रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

Rangeele Malik Ki Rangilli Part 3 – Servant Hindi Sex Kahani

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

रंगीली का बेटा शंकर अब बड़ा हो रहा था, अभी से ही वो किसी सजीले नौजवान सा दिखने लगा था…!

लाला जी उस पर जान छिडकते थे, लेकिन सेठानी को वो एक आँख नही भाता था, कल्लू की नाकामी और ग़लत हरकतों से वो चिड-चिड़ी सी हो गयी थी…,

अपनी खीज वो रंगीली और दूसरे नौकरों पर निकालती रहती…!

वाकई शरीर के हिसाब से शंकर की चोचो (लिंग) का साइज़ भी अब अच्छा ख़ासा होने लगा था, और उसमें अब अकड़न पैदा होना शुरू हो गयी थी…

जब उसकी माँ उसके बदन की मालिश करती, तो साथ साथ में अभी भी उसके लिंग की मालिश करना नही भूलती, लेकिन अब उसका लिंग मालिश के दौरान सख़्त होने लगता,

जिसे रंगीली अपनी मुट्ठी में लेकर खूब आगे पीछे करती, और हर दिन उसका साइज़ मापने बैठ जाती…!

अभी से उसे अपने बेटे का लंड लाला जी के लंड की टक्कर का लगने लगा था, जिसे देखकर उसकी भावनायें बदलने लगती…, ना चाहते हुए भी उसकी चूत गीली हो जाती…!

शंकर को भी अब मालिश के दौरान अजीब सी उत्तेजना का एहसास होने लगा था, एक दिन वो बोला भी…

माँ, अब तू मेरी मालिश करना बंद कर्दे, अब में बड़ा हो गया हूँ, मे खुद अपना ख़याल रख सकता हूँ…!

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

रंगीली ने झिड़कते हुए उसे जबाब दिया – अच्छा ! कितना बड़ा हो गया है, 8 जमात क्या पास करली, अपने आप को बहुत बड़ा सूरमा समझने लगा है,

चुपचाप से लेटा रह, मेरे लिए तो तू अभी भी मेरा नन्हा सा शंकर ही है…!

शंकर – पर माँ, जब तू मेरी चोचो को पकड़ती है, तो मुझे अजीब सी गुद-गुदि जैसी होती है.., और मुझे लगने लगता है जैसे मुझे मूत आने वाला हो..!

रंगीली – लेकिन मेने तो देखा नही कभी तेरा मूत निकलते…!

शंकर – नही बस ऐसा लगता है, और उसके बाद इसका साइज़ कितना बढ़ जाता है ये तो तूने भी देखा ही है…, कभी कभी तो ऐसा लगता है कि कहीं ये फट ना जाए…!

रंगीली – तू कहीं इसको अपना हाथ तो नही लगाता,

शंकर – नही माँ, मन तो करता है, कि इसे हाथ में लेकर खूब ज़ोर्से मसलूं, हिलाऊ, लेकिन तूने मना किया है ना, तो अपना मन मार कर रह जाता हूँ…!

रंगीली उसके बालों में अपने तेल से सने हुए हाथों की उंगलियों से मालिश करते हुए बोली – शाबास मेरा बहादुर बेटा, यही तो में चाहती हूँ, कि तू अपने मन को काबू में करना सीखे…, दिमाग़ का इस्तेमाल करे..!

इस मन का क्या है बेटा, ये तो चंचल है, कुछ भी सोचने लगता है, लेकिन दिमाग़ हमें बताता है कि हमारे लिए क्या सही है और क्या ग़लत…!

शंकर – लेकिन माँ, मेरे साथ ऐसा होता क्यों है, कहीं ये कोई बीमारी तो नही है..?

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रंगीली – नही मेरे लाल, ये कोई बीमारी नही है, और मेरे शेर बेटे को कोई बीमारी हो भी नही सकती,

धीरज रख बेटा, तेरी हर बात का जबाब मिलेगा तुझे, अभी बस इतना समझ… तेरी माँ जो कह रही है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ तेरी भलाई के लिए है…!

शंकर कुछ ना समझते हुए भी हां में अपना सिर हिला देता…!

शंकर की मालिश करते वक़्त रंगीली अक्सर गरम हो जाया करती, वो वहाँ से अपनी गीली चूत हाथ से दबाए लाला जी की खोज में निकल पड़ती और मौका लगते ही वो उनकी गोद में समा जाती…!

लेकिन लाला जी की अब उमर बढ़ रही थी, वो अब लगभग 55 साल को पार कर रहे थे, तो अब एक भरपूर जवान औरत को संतुष्ट करना अब उनको थोड़ा मुश्किल होने लगा था…

भले ही वो कितना ही अच्छा खा पी रहे हो लेकिन बमुश्किल, एक बार के बाद अब उनका लंड जल्दी खड़ा नही हो पाता था, वहीं उन्ही के द्वारा बिगाडी गयी रंगीली की आदतें,

जिसे कम से कम लगातार दो बार जब तक जम के चुदाई ना मिले, उसकी चूत की खुजली नही मिट पाती थी…!

ये तो अच्छा था, कि उसकी कोशिशों से रामू थोड़ा चोदने लायक हो गया था, जिससे उसका काम चल रहा था…!

लेकिन अब उसके अपने बेटे की चोचो, जो अब अच्छी ख़ासी अक-47 राइफल बनती जा रही थी, उसकी सख्ती देखकर उसे उन दोनो के लंड फीके नज़र आने लगे थे…!

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खैर इसी तरह समय गुजर रहा था…! और शंकर इस कच्ची उमर में ही लगभग 6 फीट लंबा, 40” का मजबूत कसरती सीना हो गया था उसका,

6 पॅक वाले हीरो अपने आपको खुदा समझने लगते हैं, यहाँ तो रंगीली मेहनत करते करते उसका रोज़ बल्टियों पसीना निकलवाति थी, इस वजह से उसका पूरा शरीर ही स्टील की बॉडी बनता जा रहा था…,

एक दम सुर्ख चेहरा…हल्की-हल्की मूँछे निकलना अभी शुरू हो रही थी, माने रोंगटे आ रहे थे…,

शंकर की लाडली बेहन सलौनी भी जो मात्र उससे 3-3.5 साल ही छोटी थी, उसी के साथ स्कूल में जाती थी…!

साँवली सलौनी अपनी माँ की छवि नटखट गुड़िया अपने भैया की दुलारी सलौनी उसकी साइकल के आगे बैठकर अपने आप को किसी राजकुमारी से कम नही समझती थी…

लाला जी ने ये साइकल उसे उसके जन्म दिन पर भेंट की थी, जब वो 9वी क्लास में पहुँचा था, उससे पहले तो वो घर से 3किमी दूर अपने स्कूल दौड़ते दौड़ते ही आता- जाता था,

जब उसकी गुड़िया स्कूल जाने लगी तो वो उसे अपनी पीठ पर लाद कर ही दौड़ लेता..

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वो उसकी पीठ पर उपर नीचे होती हुई, ऐसे महसूस करती जैसे किसी घोड़े की सवारी कर रही हो.., कभी कभी वो उसके कंधों पर ही उच्छल कर बैठ जाती थी…!

कभी-कभी वो उसके गले से लटक जाती, शंकर उसको फूल की तरह हवा में उछाल देता, वो खिल-खिलाती हुई हवा में 10 फुट तक उपर चली जाती, और नीचे आते हुए उसे बड़ा मज़ा आता…!

अपने भाई के बाजुओं की ताक़त पर उसे पूरा भरोसा था, कि वो उसे गिरने नही देगा, सो वो इस तरह के खेल का भरपूर आनंद लेती…!

लेकिन अब वो बड़ी हो रही थी, बचपन में खेले गये अपने भाई के साथ वाले खेल, जाने कहाँ-कहाँ उसके हाथ लगते थे, आज उन पलों को सोच-सोच कर वो गुद-गुदि से भर जाती…!

वो सोचती कि काश भैया को ये साइकल ना मिली होती, तो वो आज भी उसकी पीठ और कंधों की सवारी कर रही होती, भैया के हाथ मेरे छोटे से इन चुतड़ों पर होते…!

ये सोचते ही वो उन्हें अपने हाथ से ही सहला देती.., कितना मज़ा आता उसे अगर ऐसा होता तो….?

एक दिन शाम को हवेली में अपने भाई के साथ पढ़ाई के बाद खेलते-खेलते सलौनी को अंधेरा हो गया, गाओं में लाइट तो होती नही, सो माँ के कहने पर शंकर उसको छोड़ने घर तक चल दिया…!

रास्ते में सलौनी बोली – भैया, कितने दिन हो गये, जब से ये मुई साइकल आपको मिली है, तबसे कभी आपने मुझे अपनी पीठ पर नही बिठाया…!

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शंकर उसकी बात सुनकर फ़ौरन झुक कर खड़ा हो गया और बोला – अरे तो इसमें क्या ले आ हो जा सवार अपने घोड़े की पीठ पर…

सलौनी पीछे से जंप मारकर उसकी पीठ पर सवार हो गयी, और अपने भाई के बलिष्ठ कंधो को पकड़कर, अपनी दोनो टाँगें उसकी कमर के इर्द-गिर्द लपेट दी…

शंकर ने अपनी बेहन की कोमल पतली सी कलाईयों को पकड़ कर उसे अपनी पीठ पर अच्छे से बैठने के लिए उपर को सरकाया…!

सलौनी के कच्चे नीबू, जैसे ही उसकी पत्थर जैसी शख्त पीठ से रगडे, आनंद के मारे सलौनी का पूरा शरीर झन झना उठा…!

