाली और ताला खोल कर हल्के से दरवाजा खोल दिया…थोडा सा…घुप्प अन्धेरा…
थोडी देर में मेरी आंखे अन्धेरे की आदी हो गय
एक बेन्च पे तीन लडकीयां, सिकुडी सहमी…गुन्जा की फाक मैने पहचान ली…गुन्जा बीच में थी.
बेन्च के ठीक नीचे था बम्ब…बिजली की हल्की सी रोशनी जल बुझ रही थी. कोयी तार किसी लडकी से नहीं बन्धा था.
दीवाल के पास एक आदमी खडा था जो कभी लडकियो की ओर कभी दरवाजे की ओर देखता…
बाहर लाउड स्पीकर पर आवाज और तेज हो गयी थी…कभी चुम्मन की मां की आवाज कभी पुलिस की मेगाफोन पे वार्निग…
उस आदमी का ध्यान अब पूरी तरह बाहर से आती आवाजों पे था.
जमीन पर क्राल करते समय मुझे ये भी सावधानी रखनी पड रही थी की जो एक छोटा सा पिन्जडा मेरे पास था …वो जमीन से ना टकराये…उसमें दो मोटे मोटे चूहे थे.
सबसे पहले गुन्जा ने मुझे देखा. वो चीखती उसके पहले मैने उसे चुप रहने का इशारा किया और उंगली से समझाया की बाकी दोनो लडकियों को भी समझा दे की पहले की तरह बैठी रहें रियेक्ट ना करें.
मुझे पहले बाम्ब को समझना था.
मैं उससे बस दो फीट दूर था.
एक चीज मैं तुरन्त समझ गया…इसमें कोय़ी टाईमर डिवाइस नही है. ना तो घडी की टिक टिक थी ना वो सर्किटरी…तो सिर्फ ये हो सकता है कि…किसी तार से इसे बेन्च से बान्धा हो और जैसे ही बेन्च पर से वजन झटके से कम हो… बाम्ब ऐक्टिवेट हो जाय.
बहोत मुश्किल था.
मैं खिडकी से चिपक के खडा था.
कोयी डाइवर्शन क्रियेट करना होगा…
मैने गुन्जा को इशारे से समझा दिया…
मेरे जेब में पायल पडी थी…जो सुबह गुड्डी और रीत ने मुझे पहनायी थी. और घर से निकलते समय भी नहीं उतारने दिया था.. बाजार में पहुंच के मैने वो अपनी जेब में रख ली थी.
चूहे के पिंजरे से मैने पनीर का एक टुकडा निकाला और पायल में लपेट के…पूरी ताकत से बाहर की ओर अधखुले दरवाजे की ओर फेंका…झन्न की आवाज हुय़ी…दरवाजे से लड के पायल अधखुले दरवाजे के बाहर जा गिरी…
झन झन झन..
” कौन है…” वो आदमी चिल्लाया और बाहर दरवाजे की ओर लपका जिधर से पायल की आवाज आयी थी….
इतना डायवर्शन काफी था.
मैने गुन्जा को पहले ही इशारा कर रखा था..उसके दायीं ओर वाली लडकी को पहले उठ के मेरे पास आना था…
वो झटके से उठ के मेरे पास आयी ….एक पल के लिये मेरे दिल कि धडकन रुक सी गयी थी…कहीं बाम्ब…लेकिन कुछ नहीं हुआ.
और जब वो मेरे पास आयी तो मेरे दिल की धडकन दो पल के लिये रुक गयी.
मेहक..लम्बी , गोरी, सुरु के पेड जैसी छरहरी और सबसे बढ्कर उसकी फिगर…
लेकिन अभी उसक टाईम नहीं था. मैने उसके कान में फुस्फुसाया…दिवाल से सट के जाना…पीछे वाले दरवाजे पे…इसके बाद गुन्जा के बगल की दूसरी लडकी को मैं उठाउंगा…तुम दरवाजे पे उस लडकी का वेट करना और पीछे वाली सीढी से….