भैया मेरे बाजुओं में दर्द होने लगा है लटके-लटके, ज़रा मुझे पीछे से पकडो ना, सलौनी अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाते हुए कुछ देर बाद बोली…

शंकर ने अपनी दोनो बाजू एक के उपर दूसरी रख कर उसके गोल-गोल छोटी बॉल जैसे चुतड़ों को नीचे से सहारा दिया…!

ओफ़्फूओ…भैया ! ऐसे नही, अलग अलग हाथों से मेरी टाँगों को पकडो ना…!

निर्मल मन शंकर एक छोटी सी गुड़िया की बातों में आ गया, वो तो उसे अभी भी पहले वाली छोटी सी प्यारी सी गुड़िया ही समझ रहा था,

सो उसने अपने बड़े बड़े हाथों में उसकी मुलायम मक्खन जैसी जांघों को पकड़ लिया…, सलौनी, जो अब तक अपनी दोनो टाँगों को उसके दोनो तरफ फैलाए उसके शरीर से लपेटे थी, उन्हें आपस में जोड़ने लगी…!

शंकर की उंगलियाँ उसकी छोटी सी अन्छुई मुनिया से मात्र दो अंगुल ही दूर थी, जिन्हें और नज़दीक लाने की तिकड़म वो सोचने लगी…,

शंकर अपनी मस्त मौला चाल से अपनी बेहन को पीठ पर लटकाए घर की तरफ बढ़ रहा था, इस बात से पूरी तरह अंजान की उसकी छोटी बेहन अपने दिमाग़ में क्या खिचड़ी पका रही है…!

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वो हिल-हिल कर खूब कोशिश में थी, की कैसे भी उसे उसकी मंज़िल मिल जाए, लेकिन शंकर की मजबूत पकड़ ज़रा भी अपनी जगह से नही हिल पा रही थी…!

सलौनी ने अपना पूरा वजन शंकर के हाथों के उपर डाल दिया और बोली – भैया मे नीचे खिसक रही हूँ, थोड़ा उपर करो ना…!

बस इस बार उसकी तरक़ीब काम कर गयी, शंकर ने हल्का सा झटका देने के लिए एक क्षण के लिए अपने हाथों की पकड़ को ढीला किया,

और उसी क्षण का लाभ लेते हुए सलौनी ने अपनी मुनिया के दोनो तरफ के होंठों को उसके दोनो हाथों की उंगलियों से सटाते हुए अपनी जांघों को ज़ोर्से भींच लिया…!

उसका हाथ लगते ही सलौनी की मुनिया खुशी से झूम उठी, पहली बार किसी मर्द के स्पर्श को अपने उस नाज़ुक जगह पर होते ही वो आसमानों में उड़ने लगी,

शरीर के सारे तार झन-झना उठे, उसके रोंगटे खड़े हो गये, अपनी जांघों को उसके हाथों पर ज़ोर्से कसते हुए उसकी मुनिया ने अपनी लार टपका दी, जो आधी बाहर आ चुकी थी और उसका दूसरा सिरा अभी भी अंदर ही था…..!

इतने में उसका घर आ गया, चौक में पड़ी चारपाई पर घूमकर उसने उसे चारपाई पर पटक दिया…!

सलौनी अपनी आँखें बंद किए चारपाई पर पड़ी हुई थी, अपनी उसी खुमारी में, उसे होश ही नही था कि वो किस स्थिति मैं, जबकि उसकी स्कर्ट उपर उठी हुई थी, जिसमें से उसकी सफेद रंग की कच्छि साफ दिखाई दे रही थी…

शंकर को कच्छि कुछ गीली सी दिखी, उसने सलौनी से पुछा – गुड़िया तेरा पेसाब निकल गया क्या…?

सलौनी एकदम चोन्क्ते हुए बोली – नही तो..!

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शंकर – तो ये तेरी कच्छि कैसे गीली हो रही है…?

सलौनी ने झटके से सिर उपर करके देखने की कोशिश की लेकिन उसे कुछ नही दिखा, फिर उसने अपना हाथ अपनी मुनिया के उपर ले गयी, तो सचमुच उसकी उंगलियाँ चिप-चिपि हो गयी…!

वो शर्मकार झट से चारपाई से खड़ी हो गयी, और बोली – हो सकता है भैया, ग़लती से निकल गया होगा, मे पेसाब करके आती हूँ, ये कहकर वो नज़र चुराकर वहाँ से भाग गयी…..!

नाली पर खड़े होकर सलौनी ने अपनी स्कर्ट को उपर किया, और कच्छि नीचे करके जैसे ही अपनी मुनिया के उपर हाथ लगाया, उसकी उंगलियाँ रस से चिप-चिपा गयी,

आअहह…कितना गाढ़ा और लस लसा था वो, एक दम चासनी की लाट की तरह खींच कर लंबा होता चला गया,

सलौनी ने अपने हाथ को नाक के पास लाकर सूँघा, उसमें से कस्तूरी की तरह सुगंध उठ रही थी, जिसे सूंघते ही वो मदहोश हो गयी, और उसके मुँह से एक कामुक सी सिसकी…फुट पड़ी…

आअहह…भैयाअ…ये कैसा जादू किया है आपके हाथों ने……..!

इन सब बातों से अंजान, रंगीली का शेर शंकर जैसे ही हवेली जाने के लिए वापस मुड़ा, उसका सामना घर में घुस रहे उसके धर्म पिता.. अरे अपने रामू भैया, जो लाला के खेतों से काम करके लौट रहे थे उनसे हो गया…!

रामू जो बमुश्किल उसके सीने तक आ रहा था बोला– अरे शंकर बेटा ! आज सूरज पश्चिम ते कैसे निकल आयो…, मेरा मतलब आज हवेली ये छोड़ यहाँ का कर रहो ये..…?

शंकर – राम राम बापू, वो सलौनी लेट हो गयी थी, उसे ही छोड़ने आया था..

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तभी उसकी दादी दुलारी भी आ गयी और बोली – अरे बेटा तनिक हमाए झोर भी बैठ ले कर…!

वो कुछ देर उन लोगों के पास बैठ कर हवेली लौट लिया….!

शंकर की मर्दानी शेर जैसी चाल, उसके रंग रूप और कसरती बदन पर स्कूल में उसके बड़े क्लास की लड़कियाँ भी मक्खियों की तरह उसके आस-पास भिन-भिनाति रहती थी…!

लेकिन वो अपनी माँ का आग्याकारी पुत्र, इन सब चीज़ों से परे, उसे बस माँ जो कहेगी वही सही वाली स्थिति में था…!

ना किसी से कोई ज़्यादा लेना देना, अपनी राह जाना, अपनी राह आना….! पढ़ने और खेल कूद में हमेशा अब्बल, सो सारे टीचर्स की पहली पसंद… ऐसा था रंगीली का शंकर….!
…………………
कल्लू की दूसरी पत्नी लाजो इतने अच्छे संसकारों वाली नही थी, जो कि सुषमा की तरह संकोच बस हर तरह की बात को अपने अंदर ही दफ़न कर ले…

कल्लू की मर्दानगी की पोल तो उसके उपर पहली रात को ही खुल गयी थी…, वो समझ गयी कि बेटा पैदा करना इसके बस की बात नही है…,

पहली पत्नी से बेटी भी कैसे पैदा हो गयी ये भी बड़े अचरज की बात है…!

उसने तय कर लिया कि अगर इस घर पर राज करना है तो बेटा पैदा करना ही पड़ेगा, और कैसे पैदा करना है इस बारे में वो सोचने लगी…!

वो एक ऐसी माँ की बेटी थी, जो इधर उधर की खबर रखने में और पहुँचाने में माहिर होती हैं.., तो जाहिर सी बात है कि माँ के गुण तो बेटी में पहले से ही होने चाहिए…!

अपनी इसी सोच के कारण उसकी नज़र शंकर पर पड़ी, जिसके लिए पूरी हवेली में कहीं भी आने-जाने पर कोई रोक-टोक नही थी…!

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तेज स्वाभाव लाजो, ये भली भाँति जानती थी, कि शंकर अभी नादान है, कच्चा है, अगर अभी से इस पर डोरे डाले जायें, इसे अपने जाल में फँसाया जाए, तो उसका काम आसान हो सकता है…!

अपनी इसी सोच को कार्यान्वित करने के लिए वो हर समय उसपर नज़र रखने लगी,

काम-धाम तो कोई था नही, सो लग गयी उसे अपने जाल में फँसाने…!

एक दिन अपनी माँ के कहने पर शंकर रसोई घर से कुछ समान लेने गया, मौका देखकर लाजो भी उसके पीछे-पीछे लपक ली….,

वो समान लेकर निकल ही रहा था, कि लागो ने उसे शहद भरे स्वर में पुकारा – शंकर भैया, ज़रा सुनो तो…!

वो उसकी आवाज़ सुनकर ठिठक गया, और बोला – जी छोटी भाभी, कुछ काम था ?

लाजो – हां, मे वो अखरोट देख रही थी, कहीं दिखाई नही दे रहे, ज़रा देखो तो उपर कहीं तो नही रखे…!

उसने अपने हाथ का समान नीचे रखा, और उपर अलमारी के खाने से अखरोट का डिब्बा ढूँढने लगा…!

उसने जैसे ही अपने हाथ उपर किए, वो उसके ठीक सामने आकर उससे सत्कार खड़ी हो गयी, और अपने पंजों पर उचक-उचक कर अपनी गान्ड को उसके लंड के पास लेजाने की कोशिश करती हुई बोली –

इधर देखो तो, उधर देखो तो, यहीं कहीं होंगे, गये कहाँ…, ज़रा अच्छे से देखो, ये कहकर उसने अपनी गान्ड को उसके आगे ज़ोर्से घिस डाला…

लाजो की गुद-गुदि गान्ड की गर्मी पाकर उसका जवान लंड एक सेकेंड में ही खड़ा हो गया, और ढीले-ढाले पाजामे के कपड़े को तानकर उसकी गान्ड की दरार के उपर ठोकर मारने लगा…

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खेली खाई लागो, उसके लंड की सख्ती को अच्छे से पहचान कर मस्ती से भर गयी..! वो अपनी गान्ड को और ज़्यादा पीछे को दबाकर मज़े लेने लगी…!

कुछ देर उपर देखने के बाद शंकर ने कहा – यहाँ तो कहीं नही दिखाई दे रहा छोटी भाभी…!

उसने उसके पाजामे के उपर से ही उसके लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर कहा – जाने दो, मुझे जो चाहिए था वो मिल गया…!

शंकर ने उसकी तरफ देख कर कहा – क्या मिल गया आपको…?

वो उसकी आँखों में झाँकते हुए उसके लंड को मसलकर बोली – ये तुम्हारा खिलौना…आअहह…क्या मस्त है, इसे खेलने के लिए दोगे मुझे..?

शंकर ने उसकी कलाई पकड़कर अपने लंड को छुड़ाते हुए कहा – छोड़िए इसे, ये कोई खिलौना नही है, मेरी सू-सू है…! शायद कोई ग़लत फहमी हुई है आपको…!

लंड को छोड़ कर वो उसके बदन से लिपट गयी, आअहह…शंकर भैया, आपको नही पता, इससे खेलने में बड़ा मज़ा आता है, खेलकर तो देखो एक बार…!

शंकर ने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा – मुझे नही आता खेलना ऐसा कोई खेल, जाने दीजिए वरना माँ की डाँट पड़ेगी, उसका समान देना है…!

वो दाँतों से अपना नीचे का होंठ काट कर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली – आअहह.. राजा, ताड़ की तरह इतने लंबे और तगड़े हो रहे हो…

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माँ के पल्लू से कब तक बँधे रहोगे, थोड़ा जिंदगी के मज़े लेना सीखो राजा.., तुम्हें खेलना नही आता तो मे सीखा दूँगी ये खेल…!

शंकर इतना भी नादान नही था, वो कुछ- कुछ उसकी मंशा समझने लगा, लंड तो उसका भी अकड़ ही चुका था, लेकिन माँ की अवग्या वो नही कर सकता था,

उसे बस इतना पता था, कि उसकी माँ जब तक नही कहेगी, वो किसी के साथ कुछ भी नही करेगा, वो मेरा भला चाहती है…

उसने ज़बरदस्ती से उसके बाजुओं को पकड़कर अपने बदन से अलग करते हुए बोला – मुझे नही सीखना आपका कोई खेल,

फिर झट-पट से अपना समान उठाया, और लंबे-लंबे डॅग भरते हुए तेज़ी से वहाँ से निकल गया…!

खिसियानी लाजो, कुछ देर वहीं खड़ी भुन-भुनाती रही, फिर बुदबुदाते हुए बोली

कब तक बचेगा बच्चू, मे भी ऐसी जोंक हूँ जो एक बार चिपक गयी तो छूटेगी नही…!

उधर जब शंकर अपनी माँ के पास पहुँचा तो उसने देरी से आने का कारण पुछा, अभी वो उसकी बात का कोई जबाब भी नही दे पाया था कि तभी उसकी नज़र उसके पाजामे में बने तंबू पर पड़ी…!

उसने आव ना देखा ताव, दो गाल पर तमाचे चटका दिए बेचारे के, और तमक कर बोली – तुझे जिस काम के लिए मना करती हूँ, तू वही काम क्यों करता है…!

वो बेचारा तो वहीं खड़े खड़े जड़ हो गया, उसकी मार का उसपर कोई असर नही हुआ, क्योंकि उसके शरीर का हर एक अंग इतना मजबूत था, कि रंगीली जैसी कोमलांगी के ही हाथ के थप्पड़ों से उसपर क्या असर होना था,

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उल्टा वो सोचने लगा कि कहीं माँ के हाथ में चोट तो नही आ गई…!

लेकिन वो ये सोचने लगा कि मेने तो कोई जबाब भी नही दिया फिर माँ ने उसे किस बात के लिए मारा…?

दो थप्पड़ जड़ने के बाद उसे खुद को दर्द हुआ और तड़प कर बोली – बेटा तू क्यों समझना नही चाहता है…?

शंकर – तू क्या कह रही है माँ…, मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा, तूने जो सवाल किया, पहले उसका जबाब तो सुन लेती कि मुझे देर कैसे हुई…!

रंगीली – वो तू बाद में बताना, पहले ये बता, ये तेरा पाजामा इतना उठा हुआ क्यों है आगे से…?

शंकर की अब समझ में आया कि माँ गुस्सा किस बात से है, सो उसके हाथ सहलाते हुए बोला – पहले ये बता तेरे हाथ में चोट तो नही लगी…?

पिटने के बाद भी अपने लाड़ले को उसकी फिकर करते देख वो तड़प उठी, और उसे अपने कलेजे से लगाकर बोली – तूने जबाब नही दिया बेटा..?

शंकर – दोनो बातों का जबाब एक ही है माँ, फिर उसने रसोईघर में उसके साथ हुए वाकिये का ज्यों का त्यों विवरण कह सुनाया…!

रंगीली मुँह फाडे ठगी सी ये सब सुनती रही, लाजो के उपर उसे इस कदर गुस्सा आ रहा था, अगर उसका वश चलता तो वो उसका खून पी जाती,

अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए वो बोली – देख बेटा, आगे से तू उस डायन के आस-पास भी मत जाना, भले ही वो तुझे बुलाने की कोशिश क्यों ना करे…

अगर फिर भी वो तेरे पीछे पड़ी रहे, और किसी काम के बहाने से बुलाने की कोशिश करे तो कह देना, माँ से पूछो.. ठीक है,

और हाँ, अब स्कूल से आकर तू ज़्यादा से ज़्यादा सलौनी के पास रहकर वहीं अपने बापू के घर,

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वो भी तेरे साथ अच्छे से पढ़ाई कर लिया करेगी.. ठीक है.., इतना कहकर उसने अपने बेटे का माथा चूम लिया…

शंकर अपनी माँ को हां बोलकर अपनी पढ़ाई करने अपनी बेहन सलौनी के पास चल दिया….!

लेकिन इस घटना ने शंकर के कोमल मन के तारों को ज़रूर छेड़ दिया था,

ये उमर ही ऐसी होती है, जो भी नया अनुभव होता है और मन को अच्छा लगता है, दिमाग़ भी उसी की तरफ भागने की कोशिश में लग जाता है…

ये तरुण अवस्था दिमाग़ की वजए मन के आधीन रहती है, दिमाग़ तो सिर्फ़ किताबी ज्ञान लेने के लिए ही उपयोग होता है…

आज पहली बार उसे अपनी माँ के अलावा किसी दूसरी प्रौढ़ स्त्री के शरीर का स्पर्श हुआ था, वो भी उसके ऐसे अंगों पर जहाँ वो पहले से ही नियंत्रण कर पाने में अपने को असमर्थ पाता था…

उसके इसी अनुरोध पर उसने अपनी माँ से भी अपने लिंग की मालिश करवाना बंद कर दिया था,

क्योंकि वो उसका हाथ लगते ही किसी बिगड़ैल घोड़े की तरह हिनहीना कर खड़ा हो जाता था जिसे शांत करने में उसे काफ़ी वक़्त लग जाता…!

चलो वो तो उसकी माँ थी, जो बचपन से ही उसकी परवरिश करती आ रही थी, लेकिन आज तो किसी दूसरी औरत ने तो ऐसी हरकतें की उसके साथ की वो चाहकर भी उन्हें अपने मन से निकाल नही पा रहा था…

पूरे दिन वो ऐसे ही विचारों में खोया रहा, बेमन से रात का खाना खाकर जैसे तैसे वो सो गया………..……….!
……………………….

आज स्कूल में कबड्डी का मॅच था, शंकर की टीम ने 12थ क्लास की टीम को चॅलेंज दिया था, जो पुरे स्कूल में टॉप पर थी…

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शंकर को छोड़ कर उसकी क्लास के ज़्यादातर बच्चे सामने वाली टीम के सामने बच्चे जैसे ही लग रहे थे, तो वो विपक्षी टीम के सामने ज़्यादा देर तक खड़े ही नही रह पाए, अकेला शंकर ही ऐसा था जो उनसे टक्कर ले पा रहा था…,

आख़िर अपनी मेहनत और ताक़त के दम पर वो फाइनल राउंड में जीत ही गया….!

लेट होने की वजह से सलौनी अपनी सहेलियों के साथ घर चली गयी थी,

वो अकेला ही पसीने से तर सावन के मौसम में, मस्त साइकल पर हवा के झोंकों का मज़ा लेता हुआ घर की ओर आरहा था…

कि अचानक से तेज बारिश होने लगती है, बारिश इतनी तेज थी कि उसे साइकल चलाना दूभर हो गया, आख़िर में वो एक पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो गया…

कपड़े पानी से तर होकर उसके बदन से चिपक चुके थे, उसका लंड पाजामे से ऐसा दिख रहा था जैसे उसके उपर कोई कपड़ा ही ना हो…!