मेहक को सीढी का रास्ता मालूम था… उसने मुझे आंखों में ऐश्योर किया…और दीवाल से सटे सटे बाहर….की ओर…मैं डर रहा था की जब वो दरवाजे से बाहर निकले तब कहीं कोयी आवाज ना हो…
और मैने एक चूहा छोड दिया.
वो आदमी दरवाजे के बाहर खडा था …पनीर का टुकडा उसके पैरों के पास…
और पल भर में चूहा वहीं….वो जोर से उछला…चूहा….
और मेहक…दरवाजे के पार हो गयी.
बाहर से लाउड स्पीकर की आवाजें बन्द हो गयी थी और अब फायर ब्रिगेड वाले वाटर कैनन छोड रहे थे…बन्द होने पर भी कुछ पानी बाहर के बरामदे में आ रहा था.
वो आदमी फिर बेचैन होके बाहर की ओर गया. और फिर पायल, पनीर का टुक्डा और चूहा…और अबकी चूहे ने उसे काट लिया….
वो चीखा और अब दूसरी लडकी दिवार से सट के…बाहर की ओर….
चुहे हमेशा दिवार से सट के चलते हैं और अंधेरे में देख सकते हैं. जो चूहे मैं लाया था इनके दांत बडे तीखे होते हैं… ये बात उस आदमी को भी मालूम थी और वो दीवार के नजदीक नहीं आ सकता था.
लेकिन अब मामला फंस गया.
मैं गुंजा और…बम्ब.
अभी तक बेन्च पे कम से कम गुन्जा का वजन था. लेकिन उस के हटने के बाद….मैने उसे इशारा किया….और वो एक दम बेन्च के किनारे सरक कर बैठी थी…बस जस्ट टिकी थी…
दूसरे डाईवर्शन….काठ की हान्डी एक बार चढती है…मैं दो बार चढा चुका था. और मेरे पास अब ना तो पायल बची थी ना चूहे…और अब वो आदमी एलर्ट हो कर अन्दर की ओर देख रहा था…जैसे ही वो रियलाईज करता दो लडकियां गायब हैं…मेरे लिये मुश्किलें टूट पडतीं.
क्या करुं ..क्या करुं …मैं सोच रहा था…तब तक जोरदार आवाज हुयी…
बूम.
बूम…
मैं समझ गया ये डमी ग्रैनेड है…धुआं और आवाज….लेकिन उसने बरामदे में शीशा तोड दिया था और उसी के रास्ते वाटर कैनन का पानी..
.
गुंजा बस टिकी बैठी थी और अब दुबारा मौका नहीं मिलने वाला था..मेरे इशारे के पहले ही …वो मेरी ओर कूद पडी..और मैं स्लिप के फील्डर की तरह पहले से तैयार…मैने उसे कैच किया और उसी के साथ रोल करते हुये जमीन पर दरवाजे की ओर…
बम्ब नहिं फूटा.
लेकिन एक दूसरा धमाका हो गया.
कमरे में एक दूसरा आदमी दाखिल हो गया…
” क्या हो रहा है यहां….तू नीचे जा…अब लगता है…टाईम आ गया”
और उसने लाइटर निकाल कर जला ली.
और जैसे ही लाईटर की रोशनी बेन्च की ओर पडी …बेन्च खाली….
” लडकियां कहां गयीं देख जायेंगी कहां…यहीं कहीं होगीं….ढूंढ जल्दी.”
मैं और गुन्जा दम साधे फर्श पे थे. और लाइटर की रोशनी हम लोगों की ओर भी आ गयी.
एक चाकू तेजी से…हवा में लहराता…
मैं सिर्फ इतना कर सका की …रोल करके मैने गुन्जा को अपने नीचे कर लिया…पूरी तरह मेरे नीचे दबी, चारो ओर मेरी बांहें, पैर…
चाकू मेरी बांह में लगा और अबकी बार वो खरोंच नहीं थी. घाव थोडा गहरा था…खून तेजी से निकलने लगा.
गुंजा से मैने बोला…” तू भाग…बाकी लडकियां पीछे वाली सीढी पे खडी होंगी ….तू भी वहीं खडी हो के मेरा इंतजार करना…मैं रोकता हुं इस को.”
हम लोग दरवाजे के पास ही थे.
गुंजा सरक कर…दरवाजे के बाहर निकल गयी और दौडती हुय़ी सीढी की ओर….
वो आदमी मेरे पास आ चुका था. लाईटर बुझ चुका था. लेकिन उस अन्धेरे में भी …उसने एक बडा चाकू जो निकाला, उसकी चमक साफ दिख रही थी…
” क्यों साल्ले…किसका आशिक है तू…उस मेहक का…बुरचोदी…उसकी बहन तो बच गयी ये नहीं बचने वाली मेरे हाथ से…या गुंजा का…अब स्वर्ग में जा के मिलना मेहक से…घबडाना मत दो चार महीने मजे ले के…उसे भी भेज दूंगा तेरे पास ज्यादा इंतजार नहीं करना पडेगा.” और उसने चाकू उपर की ओर उठाया…
” और उसने चाकू उपर की ओर उठाया…
मैं जमीन पे गिरा था..उसके पैरों के पास…गुड्डी से जो मैने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था…मेरे हाथ में था…
खच्च…खच्च…खच्च…दो बार दाये पैर में एक बार बायें पैर में…
वो लडखडा के गिर पडा….उठते हुये मैने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में…पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छ्ल छ्लल बहने लगा.
निकलते निकलते मैने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है…मैने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर.
उसी समय एक टियर गैस का शेल खिडकी तोडता हुआ कमरे में.
२० मिनट हो चुका था…मुझे ५ मिनट में बाहर निकल कर आल क्लियर का मेसेज देना था वरना कमांडो अन्दर….लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी…ये दोनो पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम ५-१० मिनट के लिये डिले किया जाय.
दरवाजा बन्द कर के मैने टुटा हुआ ताला उसमें लटका दिया…
ऐड्वांटेज…१ मिनट
जो मैने गुड्डी से चुडियां ली थीं …सीढी की उल्टी डायरेक्शन में मैने बिखरा दीं और कुछ एक कमरे के सामने…अगर वो कन्फुज हुये तो—
ऐड्वाटेज…दो मिनट
वापस मैं दौडता हुआ सीढी की ओर…तीनो लडकीयां सीढी के पार खडी थीं.
मेहक ने बोला,
” चलें नीचे…”
” अभी नहीं…” मैने कहा और सीढी का दरवाजा बन्द कर दिया.
पीछे से जोर जोर से दरवाजा खडखडाने की आवाज आ रही थी.
” ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा उठा के यहां …” मैने बोला.
” मेरा नाम मेहक है…मेहक दीप…” वो बोली.
” मुझे मालूम है…लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” मैने कहा.
जल्दी जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी…तीसरी लडकी से मैने रस्सी के लिये इशारा किया…और उसने हाथ बढा के रस्सी पास कर दी. उपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये..बीच में जो भी टूटी कुरसियां, फर्नीचर सब कुछ…कम से कम ५-६ मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये..
.
तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धडाम की आवाज आयी.जिस कमरे में इन्हे होस्टेज बना कर रखा था…और जिसे मैने बाहर से बन्द कर दिया था…टूटा ताला लटका कर उसका ..दरवाजा..टूट गया था.
“भागो नीचे ..सम्हल कर…चौथी सीढी टूटी है…११ वीं के उपर छत नीची है…” मैने तीनो से बोला.
” मालूम है मालूम है..स्कूल बंक करने का फायदा..” मेहक ने उतरते हुये जवाब दिया.
दौडते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढी के दरवाजे की ओर से आ रही थी.
मेरा चूडी वाली ट्रिक फेल हो गयी थी.
मेरी दिमाग की बत्ती जली…जो मेरा खून गिर रहा होगा..अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा.
और वही हुआ…हमारे नीचे पहुंचने से पहले…ही सीढी के दरवाजे पे हमला शुरु हो गया था. इसका मतलब कि अब दोनो साथ थे…जिसके पैर में मैने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं.