अचानक एक युवती पास के खेत से निकल कर उस पेड़ की तरफ बढ़ी चली आरहि थी, उसके बदन पर मात्र एक झीने कपड़े की साड़ी लिपटी हुई थी जो भीगने के कारण उसके बदन से चिपकी हुई थी…!

19-20 साल की वो युवती उससे कुछ ही फ़ासले पर आकर खड़ी हो गयी, और शंकर को तिर्छि नज़र से देख कर मंद मंद मुस्कराने लगी…!

पहली बार उसने उस युवती पर भरपूर नज़र डाली, वो उसके मादक बदन के कटाव में खो गया…

झीनी साड़ी बदन से चिपकी हुई थी, जिसमें से उसके अनार जैसी चुचियाँ साफ नुमाया हो रही थी, गोरा बदन होने के कारण उस भीगी हुई सारी से साफ-साफ दिख रहा था…

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

शंकर की नज़र उपर से नीचे तक उसकी कामुक काया पर फिसलने लगी, अपने को लाख रोकने की कोशिश के बाद भी वो उसके रूप लावण्य को देखने से रोक नही पा रहा था…

उठे हुए अनारों के शिखर पर उसे दो जंगली बेर कहो या अधपके जामुन जैसे निपल जो उसकी गीली साड़ी के कपड़े से बाहर झाँक रहे रहे थे…

धीरे-धीरे उसकी नज़र फिसल कर उसके नीचे की तरफ बढ़ी, पतली सी कमर के उपर उसका सपाट पेट जिसके बीचो बीच हल्की सी गहराई लिए उसका नाभि कुंड…

फिर जैसे ही उसकी नज़र उसके योनी प्रदेश पर गयी, शंकर की साँसें ही जैसे अटक गयी, गीली साड़ी की सीलबटों के पीछे उसे कुछ दिखा तो नही, लेकिन वहाँ की भौगौलिक स्थिति वो भली भाँति भाँप चुका था…

नीचे दो केले के तने जैसी उसकी चिकनी गोरी जांघे…उसकी आहह.. निकल गयी ये सब देख कर…, वो युवती उसे रति का प्रतिरूप दिखाई दे रही थी…!

कामदेव के स्वरूप इस नाव युवक को अपनी ओर इस चाहत भरे अंदाज से निहारते देख वो युवती, एक कामुक सी मुस्कान बिखेरती हुई धीरे-धीरे उसके नज़दीक आने लगी…

वो निरंतर उसकी आँखों में देखे जा रही थी, शंकर मानो उसके रूप जाल से सम्मोहित ही हो गया था…

पास आकर उस युवती ने बड़े नशीले अंदाज में उसका हाथ पकड़ा और उसे पेड़ के तने की तरफ ले जाने लगी, वो किसी सम्मोहन से बँधा चुपचाप उसके पीछे – पीछे चल दिया…!

युवती ने उसे तने से पीठ टिका कर बिठा दिया, और खुद अपना आँचल नीचे करके उसकी गोद में बैठ गयी…!

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

उसकी मादक, भरी हुई मुलायम गद्देदार गान्ड का एहसास होते ही उसका लंड पाजामे के अंदर खड़ा हो गया…!

आँखों के सामने उसके गोल-गोल इलाहाबादी अमरूद जैसे दूधिया उभर, जिनके शिखर पर कंचे जैसे गोल-गोल कड़क निपल, जो बारिश के ठंडे पानी से और ज़्यादा कड़क हो गये थे…

उस युवती ने उसके हाथ पकड़ कर अपने अनारों पर रख कर दबा दिए, शंकर किसी मशीन अंदाज में उन्हें धीरे-धीरे मसल्ने लगा…,

उस युवती ने एक मीठी सी आअहह भरते हुए उन्हें और आगे को कर दिया, और अपने दहक्ते होंठ उसके होंठों से जोड़ दिए…!

अब वो युवती धीरे धीरे नीचे को खिसकाने लगी, और उसकी टाँगों के बीच आकर उसने उसका पाजामा खींच कर उसके बदन से अलग कर दिया…!

और खुद खड़ी होकर अपनी उस नाम मात्र की गीली साड़ी के आवरण को भी अपने बदन से अलग कर दिया….

पहली बार शंकर को उसकी मांसल जाँघो के बीच का योनि प्रदेश दिखाई दिया.., बिना बालों की उसकी चिकनी चमकदार योनि की दो फांकों के बीच उसे एक दरार सी दिखाई पड़ी…!

पहली बार किसी औरत की यानी वो भी इतनी सुंदर, कामुक, देखकर शंकर का दिल रेल के एंजिन की तरह धड़कने लगा….,

उसका दिल किया कि उठकर उसकी दरार को खोलकर देखे, लेकिन उसे अपनी इच्छा को वहीं दफ़न करना पड़ा,

क्योंकि तभी वो युवती घूम गयी, और फिर जो दृश्य उसकी नज़रों के सामने था वो उसके लिए किसी कयामत से कम नही था…

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

उसकी पतली सी कमर के नीचे दो गोल-गोल बॉल जैसे नितंब, जिनके बीच एक पतली सी दरार जिसकी गहराई का उसे कोई पता नही था, किसी पतली रेखा सी लगी…!

वो युवती बड़े कामुक अंदाज से दो कदम आगे बढ़ी, उसके चलने से उसके वो दोनो गोल-गोल मटके जैसे नितंब उस पतली सी दरार में घर्षण पैदा करते हुए उपर नीचे होने लगे…!

शंकर किसी किन्कर्तव्य विमूढ़ की तरह उन्हें आँखें फाडे बस देखे जा रहा था… कुदरत की इस असीम कारीगरी को वो किसी तमाशबीन की तरह बैठा देखता रहा…

उसकी उत्तेजना ऐसे कामुक बदन को देख कर निरंतर बढ़ती जा रही थी, उस बदन को आतिशीघ्र भोगने की उसकी लालसा बलवती होती जा रही थी,

वो अपने आप पर काबू नही रख सका और अपनी जगह से खड़े होने का मन बना लिया…

कि तभी वो युवती उसकी तरफ पलटी, और बड़े कामुक अदा से मुस्कराते हुए उसने उसकी तरफ देखा…

मानो पुछ रही हो, कि बोलो कैसा लगा ये कुदरत का करिश्मा…!

वो धीरे-धीरे चलते हुए उसके पास पहुँची और उसकी टाँगों के बीच बैठकर उसने उसके लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया, जैसे कोई सपेरा, अपने सबसे पसंदीदा नाग का फन अपने हाथ में लेता है…

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

दो-तीन बार उसने उसे अपने हाथ से उपर नीचे किया, जिसका सुपाडा अभी अच्छे से खुल भी नही पा रहा था…, शंकर की उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर थी…

फिर उस युवती ने उसकी आँखों में झाँकते हुए उसके लंड को चूम लिया….!

आअहह…..उसके दहक्ते होंठों का स्पर्श अपने लंड पर महसूस करते ही उसकी कमर स्वतः ही हवा में उठ गयी.. और उसके मुँह से सिसकी निकल गयी…

अभी वो अपने होश ठिकाने भी नही कर पाया था कि वो अपने अनारों को उसके बदन से रगड़ती हुई किसी नागिन की तरह लहराती हुई , उपर को बढ़ने लगी,

अपने मुलायम उभारों को उसकी कठोर छाती से रगड़ते हुए उसके लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर अपनी काले बालों के बीच बनी सुरंग के द्वार पर रख लिया…

उसकी सुरंग के वे दोनो दरवाजे अपने आप खुल गये और उसके नाग का फन उसमें समा गया,

सुरंग अंदर से किसी भट्टी की तरह दहक रही थी, उसे अपना लंड पिघलता सा महसूस होने लगा…!

वो युवती धीरे-धीरे अपना वजन रख कर उसके उपर बैठती चली गयी, शंकर को अपना लिंग किसी गरम गहरी और अंधेरी गुफा के अंदर जाता हुआ महसूस हुआ…!

पूरा नाग बिल में जा चुका था, उस युवती की आँखें मज़े के कारण बंद हो गयी, कुछ देर वो यूँही बैठी रही, फिर उसने अपनी आँखें खोल कर उसकी आँखों में झाँका…

और एक मादक स्माइल देकर अपनी मरमरी बाहें उसके गले में डाल दी…!

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

वो अब उसके उपर एक लयबद्ध तरीक़े से उठ-बैठ रही थी, शंकर को इतना मज़ा आ रहा था, मानो वो कहीं हवा में तैर रहा हो…!

उत्तेजना पल-प्रतिपल अपनी चरम सीमा को पार करती जा रही थी, वो भी अनायास ही अपनी गान्ड को नीचे से उठाकर उसकी सुरंग की था लेने निकल पड़ा…

फिर एक क्षण ऐसा आया कि वो युवती बुरी तरह हाँफती हुई उसके बदन से जोंक की तरह चिपक गयी,

उसी क्षण शंकर को अपने अंदर से कुछ लावा सा तीव्र गति से उबलता सा प्रतीत हुआ और वो उसके लंड के रास्ते किसी पिचकारी की तरह बाहर निकलने लगा…

दे-दनादन अनगिनत राउंड उसकी एके-47 से निकलते चले गये…, जब उसकी पूरी मॅगज़ीन खाली हो गयी तब जाकर उसका लंड शांत हुआ…!