.और तबतक गोली की आवाज…
गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोडने की कोशिश कर रहे थे…लेकिन मुझे ये डर था की कही वो इन लडकियों को ना लग जाये.
” पीठ दीवाल से सटा के..चुपचाप…” मैने बोला. सब लाइन में खडे हो गये..दिवाल से चिपक के..और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे. वो जाके सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गयी.
सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लडकी और सबसे अन्त में मेहक और मैं…एक दूसरे का हाथ पकडे…
गोली की आवाज सुन के मेहक कांप गयी और उसने कस के मेरा हाथ भींच लिया और मैने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया.
मेहक मुझे देख के मुस्करा दी…और मै भी मुस्करा दिया.
अब हम लोग सीढी के नीचे वाले हिस्से में थे…जहां निचले दरवाजे से छन के रोशनी आ रही थी.
मूझे देख के वो मीठी मीठी मुस्कराती रही..और मै भी…इत्ती प्यारी सुन्दर कुडी..मुस्कराये और कोयी रिस्पान्स ना दे…गुनाह है.
तब तक मेहक की निगाह मेरे हाथ पे पडी..
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
उयीइइइइइइइइइइ वो चीखी…कितना खून….
अब मेरी नजर भी हाथ पर पडी. मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता. लेकिन खून लगातार बह रहा था..मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गयी थी.
मेहक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड दिया. और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया. खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहोत कम हो गया था.
तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैने महक को खींच के अपनी ओर…मेरे हाथ अचानक मैने रियलाइज किया उसके रुयी के फाहे ऐसे उभार पे थे…मैने झट से हाथ हटा लिया और बोला..सारी..
.
मेहक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींच के वहीं रख लिया और बोली…किस बात की सारी…नो थैन्क नो सारी…वी आर फ्रेन्डस….”
मैने मोबाइल की ओर देखा..सिर्फ दो मिनट बचे थे …अगर मैने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलैट्री कमान्डो…और हम लोग क्रास फायर में..
नेटवर्क अभी भी गायब था.
मैने बीपर निकाल कर मेसेज दिया…ये सीधे डी बी को मिलता.
सिर्फ चार सिढिय़ां बची थीं.
दीवाल से पीठ सटाये सटाये…हम नीचे उतरे.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
उपर से जो गोलियां चली थीं, उससे नीचे सीढी के दरवाजे में अनेक छेद कर दिये थे. काफी रोशनी अंदर आ रही थी.
पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली.
और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा…
” आप हो कौन जी…इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं, मिलेट्री में…लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…” मेहक ने अपनी नीली नीली आंखे नचा के कहा.
गुंजा आगे बढ के आयी…” मेरे जीजू है यार…जीजू ये है..
“मेहक” उस ने खुद हाथ बढाया. और मैने हाथ मिला लिया.
” मैं जैसमीन…” तीसरी लडकी बोली और अबकी मैने हाथ बढाया.
” हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…” मेहक ने हंस के कहा.
” और मेरे भी…” जैसमीन बोली.
” एकदम …”गुंजा बोली. ” लेकिन आप को ये कैसे पता चला की मैं यहां फंसी हूं.”
” अरे यार साल्लीयों को जीजा के अलावा और कहीं फंसने की इजाजत नहीं है….” मैने कस के मेहक और गुंजा को दबाते हुये कहा.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
मैं बात उन सब से कर रहा था…लेकिन मेरी निगाह बार बार उपर और नीचे के दरवाजों पे दौड रही थी.
मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खडे हैं…लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खडे होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई..हमारी पीठ उन की ओर होगी…बहोत मुश्किल हो जायेगी. मैं इस लिये टाइम पास कर रहा था की…उपर से वो दोनो क्या करते हैं.
मुझे एक तरकीब सूझी…कुछ रिस्क तो लेना ही था.
” तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खडी रहो…:
और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया..और उपर की ओर देख रहा था.
” काश इस निगोडी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सट के खडा होना पडता…” मेहक ने आह भरी.
” अरी साल्लीयों वो मौका भी आयेगा…ज्यादा उतावली ना हो.” गुंजा बोली.