उसका पूरा बदन जैसे हवा में तैरता हुआ ज़मीन पर आ टिका हो, और वो उस युवती के बदन को अपने सीने से चिपकाए यूँ ही पड़ा रह गया….!

शंकर की दिनचर्या : सुवह 4 बजे उठकर वो शौन्च के लिए खेतों में जाता था, वही से 5-6 किमी की दौड़ लगा कर 6 बजे तक हवेली लौटता,

उसके बाद उसकी माँ अपने सामने उससे जमकर कशरत करती, कुछ देर पसीना सूखने के बाद तेल और बेसन से उसके बदन का रगड़-रगड़ कर उबटन करती…

तब तक उसकी छोटी बेहन सलौनी भी स्कूल के लिए तैयार होकर वहाँ आ जाती, और फिर नहा धोकर, नाश्ता वग़ैरह लेकर वो दोनो उसकी साइकल से स्कूल को निकल जाते…,

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

लेकिन आज साडे 6 बज गये, शंकर का अभी तक कहीं अता-पता नही क्योंकि वो उसे बिना देखे ही रोजमर्रा की तरह अपने काम-काज में लग गयी,

रंगीली उसकी वाट जोह रही थी, वो अपने मन ही मन बुद-बुदाई…

कहाँ चला गया ये लड़का, अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था, आख़िर में वो उसे सोने के कमरे में देखने गयी…!

उसे अभी तक सोता हुया देख कर उसको बहुत गुस्सा आया, और वो पैर पटकती हुई, उसकी चारपाई के पास पहुँची…

अभी वो अपना हाथ बढ़ाकर उसको झकझोर कर उठाना ही चाहती थी, कि तभी उसकी नज़र उसके पाजामे पर पड़ी, जो आगे से बहुत ज़्यादा गीला हो रहा था,

उसके लंड का सुपाडा उस गीलेपन से चिपका हुआ था जो अभी भी किसी बंदूक की नाल की तरह खड़ा ही था…!

उसने सोचा, ये कैसे गीला हो रहा है, लगता है नालयक ने पाजामा में ही पेसाब कर लिया, लेकिन ऐसा पहले तो इसने बचपन में भी कभी नही किया तो आज कैसे…?

ये चेक करने के लिए उसने वहाँ पर अपना हाथ लगाकर देखा, सपने में हुए अत्यंत ही सुखद एहसास के बाद वो सकुन भरी नींद में सो रहा था…

अपनी माँ के हाथ लगाने से उसकी नींद पर तो कोई फरक नही पड़ा, लेकिन उसका लंड झटके मार उठा…, रंगीली ने झटके से अपना हाथ खींच लिया…!

उसकी उंगलियाँ उसके ताज़ा तरीन माल से चिप चिपा गयी, जिन्हें उसने अपनी नाक से लगाकर सूँघा,

अपने बेटे की पहली मलाई की खुश्बू से वो मदहोश हो उठी, वो टक टॅकी लगाए उसके उठे हुए लंड और उस गीलेपन को देखने लगी,

उसकी अपनी चूत में चीटियाँ सी काटने लगी, और वो दो मिनिट में ही गीली हो गयी,

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वो समझ गयी, कि अब उसका बेटा जवान हो रहा है, इसको रोकना मुश्किल है, लेकिन उसने जो फ़ैसला लिया था उसके चलते वो उसका ग़लत उपयोग नही होने दे सकती…!

वो सोचने लगी, कि अगर अभी इसे सही और ग़लत में फ़र्क करना नही बताया, और यूँ ही इसे जबरदस्त अपने पर काबू रखने के लिए रोकती रही, तो ये कभी भी ग़लत राह पर जा सकता है,

हो सकता है वो मुझसे झूठ बोलने लगे, और वो करने लगे जो उसे अच्छा लगता है…

तो अब इसे कैसे सब कुछ समझाऊ..? इसे समझाने के लिए मुझे ही कुछ करना होगा, लेकिन अपने बेटे के साथ वो एक सीमा तक ही जा सकती थी,

अब तक वो जो करती आ रही थी वोही अब दोनो को ग़लत लगने लगा था..,

इसलिए उसने वो सब बंद कर दिया था, तो अब उसे कुछ सिखाने के लिए या उसकी उत्सुकता को शांत करने के लिए तो मुझे और आगे तक बढ़ना पड़ेगा…!

अपनी इन्ही सोचों में गुम उसकी नज़र एक बार फिर अपने बेटे के पाजामे पर चली गयी,

वो ये देखकर हैरान हो गयी कि सोते हुए भी उसका लंड ठुमके से लगा रहा था…!

अपने बेटे के लंड की मालिश बंद किए उसे 6-8 महीने से भी ज़्यादा समय हो गया था, तब भी उसके मतवाले हथियार को देख कर वो गरम हो जाती थी, फिर अब तो वो कुछ और ही दमदार हो गया होगा…!

सोचकर ही उसकी मुनिया रस छोड़ने लगी, और स्वतः ही उसका हाथ अपनी जाघो के बीच चला गया, उसने लहंगे के उपर से ही उसे कस कर मसल दिया…!

अपने बेटे के हथियार की ताज़ा जानकारी लेने की लालसा ने उसे उसके पास जाने पर मजबूर कर दिया, वो उसकी चारपाई के किनारे पैर लटकाकर बैठ गयी…!

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किसी स्वचालित मशीन की तरह उसकी उंगलियों ने उसके नाडे की गाँठ खोल दी, बड़ी सावधानी से उसके पाजामे को नीचे करके उसने उसके लंड को बाहर कर लिया.

लंड अभी भी पूरी तरह चिप-चिपा रहा था, आहिस्ता से उसने उसके टोपे पर लगी मलाई को अपनी उंगली पर लिया, अपनी नाक के पास लाकर उसे सूँघा,

आहह…. पहली धार की मलाई की खुशुबू सूंघ कर वो रोमांचित हो उठी, उसके ताज़ा-ताज़ा वीर्य से किसी कस्तूरी के समान उठती तरंगें उसके मन मस्तिष्क पर छा गयी, और उसने वो उंगली अपने मुँह में डाल ली…!

आअहह…उउउम्म्मन्णनचह…. क्या मस्त स्वाद है मेरे बेटे के वीर्य का, वो उंगली को ऐसे चूसने लगी मानो वो उसके लंड को ही चूस रही हो…!

इस एहसास के होते ही उसके उपर वासना हावी होने लगी, उसके सोचने समझने की शक्ति क्षीण पड़ने लगी, और उसकी गर्दन अपने आप नीचे को झुकती चली गयी…!

शंकर का लंड सीधा छत की तरह सिर उठाए तन्कर खड़ा था, बिना किसी सहारे के, रंगीली ने बिना हाथ लगाए उसके सुपाडे के चारों ओर अपने जीभ से चाट लिया…!

उसके गाढ़े वीर्य में इतनी चिपक थी, कि जीभ हटते हुए भी वो लाट बनकर उसकी जीभ तक किसी तार की तरह खिंचता चला गया…!

बेटे के वीर्य का स्वाद लेते ही उसकी रही सही समझ जाती रही, और उसने उसे अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लिया…!

अपने लंड पर किसी के हाथ की पकड़ महसूस करके शंकर की नींद खुल गयी, अपनी माँ को पास बैठकर अपने लंड को पकड़े देख कर वो झटके से उठते हुए बोला-

माँ ! तू ये क्या कर रही है…?

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

अपने बेटे को उठते हुए देख कर रंगीली एक दम से हड़बड़ा गयी, उसकी चोरी पकड़ी गयी थी, लेकिन अपनी झेंप मिटाने के लिए उसने उसी पर पलट वार करते हुए कहा –

पहले तो तू ये बता, कि अभी तक सो क्यों रहा था, और ये तेरा पाजामा इतना गीला क्यों हो रहा है, मे तुझे उठाने आई थी, और जब ये देखा तो देखने लगी कि ये कैसे हुआ…?

शंकर ने उठते हुए पहले अपना हाथ बढ़ाकर अपने पाजामे को उपर करने की कोशिश की, तो रंगीली ने एक थप्पड़ उसके हाथ पर जड़ दिया और कड़क कर बोली…

इसे यहीं रहने दे, पहले मुझे इसका जबाब दे ये गीला क्यों हुआ…?

उसने अपने पाजामे को देखा जो वाकई में चिप चिपा सा हो रहा था, इससे पहले ऐसा कभी नही हुआ था उसके साथ, तो फिर आज क्यों..?

वो सोच में पड़ गया, फिर उसे अपने सपने के बारे में कुछ धुंधली सी बातें याद आई, और उसके चेहरे पर सकुन से भरी स्माइल आ गयी, जिसे देख कर रंगीली बोल पड़ी….

अब ऐसे मुस्करा क्यों रहा है, बता ना क्या बात है…?

वो उसे टालते हुए बोला – कुछ नही माँ, हो सकता है ज़्यादा देर सोने की वजह से मेरा मूत निकल गया होगा…!

रंगीली – अच्छा ! मूत ऐसा गाढ़ा-गाढ़ा, चिप चिपा होता होगा.. क्यों..? सही सही बता, वरना बहुत मारूँगी…!

शंकर अब कैसे बताए कि उसने रात सपने में क्या-क्या देखा और क्या-क्या किया..? सो अपनी माँ को टालते हुए बोला – मार ले माँ, अगर तुझे मेरी बात पर विश्वास नही है तो…!

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

रंगीली थोड़े गुस्से वाले लहजे में बोली – हां..हां.. खिला खिला के सांड जो कर दिया है, अब तुझे अपनी माँ की मार का क्या असर होना है…

फिर अपनी रोनी सी सूरत बना कर बोली – अब तो तू बड़ा हो गया है, अपनी माँ से बातें छिपाना सीख रहा है, कोई बात नही बेटा, यही तो होता आया है इस जगत में…

बच्चे बड़े होते ही अपने माँ बाप को दरकिनार करने लगते हैं, तू कॉन्सा नया काम कर रहा है…!

शंकर अपनी माँ की बात सुनकर तड़प उठा, उसके गले लगते हुए बोला, अपने बेटे को तू दूसरों की तरह समझती है माँ…!

तेरा बेटा तेरी एक आवाज़ पर अपनी जान कुर्बान कर सकता है…!

रंगीली ने उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया, और उसे अपने सीने से कसते हुए बोली – जान देने की बात नही करते मेरे बच्चे, ठीक है तू नही बताना चाहता है तो ना सही…!

शंकर – वो माँ मुझे शर्म आ रही है, जो सपना मुझे रात को आया उसके बारे में बोलते हुए, बस और कोई बात नही है…!

सपने की बात सुनकर रंगीली समझ गयी, कि रात उसके बेटे ने कोई ऐसा हसीन सपना देखा है, जिसे देख कर वो अपनी उत्तेजना पर काबू नही कर पाया और उसका वीर्य छूट गया…!

अब उसकी जिग्यासा और बढ़ गयी ये जानने की, कि आख़िर उसने सपने में ऐसा क्या देखा जो वो इतना उत्तेजित हुआ होगा…?

उसने फिलहाल उसे इस बारे में ज़्यादा कुछ नही कहा और बोली – चल ठीक है, अभी नही पुछति इस बारे में, तू जल्दी से उठ स्कूल जाना है, सलौनी आती ही होगी…

सपने की बात सुनकर रंगीली समझ गयी, कि रात उसके बेटे ने कोई ऐसा हसीन सपना देखा है, जिसे देख कर वो अपनी उत्तेजना पर काबू नही कर पाया और उसका वीर्य छूट गया…!

अब उसकी जिग्यासा और बढ़ गयी ये जानने की, कि आख़िर उसने सपने में ऐसा क्या देखा जो वो इतना उत्तेजित हुआ होगा…?

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उसने फिलहाल उसे इस बारे में ज़्यादा कुछ नही कहा और बोली – चल ठीक है, अभी नही पुछति इस बारे में, तू जल्दी से उठ स्कूल जाना है, सलौनी आती ही होगी…

अभी ये शब्द उसके मुँह से निकले ही थे कि बाहर से सलौनी की आवाज़ सुनाई दी…भैया…, कहाँ हो…?

बड़ी लंबी उमर है इस लड़की की, नाम लेते ही हाज़िर, चल जल्दी उठ बेटा, वरना वो इधर आ धम्केगि…, रंगीली ने उसे बाजू पकड़कर उठाते हुए कहा!

उसे उठाकर उसने सलौनी को आवाज़ दी, आई बेटा, तेरे इस सांड़ भाई को उठा रही थी, बाहर आते आते उसने कहा..

सलौनी – क्या..? भैया अभी तक सो रहा है..? ये आज उल्टी गंगा कैसे बहने लगी, ऐसा तो आज तक नही हुआ मा…?

रंगीली – तू ही देखले, जैसे जैसे बड़ा हो रहा है, आलसी होता जा रहा है तेरा भाई…

खैर तू बैठ मे तेरे लिए कुछ खाने को लाती हूँ, आज इस लड़के के चक्कर में सब कुछ भूल गयी, ये कहकर वो कमरे के एक कोने की तरफ बढ़ गयी जहाँ खाने पीने का समान रखा था…!

थोड़ा बहुत नाश्ता करके भाई बेहन स्कूल निकल जाते हैं, उधर रंगीली अपनी गीली चूत लेकर सोचने लगी, हाए राम शंकर का हथियार तो अभी से कैसा तगड़ा हो गया है…!

मे तो लाला जी का ही समझ रही थी कि इससे बड़ा भला किसी का क्या होता होगा, इसका तो अभी बिना किसी की चूत में गये ही ऐसा है, जब चलने लगेगा तो क्या होगा ?……

ये सोचकर ही उसके शरीर में सनसनी सी फैल गयी, ना चाहते हुए भी उसका हाथ अपनी गीली चूत पर चला गया जो ये सोचकर और ज़्यादा गीली हो गयी थी,

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

अपने ही बेटे के बारे में इस तरह से सोचना उसे कुछ अजीब सा लगा, लेकिन वो अपनी चूत की सुरसूराहट की आगे बेबस थी जो लगातार बह-बहकर उसको परेशान किए हुए थी,..

अब उसे किसी भी तरह लंड मिलना चाहिए था, जिससे उसके पानी को अच्छे से निकलवा सके, ये सोचकर वो लाला की गद्दी की तरफ चल दी…!

बैठक के बाहर से ही उसे अंदर से कई सारे लोगों की आवाज़ें सुनाई दी, वो उल्टे पाँव लौट गयी, और खेतों की तरफ अपने पति रामू के पास चल दी…

रामू इस समय एक खेत में कुछ काम कर रहा था, उसके साथ और भी मजदूर लगे थे, रंगीली को खेतों की तरफ आते हुए देखकर वो उसकी तरफ लपका…

इशारे से उसे पास ही बनी झौंपड़ी की तरफ आने के लिए कहा…!

इशारे को समझ रामू भी उसके पीछे-पीछे लपका, वाकी के मजदूर अपनी धोती के अंदर अपने अपने लौडे को मसालते ही रह गये, ये सोच सोच कर कि काश इस रामू की जगह वो होते…,

रामू तो बेचारा उसके हुकुम का गुलाम था, सो कई दीनो बाद मिली अपनी रसीली पत्नी की चूत पाकर धन्य हो गया…!

रंगीली की मटकती गान्ड का पीछा करते हुए उसका लंड खड़ा हो गया…

झोंपड़ी में पहुँचते ही रंगीली ने फटाफट अपना लहंगा उपर चढ़ाया, और टाँगें चौड़ी करके ज़मीन पर पड़े पुआल पर उसके आगे लेट गयी,

अपनी बीवी की गीली चूत देखकर रामू का 6” लंबा लॉडा और अच्छे से खड़ा हो गया, उसने उसकी गोरी-गोरी मुलायम जांघें सहलाते हुए उसे उसकी चूत में उतार दिया…

छोटे कद का रामू उसके उपर मेढक की तरह फुदक फुदक कर उसे चोदने लगा,

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

रंगीली के प्रयासों से वो कुछ हद तक इस काबिल हो गया था, कि उसका पानी निकलवा देता था..!

सांड़े के तेल की मालिश से उसका लंड लंबा तो ज़्यादा नही हुआ था, लेकिन मोटाई ज़रूर अच्छी ख़ासी हो गयी थी, सो अब वो उसकी चूत में कसा कसा जा रहा था…

रंगीली भी अपनी कामुक सिसकियों से उसे और ज़्यादा उत्तेजित करती हुई, अपनी कमर उचका-उचका कर चुदवाने लगी…!

आअहह…सस्सिईईई….और ज़ोर्से चोदो मेरे राजा…हाआंणन्न्…ऐसे ही, उउफ़फ्फ़…. मेरे दूधों को मस्लो… ज़ोर्से…और.. पेलो….आआयईी….उउउफ़फ्फ़…बहुत मज़ा आरहा है..हुउंम्म…

रामू अपनी पूरा दम-खम लगाकर अपनी लुगाई को तृप्त करने के प्रयास में जुटा रहा…!

15 मिनिट बाद अपनी चूत की गर्मी निकल्वाकर वो वहाँ से हवेली की तरफ लौट गयी…,

उसे अपनी गान्ड मटकाते हुए जाते देखकर वाकी के मजदूर रामू के नसीब पर रस्क करते हुए अपने अपने काम में लग गये…!
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उधर स्कूल में आज शंकर का पढ़ने में बिल्कुल भी मन नही लगा, किताब को खोलते ही लेटर्स की जगह उसे वो सपने वाला दृश्य बार बार उसकी आँखों के सामने आ जाता…!

उसकी परिकल्पना करते ही उसका लंड थुनक कर पाजामे के अंदर तंबू बनाकर खड़ा हो जाता, वो उसे बार-बार नीचे को दबाकर बिठाने की कोशिश करता,

लेकिन बजाय बैठने के वो और ज़्यादा तन्तनाने लगता, दबाते-दबाते उसके लंड में ऐंठन सी होने लगी, उसका मन करने लगा कि यहीं क्लास में ही इसे बाहर निकल कर खूब ज़ोर ज़ोर्से हिलाए..

उसके साथ वाली ब्रेंच पर बैठी उसकी क्लास की एक लड़की उसकी ये गति विधियाँ गौर से देख रही थी, उसके लंड को ठुमकते हुए देख देख कर और फिर उसे मसल कर बिठाने की कोशिश कर रहे शंकर को देख कर उसकी मुनिया में चुनचुनी सी होने लगी..

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

उसने च्चिि…चिि.. करके शंकर का ध्यान अपनी तरफ खींचा,

जैसे ही उसने उस लड़की की तरफ देखा, उसे अपने लंड की तरफ ताकते देख वो बुरी तरह झेंप गया, और एक के उपर दूसरी टाँग चढ़ाकर उसने उसे दोनो टाँगों के बीच दबाकर उसका गला घोंट दिया…!