एक मिनट तक जब कुछ नही हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो उपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं.
मैने मुड के दरवाजे को खोलने की कोशिश की.
वो नहीं खुला.
मैने तो दरवाजा बन्द नही किया था.
नीचे झुक के एक छेद से मैने देखने की कोशिश की…बाहर एक ताला लटक रहा था.
मेरॊ उपर की सांस उपर नीचे की नीचे…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
ये क्या हुआ..दरवाजा किसने बन्द किया.
ड्राईवर को तो मैं बोल के गया था की देखते रहने को..
अब….?
लडकियां जो चुहुल कर रही थी…वो मैं जानता था…की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है.
लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था…बाहर से दरवाजा बन्द….और उपर से ताला…जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है…
कौन हो सकता है वो….मेरे दिमाग नहीं सोच पा रहा था.
मुझे याद आया…अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो…और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गयी.
पहला काम सेफ्टी फर्स्ट…स्पेशली जब साथ में तीन लडकियां हैं….तो खतरा किधर से आ सकता है…
दरवाजे से…उपर से या नीचे से…इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा.
और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये…चार के बजाय दो की फाइल में….. फाइल में…एक आगे एक पीछे
मैं मेहक के पास गया…और बोला…” चलो तुम कह रही थी ना…की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खडा हो जाता हुं…और गुंजा तुम जेसमीन के आगे…”
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” नहीं नहीं…मेहक बोली…मैं आप के आगे खडी होऊंगी.” और मेरे आगे आके खडी हो गयी.
.
मैं उसकी कमर को पकडे था की गुन्जा बोली…
” जीजू आप गलत जगह पकडे हैं….थोडा और उपर..”
मेहक ने खुद मेरा हाथ पकड के अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देख के बोला…” अब ठीक है ना…अब तू सिर्फ जल, सुलग..इत्ते हैन्ड्सम सेक्सी जीजू को छिपा के रखने की यही सजा है.
मैं कान से उनकी बाते सुन रही था…लेकिन आंख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गडी थी.
मैने आल क्लियर सिग्नल दे दिया था..इसलिये किसी हेल्प पार्टी की उम्मीद करना बेकार था.
नेट्वरक जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी…इसलिये मोबाइल से भी डी बी से बात नही हो सकती.
बन्द कोयी गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं…तो कोयी बडा खतरा आने के पहले…मैं खुद…खुद ही कोयी रास्ता निकालना पडेगा.
अचानक मुझे एक ब्रेन वेव आयी..” किसी के पास ऐसा नेल कटर है .जिसमें स्क्रू ड्राइवर है.”
” मेरे पास है….” जैसमीन ने कहा.
मैने उसे ले कर जेब में रख लिया. मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हे ढीले कर के…जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा.
तब तक उपर से सिमेन्ट चूना गिरने लगा..पहले हल्का ह्ल्का फिर तेज…
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” बचो…” मैं जोर से चिल्लाया…सर सीने में, कान बंद…हाथ से भी सर ढक लो, पार्टनर को कस के पकड लो…”
तब तक जोर से …बूम…हुआ..
पहले उपर का दरवाजा और साथ में कापियां टूटे फर्नीचर…छत पर से प्लास्टर के टुकडे..
अच्छा हुआ की मैने मेहक को कस के पकड रखा था…शाक वेव उपर से ही आयी…
लेकिन अगले पल नीचे का दरवाजा भी टूट कर के बाहर…और साथ में हम चारो भी ..लुढकते पुढकते…
” भागो…”
मैं जोर से चिल्लाया और हम चारों हाथ में हाथ पकड कर…स्कूल की बिल्डिंग से दूर…२००-२५० मीटर बाद ही हम रुके.
सब ने एक साथ खुली हवा में सांस ली.
अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा.
ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ था.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
जिस कमरे में ये लोग पकडे गये थे…उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गयी थी. सीढी के उपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था. अभी भी थोडे बहोत पत्त्थर गिर रहे थे.
बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया…?
उन दोनों का क्या हुआ…?