उस लड़की ने शंकर को दिखाकर अपनी चूत को खुज़ाया और अपनी नशीली आवाज़ में फुसफुसा कर बोली – क्यों गला घोंट रहा है बेचारे का, तू कहे तो मे कुछ मदद करूँ…!

शंकर ने उसकी बात का कोई जबाब नही दिया, और किताब खोलकर पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश करने लगा…!

वो लड़की मन ही मन मुस्कराते हुए बोली – बेचारा ब्रह्मचारी…,

शंकर को आज अपनी माँ पर बहुत गुस्सा आरहा था, क्यों उसने अभी तक उसको अंडरवेर पहनने को नही दिया था…!

कम से कम पाजामा के नीचे अंडरवेर होता तो वो इतना परेशान नही होता जितना अभी हो रहा था, उसे अपने खड़े लंड को छिपाना बहुत मुश्किल हो रहा था…!

जैसे तैसे स्कूल का समय पूरा करके शंकर अपने स्कूल बॅग को आगे रखकर सीधा स्कूल के पीछे की झाड़ियों की तरफ भागा, उसने पाजामा खोलकर मूत की धार मारी, तब जाकर उसे कुछ शांति मिली…

फिर जैसे ही गेट की तरफ आया, सलौनी खड़ी उसका इंतेज़ार कर रही थी…,

उसे आगे बिठाकर वो वहाँ से चल दिया, अपने पीछे उसे कुछ लड़कियों की
खिल-खिलाने की आवाज़ सुनाई दी, उन्हें अनसुना करके उसने साइकल में पेडल मार दिए…!

थोड़ा आगे चलते ही रास्ते में लोगों की भीड़ दिखाई दी, उत्सुकता बस वो दोनो भी उस भीड़ को देख कर खड़े हो गये…

भीड़ के बीचो बीच घेरे के अंदर सबका ध्यान था, मानो कोई मदारी खेल दिखा रहा हो और आस-पास खड़े लोग उसका आनंद ले रहे हों,

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

ऐसा ही कुछ सोच कर वो दोनो बेहन भाई भी खड़े हो गये और बीच में क्या हो रहा है ये देखने की कोशिश करने लगे,

लागों के पीछे से सलौनी को तो कुछ दिखा नही, लकिन अच्छी लंबाई की वजह से शंकर की नज़र अंदर के नज़ारे पर पड़ गयी…!

अंदर का सीन देख कर उसकी आँखें चौड़ी हो गयी, गुस्से से शरीर थर-थर काँपने लगा,

सलौनी साइकल पकड़, इतना कहकर उसने साइकल अपनी छोटी बेहन को थमायी और वो लोगों की भीड़ को हटाता हुआ अंदर घुसता चला गया…..,

कल्लू और उसके दो दोस्त, शराब के नशे में धुत्त बाइक पर सवार, रास्ते चलती हुई कॉलेज की लड़कियों को छेड़ रहे थे,

एक लड़की ने उनका विरोध करते हुए उनमें से एक के गाल पर चाटा जड़ दिया, नतीजा कल्लू ने अपनी बाइक टिकाई और वो तीनों उन लड़कियों के साथ बदतमीज़ी करते हुए छेड़खानी करने लगे…

इतने में वहाँ उनके ही कॉलेज के कुछ लड़के आ गये, उन्होने कल्लू और उसके दोस्तों के साथ झगड़ा करना शुरू कर दिया,

कल्लू नशे में तो था ही, उन लड़कों को उल्टी सीधी माँ-बेहन की गालियाँ देने लगा, उनमें से एक ने जो कुछ तगड़ा सा भी था उसका गला पकड़ लिया, इस पर कल्लू ने उसके थोबडे पर एक मुक्का जड़ दिया…!

फिर क्या था, उन 5-6 लड़कों ने उनकी धुनाई शुरू करदी, कल्लू के वो दोनो गान्डु यार अपनी दुम दबाकर खिसक लिए, और उन लड़कों ने चूतिया कल्लू को वही ज़मीन पर पटक कर दे लात दे घूँसा बना दिया भूत…

इतने में वहाँ शंकर आ पहुँचा, कल्लू को इस तरह पीटते देख उसके तन बदन में आग भर गयी, अपनी बेहन को साइकल थमाकर वो भीड़ में घुसता चला गया…

पीछे से सलौनी चिल्लाति ही रह गयी, अरे भैया सुन तो, क्या हुआ..? कहाँ जा रहा है…?

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

लेकिन उसकी आवाज़ सुनने के लिए अब शंकर वहाँ नही था, जाते ही उसने दो-तीन लड़कों को पीछे से पकड़ कर कल्लू से दूर धकेला और चिल्लाते हुए बोला –

क्यों मार रहे हो कल्लू भैया को, छोड़ो इन्हें…!

जबतक शंकर वहाँ पहुँचा तब तक उन 5-6 लड़कों ने मार-मार कर कल्लू का कचूमर बना दिया था, वो किसी पिलपिले कद्दू की तरह ज़मीन पर पड़ा लात घूँसे खा रहा था…

अगर इस समय वो शराब के नशे में नही होता तो शायद इतनी मार झेल भी नही पाता…,

वो लड़के कल्लू को छोड़ कर शंकर से बोले – तू बीच से हट जा लौन्डे, आज इस मादरचोद को सबक सिखा कर ही मानेंगे…,

शंकर – लेकिन इन्होने किया क्या है, क्यों मार रहे सब लोग..?

एक लड़का – ये साला अपने दारुबाज़ दोस्तों के साथ मिलकर हमारे कॉलेज की लड़कियों को छेड़ता है, जब लड़की ने विरोध किया तो उसके साथ बदतमीज़ी करने लगा…!

इतना कहकर वो उसे फिर से मारने दौड़े, तब तक शंकर उनके बीच आकर खड़ा हो गया, और बोला – अब बस करो बहुत पीट लिया तुम लोगों ने, अब और नही…

लड़का – तू रोकेगा लौन्डे हमें, जा जाकर अपनी माँ की गोद में बैठकर उसका दूध पी, अभी तेरी उमर नही है इन सब बातों के लिए…!

ये कहते हुए वो लोग जैसे ही कल्लू को मारने लपके, शंकर ने उनमें से दो लड़कों के गले पकड़ कर एक एक हाथ से ही उपर उठा लिया और अपने से दूर उछाल दिया…!

अब उन लड़कों को समझ में आया, जिसे वो दूध पीता बच्चा समझ रहे थे वो कोई साधारण लड़का नही है, सो वो सब एक साथ मिलकर उसके उपर टूट पड़े…!

शंकर ने भी उल्टे-सीधे अपने लात घूँसे जैसे भी उसको समझ आया चलाने लगा, सिर्फ़ अपना बचाव करने के लिए…

लेकिन जिसके भी उसका हथौड़े जैसा हाथ पड़ जाता, वो फिर पलट कर वार करने की स्थिति में जल्दी से नही आ पाता…

चाँद मिनटों में ही शंकर ने उन्हें नानी याद दिला दी, जब वो सब उससे अलग हुए तो उसने कल्लू की तरफ ध्यान दिया,

अभी वो उसे उठाने ही वाला था कि उनमें से एक लड़के ने पीछे से आकर उसकी पीठ में अपने दाँत गढ़ा दिए,

वो दर्द से बिल-बिल्लाकर सीधा खड़ा हुआ ही था क़ी दूसरे ने आगे से आकर उसकी जाँघ में अपने दाँत गढ़ा दिए,

दो तरफ़ा के दर्द को किसी तरह सहन करते हुए उसने सामने वाले लड़के जो उसकी जाँघ को काट रहा था, उसके दोनो कानों को पकड़कर उसे अपनी जाँघ से अलग किया.

उसके बाद दूसरे को पीछे हाथ करके उसके बाल पकड़ कर पीठ से अलग करते हुए सामने लाया, और फिर दोनो की मुन्डी आपस में दे मारी…!

फडाक की आवाज़ के साथ ही उन दोनो लड़कों की खोपडियाँ फट गयी, और उनमें से खून बहने लगा…!

उन्हें दूर फेंक कर अपने दर्द पर काबू करते हुए शंकर ने एक हुंकार भरी, और अपने तमतमाए सुर्ख चेहरे को लेकर वो उन लड़कों की तरफ दहाडा…

आओ हरम्जादो, आओ लडो मुझसे हरमियों पीछे से काटते क्यों हो.. सालो…, हिम्मत है तो सामने से लडो…

उसके इस रौद्र रूप को देख कर वहाँ खड़ी तमाम भीड़ भी एक बारगी ख़ौफ़ में आ गई, उसके चेहरे से आग सी बरस रही थी जिसे देखकर वो लड़के डर के मारे वहाँ से दुम दबाकर भाग लिए…!

शंकर ने कल्लू को किसी अनाज के बोरे की तरह अपनी बाहों में उठा लिया, और भीड़ को चीरता हुआ अपनी बेहन सलौनी की तरफ बढ़ गया…!

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

तभी भीड़ से एक आवाज़ आई – इस ताक़त का सही इस्तेमाल कर बेटा…, ऐसे नीच आदमी को बचाकर कोई अच्छा काम नही किया है तूने…!