मेरे कुछ समझ में नही आ रहा था…
तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा…
टैक टैक…सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की…२५-३० राउन्ड…
सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था.
वो तो हम लोगों को मालूम था की…वहां कोयी नही हैं
स्कूल की ओर से कोय़ी फायर नहीं हो रहा था.
तब तक मेगा फोन पर डी बी की आवाज गुंजी…स्टाप फायर…
थोडी देर में एक पोलिस वालो की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले…और एक एम्बुलेन्स अन्दर गयी.
कुछ देर बाद एक आदमी लंगडाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी…चारो ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले..
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धडधडाती हुयी ५ एस. यु. वी. और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुति जिप्सी जिसमें पीछे स्टेन गन लिये हुये…लोग बैठे थे..आकर रुकी.
डी बी आगे बढ कर अम्बेसेडर से निकले आदमी से मिले.
मैने नोटिस किया बात करते करते उसने पोजीशन बदल ली और अब डी बी की पीठ स्कूल के गेट की ओर हो गयी.
उधर एस.य़ु.वी. से उतरे लोगों ने पुलिस से कुछ बात की और उसमें से निकल के चार लोगों ने उन दोनो को एस.यु. वी. में बिठा लिया. और चल दिये. जैसे ही वो गाडीयां चलीं..अम्बेसेडर से उतरे आदमी ने …अब तक वहां प्रेस वालों से इशारा किया की डी.बी. से बात करें.
उधर पीछे से गुंजा और मेहक आवाज दे रही थीं.
मैं मुड के उनके साथ पोलिस कन्ट्रोल रूम कि ओर चल पडा.गुड्डी वहीं थी.
कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाडी का ड्राईवर मिला, जिसे मैने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोयी दरवाजा ना बन्द कर सके…और वो यहां.
किसी तरह से मैने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया.
” क्यों कहां चले गये थे तुम….” मैने ठन्डी आवाज में पूछा.
” क्यों …मैं तो यहीं था साहब…वहां कोयी नहीं मिला क्या आपको”. वो बोला.
मैं चुप रहा.
होली आयी चुदाई लायी – Holi me Chudai Ki Kahani Part 3
” आपके जाने के दो चार मिनट के बाद…सी ओ साहेब…अरिमर्दन सिंह साहब आये थे. उन्होने मुझसे पूछा…तू यहां क्यो खडा है…मैने बोला की साहब ने बोला है…फिर मैने उन्हे सारी बातें बता दीं. वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हुं…तुम कन्ट्रोल रूम में जा के मेम साहेब के पास रहो. तुम अकेले उन्हे ठीक से जानते हो. मेरे सामने ही उन्होने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैने सी ओ साहब को साफ साफ बता दिया था की…आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये…उन्होने खुद जाकर दरवाजे को खोल के देखा.”
मैं क्या बोलता. उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है.
और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे…गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा…
” तुम ने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया…मुझे कौन उठा ले जाता. तुम्हारे जाने के ५-६ मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी.ओ. साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास…तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खडा है.
ंमुझे लगा कि अच्छा हुआ मैने उसे कुछ नहीं कहा…लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, जैस्मीन और मेहक…एक साथ.
गुन्जा, जैस्मीन और मेहक…एक साथ.
गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को…दोनों की आंखो से आंसु बस छलके नहीं.
गुन्जा बोली…” गुड्डी दी…अगर आज जीजू नही होते तो…मैं सोच नहीं सकती थी…”
” क्यों नही होते…खाली होली खेलने के लिये जीजु बने हैं क्या…मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा…” मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिडका. दबाते दबाते भी एक आंसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया.
और उसके बाद जैस्मीन और मेहक भी गुड्डी की बांहों में…इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब…बिन बोले बडी बडी आंखों में तिरते , छ्लकते आंसुओं में बह गया.
मेहक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे …बहोत सी बातें दोनो कह रही थीं.
मैने चिढाया…हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं …यहां सूखा..”
” अरे मैं हुं ना …गुंजा मुस्कराते हुये बोली और मेरी बांहों में
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