उसने मुड़कर उस आवाज़ वाले आदमी की तरफ देखा, वो एक 60-65 साल का बुजुर्ग था,

उसे घूरते हुए शंकर ने कहा – मुझे अच्छे बुरे की पहचान नही है बाबा…

मेने बस अपने मालिक की रक्षा करके अपना फ़र्ज़ निभाया है, इतना कहकर वो उसे लेकर अपनी साइकल के पास पहुँचा…

कल्लू की हालत ऐसी नही थी कि उसे साइकल पर आसानी से बिठाया जा सकता हो, बाइक उसे चलानी आती नही थी, सो उसे उसने वहीं छोड़ा, फिर जैसे तैसे कल्लू को साइकल के कॅरियर पर बिठाया,

उसके शरीर को सलौनी की रस्सी कूदने वाली डोरी से अपने शरीर के साथ बँधा, और बेहन को आगे बिठाकर वो अपने गाओं की तरफ चल दिया….!

हवेली में कदम रखते ही सेठानी ने अपने लाड़ले कल्लू की हालत देख कर कोहराम मचाना शुरू कर दिया, आवाज़ सुनकर लाला जी भी चौक में आ गये,

साइकल से खोलकर कल्लू को चारपाई पर लिटा दिया, मुँह से शराब की गंध आरहि थी सो किसी को ये बताने की ज़रूरत ही नही पड़ी कि ये सब शराब के कारण हुआ है…

लेकिन सेठानी ने शंकर को कोसने का एक भी मौका नही छोड़ा, और वो उसे बुरा भला कहने लगी, कल्लू की इस हालत का ज़िम्मेदार सीधा सीधा उसने उसे ठहरा दिया…!

शंकर बेचारा नीचे गर्दन किए हुए खड़ा रहा, लेकिन उसने अपनी सफाई में एक शब्द भी नही कहा…!

लाला जी उसके पास आए और उन्होने उसके कंधे पर हाथ रखकर उससे पुछा – तू बता शंकर असल बात क्या है…?

सेठानी – उससे क्या पुछते हो, वो तो अपने आप को बचाने के लिए कोई भी कहानी गढ़ेगा ही, मे पुछति हूँ इसने कल्लू पर हाथ उठाया तो उठाया कैसे…?

लाला जी – तुम थोड़ा शांत रहो भगवान, आज अपने बेटे की हालत की तुम खुद ज़िम्मेदार हो, तुमने इसे इतनी छूट दे दी कि ये अपना अच्छा बुरा सब कुछ भूल गया है…

हां शंकर बता बेटा क्या हुआ था… ? शंकर ने अपना सिर उठाकर सेठ जी की तरफ देखा…!

अभी वो कुछ कहता कि उससे पहले सेठानी हाथ नचाते हुए बोली –

आहहहाहा…बेटा..! वो बेटा हो गया, अपने बेटे से तो कभी इतने प्यार से बात नही की, दोष मुझे मढ़ दिया…!

तुम अपनी ज़ुबान बंद रखो पार्वती, वरना हमसे बुरा कोई नही होगा…

हमें पता तो चले कि असल माजरा क्या है, बिना सोचे समझे तुम उसपर कैसे दोष मढ़ सकती हो…!

सेठानी के द्वारा कहे गये कटु शब्द सुनकर शंकर की आँखों में पानी आ गया,

उसने दबदबाई आखों से अपनी माँ की तरफ देखा जो इस आस से चुप-चाप खड़ी थी कि भगवान करे इसमें उसके बेटे का कोई दोष ना हो…….!

शंकर सेठ धरम दस के आगे हाथ जोड़े हुए अपनी गर्दन झुकाए खड़ा था…,

लाला जी ने फिर पुच्छा..

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

बता शंकर क्या हुआ है कल्लू के साथ.., किसने मारा है इसे और क्यों..?

इससे पहले कि शंकर कुछ बोलता, रंगीली के पास खड़ी सलौनी बोल पड़ी –

ये कुछ नही कहेगा मालिक, क्योंकि ये तो आपका पालतू है, मे बताती हूँ क्या हुआ था कल्लू भैया के साथ…!

रंगीली ने अपनी बेटी को डाँटते हुए कहा – ये तू किस तरह से बात कर रही है मालिक से, अपने बड़ों से इस तरह बात करते हैं..?

लाला जी – कोई बात नही रंगीली बच्ची है, बोलने दो उसे, हां बता बेटा तू ही बता, लगता है इसके मुँह में तो ज़ुबान ही नही है…

सलौनी घटना को विस्तार से बताने लगी –

भरे बाज़ार में कल्लू भैया और इनके दो दोस्तों ने शराब के नशे में कॉलेज की लड़कियों के साथ छेड़खानी की, उनके साथ बदतमीज़ी की…,

फिर उसने सारा वृतांत ज्यों का त्यों बयान कर दिया, सेठ की आँखें सलौनी के मुँह से ये सब सुनकर नम हो गयी, उसकी माँ रंगीली का सिर अपने बेटे की बहादुरी सुनकर गर्व से उँचा हो गया…!

सेठ जी ने शंकर के सिर पर प्यार से हाथ रख कर उसे आशीर्वाद देते हुए कहा –

जीता रह बेटे, आज तूने साबित कर दिया कि तू इस घर का सेवक नही रक्षक है.., तूने इस नालयक की जान बचाकर बहुत बड़ा काम किया है…!

फिर वो अपनी झगड़ालू पत्नी को संबोधित करते हुए बोले –

देखा पार्वती, इसे कहते हैं स्वामी भक्ति, ये जानते हुए कि तेरे इस नालयक बेटे ने भरे बाज़ार में कितनी नीच और गिरी हुई हरकत की है, उसके बबजूद भी वो इसे बचाकर यहाँ लाया है…!

अगर वो चाहता तो भीड़ की तरह ही वो भी खड़े-खड़े तमाशा देख सकता था, और यूँ ही इसको वहीं पड़ा छोड़ आता, तब किसे दोष देती तुम…?

वजाय उसका अहसान मानने के हर समय उसे कोसना बंद करो…, और कोशिश करो अपने बेटे को समझाने की,

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

ऐसा ना हो कि इसकी गंदी हरकतों की वजह से एक दिन हमारा इलाक़े में निकलना ही मुश्किल हो जाए…!

तभी रंगीली की नज़र शंकर की पीठ पर लगे खून के धब्बों पर पड़ी,

माँ का दिल तड़प उठा, दौड़कर वो उसके पास गयी और उससे पुछा – ये खून कैसा शंकर…?

कुछ नही माँ, उन हरामजादो ने मुझे काट खाया है, फिर जब रंगीली ने उसकी कमीज़ उठाकर देखी, तब उसका घाव दिखाई दिया जो काफ़ी ज़्यादा जगह का मास कुचल सा गया था दाँतों के काटने से…!

लाला – हम अभी हाक़िम को बुला कर इन दोनो की दवा दारू का इंतेज़ाम करते हैं, तुम शंकर को ले जाओ रंगीली और इसके बदन को सॉफ करो…

रंगीली – इसे हाक़िम की ज़रूरत नही है मालिक, हम अपने घरेलू इलाज़ कर लेंगे, आप कल्लू भैया को सम्भालो, ये बात उसने सेठानी को देख कर कही, जबाब में सेठानी ने अपना मुँह बीसूर कर उउउन्न्ह…ही किया…!

लेकिन सेठानी के अलावा और चार आखें ऐसी थी, जिनमें शंकर के प्रति अलग-अलग तरह के भाव थे, कहीं कृतघनता के तो कहीं वासना पूर्ति के…!

हाक़िम जी कल्लू की मलम पट्टी करके चले गये, लेकिन उसको चोटें अंदर से लगी थी, जो कुछ दिन कसकने वाली थी…

लाला जी ने हाक़िम जी को शंकर की मलम पट्टी के लिए भी कहा लेकिन रंगीली ने उन्हें मना कर दिया, और अपने बेटे को अपने नौकरों वाले कमरे में ले गयी…!

आते ही उसने अपने बेटे को कलेजे से लगा लिया, और उसके माथे को चूमकर बोली –
शाबाश मेरे शेर, ऐसे ही अपने हौसले और ताक़त के दम पर इस परिवार को अपने अहसानों के नीचे दबाना है तुझे…!

आज अंजाने में ही सही तूने अपनी माँ को उसकी मंज़िल की एक सीढ़ी और चढ़ा दिया है…!

शंकर – ये तू क्या बोल रही है माँ, मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा…?

रंगीली – सब समझ जाएगा मेरे लाल, समय आने दे तुझे सब समझा दूँगी…. ला मुझे दिखा तो कहाँ कहाँ चोट लगी है तुझे…!

फिर उसने उसकी कमीज़ उतार कर गुनगुने पानी से उसका धूल-धूसीर शरीर सॉफ किया, और उसके पीठ के घाव पर सरसों का तेल लगाकर हल्दी लगाकर पट्टी बाँध दी,

हल्दी से उसके घाव में जलन होने लगी, जब उसने अपनी माँ से शिकायत की तो वो बोली – इतनी सी जलन सहन नही हो रही तुझे,

रंगीले मालिक की रंगीली पार्ट ३ – Servent Hindi Sex Kahani

तेरी माँ का दिल तो बुरी तरह ज़ख्मी हुआ पड़ा है, सोच उसे कितनी जलन होती होगी.., ये कहकर उसकी आँखें भीग गयी…!

वो अवाक अपनी माँ की अन्सुझि वेदना को समझने की कोशिश करता हुआ बोला – अपने बेटे को अपने गमों के बारे में कुछ नही बताएगी तू…?

रंगीली – तू अभी बच्चा है मेरे लाल, मेने कहा ना बस समय का इंतेज़ार कर, और कहाँ चोट लगी है तुझे ये बता…!

शंकर ने झिझकते हुए अपनी जाँघ की तरफ इशारा किया, तो रंगीली उसका पाजामा उतरवाने लगी,